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बुधवार, 18 मई 2011

कुण्डलिनी: ---- संजीव 'सलिल'

कुण्डलिनी
संजीव 'सलिल'
हरियाली ही हर सके, मन का खेद-विषाद.
मानव क्यों कर रहा है, इसे नष्ट-बर्बाद?
इसे नष्ट-बर्बाद, हाथ मल पछतायेगा.
चेते, सोचे, सम्हाले, हाथ न कुछ आयेगा.
कहे 'सलिल' मन-मोर तभी पाये खुशहाली.
दस दिश में फैलायेंगे जब हम हरियाली..
*****

मुक्तिका: अपना सपना --संजीव 'सलिल

मुक्तिका
अपना सपना
संजीव 'सलिल'
*
अपना सपना सबको सदा सुहाना लगता है.
धूप-छाँव का अच्छा आना-जाना लगता है..

भरे पेट मिष्ठान्न न भाता, मान बिना पकवान.
स्नेह सहित रूखी रोटी भी खाना लगता है..

करने काम चलो तो पथ में सौ बाधाएँ हैं.
काम न करना हो तो महज बहाना लगता है..

जिसको देखो उसको अपना दर्द लगे सच्चा.
दर्द दूसरों का बस एक फसाना लगता है..

शूल एक को चुभे, न पीड़ा सबको क्यों होती?
पूछ रहा जो वह जग को दीवाना लगता है..

पद-मद, स्वार्थों में डूबे मक्कारों का जमघट.
जनगण को पूरा संसद मयखाना लगता है..

निज घर में हो सती, पड़ोसी के घर में कुलटा
यह जीवन दर्शन सचमुच बेगाना लगता है..

ढाई आकार लिख-पढ़, रखकर ज्यों की त्यों चादर.
'सलिल' सभी को प्यारा, ठौर-ठिकाना लगता है.
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रविवार, 15 मई 2011

एक प्रश्न-एक उत्तर: चित्रगुप्त जयंती क्यों?...

एक प्रश्न-एक उत्तर: चित्रगुप्त जयंती क्यों?...
aapke dwara bheji jankari pakar achcha laga. thanks. ab yah batayen ki chitragupt jayanti manane ka kya karan hai, kya es sambandh me bhi koe prasang hai. thanks
योगेश  श्रीवास्तव 2:45pm May 14
आपके  द्वारा  भेजी  जानकारी  पाकर अच्छा लगा . थैंक्स. अब यह बताएं की चित्रगुप्त जयंती मानाने का क्या कारन है? इस  सम्बन्ध में भी कोई प्रसंग है?. थैंक्स.
योगेश जी!                                                                                                                                             
वन्दे मातरम.
चित्रगुप्त जी हमारी-आपकी तरह इस धरती पर किसी नर-नारी के सम्भोग से उत्पन्न नहीं हुए... न किसी नगर निगम में उनका जन्म प्रमाण पत्र है.
कायस्थों से द्वेष रखनेवाले ब्राम्हणों ने एक पौराणिक कथा में उन्हें ब्रम्हा से उत्पन्न बताया... ब्रम्हा पुरुष तत्व है जिससे किसी की उत्पत्ति नहीं हो सकती. नव उत्पत्ति प्रकृति तत्व से होती है.
'चित्र' का निर्माण आकार से होता है. जिसका आकार ही न हो उसका चित्र नहीं बनाया जा सकता... जैसे हवा का चित्र नहीं होता. चित्र गुप्त होना अर्थात चित्र न होना यह दर्शाता है कि यह शक्ति निराकार है.हम निराकार शक्तियों को प्रतीकों से दर्शाते हैं... जैसे ध्वनि को अर्ध वृत्तीय रेखाओं से या हवा का आभास देने के लिये पेड़ों की पत्तियों या अन्य वस्तुओं को हिलता हुआ या एक दिशा में झुका हुआ दिखाते हैं.
कायस्थ परिवारों में आदि काल से चित्रगुप्त पूजन में दूज पर एक कोरा कागज़ लेकर उस पर 'ॐ' अंकितकर पूजने की परंपरा है.'ॐ'  परात्पर परम ब्रम्ह का प्रतीक है.सनातन धर्म के अनुसार परात्पर परमब्रम्ह निराकार विराट शक्तिपुंज हैं जिनकी अनुभूति सिद्ध जनों को 'अनहद नाद' (कानों में निरंतर गूंजनेवाली भ्रमर की गुंजार) केरूप में होती है और वे इसी में लीन रहे आते हैं. यही शक्ति सकल सृष्टि की रचयिता और कण-कण की भाग्य विधाता या कर्म विधान की नियामक है.  सृष्टि में कोटि-कोटि ब्रम्हांड हैं. हर ब्रम्हांड का रचयिता ब्रम्हा,पालक विष्णु और नाशक शंकर हैं किन्तु चित्रगुप्त कोटि-कोटि नहीं हैं, वे एकमात्र हैं... वे ही ब्रम्हा, विष्णु, महेश के मूल हैं.आप चाहें तो 'चाइल्ड इज द फादर ऑफ़ मैन' की तर्ज़ पर उन्हें ब्रम्हा का आत्मज कह सकते हैं.
वैदिक काल से कायस्थ जान हर देवी-देवता, हर पंथ और हर उपासना पद्धति का अनुसरण करते रहे हैं चूँकि वे जानते और मानते रहे हैं कि सभी में  मूलतः वही परात्पर परमब्रम्ह (चित्रगुप्त) व्याप्त है.... यहाँ तक कि अल्लाह और ईसा में भी... इसलिए कायस्थों का सभी के साथ पूरा ताल-मेल रहा. कायस्थों ने कभी ब्राम्हणों की तरह इन्हें या अन्य किसी को अस्पर्श्य या विधर्मी मान कर उसका बहिष्कार नहीं किया.
निराकार चित्रगुप्त जी कोई मंदिर, कोई चित्र, कोई प्रतिमा. कोई मूर्ति, कोई प्रतीक, कोई पर्व,कोई जयंती,कोई उपवास, कोई व्रत, कोई चालीसा, कोई स्तुति, कोई आरती, कोई पुराण, कोई वेद हमारे मूल पूर्वजों ने नहीं बनाया चूँकि उनका दृढ़ मत था कि जिस भी रूप में जिस भी देवता की पूजा, आरती, व्रत या अन्य अनुष्ठान होते हैं सब चित्रगुप्त जी के एक विशिष्ट रूप के लिये हैं. उदाहरण खाने में आप हर पदार्थ का स्वाद बताते हैं पर सबमें व्याप्त जल (जिसके बिना कोई व्यंजन नहीं बनता) का स्वाद अलग से नहीं बताते. यही भाव था... कालांतर में मूर्ति पूजा प्रचालन बढ़ने और विविध पूजा-पाठों, यज्ञों, व्रतों से सामाजिक शक्ति प्रदर्शित की जाने लगी तो कायस्थों ने भी चित्रगुप्त जी का चित्र व मूर्ति गढ़कर जयंती मानना शुरू कर दिया. यह सब विगत ३०० वर्षों के बीच हुआ जबकि कायस्थों का अस्तित्व वैदिक काल से है.
वर्तमान में ब्रम्हा की काया से चित्रगुप्त के प्रगट होने की अवैज्ञानिक, काल्पनिक और भ्रामक कथा के आधार पर यह जयंती मनाई जाती है जबकि चित्रगुप्त जी अनादि, अनंत, अजन्मा, अमरणा, अवर्णनीय हैं.    
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

