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शनिवार, 18 जुलाई 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
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मनोरमा पाखी न रुक, नाप रहा आकाश
नहीं किसी को कोसता, तोड़े बाधा-पाश 
*
आशा हो शैली अगर, तो हर मुश्किल दूर
नहीं निराशा आ सके, अपने निकट हुजूर
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प्यास पुनीता पालकर, रहिए सदा अतृप्त
अपुनीता हर आस हो, नष्ट तुरत हो तृप्त
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रंग बिरंगी अस्मिता, स्मित अमित हमेश 
स्मिता श्वास हर हो सके, हो नित हास प्रवेश



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