हिंदी गजल
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मन लुभाए रातरानी आह भर।
छिप बुलाए रात रानी बाम पर।।
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खत पठाए इशारों में बात कर।
रुख छिपाए चिलमनों से झाँककर।।
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कहीं जाए तो पलट देखे इधर
यों जताए देखती है वो उधर।।
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खिलखिलाए लूट मन का चैन ले।
तिलमिलाए दाँत से लब काटकर।।
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जो न पाए तो बुलावा भेज दे।
सो न जाए रातरानी जागकर।।
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हाथ आए या न आए क्या पता?
साथ आए बेखबर हो बाखबर॥
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आ लुभाए लाल हो गुलनार सी
रू-ब-रू हों ख्वाब औ' सच बाँह भर।।
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पूर्णिमा में पूर्णिका 'संजीव' की
गुनगुनाए झुका नजरें रात भर।।
१५.१.२०२५
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