दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
सोमवार, 19 अक्टूबर 2009
नर्मदा के बरगी जलाशय के तट पर परमाणु बिजली घर की योजन बनाई थी मैने कागजो पर १९८४ में .. अब वह लेगी मूर्त रूप
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
श्लोक २१ ...२५ हिन्दी अनुवाद मेघदूत
श्लोक २१ ...२५
नीपं दृष्ट्वा हरितकपिशं केसरैर अर्धरूढैर
आविर्भूतप्रथममुकुलाः कन्दलीश चानुकच्चम
जग्ध्वारण्येष्व अधिकसुरभिं गन्धम आघ्राय चोर्व्याः
सारङ्गास ते जललवमुचः सूचयिष्यन्ति मार्गम॥१.२१॥
वहां अर्ध मुकुलित हरित नीप तरु देख
कुसुमित कदलि भक्ष , पा गंध प्यारा
हाथी,हरिण,भ्रमर,चातक सभी मुग्ध
घन , पथ प्रदर्शन करेंगे तुम्हारा
अम्भोबिन्दुग्रहणचतुरांश चातकान वीक्षमाणाः
श्रेणीभूताः परिगणनया निर्दिशन्तो बलाकाः
त्वाम आसाद्य स्तनितसमये मानयिष्यन्ति सिद्धाः
सोत्कम्पानि प्रियसहचरीसंभ्रमालिङ्गितानि॥१.२२॥
होंगे ॠणी , सिद्धगण चिर तुम्हारे
कि नभ में पपीहा , बकुल शुभ्रमाला
निरखते सहज नाद सुन तव , भ्रमित भीत
कान्ता की पा नेहमय बाहुमाला
उत्पश्यामि द्रुतमपि सखे मत्प्रियार्थं यियासोः
कालक्षेपं ककुभसुरभौ पर्वते पर्वेते ते
शुक्लापाङ्गैः सजलनयनैः स्वागतीकृत्य केकाः
प्रतुद्यातः कथम अपि भवान गन्तुम आशु व्यवस्येत॥१.२३॥
कुटज पुष्पगंधी शिखर गिरि ,प्रखर हर
जो ममतोष हित आशु गतिवान तुमको
कही रोक ले तो सखे भूलना मत
रे सुन मोर स्वर ,पहुंचना जिस तरह हो
पाण्डुच्चायोपवनवृतयः केतकैः सूचिभिन्नैर
नीडारम्भैर गृहबलिभुजाम आकुलग्रामचैत्याः
त्वय्य आसन्ने परिणतफलश्यामजम्बूवनान्ताः
संपत्स्यन्ते कतिपयदिनस्थायिहंसा दशार्णाः॥१.२४॥
सुमन केतकी पीत शोभित सुखद कुंज
औ" आम्रतरु , काकदल नीड़वासी
लखोगे घिरे वन फलित जंबु तरु से
पहुंचते दशार्ण हंस अल्प प्रवासी
दशार्ण ... अर्थात वर्तमान मालवा मंदसौर क्षेत्र
तेषां दिक्षु प्रथितविदिशालक्षणां राजधानीं
गत्वा सद्यः फलम अविकलं कामुकत्वस्य लब्धा
तीरोपान्तस्तनितसुभगं पास्यसि स्वादु यस्मात
सभ्रूभङ्गं मुखम इव पयो वेत्रवत्याश चलोर्मि॥१.२५॥
उसी ओर विदिशा बड़ी राजधानी
पहुंच भोग साधन सकल प्राप्त करके
अधरपान रस सम मधुर जल विमल पी
सुभग तटरवा बेतवा उर्मियों से
by prof. C. B. Shrivastava
नीपं दृष्ट्वा हरितकपिशं केसरैर अर्धरूढैर
आविर्भूतप्रथममुकुलाः कन्दलीश चानुकच्चम
जग्ध्वारण्येष्व अधिकसुरभिं गन्धम आघ्राय चोर्व्याः
सारङ्गास ते जललवमुचः सूचयिष्यन्ति मार्गम॥१.२१॥
वहां अर्ध मुकुलित हरित नीप तरु देख
कुसुमित कदलि भक्ष , पा गंध प्यारा
हाथी,हरिण,भ्रमर,चातक सभी मुग्ध
घन , पथ प्रदर्शन करेंगे तुम्हारा
अम्भोबिन्दुग्रहणचतुरांश चातकान वीक्षमाणाः
श्रेणीभूताः परिगणनया निर्दिशन्तो बलाकाः
त्वाम आसाद्य स्तनितसमये मानयिष्यन्ति सिद्धाः
सोत्कम्पानि प्रियसहचरीसंभ्रमालिङ्गितानि॥१.२२॥
होंगे ॠणी , सिद्धगण चिर तुम्हारे
कि नभ में पपीहा , बकुल शुभ्रमाला
निरखते सहज नाद सुन तव , भ्रमित भीत
कान्ता की पा नेहमय बाहुमाला
उत्पश्यामि द्रुतमपि सखे मत्प्रियार्थं यियासोः
कालक्षेपं ककुभसुरभौ पर्वते पर्वेते ते
शुक्लापाङ्गैः सजलनयनैः स्वागतीकृत्य केकाः
प्रतुद्यातः कथम अपि भवान गन्तुम आशु व्यवस्येत॥१.२३॥
कुटज पुष्पगंधी शिखर गिरि ,प्रखर हर
जो ममतोष हित आशु गतिवान तुमको
कही रोक ले तो सखे भूलना मत
रे सुन मोर स्वर ,पहुंचना जिस तरह हो
पाण्डुच्चायोपवनवृतयः केतकैः सूचिभिन्नैर
नीडारम्भैर गृहबलिभुजाम आकुलग्रामचैत्याः
त्वय्य आसन्ने परिणतफलश्यामजम्बूवनान्ताः
संपत्स्यन्ते कतिपयदिनस्थायिहंसा दशार्णाः॥१.२४॥
सुमन केतकी पीत शोभित सुखद कुंज
औ" आम्रतरु , काकदल नीड़वासी
लखोगे घिरे वन फलित जंबु तरु से
पहुंचते दशार्ण हंस अल्प प्रवासी
दशार्ण ... अर्थात वर्तमान मालवा मंदसौर क्षेत्र
तेषां दिक्षु प्रथितविदिशालक्षणां राजधानीं
गत्वा सद्यः फलम अविकलं कामुकत्वस्य लब्धा
तीरोपान्तस्तनितसुभगं पास्यसि स्वादु यस्मात
सभ्रूभङ्गं मुखम इव पयो वेत्रवत्याश चलोर्मि॥१.२५॥
उसी ओर विदिशा बड़ी राजधानी
पहुंच भोग साधन सकल प्राप्त करके
अधरपान रस सम मधुर जल विमल पी
सुभग तटरवा बेतवा उर्मियों से
by prof. C. B. Shrivastava
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
शनिवार, 17 अक्टूबर 2009
दोहों की दीपावली: --'सलिल'
दोहों की दीपावली
दोहों की दीपावली, रमा भाव-रस खान.
श्री गणेश के बिम्ब को, 'सलिल' सार अनुमान..
आँखें गड़ाये ताकता हूँ आसमान को.
भगवान का आशीष लगे अब झरा-झरा..
माता-पिता गए तो लगा प्राण ही गए.
बेबस है 'सलिल' आज सभी से डरा-डरा..
दीप सदृश जलते रहें, करें तिमिर का पान.
सुख समृद्धि यश पा बनें, आप चन्द्र-दिनमान..
अँधियारे का पान कर करे उजाला दान.
मती का दीपक 'सलिल', सर्वाधिक गुणवान..
मन का दीपक लो जला तन की बाती डाल.
इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..
दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर पन्थ की, ईश्वर सबका एक..
बुझ जाती बाती 'सलिल', मिट जाता है दीप.
किन्तु यही सूर्य का वंशधर, प्रभु के रहे समीप..
दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर पन्थ की, लेकिन एक विवेक..
दीपक बाती ज्योति को, सदा संग रख नाथ!
रहें हाथ जिस पथिक के, होगा वही सनाथ..
मृण्मय दीपक ने दिया, सारा जग उजियार.
तभी रहा जब परस्पर, आपस में सहकार..
राजमहल को रौशनी, दे कुटिया का दीप.
जैसे मोती भेंट दे, खुद मिट नन्हीं सीप..
दीप ब्रम्ह है, दीप हरी, दीप काल सच मान.
सत-शिव-सुन्दर है यही, सत-चित-आनंद गान..
मिले दीप से दीप तो, बने रात भी प्रात.
मिला हाथ से हाथ लो, दो शह भूलो मात..
ढली सांझ तो निशा को, दीप हुआ उपहार.
अँधियारे के द्वार पर, जगमग बन्दनवार..
रहा रमा में मन रमा, किसको याद गणेश.
बलिहारी है समय की, दिया जलाये दिनेश..
लीप-पोतकर कर लिया, जगमग सब घर-द्वार.
तनिक न सोचा मिट सके, मन की कभी दरार..
सरहद पर रौशन किये, शत चराग दे जान.
लक्ष्मी नहीं शहीद का, कर दीपक गुणगान..
दीवाली का दीप हर, जगमग करे प्रकाश.
दे संतोष समृद्धि सुख, अब मन का आकाश..
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
आशा-श्वासा बहन हैं, या आपस में सौत?.
पर उन्नति लख जल मरी, आप ईर्ष्या-डाह.
पर उन्नति हित जल मरी, बाती पाई वाह..
तूफानों से लड़-जला, अमर हो गया दीप.
तूफानों में पल जिया, मोती पाले सीप..
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
जीते की जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
जलते दीपक को नमन, बुझते से जग दूर..
मातु-पिता दोनों गए, भू को तज सुरधाम.
स्मृति-दीपक बालकर, करता 'सलिल' प्रणाम..
जननि-जनक की याद है, जीवन का पाथेय.
दीप-ज्योति में बस हुए, जीवन-ज्योति विधेय..
नन्हें दीपक की लगन, तूफां को दे मात.
तिमिर रात का मिटाकर, 'सलिल' उगा दे प्रात..
दीप-ज्योति तन-मन 'सलिल', आत्मा दिव्य प्रकाश.
तेल कामना को जला, तू छू ले आकाश..
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दोहों की दीपावली, रमा भाव-रस खान.
श्री गणेश के बिम्ब को, 'सलिल' सार अनुमान..
आँखें गड़ाये ताकता हूँ आसमान को.
भगवान का आशीष लगे अब झरा-झरा..
माता-पिता गए तो लगा प्राण ही गए.
बेबस है 'सलिल' आज सभी से डरा-डरा..
दीप सदृश जलते रहें, करें तिमिर का पान.
सुख समृद्धि यश पा बनें, आप चन्द्र-दिनमान..
अँधियारे का पान कर करे उजाला दान.
मती का दीपक 'सलिल', सर्वाधिक गुणवान..
मन का दीपक लो जला तन की बाती डाल.
इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..
दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर पन्थ की, ईश्वर सबका एक..
बुझ जाती बाती 'सलिल', मिट जाता है दीप.
किन्तु यही सूर्य का वंशधर, प्रभु के रहे समीप..
दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर पन्थ की, लेकिन एक विवेक..
दीपक बाती ज्योति को, सदा संग रख नाथ!
रहें हाथ जिस पथिक के, होगा वही सनाथ..
मृण्मय दीपक ने दिया, सारा जग उजियार.
तभी रहा जब परस्पर, आपस में सहकार..
राजमहल को रौशनी, दे कुटिया का दीप.
जैसे मोती भेंट दे, खुद मिट नन्हीं सीप..
दीप ब्रम्ह है, दीप हरी, दीप काल सच मान.
सत-शिव-सुन्दर है यही, सत-चित-आनंद गान..
मिले दीप से दीप तो, बने रात भी प्रात.
मिला हाथ से हाथ लो, दो शह भूलो मात..
ढली सांझ तो निशा को, दीप हुआ उपहार.
अँधियारे के द्वार पर, जगमग बन्दनवार..
रहा रमा में मन रमा, किसको याद गणेश.
बलिहारी है समय की, दिया जलाये दिनेश..
लीप-पोतकर कर लिया, जगमग सब घर-द्वार.
तनिक न सोचा मिट सके, मन की कभी दरार..
सरहद पर रौशन किये, शत चराग दे जान.
लक्ष्मी नहीं शहीद का, कर दीपक गुणगान..
दीवाली का दीप हर, जगमग करे प्रकाश.
दे संतोष समृद्धि सुख, अब मन का आकाश..
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
आशा-श्वासा बहन हैं, या आपस में सौत?.
पर उन्नति लख जल मरी, आप ईर्ष्या-डाह.
पर उन्नति हित जल मरी, बाती पाई वाह..
तूफानों से लड़-जला, अमर हो गया दीप.
तूफानों में पल जिया, मोती पाले सीप..
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
जीते की जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
जलते दीपक को नमन, बुझते से जग दूर..
मातु-पिता दोनों गए, भू को तज सुरधाम.
स्मृति-दीपक बालकर, करता 'सलिल' प्रणाम..
जननि-जनक की याद है, जीवन का पाथेय.
दीप-ज्योति में बस हुए, जीवन-ज्योति विधेय..
नन्हें दीपक की लगन, तूफां को दे मात.
तिमिर रात का मिटाकर, 'सलिल' उगा दे प्रात..
दीप-ज्योति तन-मन 'सलिल', आत्मा दिव्य प्रकाश.
तेल कामना को जला, तू छू ले आकाश..
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-acharya sanjiv 'salil',
deewalee,
doha : salil,
dohon men deepavali,
hindi chhand
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009
नव गीत: हर जगह दीवाली है... acharya sanjiv 'salil',
*
नव गीत
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है...
*
तप्त भास्कर,
त्रस्त धरा,
थे पस्त जीव सब.
राहत पाई,
मेघदूत
पावस लाये जब.
ताल-तालियाँ-
नदियाँ बहरीन,
उमंगें जागीं.
फसलें उगीं,
आसें उमगीं,
श्वासें भागीं.
करें प्रकाशित,
सकल जगत को
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है....
*
रमें राम में,
किन्तु शारदा को
मत भूलें.
पैर जमाकर
'सलिल' धरा पर
नभ को छू लें.
किया अमंगल यहाँ-
वहाँ मंगल
हो कैसे?
मिटा विषमता
समता लायें
जैसे-तैसे.
मिटा अमावस,
लायें पूनम
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है.
************
नव गीत
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है...
