एक मुक्तक :
मैं सपनों में नहीं जी रहा, सपने मुझमें जीते रहे हैं
कोशिश की बोतल में मदिरा, संघर्षों की पीते रहे हैं.
क्रंदन-रुदन न मुझको भाया, यह मत मानो दर्द नहीं है-
बाधा का शिकार करते बढ़, सच हम ही वह चीते रहे हैं.
मैं सपनों में नहीं जी रहा, सपने मुझमें जीते रहे हैं
कोशिश की बोतल में मदिरा, संघर्षों की पीते रहे हैं.
क्रंदन-रुदन न मुझको भाया, यह मत मानो दर्द नहीं है-
बाधा का शिकार करते बढ़, सच हम ही वह चीते रहे हैं.
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