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रविवार, 16 मई 2010

एक गपशप / चैट चर्चा:



















एक गपशप / चैट चर्चा:

शायर अशोक : 
नमस्ते सर जी , फुर्सत के पल, ब्लॉग पे
मेरी नई रचना पढियेगा : http://shayarashok.blogspot.com/
"शैतानों की हुकूमत में  हर रोज़ इंसान मरता है
भ्रष्टाचार की दलदल में माँ  का  दम   घुटता है"



मैं: avashya...
ShaYar: ji shukriya
मैं: divyanarmada.blogspot.com par nayee rachna padhiye, buzz par bhee hai...

 6:19 PM बजे रविवार को प्रेषित
ShaYar: aapki rachna ke hum to diwaane  , sir ji.....buzz per khaasker aapko hi  padhne jaate hain.....
मैं: buzz par kyon? divyanarmada par padhariye...follow kariye...comment kariye...likhye bhee...

ShaYar: ji bilkul
abhi hi follow kerta hoon
 6:23 PM बजे रविवार को प्रेषित
मैं: aapmen likhne kee kshamata hai par rachna ko man men der tak pkne den kachcha he n chhap den.. kabhee-kabhee lagta hai ki aap dobara vahee baat kahenge to behtar tareeke se kahenge. aisa hm sabke sath hota hai.

ShaYar: ji
मैं: kabhee-kabhee main bhee aisee hiee bhool kar jata hoon fir pachhtata hoon.
main apne baad kee peedhee ke rachnakaron men aapmen sambhavna dekhta hoon.
ShaYar: ji
6:26 PM बजे रविवार को प्रेषित
मैं: sahityashilpee par 'kavya ka rachnashastra' lekhmala dekhiye. use poora padhiye aur fir 'urdoo sahitya men alnkar' sheershak se har alankar ke udaaharan khoj kar lekh mala divya narmada ke liye likhiye.mehnat ka kaam hai par aap men salaahiyat hai...kar sakte hain.
 6:28 PM बजे रविवार को प्रेषित
ShaYar: ji sir ji.........namaste.

namaskar
**********.  



कविता: रखे वैशाख ने पैर -पूर्णिमा वर्मन

कविता :
रखे वैशाख ने पैर
पूर्णिमा वर्मन 
*

रखे वैशाख ने पैर
बिगुल बजाती,
लगी दौड़ने
तेज़-तेज़
फगुनाहट
खिले गुलमुहर दमक उठी फिर
हरी चुनर पर छींट सिंदूरी!
सिहर उठी फिर छाँह
टपकती पकी निबौरी
झरती मद्धम-मद्धम
जैसे
पंखुरी स्वागत
साथ हवा के लगे डोलने
अमलतास के सोन हिंडोले!
धूप ओढनी चटक
दुपहरी कैसे ओढ़े
धूल उड़ाती गली
गली
मौसम की आहट!

पद्य: प्रकृति की गोद में ही है सब सुख भरा ----प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"

गहरे सागर वन उपवन धरा औ' गगन

प्रकृति नियमों का सब कर रहे हैं अनुसरण

आदमी को भी जीना है जो संसार में

पर्यावरण से करना ही होगा संतुलन 


                                                            विश्व विकसा ये, पा माँ प्रकृति की कृपा

गहन दोहन उसी का पर कर रहा

भूल अपनी मनुज न सुधारेगा तो

सुख के युग का असंभव फिर आगमन


हो रहा मृदा जल वन पवन का क्षरण

है प्रदूषित हुआ सारा वातावरण

साँस लेना भी मुश्किल सा अब हो चला

जो न संभले तो दिखता निकट है मरण


                                                            प्रकृति माँ है जो देती है सब कुछ हमें

हमें चाहिये कि हम लालचों से थमें

विश्व हित में प्रकृति साथ व्यवहार में

उसकी गति और मति का करें अनुसरण


मिलें उपहार हैं भूमि जल वन पवन

सूर्य की ऊर्जा , स्वस्थ जीवन गगन

इनका लें लाभ पर बिना आहत किये

वन औ' वनप्राणियों का विवर्धीकरण


                                                              अपनी पर्यावरण से ही पहचान है

इससे गहरा जुडा हरेक उत्थान है

हो गया है जरूरी बहुत आज अब

कल के जीवन के बारे में चिंतन मनन


                                                              आओ! संकल्प लें कोई काटे न वन

मिटाने गलतियाँ वन बढ़ायें सगन

प्रदूषण हटें जल स्त्रोत के , वायु के

प्रकृति पूजा की हर मन में उपजे लगन


                                                          प्रकृति की गोद में ही है सब सुख भरा

प्रकृति के ही प्यार से ही है हरी यह धरा

अगर पर्यावरण नष्ट हमने किया

हमको भगवान भी कल न देंगे शरण .


                                                      *****************************

नवगीत: निर्माणों के गीत गुँजायें...... --संजीव वर्मा 'सलिल'















नवगीत:

निर्माणों के गीत गुँजायें...