*
तप्त भास्कर,
त्रस्त धरा,
थे पस्त जीव सब.
राहत पाई,
मेघदूत
पावस लाये जब.
ताल-तालियाँ-
नदियाँ बहरीन,
उमंगें जागीं.
फसलें उगीं,
आसें उमगीं,
श्वासें भागीं.
करें प्रकाशित,
सकल जगत को
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है....
*
रमें राम में,
किन्तु शारदा को
मत भूलें.
पैर जमाकर
'सलिल' धरा पर
नभ को छू लें.
किया अमंगल यहाँ-
वहाँ मंगल
हो कैसे?
मिटा विषमता
समता लायें
जैसे-तैसे.
मिटा अमावस,
लायें पूनम
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है.
************
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-acharya sanjiv 'salil',
geet,
kutiya ho ya mahal,
navgeet
दोहा गीत: मातृ ज्योति- दीपक पिता, sanjiv 'salil'
************
दोहा गीत
विजय विषमता तिमिर पर,
कर दे- साम्य हुलास..
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
*
जिसने कालिख-तम पिया,
वह काली माँ धन्य.
नव प्रकाश लाईं प्रखर,
दुर्गा देवी अनन्य.
भर अभाव को भाव से,
लक्ष्मी हुईं प्रणम्य.
ताल-नाद, स्वर-सुर सधे,
शारद कृपा सुरम्य.
वाक् भारती माँ, भरें
जीवन में उल्लास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास...
*
सुख-समृद्धि की कामना,
सबका है अधिकार.
अंतर से अंतर मिटा,
ख़त्म करो तकरार.
जीवन-जगत न हो महज-
क्रय-विक्रय व्यापार.
सत-शिव-सुन्दर को करें
सब मिलकर स्वीकार.
विषम घटे, सम बढ़ सके,
हो प्रयास- सायास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
**************
= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
दोहा गीत
विजय विषमता तिमिर पर,
कर दे- साम्य हुलास..
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
*
जिसने कालिख-तम पिया,
वह काली माँ धन्य.
नव प्रकाश लाईं प्रखर,
दुर्गा देवी अनन्य.
भर अभाव को भाव से,
लक्ष्मी हुईं प्रणम्य.
ताल-नाद, स्वर-सुर सधे,
शारद कृपा सुरम्य.
वाक् भारती माँ, भरें
जीवन में उल्लास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास...
*
सुख-समृद्धि की कामना,
सबका है अधिकार.
अंतर से अंतर मिटा,
ख़त्म करो तकरार.
जीवन-जगत न हो महज-
क्रय-विक्रय व्यापार.
सत-शिव-सुन्दर को करें
सब मिलकर स्वीकार.
विषम घटे, सम बढ़ सके,
हो प्रयास- सायास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
**************
= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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deevali,
geet,
matri jyoti dipak pita,
navgeet,
sanjiv 'salil'
नव गीत: हिल-मिल दीपावली मना रे!...
****************
नव गीत
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
*
चक्र समय का
सतत चल रहा.
स्वप्न नयन में
नित्य पल रहा.
सूरज-चंदा
उगा-ढल रहा.
तम प्रकाश के
तले पल रहा,
किन्तु निराश
न होना किंचित.
नित नव
आशा-दीप जला रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
*
तन दीपक
मन बाती प्यारे!
प्यास तेल को
मत छलका रे!
श्वासा की
चिंगारी लेकर.
आशा-जीवन-
ज्योति जला रे!
मत उजास का
क्रय-विक्रय कर.
'सलिल' मुक्त हो
नेह लुटा रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
**************
= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
नव गीत
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
*
चक्र समय का
सतत चल रहा.
स्वप्न नयन में
नित्य पल रहा.
सूरज-चंदा
उगा-ढल रहा.
तम प्रकाश के
तले पल रहा,
किन्तु निराश
न होना किंचित.
नित नव
आशा-दीप जला रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
*
तन दीपक
मन बाती प्यारे!
प्यास तेल को
मत छलका रे!
श्वासा की
चिंगारी लेकर.
आशा-जीवन-
ज्योति जला रे!
मत उजास का
क्रय-विक्रय कर.
'सलिल' मुक्त हो
नेह लुटा रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
**************
= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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hilmil depavali mna re...,
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शब्दों की दीपावली: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
शब्दों की दीपावली
जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पलते गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख.
इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर.
- छंद अमृतध्वनि
शब्दों की दीपावली
जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पलते गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख.
इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर.
- छंद अमृतध्वनि
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बुधवार, 14 अक्टूबर 2009
दिवाली गीत: आओ! दीपावली मनायें... आचार्य संजीव 'सलिल'
दिवाली गीत:
आओ! दीपावली मनायें...
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
साफ़ करें कमरा, घर, आँगन.
गली-मोहल्ला हो मन भावन.
दूर करें मिल कचरा सारा.
हो न प्रदूषण फिर दोबारा.
पन्नी-कागज़ ना फैलायें.
व्यर्थ न ज्यादा शोर मचायें.
करें त्याग रोकेट औ' बम का.
सब सामान साफ़ चमकायें.
आओ! दीपावली मनायें...
*
नियमित काटें केश और नख.
सबल बनें तन सदा साफ़ रख.
नित्य नहायें कर व्यायाम.
देव-बड़ों को करें प्रणाम.
शुभ कार्यों का श्री गणेश हो.
निबल-सहायक प्रिय विशेष हो.
परोपकार सम धर्म न दूजा.
पढ़े पुस्तकें, ज्ञान बढायें
आओ! दीपावली मनायें...
*
धन तेरस पर सद्गुण का धन.
संचित करें, रहें ना निर्धन.
रूप चतुर्दशी कहे: 'सँवारो
तन-मन-दुनिया नित्य निखारो..
श्री गणेश-लक्ष्मी का पूजन.
करो- ज्ञान से ही मिलता धन.
गोवर्धन पूजन का आशय.
पशु-पक्षी-प्रकृति हो निर्भय.
भाई दूज पर नेह बढायें.
आओ! दीपावली मनायें...
*
आओ! दीपावली मनायें...
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
साफ़ करें कमरा, घर, आँगन.
गली-मोहल्ला हो मन भावन.
दूर करें मिल कचरा सारा.
हो न प्रदूषण फिर दोबारा.
पन्नी-कागज़ ना फैलायें.
व्यर्थ न ज्यादा शोर मचायें.
करें त्याग रोकेट औ' बम का.
सब सामान साफ़ चमकायें.
आओ! दीपावली मनायें...
*
नियमित काटें केश और नख.
सबल बनें तन सदा साफ़ रख.
नित्य नहायें कर व्यायाम.
देव-बड़ों को करें प्रणाम.
शुभ कार्यों का श्री गणेश हो.
निबल-सहायक प्रिय विशेष हो.
परोपकार सम धर्म न दूजा.
पढ़े पुस्तकें, ज्ञान बढायें
आओ! दीपावली मनायें...
*
धन तेरस पर सद्गुण का धन.
संचित करें, रहें ना निर्धन.
रूप चतुर्दशी कहे: 'सँवारो
तन-मन-दुनिया नित्य निखारो..
श्री गणेश-लक्ष्मी का पूजन.
करो- ज्ञान से ही मिलता धन.
गोवर्धन पूजन का आशय.
पशु-पक्षी-प्रकृति हो निर्भय.
भाई दूज पर नेह बढायें.
आओ! दीपावली मनायें...
*
चिप्पियाँ Labels:
deewali,
geet,
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sanjiv 'salil'
नवगीत: आओ! मिलकर बाँटें-खायें... -आचार्य संजीव 'सलिल'
नवगीत
आचार्य संजीव 'सलिल'
आओ! मिलकर
बाँटें-खायें...
*
करो-मरो का
चला गया युग.
समय आज
सहकार का.
महजनी के
बीत गये दिन.
आज राज
बटमार का.
इज्जत से
जीना है यदि तो,
सज्जन घर-घुस
शीश बचायें.
आओ! . मिलकर
बाँटें-खायें...
*
आपा-धापी,
गुंडागर्दी.
हुई सभ्यता
अभिनव नंगी.
यही गनीमत
पहने चिथड़े.
ओढे है
आदर्श फिरंगी.
निज माटी में
नहीं जमीन जड़,
आसमान में
पतंग उडाएं.
आओ! मिलकर
बाँटें-खायें...
*
लेना-देना
सदाचार है.
मोल-भाव
जीवनाधार है.
क्रय-विक्रय है
विश्व-संस्कृति.
लूट-लुटाये
जो-उदार है.
निज हित हित
तज नियम कायदे.
स्वार्थ-पताका
मिल फहरायें.
आओ! . मिलकर
बाँटें-खायें...
*****************
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम
आचार्य संजीव 'सलिल'
आओ! मिलकर
बाँटें-खायें...
*
करो-मरो का
चला गया युग.
समय आज
सहकार का.
महजनी के
बीत गये दिन.
आज राज
बटमार का.
इज्जत से
जीना है यदि तो,
सज्जन घर-घुस
शीश बचायें.
आओ! . मिलकर
बाँटें-खायें...
*
आपा-धापी,
गुंडागर्दी.
हुई सभ्यता
अभिनव नंगी.
यही गनीमत
पहने चिथड़े.
ओढे है
आदर्श फिरंगी.
निज माटी में
नहीं जमीन जड़,
आसमान में
पतंग उडाएं.
आओ! मिलकर
बाँटें-खायें...
*
लेना-देना
सदाचार है.
मोल-भाव
जीवनाधार है.
क्रय-विक्रय है
विश्व-संस्कृति.
लूट-लुटाये
जो-उदार है.
निज हित हित
तज नियम कायदे.
स्वार्थ-पताका
मिल फहरायें.
आओ! . मिलकर
बाँटें-खायें...
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सोमवार, 12 अक्टूबर 2009
मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद... by Prof. C.B. Shrivastava
मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद... by Prof. C.B. Shrivastava
16..to..20
त्वय्य आयन्तं कृषिफलम इति भ्रूविकारान अभिज्ञैः
प्रीतिस्निग्धैर्जनपदवधूलोचनैः पीयमानः
सद्यःसीरोत्कषणसुरभि क्षेत्रम आरुह्य मालं
किंचित पश्चाद व्रज लघुगतिर भूय एवोत्तरेण॥१.१६॥
कृषि के तुम्हीं प्राण हो इसलिये
नित निहारे गये कृषक नारी नयन से
कर्षित , सुवासिक धरा को सरस कर
तनिक बढ़ , उधर मुड़ विचरना गगन से
त्वाम आसारप्रशमितवनोपप्लवं साधु मूर्ध्ना
वक्ष्यत्य अध्वश्रमपरिगतं सानुमान आम्रकूटः
न क्षुद्रो ऽपि प्रथमसुकृतापेक्षया संश्रयाय
प्राप्ते मित्रे भवति विमुखः किं पुनर यस तत्थोच्चैः॥१.१७॥
दावाग्नि शामित सघन वृष्टि से तृप्त
थके तुम पथिक को , सुखद शीशधारी
वहां तंग गिरि आम्रकूट करेगा
परम मित्र , सब भांति सेवा तुम्हारी
संचित विगत पुण्य की प्रेरणावश
अधम भी अतिथि से विमुख न है होता
शरणाभिलाषी , सुहृद आगमन पर
जो फिर उच्च है , बात उनकी भला क्या ?
चन्नोपान्तः परिणतफलद्योतिभिः काननाम्रैस
त्वय्य आरूढे शिखरम अचलः स्निग्धवेणीसवर्णे
नूनं यास्यत्य अमरमिथुनप्रेक्षणीयाम अवस्थां
मध्ये श्यामः स्तन इव भुवः शेषविस्तारपाण्डुः॥१.१८॥
पके आम्रफल से लदे तरु सुशोभित
सघन आम्रकूटादि वन के शिखर पर
कवरि सदृश स्निग्ध गुम्फित अलक सी
सुकोमल सुखद श्याम शोभा प्रकट कर
कुच के सृदश गौर , मुख कृष्णवर्णी
लगेगा वह गिरि , परस पा तुम्हारा
औ" रमणीक दर्शन के हित योग्य होगा
अमरगण तथा अंगनाओ के द्वारा
स्थित्वा तस्मिन वनचरवधूभुक्तकुञ्जे मुहूर्तं
तोयोत्सर्गद्रुततरगतिस तत्परं वर्त्म तीर्णः
रेवां द्रक्ष्यस्य उपलविषमे विन्ध्यपादे विशीर्णां
भक्तिच्चेदैर इव विरचितां भूतिम अङ्गे गजस्य॥१.१९॥
जहां के लता कुंज हों आदिवासी
वधू वृंद के रम्य क्रीड़ा भवन हैं
वहां दान पर्जन्य का दे वनो को
विगत भार हो आशु उड़ते पवन में
{अध्वक्लान्तं प्रतिमुखगतं सानुमानाम्रकूटस
तुङ्गेन त्वां जलद शिरसा वक्ष्यति श्लाघमानः
आसारेण त्वम अपि शमयेस तस्य नैदाघम अग्निं
सद्भावार्द्रः फलति न चिरेणोपकारो महत्सु॥१.१९अ}॥
तनिक बढ़ विषम विन्ध्य प्रांचल प्रवाही
नदी नर्मदा कल कलिल गायिनी को
गजवपु उपरि गूढ़ गड़रों सरीखी
लखोगे वहां सहसधा वाहिनी को
तस्यास तिक्तैर वनगजमदैर वासितं वान्तवृष्टिर
जम्बूकुञ्जप्रतिहतरयं तोयम आदाय गच्चेः
अन्तःसारं घन तुलयितुं नानिलः शक्ष्यति त्वां
रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय॥१.२०॥
जल रिक्त घन , वन्य गजमद सुवासित
सघन जम्बुवन रुद्ध रेवा सलिल को
पी हो अतुल , क्योकि पाते सभी रिक्त
लघुता तथा मान पा पूर्णता को
16..to..20
त्वय्य आयन्तं कृषिफलम इति भ्रूविकारान अभिज्ञैः
प्रीतिस्निग्धैर्जनपदवधूलोचनैः पीयमानः
सद्यःसीरोत्कषणसुरभि क्षेत्रम आरुह्य मालं
किंचित पश्चाद व्रज लघुगतिर भूय एवोत्तरेण॥१.१६॥
कृषि के तुम्हीं प्राण हो इसलिये
नित निहारे गये कृषक नारी नयन से
कर्षित , सुवासिक धरा को सरस कर
तनिक बढ़ , उधर मुड़ विचरना गगन से
त्वाम आसारप्रशमितवनोपप्लवं साधु मूर्ध्ना
वक्ष्यत्य अध्वश्रमपरिगतं सानुमान आम्रकूटः
न क्षुद्रो ऽपि प्रथमसुकृतापेक्षया संश्रयाय
प्राप्ते मित्रे भवति विमुखः किं पुनर यस तत्थोच्चैः॥१.१७॥
दावाग्नि शामित सघन वृष्टि से तृप्त
थके तुम पथिक को , सुखद शीशधारी
वहां तंग गिरि आम्रकूट करेगा
परम मित्र , सब भांति सेवा तुम्हारी
संचित विगत पुण्य की प्रेरणावश
अधम भी अतिथि से विमुख न है होता
शरणाभिलाषी , सुहृद आगमन पर
जो फिर उच्च है , बात उनकी भला क्या ?
