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रविवार, 25 अप्रैल 2010

एक घनाक्षरी: फूली-फूली राई...... --पारस मिश्र, शहडोल..

एक घनाक्षरी
पारस मिश्र, शहडोल..
फूली-फूली राई, फिर तीसी गदराई.
बऊराई अमराई रंग फागुन का ले लिया.
मंद-पाटली समीर, संग-संग राँझा-हीर,
ऊँघती चमेली संग फूँकता डहेलिया..
थरथरा रहे पलाश, काँप उठे अमलतास,
धीरे-धीरे बीन सी बजाये कालबेलिया.
आँखिन में हीरकनी, आँचल में नागफनी,
जाने कब रोप गया प्यार का बहेलिया..
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम  

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है।...Pankaj Agrawal IAS

शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है।



हमारे देश में शिक्षा सामान्यतः केवल अच्छी नौकरी पाने का एक माध्यम ही मानी जाती है!‘थ्री इडियट्स‘ फिल्म ने इस विचार के विपरीत आदर्श स्थापित करने का एक छोटा सा प्रयत्न किया है! दरअसल शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है। हमारे माननीय सी.एम.डी. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी जबलपुर श्री पंकज अग्रवाल आई.ए.एस हम सबके लिये प्रेरणा स्त्रोत है।

विगत वर्ष वे मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा हेतु विदेश गये थे। ओपन युनिवर्सिटी के कानसेप्ट के अनुरूप नौकरी करते हुये अपने ज्ञान का विस्तार करते रहना आप सब भी सीख सकते है। माननीय सी.एम.डी. महोदय की बिदाई के समय मैंने लिखा था ‘‘हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है!‘ आज वे पुनः हमारे बीच है। स्वागत है सर! नई ऊर्जा के साथ, ऊर्जा जगत के नेतृत्व का स्वागत।

हमने उनसे उनके विगत वर्ष के शैक्षिक पाठ्यक्रम के अनुभवो पर बातचीत की, प्रस्तुत है कुछ अंश-

सबसे पहले हमने जानना चाहा कि-

मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा लेने की प्रेरणा किस तरह हुई

धीर, गंभीर सहज सरल स्वर में उन्होंने बताया - इंजीनियरिंग की शिक्षा के साथ मैं प्रशासनिक सेवा में हूं। प्रशासनिक मैनेजमेंट की नवीनतम तकनीको के प्रति मेरी गहन रूचि रही है। इंटरनेट विभिन्न सेमीनार इत्यादि के माध्यम से मैं लगातार ज्ञान के विस्तार में रूचि रखता हूं। मेरा मानना है कि शिक्षा से हमारे व्यक्तित्व का सकारात्मक विस्तार होता है। अतः मैंने यह पाठ्यक्रम करने का मन बनाया।

यह कोर्स किस संस्थान से किया जावे इसका निर्णय आपने किस तरह लिया

ली कूएन यू स्कूल आफ पब्लिक पालिसी, सिंगापुर विश्व का एक ऐसा संस्थान है जो कि एशिया के विभिन्न देशो की राजनैतिक, सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों पर फोकस करते हुये यह पाठ्यक्रम चलाता है जिसमें शैक्षिक गतिविधि दो हिस्सों में बंटी हुई है पहले हिस्से में जनवरी से अगस्त तक सिंगापुर में ही क्लासरूम आधारित पाठ्यक्रम होता है। दूसरे चरण में हावर्ड केनली स्कूल यू.एस.ए. में अगस्त से दिसम्बर तक शिक्षार्थी द्वारा चुने गये विषयों पर (इलेक्टिव शिक्षण होता है। यह पाठ्यक्रम वैश्विक स्तर का है एवं अपनी तरह का विशिष्ट है जिसमें विश्व स्तर पर एक्सपोजर के अवसर मिलते है।

आपने आई.आई.टी. से बी.टेक एवं आई.आई.एम. अहमदाबाद से शार्ट टर्म कोर्स भी किया था तो विदेशो की शिक्षण व्यवस्था और भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों की शिक्षण प्रणाली में आपको कोई आधारभूत अंतर लगा वहां आप वैश्विक रूप से विभिन्न देशों के शिक्षार्थियों के बीच रहे आपके विशेष अनुभव-

शिक्षण व्यवस्था में हमारे उच्च शिक्षा संस्थान किसी भी विश्व स्तरीय संस्थान से कम नहीं है आई.आई.एम. एवं वहा की षिक्षण पद्धति समान है सिंगापुर में 8 विभिन्न देषों के 22 षिक्षार्थियों का हमारा ग्रुप था। जब हम दूसरे चरण में हावर्ड केनली स्कूल यू.एस.ए. में थे तब यू.एस. एवं अन्य देषों के 900 छात्रों के बीच, विभिन्न इलेक्टिव विषयों के लिये अलग-अलग ग्रुप थे। अतः विश्व स्तर के श्रेष्ठ लोगों से मिलने उन्हें समझने के अवसर प्राप्त हुये। हावर्ड केनली स्कूल में एवं जो विषेष बात मैने नोट की वह यह थी कि वहां छात्रों के विचारो का सम्मान करने की बहुत अच्छी परम्परा है। वहाँ विषय विषेषज्ञ अपने विचार शिक्षार्थियों पर थोपते नहीं हैं वरन् ‘‘दे आर ओपन टु अवर आइडियाज्‘‘वहां कानसेप्ट बेस्ट शिक्षा है। न केवल उच्च शिक्षा में वरन् वहां स्कूलों में भी सारी शिक्षा प्रणाली प्रेक्टिकल बेस्ड है मेरी बेटी ने वहां ग्रेड फोर (क्लास चार की पढ़ाई की जब उसे इलेक्ट्रिसिटी का पाठ पढ़ाया गया तो उसे प्रयोगशाला में बल्ब बैटरी और तार के साथ प्रयोग करने के लिये छोड दिया गया स्वंय ही बल्ब को जलाकर उसने इलेक्ट्रिसिटी के विषय में प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया।

पारिवारिक जिम्मेदारियां कई लोगों को चाहते हुये भी नौकरी में आने के बाद उच्च शिक्षा लेने में बाधा बन जाती है आपके इस पाठ्यक्रम में श्रीमती अग्रवाल व आपकी बिटिया के सहयोग पर आप क्या कहना चाहेंगे

मैं सपरिवार ही पूरे वर्ष अध्ययन कार्य पर रहा । श्रीमती अग्रवाल को अवश्य ही अपने कार्य से एक वर्ष का अवकाश लेना पडा बिटिया छोटी है वह अभी क्लास चार में है। अतः उसकी पढ़ाई वहां दोनों ही स्थानो पर सुगमता से जारी रह सकी। यह अध्ययन का एक वर्ष हम सबके लिये अनेक सुखद चिरस्मरणीय एवं नई-नई यादों का समय रहा है। इस समय में हमने दुनिया का श्रेष्ठ देखा समझा जाना और अनुभव किया । बिना परिवार के सहयोग के यह अध्ययन संभव नहीं था, पर हां किसी को कोई कम्प्रोमाइज नहीं करना पड़ा।

आम कर्मचारियों के नौकरी के साथ उच्च षिक्षा को नौकरी में आर्थिक लाभ से जोड़कर देखने के दृष्टिकोण पर आप क्या कहना चाहेंगे

हमें जीवन में शिक्षा जैसे व्यक्तित्व विकास के संसाधन को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से जोडकर नहीं देखना चाहिये। ज्ञान का विस्तार इससे कहीं अधिक महत्तवपूर्ण है। यदि मैनेजमेंट की भाषा में कहे तो इससे हमारी ‘‘मार्केट वैल्यू‘‘ स्वतः सदा के लिये ही बढ़ जाती है जिसके सामने एक-दो इंक्रीमेंट के आर्थिक लाभ नगण्य है।


आपके द्वारा किये गये कोर्स से आपको क्या लाभ लग रहे है

निश्चित ही इस समूचे अनुभव से मेरे आउटलुक में बदलाव आया है, सोचने, समझने तथा क्रियान्वयन के दृष्टिकोण में भारतीय परिपेक्ष्य में पब्लिक मैनेजमेंट के इस पाठ्यक्रम के सकारात्मक लाभ है, जो दीर्धकालिक है।


इस परिपेक्ष्य में हमारे लिये आप क्या संदेष देना चाहेंगे

‘‘आत्म निरीक्षण आवष्यक है। स्वंय अपनी समीक्षा करें। अपने दीर्धकालिक लक्ष्य बनाये और सकारात्मक विचारधारा के लाभ उनकी पूर्ति हेतु संपूर्ण प्रयास करें। इससे आप स्वंय अपने लिये एवं कंपनी के लिये भी अपनी उपयोगिता प्रमाणित कर पायेंगे। इन सर्विस ट्रेनिंग रिफ्रशर कोर्स सेमीनारों में भागीदारी आपको अपडेट रखती है इसी दृष्टिकोण से मैंने कंपनी का ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करवाया है हमारे अधिकारियों कर्मचारियों को भी अन्य संस्थानों में समय-समय पर प्रषिक्षण हेतु भेजा जाता है। आवश्यक है कि इस समूचे व्यय का कंपनी के हित में रचनात्मक उपयोग किया जावे, जो आपको ही करना है।‘‘


साक्षात्कार- विवेक रंजन श्रीवास्तव
जबलपुर

नवगीत: निधि नहीं जाती सँभाली...... --संजीव 'सलिल'

नव गीत:
संजीव 'सलिल'
*
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*
छोड़ निज जड़ बढ़ रही हैं.
नए मानक गढ़ रही हैं.
नहीं बरगद बन रही ये-
पतंगों सी चढ़ रही हैं.