पूर्व सन्दर्भ:
Sanjiv Verma 'salil'


'गोत्र' तथा 'अल्ल'

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

*

'गोत्र' तथा 'अल्ल' के अर्थ तथा महत्व संबंधी प्रश्न राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते मुझसे पूछे जाते हैं.

स्कन्दपुराण में वर्णित श्री चित्रगुप्त प्रसंग के अनुसार उनके बारह पुत्रों को बारह ऋषियों के पास विविध विषयों की शिक्षा हेतु भेजा गया था. इन से ही कायस्थों की बारह उपजातियों का श्री गणेश हुआ. ऋषियों के नाम ही उनके शिष्यों के गोत्र हुए. इसी कारण विभिन्न जातियों में एक ही गोत्र मिलता है चूंकि ऋषि के पास विविध जाती के शिष्य अध्ययन करते थे. आज कल जिस तरह मॉडल स्कूल में पढ़े विद्यार्थी 'मोडेलियन' रोबेर्त्सों कोलेज में पढ़े विद्यार्थी 'रोबर्टसोनियन' आदि कहलाते हैं, वैसे ही ऋषियों के शिष्यों के गोत्र गुरु के नाम पर हुए. आश्रमों में शुचिता बनाये रखने के लिए सभी शिष्य आपस में गुरु भाई तथा गुरु बहिनें मानी जाती थीं. शिष्य गुरु के आत्मज (संततिवत) मान्य थे. अतः, उनमें आपस में विवाह वर्जित होना उचित ही था.

एक 'गोत्र' के अंतर्गत कई 'अल्ल' होती हैं. 'अल्ल' कूट शब्द (कोड) या पहचान चिन्ह है जो कुल के किसी प्रतापी पुरुष, मूल स्थान, आजीविका, विशेष योग्यता, मानद उपाधि या अन्य से सम्बंधित होता है. एक 'अल्ल' में विवाह सम्बन्ध सामान्यतया वर्जित मन जाता है किन्तु आजकल अधिकांश लोग अपने 'अल्ल' की जानकारी नहीं रखते.

हमारा गोत्र 'कश्यप' है जो अधिकांश कायस्थों का है तथा उनमें आपस में विवाह सम्बन्ध होते हैं. हमारी अल्ल 'उमरे' है. मुझे इस अल्ल का अब तक केवल एक अन्य व्यक्ति मिला है. मेरे फूफा जी की अल्ल 'बैरकपुर के भले' है. उनके पूर्वज बैरकपुर से नागपुर जा बसे थे .