चन्नोपान्तः परिणतफलद्योतिभिः काननाम्रैस
त्वय्य आरूढे शिखरम अचलः स्निग्धवेणीसवर्णे
नूनं यास्यत्य अमरमिथुनप्रेक्षणीयाम अवस्थां
मध्ये श्यामः स्तन इव भुवः शेषविस्तारपाण्डुः॥१.१८॥
पके आम्रफल से लदे तरु सुशोभित
सघन आम्रकूटादि वन के शिखर पर
कवरि सदृश स्निग्ध गुम्फित अलक सी
सुकोमल सुखद श्याम शोभा प्रकट कर
कुच के सृदश गौर , मुख कृष्णवर्णी
लगेगा वह गिरि , परस पा तुम्हारा
औ" रमणीक दर्शन के हित योग्य होगा
अमरगण तथा अंगनाओ के द्वारा
स्थित्वा तस्मिन वनचरवधूभुक्तकुञ्जे मुहूर्तं
तोयोत्सर्गद्रुततरगतिस तत्परं वर्त्म तीर्णः
रेवां द्रक्ष्यस्य उपलविषमे विन्ध्यपादे विशीर्णां
भक्तिच्चेदैर इव विरचितां भूतिम अङ्गे गजस्य॥१.१९॥
जहां के लता कुंज हों आदिवासी
वधू वृंद के रम्य क्रीड़ा भवन हैं
वहां दान पर्जन्य का दे वनो को
विगत भार हो आशु उड़ते पवन में
{अध्वक्लान्तं प्रतिमुखगतं सानुमानाम्रकूटस
तुङ्गेन त्वां जलद शिरसा वक्ष्यति श्लाघमानः
आसारेण त्वम अपि शमयेस तस्य नैदाघम अग्निं
सद्भावार्द्रः फलति न चिरेणोपकारो महत्सु॥१.१९अ}॥
तनिक बढ़ विषम विन्ध्य प्रांचल प्रवाही
नदी नर्मदा कल कलिल गायिनी को
गजवपु उपरि गूढ़ गड़रों सरीखी
लखोगे वहां सहसधा वाहिनी को
तस्यास तिक्तैर वनगजमदैर वासितं वान्तवृष्टिर
जम्बूकुञ्जप्रतिहतरयं तोयम आदाय गच्चेः
अन्तःसारं घन तुलयितुं नानिलः शक्ष्यति त्वां
रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय॥१.२०॥
जल रिक्त घन , वन्य गजमद सुवासित
सघन जम्बुवन रुद्ध रेवा सलिल को
पी हो अतुल , क्योकि पाते सभी रिक्त
लघुता तथा मान पा पूर्णता को
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
शनिवार, 10 अक्टूबर 2009
सार समाचार: हिंदी ही उपयुक्त संपर्क भाषा – अजय माकन
राष्ट्रीय स्वाभिमान और सुविधा की दृष्टि से हिंदी ही उपयुक्त संपर्क भाषा – अजय माकन
पुदुच्चेरी में क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन एवं राजभाषा पुरस्कार वितरण संपन्न
जवाहरलाल नेहरु स्नातकोत्तर चिकित्सकीय शिक्षा एवं शोध संस्थान, जिपमेर, पुदुच्चेरी के प्रेक्षागृह में क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन का उद्घाटन आज सुबह 10 बजे माननीय केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्री अजय माकन जी ने द्वीप प्रज्वलन के साथ किया ।
भारत एक विशाल देश है, जहाँ कई भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती है किंतु भारत की सभी भाषाओं की आत्मा एक ही है, जो भारतीयता का समान संदेश देती रही हैं । हमारी सामासिक संस्कृति का केंद्र बिंदु एक ही रहा है, भले ही इसकी अभिव्यक्ति का माध्यम विभिन्न भाषाएँ रही हों । हमारे महान देश में भाषाओं की विभिन्नता इसकी मूलभूत एकता में कभी बाधक नहीं रही है । इनके भीतर भारतीयता सतत रूप से प्रवाहित रही है । इस एकता में भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य का बड़ा योगदान रहा है । यदि हम भारती की विभिन्न भाषाओं में रचित साहित्य पर दृष्टि डालें, तो यह तथ्य सहज ही स्पष्ट हो जाएगा कि कश्मीर से कन्याकुमारी और सौराष्ट्र से कामरूप तक सभी लेखकों और कवियों ने अपनी रचनाओं में समसामयिक विचारधारा से प्रभावित होकर अपनी-अपनी भाषाओं में अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है ।
हमें संघ की राजभाषा हिंदी के साथ-साथ सभी अन्य भाषाओं-बोलियों का संरक्षण भी करना है ताकि विकास, रोजगार और पनर्वास की प्रक्रिया के कारण ये विलुप्त न हो जाए । भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं होती है । अपितु इससे बोलने वालों की संस्कृति और संस्कार भी जुड़े होते हैं ।
हमारे देश के संविधान ने हम सबके ऊपर भारतीय भाषाओं के विकास का दायित्व सौंपा है । इस जिम्मेदारी का निर्वाह हमें धैर्य, लगन और विवेकपूर्ण ढंग से करना है । कोई भी भाषा तभी समृद्ध हो सकती है और जनता द्वारा उसका तभी स्वागत होता है जब वह अपने आपको पुराने मापदंडों से बांध कर न रखे । हिंदी के स्वरूप में भी भारतीय समाज और संस्कृति की विविधता और एकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की पारिभाषिक स्पष्टता, दर्शन और धर्म की व्यापकता प्रतिबिंबित होनी चाहिए । संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का व्यापक प्रयोग सदैव से ही होता रहा है । यहां तक कि अंग्रेजों को भी अपना शासन चलाने के लिए टूटी-फूटी ही सही पर हिंदी ही हितकर लगी और आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादकों को बेचने के लिए हिंदी व अन्य भाषाओं का प्रयोग कर रही हैं । अप भारत के किसी भी प्रांत में चले जाएं, वहाँ आपकों हिंदी का प्रयोग अवश्य मिलेगा । हिंदी का व्यापक जनाधार और यह धीरे-धीरे परंतु निश्चित रूप से बढ़ता ही जा रहा है ।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा पर जोर दिया गया था । उस समय यह समझा गया था कि बिना स्वदेशी व स्वभाषा के स्वराज सार्थक नहीं होगा । हमारे राष्ट्रीय नेताओं की यह दृढ़ धारणा थी कि कोई भी देश अपनी स्वतंत्रता को अपनी भाषा के अभाव में मौलिक रूप से परिभाषित नहीं कर सकता, उसे अनुभव नहीं कर सकते । उन महापुरुषों की मान्यता थी कि यदि हमें भारत में एक राष्ट्र की भावना सुदृढ़ करनी है तो एक संपर्क भाषा होना नितांत आवश्यक है और राष्ट्रीय स्वाभिमान और सुविधा की दृष्टि से हिंदी ही उपयुक्त संपर्क भाषा होगी । उन महापुरुषों में नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी का नाम विशेष रूप से स्मरणीय है । उन्होंने कहा था “अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई तो इसलिए नहीं कि वह किसी प्रांत विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा है ।”
हिंदी और भारतीय भाषाओं के संवर्धन एवं विकास में दक्षिस भारत के संतों, मनीषियों आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । यहाँ के अनेक साहित्यकारों ने हिंदी साहित्य की सभी विधाओं पर उत्कृष्ट साहित्य की रचना की है । उनके कृतित्व व व्यक्तित्व से भारतीय संस्कृति, साहित्य, भाषा और कला को संबल मिला है जिससे जन-साधारण लाभान्वित हुआ है । हिंदी प्रचार-प्रसार के कार्य में स्वैच्छिक हिंदी संस्थाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है । तमिलनाडु, केरल, आंद्र प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रांतों की हिंदी की स्वैच्छिक संस्थाओं ने इस संबंध में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई है । इन संस्थाओं के माध्यम से हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान, समन्वय एवं सामंजस्य बढ़ा है । परिणामस्वरूप हिंदीतर भाषा लोगों में हिंदी के प्रति इन संस्थाओं से जुड़े व्यक्तियों ने जिस निष्ठा एवं समर्पणभाव से राष्ट्रीय महत्व के इस कार्य को आगे बढ़ाया है, उसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है ।
मैं मानता हूँ कि कोई भी राष्ट्र अपना भाषा के बिना गूंगा हो जाता है । विचारों की अभिव्यक्ति रुक जाती है । कोई भी लोकतांत्रिक व्यवस्था लोकभाषा के अभाव प्रभावहीन हो जाता है । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई है । हमारी व्यवस्था लोक-कल्याणकारी है । सरकार की कल्याणकारी योजनाएं तभी प्रभावी मानी जाएंगी जब आम जनता उनसे लाभान्वित होगी । इसके लिए आवश्यक है कि शासन का काम-काज आम जनता की भाषा में निष्पादित किया जाए ।
एक जनतांत्रिक देश की सरकार और शासन को, जनता की भावनाओं के प्रति निरंतर सजग रहना पड़ता है । शासन एवं प्रशासन और जनता के मध्य संपर्क के लिए भाषा का बहुत ज्यादा महत्व है । शासन के कार्यक्रमों की सफलता या विफलता तथा शासन की छवि, इस पर निर्भर होते हैं कि उन्हें जनता कि कितना सहयोग मिलता है । हिंदी देश या प्रांतों की सीमाओं से बंधी नहीं है । यह एक उदारशील भाषा है जो अन्य भाषाओं से नित नए शब्द ग्रहण कर और अधिक संपन्न हो रही है । इससे हिंदी का विकासोन्मुखी रूप प्रकट होता है । इसे देश के विकास के सभी पहलुओं से जोड़ना है । अतः यह आवश्यक है कि विभिन्न कार्यक्षेत्रों से संबंधित विषयों के अनुरूप हिंदी में कार्यालय-साहित्य का निर्माण हो ।
संघ के राजकीय कार्यों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाना हमारा संवैधानिक व नैतिक दायित्व है । केंद्रित कार्यालयों, उपक्रमों, बैंकों आदि में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाना हमारा संवैधानिक व नैतिक दायित्व है । केंद्रीय कार्यालयों, उपक्रमों, बैंकों आदि में हिंगी के प्रयोग को बढ़ाने के लिए राजभाषा विभाग द्वारा विभिन्न योजनाएँ चलाई जाती हैं । प्रतिवर्ष एक वार्षक कार्यक्रम भी जारी किया जाता है । केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग क्रमिक रूप से बढ़ रहा है लेकिन इसमें और तेजी लाने की आवश्यककता है । राजभाषा विभाग इस दिशा में प्रयत्नशील है । मुझे विश्वास है कि आप सभी के सहयोग से लक्ष्यों की प्राप्ति की प्राप्ति हो सकेगी ।
आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है । हर क्षेत्र में इसका प्रयोग पढ़ता जा रहा है । हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ता जा रहा है । हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ाने के लिए भी सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाना जरूरी हो गया है । अब तक कंप्यूटर पर हिंदी के प्रयोग के संबंध में आती रही अधिकांश समस्याओं का कारण मानक भाषा एनकोडिंग यानि यूनिकोड से भिन्न एनकोडिंग प्रयोग रहा है । आज के कंप्यूटर पर यूनिकोड में हिंदी प्रयोग करने की प्रभावी सुविधा उपलब्ध है । आवश्यकता है इन सुविधाओं के प्रयोग करने संबंधी जागरूकता की । अंग्रेजी प्रयोग को सूचना प्रौद्योगिकी में हुए विकास का पूरा लाभ मिला है । हिंदी प्रयोग के लिए भी ये सब सुविधाएँ उतनी ही सहजता से उपलब्ध हो सके इसके लिए अधिकारियों एवं विद्वानों को लेकर तीन समितियाँ गठित की गई है । ये समितियाँ हिंदी प्रयोगकर्ता की साफ्टवेयर संबंधी आवश्यकताओं की प्रभावी पूर्ति एवं हिंदी प्रयोगकर्ता में तकनीकी प्रयोग संबंधी जागरूकता पैदा करने के संबंध में सुझाव देंगी । मुझे यकीन है कि इन सुझावों पर अमल हिंदी प्रयोगकर्ता तक सूचना प्रौद्योगिकी में हुए विकास के लाभ को पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान होगा ।
यह अच्छी बात है कि हम हर क्षेत्र में विशेष उपलब्धियाँ हासिल करने वालों को सम्मानित करते हैं । सम्मेलन में आज कई संगठनों ने पुरस्कार प्राप्त किए हैं । मैं पुरस्कार प्राप्त करने वालों को पुनः बधाई देता हूँ । पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का यह दायित्व बनता है कि वे अपने पूरे संगठन में राजभाषा हिंदी के प्रयोग-प्रसार को स्थायी रूप दें और अन्य संगठनों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें । शेष संगठनों के वरिष्ठ अधिकारियों के अपेक्षा है कि वे संविधान द्वारा सौंपे गए इस दायित्व का निर्वाह उसी निष्ठा और तत्परता से करें जिस निष्ठा से वि अपने अन्य दायित्वों को निभाते हैं ।
अपने अध्यक्षीय भाषण में सचिव, राजभाषा विभाग डॉ. प्रदीप कुमार ने कहा कि वैश्वीकरण के दौर में हिंदी के भविष्य को लेकर चिंता के स्वर सर्वत्र सुनाई पड़ रहे हैं, मगर इस संबंध में किसी चिंता या परेशानी की जरूरत नहीं है । जब तक भारतीय संस्कृति का अस्तित्व रहेगा, तब तक हिंदी और भारतीय भाषाएँ जिंदा रहेंगी । आज विदेशी मुल्क हमारे देश की ओर आकर्षित हो रहे हैं । बहु-राष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार है । ग्रामीण जनता के साथ उनकी भाषा में बातचीत करने में ही इन कंपनियों की सफलता निर्भर करेगी । इस आलोक में भारतीय भाषाओं का भविष्य उज्जवल है ।
