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मंगलवार, 14 जुलाई 2020

नवगीत साक्षी

नवगीत
साक्षी
*
साक्षी
देगा समय खुद
*
काट दीवारें रही हैं
तोड़ना है रीतियाँ सब
थोपना निज मान्यताएँ
भुलाना है नीतियाँ अब
कौन-
किसका हाथ थामे
छोड़ दे कब?
हुए कपड़ों की तरह
अब
देह-रिश्ते,
नेह-नाते
कूद मीनारें रही हैं
साक्षी देगा समय खुद
*
घरौंदे बंधन हुए हैं
आसमानों की तलब है
लादना अपना नजरिया
सकल झगड़ों का सबब है
करूँ
मैं हर चाह पूरी
रोक मत तू
बगावत हो
या अदावत
टोंक मत तू
मनमर्जियाँ
हावी हुई हैं
साक्षी
देगा समय खुद
*
१४-७-२०१९

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