संजीव वर्मा 'सलिल'
*













निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
मतभेदों के गड्ढें पाटें,
सद्भावों की सड़क बनायें.
बाधाओं के टीले खोदें,
कोशिश-मिट्टी-सतह बिछायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














निष्ठां की गेंती-कुदाल लें,
लगन-फावड़ा-तसला लायें.
बढ़ें हाथ से हाथ मिलाकर-
कदम-कदम पथ सुदृढ़ बनायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*



















विश्वास-इमल्शन को सींचें,
आस गिट्टियाँ दबा-बिछायें.
गिट्टी-चूरा-रेत छिद्र में-
भर धुम्मस से खूब कुटायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














है अतीत का लोड बहुत सा,
सतहें सम कर नींव बनायें.
पेवर माल बिछाये एक सा-
पंजा बारम्बार चलायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














मतभेदों की सतह खुरदुरी,
मन-भेदों का रूप न पायें.
वाइब्रेशन-कोम्पैक्शन दें-
रोलर से मजबूत बनायें.
दूरियाँ दूरकर एक्य बढ़ायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














राष्ट्र-प्रेम का डामल डालें-
प्रगति-पन्थ पर रथ दौड़ायें.
जनगण देखे स्वप्न सुनहरे,
कर साकार, बमुलियाँ गायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














श्रम-सीकर का अमिय पान कर,
पग को मंजिल तक ले जाएँ.
बनें नींव के पत्थर हँसकर-
काँधे पर ध्वज-कलश उठायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*















टिप्पणी: इमल्शन =  सड़क  निर्माण के पूर्व मिट्टी-गिट्टी की पकड़ बनाने के लिये डामल-पानी का तरल मिश्रण, पेवर = डामल-गिट्टी का मिश्रण समान मोती में बिछानेवाला यंत्र, पंजा = लोहे के मोटे तारों का पंजा आकार, गिट्टियों को खींचकर गड्ढों में भरने के लिये उपयोगी, वाइब्रेटरी रोलर से उत्पन्न कंपन तथा स्टेटिक रोलर से बना दबाव गिट्टी-डामल के मिश्रण को एकसार कर पर्त को ठोस बनाते हैं, बमुलिया = नर्मदा अंचल का लोकगीत, 













दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

शनिवार, 15 मई 2010

तितलियाँ : कुछ अश'आर संजीव 'सलिल'

 तितलियाँ : कुछ अश'आर

संजीव 'सलिल'

तितलियाँ जां निसार कर देंगीं.
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
*
तितलियों की चाह में दौड़ो न तुम.
फूल बन महको तो खुद आयेंगी ये..
*
तितलियों को देख भँवरे ने कहा.
भटकतीं दर-दर न क्यों एक घर किया?

कहा तितली ने मिले सब दिल जले.
कोई न ऐसा जहाँ जा दिल खिले..
*
पिता के आँगन में खेलीं तितलियाँ.
गयीं तो बगिया उजड़ सूनी हुई..
*
बागवां के गले लगकर तितलियाँ.
बिदा होते हुए खुद भी रो पडीं..
*
तितलियाँ ही बैग की रौनक बनी.
भ्रमर तो बेदाम के गुलाम हैं..
*
'आदाब' भँवरे ने कहा, तितली हँसी.
उड़ गयी 'आ दाब' कहकर वह तुरत..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

विशेष लेख: हिंदी की प्रासंगिकता और चिट्ठाकार -संजीव वर्मा 'सलिल

विशेषलेख:                                           
                        हिंदी की प्रासंगिकता और चिट्ठाकार  


संजीव वर्मा 'सलिल'

हिंदी जनवाणी तो हमेशा से है...समय इसे जगवाणी बनाता जा रहा है. जैसे-जिसे भारतीय विश्व में फ़ैल रहे हैं वे अधकचरी ही सही हिन्दी भी ले जा रहे हैं. हिंदी में संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, उर्दू , अन्य देशज भाषाओँ या अंगरेजी शब्दों के सम्मिश्रण से घबराने के स्थान पर उन्हें आत्मसात करना होगा ताकि हिंदी हर भाव और अर्थ को अभिव्यक्त कर सके. 'हॉस्पिटल' को 'अस्पताल' बनाकर आत्मसात करने से भाषा असमृद्ध होती है किन्तु 'फ्रीडम' को 'फ्रीडमता' बनाने से नहीं. दीनिक जीवन में  व्याकरण सम्मत भाषा हमेशा प्रयोग में नहीं ली जा सकती पर वह अशीत्या, शोध या गंभीर अभिव्यक्ति हेतु अनुपयुक्त होती है. हमें भाषा के प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च तथा  शोधपरक रूपों में भेद को समझना तथा स्वीकारना होगा. तत्सम तथा तद्भव शब्द हिंदी की जान हैं किन्तु इनका अनुपात तो प्रयोग करनेवाले की समझ पर ही निर्भर है.
हिंदी में शब्दों की कमी को दूर करने की ओर भी लगातार काम करना होगा. इस सिलसिले में सबसे अधिक प्रभावी भूमिका चिट्ठाकार निभा सकते हैं. वे विविध प्रदेशों, क्षेत्रों, व्यवसायों, रुचियों, शिक्षा, विषयों, विचारधाराओं, धर्मों तथा सर्जनात्मक प्रतिभा से संपन्न ऐसे व्यक्ति हैं जो प्रायः बिना किसी राग-द्वेष या स्वार्थ के सामाजिक साहचर्य के प्रति असमर्पित हैं. उनमें से हर एक को अलग-अलग शब्द भंडार की आवश्यकता है. कभी शब्द मिलते हैं कभी नहीं. यदि वे न मिलनेवाले शब्द को अन्य चिट्ठाकारों से पूछें तो अन्य अंचलों या बोलियों के शब्द भंडार में से अनेक शब्द मिल सकेंगे. जो न मिलें उनके लिये शब्द गढ़ने का काम भी चिट्ठा कर सकता है. इससे हिंदी का सतत विकास होगा. सिविल इन्जीनियरिंग को हिंदी में नागरिकी अभियंत्रण या स्थापत्य यांत्रिकी किअटने कहना चाहेंगे? इसके लिये अन्य उपयुक्त शब्द क्या हो? 'सिविल' की हिंदी में न तो स्वीकार्यता है न सार्थकता...फिर क्या करें? सॉइल, सिल्ट, सैंड, के लिये मिट्टी/मृदा, धूल तथा रेत का प्रयोग मैं करता हूँ पर उसे लोग ग्रहण नहीं कर पाते. 