केंद्रीय विद्यालय की नन्हीं छात्राओं द्वारा भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ । राजभाषा विभाग के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार जी की अध्यक्षता में संपन्न उद्घाटन सत्र में राजभाषा विभाग के संयुक्त सचिव श्री डी.के. पांडेय जी ने स्वागत भाषण दिया । जिपमेर के निदेशक डॉ. के.एस.वी.के. सुब्बाराव जी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित किया । दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में राजभाषा कार्यान्वयन की अद्यतन स्थिति रिपोर्ट डॉ. वी. बालकृष्णन, उप निदेशक (कार्यान्वयन) ने प्रस्तुत की । अंत में केंद्रीय विद्यालय, पुदुच्चेरी के छात्र-छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की ।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता राजभाषा विभाग के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार जी ने किया । विचार-विमार्श पर केंद्रित इस सत्र में डॉ. बालशौरि रेड्डी जी ने तमिलनाडु में हिंदी के उद्भव और विकास पर तथा डॉ. एम.के. श्रीवास्तव, मुख्य चिकित्सा अधिकारी (वि.प्र.), ने भाषा, संस्कृति, समाज और स्वास्थ्य – एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर व्याख्यान दिए । इसी सत्र में दक्षिण क्षेत्र में राजभाषा कार्यान्वयन की रिपोर्ट डॉ. विश्वनाथ झा, उप निदेशक (कार्यान्वयन) ने प्रस्तुत की । अंत में डॉ. वी. बालकृष्णन, उप निदेशक (कार्यान्वयन) के धन्यवाद ज्ञापन के साथ सम्मेलन सुसंपन्न हुआ ।
दि.9 अक्तूबर, 2009 को पुदुच्चेरी में क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन के अवसर पर माननीय गृह राज्य मंत्री, श्री अजय माकन जी के करकमलों से राजभाषा पुरस्कार (वर्ष 2008-09) प्राप्त करनेवाले कार्यालयों की सूची इस प्रकार है ।
दक्षिण क्षेत्र (आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक)
सरकारी कार्यालय वर्ग
राष्ट्रीय रेशमकीट बीच संगठन, बैंगलूर – प्रथम
कुक्कुट परियोजना निदेशालय, हैदराबाद – द्वितीय
मुख्य नियंत्रण सुविधा, अंतरिक्ष विभाग, हासन – तृतीय
उपक्रम
भारतीय कपास निगम लिमिटेड, शाखा कार्यालय, आदिलाबाद – प्रथम
प्रतिभूति मुद्रणालय, हैदराबाद – द्वितीय
भारत संचार निगम लि., विजयवाडा – तृतीय
बैंक
कार्पोरेशन बैंक, आंचलिक कार्यालय, हुबली – प्रथम
कार्पेरेशन बैंक, आंचलिक कार्यालय, उडुपि – द्वितीय
भारतीय स्टेट बैंक, स्थानीय प्रधान कार्यालय, हैदराबाद – तृतीय
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति
भद्रावती-शिमोगा (सरकार कार्यालय) – प्रथम
हैदराबाद (बैंक) – द्वितीय
बैंगलूर (कार्यालय) – तृतीय
दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र (तमिलनाडु, केरल, पांडिच्चेरी एवं लक्ष्यद्वीप केंद्रशासी प्रदेश)
सरकारी कार्यालय
मुख्य आयकर आयुक्त का कार्यालय, तिरुवनंतपुरम – प्रथम
राष्ट्रीय कैडेट कोर निदेशालय, केरल और लक्षद्वीप, तिरुवनंतपुरम – प्रथम
मुख्य आयकर आयुक्त का कार्यालय, कोचिन – तृतीय
उपक्रम
प्रधान महाप्रबंधक, भारत संचार निगम लिमिटेड, कोलिक्केड – प्रथम
हिंदुस्तान न्यूजप्रिंट लिमिटेड, कोट्टयम - द्वितीय
हिंदुस्तान इन्सेक्टिसाइड्स लिमिटेड, कोचिन – तृतीय
बैक
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, क्षेत्रीय कार्यालय, एरणाकुलम – प्रथम
सिंडिकेट बैंक, क्षेत्रीय कार्यालय, कोयंबत्तूर – द्वितीय
कार्पोरेशन बैंक, अंचल कार्यालय, कोचिन – तृतीय
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति
कालीकट (कार्यालय) – प्रथम
चेन्नै (बैंक) – द्वितीय
पुदुच्ची (कार्यालय) – तृतीय
प्रस्तुति: डॉ.सी.जय शंकर बाबु,संपादक,युग मानस,
ई-मेल:yugmanas@gmail.com चलभाष:098435 08506
पुदुच्चेरी में क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन एवं राजभाषा पुरस्कार वितरण संपन्न
जवाहरलाल नेहरु स्नातकोत्तर चिकित्सकीय शिक्षा एवं शोध संस्थान, जिपमेर, पुदुच्चेरी के प्रेक्षागृह में क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन का उद्घाटन आज सुबह 10 बजे माननीय केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्री अजय माकन जी ने द्वीप प्रज्वलन के साथ किया ।
भारत एक विशाल देश है, जहाँ कई भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती है किंतु भारत की सभी भाषाओं की आत्मा एक ही है, जो भारतीयता का समान संदेश देती रही हैं । हमारी सामासिक संस्कृति का केंद्र बिंदु एक ही रहा है, भले ही इसकी अभिव्यक्ति का माध्यम विभिन्न भाषाएँ रही हों । हमारे महान देश में भाषाओं की विभिन्नता इसकी मूलभूत एकता में कभी बाधक नहीं रही है । इनके भीतर भारतीयता सतत रूप से प्रवाहित रही है । इस एकता में भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य का बड़ा योगदान रहा है । यदि हम भारती की विभिन्न भाषाओं में रचित साहित्य पर दृष्टि डालें, तो यह तथ्य सहज ही स्पष्ट हो जाएगा कि कश्मीर से कन्याकुमारी और सौराष्ट्र से कामरूप तक सभी लेखकों और कवियों ने अपनी रचनाओं में समसामयिक विचारधारा से प्रभावित होकर अपनी-अपनी भाषाओं में अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है ।
हमें संघ की राजभाषा हिंदी के साथ-साथ सभी अन्य भाषाओं-बोलियों का संरक्षण भी करना है ताकि विकास, रोजगार और पनर्वास की प्रक्रिया के कारण ये विलुप्त न हो जाए । भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं होती है । अपितु इससे बोलने वालों की संस्कृति और संस्कार भी जुड़े होते हैं ।
हमारे देश के संविधान ने हम सबके ऊपर भारतीय भाषाओं के विकास का दायित्व सौंपा है । इस जिम्मेदारी का निर्वाह हमें धैर्य, लगन और विवेकपूर्ण ढंग से करना है । कोई भी भाषा तभी समृद्ध हो सकती है और जनता द्वारा उसका तभी स्वागत होता है जब वह अपने आपको पुराने मापदंडों से बांध कर न रखे । हिंदी के स्वरूप में भी भारतीय समाज और संस्कृति की विविधता और एकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की पारिभाषिक स्पष्टता, दर्शन और धर्म की व्यापकता प्रतिबिंबित होनी चाहिए । संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का व्यापक प्रयोग सदैव से ही होता रहा है । यहां तक कि अंग्रेजों को भी अपना शासन चलाने के लिए टूटी-फूटी ही सही पर हिंदी ही हितकर लगी और आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादकों को बेचने के लिए हिंदी व अन्य भाषाओं का प्रयोग कर रही हैं । अप भारत के किसी भी प्रांत में चले जाएं, वहाँ आपकों हिंदी का प्रयोग अवश्य मिलेगा । हिंदी का व्यापक जनाधार और यह धीरे-धीरे परंतु निश्चित रूप से बढ़ता ही जा रहा है ।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा पर जोर दिया गया था । उस समय यह समझा गया था कि बिना स्वदेशी व स्वभाषा के स्वराज सार्थक नहीं होगा । हमारे राष्ट्रीय नेताओं की यह दृढ़ धारणा थी कि कोई भी देश अपनी स्वतंत्रता को अपनी भाषा के अभाव में मौलिक रूप से परिभाषित नहीं कर सकता, उसे अनुभव नहीं कर सकते । उन महापुरुषों की मान्यता थी कि यदि हमें भारत में एक राष्ट्र की भावना सुदृढ़ करनी है तो एक संपर्क भाषा होना नितांत आवश्यक है और राष्ट्रीय स्वाभिमान और सुविधा की दृष्टि से हिंदी ही उपयुक्त संपर्क भाषा होगी । उन महापुरुषों में नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी का नाम विशेष रूप से स्मरणीय है । उन्होंने कहा था “अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई तो इसलिए नहीं कि वह किसी प्रांत विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा है ।”
हिंदी और भारतीय भाषाओं के संवर्धन एवं विकास में दक्षिस भारत के संतों, मनीषियों आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । यहाँ के अनेक साहित्यकारों ने हिंदी साहित्य की सभी विधाओं पर उत्कृष्ट साहित्य की रचना की है । उनके कृतित्व व व्यक्तित्व से भारतीय संस्कृति, साहित्य, भाषा और कला को संबल मिला है जिससे जन-साधारण लाभान्वित हुआ है । हिंदी प्रचार-प्रसार के कार्य में स्वैच्छिक हिंदी संस्थाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है । तमिलनाडु, केरल, आंद्र प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रांतों की हिंदी की स्वैच्छिक संस्थाओं ने इस संबंध में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई है । इन संस्थाओं के माध्यम से हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान, समन्वय एवं सामंजस्य बढ़ा है । परिणामस्वरूप हिंदीतर भाषा लोगों में हिंदी के प्रति इन संस्थाओं से जुड़े व्यक्तियों ने जिस निष्ठा एवं समर्पणभाव से राष्ट्रीय महत्व के इस कार्य को आगे बढ़ाया है, उसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है ।
मैं मानता हूँ कि कोई भी राष्ट्र अपना भाषा के बिना गूंगा हो जाता है । विचारों की अभिव्यक्ति रुक जाती है । कोई भी लोकतांत्रिक व्यवस्था लोकभाषा के अभाव प्रभावहीन हो जाता है । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई है । हमारी व्यवस्था लोक-कल्याणकारी है । सरकार की कल्याणकारी योजनाएं तभी प्रभावी मानी जाएंगी जब आम जनता उनसे लाभान्वित होगी । इसके लिए आवश्यक है कि शासन का काम-काज आम जनता की भाषा में निष्पादित किया जाए ।
एक जनतांत्रिक देश की सरकार और शासन को, जनता की भावनाओं के प्रति निरंतर सजग रहना पड़ता है । शासन एवं प्रशासन और जनता के मध्य संपर्क के लिए भाषा का बहुत ज्यादा महत्व है । शासन के कार्यक्रमों की सफलता या विफलता तथा शासन की छवि, इस पर निर्भर होते हैं कि उन्हें जनता कि कितना सहयोग मिलता है । हिंदी देश या प्रांतों की सीमाओं से बंधी नहीं है । यह एक उदारशील भाषा है जो अन्य भाषाओं से नित नए शब्द ग्रहण कर और अधिक संपन्न हो रही है । इससे हिंदी का विकासोन्मुखी रूप प्रकट होता है । इसे देश के विकास के सभी पहलुओं से जोड़ना है । अतः यह आवश्यक है कि विभिन्न कार्यक्षेत्रों से संबंधित विषयों के अनुरूप हिंदी में कार्यालय-साहित्य का निर्माण हो ।
संघ के राजकीय कार्यों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाना हमारा संवैधानिक व नैतिक दायित्व है । केंद्रित कार्यालयों, उपक्रमों, बैंकों आदि में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाना हमारा संवैधानिक व नैतिक दायित्व है । केंद्रीय कार्यालयों, उपक्रमों, बैंकों आदि में हिंगी के प्रयोग को बढ़ाने के लिए राजभाषा विभाग द्वारा विभिन्न योजनाएँ चलाई जाती हैं । प्रतिवर्ष एक वार्षक कार्यक्रम भी जारी किया जाता है । केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग क्रमिक रूप से बढ़ रहा है लेकिन इसमें और तेजी लाने की आवश्यककता है । राजभाषा विभाग इस दिशा में प्रयत्नशील है । मुझे विश्वास है कि आप सभी के सहयोग से लक्ष्यों की प्राप्ति की प्राप्ति हो सकेगी ।
आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है । हर क्षेत्र में इसका प्रयोग पढ़ता जा रहा है । हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ता जा रहा है । हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ाने के लिए भी सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाना जरूरी हो गया है । अब तक कंप्यूटर पर हिंदी के प्रयोग के संबंध में आती रही अधिकांश समस्याओं का कारण मानक भाषा एनकोडिंग यानि यूनिकोड से भिन्न एनकोडिंग प्रयोग रहा है । आज के कंप्यूटर पर यूनिकोड में हिंदी प्रयोग करने की प्रभावी सुविधा उपलब्ध है । आवश्यकता है इन सुविधाओं के प्रयोग करने संबंधी जागरूकता की । अंग्रेजी प्रयोग को सूचना प्रौद्योगिकी में हुए विकास का पूरा लाभ मिला है । हिंदी प्रयोग के लिए भी ये सब सुविधाएँ उतनी ही सहजता से उपलब्ध हो सके इसके लिए अधिकारियों एवं विद्वानों को लेकर तीन समितियाँ गठित की गई है । ये समितियाँ हिंदी प्रयोगकर्ता की साफ्टवेयर संबंधी आवश्यकताओं की प्रभावी पूर्ति एवं हिंदी प्रयोगकर्ता में तकनीकी प्रयोग संबंधी जागरूकता पैदा करने के संबंध में सुझाव देंगी । मुझे यकीन है कि इन सुझावों पर अमल हिंदी प्रयोगकर्ता तक सूचना प्रौद्योगिकी में हुए विकास के लाभ को पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान होगा ।
