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बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

lekh: amerika men hindi shikshan -dr. surendra gambheer

अमेरिका में हिन्दी शिक्षण 

                      - डॉ. सुरेन्द्र गंभीर, यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया


अमेरिका में हिन्दी-शिक्षण में एक नई लहर आई है। 6 फ़रवरी 2006 को अमेरिका के 
राष्ट्रपति जार्ज बुश ने नेशनल सिक्योरिटी लैंगवेज इनिशियेटिव नाम की एक भाषा-
नीति की घोषणा की थी। इस नई नीति के तहत सरकारी विद्यालयों के विदेशी भाषा 
शिक्षण कार्यक्रम में दस नई भाषाएँ क्रमशः जोड़ने के लिए सरकारी समर्थन देने के 
लिए सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट की है। इन भाषाओं में हिन्दी भी एक है। 
अन्य भाषाएँ थीं – चीनी, अरबी, उर्दू, फ़ारसी, तुर्की, पुर्तगाली, स्वाहिली, रूसी और दरी।
 स्टारटॉक के नाम से यह कार्यक्रम 2007 में चीनी और अरबी से शुरू हुआ। 2008
 में हिन्दी, उर्दू और फ़ारसी जोड़ी गईं। 2009 में तुर्की और स्वाहिली जुड़ीं और फिर दो 
साल बाद दरी और रूसी को भी इस सूची में सम्मिलित कर लिया गया। स्टारटॉक का 
Dr. Surendra Gambhirविस्तार बहुत प्रभावशाली रहा है। 2007 में चीनी और अरबी  
के 34 कार्यक्रम संपन्न हुए। 2008 में तीन भाषाएँ और जुड़ने 
के बाद यह संख्या 81 जा पहुँची, अन्य भाषाओं के समावेश 
के साथ कार्यक्रमों की यह संख्या क्रमशः 116, 134 से गुज़रती 
हुई 2011 में 156 तक आ पहुँची है । संख्या के साथ साथ 
यह भी बहुत प्रभावशाली तथ्य है कि अमेरिका के 50 प्रदेशों 
में से 46 प्रदेशों में स्टारटॉक के कार्यक्रम संपन्न हुए हैं। 
स्टारटॉक में हिन्दी की स्थिति में भी हर वर्ष प्रगति हुई है। 
इसके आंकड़े आगे प्रस्तुत किए जाएंगे। इनमें हिन्दी, चीनी 
और पुर्तगाली भारत, चीन ओर ब्राज़ील की सुधरती हुई आर्थिक 
स्थिति को ध्यान में रखकर सम्मिलित की गई हैं और अन्य भाषाएँ अन्य कारणों के 
साथ साथ विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से जोड़ी गईं। आर्थिक दृष्टि से उभरते 
देशों से निकट भविष्य में व्यापारिक  संबंधों को मज़बूत करने के लिए वहां की भाषा 
और संस्कृति के जानकार अगली पीढ़ी में तैयार करने की यह दूरदृष्टि है।