चाह लेने की असीमित-
किन्तु देने की कंगाली.
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*
नेह-नाते हैं पराये.
स्वार्थ-सौदे नगद भाये.
फेंककर तुलसी घरों में-
कैक्टस शत-शत उगाये..


तानती हैं हर प्रथा पर
अरुचि की झट से दुनाली.
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*

भूल देना-पावना क्या?
याद केवल चाहना क्या?
बहुत जल्दी 'सलिल' इनको-
नहीं मतलब भावना क्या?

जिस्म की कीमत बहुत है.
रूह की है फटेहाली.
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

भोजपुरीदोहा सलिला : संजीव 'सलिल'

भोजपुरीदोहा सलिला :

संजीव 'सलिल'

दोहा का रचना विधान:

दोहा में दो पद (पंक्तियाँ) तथा हर पंक्ति में २ चरण होते हैं. विषम (प्रथम व तृतीय) चरण में १३-१३
मात्राएँ तथा सम (२रे व ४ थे) चरण में ११-११
मात्राएँ, इस तरह हर पद में २४-२४ कुल ४८ मात्राएँ होती हैं. दोनों पदों या
सम चरणों के अंत में गुरु-लघु मात्र होना अनिवार्य है. विषम चरण के आरम्भ
में एक ही शब्द जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित है. विषम चरण के अंत में सगण,
रगण या नगण तथा सम चरणों के अंत में जगण या तगण हो तो दोहे में लय दोष
स्वतः मिट जाता है. अ, इ, , ऋ लघु (१) तथा शेष सभी गुरु (२) मात्राएँ
गिनी जाती हैं


दोहा के रंग, भोजपुरी के संग:


कइसन होखो कहानी, नहीं साँच को आँच.
कंकर संकर सम पूजहिं, ठोकर खाइल कांच..

कोई किसी भी प्रकार से झूठा-सच्चा या घटा-बढाकर कहे सत्य को हांनि नहीं पहुँच सकता. श्रद्धा-विश्वास के कारण ही कंकर भी शंकर सदृश्य पूजित होता है जबकि झूठी
चमक-दमक धारण करने वाला काँच पल में टूटकर ठोकरों का पात्र बनता है.

*
कतने घाटल के पियल, पानी- बुझल न प्यास.
नेह नरमदा घाट चल, रहल न बाकी आस..

जीवन भर जग में यहाँ-वहाँ भटकते रहकर घाट-घाट का पानी पीकर भी तृप्ति नहीं मिली किन्तु स्नेह रूपी आनंद देनेवाली पुण्य सलिला (नदी) के घाट पर ऐसी तृप्ति मिली की
और कोई चाह शेष न रही.

*
गुन अवगुन कम- अधिक बा, ऊँच न कोई नीच.
मिहनत श्रम शतदल कमल, मोह-वासना कीच..

अलग-अलग इंसानों में गुण-अवगुण कम-अधिक होने से वे ऊँचे या नीचे नहीं हो जाते. प्रकृति ने सबको एक सम़ान बनाया है. मेंहनत कमल के समान श्रेष्ठ है जबकि मोह और वासना कीचड के समान त्याग देने योग्य
है. भावार्थ यह की मेहनत करने वाला श्रेष्ठ है जबकि मोह-वासना में फंसकर
भोग-विलास करनेवाला निम्न है.

*
नेह-प्रेम पैदा कइल, सहज-सरल बेवहार.
साँझा सुख-दुःख बँट गइल, हर दिन बा तिवहार..

सरलता तथा स्नेह से भरपूर व्यवहार से ही स्नेह-प्रेम उत्पन्न होता है. जिस परिवार में सुख तथा दुःख को मिल बाँटकर सहन किया जाता है वहाँ हर दिन त्यौहार की तरह खुशियों से भरा होता है..
*
खूबी-खामी से बनल, जिनगी के पिहचान.
धूप-छाँव सम छनिक बा, मान अउर अपमान..

ईश्वर ने दुनिया में किसी को पूर्ण नहीं बनाया है. हर इन्सान की ज़िन्दगी की पहचान उसकी अच्छाइयों और बुराइयों से ही होती है. जीवन में मान और अपमान धुप और
छाँव की तरह आते-जाते हैं. सज्जन व्यक्ति इससे प्रभावित नहीं होते.

*
सहरन में जिनगी भयल, कुंठा-दुःख-संत्रास.
केई से मत कहब दुःख, सुन करिहैं उपहास..

शहरों में आम आदमी की ज़िन्दगी में कुंठा, दुःख और संत्रास की पर्याय बन का रह गयी है किन्तु अपना अपना दुःख किसी से न कहें, लोग सुनके हँसी उड़ायेंगे, दुःख
बाँटने कोई नहीं आएगा.

*
(इसी आशय का एक दोहा महाकवि रहीम का भी है:

रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही रखियो गोय.
सुन हँस लैहें लोग सब, बाँट न लैहें कोय..)
*
फुनवा के आगे पड़ल, चीठी के रंग फीक.
सायर सिंह सपूत तो, चलल तोड़ हर लीक..

समय का फेर देखिये कि किसी समय सन्देश और समाचार पहुँचाने में सबसे अधिक भूमिका निभानेवाली चिट्ठी का महत्व दूरभाष के कारण कम हो गया किन्तु शायर, शेर और
सुपुत्र हमेशा ही बने-बनाये रास्ते को तोड़कर चलते हैं.

*
बेर-बेर छटनी क द स, हरदम लूट-खसोट.
दुर्गत भयल मजूर के, लगल चोट पर चोट..

दुनिया का दस्तूर है कि बलवान आदमी निर्बल के साथ बुरा व्यव्हार करते हैं. ठेकेदार बार-बार मजदूरों को लगता-निकलता है, उसके मुनीम कम मजदूरी देकर मजदूरों को
लूटते हैं. इससे मजदूरों की उसी प्रकार दशा ख़राब हो जाती है जैसे चोट लगी
हुई जगह पर बार-बार चोट लगने से होती है.

*
दम नइखे दम के भरम, बिटवा भयल जवान.
एक कमा दू खर्च के, ऊँची भरल उडान..

किसी व्यक्ति में ताकत न हो लेकिन उसे अपने ताकतवर होने का भ्रम हो तो वह किसी से भी लड़ कर अपनी दुर्गति करा लेता है. इसी प्रकार जवान लड़के अपनी कमाई का ध्यान न रखकर हैसियत से अधिक खर्च कर
परेशान हो जाते हैं..

*

रूप धधा के मोर जस, नचली सहरी नार.
गोड़ देख ली छा गइल, घिरना- भागा यार..

*
बाग़-बगीचा जाइ के, खाइल पाकल आम.
साझे के सेनुरिहवा, मीठ लगल बिन दाम..
*
अजबे चम्मक आँखि में, जे पानी हिलकोर.
कनवा राजकुमार के, कथा कहsसु जे लोर..
*
कहतानी नीमन कsथा, जाई बइठि मचान.
ऊभ-चूभ कउआ हंकन, हीरामन कहतान..
*
कँकहि फेरि कज्जर लगा, शीशा देखल बेर.
आपन आँचर सँवारत, पल-पल लगल अबेर..
*
पनघट के रंग अलग बा, आपनपन के ठौर.
निंबुआ अमुआ से मिले, फगुआ अमुआ बौर..
*
खेत हु
रहा खेत क्यों, 'सलिल' सून खलिहान?
सुन सिसकी चौपाल के, पनघट के पहचान..
*
आपन गलती के मढ़े, दूसर पर इल्जाम.
मतलब के दरकार बा, भारी-भरकम नाम..
*
परसउती के दरद के, मर्म न बूझै बाँझ.
दुपहरिया के जलन के, कइसे समझे साँझ?.
*
कौन
के न चिन्हाsइल, मति में परि गै भाँग.
बिना बात के बात खुद, खिचहैं आपन टाँग..
*
अउरत अइसन छ
हँतरी, हुलिया देत बिगाड़.
मरद बनाइल नामरद, करिके तिल के ताड़..
*
भोजपुरी खातिर 'सलिल', जान लड़इहै कौन?
अइसन खाँटी मनख कम, जे करि रइहैं मौन..
*

खाली चौका देखि कै, दिहले चूहा भाग.
चौंकि परा चूल्हा निरख, आपन मुँह में आग..
*
'सलिल' रखे संसार में, सभका खातिर प्रेम.
हर पियास हर किसी की, हर की चाहे छेम..
*
कउनौ  बाधा-विघिन के, आगे मान न हार.
श्रद्धा आ सहयोग के, दम पे उतरल पार..
*
कब आगे का होइ? ई, जो ले जान- सुजान.
समझ-बूझ जेकर नहीं, कहिये है नादान..
*
शशि जी के अनुरोध पर दोहा पर चर्चा के लिये फ़ोरम में दोहे लगाये हैं. इन्हें पढ़कर पाठक इनके अर्थ टिप्पणियों में बताएँ तथा
मात्रा गिनें तो अभ्यास हो सकेगा और वे खुद भी दोहा लिख सकेंगे. मेरा
उद्देश्य खुद लिखना मात्र नहीं अपितु अनेक सिद्ध दोहाकार तैयार करना है. आप
अर्थ बताएँगे तो मैं समझ सकूँगा कि मैंने जिस अर्थ में लिखा वह पाठक तक
पहुँचा या नहीं. संचालक सहयोग कर कोई प्रकाशक खोज सकें तो भोजपुरी में
'दोहा सतसई' प्रकाशित हो. मैं ७०० दोहे रचने का प्रयास करता हूँ. एक
सामूहिक संकलन भी हो हर दोहाकार के १०-१० या १००-१०० दोहे लेकर भी
सतसई बन सकती है. आप सबकी राय क्या है? भोजपुरी के हर साहित्य
प्रेमी के हाथ में श्रेष्ठ साहित्यिक पुस्तक देने से ही भाषा का विकास
होगा. इसी तरह भोजपुरी में ग़ज़ल, गीतिका, हाइकु, गीत आदि के संकलन हों.
मैं हर संभव सहयोग हेतु तत्पर हूँ.