यह अच्छी बात है कि हम हर क्षेत्र में विशेष उपलब्धियाँ हासिल करने वालों को सम्मानित करते हैं । सम्मेलन में आज कई संगठनों ने पुरस्कार प्राप्त किए हैं । मैं पुरस्कार प्राप्त करने वालों को पुनः बधाई देता हूँ । पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का यह दायित्व बनता है कि वे अपने पूरे संगठन में राजभाषा हिंदी के प्रयोग-प्रसार को स्थायी रूप दें और अन्य संगठनों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें । शेष संगठनों के वरिष्ठ अधिकारियों के अपेक्षा है कि वे संविधान द्वारा सौंपे गए इस दायित्व का निर्वाह उसी निष्ठा और तत्परता से करें जिस निष्ठा से वि अपने अन्य दायित्वों को निभाते हैं ।
अपने अध्यक्षीय भाषण में सचिव, राजभाषा विभाग डॉ. प्रदीप कुमार ने कहा कि वैश्वीकरण के दौर में हिंदी के भविष्य को लेकर चिंता के स्वर सर्वत्र सुनाई पड़ रहे हैं, मगर इस संबंध में किसी चिंता या परेशानी की जरूरत नहीं है । जब तक भारतीय संस्कृति का अस्तित्व रहेगा, तब तक हिंदी और भारतीय भाषाएँ जिंदा रहेंगी । आज विदेशी मुल्क हमारे देश की ओर आकर्षित हो रहे हैं । बहु-राष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार है । ग्रामीण जनता के साथ उनकी भाषा में बातचीत करने में ही इन कंपनियों की सफलता निर्भर करेगी । इस आलोक में भारतीय भाषाओं का भविष्य उज्जवल है ।
केंद्रीय विद्यालय की नन्हीं छात्राओं द्वारा भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ । राजभाषा विभाग के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार जी की अध्यक्षता में संपन्न उद्घाटन सत्र में राजभाषा विभाग के संयुक्त सचिव श्री डी.के. पांडेय जी ने स्वागत भाषण दिया । जिपमेर के निदेशक डॉ. के.एस.वी.के. सुब्बाराव जी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित किया । दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में राजभाषा कार्यान्वयन की अद्यतन स्थिति रिपोर्ट डॉ. वी. बालकृष्णन, उप निदेशक (कार्यान्वयन) ने प्रस्तुत की । अंत में केंद्रीय विद्यालय, पुदुच्चेरी के छात्र-छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की ।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता राजभाषा विभाग के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार जी ने किया । विचार-विमार्श पर केंद्रित इस सत्र में डॉ. बालशौरि रेड्डी जी ने तमिलनाडु में हिंदी के उद्भव और विकास पर तथा डॉ. एम.के. श्रीवास्तव, मुख्य चिकित्सा अधिकारी (वि.प्र.), ने भाषा, संस्कृति, समाज और स्वास्थ्य – एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर व्याख्यान दिए । इसी सत्र में दक्षिण क्षेत्र में राजभाषा कार्यान्वयन की रिपोर्ट डॉ. विश्वनाथ झा, उप निदेशक (कार्यान्वयन) ने प्रस्तुत की । अंत में डॉ. वी. बालकृष्णन, उप निदेशक (कार्यान्वयन) के धन्यवाद ज्ञापन के साथ सम्मेलन सुसंपन्न हुआ ।
दि.9 अक्तूबर, 2009 को पुदुच्चेरी में क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन के अवसर पर माननीय गृह राज्य मंत्री, श्री अजय माकन जी के करकमलों से राजभाषा पुरस्कार (वर्ष 2008-09) प्राप्त करनेवाले कार्यालयों की सूची इस प्रकार है ।
दक्षिण क्षेत्र (आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक)
सरकारी कार्यालय वर्ग
राष्ट्रीय रेशमकीट बीच संगठन, बैंगलूर – प्रथम
कुक्कुट परियोजना निदेशालय, हैदराबाद – द्वितीय
मुख्य नियंत्रण सुविधा, अंतरिक्ष विभाग, हासन – तृतीय
उपक्रम
भारतीय कपास निगम लिमिटेड, शाखा कार्यालय, आदिलाबाद – प्रथम
प्रतिभूति मुद्रणालय, हैदराबाद – द्वितीय
भारत संचार निगम लि., विजयवाडा – तृतीय
बैंक
कार्पोरेशन बैंक, आंचलिक कार्यालय, हुबली – प्रथम
कार्पेरेशन बैंक, आंचलिक कार्यालय, उडुपि – द्वितीय
भारतीय स्टेट बैंक, स्थानीय प्रधान कार्यालय, हैदराबाद – तृतीय
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति
भद्रावती-शिमोगा (सरकार कार्यालय) – प्रथम
हैदराबाद (बैंक) – द्वितीय
बैंगलूर (कार्यालय) – तृतीय
दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र (तमिलनाडु, केरल, पांडिच्चेरी एवं लक्ष्यद्वीप केंद्रशासी प्रदेश)
सरकारी कार्यालय
मुख्य आयकर आयुक्त का कार्यालय, तिरुवनंतपुरम – प्रथम
राष्ट्रीय कैडेट कोर निदेशालय, केरल और लक्षद्वीप, तिरुवनंतपुरम – प्रथम
मुख्य आयकर आयुक्त का कार्यालय, कोचिन – तृतीय
उपक्रम
प्रधान महाप्रबंधक, भारत संचार निगम लिमिटेड, कोलिक्केड – प्रथम
हिंदुस्तान न्यूजप्रिंट लिमिटेड, कोट्टयम - द्वितीय
हिंदुस्तान इन्सेक्टिसाइड्स लिमिटेड, कोचिन – तृतीय
बैक
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, क्षेत्रीय कार्यालय, एरणाकुलम – प्रथम
सिंडिकेट बैंक, क्षेत्रीय कार्यालय, कोयंबत्तूर – द्वितीय
कार्पोरेशन बैंक, अंचल कार्यालय, कोचिन – तृतीय
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति
कालीकट (कार्यालय) – प्रथम
चेन्नै (बैंक) – द्वितीय
पुदुच्ची (कार्यालय) – तृतीय
प्रस्तुति: डॉ.सी.जय शंकर बाबु,संपादक,युग मानस,
ई-मेल:yugmanas@gmail.com चलभाष:098435 08506
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शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009
कवि और कविता: डॉ. श्याम सुन्दर हेमकार
कवि और कविता:
डॉ. श्याम सुन्दर हेमकार
( डॉ. हेमकार हिंदी, उर्दू और संस्कृत के साहित्यकार हैं आपकी कृति 'सौरभः'(दोहानुवाद संजीव 'सलिल') बहुचर्चित और बहुप्रशंसित हुई है. आजीविका से दंत चिकित्सक होते हुए भी डॉ. हेमकार भारत और भारती की सेवा में निरंतर रत हैं. दिव्य नर्मदा को डॉ. हेमकार की रचनाएँ अंतर्जाल पर प्रथमतः प्रस्तुत करने का गौरव प्राप्त हो रहा है - सं. )
संदेश:
अंधकार में डूबे हैं, बिना रौशनी के कितने तन.
बाट जोहते हैं प्रकाश की, कितने जीवन.
तन की अँधेरी बगिया को कर आलोकित महका दें.
मरणोपरांत नेत्रदान कर जीवन ज्योति से चहका दें.
*
जीवेत रक्तं दानं नेत्रं मृत्योपरांते च
धनस्य अंशम समाजहिताय जीवनं परमार्थकं.
अर्थ:
जीते जी रक्तदान कर किसी को प्राणदान दें, मृत्यु के बाद नेत्रदान कर किसी के जीवन को प्रकाश से आप्लावित कर दें. अपनी आय के कुछ भाग को निर्धन वर्ग पर खर्च करें और जीवन परमार्थ करते-करते सार्थकता पाए.
*
खाए बहुत पत्थर, जरा फलदार क्या हुआ?
होता अगर बबूल तो बेहतर होता..
*
खुशबू की ललक में बहुत नोचा गया हूँ मैं.
कांटे पहन कर भी मैं महफूज़ न रहा..
*
गीत होता तो गुनगुना लेता,
गजल होती तो होंठों पे'सजा लेता.
*
दिल मेरा छोटा सा
आपका कद है लम्बा.
वर्ना आँखों के रास्ते
दिल में बिठा लेता..
*
आओ छोडें वहम
स्वर्ग का लालच.
हम न पालेंगे,
जायेंगे हम नर्क.
पर उसे स्वर्ग बना डालेंगे.
सृष्टि नियंता क्या तुझमें
ना इतना दम-खम था
नर्क बनाया बड़ा,
स्वर्ग क्यों कम था?
अच्छे काम करते-करते
आदमी सत्कर्मी कहलाता है.
बुरे काम करनेवाला आदमी
कुकर्मी हो जाता है.
हे प्रभु!
आपने बुरे कर्म और बुरे लोग
अधिक बनाये.
क्षमा-दयानिधि!
आप मेरी शंका में
यूँ घिर आये.
*
मैं अँधेरा हूँ,
अँधेरे तुम्हारे हर लूँगा.
बदले में
प्रकाश और रश्मियाँ
जी भर दूँगा.
याद रखो
जो भी मेरी बाँहों में,
पनाहों में नहीं आया है.
दूसरे दिन का सूरज
देख नहीं पाया है.
*
शब्द स्वयं में आडम्बर हैं
फिर भी शब्द सजाने होंगे.
एक-एक शब्दों के हमको
अगणित अर्थ लगाने होंगे.
*
लहरों के
आलिंगन में बंध
बालू बन जाती चट्टानें
नेह ह्रदय सागर में
कितना छिपा हुआ है.
वह क्या जाने?
*
गंध मोगरे की भीनी सी
फूट रही थी तन से.
गिरे-मोतिया-बिंदु बने,
जलकण स्वर्णाभ बदन से.
*
माँ का दमन न दागदार बनाया जाये.
शहीदों का लहू न व्यर्थ बहाया जाये.
आओ! बाँहों में बाहें डालकर गले तो मिलें.
अखंड भारत का नया नगमा सुनाया जाये..
*****************
डॉ. श्याम सुन्दर हेमकार
( डॉ. हेमकार हिंदी, उर्दू और संस्कृत के साहित्यकार हैं आपकी कृति 'सौरभः'(दोहानुवाद संजीव 'सलिल') बहुचर्चित और बहुप्रशंसित हुई है. आजीविका से दंत चिकित्सक होते हुए भी डॉ. हेमकार भारत और भारती की सेवा में निरंतर रत हैं. दिव्य नर्मदा को डॉ. हेमकार की रचनाएँ अंतर्जाल पर प्रथमतः प्रस्तुत करने का गौरव प्राप्त हो रहा है - सं. )
संदेश:
अंधकार में डूबे हैं, बिना रौशनी के कितने तन.
बाट जोहते हैं प्रकाश की, कितने जीवन.
तन की अँधेरी बगिया को कर आलोकित महका दें.
मरणोपरांत नेत्रदान कर जीवन ज्योति से चहका दें.
*
जीवेत रक्तं दानं नेत्रं मृत्योपरांते च
धनस्य अंशम समाजहिताय जीवनं परमार्थकं.
अर्थ:
जीते जी रक्तदान कर किसी को प्राणदान दें, मृत्यु के बाद नेत्रदान कर किसी के जीवन को प्रकाश से आप्लावित कर दें. अपनी आय के कुछ भाग को निर्धन वर्ग पर खर्च करें और जीवन परमार्थ करते-करते सार्थकता पाए.
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खाए बहुत पत्थर, जरा फलदार क्या हुआ?
होता अगर बबूल तो बेहतर होता..
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खुशबू की ललक में बहुत नोचा गया हूँ मैं.
कांटे पहन कर भी मैं महफूज़ न रहा..
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गीत होता तो गुनगुना लेता,
गजल होती तो होंठों पे'सजा लेता.
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दिल मेरा छोटा सा
आपका कद है लम्बा.
वर्ना आँखों के रास्ते
दिल में बिठा लेता..
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आओ छोडें वहम
स्वर्ग का लालच.
हम न पालेंगे,
जायेंगे हम नर्क.
पर उसे स्वर्ग बना डालेंगे.
सृष्टि नियंता क्या तुझमें
ना इतना दम-खम था
नर्क बनाया बड़ा,
स्वर्ग क्यों कम था?
अच्छे काम करते-करते
आदमी सत्कर्मी कहलाता है.
बुरे काम करनेवाला आदमी
कुकर्मी हो जाता है.
हे प्रभु!
आपने बुरे कर्म और बुरे लोग
अधिक बनाये.
क्षमा-दयानिधि!
आप मेरी शंका में
यूँ घिर आये.
*
मैं अँधेरा हूँ,
अँधेरे तुम्हारे हर लूँगा.
बदले में
प्रकाश और रश्मियाँ
जी भर दूँगा.
याद रखो
जो भी मेरी बाँहों में,
पनाहों में नहीं आया है.
दूसरे दिन का सूरज
देख नहीं पाया है.
*
शब्द स्वयं में आडम्बर हैं
फिर भी शब्द सजाने होंगे.
एक-एक शब्दों के हमको
अगणित अर्थ लगाने होंगे.
*
लहरों के
आलिंगन में बंध
बालू बन जाती चट्टानें
नेह ह्रदय सागर में
कितना छिपा हुआ है.
वह क्या जाने?
*
गंध मोगरे की भीनी सी
फूट रही थी तन से.
गिरे-मोतिया-बिंदु बने,
जलकण स्वर्णाभ बदन से.
*
माँ का दमन न दागदार बनाया जाये.
शहीदों का लहू न व्यर्थ बहाया जाये.
आओ! बाँहों में बाहें डालकर गले तो मिलें.
अखंड भारत का नया नगमा सुनाया जाये..
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गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009
नवगीत: आँचल मैला मत होने दो
नवगीत:
आँचल मैला
मत होने दो...
*
ममता का
सागर पाया है.
प्रायः भीगे
दामन में.
संकल्पों का
धन पाया है,
रीते-रिसते
आँचल में.
श्रृद्धा-निष्ठां को
सहेज लो,
बिखरा-फैला
मत होने दो.
आँचल मैला
मत होने दो...
*
माटी से जब
सलिल मिले तो,
पंक मचेगा
दूर न करना.
खिले पंक में
जब भी पंकज,
पुलक-ललककर
पल में वरना.
श्वास-चदरिया
निर्मल रखना.
जीवन थैला
मत होने दो.