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Acharya Sanjiv Salil

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शनिवार, 14 मई 2011

सामायिक लेख: "गोत्र , जाति, वंश और उपजाति" आर्य शिव

सामायिक लेख:
"गोत्र , जाति, वंश और उपजाति"
आर्य  शिव
सगोत्र विवाह भारतीय वैदिक परम्परा मे निषिद्ध माना जाता है.गोत्र शब्द का प्रयोग वैदिक ग्रंथों मे कहीं दिखायी नही देता. सपिण्ड (सगे बहन भाइ) के विवाह निषेध के बारे में ऋग्वेद 10वें मण्डल के 10वें सूक्त मे यम यमि जुडवा बहन भाइ के सम्वाद के रूप में आख्यान द्वारा उपदेश मिलता है.
यमी अपने सगे भाई यम से विवाह द्वारा संतान उत्पन्न करने की प्रबल इच्छा प्रकट करती है.परन्तु यम उसे यह अच्छे तरह से समझाता है ,कि ऐसा विवाह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध होता है, और जो इस प्रकार संतान उत्पन्न करते हैं वे घोर पाप करते हैं.
“सलक्षमा यद्विषुरुषा भवाति” ऋ10/10/2 (“सलक्ष्मा सहोदर बहन से पीडाप्रद संतान उत्पन्न होने की सम्भावना होती है”)‌
“ पापमाहुर्य: सस्वारं निगच्छात” ऋ10/10/12 ( “जो अपने सगे बहन भाई से संतानोत्पत्ति करते हैं, भद्र जन उन्हें पापी कहते हैं)
इस विषय पर स्पष्ट जानकारी पाणिनी कालीन भारत से भी मिलती है.
अष्टाध्यायी के अनुसार “ अपत्यं पौत्र प्रभृति यद गोत्रम् “, एक पुरखा के पोते,पडपोते आदि जितनी संतान होगी वह एक गोत्र की कही जायेगी.
यहां पर सपिण्ड का उद्धरण करना आवश्यक हो जाता है.
“ सपिण्डता तु पुरुषे सप्तमे विनिवर्तते !
समानोदकभावस्तु जन्मनाम्नोरवेदन !! “
मनु: 5/60
“सगापन तो सातवीं पीढी में समाप्त हो जाता है. और घनिष्टपन जन्म और नाम के ज्ञात ना रहने पर छूट जाता है.”
आधुनिक जेनेटिक अनुवांशिक विज्ञान के अनुसार inbreeding multiplier अंत:प्रजनन से उत्पन्न विकारों की सम्भावना का वर्धक गुणांक इकाई से यानी एक से कम सातवीं पीढी मे जा कर ही होता है.
गणित के समीकरण के अनुसार,
अंत:प्रजनन विकार गुणांक= (0.5)raised to the power N x100, ( N पीढी का सूचक है,)
पहली पीढी मे N=1,से यह गुणांक 50 होगा, छटी पीढी मे N=6 से यह गुणांक 1.58 हो कर भी इकाई से बडा रहता है. सातवी पीढी मे जा कर N=7 होने पर ही यह अंत:पजनन गुणांक 0.78 हो कर इकाई यानी एक से कम हो जाता है.
मतलब साफ है कि सातवी पीढी के बाद ही अनुवांशिक रोगों की सम्भावना समाप्त होती है. यह एक अत्यंत विस्मयकारी आधुनिक विज्ञान के अनुरूप सत्य है जिसे हमारे ऋषियो ने सपिण्ड विवाह निषेध कर के बताया था.
सगोत्र विवाह से शारीरिक रोग , अल्पायु , कम बुद्धि, रोग निरोधक क्षमता की कमी, अपंगता, विकलांगता सामान्य विकार होते हैं. भारतीय परम्परा मे सगोत्र विवाह न होने का यह भी एक परिणाम है कि सम्पूर्ण विश्व मे भारतीय सब से अधिक बुद्धिमान माने जाते हैं.
सपिण्ड विवाह निषेध भारतीय वैदिक परम्परा की विश्व भर मे एक अत्यन्त आधुनिक विज्ञान से अनुमोदित व्यवस्था है. पुरानी सभ्यता चीन, कोरिया, इत्यादि मे भी गोत्र /सपिण्ड विवाह अमान्य है. परन्तु मुस्लिम और दूसरे पश्चिमी सभ्यताओं मे यह विषय आधुनिक विज्ञान के द्वारा ही लाया जाने के प्रयास चल रहे हैं. एक जानकारी भारत वर्ष के कुछ मुस्लिम समुदायों के बारे मे भी पता चली है. ये मुसलमान भाई मुस्लिम धर्म मे जाने से पहले के अपने हिंदु गोत्रों को अब भी याद रखते हैं, और विवाह सम्बंध बनाने समय पर सगोत्र विवाह नही करते.
आधुनिक अनुसंधान और सर्वेक्षणों के अनुसार फिनलेंड मे कई शताब्दियों से चले आ रहे शादियों के रिवाज मे अंत:प्रजनन के कारण ढेर सारी ऐसी बीमारियां सामने आंयी हैं जिन के बारे वैज्ञानिक अभी तक कुछ भी नही जान पाए हैं.
मेडिकल अनुसंधानो द्वारा , कोरोनरी हृदय रोग, स्ट्रोक, कैंसर , गठिया, द्विध्रुवी अवसाद (डिप्रेशन), दमा, पेप्टिक अल्सर, और हड्डियों की कमजोरी. मानसिक दुर्बलता यानी कम बुद्धि का होना भी ऐसे विकार हैं जो अंत:प्रजनन से जुडे पाए गए हैं
बीबीसी की पाकिस्तानियों पर ब्रिटेन की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन के बच्चों मे 13 गुना आनुवंशिक विकारों के होने की संभावना अधिक मिली, बर्मिंघम में पहली चचेरे भाई से विवाह के दस बच्चों में एक या तो बचपन में मर जाता है या एक गंभीर विकलांगता विकसित करता है. बीबीसी ने यह भी कहा कि, पाकिस्तान में ब्रिटेन, के पाकिस्तानी समुदाय में प्रसवकालीन मृत्यु दर काफी अधिक है. इस का मतलब यह है कि ब्रिटेन में अन्य सभी जातीय समूहों. के मुकाबले मे जन्मजात सभी ब्रिटिश पाकिस्तानी शिशु मौते 41 प्रतिशत अधिक पाई गयी. इसी प्रकार Epidermolysis bullosa अत्यधिक शारीरिक कष्ट का जीवन, सीमित मानवीय और संपर्क शायद त्वचा कैंसर से एक जल्दी मौत भीआनुवंशिक स्थितियों की संभावना बताती है.
माना जाता है, कि मूल पुरुष ब्रह्मा के चार पुत्र हुए, भृगु, अंगिरा, मरीचि और अत्रि. भृगु के कुल मे जमदग्नि, अंगिरा के गौतम और भरद्वाज,मरीचि के कश्यप,वसिष्ट, एवं अत्रि के विश्वामित्र हुए.
इस प्रकार जमदग्नि, गौतम, भरद्वाज, कश्यप, वसिष्ट, अगस्त्य और विश्वामित्र ये सात ऋषि आगे चल कर गोत्रकर्ता या वंश चलाने वाले हुए. अत्रि के विश्वामित्र के साथ एक और भी गोत्र चला बताते हैं.इस प्रकार के विवरण से प्राप्त होती है आदि ऋषियों के आश्रम के नाम.
अपने नाम के साथ गुरु शिष्य परम्परा, पिता पुत्र परम्परा आदि, अपने नगर, क्षेत्र, व्यवसाय समुदाय के नाम जोड कर बताने की प्रथा चल पडी थीं. परन्तु वैवाहिक सम्बंध के लिए सपिंड की सावधानी सदैव वांछित रहती है. आधुनिक काल मे जनसंख्या वृद्धि से उत्तरोत्तर समाज, आज इतना बडा हो गया है कि सगोत्र होने पर भी सपिंड न होंने की सम्भावना होती है. इस लिए विवाह सम्बंध के लिए आधुनिक काल मे अपना गोत्र छोड देना आवश्यक नही रह गया है. परंतु सगोत्र होने पर सपिण्ड की परीक्षा आवश्यक हो जाती है.यह इतनी सुगम नही होती. सात पीढी पहले के पूर्वजों की जानकारी साधारणत: उपलब्ध नही रह्ती. इसी लिए सगोत्र विवाह न करना ही ठीक माना जाता है.
इसी लिए 1955 के हिंदु विवाह सम्बंधित कानून मे सगोत्र विवाह को भारतीय न्याय व्यवस्था मे अनुचित नही माना गया. परंतु अंत:प्रजनन की रोक के लिए कुछ मार्ग निर्देशन भी किया गया है.
वैदिक सभ्यता मे हर जन को उचित है के अपनी बुद्धि का विकास अवश्य करे. इसी लिए गायत्री मंत्र सब से अधिक महत्वपूर्ण माना और पाया जाता है.
निष्कर्ष यह निकलता है कि सपिण्ड विवाह नही करना चाहिये. गोत्र या दूसरे प्रचलित नामों, उपाधियों को बिना विवेक के सपिण्ड निरोधक नही समझना चाहिये.

