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शनिवार, 3 जुलाई 2021

मुक्तिका :- सूरज

-: मुक्तिका :-
सूरज - १
संजीव 'सलिल'
*
उषा को नित्य पछियाता है सूरज.
न आती हाथ गरमाता है सूरज..

धरा समझा रही- 'मन शांत करले'
सखी संध्या से बतियाता है सूरज..

पवन उपहास करता, दिखा ठेंगा.
न चिढ़ता, मौन बढ़ जाता है सूरज..

अरूपा का लुभाता रूप- छलना.
सखी संध्या पे मर जाता है सूरज..

भटककर सच समझ आता है आखिर.
निशा को चाह घर लाता है सूरज..

नहीं है 'सूर', नाता नहीं 'रज' से
कभी क्या मन भी बहलाता है सूरज?.

करे निष्काम निश-दिन काम अपना.
'सलिल' तब मान-यश पाता है सूरज..
३-७-२०११ 
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