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बुधवार, 30 जुलाई 2014

doha salila: teej sanjiv

दोहा सलिलाः
संजीव
*
नेह वॄष्टि नभ ने करी, धरा-मन गया भींज
हरियायी भू लाज से, 'सलिल' मन गयी तीज
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हिना सजी ले हथेली, हरी चूड़ियाँ संग
हरी चुनरिया ने हरी, शान्ति पिया मन दंग
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तंग गली है प्रीति की, तंग प्रियतमा भाग
आँखें चार न हो कहें, जो न कहा अनुराग
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