अमेरिका में आजकल हिन्दी जानने का महत्व धीरे धीरे बढ़ रहा है। इसका श्रेय जहाँ एक 
तरफ़ भारत मूल की उन अनेक संस्थाओं को है जो भारतीय मूल के युवा-वर्ग के लिए बड़े 
नियमित ढंग से हिन्दी के स्कूल अलग अलग प्रदेशों में चला रही हैं वहाँ अमरीकी सरकार 
को भी इसका श्रेय जाता है जिसने अपनी भाषा-नीति को स्पष्ट करते हुए हिन्दी को 
सरकारी स्कूलों के विदेशी-भाषा कार्यक्रम में एक विकल्प के रूप में रखने की घोषणा 
की है। ग़ैर-सरकारी स्वयंसेवी संस्थाएँ भाषा के साथ साथ भारतीय संस्कृति के विभिन्न 
पक्षों का ज्ञान बच्चों को देती हैं। सरकारी तंत्र के तहत चलने वाले हिन्दी कार्यक्रमों में 
भाषा के साथ उसकी अभिन्न सहचरी संस्कृति के भौतिक और वैचारिक पक्षों को समझने-
समझाने की अनिवार्यता पर भी बल है। भाषा-संबंधी शोध पर आधारित इस सरकारी 
सोच का दृढ़ मत है कि भाषा और संस्कृति में अटूट संबंध है और भाषा को समझने 
और उसका सटीक प्रयोग करने के लिए उससे जुड़ी सांस्कृतिक मान्यताओं का ज्ञान 
महत्वपूर्ण है। उसी प्रकार स्थानीय संस्कृति को समझने के लिए भी स्थानीय भाषा ही 
सशक्त माध्यम है। इस प्रकार भाषा और संस्कृति में अन्योन्याश्रित संबंध होने के 
कारण एक का अस्तित्व दूसरे के बिना अकल्पनीय है।
अमेरिकन सरकार की इस नई नीति को कार्यान्वित करने के लिए 2007 में एक नए 
राष्ट्रीय कार्यक्रम की घोषणा हुई। राष्ट्रीय स्तर का यह नया कार्यक्रम स्टारटॉक 
वाशिंगटन डी सी के पास स्थित नेशनल फ़ॉरन लैंगवेज सैंटर का हिस्सा बना। स्टार
टॉक के माध्यम से सरकार से प्राप्त आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। ग्रीष्म
कालीन सत्र (मई से अगस्त) के दौरान उपर्युक्त भाषाओं में युवा-वर्ग के लिए 
आयोजित इन भाषा-कार्यक्रमों को भरपूर सहायता मुहय्या की जाती है। इन भाषा-
कार्यक्रमों में समाज के सभी वर्गों के युवाओं का स्वागत होता है परंतु कुछ भाषाओं 
में हेरिटेज शिक्षार्थियों की संख्या अधिक रहती है। स्टारटॉक के उच्च-स्तरीय 
प्रशासनिक अधिकारी स्वयं भाषा-शिक्षण क्षेत्र के शोध और विधियों में बड़े निष्णात हैं। 
वे अन्य अमरीकी विद्वानों के साथ मिलकर इन कार्यक्रमों की सफलता के लिए 
उपयुक्त मार्गदर्शन करते हैं। हिन्दी में भी ये कार्यक्रम वर्षानुवर्ष पनप रहे हैं। इनके बारे 
में कुछ आंकड़े इस लेख में आगे प्रस्तुत किए जाएँगे।
सामाजिक स्तर पर अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ अमेरिका के युवा-जगत के लिए हिन्दी 
भाषा और उससे संबंधित संस्कृति की कक्षाएँ चला रही हैं। इस संस्थाओं में विशेष 
उल्लेखनीय संस्थाएँ हैं – हिन्दी यू. एस. ए., बाल-विहार, यू एस हिन्दी एसोसिएशन, 
चिन्मय मिशन, बाल गोकुलम्, अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति, विश्व हिन्दी न्यास, 
विद्यालय। इन संस्थाओं में बड़े निस्स्वार्थ भाव से और बड़ी लगन से काम करने 
वालों की कमी नहीं है। इसके अतिरिक्त 2009 में युवा हिन्दी संस्थान का निर्माण 
हुआ जिसके तत्वावधान में 2010 में एटलांटा (जार्जिया प्रदेश) और 2011 में न्यू-अर्क
 (डेलेवेयर प्रदेश) में युवाओं को हिन्दी भाषा और संस्कृति सिखाने के लिए विशाल 
शिविरों का आयोजन किया गया। ये शिविर दस-दस दिन तक चले। 2012 में इसी 
प्रकार के एक विशाल शिविर का आयोजन पेन्सिल्वेनिया में करने के लिए काम आरंभ 
हो चुका है। स्वयंसेवी संस्थाओं के अतिरिक्त कुछ सरकारी विद्यालयों में भी हिन्दी 
का औपचारिक शिक्षण शुरू हो चुका है। इस विषय में टेक्सस, न्यू जर्सी और न्यूयार्क 
प्रदेश के कुछ स्कूलों में हिन्दी औपचारिक रूप से पाठ्यक्रम में सम्मिलित की जा 
चुकी है। जहाँ तक विश्वविद्यालयों का संबंध है – अमेरिका के लगभग 100 महा
विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। लगभग 4 वर्ष पूर्व अमेरिका 
सरकार ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सस (ऑस्टन नगर) को हिन्दी की शिक्षा को अमेरिका 
में बढ़ाने के लिए एक विशाल हिन्दी कार्यक्रम के लिए एक बहुत बड़ी राशि का अनुदान 
दिया। यह हिन्दी उर्दू फ़्लैगशिप नामक कार्यक्रम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। अमेरिकन 
इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडियन स्टडीज़, जो लगभग 60 विश्वविद्यालयों की छत्र-संस्था है, 
विभिन्न भारतीय भाषाओं के लिए पिछले लगभग 50 वर्षों से अमरीकी विद्यार्थियों के 
लिए विशेष भाषा-कार्यक्रम भारत में चला रही है। इन कार्यक्रमों में हिन्दी का कार्यक्रम 
जो जयपुर में चलता है सबसे बड़ा है। वहाँ पूरे वर्ष भाषा-शिक्षण-विधियों के साथ 
आधुनिकतम तरीकों से उच्च-स्तरीय और प्रशिक्षित शिक्षकों की देख-रख में हिन्दी 
पढ़ाने की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त अमेरिका की सरकार ने पिछले दो वर्षों से दो 
और नए कार्यक्रमों की घोषणा की है जिनके अन्तर्गत कालेज और हाई स्कूल के 
विद्यार्थियों को हिन्दी पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति पर भारत भेजा जाता है। कुछ अमरीकी 
नागरिक अपने पैसे से भी हिन्दी पढ़ने के लिए भारत जाते हैं। इस प्रकार के 
विद्यार्थियों के लिए मसूरी में लैंगडोर का स्कूल एक प्रतिष्ठित केन्द्र है। इसी वर्ष 
यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिल्विनया में बिज़नेस की पढ़ाई के लिए जगत-विख्यात वार्टन 
स्कूल ने अपने एम.बी.ए. के उन विद्यार्थियों के लिए व्यवसायिक हिन्दी का एक 
विशेष पाठ्यक्रम शुरू किया हे जो भारत के बारे में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं। 
वार्टन स्कूल को देख कर अन्य बिज़नेस स्कूलों ने भी इस दिशा में सोचना आरंभ कर दिया है।
इन सब तथ्यों से हिन्दी के बारे में उभरती हुई रुचि अनेकानेक शैक्षिक केन्द्रों और 
सरकारी नीतियों में बड़े स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रही है। भारत की अन्तःप्रांतीय 
राजभाषा के रूप में और अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर संख्या की दृष्टि से दूसरे (और कुछ 
विद्वानों के अनुसार तीसरे) स्थान पर आसीन इस महत्वपूर्ण भाषा के लिए अमेरिका 
जैसे विकसित देश में इस प्रकार का विस्तार पाना बड़े गौरव की बात है। परंतु इस तथ्य
परक मानचित्र का एक दूसरा पक्ष है जो विचारणीय है। अमेरिका में हिन्दी इतना आगे 
नहीं बढ़ पा रही जितना दूसरी भाषाएँ इस सकारात्मक वातावरण का लाभ उठा रही हैं।   
वर्तमान अमरीकी संदर्भ में भारतीय भाषाओं के अध्ययन-अध्यापन की स्थिति दुनिया 
की अन्य भाषाओं के सामने काफ़ी कमज़ोर नज़र आती है। हम यहाँ हिन्दी की तुलना 
चीनी, जापानी और अरबी से करेंगे। सबसे पहले देखते हैं कि चीनी और जापानी भाषाओं 
की तुलना में विश्वविद्यालय के स्तर पर हिन्दी की क्या स्थिति है। मॉडर्न लैंगवेज 
एसोसिएशन हर तीन से चार वर्ष में विश्वविद्यालय के स्तर पर विभिन्न भाषाओं को 
पढ़नेवाले छात्रों के आंकड़े एकत्र करती है। नीचे उपर्युक्त चार भाषाओं के आंकड़े दिए जा 
रहे हैं जिनसे तुलनात्मक स्थिति स्वयं स्पष्ट हो जाती है।

