छंद बहर का मूल है १६
वार्णिक अनुष्टुप छंद
मात्रिक दैशिक शशिवदना छंद
मुक्तिका
*
सूर्य ऊगा तो सवेरा ८/१४
सूर्य डूबा तो अँधेरा
.
प्रीत की जादूगरी है
नूर ऊषा ने बिखेरा
.
नींद तू भी जाग जा रे!
मुर्ग ने दे बाँग टेरा
.
भू न जाती सासरे को
सूर्य लेता संग फेरा
.
साँझ बाँधे रोज राखी
माँग तारे टाँक धीरा
.
है निशा बाँकी सहेली
बाँध-तोड़े मोह-घेरा
.
चाँदनी-चंदा लगाए
आसमां में प्रीत डेरा
***
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 3 जून 2021
शशिवदना छंद मुक्तिका
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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