एक काम और हो...भोजपुरी के साहित्यिक गीतों, दोहों का गायन कर यहाँ लगाया
जाये तथा सी.डी. बनें. जब उत्तम गीत नहीं मिलेंगे तो लोग बाजारू ही सुन रहे
हैं. आप सबने पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दी है... अब यहाँ भी अपना मत
उदारता और शीघ्रता से व्यक्त करें. दोहा रचने संबंधी प्रश्न और कठिनाइयाँ
अवश्य सामने लायें.


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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

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भोजपुरी कहावत कोष : संजीव वर्मा 'सलिल'

भोजपुरी कहावत कोष  : संजीव वर्मा 'सलिल'

भोजपुरी मधुर और सरस लोक भाषा है. कहावतें किसी भाषा की जान होती हैं.
कहावतों को लोकोक्ति ( लोक + उक्ति = जन सामान्य द्वारा कही
और उद्दृत किए जानेवाला कथन ) भी कहा जाता है. अंगरेजी में इसे saying, maxim
या phrase
कहते हैं. कहावत का प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है अर्थात कहावत
का वाक्य में प्रयोग किया जाना आवश्यक नहीं है. सिर्फ कहावत कही जाये तो भी
उसका आशय, मतलब या भावार्थ व्यक्त हो जाता है.
मुहावरों (Idioms) का संकलन अलग किया जा रहा है.

हमारा प्रयास देवनागरी वर्णमाला के क्रमानुसार भोजपुरी कहावतों का संचय करना है. जब जो कहावत मिलाती जायेगी उसे यथास्थान जोड़ा जाएगा. आप को जो कहावत या मुहावरा ज्ञात हो वह अवश्य बताइए ताकि
भोजपुरी का विकास हो और उसमें हर विषय और विधा की अभिव्यक्ति हो सके.


१. अँखिया पथरा गइल.

२. अपने दिल से जानी पराया दिल के हाल. 

३. अपने मुँह मियाँ मीठू बा.

४. अबरा के भईंस बिआले कs टोला.

५. अबरा के मेहर गाँव के भौजी.

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१. कोढ़िया डरावे थूक से.
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१. गरीब के मेहरारू सभ के भौजाई.
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१. ढेर जोगी मठ के इजार होले.
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१. पोखरा खनाचे जिन मगर के डेरा.
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१. मुर्गा न बोली त बिहाने न होई.

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क्ष
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त्र
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ज्ञ
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संकलक: संजीव 'सलिल, दिव्यनर्मदा@जीमेल.कॉम

हो गया है की विन्रमता , सदाचार , गुणवत्ता और कार्यकुशलता को महत्व व सम्मान देने का युग जाने क्यों समाप्त

व्यक्ति की विन्रमता , सदाचार , गुणवत्ता और कार्यकुशलता को महत्व व सम्मान देने का युग जाने क्यों समाप्त हो गया है .

हमारे समय का व्यक्ति की विन्रमता , सदाचार , गुणवत्ता और कार्यकुशलता को महत्व व सम्मान देने का युग जाने क्यों समाप्त हो गया है ? आज समाज में चापलूसी , झूठी प्रशंसा ,और अपना मतलब पूरा करने  के लिये किसी भी सीमा तक गिरकर , काम निकालने में निपुण व्यक्ति ही योग्य माना जाता है . उसे टैक्ट फुल कहा जाता है .शासकीय नौकरियों में अनेको ऐसे लोग दिखते हैं जो नौकरी तो सरकारी कर रहे हैं , पर कथित रूप से टैक्टफुल बनकर वे व्यवसाय अपना ही कर रहे हैं , चिकित्सा , शिक्षा व अन्य क्षेत्रों से जुड़े अनेक व्यक्ति अपनी सरकारी नौकरी का अपने निहित हितो के लिये उपयोग करते सहज ही मिल जाते हैं . मन में भले ही हम ऐसे व्यक्तियो की वास्तविकता समझते हुये , पीठ पीछे उनकी निंदा करें , पर अपनी चाटुकारिता के चलते ऐसे लोग लगातार फलीभूत ही होते दिखते हैं , व समाज में सफल माने जाते हैं . इस प्रवृति से शासकीय सेवा के वास्तविक उद्शेश्य ही दिग्भ्रमित हो रहे हैं .

 हमारे समय में कर्तव्य निष्ठ अधिकारी अपने अधीनस्थ की चापलूसी  की बू पाकर उसे झिड़क देते थे , कर्तव्यपरायण , गुणी व्यक्ति की मुक्त कंठ प्रशंसा करते थे , व अपने अधिकारो का उपयोग करते हुये ऐसे व्यक्ति को भरपूर सहयोग देते थे . जनहित के उद्देश्य को प्रमुखता दी जाती थी .

वर्तमान सामाजिक मानसिकता व स्वार्थसिक्त व्यवहारों को देख सुनकर मुझे अपने सेवाकाल के १९५० के दशक के मेरे अधिकारियों के कर्तव्य के प्रति संवेदनशील समर्पण के व्यवहार  बरबस याद आते हें . तब सी पी एण्ड बरार राज्य था , वर्ष १९५० में , मैं अकोला में हिन्दी शिक्षक था . मुझे याद है उस वर्ष ग्रीष्मावकाश १ मई से १५ जून तक था . १६ जून से प्रौढ़ शिक्षा की कक्षायें लगनी थीं . जब १४जून तक मुझे मेरा पदांकन आदेश नहीं मिला तो मैं स्वयं ही अपने कर्तव्य के प्रति जागरूखता के चलते अकोला पहुंच गया व संभागीय शिक्षा अधिक्षक महोदय से सीधे उनके निवास पर सुबह ही मिला , मुझे स्मरण है कि, मुझे देकते ही उन्होंने मेरे आने का कारण पूछा , व यह जानकर कि मुझे पदांकन आदेश नही मिल पाया है , वे अपने साथ  अपनी कार में ही मुझे कार्यालय ले गये , व संबंधित लिपिक को उसकी ढ़ीली कार्य शैली हेतु डांट लगाई , व मुझे तुरंत मेरा आदेश दिलवाया .मेरा व उन अधिकारि का केवल इतना संबंध था कि उन्होंने पिछले दो तीन वर्षो में  ,मेरी कार्य कुशलता , क्षमता व व्यवहार देखा था और अपनी रिपोर्ट में मेरे लिये प्रशंसात्मक टिप्पणियां लिखी थीं . मैं समझता हूं कि शायद आज के परिवेश में कोई अधिकारी यदि इस तरह आगे बढ़कर किसी अधीनस्थ कर्मचारी की मदद करे तो शायद उसकी निष्ठा व ईमानदारी  पर ही लोग खुसुर पुसुर करने लगें . युग व्यवहार में यह परिवर्तन कब और किस तरह आ गया है समझ से परे है .

हमारी पीढ़ी ने लालटेन और ढ़िबरियो के उजाले को चमचमाती बिजली के प्रकाश में बदलते देखा है . पोस्टकार्ड और तार के इंतजार भरे संदेशों को मोबाइल के त्वरित संपर्को में बदलते हम जी रहे हैं .  लम्बी इंतजार भरी थका देने वाली यात्राओ की जगह आरामदेह हवाई यात्राओ से दूरियां सिमट सी गई हैं , हम इसके भी गवाह हैं . मुझे याद है कि १९५० के ही दशक में जब राज्यपाल हमारे मण्डला आने वाले थे तो उनका छपा हुआ टूर प्रोग्राम महीने भर पहले हमारे पास आया था , शायद उसकी एक प्रिंटेड प्रति अब भी मेरे पास सुरक्षित है , अब तो शायद स्वयं राज्यपाल महोदय भी न जानते होंगे कि दो दिन बाद उन्हें कहां जाना पड़ सकता है . भौतिक सुख संसाधनो का विस्तार जितना हमारी पीढ़ी ने अनुभव किया है शायद ही हमसे पहले की किसी पीढ़ी ने किया हो . लड़कियों की शिक्षा के विस्तार से स्त्रियो के जीवन में जो  सकारात्मक क्राति आई है वह स्वागतेय है , पर उनके पहनावे में जैसे पाश्चात्य परिवर्तन हम देख रहे हैं , हमसे पहले की पीढ़ी ने कभी नही देखे होंगे . पर इस सबके साथ यह भी उतना ही कटु सत्य है , जिसे मैं स्वीकार करना चाहता हूं और उस पर गहन क्षोभ व अफसोस व्यक्त करना चाहता हूं कि लोक व्यवहार में जितना सामाजिक नैतिक अधोपतन हमारी पीढ़ी ने देखा है , उतनी तेजी से यह गिरावट  इससे पहले शायद ही कभी हुई  हो .