सामान्यतः धूल-मिट्टी को एक मान लिया जाता है. रोक , स्टोन, बोल्डर, पैबल्स, एग्रीगेट को हिंदी में क्या कहें?  मैं इन्हें चट्टान, पत्थर, बोल्डर, रोड़ा, तथा गिट्टी लिखता हूँ . बोल्डर के लिये कोई शब्द नहीं है? रेत के परीक्षण में  'मटेरिअल रिटेंड ऑन सीव' तथा 'मटेरिअल पास्ड फ्रॉम सीव' को हिंदी में क्या कहें? मुझे एक शब्द याद आया 'छानन' यह किसी शब्द कोष में नहीं मिला. छानन का अर्थ किसी ने छन्नी से निकला पदार्थ बताया, किसी ने छन्नी पर रुका पदार्थ तथा कुछ ने इसे छानने पर मिला उपयोगी या निरुपयोगी पदार्थ कहा.

काम करते समय आपके हाथ में न तो शब्द कोष होता है, न समय. सामान्यतः लोग गलत-सलत अंगरेजी लिखकर काम चला रहे हैं. लोक निर्माण विभाग की दर अनुसूची आज भी सिर्फ अंगरेजी मैं है. निविदा हिन्दी में है किन्तु उस हिन्दी को कोई नहीं समझ पाता, अंगरेजी अंश पढ़कर ही काम करना होता है. किताबी या संस्कृतनिष्ठ अनुवाद अधिक घातक है जो अर्थ का अनर्थ कर देता है. न्यायलय में मानक भी अंगरेजी पाठ को ही माना जाता है. हर विषय और विधा में यह उलझन है. मैं मानता हूँ कि इसका सामना करना ही एकमात्र रास्ता है किन्तु चिट्ठाजगत में एक मंच ऐसा ही कि ऐसे प्रश्न उठाकर समाधान पाया जा सके तो...? सोचें...

                             भाषा और साहित्य से सरकार जितना दूर हो बेहतर... जनतंत्र में जन, लोकतंत्र में लोक, प्रजातंत्र में प्रजा हर विषय में सरकार का रोना क्यों रोती है? सरकार का हाथ होगा तो चंद अंगरेजीदां अफसर वातानुकूलित कमरों में बैठकर ऐसे हवाई शब्द गढ़ेगे जिन्हें जनगण जान या समझ ही नहीं सकेगा. राजनीति विज्ञान में 'लेसीज फेयर' का सिद्धांत है आशय वह सरकार सबसे अधिक अच्छी है जो सबसे कम शासन करती है. भाषा और साहित्य के सन्दर्भ में यही होना चाहिए. लोकशक्ति बिना किसी भय और स्वार्थ के भाषा का विकास देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप करती है. कबीर, तुलसी सरकार नहीं जन से जुड़े और जन में मान्य थे. भाषा का जितना विस्तार इन दिनों ने किया अन्यों ने नहीं. शब्दों को वापरना, गढ़ना, अप्रचलित अर्थ में प्रयोग करना और एक ही शब्द को अलग-अलग प्रसंगों में अलग-अलग अर्थ देने में इनका सानी नहीं. 