वर्ष 2002
वर्ष 2006
वर्ष 2009
हिन्दी
1857
2339
2846
चीनी
34227
51695
61178
जापानी
52257
66635
73456
अरबी
10584
23997
35393
भारत की सब भाषाओं की संख्या को भी इन आंकड़ों में जोड़ लें तो भी हम बहुत ऊँचाई 
तक नहीं पहुँच पाते। भारत की बारह और भाषाएँ जो अमेरिका के अलग अलग केन्द्रों 
में पढ़ाई जाती है उनके पढ़ने वालों की संख्या भी बहुत थोड़ी है। संस्कृत, पंजाबी, 
गुजराती, मराठी, बंगाली, तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम, वैदिक संस्कृत, पाली
 और उर्दू की कुल संख्या इस प्रकार है  -
वर्ष 2002
वर्ष 2006
वर्ष 2009
964
1309
1584
इन आंकड़ों में 72 से 75 प्रतिशत संस्कृत, पंजाबी और उर्दू के आंकड़े हैं। संस्कृत की 
पढ़ाई धर्म, इतिहास आदि के शोध के कारण से है, उर्दू की पढ़ाई राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों 
से है और पंजाबी की पढ़ाई स्थानीय सिख समुदाय के आर्थिक समर्थन के कारण से आगे 
बढ़ रही है। बाकी भारतीय भाषाओं के छात्रों की संख्या बिल्कुल नगण्य है। कहीं दो हैं तो 
कहीं चार हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमरीकी विद्यार्थियों के लिए चीनी जापानी अरबी 
आदि अनेक भाषाओं की तुलना में भारत की भाषाएँ कम आकर्षक हैं।
आइए अब हम स्टारटॉक के आंकड़े देखें। स्टारटॉक में दो प्रकार के कार्यक्रम हैं – एक भाषा 
पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए और दूसरे भाषा-शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए।
छात्र-कार्यक्रमों की संख्या

वर्ष 2007
वर्ष 2008
वर्ष 2009
वर्ष 2010
वर्ष 2011
हिन्दी
-
4
11
12
14
चीनी
18
37
45
54
63
अरबी
8
19
26
20
24

जापानी भाषा स्टारटॉक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है इसलिए उसके आंकड़े यहाँ  शामिल नहीं हें।
शिक्षक-प्रशिक्षण-कार्यक्रमों की संख्या

वर्ष 2007
वर्ष 2008
वर्ष 2009
वर्ष 2010
वर्ष 2011
हिन्दी
-
4
5
5
10
चीनी
17
27
33
44
49
अरबी
13
16
18
14
21
उपर्युक्त जानकारी कार्यक्रमों की कुल संख्या के बारे में थी। अब हम देखेंगे कि इन कार्यक्रमों में कितने कितने शिक्षार्थियों ने भाग लिया –
छात्र-कार्यक्रमों में भाग लेने वाले छात्रों की कुल संख्या

वर्ष 2007
वर्ष 2008
वर्ष 2009
वर्ष 2010
वर्ष 2011
हिन्दी
-
57
255
386
580
चीनी
681
2079
3143
4242
5737
अरबी
193
431
820
632
803
शिक्षक-प्रशिक्षण-कार्यक्रमों में भाग लेने वाले शिक्षार्थियों की कुल संख्या