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव " विदग्ध ", सेवानिवृत प्राध्यापक , प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय , जबलपुर
वरिष्ट कवि , अर्थशास्त्री , व कालिदास के ग्रंथो के हिन्दी पद्यानुवादक
संपर्क      ओ बी ११ . विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर , मो ९४२५८०६२५२

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

कहावत सलिला: १ भोजपुरी कहावतें:

कहावत सलिला: १

भोजपुरी कहावतें:

संजीव 'सलिल'
*
कहावतें किसी भाषा की जान होती हैं. कहावतें कम शब्दों में अधिक भाव व्यक्त करती हैं. कहावतों के गूढार्थ तथा निहितार्थ भी होते हैं. यहाँ भोजपुरी कि कुछ कहावतें दी जा रही हैं. पाठकों से अनुरोध है कि अपने-अपने अंचल में प्रचलित लोक भाषाओँ, बोलियों की कहावतें भावार्थ सहित यहाँ दें ताकि अन्य जन उनसे परिचित हो सकें.

१. अबरा के मेहर गाँव के भौजी.

२. अबरा के भईंस बिआले कs टोला.

३. अपने मुँह मियाँ मीठू बा.

४. अपने दिल से जानी पराया दिल के हाल.

५. मुर्गा न बोली त बिहाने न होई.

६. पोखरा खनाचे जिन मगर के डेरा.

७. कोढ़िया डरावे थूक से.

८. ढेर जोगी मठ के इजार होले.

९. गरीब के मेहरारू सभ के भौजाई.

१०. अँखिया पथरा गइल.

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संकलक: संजीव 'सलिल, दिव्यनर्मदा@जीमेल.कॉम 

निमाड़ी दोहा:

 निमाड़ी दोहा:

संजीव 'सलिल'
पाठकों की सुविधा को ध्यान में रखकर निमाड़ी दोहों का अर्थ दिया जा रहा है. यदि हर भारतवासी देश के विविध भागों में बोली जा रही भाषा-बोली को समझ सके तो राजनैतिक टकराव के स्थान पर साहित्यिक और सामाजिक एकता बलवती होगी. विवाह या आजीविका हेतु अन्य अंचल में जाने पर परायापन नहीं लगेगा.

जिनी वाट मंs झाड नी, उनी वांट की छाँव.
नेह मोह ममता लगन, को नारी छे ठाँव..

जिस राह में वृक्ष हो वहीं छाँह रहती है. नारी में ही स्नेह, मोह, ममता और लगन का निवास होता है अर्थात नारी से ही  स्नेह, मोह, ममता और लगन प्राप्त हो सकती है.
*
घणा  लीम को झाड़ छे, न्यारो देस निमाड़.
धौला रंग कपास को, जंगल नदी पहाड़..

नीम के सघन वृक्ष की तरह मेरा निमाड़ देश भी न्यारा है जिसमें धवल सफ़ेद रंग की कपास (रुई), जंगल, नदी तथा पर्वत शोभ्यमान हैं.
 *
लाल निमाड़ी मिर्च नंs, खूब गिराई गाजs.
पचरंग चूनर सलोणी, अजब अनोखी साजs.

निमाड़ में पैदा होने वाली तीखी सुर्ख लाल मिर्च प्रसिद्ध है. निमाड़ की तीखी लाल मिर्च ने छक्के छुड़ा दिए. पाँच रंगों में सजी सुंदरियों की शोभा ही न्यारी है.
*
पेला-काला रंग की, तोर उड़दया डाल.
हरी मूंग-मक्की मिली, गले- दे रही ताल..

निमाड़ में नरमदा नदी के किनारे झूमती फसलों को देखकर कवि कहता है पीले रंग की तुअर, काले रंग की उड़द तथा हरे रंग की मूंग और मक्का की फसलें खेतों में ताल दे-देकर नाचती हुई प्रतीत हो रही हैं.  *
ज्वारी-रोटो-अमाड़ी,  भाजी ताकत लावs.
नेह नरमदा मंs नहा, खे चल जीवन-नावs..

ज्वार की रोटी, अमाड़ी की भाजी खाकर शरीर शक्तिवां होता है. पारस्परिक भाईचारे रूपी नरमदा में रोज नहाकर आनंदपूर्वक ज़िंदगी बिताओ.
*
आदमी छे पंण मनुस नी, धन नी पंण धनवान.
पाणी छे पंण मच्छ नी, गाँव छे णी हनमान..

यहाँ कवि विरोधाभासों को इंगित करता है. जो आदमी मनुष्य नहीं है वह भी कोई आदमी है. जिसके पास धन नहीं है वह भी धनवान है अर्थात धनवान वास्तव में निर्धन है. जहाँ पानी है पर मछली नहीं है वह व्यर्थ है क्योंकि कुछ न हो तो मछली पकड़-खा कर भूख मिटाई जा सकती है. मछली पानी को स्वच्छ करती है. मछली न होना अर्थात पानी गंदा होना जिसे पिया नहीं जा सकता. अतः वह व्यर्थ है. इसी तरह  जिस गाँव में हनुमान जी का मन्दिर न हो वह भी त्याज्य है क्योंकि हनुमान जी सच्चरित्रता, पराक्रम, संयम, त्याग और समर्पण के पर्याय हैं जहाँ वे न हों वहाँ रहना व्यर्थ है.

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--- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

कुछ मुक्तक : --संजीव 'सलिल'


कुछ मुक्तक

संजीव 'सलिल'
*
मनमानी को जनमत वही बताते हैं.
जो सत्ता को स्वार्थों हेतु भुनाते हैं.
'सलिल' मौन रह करते अपना काम रहो-
सूर्य-चन्द्र क्या निज उपकार जताते हैं?
*
दोस्तों की आजमाइश क्यों करें?
मौत से पहले ही बोलो क्यों मरें..
नाम के ही हैं. मगर हैं साथ जो-
'सलिल' उनके बिन अकेले क्यों रहें?.
*
मौत से पहले कहो हम क्यों मरें?
जी लिए हैं बहुत डर, अब क्यों डरें?
आओ! मधुशाला में तुम भी संग पियो-
तृप्त होकर जग को तरें, हम तरें..
*
दोस्तों की आजमाइश तब करें.
जबकि हो मालूम कि वे हैं खरे..
परखकर खोटों को क्या मिल जायेगा?
खाली से बेहतर है जेबें हों भरे..
*
दोस्तों की आजमाइश वे करें.
जो कसौटी पर रहें खुद भी खरे..
'सलिल' खुद तो वफ़ा के मानी समझ-
बेवफाई से रहा क्या तू परे?
*
क्या पाया क्या खोया लगा हिसाब जरा.
काँटें गिरे न लेकिन सदा गुलाब झरा.
तेरी जेब भरी तो यही बताती है-
तूने बाँटा नहीं, मिला जो जोड़ धरा.
*

बाल कविता: संजीव 'सलिल'

बाल कविता
 
संजीव 'सलिल'

अंशू-मिंशू दो भाई हिल-मिल रहते थे हरदम साथ.
साथ खेलते साथ कूदते दोनों लिये हाथ में हाथ..
 

अंशू तो सीधा-सादा था, मिंशू था बातूनी.
ख्वाब देखता तारों के, बातें थीं अफलातूनी..


एक सुबह दोनों ने सोचा: 'आज करेंगे सैर'.
जंगल की हरियाली देखें, नहा, नदी में तैर..
 

अगर बड़ों को बता दिया तो हमें न जाने देंगे,
बहला-फुसला, डांट-डपट कर नहीं घूमने देंगे..
 

छिपकर दोनों भाई चल दिये हवा बह रही शीतल.
पंछी चहक रहे थे, मनहर लगता था जगती-तल..
 

तभी सुनायी दीं आवाजें, दो पैरों की भारी.
रीछ दिखा तो सिट्टी-पिट्टी भूले दोनों सारी..
 

मिंशू को झट पकड़ झाड़ पर चढ़ा दिया अंशू ने.
'भैया! भालू इधर आ रहा' बतलाया
मिंशू  ने..
 

चढ़ न सका अंशू ऊपर तो उसने अकल लगाई.
झट ज़मीन पर लेट रोक लीं साँसें उसने भाई..
 

भालू आया, सूँघा, समझा इसमें जान नहीं है.
इससे मुझको कोई भी खतरा या हानि नहीं है..
 

चला गए भालू आगे, तब मिंशू उतरा नीचे.
'चलो उठो कब तक सोओगे ऐसे आँखें मींचें.'
 

दोनों भाई भागे घर को, पकड़े अपने कान.
आज बचे, अब नहीं अकेले जाएँ मन में ठान..
 