शुक्रवार, 13 मई 2011

नवगीत पलाश... संजीव वर्मा 'सलिल

नवगीत                                                                                          
पलाश...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बाधा-संकट हँसकर झेलो
मत हो कभी हताश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
समझौते करिए नहीं,
तजें नहीं सिद्धांत.
सब उसके सेवक सखे!
जो है सबका कांत..
परिवर्तन ही ज़िंदगी,
मत हो जड़-उद्भ्रांत.
आपद संकट में रहो-
सदा संतुलित-शांत..

शिवा चेतना रहित बने शिव
केवल जड़-शव लाश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
किंशुक कुसुम तप्त अंगारा,
सहता उर की आग.
टेसू संत तपस्यारत हो
गाता होरी-फाग..
राग-विराग समान इसे हैं-
कहता जग से जाग.
पद-बल सम्मुख शीश झुका मत
रण को छोड़ न भाग..

जोड़-घटाना छोड़,
काम कर ऊँची रखना पाग..
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
****

गुरुवार, 12 मई 2011

सामयिक गीत : देश को वह प्यार दे दो... संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत :
देश को वह प्यार दे दो...
संजीव 'सलिल'
*
रूप को अब तक दिया जो,
देश को वह प्यार दे दो...

इसी ने पाला हमें है.
रूप में ढाला हमें हैं.
हवा, पानी रोटियाँ दीं-
कहा घरवाला हमें है.

यह जमीं या भू नहीं है,
सच कहूँ माता मही है.
देश हित हो ज़िंदगी यह-
देश पर मरना सही है.

आँख के सब स्वप्न दे दो,
साँस का सिंगार दे दो...
*
देश हित विष भी पियें हम.
देश पर मरकर जियें हम.
देश का ही गान गायें-
अन्यथा लब को सियें हम.

देश-हित का जो विरोधी,
वही है दुश्मन हमारा.
देश के जो काम आये-
भाई कह उसको पुकारा.

देश-हित के द्वार पर
सिर 'सलिल' बन्दनवार दे दो...

************

गीत: बन जा मोर चकोर... ---संजीव 'सलिल'

गीत:                                                                            
बन जा मोर चकोर...
संजीव 'सलिल'
*
ठुमक-ठुमक कर नाच ठिठक मत मन मयूर इस भोर.
कोई न उपमा इस सुषमा की इसका ओर न छोर...

हुई शुरू या ख़तम समय की कौन कहे ईकाई?
बिसरा दे सारे सवाल कुछ खुशी मना ले भाई.
थामे रह कसकर, उमंग का छूट न जाये डोर...
                                                                                                      
श्वास निरुपमा, आस निरुपमा, प्यास निरुपमा जान.
हास निरुपमा गह पाये तो जीवन हो रसखान.. 
रसनिधि पा रसलीन आज हो, खुशियाँ विहँस अँजोर...
                                                                                                
भाव गगन, लय धरा, कथ्य की पवन बहे सुखदायी.
अलंकार हरियाली, बिम्बित गीति-रंगोली भायी..
'सलिल' स्वाति नक्षत्र यही पल बन जा मोर चकोर...

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प्रौद्योगिकी- कंप्यूटर के बारे में छोटी छोटी बातें --रश्मि आशीष

प्रौद्योगिकी- कंप्यूटर के बारे में छोटी छोटी बातें----------------------------            -----
1
कंप्यूटर की कक्षा
--रश्मि आशीष

  • बुकमार्क या फेवरेट्स-
    अगर हमें किसी जालपृष्ठ पर बार-बार जाने की आवश्यकता पड़ती है तो उसको हम अपने फेवरेट्स (Favorites) या बुकमार्क्स (Bookmarks) में जोड़ सकते हैं। फायरफॉक्स में जालपृष्ठ पर दाहिना क्लिक करके या बुकमार्क सूची में Bookmark This Page पर क्लिक करके बुकमार्क बन जाता हैं। इन्टरनेट एक्सप्लोरर मे यही काम करने के लिए बुकमार्क की जगह फेवरेट्स और बुकमार्क दिस पेज की जगह Add to favorites पर क्लिक करना होगा। क्रोम में तथा फायरफॉक्स में एड्रैस बार में तारे के चिन्ह पर क्लिक करके भी हम बुकमार्क बना सकते हैं।
    ९ मई २०११
  • अस्थाई फाइलों की छुट्टी-
    हमारे कंप्यूटर पर बहुत सारे प्रोग्राम अपनी अस्थायी फाईलें बना लेते हैं जिनकी हमें ज़रुरत नही होती है। इनके कारण कंप्यूटर की गति काफी धीमी हो जाती है। Start Menu-> Programs-> Accessories-> System Tools-> Disc Cleanup से अपनी ड्राईव का चयन करके हम इन फाईलों को हटा सकते हैं।
    २ मई २०११
     
  • विण्डोज़+E दबाने पर-
    विंडोज एक्सप्लोरर या माई कंप्यूटर खुल जाता है। इस युक्ति के द्वारा हमें स्टार्ट बटन या माई कंप्यूटर ढूँढने की ज़रूरत नहीं होती, काम के बीच में ही हम बड़ी आसानी से अपनी फाईलों तक पहुँच सकते हैं।
    २५ अप्रैल २०११
     
  • विण्डोज़ में इन्स्क्रिप्ट का ऑनस्क्रीन कीबोर्ड-
    के लिये Start>Run बक्से में जाकर osk लिखकर ऍण्टर दबायें। आपके सामने ऑनस्क्रीन कीबोर्ड आ जायेगा, फिर लैंग्वेज हॉटकी दबाकर हिन्दी भाषा में स्विच करें तो हिन्दी कीबोर्ड आपके सामने आ जायेगा।
    १८ अप्रैल २०११
     
  • किसी भी ब्राऊज़र में काम करते समय-
    एक से ज्यादा टैब खुले होने पर Ctrl+F4 दबाने पर वर्तमान टैब बन्द हो जाता है। इसी प्रकार से ऑफ़िस में काम करते वक्त एक से ज्यादा डॉक्युमेन्ट्स खुले होने पर Ctrl+F4 दबाने पर वर्तमान डॉक्युमेन्ट बन्द हो जाता है।
    ११ अप्रैल २०११
     