आँचल मैला
मत होने दो...
*
आँचल मैला
मत होने दो...
*
ममता का
सागर पाया है.
प्रायः भीगे
दामन में.
संकल्पों का
धन पाया है,
रीते-रिसते
आँचल में.
श्रृद्धा-निष्ठां को
सहेज लो,
बिखरा-फैला
मत होने दो.
आँचल मैला
मत होने दो...
*
माटी से जब
सलिल मिले तो,
पंक मचेगा
दूर न करना.
खिले पंक में
जब भी पंकज,
पुलक-ललककर
पल में वरना.
श्वास-चदरिया
निर्मल रखना.
जीवन थैला
मत होने दो.
आँचल मैला
मत होने दो...
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नमन नर्मदा: भव्य नर्मदा शन्नो अग्रवाल
नमन नर्मदा:
भव्य नर्मदा
शन्नो अग्रवाल
(रचनाकार भारत की बेटी किन्तु वर्तमान में इंग्लैंड निवासिनी हैं. परदेश में भी उनके मन-प्राण में भारत की माटी की खुशबू समाई रहती है. इस रचना में वे सनातन सौन्दर्यमयी नर्मदा के प्रति अपनी भावांजलि निवेदित कर रही हैं- सं.)
दिव्य नर्मदा को मैंने जाना जबसे
लिपट गयी हूँ इसके आलिंगन में
कल-कल में इसकी नवगीत भरे
शीतल,निर्मल धारा के स्पंदन में.
भव्य,शान्तिमय नवरूप धारिणी
सरस,सुगम वेग जल की धारा
छवि सुखद अवलोकन मन में कर
ह्रदय का दुख भी बह जाता सारा.
निश्छल,चपल लहरें भिगो के आयें
छूकर स्वप्निल से अटल किनारों को
बार-बार नहलाती हैं वापस आकर
जल बीच में कितनी ही चट्टानों को.
पंछी आते जल पी उड़ते मंडराते ऊपर
अठखेली करके जल से करते गुंजन
कलरव से भर जातीं सभी दिशायें तब
फेनिल जल का लगता चांदी सा तन.
आता पथ में कोई अवरोह तनिक भी
नहीं जरा सा तब गति में अंतर आता
तन-मन सबके धोकर उज्ज्वल करती
मिल प्रवाह में पाप-मैल सब बह जाता.
*************************
भव्य नर्मदा
शन्नो अग्रवाल
(रचनाकार भारत की बेटी किन्तु वर्तमान में इंग्लैंड निवासिनी हैं. परदेश में भी उनके मन-प्राण में भारत की माटी की खुशबू समाई रहती है. इस रचना में वे सनातन सौन्दर्यमयी नर्मदा के प्रति अपनी भावांजलि निवेदित कर रही हैं- सं.)
दिव्य नर्मदा को मैंने जाना जबसे
लिपट गयी हूँ इसके आलिंगन में
कल-कल में इसकी नवगीत भरे
शीतल,निर्मल धारा के स्पंदन में.
भव्य,शान्तिमय नवरूप धारिणी
सरस,सुगम वेग जल की धारा
छवि सुखद अवलोकन मन में कर
ह्रदय का दुख भी बह जाता सारा.
निश्छल,चपल लहरें भिगो के आयें
छूकर स्वप्निल से अटल किनारों को
बार-बार नहलाती हैं वापस आकर
जल बीच में कितनी ही चट्टानों को.
पंछी आते जल पी उड़ते मंडराते ऊपर
अठखेली करके जल से करते गुंजन
कलरव से भर जातीं सभी दिशायें तब
फेनिल जल का लगता चांदी सा तन.
आता पथ में कोई अवरोह तनिक भी
नहीं जरा सा तब गति में अंतर आता
तन-मन सबके धोकर उज्ज्वल करती
मिल प्रवाह में पाप-मैल सब बह जाता.
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बुधवार, 7 अक्टूबर 2009
जन्म दिवस: डॉ. मृदुल कीर्ति, बहुत-बहुत बधाई...
डॉ. मृदुल कीर्ति को जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
तुम जियो हजारों साल,
साल के दिन हों कई हजार.
भारती की आरती उतारती हैं नित्य प्रति
रचनाओं से जो उनको नमन शत-शत.
कीर्ति मृदुल से सुवासित हैं दस दिशा,
साधना सफल को नमन आज शत-शत.
जनम दिवस की बधाई भेजता 'सलिल'
भाव की मिठाई स्वीकार करें शत-शत.
नेह नरमदा में नहायें आप नित्य प्रति,
चांदनी सदृश उजियारें जग शत-शत.
तुम जियो हजारों साल,
साल के दिन हों कई हजार.
भारती की आरती उतारती हैं नित्य प्रति
रचनाओं से जो उनको नमन शत-शत.
कीर्ति मृदुल से सुवासित हैं दस दिशा,
साधना सफल को नमन आज शत-शत.
जनम दिवस की बधाई भेजता 'सलिल'
भाव की मिठाई स्वीकार करें शत-शत.
नेह नरमदा में नहायें आप नित्य प्रति,
चांदनी सदृश उजियारें जग शत-शत.
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dr. mridul kirti
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009
कृति चर्चा:/ Book Review
कृति चर्चा:
Contemporary Hindi poetry:
(A selection of Modern Hindi poems translated in English)
Editor & Translator: Bhagvat Prasad Mishra 'Niyaz'
Pages: 197, Price Rs. 300/-
Sat Sahitya Prakashan, FF4/B Block, Sun Power Flats, Mem Nagar, Ahmedabad 380052
*
'The present collection of Contemporary Hindi poems is a bouquet of different variety of flowers both in colour and fragrance fresh from the Hindi garden.
Hindi poetry today is not the old, traditional, formal and ornamental poetry. However, umlike west it still maintains it's lyricality through it's internal rhythm.
But you can'nt charge it with coservatism. It is much modern because both in form and content, it has broken the shackles of set metafers and similies and created new ones. What is most noteworthy is the return of the lyricin the form of songs, ghazals, new lyric and couplets.
Though translation is not original poetry but the spirit is there throbbing in every word and line. Robert Frost says: 'Whatever is left after translation is poetry.'
In one of his books "Poems and Problems' Bledinir Nebikov contributed an article on translating Eugene Vogin. He says 'what is translation?'
'It is the fadeed but shining head of the poet, the language of the parrot, the chattering of a monkey or insulting a departed soul.
But even after describing poetry as above, recreating a poem is impossible and so is its totality. If you think like this go through the the book in discussion, yo will change your view.
Twenty contemporary hindi poets Dr. Amba Shankar nagar, Niyaz, Dr. Chandrakant Mehta, Chandrasen 'Viraat", Dayakrishna Vijayvargiya, Dr, Kishor Kabra, Madhu Prasad, Madhukar Gaur, Nathmal Kedia, Nalini kant, Nirmal Shukla, Rajkumari Sharma 'Raaz', Rajendra Pardesi, Dr. Ram Sanehi Lal Sharma 'Yayavar', Ramesh Chandra Sobti, Sanjiv Verma 'Salil', Dr. Sudesh, Sunita Jain, Udai Bhanu 'Hans' and Dr. Vishnu 'Viraat' are enriching the book by their rmarkable poetry.
It is a rare collection of the contemporary Hindi Poetry. Lots of Thanks to Prof. Niyaaz for this noble work.
*******************
Contemporary Hindi poetry:
(A selection of Modern Hindi poems translated in English)
Editor & Translator: Bhagvat Prasad Mishra 'Niyaz'
Pages: 197, Price Rs. 300/-
Sat Sahitya Prakashan, FF4/B Block, Sun Power Flats, Mem Nagar, Ahmedabad 380052
*
'The present collection of Contemporary Hindi poems is a bouquet of different variety of flowers both in colour and fragrance fresh from the Hindi garden.
Hindi poetry today is not the old, traditional, formal and ornamental poetry. However, umlike west it still maintains it's lyricality through it's internal rhythm.
But you can'nt charge it with coservatism. It is much modern because both in form and content, it has broken the shackles of set metafers and similies and created new ones. What is most noteworthy is the return of the lyricin the form of songs, ghazals, new lyric and couplets.
Though translation is not original poetry but the spirit is there throbbing in every word and line. Robert Frost says: 'Whatever is left after translation is poetry.'
In one of his books "Poems and Problems' Bledinir Nebikov contributed an article on translating Eugene Vogin. He says 'what is translation?'
'It is the fadeed but shining head of the poet, the language of the parrot, the chattering of a monkey or insulting a departed soul.
But even after describing poetry as above, recreating a poem is impossible and so is its totality. If you think like this go through the the book in discussion, yo will change your view.
Twenty contemporary hindi poets Dr. Amba Shankar nagar, Niyaz, Dr. Chandrakant Mehta, Chandrasen 'Viraat", Dayakrishna Vijayvargiya, Dr, Kishor Kabra, Madhu Prasad, Madhukar Gaur, Nathmal Kedia, Nalini kant, Nirmal Shukla, Rajkumari Sharma 'Raaz', Rajendra Pardesi, Dr. Ram Sanehi Lal Sharma 'Yayavar', Ramesh Chandra Sobti, Sanjiv Verma 'Salil', Dr. Sudesh, Sunita Jain, Udai Bhanu 'Hans' and Dr. Vishnu 'Viraat' are enriching the book by their rmarkable poetry.
It is a rare collection of the contemporary Hindi Poetry. Lots of Thanks to Prof. Niyaaz for this noble work.
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शनिवार, 3 अक्टूबर 2009
दो कवितायेँ; लावण्या शर्मा, अमेरिका
दो कवितायेँ-
लावण्या शर्मा, अमेरिका
(हिंदी साहित्य और चल-चित्र जगत के अनुपम गीतकार पं. नरेन्द्र शर्मा कि सुपुत्री लावण्या जी के गीतों में पिता से विरासत में मिले सनातन भारतीय संस्कारों की झलक और गूँज है. प्रस्तुत हैं दिव्य नर्मदा के पाठकों के लिए भेजी गयी दो विशेष रचनाएँ-सं.)
अहम ब्रह्मास्मि
असीम अनन्त, व्योम, यही तो मेरी छत है!
समाहित तत्त्व सारे, निर्गुण का स्थायी आवास
हरी-भरी धरती, विस्तरित, चतुर्दिक-
यही तो है बिछौना, जो देता मुझे विश्राम!
हर दिशा मेरा आवरण, पवन आभूषण -
हर घर मेरा जहाँ पथ मुड जाता स्वतः मेरा,
पथिक हूँ, हर डग की पदचाप -
विकल मेरा हर श्वास, तुमसे, आश्रय माँगता!
**********************
श्वेत श्याम
दिवस-रात, श्वेत-श्याम,
एक उज्ज्वल, दूजा घन तमस
बीच मेँ फैला इन्द्रधनुष,
उजागर, किरणों का चक्र,
एक सूर्य के आगमन पर,
उसके जाते सब अन्तर्ध्यान!
तमस, जडता का फैलता साम्राज्य !
चन्द्र दीप, काले काले आसमाँ पर,
तारोँ नक्षत्रों की टिमटिमाहट,
सृष्टि के पहले, ये कुछ नहीं था -
सब कुछ ढँका था एक अँधेरे मेँ,
स्वर्ण गर्भ, सर्वव्यापी, एक ब्रह्म
अणु-अणु मेँ विभाजित, शक्ति-पुंज!
मानव, दानव, देवता, यक्ष, किन्नर,
जल-थल-नभ के अनगिनत प्राणी,
सजीव-निर्जीव, पार्थिव-अपार्थिव
ब्रह्माण्ड बँट गया कण-क़ण मेँ जब,
प्रतिपादित सृष्टि ढली संस्कृति में तब!
****************************
लावण्या शर्मा, अमेरिका
(हिंदी साहित्य और चल-चित्र जगत के अनुपम गीतकार पं. नरेन्द्र शर्मा कि सुपुत्री लावण्या जी के गीतों में पिता से विरासत में मिले सनातन भारतीय संस्कारों की झलक और गूँज है. प्रस्तुत हैं दिव्य नर्मदा के पाठकों के लिए भेजी गयी दो विशेष रचनाएँ-सं.)
अहम ब्रह्मास्मि
असीम अनन्त, व्योम, यही तो मेरी छत है!
समाहित तत्त्व सारे, निर्गुण का स्थायी आवास
हरी-भरी धरती, विस्तरित, चतुर्दिक-
यही तो है बिछौना, जो देता मुझे विश्राम!
हर दिशा मेरा आवरण, पवन आभूषण -
हर घर मेरा जहाँ पथ मुड जाता स्वतः मेरा,
पथिक हूँ, हर डग की पदचाप -
विकल मेरा हर श्वास, तुमसे, आश्रय माँगता!
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श्वेत श्याम
दिवस-रात, श्वेत-श्याम,
एक उज्ज्वल, दूजा घन तमस
बीच मेँ फैला इन्द्रधनुष,
उजागर, किरणों का चक्र,
एक सूर्य के आगमन पर,
उसके जाते सब अन्तर्ध्यान!
तमस, जडता का फैलता साम्राज्य !
चन्द्र दीप, काले काले आसमाँ पर,
तारोँ नक्षत्रों की टिमटिमाहट,
सृष्टि के पहले, ये कुछ नहीं था -
सब कुछ ढँका था एक अँधेरे मेँ,
स्वर्ण गर्भ, सर्वव्यापी, एक ब्रह्म
अणु-अणु मेँ विभाजित, शक्ति-पुंज!
मानव, दानव, देवता, यक्ष, किन्नर,
जल-थल-नभ के अनगिनत प्राणी,
सजीव-निर्जीव, पार्थिव-अपार्थिव
ब्रह्माण्ड बँट गया कण-क़ण मेँ जब,
प्रतिपादित सृष्टि ढली संस्कृति में तब!
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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009
नव गीत: हम सब/माटी के पुतले है...
नव गीत
आचार्य संजीव 'सलिल'
हम सब
माटी के पुतले है...
*
कुछ पाया
सोचा पौ बारा.
फूल हर्ष से
हुए गुबारा.
चार कदम चल
देख चतुर्दिक-
कुप्पा थे ज्यों
मैदां मारा.
फिसल पड़े तो
सच जाना यह-
बुद्धिमान बनते,
पगले हैं.
हम सब
माटी के पुतले है...
*
भू पर खड़े,
गगन को छूते.
कुछ न कर सके
अपने बूते.