धन्यवाद ईश्वर को देकर, माँ को सच बतलाया.
माँ बोली: 'संकट में धीरज काम तुम्हारे आया..
 

जो लेता है काम बुद्धि से वही सफल होता है.
जो घबराता है पथ में काँटें अपने बोता है..
 

खतरा-भूख न हो तो पशु भी हानि नहीं पहुँचाता.
मानव दानव बना पेड़ काटे, पशु मार गिराता..'
 

अंशू-मिंशू बोले: 'माँ! हम दें पौधों को पानी.
पशु-पक्षी की रक्षा करने की मन में है ठानी..'
 

माँ ने शाबाशी दी, कहा 'अकेले अब मत जाना.
बड़े सादा हितचिंतक होते, अब तुमने यह माना..'

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सामयिक दोहे: -संजीव 'सलिल'


सामयिक दोहे:

संजीव 'सलिल'

झूठा है सारा जगत , माया कहते संत.
सार नहीं इसमें तनिक, और नहीं कुछ तंत..

झूठ कहा मैंने जिसे, जग कहता है सत्य.
और जिसे सच मानता, जग को लगे असत्य..

जीवन का अभिषेक कर, मन में भर उत्साह.
पायेगा वह सभी तू, जिसकी होगी चाह..

झूठ कहेगा क्यों 'सलिल', सत्य न उसको ज्ञात?
जग का रचनाकार ही, अब तक है अज्ञात..

अलग-अलग अनुभव मिलें, तभी ज्ञात हो सत्य.
एक कोण से जो दिखे, रहे अधूरा सत्य..

जो मन चाहे वह कहें, भाई सखा या मित्र.
क्या संबोधन से कभी, बदला करता चित्र??

नेह सदा मन में पले, नाता ऐसा पाल.
नेह रहित नाता रखे, जो वह गुरु-घंटाल..

कभी कहें कुछ पंक्तियाँ, मिलना है संयोग.
नकल कहें सोचे बिना, कोई- है दुर्योग..

असल कहे या नक़ल जग, 'सलिल' न पड़ता फर्क.
कविता रचना धर्म है, मर्म न इसका तर्क..

लिखता निज सुख के लिए, नहीं दाम की चाह.
राम लिखाते जा रहे, नाम उन्हीं की वाह..

भाव बिम्ब रस शिल्प लय, पाँच तत्त्व ले साध.
तुक-बेतुक को भुलाकर, कविता बने अगाध..

छाँव-धूप तम-उजाला, रहते सदा अभिन्न.
सतुक-अतुक कविता 'सलिल', क्यों माने तू भिन्न?

सीधा-सादा कथन भी, हो सकता है काव्य.
गूढ़ तथ्य में भी 'सलिल', कविता है संभाव्य..

सम्प्रेषण साहित्य की, अपरिहार्य पहचान.
अन्य न जिसको समझता, वह कवि हो अनजान..

रस-निधि हो, रस-लीन हो, या हो तू रस-खान.
रसिक काव्य-श्रोता कहें, कवि रसज्ञ गुणवान..

गद्य-पद्य को भाव-रस, बिम्ब बनाते रम्य.
शिल्प और लय में रहे, अंतर नहीं अगम्य..

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बुधवार, 21 अप्रैल 2010

दोहे का रंग, अंगिका के संग: संजीव 'सलिल'

(अंगिका बिहार के अंग जनपद की भाषा, हिन्दी का एक लोक भाषिक रूप)

काल बुलैले केकरs, होतै कौन हलाल?
मौन अराधे दैव कै, ऐतै प्रातः काल..

मौज मनैतै रात-दिन, होलै की कंगाल.
साथ न आवै छाँह भी, आगे कौन हवाल?.

एक-एक के खींचतै, बाल- पकड़ लै खाल.
नीन नै आवै रात भर, पलकें करैं सवाल..

कौन हमर रक्षा करै, मन में 'सलिल' मलाल.
केकरा से बिनती करभ, सभ्भई हवै दलाल..

धूल झोंक दें आँख में, कज्जर लेंय निकाल.
जनहित के नाटक रचैं, नेता निगलें माल..

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नव गीत: जीवन की जय बोल..... --संजीव 'सलिल'


*
जीवन की
जय बोल,
धरा का दर्द
तनिक सुन...
           तपता सूरज
           आँख दिखाता,
           जगत जल रहा.
           पीर सौ गुनी
           अधिक हुई है,
            नेह गल रहा.
हिम्मत
तनिक न हार-
नए सपने
फिर से बुन...
             निशा उषा
             संध्या को छलता
             सुख का चंदा.
             हँसता है पर
             काम किसी के
             आये न बन्दा...
सब अपने
में लीन,
तुझे प्यारी
अपनी धुन...
            महाकाल के
            हाथ जिंदगी
           यंत्र हुई है.
           स्वार्थ-कामना ही
           साँसों का
           मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर,
रहे न हावी
कर कुछ
सुन-गुन...

रविवार, 18 अप्रैल 2010

विजयशंकर चतुर्वेदी









विवेकरंजन श्रीवास्तव



दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट रसरंग में 18.04.2010 के अंक में हमारी कवर स्टोरी बिजली को लेकर छपी है ...., ब्लाग पाठको के लिये उसके अंश प्रस्तुत है ...




कुछ को बिजली बाकी को झटका



कवरस्टोरी: विजयशंकर चतुर्वेदी साथ में विवेकरंजन श्रीवास्तव




भारत में बिजली ही एक ऐसी चीज़ है जिसमें मिलावट नहीं हो सकती. और अगर यह कहा जाए कि बिजली की शक्ति से ही विकास का पहिया घूम सकता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. भारत के ऊर्जा मंत्रालय ने राष्ट्रीय विद्युत् नीति के तहत २०१२ तक 'सबके लिए बिजली' का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है. इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पीएम डॉक्टर मनमोहन सिंह ने ४ अप्रैल २००५ को राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना का शुभारम्भ किया था ताकि भारत में ग्रामीण स्तर पर भी विद्युत् ढाँचे में सुधार हो सके और गाँवों के सभी घर, गलियाँ, चौबारे, मोहल्ले बिजली की रोशनी से जगमगाने लगें. लेकिन वास्तविकता यह है कि बिना मिलावट की यह चीज़ सबको उपलब्ध कराने का सपना साकार करने के लिए साल २०१२ के आखिर तक ७८५०० मेगावाट अतिरिक्त बिजली के उत्पादन की जरूरत होगी जो आज की स्थिति देखते हुए सचमुच एक सपना ही लगता है. भारत के ऊर्जा योजनाकारों का अनुमान है कि अगर भारत की मौजूदा ८ प्रतिशत सालाना विकास दर जारी रही तो अगले २५ वर्षों में बिजली का उत्पादन ७ गुना बढ़ाना पड़ेगा. इसका अर्थ है कि नए विद्युत् स्टेशनों तथा ट्रांसमीशन लाइनों पर ३०० बिलियन डॉलर का खर्च करना होगा. इस सूरत-ए-हाल में 'सबके लिए बिजली' जब जलेगी तो देखेंगे, फिलहाल हकीकत यह है कि मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में बारहों महीने १० से १२ घंटे प्रतिदिन बिजली कटौती आम बात है. गर्मियों में लोग और भी बेहाल हो जाते हैं. बिजली के अभाव में पंखे, कूलर और रेफ्रीजिरेटर बंद पड़े रहते हैं और छोटे-छोटे बच्चे तड़पते रहते हैं. मोटर पम्प बंद पड़े रहते हैं और सिंचाई नहीं हो पाती. फसलें खलिहानों में पड़ी रहती हैं क्योंकि थ्रेशर बिना बिजली के चलता नहीं है. यहाँ तक कि लोग अनाज पिसवाने के लिए रातों को जागते हैं क्योंकि चक्कियां रात में कभी बिजली आ जाने पर ही जागती हैं. शादियों के मंडप सजे रहते हैं और दूल्हा-दुल्हन के साथ बाराती-घराती बिजली रानी के आने की बाट जोहते रहते हैं!



बिजली कटौती के मामले में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक समाजवाद है. खुद डॉक्टर मनमोहन सिंह को योजना आयोग की एक बैठक में कहना पड़ा था- 'पावर सेक्टर का सबसे बड़ा अभिशाप इसके ट्रांसमीशन एवं डिस्ट्रीब्यूशन में होने वाली भारी क्षति है, जो कुल उत्पादित बिजली का लगभग ४० प्रतिशत बैठती है. कोई सभ्य समाज अथवा व्यावसायिक इकाई इतने बड़े पैमाने पर क्षति उठाकर चल नहीं सकती.' उनके ही तत्कालीन ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने संसद में दुखड़ा रोया था- 'उपलब्ध बिजली का लगभग ७० प्रतिशत सही मायनों में बिक्री हो पाता है. बाकी लगभग ३० प्रतिशत बिजली की विभिन्न कारणों से बिलिंग ही नहीं हो पाती.' लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि इन विभिन्न कारणों में एक बड़ा रोग बिजली चोरी का भी है.




. यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि एशिया की एक और उभरती महाशक्ति चीन में बिजली चोरी मात्र ३ प्रतिशत के आसपास होती है जबकि भारत में ३० प्रतिशत से अधिक बिजली बेकार हो जाती है! बिजली चोरी के मामले में उद्योग जगत काफी आगे है. १७ जुलाई २००८ को मुंबई में 'इकोनोमिक टाइम्स' ने खबर छापी थी कि महाराष्ट्र की बिजली वितरण इकाई 'महावितरण' ने नवी मुंबई के आसपास एलएंडटी इन्फोटेक, जीटीएल, फ़ाइज़र इंडिया, कोरेस तथा अन्य कई बड़ी कंपनियों को उच्च दाब वाली विद्युत लाइन से लाखों की बिजली की चोरी करते पकड़ा था. इन पर बिजली अधिनियम, २००३ की धारा १२६ एवं १३५ के तहत मामले भी दर्ज़ किये गए. इसी तरह मध्य गुजरात वीज कोर्पोरेशन कंपनी लिमिटेड के उड़नदस्ता ने एक पूर्व सांसद रहे गुजरात स्टेट फर्टीलाइज़र्स एंड केमिकल्स लिमिटेड के चेयरमैन जेसवानी से बिजली चोरी के इल्जाम में ९० हजार रुपयों का जुर्माना वसूला था. देश भर में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं. _______________________




बिजली की मौजूदा उपलब्धता पर नज़र डालें तो आज पीक विद्युत डिमांड १०८८६६ मेगावाट उत्पादन की होती है, जबकि सारे प्रयासों के बावजूद ९०७९३ मेगावाट विद्युत ही उत्पादित की जा रही है. स्पष्ट है कि १६.६ प्रतिशत की पीक डिमांड शार्टेज बनी हुई है. आवश्यक बिजली को यूनिट में देखें तो कुल ७३९ हजार किलोवाट अवर यूनिट की जगह केवल ६६६ हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली ही उपलब्ध हो पा रही है. एक अनुमान के अनुसार वर्ष २०११-१२ तक १०३० हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली की जरूरत होगी जो वर्ष २०१६-१७ में बढ़कर १४७० हजार किलोवाट अवर यूनिट हो जायेगी. वर्ष २०११-१२ तक पीक डिमांड के समय १५२००० मेगावाट बिजली उत्पादन की आवश्यकता अनुमानित है जो वर्ष २०१६-१७ अर्थात १२वीं पंचवर्षीय योजना में बढ़कर २१८२०० मेगावाट हो जायेगी . दिनों दिन बढ़ती जा रही इस भारी डिमांड की पूर्ति के लिए आज देश में बिजली का उत्पादन मुख्य रूप से ताप विद्युत गृहों से हो रहा है. देश में कुल विद्युत उत्पादन की क्षमता १४६७५२.८१ मेगावाट है, जिसमें से ९२८९२.६४ मेगावाट कोयला, लिगनाइट व तेल आधारित विद्युत उत्पादन संयंत्र हैं. अर्थात कुल स्थापित उत्पादन का ६३.३ प्रतिशत उत्पादन ताप विद्युत के रूप में हो रहा है. इसके अलावा ३६४९७.७६ मेगावाट उत्पादन क्षमता के जल विद्युत संयंत्र स्थापित हैं, जो कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का २४.८७ प्रतिशत हैं. अपारम्परिक ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, विंड पावर, टाइडल पावर आदि से भी व्यवसायिक विद्युत के उत्पादन के व्यापक प्रयास हो रहे हैं लेकिन देश में मात्र ९ प्रतिशत विद्युत उत्पादन इन तरीकों से हो पा रहा है. वर्तमान विद्युत संकट से निपटने का एक बड़ा कारगर तरीका परमाणु विद्युत का उत्पादन है. लेकिन वर्तमान में हमारे देश में मात्र ४१२० मेगावाट बिजली ही परमाणु आधारित संयंत्रों से उत्पादित हो रही है. यह देश की विद्युत उत्पादन क्षमता का मात्र २.८१ प्रतिशत ही है जो कि एक संतुलित विद्युत उत्पादन माडल के अनुरूप अत्यंत कम है. लेकिन सिर्फ उत्पादन बढ़ाने से काम नहीं चलनेवाला.



हमारे देश में एक समूची पीढ़ी को मुफ्त बिजली के उपयोग की आदत पड़ गई है. हालत यह है कि दिल्ली को बिजली चोरी के मामले में पूरी दुनिया की राजधानी कहा जाता है. लोग बिजली को हवा, धूप और पानी की तरह ही मुफ्त का माल समझ कर दिल-ए-बेरहम करने लगे हैं. अक्सर हम देखते हैं कि गांवों और कस्बों में बिजली के ज्यादातर खम्भे अवैध कनेक्शनों की वजह से 'क्रिसमस ट्री' बने नजर आते हैं. मध्य-वर्ग के लोगों का प्रिय शगल है मीटर से छेड़छाड़. बिजली का बिल कम करने के इरादे से वे मीटर के साथ तरह-तरह के प्रयोग करने में माहिर हो चुके हैं. औद्योगिक इकाइयों में बिजली चोरी बड़े पैमाने पर होती है. कई बार इसमें खुद बिजली विभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों की मिलीभगत भी पायी जाती है. यह दुखद स्थिति है. केवल कानून बना देने से और उसके सीधे इस्तेमाल से भी बिजली चोरी की विकराल समस्या हल नहीं हो सकती. हमारे जैसे लोकतांत्रिक जन कल्याणी देश में वही कानून प्रभावी हो सकता है जिसे जन समर्थन प्राप्त हो. आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चँद्रबाबू नायडु ने दृढ़ इच्छा शक्ति से बिजली चोरी के विरूद्ध देश में सर्वप्रथम कड़े कदम उठाये. इससे किंचित बिजली चोरी भले ही रुकी हो पर जनता ने उन्हें चुनाव में चित कर दिया. मध्य प्रदेश सहित प्रायः अधिकाँश राज्यों में विद्युत वितरण कम्पनियों ने विद्युत अधिनियम २००३ की धारा १३५ के अंर्तगत बिजली चोरी के अपराध कायम करने के लिये उड़नदस्तों का गठन किया है. पर जन शिक्षा के अभाव में इन उड़नदस्तों को जगह-जगह नागरिकों के गहन प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है. अवैध कनेक्शन काटने तथा बिजली के बिल वसूलने के रास्ते में स्थानीय नेतागिरी, मारपीट, गाली गलौज, झूठे आरोप एक आम समस्या हैं. आज बिजली के बगैर जनता का जीवन चल सकता है न देश का विकास संभव है. अगर पम्प चलाना है तो बिजली चाहिए और कम्प्यूटर लगाना है तो बिजली चाहिए. बिजली बिना सब सून है. लेकिन बिजली की डिमांड और सप्लाई में जमीन-आसमान का अंतर है. कहीं बिजली कनेक्शन है तो बिजली के उपकरण नहीं हैं. कहीं उपकरण हैं तो वोल्टेज नहीं है.


ऐसी स्थिति में बिजली क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. निवेश बढ़ाने के हर संभव यत्न करने होंगे. नये बिजली घरों की स्थापना जरुरी है. बिजली चोरी पर पूर्ण नियंत्रण के हर संभव प्रयत्न करने पड़ेंगे. इसके लिये आम नागरिकों को साथ लेने के साथ-साथ नवीनतम तकनीक का उपयोग करना होगा. एक मन से हारी हुई सेना से युद्ध जीतने की उम्मीद करना बेमानी है. यदि बिजली विभाग के कर्मचारियों को अपना स्वयं का भविष्य ही अंधकारपूर्ण दिखेगा तो वे हमें रोशनी कहाँ से देंगे. उनका विश्वास जीतकर बिजली सेक्टर में फैला अन्धकार मिटाया जा सकता है.