                                                      
चिट्ठा जगत ही हिंदी को विश्व भाषा बना सकता है? अगले पाँच सालों के अन्दर विश्व की किसी भी अन्य भाषा की तुलना में हिंदी के चिट्ठे अधिक होंगे. के उनकी सामग्री भी अन्य भाषाओँ के चिट्ठों की सामग्री से अधिक प्रासंगिक, उपयोगी व् प्रमाणिक होगी? इस प्रश्न का उत्तर यदि 'हाँ' है तो सरकारी मदद या अड़चन से अप्रभावित हिन्दी सर्व स्वीकार्य होगी, इस प्रश्न का उत्तर यदि 'नहीं" है तो हिंदी को 'हां' के लिये जूझना होगा...अन्य विकल्प नहीं है. शायद अकम ही लोग यह जानते हैं कि विश्व के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मंडल और आकाशगंगा के परे संभावित सभ्यताओं से संपर्क के लिये विश्व की सभी भाषाओँ का ध्वनि और लिपि को लेकर वैज्ञानिक परीक्षण कर संस्कृत तथा हिन्दी को सर्वाधिक उपयुक्त पाया है तथा इनदोनों और कुछ अन्य भाषाओँ में अंतरिक्ष में संकेत प्रसारित किए जा रहे हैं ताकि अन्य सभ्यताएँ धरती से संपर्क कर सकें. अमरीकी राष्ट्रपति अमरीकनों को बार-बार हिन्दी सीखने के लिये चेता रहे हैं किन्तु कभी अंग्रेजों के गुलाम भारतीयों में अभी भी अपने आकाओं की भाषा सीखकर शेष देशवासियों पर प्रभुत्व ज़माने की भावना है. यही हिन्दी के लिये हानिप्रद है.


भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है तो भारतीयों की भाषा सीखना विदेशियों की विवशता है. विदेशों में लगातार हिन्दी शिक्षण और शोध का कार्य बढ़ रहा है. हर वर्ष कई विद्यालयों और कुछ विश्व विद्यालयों में हिंदी विभाग खुल रहे हैं. हिन्दी निरंतर विकसित हो रहे है जबकि उर्दू समेत अन्य अनेक भाषाएँ और बोलियाँ मरने की कगार पर हैं. इस सत्य को पचा न पानेवाले अपनी मातृभाषा हिन्दी के स्थान पर राजस्थानी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, अवधी, ब्रज, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, निमाड़ी, बुन्देली या बघेली लिखाकर अपनी बोली को राष्ट्र भाषा या विश्व भाषा तो नहीं बना सकते पर हिंदी भाषियों की संख्या कुछ कम जरूर दर्ज करा सकते हैं. इससे भी हिन्दी का कुछ बनना-बिगड़ना नहीं है. आगत की आहत को पहचाननेवाला सहज ही समझ सकता है कि हिंदी ही भावी विश्व भाषा है. आज की आवश्यकता हिंदी को इस भूमिका के लिये तैयार करने के लिये शब्द निर्माण, शब्द ग्रहण, शब्द अर्थ का निर्धारण, अनुवाद कार्य तथा मौलिक सृजन करते रहना है जिसे विश्व विद्यालयों की तुलना में अधिक प्रभावी तरीके से चिट्ठाकर कर रहे हैं.

**********************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम/ सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

शुक्रवार, 14 मई 2010

रोचक प्रसंग: क्या कहते हैं अपने सपने?... ---सतीश शर्मा


 
1. स्वप्न मेे कोई देवता दिखाई दे तो लाभ के साथ-साथ सफलता मिलती है।
2. स्वप्न में कोई व्यक्ति गौमाता के दर्शन करता है यह अत्यन्त शुभ होता
है। उस व्यक्ति को यश, वैभव एवं परिवार वृद्घि का लाभ मिलता
     है।
3. स्वप्न में गाय का दूध दोहना धन प्राçप्त का सूचक है।
4. सफेद घोडे का दिखाई देना-सुन्दर भाग्य के साथ-साथ धन की प्राप्ति कराता है।
5. स्वप्न में चूहों का दिखाई देना उत्तम भाग्य का प्रतीक माना जाता है जो धन प्रदायक है।
6. स्वप्न में नीलकण्ठ या सारस दिखता है उसे राज सम्मान के साथ-साथ धन लाभ भी होता है।
7. स्वप्न में क्रोंच पक्षी दिखने पर अनायास धन प्राçप्त होती है।
8. यदि मरी हुई चिç़डया दिखाई दे तो अनायास ही धन लाभ होता है।
9. स्वप्न में तोते को खाता हुआ देखना प्रचूर मात्रा में धनप्राçप्त माना जाता है।
10. स्वप्न में यदि घोंघा दिखाई दे तो व्यक्ति के वेतन में वृद्घि तथा व्यापार में लाभ होता है।
11. स्वप्न में सफेद चीटियाँ धन लाभ कराती हंै।
12. स्वप्न में काले बिच्छू का दिखना धन दिलवाता है।
13. स्वप्न में नेवले का दिखाई देना स्वर्णाभूषण की प्राçप्त करवाता है।
14. मधुमक्खी का छत्ता देखना शुभ शकुन है जो धन प्रदायक है।
15. सर्प को फन उठाये हुये स्वप्न में देखना धन प्राçप्त का सूचक होता है।
16. सर्प यदि बिल में जाता या आता हुआ दिखाई दे तो यह अनायास धन प्राçप्त का सूचक होता है।
17. स्वप्न में आम का बाग देखना या बाग में घूमना अनायास धन की प्राçप्त करवाता है।
18. स्वप्न में कदम्ब के वृक्ष को देखना बहुत ही शुभ होता है जो व्यक्ति
को धन-दौलत निरोगी काया मान सम्मान एवं राजसम्मान की प्राçप्त करवाता है।
19. यदि हाथ की छोटी अंगुली में अंगूठी पहनें तो अनायास ही धन की प्राçप्त।
20. स्वप्न में कानों में कुण्डल धारण करना शुभ शकुन होता है जो धन प्राçप्त कराता है।
21. स्वप्न में नर्तकी नृत्य करती दिखाई दें तो यह धन प्रदायक है।
22. सफेद चूडियां देखना धन आगमन का सूचक है।
23. स्वप्न से कुमुद-कुमुदनी को देखना धनदायक होता है।
24. स्वप्न में किसान को देखना धन लाभ कराता है।
25. स्वप्न में गौ, हाथी, .........