बने मिया मिट्ठू
अपने मुँह-
खुद को नाहक
ऊँचा कूते.
खाई ठोकर
आँख खुली तो
देखा जिधर
उधर घपले हैं.
हम सब
माटी के पुतले है...
*
नीचे से
नीचे को जाते.
फिर भी
खुद को उठता पाते.
आँख खोलकर
स्वप्न देखते-
फिरते मस्ती
में मदमाते.
मिले सफलता
मिट्टी लगती.
अँधियारे
लगते उजले हैं.
हम सब
माटी के पुतले है...
***************
आचार्य संजीव 'सलिल'
हम सब
माटी के पुतले है...
*
कुछ पाया
सोचा पौ बारा.
फूल हर्ष से
हुए गुबारा.
चार कदम चल
देख चतुर्दिक-
कुप्पा थे ज्यों
मैदां मारा.
फिसल पड़े तो
सच जाना यह-
बुद्धिमान बनते,
पगले हैं.
हम सब
माटी के पुतले है...
*
भू पर खड़े,
गगन को छूते.
कुछ न कर सके
अपने बूते.
बने मिया मिट्ठू
अपने मुँह-
खुद को नाहक
ऊँचा कूते.
खाई ठोकर
आँख खुली तो
देखा जिधर
उधर घपले हैं.
हम सब
माटी के पुतले है...
*
नीचे से
नीचे को जाते.
फिर भी
खुद को उठता पाते.
आँख खोलकर
स्वप्न देखते-
फिरते मस्ती
में मदमाते.
मिले सफलता
मिट्टी लगती.
अँधियारे
लगते उजले हैं.
हम सब
माटी के पुतले है...
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मंगलवार, 29 सितंबर 2009
Sonnet (सोंनेट) श्रीमती शन्नो अग्रवाल
Sonnet (सोंनेट)
( अंगरेजी साहित्य के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण छंद सोंनेट पर इंग्लॅण्ड निवासी श्रीमती शन्नो अग्रवाल ने दिव्य नर्मदा के लिए विशेष आलेख भेजा है. पाठक ईसे पढें और सोंनेट लिखने का प्रयास करें. -सं.)
Sonnet अंग्रेजी में कविता का एक रूप है. यह शब्द.....''sonnet'' एक Italian शब्द sonetto से बना है जिसका मतलब है ''little song'' मतलब.....छोटा सा गाना. तेरहवीं शताब्दी में आते-आते यह 14 लाइनों वाली कविता हो गया. इसके कुछ खास नियम हैं लय व लिखने के ढंग पर. इसके रचयिता को sonneteers कहते हैं. इसके इतिहास में समय-समय पर लिखने वाले कुछ न कुछ वदलाव करते रहे हैं. Sonnets लिखने वालों में सबसे अधिक प्रसिद्ध नाम है......William Shakespeare का जिन्होंने 154 सोंनेट्स लिखे जो iambic pentameter में लिखे गये. उनके sonnets में जो लय का तरीका था वह ABAB CDCD EFEF GG था. जिसमे आखिरी दो लाइनें (GG) couplet की होती थीं. English couplets के बारे में दोहे की एक कक्षा में बताया जा चुका है की: Couplets दो लाइनों की iambic pentameter में लिखी आखिर के शब्दों में लय लिये हुये अंग्रेजी में कविता होती है.
John Milton भी sonneteers थे लेकिन उन्होंने सोंनेट लिखने में कई जगह Italian लय का तरीका अपनाया.
सोलहवीं शताब्दी में Thomas Wyatt द्वारा English sonnets लिखे गये, लेकिन जिनमें अधिकतर Wyatt ने इटैलियन व फ्रेंच सोंनेट्स का अनुवाद किया था.
Shakespearean sonnets को भी English sonnets कहा जाता है....जो तीन बार चार-चार लाइनों के समूह में लिखे जाते थे और समाप्ति एक couplet से होती थी. अधिकतर Sonnets का विषय उन दिनों प्रेम से सम्बंधित होता था. लन्दन में 1590 में जब प्लेग फैला था तो सभी थियेटर बंद हो गये थे और सभी लिखने वालों को stage पर ड्रामा खेलने से रोक दिया गया था. उसी समय के दौरान Shakespeare ने अपने sonnets लिखे थे. लेकिन 1670 के बाद काफी समय तक सोंनेट्स लिखने का फैशन उठ गया. लेकिन फिर French Revolution के आने पर अचानक sonnets फिर लिखे जाने लगे और Wordsworth, Milton, keats और Shelley आदि ने भी sonnets लिखे.
तो आइये देखें Sonnet (सोंनेट) कैसे लिखा जाता है:
1. सोंनेट अंग्रेजी में 14 लाइनों की एक कविता होती है.
2. इसकी पहली 12 लाइनें चार-चार लाइनों के समूह (stanza) में लिखी जाती हैं.
3. हर समूह की पहली लाइन की तीसरी लाइन से, व दूसरी लाइन की चौथी लाइन से लय (rhyme) मिलनी चाहिये.
4. बाकी आखिर की दो लाइनें couplet होती हैं. जिनमें दोनों लाइनों के अंत की लय एक समान होती है.
5. सोंनेट की हर लाइन iambic pentameter में लिखी होती है.
अब देखें iambic pentameter क्या होता है:
1. iambic pentameter कविता की वह लाइन है जिसके शब्द 10 हिस्से (syllables) में बँटे होते हैं.
2. इसमें 5 हिस्सों (pairs) पर कम जोर से (unstressed) उच्चारण किया जाता है. व 5 हिस्सों पर अधिक जोर से (stressed) उच्चारण होता है.
यहाँ पर unstressed और stressed syllables की ताल (rhythm या beat) का उदाहरण Shakespeare द्वारा लिखी दो लाइनों में देखिये:
If mu - / -sic be / the food / of love, / play on
Is this / a dag - /- ger I / see be - / - fore me.
तो Syllables के हर pair को iambus कहते हैं. और हर iambus एक unstressed और एक stressed ताल से बनता है.
William Shakespeare के लिखे एक सोंनेट का उदाहरण देखिये:
(With rhyme scheme in four stanzas)
A Shall I compare thee to a summer's day?
B Thou art more lovely and more temperate:
A Rough winds do shake the darling buds of May
B And summer's lease hath all too short a date:
C Sometimes too hot the eye of heaven shines,
D And often is his gold complexion dimm'd;
C And every fair from fair sometime declines,
D By chance or nature's changing course untrimm'd;
E But thy eternal summer shall not fade
F Nor loose possession of that fair thou ow'st;
E Nor shall death brag thou wand'rest in his shade,
F When in eternal lines to time thou grow'st:
G So long as men can breathe or eyes can see,
G So long lives this, and this gives life to thee.
इसी ऊपर वाले सोंनेट का अब सरल अंग्रेजी में अनुवाद देखिये
(Divided in four line stanzas)
If I compare you to a summer's day
I'd have to say you are more beautiful and serene
By comparison, summer is rough on budding life
And doesn't last longer; once it has been;
At times the summer sun (heaven's eye) is too hot
And at other times clouds dim its brilliance
Everything fair in nature becomes less fair from time to time
No one can change (trim) nature or chance;
However, you yourself will not fade
Nor loose ownership of your fairness
Not even death will claim you
Because these lines I write will immortalize you;
Your beauty will last as long as men breathe and see,
As long as this sonnet lives and gives you life.
इसी सोंनेट का मैंने हिंदी अनुवाद भी किया है:
अगर मैं तुम्हारी तुलना एक ग्रीष्म दिवस से करुँ
तो तुममें उससे कहीं अधिक शांति और सुन्दरता है
तुम्हारी तुलना में यह मई का खिला सा महीना भी
देर तक नहीं रुकेगा और जल्दी ही मुरझा सकता है.
कभी-कभी सूरज इतना तपता हुआ होता है
और कभी बादलों के पीछे जाकर छिप जाता है
समय के साथ प्रकृति भी फीकी हो जाती है
और अचानक वाली बातों पर जोर नहीं होता है.
फिर भी तुम अपने में कभी नहीं मुर्झाओगी
ना ही तुम्हारी सुन्दरता में कोई कमी आयेगी
यहाँ तक की मृत्यु भी तुम्हे कभी नहीं छू पायेगी
क्योंकि मेरी यह पंक्तियाँ तुम्हें अमर बना देंगीं.
जब तक पुरुष साँसें लेगा और आँखें देख सकेंगी
और जब तक यह sonnet रहेगा तुम भी रहोगी.
एक और सोंनेट का उदाहरण देखिये जो Edmund Spencer ने लिखा है:
One day I wrote her name upon the strand,
but came the waves and washed it away:
Again I wrote it with a second hand,
But came the tide, and made my pains his prey.
Vain man, said she, that doest in vain assay
A mortal thing so to immortalize,
For I myself shall like to this decay,
And eek my name he wiped out likewise.
Not so (quothI), let baser things devise
To die in dust, but you shall live by fame;
My verse your virtues rare shall eternize,
And in the heavens write your glorious name.
Where when as Death shall all the world subdue,
Out love shall live, and later life renew.
इसी सोंनेट का गध में हिंदी अनुवाद मैंने किया है:
Edmund Spencer ने इस सोंनेट को अपनी पत्नी के लिये लिखा था. जिसमें वह समुद्र के किनारे बैठा हुआ अपनी कल्पना में खोया है की वह एक युवती के संग बातचीत कर रहा है और चाहता है की वह सुनहरा समय वहीँ थम जाये और फिर रेत में उसका नाम लिखकर उसे अमर बनाना चाहता है. किन्तु समुन्द्र की निर्मम लहरों ने ऐसा नहीं होने दिया और उस लिखे नाम को अपने संग बहा ले गईं, जैसा की समय की निर्ममता अक्सर इंसान की बनी चीज़ों को मिटा देती है. लेकिन फिर भी वह हिम्मत नहीं हारता है और दूसरे तरीके से अपने प्रेम को अमर बनाना चाहता है..... और वह है......कविता के रूप में लिखकर.....उस नाम को पृथ्वी से उठाकर स्वर्ग में अमर बना देना चाहता है......जहाँ हमेशा के लिये प्रेम का नाम अमर हो जाये और सारा संसार या मृत्यु भी कुछ ना बिगाड़ सके. जैसा की पहले बताया था तो यह sonnet भी अधिकतर sonnets की तरह प्रेम के विषय पर लिखा गया है. यह प्रेम, कविता और धर्म की भावनाओं का मिश्रण है.
लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ परिवर्तन आये और लिखने वाले लोग नियम भूल कर अपने ही तरीके से कप्लेट्स व सोंनेट्स लिखने लगे.
अब यहाँ आधुनिक ढंग से एक सोंनेट मैंने भी लिखा है:
Sometimes the path of life becomes thorny
And the truth is sometimes hard to take
The people you know may be so corny
To save the hurt some will lie and fake,
Pain and happiness are the part of life
One's ignorance might numb the pain
Bitter words are always sharp as a knife
The battle of emotions all goes in a vain,
Hidden fury of nature whenever explodes
It wipes earth's beauty with both hands
There is a warning that comes in codes
Not known when death's hand expands.
Life is like a river and we float like a swan
Strange twist of fate can make us a pawn.
और अपने सोंनेट का मैंने हिंदी अनुवाद भी किया है:
कभी-कभी जीवन की पगडंडियाँ हो सकती हैं काँटों से भरी
सचाई को निगलना कभी बहुत कठिन भी हो सकता है
लोग जिन्हें तुम जानते हो उनमें हो सकती है भावुकता भरी
दर्द छिपाने को कोई बहाना होता है या कोई झूठ बोलता है.
दर्द और ख़ुशी हैं एक सच और बने हैं जीवन का हिस्सा
किसी की अज्ञानता उसके दर्द को कभी कर देती है कम
शब्दों का नुकीलापन सदा चुभता है छुरी जैसा और कड़वा सा
भावनाएँ मन में उलझती रहती हैं पर न कम होता है गम.
जब-जब प्रकृति अपने कोप का भयानक रूप दिखाती है
वह मिटा देती है अपने दोनों हाथों से धरती की सुन्दरता
लेकिन पहले से ही चेतावनी कुछ इशारों से मिल जाती है
अचानक मृत्यु के खुले हाथों की अनुभव होती है निकटता.
जीवन एक नदी की तरह है जिसमें हम हंस बन तैरते हैं
कभी तकदीर के खेल में हम मोहरा बन भी फिसलते हैं.
और यह रहा एक और सोंनेट इसे भी मैंने ही लिखा है:
The word MUM doesn't echo in the house these days
Reading your text the tears ran down my cheeks
But to know you are sound and safe gives me relief
To see and hug you I have to wait a few more weeks.
I knew the day will come when you spread your wings
You will go to places and the world will be at your feet
To love children also means they enjoy some freedom
Also learn to calm down in the moments of heat.
You will have to make decisions that matter in life
You have grown to be sensible, thoughtful and wise
In life wheather there is a gentle breeze or a storm
But each day you wake up to find a new surprise.
You are a pure joy to me and I can't ask for more
I wish you the joys and the success be at your door.
ऊपरी सोंनेट का भी हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है:
''माँ'' शब्द न गूंजा कबसे घर में कितना है खालीपन
टेक्स्ट तुम्हारा पढ़कर यह आँखें मेरी निर्झर बन जातीं
जहाँ कहीं हो ठीक-ठाक हो जानके खुश हो जाता है मन
देखूँगी बेटे को फिर से सोच के जलती नयनों की बाती.
पता मुझे था कबसे एक दिन पंख तुम्हारे जब फैलेंगे
एक जगह से उड़कर तुम दुनिया भर में भ्रमण करोगे
नेह करो बच्चों से तो उन पर के कुछ बंधन भी टूटेंगे
अगर कभी कुछ बुरा लगे तो अपने को तुम शांत रखोगे.
बहुत जटिल है यह जीवन ढंग से ही कोई निश्चय करना
समझदार और बुद्धिमान हो समझबूझ के कदम उठाना
सरस हवा सहलाएगी पर यदि आंधी आये तो ना डरना
नयी भोर लायेगी संग अपने एक नयी उमंग का सपना.
मेरी आँखों के तारे तुम, और खुशिओं का एक खजाना
द्वार सफलता दस्तक दे, हर दिन हो खुशिओं का आना.
शन्नो अग्रवाल
( अंगरेजी साहित्य के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण छंद सोंनेट पर इंग्लॅण्ड निवासी श्रीमती शन्नो अग्रवाल ने दिव्य नर्मदा के लिए विशेष आलेख भेजा है. पाठक ईसे पढें और सोंनेट लिखने का प्रयास करें. -सं.)
