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शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
तू है शांत, चंचल है सलिल
तू गगन है, ये अबाबील है
तू प्रताप है जो न हारता
दुख पैरों पड़ा ज्यों भील है
तू रमा रमा में न पर रमा
सलिल तुझको अर्पित खील है
जुबां शीरी तेरी ये कह रही
कहीं और न ऐसा फील' है
तुझे देखकर मुझे यूँ लगा
तू ही कायदा है, तू शील है
मैं शरण में जिसकी हूँ आ गया
तू वो रास्ता है, तू मील है
मैं हूँ देखता जिसे रोज ही
तू ही फिल्म की वह रील है
***
३-७-२०१९ 

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