  • Windows+M या Windows+D दबाने पर-
    सारी खुली हुई विन्डोज़ एक साथ मिनिमाईज़ हो जाती हैं। Alt+F4 दबाने पर जिस विन्डो में आप काम कर रहे हैं वह बन्द हो जाती है।
    ४ अप्रैल २०११
     
  • इंटरनेट के उपयोग के लिये-
    एड्रेस बार पर कुछ लिख कर Ctrl+Enter दबाने पर लिखे हुए शब्द के प्रारम्भ में www और अन्त में .com अपने आप लगाकर Enter दब जाता है।
    २८ मार्च २०११
     
  • एक कदम सुरक्षा का
    अपने कम्पयूटर को सुरक्षित करने के लिए Control Panel-> User Account-> User पर जाकर पासवर्ड डाला जा सकता हैं। Windows+L दबाने पर कीबोर्ड और स्क्रीन इस प्रकार बंद हो जाता है जिसे पासवर्ड डाले बिना दुबारा चालू नहीं किया जा सकता। यह युक्ति तभी काम करती है जब पासवर्ड पहले से सेट किया हुआ हो।
    २१ मार्च २०११
     
  • बनाएँ वेब पेज का शार्ट कट
    इन्टरनेट एक्सप्लोरर में स्क्रीन पर कहीं भी माउस का दाहिना बटन दबाए और खुलने वाली सूची में से क्रिएट शॉर्टकट चुनें। इससे जालपृष्ठ का शॉर्टकट बनकर डेस्कटॉप पर आ जाएगा। यह पन्ना बाद में कभी भी  यहाँ से आसानी से खोला जा सकता हैं।

    १४ मार्च २०११
     
  • एक क्लिक में समय और तिथि
    नोटपैड या टेक्स्ट फाइल पर काम करते समय F5 'की' दबाकर जहाँ भी आवश्यकता हो, तात्कालिक समय और तिथि टंकित की जा सकती है।
    ७ मार्च २०११
     
  • यू एस बी- यू एस बी एक पी सी से अन्य उपकरणों को जोड़ने के लिए एक मानक है जिसमें तारों की संख्या, कनेक्टर के आकार तथा उनपर चलने वाले विद्युत संकेत सभी निर्दिष्ट किए गए हैं। यू एस बी की दो विशेषताएँ हैं - (१) सांकेतिक तारों (सिग्नल वायरों) का विद्युत शक्ति उपलब्ध कराने के लिये भी उपयोग (इससे उपकरण को अलग से बिजली से जोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ती) तथा (२) कनेक्टरों की मज़बूती और आसान प्रयोग। यू एस बी आजकल पी सी से अन्य उपकरणों को जोड़ने के लिए सबसे लोकप्रिय मानक है और कई पुराने मानकों का स्थान ले चुका है। २८ फरवरी २०११
  • ब्लू रे - ब्लू रे सीडी तथा डीवीडी के विकास की अगली कड़ी है। जहाँ एक सीडी पर लगभग ७०० एम बी तथा एक डीवीडी पर लगभग ४ जी बी डेटा आ सकता है, वहीं एक ब्लू रे की क्षमता २५ जी बी होती है। इसकी ड्राईव तथा डिस्क महँगी होने के कारण कम प्रचलित है।
    २१ फरवरी २०११
  • क्लाउड कम्पयूटिंग-क्लाउड कम्पयूटिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा स्थान मुक्त स्वरूप से साँझे सरवर कम्पयूटरों तथा अन्य उपकरणों को उनके आवश्यक्तानुसार संसाधन (अनुप्रयोग, सौफ्टवेयर एवं डेटा ) तथा अन्य सेवायें उपलब्ध कराते हैं।
    १४ फरवरी २०११
  • ब्राउज़र एक्सटेंशन- यह एक ऐसा छोटा प्रोग्राम होता है जो ब्राउज़र के साथ जुड़कर उसकी क्षमताओं का विस्तार करता है। यह प्लगिन से भिन्न होता है क्योकि जहाँ प्लगिन के द्वारा ब्राउज़र नए प्रारूप की जानकारी पर काम कर सकता है वहीं एक्सटेंशन्स ब्राउज़र में पहले से उपलब्ध क्षमताओं को नए स्वरूप में प्रयोग करके उसकी क्षमताओं को निखारते हैं।
    फायरफौक्स के ४५०० से आधिक एक्सटेंशन्स उपलब्ध हैं। क्रोम, सफारी, ऑपेरा के लिए भी काफी संख्या में एक्सटेंशन्स उपलब्ध हैं।

    ७ फरवरी २०११
  • वेब होस्टिंग-  यह विश्वजाल पर प्रदान की जाने वाली एक ऐसी सेवा है जिसका प्रयोग करके कोई व्यक्ति अथवा संस्था अपने जालस्थल को लोगों तक पहुँचा सकता है। इसके द्वारा उनका जालस्थल विश्वजाल पर उपलब्ध हो जाता है और कोई भी उस तक पहुँच कर उसे देख सकता है।
    ३१ जनवरी २०११
  • प्लगिन(Plugin)-किसी भी अनुप्रयोग (application) विशेषतः ब्राउज़र में लग जाने वाला एक अंश जो उस अनुप्रयोग की क्षमताओं को बढ़ा सकता है। उदाहरणतः ब्राउज़र के लिए फ़लैश प्लेएर(Flash player) एवं एक्रोबैट रीडर (Acrobat reader) प्लगिन के उदाहरण है।
    २४ जनवरी २०११
  • कुकी(Cookie)-कुकी किसी जालघर द्वारा आपके ब्राउज़र में रखी गयी छोटी सी जानकारी अथवा सूचना को कहते हैं। जो जालघर आपके ब्राउज़र पर कुकी रखता है केवल वही जालघर उस कुकी को वापस देख सकता है।
    १७ जनवरी २०११
  • टॉप लेवल डोमेन-किसी जालस्थल (वेबसाइट) के नाम का वह अंतिम भाग है, जो किसी नामांकन संस्था (डोमेन रजिस्ट्रार) के अधिकार में होता है और जिसके अन्तर्गत वह जालघर नामांकित होता है। उदाहरण के लिए www.abhivyakti-hindi.org में .org टॉप लेवल डोमेन है। और www.ignou.ac.in में .ac.in टॉप लेवल डोमेन है। १० जनवरी २०११
  • ब्राउजर-
    एक ऐसा अनुप्रयोग जिसके द्वारा विश्वजाल (इंटरनेट) पर उपलब्ध जालस्थलों को देखा तथा उनपर काम किया जाता है। कुछ प्रचलित ब्राउज़र हैं - इंटरनेट एक्सप्लोरर, मोज़िला फ़ायरफ़ॉक्स, गूगल क्रोम एवं ऐप्पल सफ़ारी।
     

    आभार: अभिव्यक्ति

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नवगीत: कब होंगे आज़ाद????.... --- संजीव 'सलिल'

नवगीत
कब होंगे आज़ाद???...
संजीव 'सलिल'

*

कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?