वर्ष 2007
वर्ष 2008
वर्ष 2009
वर्ष 2010
वर्ष 2011
हिन्दी
-
35
48
60
47
चीनी
292
702
776
991
986
अरबी
156
293
317
263
323
कुल मिला कर अन्य भाषाएँ हिन्दी से कई गुणा आगे हैं। उच्च शिक्षा केन्द्रों में चीनी और 
जापानी भाषाओं को पढ़ने वाले छात्रों की बड़ी संख्या के दो बड़े रहस्य हैं – एक तो यह कि 
अमेरिका स्थित उनके प्रवासी समाजों में अपनी भाषा के प्रति बहुत उत्साह है और दूसरा 
बड़ा कारण है उन देशों की सरकारों का सुनियोजित ढंग से अपनी भाषाओं को आगे बढ़ाने 
के लिए बौद्धिक, भावनात्मक और आर्थिक समर्थन। चीन की सरकार के शिक्षा मंत्रालय 
से पोषित एक संस्था है जिसका अंग्रेज़ी नाम है ऑफ़िस ऑफ़ चाइनीज़ लैंगवेज इंटरनेशनल 
जो संक्षेप में हानबान के नाम से जानी जाती है। इस संस्था का मिशन स्टेटमेंट है चीनी भाषा 
और संस्कृति का अन्य देशों में प्रचार-प्रसार और इस प्रकार इसका काम है दूसरे देशों में 
चीनी भाषा की पढ़ाई का संवर्धन। । इसका बजट बहुत बड़ा है और इसके काम को आगे 
बढ़ाने के लिए दुनिया के अनेक देशों में स्थानीय संस्थाओं का जाल बिछा हुआ है। इस 
संस्थाओं में एक है कनफ़्यूशस इंस्टीट्यूट जो अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों के 
परिसर पर विद्यमान है। भाषा की दृष्टि से यह संस्था स्कूलों  और कालेजों को चीनी 
भाषा के पाठ्यक्रम, पाठ्य सामग्री का संग्रहण और प्रशिक्षित शिक्षकों की आपूर्ति में 
मदद करती है। इसके इलावा न्यूयार्क में एशिया इंस्टीट्यूट मे चीनी भाषा की पढ़ाई 
को आगे बढ़ाने के लिए एक विशेष विभाग है। इसी प्रकार अमेरिका में कॉलेज बोर्ड 
नाम की एक ग़ैर-सरकारी स्वयंसेवी संस्था है जो सामान्य से सब विद्यार्थियों को 
कॉलेज की पढ़ाई के लिए सहायता प्रदान करती है। यहां चीनी भाषा को अमेरिका 
के शिक्षा-क्षेत्र में फैलाने के लिए तीन विशिष्ट कार्यक्रमों का आयोजन होता है और 
ये कार्यक्रम हैं – कनफ़्यूशस और चाईनीज़ प्रोग्राम, गेस्ट टीचर प्रोग्राम और चाईनीज़ 
ब्रिज डेलिगेशन। इस कार्यक्रम के तहत सैंकड़ों शिक्षक चीन से हर साल अमेरिका लाए 
जाते हैं। ये कुछ बड़े बड़े उदाहरण हैं।
इसी प्रकार जापानी भाषा के संवर्धन के लिए भी संस्था-गत कार्यक्रमों का एक विस्तृत 
ब्यौरा पेश किया जा सकता है। इसकी सबसे बड़ी संस्था है द जापान फ़ाऊंडेशन। इसके 
अधीन द जैपनीज़ लैंगवेज इंस्टीट्यूट एक विस्तृत विश्व-व्यापी कार्यक्रम है। इसका 
बजट भी बहुत बड़ा है और जापानी संस्कृति और भाषा का शैक्षिक क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार 
इसका लक्ष्य है। अमेरिका में इसकी दो बड़ी शाखाएँ हैं – एक कैलीफ़ोर्निया प्रदेश के लॉस 
एंजलिस नगर में और दूसरी न्यू यार्क में। दोनों शाखाएँ विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के 
अतिरिक्त जापानी भाषा-कार्यक्रमों के प्रसार और उनके सशक्तीकरण में विशिष्ट सहायता 
और योगदान प्रदान करती हैं। अब पिछले कई वर्षों से कोरिया भी इस दिशा में बड़ी तेज़ी 
से आगे बढ़ रहा है जिसके फलस्वरूप अमरीकन विश्वविद्यालयों में कोरियन भाषा की 
पढ़ाई बहुत प्रगति कर रही है (2009 में कोरियन भाषा पढ़ने वालों की संख्या 8511 थी)।
इस प्रकार के कार्यक्रम बहुत से दूसरे देश भी अपनी अपनी भाषाओं के प्रचार-प्रसार के निमित्त 
चलाते हैं जिनमें फ़्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि उल्लेखनीय नाम हैं। इन देशों की एलियंस फ़्रांसे, 
गोइथे इंस्टीट्यूट, ब्रिटिश कौंसिल संस्थाएँ हैं जिनकी गतिविधियों में भाषा का महत्वपूर्ण विषय 
रहता है।
इन सब देशों की तुलना में भारत अपनी भाषा के प्रति उदासीन है। लड़खड़ाती अंग्रेज़ी के मोह 
ने भारतीय जन-मानस को जकड़ रखा है और यही कारण लगता है कि भारतीय भाषाओं का 
शिक्षण-प्रशिक्षण भारत में भी कमज़ोर है और दूसरे देशों में भी। भारत देश की आंतरिक प्रगति 
के लिए और विश्व-मंच पर भारत के सम्मान्य स्थान के लिए इसका निहितार्थ क्या है यह एक 
विचारणीय विषय हे।
इस लेख का समापन मैं एक व्यक्तिगत अनुभव से करूँगा। यह व्यक्तिगत अनुभव स्व-भाषा 
के प्रति भारतीय और चीनी सोच की स्थिति को एकदम स्पष्ट कर देगा। शायद दो साल पहले 
की बात है कि अमेरिका के एक सरकारी स्कूल ने स्टारटॉक के लिए दो आवेदन-पत्र एक साथ 
दिए थे – एक हिन्दी के लिए और एक चीनी के लिए। उनके आवेदन-पत्रों की प्रस्तुति बहुत 
प्रभावी रही होगी  जिसके कारण स्टारटॉक के राष्ट्रीय कड़े मुकाबले में इस स्कूल के दोनों 
आवेदन स्वीकृत हो गए। परिणाम पता लगने पर स्कूल के अधिकारियों के हर्ष का पारावार 
न रहा। स्कूल में बड़े उत्साह और बड़े उल्लास का वातावरण बनना शुरू हुआ । उन्होंने अपने 
उत्साह की अभिव्यक्ति के रूप में भारतीय कौंसलावास और चीनी कौंसलावास को एक एक पत्र 
भेजा जिसमें उन्होंने हिन्दी और चीनी के अपने नए ग्रीष्मकालीन कार्यक्रमों का यह सुखद 
समाचार उनके साथ बाँटा। चीनी दूतावास से कुछ दिनों में बधाई का जवाब आया और उस पत्र 
के साथ कौंसलाधीश ने दस हज़ार डालर का चैक भी भेज दिया और कहा कि चीनी भाषा के 
कार्यक्रम को और अच्छा बनाने के लिए कृपया आप इस धन का उपयोग करें­­­। स्कूल के 
अधिकारियों का उत्साह दुगना-चौगुना हो गया। वे भारतीय कौंसलावास से भी बधाई के उत्तर 
की प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन वहाँ से कोई उत्तर ही नहीं आया। जब यह घटना हमें बताई गई 
तो हम उनके सामने कुछ शर्मिंदा भी हुए और अपने मन ही मन में फूट फूट कर रोए भी। 
आभार: डॉ, कविता वाचक्नवी 

navgeet:

नवगीत:

आओ रे!
मतदान करो

भारत भाग्य विधाता हो
तुम शासन-निर्माता हो
संसद-सांसद-त्राता हो

हमें चुनो
फिर जियो-मरो
कैसे भी
मतदान करो

तूफां-बाढ़-अकाल सहो
सीने पर गोलियाँ गहो 
भूकंपों में घिरो-ढहो

मेलों में
दे जान तरो
लेकिन तुम
मतदान करो

लालटेन, हाथी, पंजा
साड़ी, दाढ़ी या गंजा
कान, भेंगा या कंजा

नेता करनी
आप भरो
लुटो-पिटो
मतदान करो

पाँच साल क्यों देखो राह
जब चाहो हो जाओ तबाह
बर्बादी को मिले पनाह

दल-दलदल में
फँसो-घिरो
रुपये लो
मतदान करो

नाग, साँप, बिच्छू कर जोड़
गुंडे-ठग आये घर छोड़
केर-बेर में है गठजोड़

मत सुधार की
आस धरो
टैक्स भरो
मतदान करो 

***
(कश्मीर तथा अन्य राज्यों में चुनाव की खबर पर )






Indian black money inabroad

विदेशों में भारतीय धन :

कालाधन मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने तीन सीलबंद लिफाफे सौंपे। पहले में विदेशी खाताधारकों के नाम थे। दूसरे में दूसरे देशों के साथ हुई संधि के कागजात थे और तीसरे में जांच की स्टेटस रिपोर्ट थी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इसमें साल 2006 तक की एंट्री है। इसकी वजह यह है कि स्विस अधिकारियों ने इस बारे में जानकारी देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि ये इनपुट्स चोरी की जानकारी के आधार पर हासिल किए गए हैं।
 
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बताया कि खाताधारकों के नामों के साथ इन लोगों के खिलाफ अब तक हुई जांच की स्टेटस रिपोर्ट भी दाखिल की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि लिस्ट में एचएसबीसी बैंक के जिनेवा ब्रांच में खाता रखने वाले भारतीयों के नाम हैं, जो भारत सरकार को फ्रांस सरकार की ओर से मिले थे।
 
कालाधन के मामले में 150 देशों की लिस्‍ट में भारत आठवें नंबर पर (2001 से 2010 के बीच)
देश
कालाधन (बिलियन डॉलर में)
(स्रोत: ग्‍लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी)
चीन
 
मैक्सिको
 
मलेशिया
 
साउदी अरेबिया
 
रूस
 
फिलिपीन्स
 
नाइजीरिया
 
भारत
 
इंडोनेशिया
 
यूएई(संयुक्त अरब अमीरात)
2,740
 
476
 
285
 
210
 
152
 
138
 
129
 
123
 
109
 
107
 
स्विस बैंक में किस साल कितना पहुंचा भारतीयों का कालाधन
(स्रोत: स्विस नेशनल बैंक )
साल2006  2007 2008  2009  2010 201120122013
रकम (करोड़ रुपए में)414002750015400126001245014000900014000
 
जब्त किया गया कालाधन (स्रोत: मई 2012 में जारी श्वेतपत्र)
साल नगदी जूलरीअन्य संपत्तिकुल (करोड़ रुपए में)
2006-07187.4899.19 77.96 364.64
2007-08 206.35128.0793.39427.82
2008-09339.86 122.1888.19  550.23 
2009-10300.97132.2 530.33963.50
2010-11440.28184.15 150.55774.98
2011-12499.91 271.40   134.30 905.61 

navgeet:

नवगीत:

ज़िम्मेदार
नहीं है नेता
छप्पर औरों पर
धर देता

वादे-भाषण
धुआंधार कर
करे सभी सौदे
उधार कर
येन-केन
वोट हर लेता

सत्ता पाते ही
रंग बदले
यकीं न करना
किंचित पगले
काम पड़े
पीठ कर लेता 

रंग बदलता
है पल-पल में
पारंगत है
बेहद छल में
केवल अपनी
नैया खेता

*** 

navgeet:

नवगीत:

सुख-सुविधा में
मेरा-तेरा
दुःख सबका
साझा समान है

पद-अधिकार
करते झगड़े
अहंकार के
मिटें न लफ़ड़े 
धन-संपदा
शत्रु हैं तगड़े
परेशान सब
अगड़े-पिछड़े

मान-मनौअल
समाधान है

मिल-जुलकर जो
मेहनत करते
गिरते-उठते
आगे बढ़ते
पग-पग चलते
सीढ़ी चढ़ते 
तार और को
खुद भी तरते

पगतल भू
करतल वितान है

***

navgeet:

नवगीत:

देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे

राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं

अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे

भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते

हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे

मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है 

पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे

***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर 

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2014

kavita:

कविता:
सफाई 

मैंने देखा सपना एक 
उठा तुरत आलस को फेंक 
बीजेपी ने कांग्रेस के 
दरवाज़े पर करी सफाई 
नीतीश ने भगवा कपड़ों का 
गट्ठर ले करी धुलाई
माया झाड़ू लिए 
मुलायम की राहों से बीनें काँटे 
और मुलायम ममतामय हो 
लगा रहे फतवों को चाँटे 
जयललिता की देख दुर्दशा 
करुणा-भर करूणानिधि रोयें 
अब्दुल्ला श्रद्धा-सुमनों की  
अवध पहुँच कर खेती बोयें 
गज़ब! सोनिया ने 
मनमोहन को 
मन मंदिर में बैठाया 
जन्म अष्टमी पर 
गिरिधर का सोहर 
सबको झूम सुनाया 
स्वामी जी को गिरिजाघर में 
प्रेयर करते हमने देखा 
और शंकराचार्य मिले 
मस्जिद में करते सबकी सेवा 
मिले सिक्ख भाई कृपाण से 
खापों के फैसले मिटाते 
बम्बइया निर्देशक देखे 
यौवन को कपडे पहनाते 
डॉक्टर और वकील छोड़कर फीस 
काम जल्दी निबटाते 
न्यायाधीश एक पेशी में 
केसों का फैसला सुनाते 
थानेदार सड़क पर  मंत्री जी का 
था चालान कर रहा 
बिना जेब के कपड़े पहने 
टी. सी.बर्थें बाँट हँस रहा
आर. टी. ओ. लाइसेंस दे रहा 
बिना दलाल के सच्ची मानो
अगर देखना ऐसा सपना 
चद्दर ओढ़ो लम्बी तानो 
***  