Sonnet अंग्रेजी में कविता का एक रूप है. यह शब्द.....''sonnet'' एक Italian शब्द sonetto से बना है जिसका मतलब है ''little song'' मतलब.....छोटा सा गाना. तेरहवीं शताब्दी में आते-आते यह 14 लाइनों वाली कविता हो गया. इसके कुछ खास नियम हैं लय व लिखने के ढंग पर. इसके रचयिता को sonneteers कहते हैं. इसके इतिहास में समय-समय पर लिखने वाले कुछ न कुछ वदलाव करते रहे हैं. Sonnets लिखने वालों में सबसे अधिक प्रसिद्ध नाम है......William Shakespeare का जिन्होंने 154 सोंनेट्स लिखे जो iambic pentameter में लिखे गये. उनके sonnets में जो लय का तरीका था वह ABAB CDCD EFEF GG था. जिसमे आखिरी दो लाइनें (GG) couplet की होती थीं. English couplets के बारे में दोहे की एक कक्षा में बताया जा चुका है की: Couplets दो लाइनों की iambic pentameter में लिखी आखिर के शब्दों में लय लिये हुये अंग्रेजी में कविता होती है.
John Milton भी sonneteers थे लेकिन उन्होंने सोंनेट लिखने में कई जगह Italian लय का तरीका अपनाया.
सोलहवीं शताब्दी में Thomas Wyatt द्वारा English sonnets लिखे गये, लेकिन जिनमें अधिकतर Wyatt ने इटैलियन व फ्रेंच सोंनेट्स का अनुवाद किया था.
Shakespearean sonnets को भी English sonnets कहा जाता है....जो तीन बार चार-चार लाइनों के समूह में लिखे जाते थे और समाप्ति एक couplet से होती थी. अधिकतर Sonnets का विषय उन दिनों प्रेम से सम्बंधित होता था. लन्दन में 1590 में जब प्लेग फैला था तो सभी थियेटर बंद हो गये थे और सभी लिखने वालों को stage पर ड्रामा खेलने से रोक दिया गया था. उसी समय के दौरान Shakespeare ने अपने sonnets लिखे थे. लेकिन 1670 के बाद काफी समय तक सोंनेट्स लिखने का फैशन उठ गया. लेकिन फिर French Revolution के आने पर अचानक sonnets फिर लिखे जाने लगे और Wordsworth, Milton, keats और Shelley आदि ने भी sonnets लिखे.
तो आइये देखें Sonnet (सोंनेट) कैसे लिखा जाता है:
1. सोंनेट अंग्रेजी में 14 लाइनों की एक कविता होती है.
2. इसकी पहली 12 लाइनें चार-चार लाइनों के समूह (stanza) में लिखी जाती हैं.
3. हर समूह की पहली लाइन की तीसरी लाइन से, व दूसरी लाइन की चौथी लाइन से लय (rhyme) मिलनी चाहिये.
4. बाकी आखिर की दो लाइनें couplet होती हैं. जिनमें दोनों लाइनों के अंत की लय एक समान होती है.
5. सोंनेट की हर लाइन iambic pentameter में लिखी होती है.
अब देखें iambic pentameter क्या होता है:
1. iambic pentameter कविता की वह लाइन है जिसके शब्द 10 हिस्से (syllables) में बँटे होते हैं.
2. इसमें 5 हिस्सों (pairs) पर कम जोर से (unstressed) उच्चारण किया जाता है. व 5 हिस्सों पर अधिक जोर से (stressed) उच्चारण होता है.
यहाँ पर unstressed और stressed syllables की ताल (rhythm या beat) का उदाहरण Shakespeare द्वारा लिखी दो लाइनों में देखिये:
If mu - / -sic be / the food / of love, / play on
Is this / a dag - /- ger I / see be - / - fore me.
तो Syllables के हर pair को iambus कहते हैं. और हर iambus एक unstressed और एक stressed ताल से बनता है.
William Shakespeare के लिखे एक सोंनेट का उदाहरण देखिये:
(With rhyme scheme in four stanzas)
A Shall I compare thee to a summer's day?
B Thou art more lovely and more temperate:
A Rough winds do shake the darling buds of May
B And summer's lease hath all too short a date:
C Sometimes too hot the eye of heaven shines,
D And often is his gold complexion dimm'd;
C And every fair from fair sometime declines,
D By chance or nature's changing course untrimm'd;
E But thy eternal summer shall not fade
F Nor loose possession of that fair thou ow'st;
E Nor shall death brag thou wand'rest in his shade,
F When in eternal lines to time thou grow'st:
G So long as men can breathe or eyes can see,
G So long lives this, and this gives life to thee.
इसी ऊपर वाले सोंनेट का अब सरल अंग्रेजी में अनुवाद देखिये
(Divided in four line stanzas)
If I compare you to a summer's day
I'd have to say you are more beautiful and serene
By comparison, summer is rough on budding life
And doesn't last longer; once it has been;
At times the summer sun (heaven's eye) is too hot
And at other times clouds dim its brilliance
Everything fair in nature becomes less fair from time to time
No one can change (trim) nature or chance;
However, you yourself will not fade
Nor loose ownership of your fairness
Not even death will claim you
Because these lines I write will immortalize you;
Your beauty will last as long as men breathe and see,
As long as this sonnet lives and gives you life.
इसी सोंनेट का मैंने हिंदी अनुवाद भी किया है:
अगर मैं तुम्हारी तुलना एक ग्रीष्म दिवस से करुँ
तो तुममें उससे कहीं अधिक शांति और सुन्दरता है
तुम्हारी तुलना में यह मई का खिला सा महीना भी
देर तक नहीं रुकेगा और जल्दी ही मुरझा सकता है.
कभी-कभी सूरज इतना तपता हुआ होता है
और कभी बादलों के पीछे जाकर छिप जाता है
समय के साथ प्रकृति भी फीकी हो जाती है
और अचानक वाली बातों पर जोर नहीं होता है.
फिर भी तुम अपने में कभी नहीं मुर्झाओगी
ना ही तुम्हारी सुन्दरता में कोई कमी आयेगी
यहाँ तक की मृत्यु भी तुम्हे कभी नहीं छू पायेगी
क्योंकि मेरी यह पंक्तियाँ तुम्हें अमर बना देंगीं.
जब तक पुरुष साँसें लेगा और आँखें देख सकेंगी
और जब तक यह sonnet रहेगा तुम भी रहोगी.
एक और सोंनेट का उदाहरण देखिये जो Edmund Spencer ने लिखा है:
One day I wrote her name upon the strand,
but came the waves and washed it away:
Again I wrote it with a second hand,
But came the tide, and made my pains his prey.
Vain man, said she, that doest in vain assay
A mortal thing so to immortalize,
For I myself shall like to this decay,
And eek my name he wiped out likewise.
Not so (quothI), let baser things devise
To die in dust, but you shall live by fame;
My verse your virtues rare shall eternize,
And in the heavens write your glorious name.
Where when as Death shall all the world subdue,
Out love shall live, and later life renew.
इसी सोंनेट का गध में हिंदी अनुवाद मैंने किया है:
Edmund Spencer ने इस सोंनेट को अपनी पत्नी के लिये लिखा था. जिसमें वह समुद्र के किनारे बैठा हुआ अपनी कल्पना में खोया है की वह एक युवती के संग बातचीत कर रहा है और चाहता है की वह सुनहरा समय वहीँ थम जाये और फिर रेत में उसका नाम लिखकर उसे अमर बनाना चाहता है. किन्तु समुन्द्र की निर्मम लहरों ने ऐसा नहीं होने दिया और उस लिखे नाम को अपने संग बहा ले गईं, जैसा की समय की निर्ममता अक्सर इंसान की बनी चीज़ों को मिटा देती है. लेकिन फिर भी वह हिम्मत नहीं हारता है और दूसरे तरीके से अपने प्रेम को अमर बनाना चाहता है..... और वह है......कविता के रूप में लिखकर.....उस नाम को पृथ्वी से उठाकर स्वर्ग में अमर बना देना चाहता है......जहाँ हमेशा के लिये प्रेम का नाम अमर हो जाये और सारा संसार या मृत्यु भी कुछ ना बिगाड़ सके. जैसा की पहले बताया था तो यह sonnet भी अधिकतर sonnets की तरह प्रेम के विषय पर लिखा गया है. यह प्रेम, कविता और धर्म की भावनाओं का मिश्रण है.
लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ परिवर्तन आये और लिखने वाले लोग नियम भूल कर अपने ही तरीके से कप्लेट्स व सोंनेट्स लिखने लगे.
अब यहाँ आधुनिक ढंग से एक सोंनेट मैंने भी लिखा है:
Sometimes the path of life becomes thorny
And the truth is sometimes hard to take
The people you know may be so corny
To save the hurt some will lie and fake,
Pain and happiness are the part of life
One's ignorance might numb the pain
Bitter words are always sharp as a knife
The battle of emotions all goes in a vain,
Hidden fury of nature whenever explodes
It wipes earth's beauty with both hands
There is a warning that comes in codes
Not known when death's hand expands.
Life is like a river and we float like a swan
Strange twist of fate can make us a pawn.
और अपने सोंनेट का मैंने हिंदी अनुवाद भी किया है:
कभी-कभी जीवन की पगडंडियाँ हो सकती हैं काँटों से भरी
सचाई को निगलना कभी बहुत कठिन भी हो सकता है
लोग जिन्हें तुम जानते हो उनमें हो सकती है भावुकता भरी
दर्द छिपाने को कोई बहाना होता है या कोई झूठ बोलता है.
दर्द और ख़ुशी हैं एक सच और बने हैं जीवन का हिस्सा
किसी की अज्ञानता उसके दर्द को कभी कर देती है कम
शब्दों का नुकीलापन सदा चुभता है छुरी जैसा और कड़वा सा
भावनाएँ मन में उलझती रहती हैं पर न कम होता है गम.
जब-जब प्रकृति अपने कोप का भयानक रूप दिखाती है
वह मिटा देती है अपने दोनों हाथों से धरती की सुन्दरता
लेकिन पहले से ही चेतावनी कुछ इशारों से मिल जाती है
अचानक मृत्यु के खुले हाथों की अनुभव होती है निकटता.
जीवन एक नदी की तरह है जिसमें हम हंस बन तैरते हैं
कभी तकदीर के खेल में हम मोहरा बन भी फिसलते हैं.
और यह रहा एक और सोंनेट इसे भी मैंने ही लिखा है:
The word MUM doesn't echo in the house these days
Reading your text the tears ran down my cheeks
But to know you are sound and safe gives me relief
To see and hug you I have to wait a few more weeks.
I knew the day will come when you spread your wings
You will go to places and the world will be at your feet
To love children also means they enjoy some freedom
Also learn to calm down in the moments of heat.
You will have to make decisions that matter in life
You have grown to be sensible, thoughtful and wise
In life wheather there is a gentle breeze or a storm
But each day you wake up to find a new surprise.
You are a pure joy to me and I can't ask for more
I wish you the joys and the success be at your door.
ऊपरी सोंनेट का भी हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है:
''माँ'' शब्द न गूंजा कबसे घर में कितना है खालीपन
टेक्स्ट तुम्हारा पढ़कर यह आँखें मेरी निर्झर बन जातीं
जहाँ कहीं हो ठीक-ठाक हो जानके खुश हो जाता है मन
देखूँगी बेटे को फिर से सोच के जलती नयनों की बाती.
पता मुझे था कबसे एक दिन पंख तुम्हारे जब फैलेंगे
एक जगह से उड़कर तुम दुनिया भर में भ्रमण करोगे
नेह करो बच्चों से तो उन पर के कुछ बंधन भी टूटेंगे
अगर कभी कुछ बुरा लगे तो अपने को तुम शांत रखोगे.
बहुत जटिल है यह जीवन ढंग से ही कोई निश्चय करना
समझदार और बुद्धिमान हो समझबूझ के कदम उठाना
सरस हवा सहलाएगी पर यदि आंधी आये तो ना डरना
नयी भोर लायेगी संग अपने एक नयी उमंग का सपना.
मेरी आँखों के तारे तुम, और खुशिओं का एक खजाना
द्वार सफलता दस्तक दे, हर दिन हो खुशिओं का आना.
शन्नो अग्रवाल
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शिवानन्द वाणी
शिवानन्द वाणी
सावधानी और अन्तरावलोकन द्वारा सदा मानसिक
परिस्थितियों का ध्यान रखना चाहिए। मन में किसी
प्रकार का निषेधात्मक या अनिश्चित भाव प्रकट नहीं
होने देना चाहिए। कलुषित भावना को शुद्ध भावना
में बदल देना चाहिए।
YOU SHOULD BE EVER WATCHING THE
MENTAL STATES THROUGH CAREFUL AND
VIGILANT INTROSPECTION, AND SHOULD NOT
ALLOW ANY NEGATIVE AND UNDESIRABLE
BHAVA TO MANIFEST. YOU MUST
IMMEDIATELY CHANGE THE EVIL BHAVA
BY THINKING OF THE OPPOSITE BHAVA.
(Swami Sivananda)
अंतर अवलोकन करें, कलुषित तजें विचार.
शुद्ध-सुनिश्चित भाव से, हरि के हों दीदार. दोहानुवाद-सलिल
__
SERVE ALL CREATURES OF GOD. THE SERVICE OF SERVANTS OF GOD IS HIS REAL WORSHIP
सावधानी और अन्तरावलोकन द्वारा सदा मानसिक
परिस्थितियों का ध्यान रखना चाहिए। मन में किसी
प्रकार का निषेधात्मक या अनिश्चित भाव प्रकट नहीं
होने देना चाहिए। कलुषित भावना को शुद्ध भावना
में बदल देना चाहिए।
YOU SHOULD BE EVER WATCHING THE
MENTAL STATES THROUGH CAREFUL AND
VIGILANT INTROSPECTION, AND SHOULD NOT
ALLOW ANY NEGATIVE AND UNDESIRABLE
BHAVA TO MANIFEST. YOU MUST
IMMEDIATELY CHANGE THE EVIL BHAVA
BY THINKING OF THE OPPOSITE BHAVA.
(Swami Sivananda)
अंतर अवलोकन करें, कलुषित तजें विचार.
शुद्ध-सुनिश्चित भाव से, हरि के हों दीदार. दोहानुवाद-सलिल
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