विकसित देशों में किसी क्षेत्र के विकास को तथा वहां के लोगों के जीवन स्तर को समझने के लिये उस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत को भी पैमाने के रूप में उपयोग किया जाता है. हज़ार वाट का कोई उपकरण यदि १ घण्टे तक लगातार बिजली का उपयोग करे तो जितनी बिजली व्यय होगी उसे किलोवाट अवर या १ यूनिट बिजली कहा जाता है. आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में प्रति व्यक्ति विद्युत की खपत १४५३१ यूनिट प्रति वर्ष है, जबकि यही आंकड़ा जापान में ८६२८ यूनिट प्रति व्यक्ति, चीन में १९१० प्रति व्यक्ति है. किन्तु हमारे देश में बिजली की खपत मात्र ६३१ यूनिट प्रति व्यक्ति है. दुनिया में जितनी बिजली बन रही है उसका केवल ४ प्रतिशत ही हमारे देश में उपयोग हो रहा है. अतः हमारे देश में बिजली की कमी और इस क्षेत्र में व्यापक विकास की संभावनाएँ स्वतः ही समझी जा सकती हैं. तौबा ये बिजली की चाल जनरेटर से बिजली का उत्पादन बहुत कम वोल्टेज पर होता है पर चूंकि कम वोल्टेज पर बिजली के परिवहन में उसकी पारेषण हानि बहुत ज्यादा होती है अतः बिजली घर से उपयोग स्थल तक बिजली के सफर के लिये इसे स्टेप अप ट्रांसफार्मर के द्वारा, अतिउच्चदाब में परिवर्तित कर दिया जाता है. बिजली की भीमकाय लाइनों, उपकेंद्रों से ८०० किलोवोल्ट, ४०० किलोवोल्ट, २२० किलोवोल्ट, १३२ किलोवोल्ट में स्टेप अप-डाउन होते हुये निम्नदाब बिजली लाइनों ३३ किलोवोल्ट, ११ किलोवोल्ट, ४४० वोल्ट और फिर अंतिम रूप में २२० वोल्ट में परिवर्तित होकर एक लंबा सफर पूरा कर बिजली आप तक पहुँचती है. बिजली और क़ानून हमारी संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार बिजली केंद्र व राज्य की संयुक्त व्यवस्था का विषय है. विद्युत प्रदाय अधिनियम १९१० व १९४८ को एकीकृत कर संशोधित करते हुये वर्ष २००३ में एक नया कानून विद्युत अधिनियम के रूप में लागू किया गया है. इसके पीछे आधारभूत सोच बिजली कम्पनियों को ज्यादा जबाबदेह, उपभोक्ता उन्मुखी, स्पर्धात्मक बनाकर, वैश्विक वित्त संस्थाओं से ॠण लेकर बिजली के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना है. नये विद्युत अधिनियम के अनुसार विद्युत नियामक आयोगों की राज्य स्तर पर स्थापना की गई है. ये आयोग राज्य स्तर पर विद्युत उपभोग की दरें तय कर रहे हैं. ये दरें शुद्ध व्यावसायिक आकलन पर आधारित न होकर कृषि, घरेलू, व्यवसायिक, औद्योगिक आदि अलग-अलग उपभोक्ता वर्गों हेतु विभिन्न नीतियों के आधार पर तय की जाती हैं. ब्यूरो ऑफ़ इनर्जी एफिशियेंसी उपभोक्ता उपयोग के उपकरणों की विद्युत संरक्षण की दृष्टि से स्टार रेटिंग कर रही है.




इलेक्ट्रिसिटी एक्ट २००३ की धारा १३५ व १३८ के अंतर्गत बिजली चोरी को सिविल व क्रिमिनल अपराध के रूप में कानूनी दायरे में लाया गया है. बिजली चोरी और सज़ा साल २००५ के दौरान चीन के फुजियान प्रांत में एक इलेक्ट्रीशियन नागरिकों, कंपनियों तथा रेस्तराओं को बिजली चोरी करने में मदद करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था. अदालत ने पाया कि उसने लगभग २९९८९ डॉलर मूल्य की बिजली चोरी करने में मदद की है. उसे १० साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गयी तथा स्थानीय पुलिस ने बिजली चुराने वालों से हर्जाना अलग से वसूल किया. जबकि भारत के बिजली अधिनियम में बिजली चोरों को अधिकतम ३ वर्ष की सज़ा या जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है।

Vijayshankar Chaturvedi (Poet-Journalist)



एवं


इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव


ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र.

मानसेवी सचिव ,

विकास (पंजीकृत सामाजिक संस्था, पंजीकरण क्रमांक j m 7014 dt. 14.08.2003 ) email vivek1959@yahoo.co.in

म. प्र. में ग्रामीण फीडर विभक्तिकरण की महत्वपूर्ण योजना विवेक रंजन श्रीवास्तव

म. प्र. में ग्रामीण फीडर विभक्तिकरण की महत्वपूर्ण योजना

विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर
ओ बी ११ , म.प्र. राज्य विद्युत मण्डल , रामपुर , जबलपुर

बिजली की अद्भुत आसमानी शक्ति को मनुष्य ने आकाश से धरती पर क्या उतारा , बिजली ने इंसान की समूची जीवन शैली ही बदल दी है .अब बिना बिजली के जीवन पंगु सा हो जाता है .भारत में विद्युत का इतिहास १९ वीं सदी से ही है , हमारे देश में  कलकत्ता में पहली बार बिजली का सार्वजनिक उपयोग प्रकाश हेतु  किया गया था .

आज  बिजली के प्रकाश में रातें भी दिन में परिर्वतित सी हो गई  . सोते जागते , रात दिन , प्रत्यक्ष या परोक्ष , हम सब आज बिजली पर आश्रित हैं . प्रकाश , ऊर्जा ,पीने के लिये व सिंचाई के लिये पानी ,जल शोधन हेतु ,  शीतलीकरण, या वातानुकूलन के लिये ,स्वास्थ्य सेवाओ हेतु , कम्प्यूटर व दूरसंचार सेवाओ हेतु ,  गति, मशीनों के लिये ईंधन ,प्रत्येक कार्य के लिये एक बटन दबाते ही ,बिजली अपना रूप बदलकर तुरंत हमारी सेवा में हाजिर हो जाती है .
रोटी ,कपडा व मकान जिस तरह जीवन के लिये आधारभूत आवश्यकतायें हैं , उसी तरह बिजली , पानी व संचार अर्थात सडक व कम्युनिकेशन देश के औद्योगिक विकास की मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चरल जरूरतें है . इन तीनों में भी बिजली की उपलब्धता आज सबसे महत्व पूर्ण है .
फीडर विभक्तिकरण योजना की आवश्यकता क्यों?

वर्तमान परिदृश्य में , शहरों में अपेक्षाकृत घनी  आबादी होने के कारण गांवो की अपेक्षा शहरों में  अधिक विद्युत आपूर्ति बिजली कंपनियो द्वारा की जाने की विवशता होती है .पर इसके दुष्परिणाम स्वरूप गांवो से शहरो की ओर पलायन बढ़ रहा है . है अपना हिंदुस्तान कहाँ ? वह बसा हमारे गांवों में ....विकास का प्रकाश बिजली के तारो से होकर ही आता है . स्वर्णिम मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री जी की महत्वाकांक्षी परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिये गांवो में भी शहरो की ही तरह  ग्रामीण क्षेत्रों के घरेलू उपभोक्ताओं को भी विद्युत प्रदाय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रदेश में फीडर विभक्तिकरण की महत्वाकांक्षी समयबद्ध योजना लागू की गई है। कुछ प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं

१ गांवों में सतत विद्युत प्रवाह सुनिश्चित करने हेतु
२ शहरी व ग्रामीण क्षेत्रो में समान विद्युत प्रदाय बनाये रखने हेतु
३ वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में अनिश्चित विद्युत प्रदाय की स्थितियों से उपजते जन असंतोष को दूर करने हेतु
४ सिंचाई की बिजली की दरों में बड़ी सब्सिडी के चलते उसका दुरुपयोग रोकने  हेतु
५ भूजल के निरंतर असंयमित दोहन पर नियंत्रण हेतु
६ ग्रामीण पेयजल योजनाओ को सुनिश्चित विद्युत आपूर्ति हेतु
७ खेती के कार्यों हेतु नियत समय पर नियमित बिजली के प्रदाय को सुनिश्चित करने हेतु
८ ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा केंद्रों में बिजली की सुनिश्चित आपुर्ति बनाये रखने हेतु

म.प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी के अंतर्गत फीडर विभक्तिकरण योजना में निम्नानुसार प्रावधान किये गये हैं

१  २३०२६ गांवो में फीडर विभक्तिकरण योजना प्रस्तावित है
२ कुल १७६१ फीडर बनाये जाने हैं
३ ११ किलोवोल्ट की लगभग ४४०००किलोमीटर नई लाइनो का निर्माण किया जाना है
४ कुल लगभग ३४०००वितरण ट्रंस्फारमर स्थापित किये जाने हैं
५ लगभग २८००० किलोमीटर निम्नदाब विद्युत लाइनों का केबलीकरण किया जाना है
६ वरत्मान में इस समूची योजना का आंकलित व्यय १९८४ करोड़ रुपये है

फीडर विभक्तिकरण योजना से लाभ
१ गांवों के व्यापारिक , औद्योगिक  विकास को तीव्र गति मिलेगी
२ गांवों में नवीनतम चिकत्सकीय संसाधन स्थापित किये जा सकेंगे
३ गांवों में  शैक्षिक क्राति आ सकेगी
४ ई गवर्नेंस की दिशा में हमारे गांव भी शहरो के साथ साथ बढ़ सकेंगे
५ इंटरनेट व अन्य सूचना संसाधनो से गांव भी वैश्विक स्तर पर जुड़ सकेगे
६ बिजली आपूर्ति में किसी तकनीकी व्यवधान होने पर शीघ्रता से बिजली बहाल की जा सकेगी
७ विद्युत संरक्षण के प्रयासो को बढ़ावा मिलेगा
८ सुनिश्चित विद्युत आपूर्ति से कम्प्यूटर के बैंकिंग , पोस्टआफिस , रेलरिजर्वेशन आदि कार्यो हेतु उपयोग में बढ़ावा मिलेगा , जिससे अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकेगी
९ गांवों में जीवन स्तर में सुधार होगा जिससे शहरो की ओर पलायन रुक सकेगा
१० विद्युत प्रदाय संस्थाओ के राजस्व में वृद्धि हो सकेगी
११ गांवो में कानून व प्रशासन की बेहतर स्थिति बन सकेगी
१२ ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा
१३ बेहतर  गुणवत्ता  की विद्युत व्यवस्था पम्प व अन्य वैद्युत उपकरणो के रखरखाव पर होने वाले व्यय में कमी लायेगी
१४ मोबाइल , फोन , पीसीओ आदि संचार संसाधनो का ग्रामीण क्षेत्रो में तेजी से विकास होगा

  राज्य शासन का लक्ष्य है कि 2013 तक जहां प्रदेश स्वर्णिम प्रदेश के रूप में स्थापित होगा, वहीं बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होगा।  फीडर विभक्तिकरण योजना के अन्तर्गत ग्रामीण कृषि पम्प उपभोक्ताओं एवं ग्रामीण घरेलू उपभोक्ताओं को अलग अलग फीडरों से गुणवत्तापूर्ण एवं सतत विद्युत प्रदाय किया जावेगा।  विद्युत तंत्र हमारी सुख सुविधा का साधन है, उसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल जरूरी हैं । यह सार्वजनिक हित का साझा संसाधन है , अतः हर यूनिट बिजली का समुचित उपयोग हो सके, इसी दिशा में फीडर विभक्तिकरण परियोजना एक मील का पत्थर प्रमाणित होगी .