सौजन्य: :  .http://www.satishsharma.com/index.php?page_type=hindi-articles&...

सामयिकी : समय बदला है : ---कल्पना श्रीवास्तव

शादी के लिए अच्छा खाना पका लेना या सिलाई-कढ़ाई कर लेने जैसी शर्तें बदलते समय और स्त्री शिक्षा के साथ साथ शिथिल हुई है।यदि लड़की प्रोफेशनल है तो जरूरी नहीं है कि उसे पारंपरिक रूप से महिलाओं के हिस्से आई जिम्मेदारियों को उठाने में भी माहिर होना ही चाहिए। पिछली पीढ़ी की लड़कियो को समाज ने ये सहूलियतें नहीं दी थी जो आज है। डाक्टर , इंजीनियर , एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस के लड़को की अब इतनी ही शर्त होती है कि लड़की उनके समकक्ष पढ़ी-लिखी हो , सोसायटी में उनके साथ कदम से कदम मिला कर उठ बैठ सके , केवल सुंदरता अब पर्याप्त नही समझी जाती व्यवहारिकता को भि लड़के बहुत महत्व देते हैं । शादी यानी टिपिकल पति-पत्नी वाला हिसाब नहीं है, बल्कि दो अच्छे दोस्तों का साथ मिलकर 'लाइफ' शेयर करना ही युवा पीढ़ी की नजर में शादी है। लड़कियो की आधुनिकता, पहनावे, लाइफ स्टाइल पर ज्यादातर युवा लड़को को आपत्ति नहीं है। लड़कियां निसंकोच बता देती हैं कि उन्हें बहुत अच्छा खाना बनाना नहीं आता, तो चौंकने की बजाय लड़के कहते दिखते हैं , 'कोई बात नहीं, मैं फास्ट फूड बना लेता हूँ।'मेड' सर्वेट ऐसे युवा दम्पतियों के लिये एक जरूरत बनती जा रही हैं .जिन दम्पतियो के स्वयं की लड़कियां नही है उन घरो में बहुओ को लड़की का दर्जा मिल रहा है .सासें कहती दिखती हैं सीख लेगी धीरे-धीरे...पढ़ी लिखी , नौकरी पेशा बड़े पदो पर सुशोभित लड़कियो को खाना बनाना आता तो है, मगर खाना बनाने में रुचि नहीं है।बदलते परिवेश में अब नारी की आर्थिक स्वतंत्रता केवल उसके स्वयं के अहं की तुष्टि या घर का ढाँचा बरकरार रखने के लिए ही मायने नहीं रखती, वरन्‌ पति और ससुराल वाले भी उसकी तरक्की-सफलता को अपना गौरव मानने लगे हैं।

पिछली पीढ़ी की अनेक महिलायें अपने पैरों पर खड़ी थीं, मगर तब घर-बाहर की जिम्मेदारी उन्हीं के सिर थी। ससुराल पक्ष से सहयोग न के बराबर था। मगर आज स्थितियाँ तेजी से बदली हैं। घर की बुनावट में स्त्री को विशेषतः बहू को खासी अहमियत मिलने लगी है। उसे दकियानूसी परंपराओं, रीति-रिवाजों और पुरानी मान्यताओं से बाहर निकलने का मौका दिया गया है। पति की तरह ही उसे भी दफ्तर की जिम्मेदारियों को निभाने व समय देने का मौका दिया जा रहा है।

घर-परिवार के अलावा उसका सर्कल, उसके सहकर्मी, उसका ओहदा भी सम्माननीय है। उसे अपने अनुसार जीने, पहनने-ओढ़ने की छूट है...क्या ऐसा नहीं लगता कि स्त्री अब सचमुच स्वतंत्र हो रही है? इकलौती लड़कियां जब बहुयें बनती हैं तो अपने माता पिता के प्रति भी वे अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती नजर आ रही हैं .यह सामाजिक परिवर्तन गर्व का विषय है

समयानुसार अपने में परिवर्तन लाते जाना, नया ग्रहण करना और पुराना जो अनुपयोगी हो छोड़ते जाना ही बुद्धिमानी है। नई सोच, नई मान्यताओं को जीवन में स्थान देना ही सुखी जीवन का मूलमंत्र है।

******************

WORLD'S EASIEST QUIZ! ---VIJAY KAUSHAL

VIJAY  KAUSHAL 

(Passing requires only 3 correct answers out of 10!)
  1) How long did the Hundred Years' War last ?
2) Which country makes Panama hats ?
3) From which animal do we get cat gut ?