lekh: hindi ko lekar uthate sawal -dr. kuldeep chand agnihotri

हिन्दी को लेकर उठते सवाल

डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री  
 
image यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्‍बत सहयोग मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक के नाते तिब्‍बत समस्‍या का गंभीर अध्‍ययन,कुछ  दैनिक जनसत्‍ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्‍थान समाचार से जुडे हुए हैं।
 
हिन्दी दिवस एक बार आकर फिर दहलीज़ पर खड़ा है । सितम्बर की चौदह तारीख़ इसके आने के लिये सरकारी तौर पर निर्धारित है । इस कारण इसे आना ही पड़ेगा । सरकारी आदेश है । हुकुम अदूली कैसे की जा सकती है? सरकारी दफ़्तरों में महीना भर मिसल गतिशील हो जाती है । हिन्दी दिवस १४ सितम्बर को हमारे दफ़्तर में भी आयेगा , इसलिये उसके स्वागत के लिये इतनी धनराशि मंज़ूर करने की कृपा की जाये । मिसल आदेश के लिये प्रस्तुत है । अब सरकारी मेहमान के आने पर स्वागत तो होगा ही । इसलिये धनराशि मंज़ूर की जाती है और इस प्रकार हिन्दी दिवस का सरकारी दफ़्तरों में विधिवत स्वागत कार्यक्रम शुरु हो जाते हैं । यह हिन्दी दिवस का सरकारी पक्ष है ।

इसे षड्यन्त्र नहीं बल्कि संयोग ही कहना चाहिये कि हिन्दी दिवस का आगमन पितृ-पक्ष या श्राद्ध पक्ष के दिनों में ही आता है । श्राद्ध पक्ष में पितरों को याद किया जाता है और उनका मान सम्मान किया जाता है और पक्ष के बीत जाने पर उनको भुला दिया जाता है । उसी प्रकार हिन्दी की स्थिति है । उसका पितृ पक्ष बीत जाता है और हिन्दी के बारे में भी , रात गई बात गई , की कहानी बन जाती है ।

हिन्दी इस देश की सम्पर्क भाषा है । केवल भारत की ही नहीं बल्कि भारत , पाकिस्तान , बंगलादेश , और नेपाल तक की सम्पर्क भाषा हिन्दी है । लेकिन प्रश्न यह है कि क्या इसने अपनी यह हैसियत २६ जनवरी १९५० को लागू हुये संघीय संविधान की बजह से हासिल की है ? हिन्दी ने यह हैसियत तो पिछली अनेक शताब्दियों से अपने बलबूते ही हासिल की हुई है । मध्य काल का भक्ति आन्दोलन , जिसकी जड़ें पूरे देश में फैली हुईं थीं , क्या इसका प्रमाण नहीं है ? साधु सन्त पूरे देश में घूमते रहते हैं, आख़िर वे सम्पर्क के लिये शताब्दियों से किस भाषा का प्रयोग करते आ रहे हैं ? यह टूटी फूटी या साबुत हिन्दी ही है जो उनको आम जनता से जोड़े रहती है । गुरु नानक देव जी ने तो अपने जीवन काल में देश का चप्पा चप्पा छान मारा था । अपने साथियों को साथ लेकर आम लोगों से कथा वार्ता करते थे । वे किस भाषा में करते रहे होंगे? यक़ीनन हिन्दी ही थी । मध्यकालीन दश गुरु परम्परा के पाँचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी ने प्रथम पाँच गुरुओं और देश के अन्य सन्तों व भक्तों की वाणी को एकत्रित और सम्पादित करने का जो भागीरथ अभियान चलाया था , वह इस भाषा की सम्पर्क शक्ति का भी तो प्रमाण है । असम के शंकर देव से लेकर पंजाब के श्री गुरु नानक देव जी तक जो संदेश दिया जा रहा था , वह इसी सम्पर्क भाषा में तो था । लेकिन हिन्दी को अपनी इस स्थिति की घोषणा के लिये किसी सरकारी अधिसूचना की जरुरत नहीं पडी । वह उसकी अपनी उर्जा थी जिसने उसे इतना व्यापक बनाया ।

विदेशी मुग़लों की सत्ता समाप्त हो जाने और अंग्रेज़ों के इस देश से चले जाने के बाद जो नई सांविधानिक व्यवस्था स्थापित हुई , उसने विधिवत हिन्दी को इस देश की सम्पर्क भाषा घोषित कर दिया । इसकी व्याख्या कैसे की जानी चाहिये ? क्योंकि आख़िर हिन्दी सम्पर्क भाषा है , यह संविधान का अनुच्छेद भी है । इसलिये उसकी क़ानूनी व्याख्या होना भी जरुरी है । देश की जनता आपस में सम्पर्क के लिये किस भाषा का प्रयोग करे , इसके लिये जनता को किसी सांविधानिक व्यवस्था या सांविधानिक अनुमति की जरुरत तो नहीं ही है । फिर संविधान में इसे दर्ज करने की व्याख्या कैसे की जाये ? इसका उद्देश्य क्या रहा होगा ? शायद इसका अर्थ यह है कि सरकार आपसी कामकाज में और सभी प्रान्तों से सरकारी पत्र व्यवहार में हिन्दी भाषा का प्रयोग करेगी । सरकार का यह संकल्प निश्चय ही सराहनीय कहा जायेगा । इसका अर्थ यह है कि देश की जनता व्यवहारिक स्तर पर जो काम शताब्दियों से करती आई है , सरकार ने उसको केवल मान्य ही नहीं किया बल्कि जनता को यह  आश्वासन दिया कि भविष्य में सरकार भी विभिन्न प्रान्तों से अन्तर्संवाद में हिन्दी भाषा का प्रयोग करेगी ।