गए विदेशी पर देशी
अंग्रेज कर रहे शासन
भाषण देतीं सरकारें पर दे
न सकीं हैं राशन
मंत्री से संतरी तक कुटिल
कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?

नेता-अफसर दुर्योधन हैं,
जज-वकील धृतराष्ट्र
धमकी देता सकल राष्ट्र
को खुले आम महाराष्ट्र
आँख दिखाते सभी
पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होगे आजाद?

खाप और फतवे हैं अपने
मेल-जोल में रोड़ा
भष्टाचारी चौराहे पर खाए
न जब तक कोड़ा
तब तक वीर शहीदों के
हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?

पनघट फिर आबाद हो
सकें, चौपालें जीवंत
अमराई में कोयल कूके,
काग न हो श्रीमंत
बौरा-गौरा साथ कर सकें
नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?

रीति-नीति, आचार-विचारों
भाषा का हो ज्ञान
समझ बढ़े तो सीखें
रुचिकर धर्म प्रीति
विज्ञान
सुर न असुर, हम आदम
यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?

****************

बुधवार, 11 मई 2011

लघु कथा: फूल --- शिखा कौशिक

लघु कथा:
फूल
शिखा कौशिक
*

सिमरन दो साल के बेटे विभु को लेकर जब से मायके आई थी उसका मन उचाट था

गगन से जरा सी बात पर बहस ने ही उसे यहाँ आने के लिए विवश किया था | गगन और उसकी 'वैवाहिक रेल' पटरी पर ठीक गति से चल रही थी पर सिमरन के नौकरी की जिद करने पर गगन ने इस रेल में इतनी जोर क़ा ब्रेक लगाया क़ि यह पटरी पर से उतर गई और सिमरन विभु को लेकर मायके आ गयी | 

सिमरन अपने घर से निकली तो देखा विभु उस फूल की  तरह मुरझा गया था जिसे बगिया से तोड़कर बिना पानी दिए यूँ ही फेंक दिया गया हो | कई बार सिमरन ने मोबाईल उठाकर गगन को फोन मिलाना चाहा पर नहीं मिला पाई यह सोचकर क़ि ''उसने क्यों नहीं मिलाया ?" 

मम्मी-पापा व छोटा भाई उसे समझाने क़ा प्रयास कर हार चुके थे | विभु ने ठीक से खाना भी नहीं खाया था ...  पापा के पास ले चलो की जिद किये बैठा था | विभु को उदास देखकर आखिर सिमरन ने मोबाईल से गगन क़ा नम्बर  मिलाया और बस इतना कहा-''तुम तो फोन करना मत, विभु क़ा भी ध्यान  नहीं तुम्हें ?'' 

गगन ने एक क्षण की चुप्पी के बाद कहा -''सिम्मी मैं शर्मिंदा था......मुझे शब्द नहीं मिल रहे थे...... पर तुम अपने घर क़ा दरवाज़ा तो खोल दो........ मैं बाहर ही खड़ा हूँ....!'' 

यह सुनते ही सिमरन की आँखों  में  आँसू आ गए | वह विभु को गोद में उठाकर दरवाज़ा  खोलने के लिए बढ़ गयी, दरवाज़ा खोलते ही गगन को देखकर विभु मचल उठा और ........पापा.....पापा........कहता हुआ गगन की गोद में चला गया | सिमरन ने देखा कि आज उसका फूल फिर से खिल उठा था और महक भी रहा था |

**************

मुक्तिका: जिस शाख पर ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
जिस शाख पर
---संजीव 'सलिल'
*
जिस शाख पर पंछी-पखेरू बस, नहीं पलते.
वे वृक्ष तो फलकर भी दुनिया में नहीं फलते..

हैं लक्ष्य से पग दूर जो हर पल नहीं चलते.
संकल्प बिन बाधाओं के पर्वत नहीं टलते..

जो ऊगकर दें रौशनी, जग पूजता उनको.
यश-सूर्य उनकी कीर्ति के ढलकर नहीं ढलते..

मत दया साँपों पर करो, मत दूध पिलाओ.
किस संपेरे को ये संपोले हैं नहीं छलते?.

क्यों कुचलते कंकर को हो?, इनमें बसे शंकर.
ये दिलजले हैं मौन, धूप में नहीं गलते..

फूल से शूलों ने खिलना ही नहीं सीखा.
रूप दीवाने भ्रमर को ये नहीं खलते..

शठ न शठता को कभी भी छोड़ पाता है.
साधु जाते हैं ठगे पर कर नहीं मलते..

मिटकर भी 'सलिल' तप्त तन- का ताप हर लेता.
अंगार भी संगत में आकर फिर नहीं जलते..

दीवाली तब तक कभी होती नहीं 'सलिल'
जब तक महल में कुटी संग दीपक नहीं जलते..

*************

रचना-प्रतिरचना : - डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक" - संजीव 'सलिल'

रचना-प्रतिरचना :  -
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक" - संजीव 'सलिल'

मित्रों!
बहुत पहले यह छोटी सी रचना लिखी थी जिसका शीर्षक था क्यों? इस क्यों.. का उत्तर आज तक नहीं मिला है! युवा मन की इस रचना का आप भी आनन्द लीजिए और इसका उत्तर मिले तो मुझे भी बताइएगा!
क्यों?...

डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
*
 
मेरे वीराने उपवन में,
सुन्दर सा सुमन सजाया क्यों?
सूने-सूने से मधुबन में,
गुल को इतना महकाया क्यों?

