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रविवार, 19 जुलाई 2020

पर्यावरण गीत: किस तरह आये बसंत

पर्यावरण गीत:
किस तरह आये बसंत
संजीव
*
मानव लूट रहा प्रकृति को
किस तरह आये बसंत?...
*
होरी कैसे छाये टपरिया?
धनिया कैसे भरे गगरिया?
गाँव लील कर हँसे नगरिया,
राजमार्ग बन गयी डगरिया
राधा को छल रहा सँवरिया
सुत भूला माँ हुई बँवरिया

अंतर्मन रो रहा निरंतर
किस तरह गाये बसंत?...
*
सूखी नदिया कहाँ नहायें?
बोल जानवर कहाँ चरायें?
पनघट सूने अश्रु बहायें,
राई-आल्हा कौन सुनायें?
नुक्कड़ पर नित गुटका खायें.
खलिहानों से आँख चुरायें.

जड़विहीन सूखा पलाश लाख
किस तरह भाये बसंत?...
*
तीन-पाँच करते दो दूनी.
टूटी बागड़ गायब थूनी.
ना कपास, तकली ना पूनी.
यांत्रिकता की दाढ़ें खूनी.
वैश्विकता ने खुशिया छीनी.
नेह नरमदा सूखी-सूनी.

शांति-व्यवस्था मिटी गाँव की
किस तरह लाये बसंत?...
*
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

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