अमिताभ श्रीवास्तव का किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना में चयन

अमिताभ श्रीवास्तव का किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना में चयन

भारत सरकार के विज्ञान और तकनीकी विभाग द्वारा प्रायोजित किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना का मुख्य उद्देश्य शोध कार्यो में रुचि रखने वाले छात्रों को प्रोत्साहित करना है।इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस बैंगलोर द्वारा आज घोषित इस वर्ष के परिणामो में नगर के क्राइस्ट चर्च बायज स्कूल के छात्र अमिताभ श्रीवास्तव का चयन पूरे देश से लिखित परीक्षा के बाद साक्षात्कार के द्वारा अंतिम रूप से बेसिक साइंस की फैलोशिप हेतु चुने गये २१५ बच्चो में किया गया हैं .

अमिताभ श्रीवास्तव , शिक्षाविद प्रो. सी.बी श्रीवास्तव के नाती व म. प्र. राज्य विद्युत मण्डल जबलपुर में अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर सिविल श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव व श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव के सुपुत्र हैं .अमिताभ अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता पिता व अपने शिक्षको को देते हैं . बचपन से ही मेधावी अमिताभ को एन टी एस ई की राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पहले से ही मिल रही है .

ओलम्पियाड फाउण्डेशन द्वारा आयोजित साइंस ओलंपियाड , मैथ्स ओलम्पियाड, व साइबर ओलम्पियाड में भी अमिताभ को राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम १०० छात्रो में स्थान मिला है .अमिताभ ने अपनी कक्षा ८ तक की पढ़ाई मोण्टफोर्ट स्कूल मण्डला से की है . बेसिक साइंस, इंजीनियरिंग और मेडिकल साइंस की पढाई करने वाले छात्र किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना का लाभ उठा सकते हैं। किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना को तीन भागों में बांटा गया है -प्रथम बेसिक साइंस के छात्र, द्वितीय इंजीनियरिंग के छात्र और तृतीय मेडिकल साइंस के छात्र। बेसिक साइंस के छात्रों का चयन भी तीन भागों में बांट कर किया जाता है, जिनमें प्रथम कक्षा 10 की परीक्षा पास किए छात्र, द्वितीय बीएससी और एमएससी इंटिग्रेटेड के प्रथम और तृतीय वर्ष के छात्र तथा तृतीय एमएससी और एमएससी इंटिग्रेटेड के चतुर्थ और पांचवें वर्ष के छात्र इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। भारत सरकार की इस योजना के तहत छात्र को ४000 से ७000 रुपये प्रति माह तक फेलोशिप प्रदान की जाती है।


किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना का लाभ केवल भारत में पढने वाले भारतीय छात्र ही उठा सकते हैं। बेसिक साइंस के तहत इस योजना का लाभ उठाने के लिए दसवीं में गणित और विज्ञान विषय में न्यूनतम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त होना अनिवार्य है। अनुसूचित जाति-जनजाति के छात्रों को 65 प्रतिशत अंक आवश्यक है, जो छात्र विज्ञान विषय के साथ ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं, वे भी इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं। बीएससी प्रथम वर्ष और एमएससी इंटिग्रेटेड के द्वितीय वर्ष के छात्र, जिन्होंने बारहवीं में 60 प्रतिशत अंक प्राप्त किया हो, वे भी आवेदन कर सकते हैं। तृतीय 11वीं और 12वीं में अध्ययनरत छात्र, जो किसी भी अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम में शामिल हों, वे भी आवेदन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इंजीनियरिंग के वे छात्र, जो बीई/ बीटेक/ बीआर्क के प्रथम वर्ष में हैं, जिन्होंने बारहवीं की परीक्षा में कम-से-कम 60 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों, वे भी आवेदन के पात्र होते हैं। इस योजना में बेसिक साइंस के छात्रों का चयन लिखित परीक्षा के आधार पर होता है।राष्ट्रीय स्तर पर लिखित परीक्षा में चयनित छात्रों को साक्षात्कार हेतु बुलाया जाता है , जहां विषय विशेषज्ञ विज्ञान के प्रति अभिरुचि का गहन परीक्षण कर अंतिम चयन करते हैं . इंजीनियरिंग और मेडिकल के छात्र के चयन का मुख्य आधार छात्र का प्रोजेक्ट रिपोर्ट होता है। इस योजना के तहत प्रत्येक फेलोशिप के लिए अलग-अलग आवेदन पत्र भरना होता है।यह परीक्षा इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस बैंगलोर के द्वारा प्रति वर्ष आयोजित की जाती है . अमिताभ को उसके साथियो , शिक्षको ने इस राष्ट्रीय उपलब्धि पर बधाई दी है .

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

दोहे आँख के... संजीव 'सलिल'

कही कहानी आँख की, मिला आँख से आँख.
आँख दिखाकर आँख को, बढ़ी आँख की साख..

आँख-आँख में डूबकर, बसी आँख में मौन.
आँख-आँख से लड़ पड़ी, कहो जयी है कौन?

आँख फूटती तो नहीं, आँख कर सके बात.
तारा बन जा आँख का, 'सलिल' मिली सौगात..

कौन किरकिरी आँख की, उसकी ऑंखें फोड़.
मिटा तुरत आतंक दो, नहीं शांति का तोड़..

आँख झुकाकर लाज से, गयी सानिया पाक.
आँख झपक बिजली गिरा, करे कलेजा चाक..

आँख न खटके आँख में, करो न आँखें लाल.
काँटा कोई न आँख का, तुम से करे सवाल..

आँख न खुलकर खुल रही, 'सलिल' आँख है बंद.
आँख अबोले बोलती, सुनो सृजन के छंद..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

छत्तीसगढ़ी में दोहा: --संजीव 'सलिल'

छत्तीसगढ़ी में दोहा:

 --संजीव 'सलिल'

हमर देस के गाँव मा, सुन्हा सुरुज विहान.
अरघ देहे बद अंजुरी, रीती रोय  किसान..

जिनगानी के समंदर, गाँव-गँवई के रीत.
 जिनगी गुजरत हे 'सलिल', कुरिया-कुंदरा मीत..

महतारी भुइयाँ असल, बंदत हौं दिन-रात.
दाई! पैयाँ परत हौं. मूंडा पर धर हात..

जाँघर तोड़त सेठ बर, चिथरा झूलत भेस.
मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस..

बाँग देही कुकराकस, जिनगी बन के छंद.
कुररी कस रोही 'सलिल', मावस दूबर चंद..

****************
divyanarmada.blogspot.com

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

लिमटी खरे को 'संवाद सम्मान '
(शुक्रवार /09 अप्रैल 2010 / नई दिल्ली / मीडिया मंच )
 

चिट्ठाकारी सामाजिक चेतना को नए आयाम देने का कार्य अहर्निश कर रही है. सामाजिक चेतना के इस नए संसाधन का प्रभावी और लोकप्रिय उपयोग करना सबके बस का रोग नहीं है. इस दुकर कार्य को सहजता से करनेवालों में  पहना नाम है श्री लिमटी खरे का । खरे जी  की सक्रियता चिट्ठा  जगत में किसी से छिपी नहीं है। वे सामाजिक विषयों पर अपने धुंआधार लेखन के लिए जाने जाते हैं। पेशे से लिमटी जी एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और अपने ब्लॉग 'रोजनामचा ' में दुनिया भर की खबरे लिया और दिया करते हैं। लेकिन इसके साथ ही साथ वे 'नुक्कड़ ',  'आमजन की खबरें ' और 'पहाड़ी की धूम ' आदि ब्लॉगों पर भी अपना सक्रिय योगदान करते रहते हैं। वे कायस्थ सभा के सक्रिय कार्यकर्ता भी रहे हैं । सम्वाद सम्मान मिलने पर हम सबकी ओर से उनका हार्दिक अभिनन्दन

सूचना

आत्मीयों!

वन्दे मातरम.

मैं ११ से १४ अप्रैल तक बिलासपुर छत्तीसगढ़ में हूँ. संपर्क सूत्र: द्वारा प्रो. सत्य सहाय, ७३ गायत्री मर्ग, विद्या नगर, बिलासपुर. चलभाष: ०९४२५१८३२४४. --संजीव 'सलिल'