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रविवार, 19 जुलाई 2020

बुन्देली मुक्तिका

बुन्देली मुक्तिका:
मंजिल की सौं...
संजीव
*
मंजिल की सौं, जी भर खेल
ऊँच-नीच, सुख-दुःख. हँस झेल
रूठें तो सें यार अगर
करो खुसामद मल कहें तेल
यादों की बारात चली
नाते भए हैं नाक-नकेल
आस-प्यास के दो कैदी
कार रए साँसों की जेल
मेहनतकश खों सोभा दें
बहा पसीना रेलमपेल
*
२४-५-२०१३ 

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