4) In which month do Russians celebrate the October Revolution ?

5) What is a camel's hair brush made of ?

6) The Canary Islands in the Pacific are named after what animal ?

7) What was King George VI's first name ?

8) What color is a purple finch ?

9) Where are Chinese gooseberries from ?

10) What is the color of the black box in a commercial airplane ?

Remember, you need only 3 correct answers to pass.
Check your answers below.
  ANSWERS
 
1) How long did the Hundred Years War last ?

116 years

2) Which country makes Panama hats ?

Ecuador

3) From which animal do we get cat gut ?

Sheep and Horses

4) In which month do Russians celebrate the October Revolution ?

November

5) What is a camel's hair brush made of ?

Squirrel fur

6) The Canary Islands in the Pacific are named after what animal ?

Dogs

7) What was King George VI's first name ?

Albert

8) What color is a purple finch ?

Crimson

9) Where are Chinese gooseberries from ?

New Zealand

10) What is the color of the black box in a commercial airplane ?

Orange (of course!)
 
What do you mean, you failed?!!


Me, too...!!! (And if you try to tell me you passed, you lie!)

*****

अंतिम गीत: लिए हाथ में हाथ चलेंगे.... ---संजीव 'सलिल'

अंतिम गीत

संजीव 'सलिल'

*
ओ मेरी सर्वान्गिनी! मुझको याद वचन वह 'साथ रहेंगे'.
तुम जातीं क्यों आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
दो अपूर्ण मिल पूर्ण हुए हम सुमन-सुरभि, दीपक-बाती बन.
अपने अंतर्मन को खोकर क्यों रह जाऊँ मैं केवल तन?
शिवा रहित शिव, शव बन जीना, मुझको अंगीकार नहीं है--
प्राणवर्तिका रहित दीप बन जीवन यह स्वीकार नहीं है.
तुमको खो सुधियों की समिधा संग मेरे मेरे भी प्राण जलेंगे.
तुम क्यों जाओ आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
नियति नटी की कठपुतली हम, उसने हमको सदा नचाया.
सच कहता हूँ साथ तुम्हारा पाने मैंने शीश झुकाया.
तुम्हीं नहीं होगी तो बोलो जीवन क्यों मैं स्वीकारूँगा?-
मौन रहो कुछ मत बोलो मैं पल में खुद को भी वारूँगा.
महाकाल के दो नयनों में तुम-मैं बनकर अश्रु पलेंगे.
तुम क्यों जाओ आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
हमने जीवन की बगिया में मिलकर मुकुलित कुसुम खिलाये.
खाया, फेंका, कुछ उधार दे, कुछ कर्जे भी विहँस चुकाये.
अब न पावना-देना बाकी, मात्र ध्येय है साथ तुम्हारा-
सिया रहित श्री राम न, श्री बिन श्रीपति को मैंने स्वीकारा.
साथ चलें हम, आगे-पीछे होकर हाथ न 'सलिल' मलेंगे.
तुम क्यों जाओ आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

दोहा का रंग भोजपुरी के संग: संजीव वर्मा 'सलिल'

दोहा का रंग भोजपुरी के संग:

संजीव वर्मा 'सलिल'

सोना दहल अगनि में, जैसे होल सुवर्ण.
भाव बिम्ब कल्पना छुअल, आखर भयल सुपर्ण..
*
सरस सरल जब-जब भयल, 'सलिल' भाव-अनुरक्ति.
तब-तब पाठक गणकहल, इहै काव्य अभिव्यक्ति..
*
पीर पिये अउ प्यार दे, इहै सृजन के रीत.
अंतर से अंतर भयल, दूर- कहल तब गीत..
*
निर्मल मन में रमत हे, सदा शारदा मात.
शब्द-शक्ति वरदान दे, वरदानी विख्यात..
*
मन ऐसन हहरल रहन, जइसन नदिया धार.
गले लगल दूरी मितल, तोडल लाज पहार..
*
कुल्हि कहानी काल्ह के, गइल जवानी साँच.
प्रेम-पत्रिका बिसरि के, क्षेम-पत्रिका बाँच..
*
जतने जाला ज़िन्दगी, ओतने ही अभिमान.
तन संइथाला जेतने, मन होइल बलवान..
*
चोटिल नागिन के 'सलिल', ज़हरीली फुंकार.
बूढ बाघ घायल भयल, बच- लुक-छिप दे मार..
*
नेह-छोह राखब 'सलिल', धन-बल केकर मीत.
राउर मन से मन मिलल, साँस-साँस संगीत..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

गुरुवार, 13 मई 2010

भोजपुरी दोहे: संजीव 'सलिल'

बुधवार, 12 मई 2010

जरूरी परामर्श: ए. टी. एम्. चोर से पाला पड़े तो क्या करें? --विजय कौशल


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चोर ए.टी.एम्. से धन निकालने को कहे तो बहस या झगडा न करें आप नहीं जानते वह आपके साथ कितना बुरा कर सकता है. आप अपने पिन क्रमांक को उल्टा टैप करें अर्थात १२५४ हो तो ४५२१ पंच करें. ऐसा करने से मशीन से रुपये बाहर आते-आते आधे फंस जायेंगे और चोर को पता चले बिना पुलिस सतर्क हो जाएगी.
यह जानकारी अपने मित्रों को भी दें.