 दुर्भाग्य से सरकार सम्पर्क भाषा के तौर पर हिन्दी को सरकारी कामकाज में विकसित करने का अपना यह सांविधानिक दायित्व निभा नहीं सकी । इसमें उसकी इच्छा शक्ति नहीं है ।  इतना ही नहीं उसने कुछ स्तरों पर तो इस सांविधानिक दायित्व का विरोध ही करना शुरु कर दिया । कुछ चतुर सुजान इससे भी आगे बढ़े । उन्होंने हिन्दी को भारत की अन्य भाषाओं से लड़ाने के लिये हिन्दी को सम्पर्क भाषा के स्थान पर राष्ट्रीय भाषा ही चिल्लाना शुरु कर दिया । ज़ाहिर है उनकी इस चिल्लाहट से भारत की दूसरी भाषाएँ बोलने वाले लोगों के कान खड़े होते । उन्होंने प्रति प्रश्न किया कि यदि हिन्दी राष्ट्र भाषा है तो भारत की अन्य भाषाएँ क्या अराष्ट्रीय हैं ? तुरन्त उत्तर मिला , नहीं , क्षेत्रीय भाषाएँ हैं । तब तो मामला साफ़ है ।

 भारत की सब भाषाएँ क्षेत्रीय हैं । अन्तर इतना ही है कि किसी का क्षेत्र छोटा है और किसी का बड़ा । भारतीय भाषाओं की संवाद समिति हिन्दुस्थान समाचार संवाद समिति को पुनर्जीवित करने वाले श्रीकान्त जोशी जी कहा करते थे कि भारत की सब भाषाएँ राष्ट्रीय भाषाएँ हैं और एक दूसरे की पूरक हैं । इसलिये हिन्दुस्थान समाचार १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस की बजाये भारतीय भाषा दिवस मनाता है । सरकारी कामकाज में हिन्दी को सम्पर्क भाषा के तौर पर न विकसित हो पाने के कारण विभिन्न प्रदेशों में भी सरकारी कामकाज की भाषा वहाँ की भाषाएँ नहीं बन पाईं और अंग्रेज़ी का वर्चस्व बरक़रार रहा । हिन्दी को और अन्य भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ा कर अंग्रेज़ी अंग्रेज़ों के चले जाने के साठ साल बाद भी अपदस्थ नहीं हो सकी , इसे अंग्रेज़ों की प्रशासनिक व मनोवैज्ञानिक दक्षता का प्रमाण ही मानना होगा । हिन्दी दिवस के मौक़े पर भारतीय भाषाओं के ख़िलाफ़ रचे गये इस षड्यंत्र को क्या हम बेध पायेंगे ? यह सब से बड़ा प्रश्न है जिसका उत्तर सरकार को भी और भारतीय भाषाओं के समर्थकों को भी देना होगा ।

सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

navgeet

नवगीत:

ऐसा कैसा
पर्व मनाया ?

मनुज सभ्य है
करते दावा
बोल रहे
कुदरत पर धावा
कोई काम
न करते सादा
करते कभी
न पूरा वादा

अवसर पाकर
स्वार्थ भुनाया

धुआँ, धूल
कचरा फैलाते
हल्ला-गुल्ला
शोर मचाते
आज पूज
कल फेकें प्रतिमा
समझें नहीं
ईश की गरिमा

अपनों को ही
किया पराया

धनवानों ने
किया प्रदर्शन
लंघन करता
भूखा-निर्धन
फूट रहे हैं
सरहद पर बम
नहीं किसी को
थोड़ा भी गम

तजी सफाई
किया सफाया

***



doha salila:

दोहा सलिला :

कथ्य भाव रस छंद लय, पंच तत्व की खान
    पड़े कान में ह्रदय छू, काव्य करे संप्राण















मिलने हम मिल में गये, मिल न सके दिल साथ 
    हमदम मिले मशीन बन, रहे हाथ में हाथ











हिल-मिलकर हम खुश रहें, दोनों बने अमीर 
मिल-जुलकर हँस जोर से, महका सकें समीर.





मन दर्पण में देख रे!, दिख जायेगा अक्स 
वो जिससे तू दूर है, पर जिसका बरअक्स

जिस देहरी ने जन्म से, अब तक करी सम्हार 
    छोड़ चली मैं अब उसे, भला करे करतार

 माटी माटी में मिले, माटी को स्वीकार
   माटी माटी से मिले, माटी ले आकार

    मैं ना हूँ तो तू रहे, दोनों मिट हों हम 
मैना - कोयल मिल गले, कभी मिटायें गम 
चित्र आभार : पिंकी जैन 

रविवार, 26 अक्टूबर 2014

nav kundaliya

नव कुण्डलिया 

रात जा रही, उषा आ रही
उषा आ रही, प्रात ला रही 
प्रात ला रही, गीत गा रही 
गीत गा रही, मीत भा रही  
मीत भा रही, जीत पा रही
जीत पा रही, रात आ रही 

गुप-चुप डोलो, राज न खोलो   
राज न खोलो, सच मत तोलो 
सच मत तोलो,मन तुम सो लो 
मन तुम सो लो, नव रस घोलो 
नव रस घोलो, घर जा सो लो 
घर जा सो लो, गुप-चुप डोलो


nav geet:

नवगीत:

चित्रगुप्त को
पूज रहे हैं

गुप्त चित्र
आकार नहीं
होता है
साकार वही
कथा कही
आधार नहीं 
बुद्धिपूर्ण
आचार नहीं

बिन समझे
हल बूझ रहे हैं

कलम उठाये
उलटा हाथ
भू पर वे हैं
जिनका नाथ 
खुद को प्रभु के
जोड़ा साथ
फल यह कोई
नवाए न माथ

खुद से खुद ही
जूझ रहे हैं

पड़ी समय की
बेहद मार
फिर भी
आया नहीं सुधार
अकल अजीर्ण
हुए बेज़ार
नव पीढ़ी का
बंटाधार

हल न कहीं भी
सूझ रहे हैं

***







muktak:

मुकतक

संवेदना का जन्मदिवस नित्य ही मने
दिल से दिल के तार जुड़ें, स्वर्ग भू बने
वेदना तभी मिटे, सौहार्द्र-स्नेह हो-
शांति का वितान दस दिशा रहा तने
*
श्याम घटा बीच चाँद लिये चाँदनी
लालिमा से, नीलिमा से सजी चाँदनी
सुमन गुच्छ से भी अधिक लिए ताजगी-
बिजलियाँ गिरा रही है विहँस चाँदनी
*
उषा की नमी दे रही दुनिया को ज़िंदगी
डिहाइड्रेशन से गयी क्यों अस्पताल में?
सूरज अधिक तपा या चाँदनी हुई कुपित
धरती से आसमान तक चर्चे है आज ये.
*
जग का सारा तिमिर ले, उसे बना आधार
रख दे आशा दीप में, कोशिश-बाती प्यार
तेल हौसले, योजना-तीली बाले ज्योति-
रमा-राज में हो सके ज्योतित सब संसार
*
रूपया हुआ अज़ीज़ अब, रुपया ही है प्यार
रुपये से इरशाद कह, रूपया पा हो शाद
रुपये की दीवानगी  हद से अधिक न होय
रुपये ही आबाद कर, कर देता बर्बाद
*
कुछ मुट्ठी भर चेहरे, बासी सोच- विचार
नव पीढ़ी हित व्यर्थ हैं, जिनके सब आचार
चित्र-खबर में छप सकें, बस इतना उद्देश्य-
परिवर्तन की कोशिशें कर देते बेकार.
*
कतरा-कतरा तिमिर पी, ऊषा ले अरुणाई
'जाग' सूर्य से कह रही, 'चल कर लें कुड़माई'
'धत' कह लहना सिंह हुआ, भास्कर तपकर लाल
नेह नर्मदा तीर पर, कलकल पडी सुनाई
*
पंकज को आ गया है सुन सोना पर प्यार
देख लक्ष्मी को चढ़ा पल में तेज बुखार
कहा विष्णु से लीजिये गहने सभी समेट-
वित्तमंत्री चेता रहे भाव करें हद पार
*

bhasha setu: marathi-hindi

भाषा-सेतु 
दिलीप चित्रे की कविता .
." अर्धसत्य" 
अनुवाद: चन्द्रकांत देवताले का
चक्रव्यूह में धँसने के पहले
कौन और कैसा था मैं
यह मुझे याद ही नहीं आएगा
चक्रव्यूह में धँसने के बाद
मेरे और चक्रव्यूह के बीच
केवल जानलेवा निकटता थी
यह मैं जान ही नहीं पाऊंगा
चक्रव्यूह से बाहर निकल
मुक्त हो जाऊँ मैं चाहे फिर भी
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा इससे चक्रव्यूह की रचना में
मर जाऊँ या मार डालूँ
ख़त्म कर दिया जाऊँ या ख़ात्मा कर दूँ जान से
असम्भव है इसका निर्णय
सोया हुआ आदमी
जब शुरू करता है चलना नींद में से उठकर
तब वह देख ही नहीं पाऐगा दुबारा
सपनों का संसार
उस निर्णायक रोशनी में
सब कुछ एक जैसा होगा क्या?
एक पलड़े में नपुंसकता
दूसरे पलड़े में पौरुष
और तराजू के काँटे पर बीचों-बीच
अर्धसत्य।
abhar: sharad kokas


शनिवार, 25 अक्टूबर 2014

doha:

दोहा:

कुछ अनुशासन बरतकर, क्यों न मने त्यौहार?
मिटे मलिनता देश से,  कोई न हो बीमार

धन-सम्पति जो दीन ने, विपदा हित ली जोड़
नष्ट मत करे- पटाखे क्रय कर पल में फोड़

चित्र गुप्त जो ज्ञान का, शिक्षा से लें जान
मूर्ति पूज मत सत्य का, करें आप अपमान

मृण्मय मानव को लिया, परम पिता संग जोड़
चित्रगुप्त को पूजना, दिया अन्य ने छोड़

गूढ़ सत्य अन्तर्निहित, समझें पहले आप
कहें कथाओं को तभी, वरना हो संताप

soratha:

सोरठा :

कचरा दिया बिखेर, साफ़-सफाई खूब कर
नदी कर रहे पार, जैसे खुद ही डूब कर

रूपए करोड़ों फूँक, फोड़ पटाखे हम रहे
क्यों न दवाई बाँट, रोग गऱीबों के हरें

रूपया-रूपया जोड़, गुल्लक अपनी कुछ भरी
दीवाली पर फोड़, रकम सेठ-गल्ले धरी
*


shatpadee:

षट्पदी

कचरा पीछे छोड़कर, गुजर गया है पर्व
शर्म हमें इस पर बहुत, कैसे कर लें गर्व
कैसे कर लें गर्व, न कचरा बिना हमने
पूछें: गंदा जग क्यों व्यर्थ बनाया प्रभु ने?
क्यों न मनाएं पर्व, परम्पराएँ तोड़कर
गुजर न जाए पर्व कचरा पीछे छोड़कर
*