मधुमास बन गया था पतझड़,
संसार बन गया था बीहड़,
लू से झुलसे, इस जीवन में,
शीतल सा पवन बहाया क्यों?

ना सेज सजाना आता था,
मुझको एकान्त सुहाता था,
चुपके से आकर नयनों में,
सपनों का भवन बनाया क्यों?

मैं मन ही मन में रोता था,
अपना अन्तर्मन धोता था,
चुपके से आकर पीछे से,
मुझको दर्पण दिखलाया क्यों?

ना ताल लगाना आता था,
ना साज बजाना आता था,
मेरे वैरागी कानों में आकर,
सुन्दर संगीत सुनाया क्यों?

 *
 गीत:


संजीव वर्मा 'सलिल'
*
वीराने में सुमन सजाया, 
खिलो महक संसार उठे. 
मधुवन में गुल शत महकाए, 
संस्कार शुभ अगिन जगे..
पतझड़-बीहड़ में भी हँसकर 
जीना सीख सके गर तुम-
शीतल मलयानिल अभिनन्दन 
आ-आकर सौ बार करे..

एकाकी रह सृजन न होता, 
सपने अपने साथी हैं.
सेज सजा स्वागत कर वर बन, 
स्वप्न सभी बाराती हैं.. 
रुदन कलुष हर अंतर्मन का, 
दर्पणवत कर देता स्वच्छ- 
ताल-साज बैरागी-मन के 
अविकारी संगाती हैं..


शंका तज, विश्वास-वरणकर ,
तब शव में भी शिव मिलता.
शिवा सदय तो जग-सरवर में-
विघ्नहरण जीवन खिलता..
श्रृद्धावान ज्ञान पाता है,
'सलिल' सदृश लहराता है-
संदेहों की शिला न बन,
हो चूर्ण, नहीं तिल भर हिलता..
***




रचना-प्रतिरचना: मैने दर्द कहा -- मैत्रेयी-संजीव 'सलिल'

रचना-प्रतिरचना: मैत्रेयी-संजीव 'सलिल'

कभी-कभी कोइ रचना मन को छू जाती है और कलम उसी पृष्ठभूमि पर खुद-ब-खुद चल पड़ती है. ऐसी रचना को रचते हुए भी रचनाकार गौड़ हो जाता है. गत दिवस ई-कविता पर माननीया मैत्रेयी जी की एक रचना को पढ़कर खुद को न रोक सका और एक प्रतिराचना कलम ने प्रस्तुतु कर दी. आप भी रचना और प्रतिरचना दोनों का आनंद लें. प्रतिक्रिया देने के लिए रचना के अंत में टिप्पणी comment वाले चौखटे पर चटखा लगाइए. 

मूल रचना :
मैत्रयी
*
मैने दर्द कहा जब दिल का, तुमने कहा बधाई हो
तुम्हें सुकूँ मिलता है शायद,जब मेरी रुसवाई हो
अश्कों को लफ़्ज़ों में जब भी ढाला तब ही शेर हुये
ऐसा कहाँ हुआ,खुशियों ने कोई गज़ल सुनाई हो
तन्हाई के राही का तो सफ़र रहा है तन्हा ही
कोई साथ नहीं देता,चाहे अपनी परछाई हो
नावाकिफ़ रह गई रिवायत मुझसे गज़लों नज़्मों की
पर ऐसा भी नहीं इन्ही की खातिर कलम उठाई हो
और मान्य घनश्याम जी के कहे के बाद
लम्हा कोई मिलता भी तो कह देता अनुरूपा से
ख्वाहिश है बस पीर तुम्हारी चाची,मामी ताई हो.
*
वाह... वाह...
दिल को छू गयी आपकी यह रचना.
पेशे नज़र चंद सतरें-

मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
*
गुप-चुप दर्द कहा जब दिल का, जगने कहा बधाई हो
साँसों के आंगन में दुःख संग सुख की भी पहुनाई हो..

छिपी वाह में आह, मिला सुख, दुःख की निष्ठुर छाया में.
अश्रु-बिंदु में श्याम सांवरे की छवि सदा समाई हो..

सुख-दुःख दोनों गीत-ग़ज़ल में धूप-छाँव सम साथ रहें.
नहीं एक बिन दूजा ज्यों दिल में धड़कन बस पाई हो..

कलम उठाते कहाँ कभी हम, खुद उठती चल जाती है.
भाव बिम्ब लय शब्द छंद ने, ज्यों बरखा बरसाई हो..

जब एकाकी हुए, तभी अंतर मुखरित हो बोल उठा-
दुनियादारी बहुत हुई अब खुद से आँख मिलाई हो..

माई को खो यही मनाता 'सलिल' दैव से रहो सदय
ममतामयी बहिन देना प्रभु, साथ एक भौजाई हो..

*** 



मंगलवार, 10 मई 2011

चित्रगुप्त जयंती पर विशेष रचना: मातृ वंदना -- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

चित्रगुप्त जयंती पर विशेष रचना:
मातृ वंदना                                                                                   
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
ममतामयी माँ नंदिनी, करुणामयी माँ इरावती.
सन्तान तेरी मिल उतारें, भाव-भक्ति से आरती...
*
लीला तुम्हारी हम न जानें, भ्रमित होकर हैं दुखी.
सत्पथ दिखाओ माँ, बनें सन्तान सब तेरी सुखी..
निर्मल ह्रदय के भाव हों, किंचित न कहीं आभाव हों-
सात्विक रहें आचार, पायें अंत में हम सद्गति...
*
कुछ काम जग के आ सकें, महिमा तुम्हारी गा सकें.
सत्कर्म कर आशीष मैया!, पुत्र तेरे पा सकें..
निष्काम रह, निस्वार्थ रह, सब मोक्ष पायें अंत में-
निर्मल रहें मन-प्राण, रखना माँ! सदा निश्छल मति...
*
चित्रेश प्रभु की कृपा मैया!, आप ही दिलवाइए.
जैसी भी है सन्तान तेरी है, न अब ठुकराइए..
आशीष दो माता! 'सलिल', कंकर से शंकर बन सकें-
साधना कर सफल माँ!, पद-पद्म में होवे रति...
***