WHEN A THIEF FORCES YOU TO TAKE MONEY FROM THE ATM, DO NOT ARGUE OR RESIST, YOU MIGHT NOT KNOW WHAT HE OR SHE MIGHT DO TO YOU.   WHAT YOU SHOULD DO IS TO PUNCH YOUR PIN IN THE REVERSE, I..E IF YOUR PIN IS 1254, YOU PUNCH 4521.  THE MOMENT YOU PUNCH IN THE REVERSE, THE MONEY WILL COME OUT BUT WILL BE STUCK INTO THE MACHINE HALF WAY OUT AND IT WILL ALERT THE POLICE WITHOUT THE NOTICE OF THE THIEF. EVERY ATM HAS IT; IT IS SPECIALLY MADE TO SIGNIFY DANGER AND HELP. NOT EVERYONE IS AWARE OF THIS. FORWARD THIS TO ALL YOUR FRIENDS AND THOSE YOU CARE

अम्मी --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

अम्मी

संजीव 'सलिल'
 *
माहताब की
जुन्हाई में,
झलक तुम्हारी
पाई अम्मी.
दरवाजे, कमरे
आँगन में,
हरदम पडी
दिखाई अम्मी.

कौन बताये
कहाँ गयीं तुम?
अब्बा की
सूनी आँखों में,
जब भी झाँका
पडी दिखाई
तेरी ही
परछाईं अम्मी.
भावज जी भर
गले लगाती,
पर तेरी कुछ
बात और थी.
तुझसे घर
अपना लगता था,
अब बाकी 
पहुनाई अम्मी.
बसा सासरे
केवल तन है.
मन तो तेरे
साथ रह गया.
इत्मीनान
हमेशा रखना-
बिटिया नहीं
परायी अम्मी.
अब्बा में
तुझको देखा है,
तू ही
बेटी-बेटों में है.
सच कहती हूँ,
तू ही दिखती
भाई और
भौजाई अम्मी.

तू दीवाली ,
तू ही ईदी.
तू रमजान
और होली है.
मेरी तो हर
श्वास-आस में 
तू ही मिली
समाई अम्मी.
*********

मंगलवार, 11 मई 2010

मुक्तिका: कुछ हवा दो.... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'

कुछ हवा दो अधजली चिंगारियाँ फिर बुझ न जाएँ.
शोले जो दहके वतन के वास्ते फिर बुझ न जाएँ..

खुद परस्ती की सियासत बहुत कर ली, रोक दो.
लहकी हैं चिंगारियाँ फूँको कि वे फिर बुझ न जाएँ..

प्यार की, मनुहार की, इकरार की, अभिसार की
मशालें ले फूँक दो दहशत, कहीं फिर बुझ न जाएँ..

ज़हर से उतरे ज़हर, काँटे से काँटा दो निकाल.
लपट से ऊँची लपट करना 'सलिल' फिर बुझ न जाएँ...

सब्र की हद हो गयी है, ज़ब्र की भी हद 'सलिल'
चिताएँ उनकी जलाओ इस तरह फिर बुझ न जाएँ..

सोमवार, 10 मई 2010

मातृ दिवस पर माँ को अर्पित चौपदे: ---संजीव 'सलिल'

मातृ दिवस  पर माँ को अर्पित चौपदे: संजीव 'सलिल'                            


बारिश में आँचल को छतरी, बना बचाती थी मुझको माँ.
जाड़े में दुबका गोदी में, मुझे सुलाती थी गाकर माँ..
गर्मी में आँचल का पंखा, झलती कहती नयी कहानी-
मेरी गलती छिपा पिता से, बिसराती थी मुस्काकर माँ..
*  
मंजन स्नान आरती थी माँ, ब्यारी दूध कलेवा थी माँ.
खेल-कूद शाला नटख़टपन, पर्व मिठाई मेवा थी माँ..
व्रत-उपवास दिवाली-होली, चौक अल्पना राँगोली भी-
संकट में घर भर की हिम्मत, दीन-दुखी की सेवा थी माँ..
*
खाने की थाली में पानी, जैसे सबमें रहती थी माँ.
कभी न बारिश की नदिया सी कूल तोड़कर बहती थी माँ.. 
आने-जाने को हरि इच्छा मान, सहज अपना लेती थी- 
सुख-दुःख धूप-छाँव दे-लेकर, हर दिन हँसती रहती थी माँ..
*
गृह मंदिर की अगरु-धूप थी, भजन प्रार्थना कीर्तन थी माँ.
वही द्वार थी, वातायन थी, कमरा परछी आँगन थी माँ..
चौका बासन झाड़ू पोंछा, कैसे बतलाऊँ क्या-क्या थी?-
शारद-रमा-शक्ति थी भू पर, हम सबका जीवन धन थी माँ..
*
कविता दोहा गीत गजल थी, रात्रि-जागरण चैया थी माँ.
हाथों की राखी बहिना थी, सुलह-लड़ाई भैया थी माँ.
रूठे मन की मान-मनौअल, कभी पिता का अनुशासन थी-
'सलिल'-लहर थी, कमल-भँवर थी, चप्पू छैंया नैया थी माँ..     
*
आशा आँगन, पुष्पा उपवन, भोर किरण की सुषमा है माँ.
है संजीव आस्था का बल, सच राजीव अनुपमा है माँ..
राज बहादुर का पूनम जब, सत्य सहाय 'सलिल' होता तब-
सतत साधना, विनत वन्दना, पुण्य प्रार्थना-संध्या है माँ..
*
माँ निहारिका माँ निशिता है, तुहिना और अर्पिता है माँ 
अंशुमान है, आशुतोष है, है अभिषेक मेघना है माँ..
मन्वंतर अंचित प्रियंक है, माँ मयंक सोनल श्रेया है-
ॐ कृष्ण हनुमान शौर्य अर्णव सिद्धार्थ गर्विता है माँ                                 
*
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम





बाल गीत; अपनी माँ का मुखड़ा! --संजीव बर्मा 'सलिल'

बाल गीत
संजीव बर्मा 'सलिल'

मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा!

सुबह उठाती गले लगाकर,
नहलाती है फिर बहलाकर,
आँख मूँद, कर जोड़ पूजती ,
प्रभु को सबकी कुशल मनाकर. , 

देती है ज्यादा प्रसाद फिर
                                                                   सबकी नजर बचाकर.

आँचल में छिप जाता मैं ज्यों
रहे गाय सँग बछड़ा.


मुझको सबसे अच्छा लगता - 
अपनी माँ का मुखड़ा.

बारिश में छतरी आँचल की
ठंडी में गर्मी दामन की., 
गर्मी में साड़ी का पंखा-, 
पल्लू में छाया बादल की ! 

दूध पिलाती है गिलास भर - 
कहे बनूँ मैं तगड़ा. , 
                                                                                                                                                  
                                                             मुझको सबसे अच्छा लगता - 
अपनी माँ का मुखड़ा!
*******

रविवार, 9 मई 2010

मातृ दिवस पर स्मृति गीत: माँ की सुधियाँ पुरवाई सी.... संजीव 'सलिल'


मातृ दिवस पर स्मृति गीत:

माँ की सुधियाँ  पुरवाई सी....

संजीव 'सलिल'
*
तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं माँ की सुधियाँ  पुरवाई सी
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ... 
*
दूर रहा जो उसे खलिश है तुमको देख नहीं वह पाया.
निकट रहा मैं लेकिन बेबस रस्ता छेक नहीं मैं पाया..
तुम जाकर भी गयी नहीं हो, बस यह है इस बेटे का सच.
साँस-साँस में बसी तुम्हीं हो, आस-आस में तुमको पाया..
चिंतन में लेखन में तुम हो, शब्द-शब्द सुन हर्षाई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
तुम्हें देख तुतलाकर बोला, 'माँ' तुमने हँस गले लगाया.
दौड़ा गिरा बिसूरा मुँह तो, उठा गुदगुदा विहँस हँसाया..
खुशी न तुमने खुद तक रक्खी,
मुझसे कहलाया 'पापा' भी-
खुशी लुटाने का अनजाने, सबक तभी माँ मुझे सिखाया..
लोरी भजन आरती कीर्तन, सुन-गुन धुन में छवि पाई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
भोर-साँझ, त्यौहार-पर्व पर, हुलस-पुलकना तुमसे पाया.
दुःख चुप सह, सुख सब संग जीना, पंथ तुम्हारा ही अपनाया..
आँसू देख न पाए दुनिया, पीर चीर में छिपा हास दे-
संकट-कंटक को जय करना, मन्त्र-मार्ग माँ का सरमाया.
बन्ना-बन्नी, होरी-गारी, कजरी, चैती, चौपाई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
गुदड़ी, कथरी, दोहर खो, अपनों-सपनों का साथ गँवाया..
चूल्हा-चक्की, कंडा-लकड़ी, फुंकनी सिल-लोढ़ा बिसराया.
नथ, बेन्दा, लंहगा, पायल, कंगन-सज करवाचौथ मनातीं-
निर्जल व्रत, पूजन-अर्चन कर, तुमने सबका क्षेम मनाया..
खुद के लिए न माँगा कुछ भी, विपदा सहने बौराई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
घूँघट में घुँट रहें न बिटियाँ, बेटा कहकर खूब पढाया.
सिर-आँखों पर जामाता, बहुओं को बिटियों सा दुलराया.
नाती-पोते थे आँखों के तारे, उनमें बसी जान थी-
'उनका संकट मुझको दे', विधना से तुमने सदा मनाया.
तुम्हें गँवा जी सके न पापा, तुम थीं उनकी परछाईं सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...