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बुधवार, 15 जनवरी 2025

रातरानी, हिंदी गजल, मुक्तिका

हिंदी गजल  

मन लुभाए रातरानी आह भर। 
छिप बुलाए रात रानी बाम पर।। 
खत पठाए इशारों में बात कर। 
रुख छिपाए चिलमनों से झाँककर।। 
कहीं जाए तो पलट देखे इधर 
यों जताए देखती है वो उधर।। 
खिलखिलाए लूट मन का चैन ले। 
तिलमिलाए दाँत से लब काटकर।। 
जो न पाए तो बुलावा भेज दे। 
सो न जाए रातरानी जागकर।। 
हाथ आए या न आए क्या पता? 
साथ आए बेखबर हो बाखबर॥ 
आ लुभाए लाल हो  गुलनार सी 
रू-ब-रू हों ख्वाब औ' सच बाँह भर।। 
पूर्णिमा में पूर्णिका 'संजीव' की  
गुनगुनाए झुका नजरें रात भर।।
१५.१.२०२५ 
०००  

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