सांगोपांग सिंहावलोकन छंद - घनाक्षरी कवित्त : नवीन चतुर्वेदी

सांगोपांग सिंहावलोकन छंद - घनाक्षरी कवित्त

नवीन चतुर्वेदी 

कवित्त का विधान
कुल ४ पंक्तियाँ
हर पंक्ति ४ भागों / चरणों में विभाजित
पहले, दूसरे और तीसरे चरण में ८ वर्ण
चौथे चरण में ७ वर्ण
इस तरह हर पंक्ति में ३१ वर्ण

सिंहावलोकन का विधान
कवित्त के शुरू और अंत में समान शब्द
जैसे प्रस्तुत कवित्त शुरू होता है "लाए हैं" से और समाप्त भी होता है "लाए हैं" से

सांगोपांग विधान
ये मुझे प्रात:स्मरणीय गुरुवर स्व. श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' जी ने बताया कि छंद के अंदर भी हर पंक्ति जिस शब्द / शब्दों से समाप्त हो, अगली पंक्ति उसी शब्द / शब्दों से शुरू हो तो छंद की शोभा और बढ़ जाती है| वो इस विधान के छंन्द को सांगोपांग सिंहावलोकन छंद कहते थे|


कवित्त:
लाए हैं बाजार से दीप भाँति भाँति के हम,
द्वार औ दरीचों पे कतार से सजाए हैं|
सजाए हैं बाजार हाट लोगों ने, जिन्हें देख-
बाल बच्चे खुशी से फूले ना समाए हैं|
समाए हैं संदेशे सौहार्द के दीपावली में,
युगों से इसे हम मनाते चले आए हैं|
आए हैं जलाने दीप खुशियों के जमाने में,
प्यार की सौगात भी अपने साथ लाए हैं|| 
*

सोमवार, 9 मई 2011

मुक्तिका: तुम क्या जानो --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
तुम क्या जानो
संजीव 'सलिल'
*
तुम क्या जानो कितना सुख है दर्दों की पहुनाई में.
नाम हुआ करता आशिक का गली-गली रुसवाई में..

उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.
कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अंगड़ाई में..

चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.
कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..

सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.
चैन रूह को मिलते देखा गजलों में, रूबाई में..

'सलिल' उजाला सभी चाहते, लेकिन वह खलता भी है.
तृषित पथिक को राहत मिलती अमराई - परछाँई में

***************


Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

मंगलवार, 3 मई 2011

आरती: हे चित्रगुप्त भगवान्... -- संजीव वर्मा 'सलिल'

आरती:
हे चित्रगुप्त भगवान्...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
हे चित्रगुप्त भगवान! करूँ गुणगान
                  दया प्रभु कीजै, विनती मोरी सुन लीजै...
*
जनम-जनम से भटक रहे हम, चमक-दमक में अटक रहे हम.
भवसागर में भोगें दुःख, उद्धार हमारा कीजै...
*
हम है याचक, तुम हो दाता, भक्ति अटल दो भाग्य विधाता.
मुक्ति पा सकें जन्म-चक्र से, युक्ति बता वह दीजै...
*
लिपि-लेखनी के आविष्कारक, वर्ण व्यवस्था के उद्धारक.
हे जन-गण-मन के अधिनायक!, सब जग तुम पर रीझै...
*
ब्रम्हा-विष्णु-महेश तुम्हीं हो, भक्त तुम्हीं भक्तेश तुम्हीं हो.
शब्द ब्रम्हमय तन-मन कर दो, चरण-शरण प्रभु दीजै...
*
करो कृपा हे देव दयालु, लक्ष्मी-शारद-शक्ति कृपालु.
'सलिल' शरण है जनम-जनम से, सफल साधना कीजै...
*****

मुक्तिका : दर्द अश्कों में - संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
दर्द अश्कों में
संजीव 'सलिल'
*
दर्द अश्कों में ढल गया होगा.
ख्वाब आँखों में पल गया होगा..

छाछ वो फूँक-फूँक पीता है.
दूध से भी जो जल गया होगा..

आज उसको नजर नहीं आता.
देखने को जो कल गया होगा..

ओ मा! 'बा' ने मिटा दिया 'सा' को*
छल को छल, छल से छल गया होगा..

बहू ने की नहीं, हुई गलती
खीर में नमक डल गया होगा..

दोस्त दुश्मन से भी बुरा है जो
दाल छाती पे दल गया होगा..

खोटे सिक्के से हारता है खरा.
जो है कुर्सी पे चल गया होगा..

नाम के उलट काम कर बेबस
बस में जा अटल टल गया होगा.. 

दोष सीता न, राम जी का था
लोक को तंत्र खल गया होगा..

हेय पूरब न श्रेष्ठ है पश्चिम.
बीज जैसा था, फल गया होगा..
*********
* ओबामा ने ओसामा को मिटा दिया.

मुक्तिका: हौसलों को ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
हौसलों को
संजीव 'सलिल'
*
हौसलों को किला कर देखो.
अँगुलियों को छिला कर देखो..

ज़हर को कंठ में विहँस धारो.
कभी मुर्दे को जिला कर देखो..

आस के क्षेत्ररक्षकों को तुम
प्यास की गेंद झिला कर देखो..

साँस मटकी है मथानी कोशिश
लक्ष्य माखन को बिला कर देखो..

तभी हमदम 'सलिल' के होगे तुम
मैं को जब मूक शिला कर देखो..

*******************

मुक्तिका : आया है नव संवत्सर... डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर'

मुक्तिका :
आया है नव संवत्सर...
डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर'
*
आया है नव संवत्सर
आत्मालोचन का अवसर

विश्व बने परिवार मगर
पहले भवन बनें यह घर..

मूल्यों की कंदील जले
घर-आँगन हों जगर-मगर..

मैं, तुम, वे सब ही मानव
रहें परस्पर हिल-मिलकर..

जड़-चेतन,  मानव-दानव
रहें सचेतन अभ्यंतर..

निर्मल मन हों स्वस्थ्य शरीर
सबके प्रीति पगे अंतर..

हिंसा-द्वेष रहें निस्तेज
मन बन जाएँ प्रीति के घर..

कलुष, क्लेश, संताप मिटें 
सुखी रहें चर और अचर.. 

सत्यं, शिवं, सुन्दरं का 
स्वर हो चारों और मुखर..

मृषा अनृत का वंश मिटे
'ऋत' का फूले वंश अमर..

लिप्सा सिर्फ ज्ञान की हो
और न कोई रहे मुखर..

मेरा, तेरा, हम सबका
अपना हो यह 'यायावर'..
*****************