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मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

doha

दोहा दुनिया
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जोड़-जोड़ जो धन मरे, आज रहे खुद फेंक
ठठा हँस रहे पडोसी, हाथ रहे हैं सेंक
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चपल-चंचला लक्ष्मी, सगी न होती मान
रही कैद में कब-कहीं, जोड़ मरे नादान
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शक्ति-शारदा-रमा के, श्याम-श्वेत दो रूप
श्याम नाश करता 'सलिल', श्वेत बनाता भूप
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निजी जरूरत से अधिक, धन के ईश न आप
न्यासीवत रक्षा करें, कीर्ति सके जग व्याप
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शासक हो तो जंक सा, स्वार्थ-लोभ से दूर
जनगण-हित साधे सदा, बजा स्नेह-संतूर
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माया-ममता-मोह ही, घातक-मारक पाश
नियम मुलायम कर रहे, अनुशासन का नाश
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नर नरेन्द्र हो कर सके, दूर कपट-छल-भ्रांति
राज सिंह जब-जब करे, वन में हो सुख-शांति
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प्रभु धरती पर उतरकर, करते जन-कल्याण
उमा सृष्टि-सुषमा बढ़ा, करें श्वास-संप्राण
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प्रणव-नाद जब गूँजता, तब मन में हो हर्ष
राहुल को तज बुद्ध का, हो पाता उत्कर्ष
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ज्योतिर्मय आदित्य हो, वसुंधरा के साथ
जनगण तब ही नवाता, दिनकर कहकर माथ
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कमलनाथ हों कमल से, रहकर दूर अनाथ
अजय विजय कब पा सके, झुकी ध्वजा नत माथ
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रमा-रमण, शिव-राज की, कीर्ति कहे इतिहास
किसी अधर पर हास हो, कोई रहे उदास
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