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रविवार, 1 जून 2014

ashta maatrik chhand : sanjiv


हिंदी के मात्रिक छंद : १
८ मात्रा के वासव जातीय छंद : अखंड, छवि/मधुभार
संजीव
*
विश्व वाणी हिंदी का छांदस कोश अप्रतिम, अनन्य और असीम है। संस्कृत से विरासत में मिले छंदों  के साथ-साथ अंग्रेजी, जापानी आदि विदेशी भाषाओँ तथा पंजाबी, मराठी, बृज, अवधी आदि आंचलिक भाषाओं/ बोलिओं के छंदों को अपनाकर तथा उन्हें अपने अनुसार संस्कारित कर हिंदी ने यह समृद्धता अर्जित की है। हिंदी छंद शास्त्र के विकास में  ध्वनि विज्ञान तथा गणित ने आधारशिला की भूमिका निभायी है।

विविध अंचलों में लंबे समय तक विविध पृष्ठभूमि के रचनाकारों द्वारा व्यवहृत होने से हिंदी में शब्द विशेष को एक अर्थ में प्रयोग करने के स्थान पर एक ही शब्द को विविधार्थों में प्रयोग करने का चलन है। इससे अभिव्यक्ति में आसानी तथा विविधता तो होती है किंतु शुद्घता नहीँ रहती। विज्ञान विषयक विषयों के अध्येताओं तथा हिंदी सीख रहे विद्यार्थियों के लिये यह स्थिति भ्रमोत्पादक तथा असुविधाकारक है। रचनाकार के आशय को पाठक ज्यों  का त्यो ग्रहण कर सके इस हेतु हम छंद-रचना में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दों के साथ प्रयोग किया जा रहा अर्थ विशेष यथा स्थान देते रहेंगे।

अक्षर / वर्ण = ध्वनि की बोली या लिखी जा सकनेवाली लघुतम स्वतंत्र इकाई।
शब्द = अक्षरों का सार्थक समुच्चय।
मात्रा / कला / कल = अक्षर के उच्चारण में लगे समय पर आधारित इकाई।
लघु या छोटी  मात्रा = जिसके उच्चारण में इकाई समय लगे।  भार १, यथा अ, इ, उ, ऋ अथवा इनसे जुड़े अक्षर, चंद्रबिंदी वाले अक्षर
दीर्घ, हृस्व या बड़ी मात्रा = जिसके उच्चारण में अधिक समय लगे। भार २, उक्त लघु अक्षरों को छड़कर शेष सभी अक्षर, संयुक्त अक्षर अथवा उनसे जुड़े अक्षर, अनुस्वार (बिंदी वाले अक्षर)।
पद = पंक्ति, चरण समूह।
चरण = पद का भाग, पाद।
छंद = पद समूह।
यति = पंक्ति पढ़ते समय विराम या ठहराव के स्थान।
छंद लक्षण = छंद की विशेषता जो उसे अन्यों से अलग करतीं है।
गण = तीन अक्षरों का समूह विशेष (गण कुल ८ हैं, सूत्र: यमाताराजभानसलगा के पहले ८ अक्षरों में से प्रत्येक अगले २ अक्षरों को मिलाकर गण विशेष का मात्राभार  / वज़्न तथा मात्राक्रम इंगित करता है. गण का नाम इसी वर्ण पर होता है। यगण = यमाता = लघु गुरु गुरु = ४, मगण = मातारा = गुरु गुरु गुरु = ६, तगण = ता रा ज = गुरु गुरु लघु = ५, रगण = राजभा = गुरु लघु गुरु = ५, जगण = जभान = लघु गुरु लघु = ४, भगण = भानस = गुरु लघु लघु = ४, नगण = न स ल = लघु लघु लघु = ३, सगण = सलगा = लघु लघु गुरु = ४)।
तुक = पंक्ति / चरण के अन्त में  शब्द/अक्षर/मात्रा या ध्वनि की समानता ।
गति = छंद में गुरु-लघु मात्रिक क्रम।
सम छंद = जिसके चारों चरण समान मात्रा भार के हों।
अर्द्धसम छंद = जिसके सम चरणोँ का मात्रा भार समान तथा विषम  चरणों का मात्रा भार एक सा  हो किन्तु सम तथा विषम चरणोँ क़ा मात्रा भार समान न हों।
विषम छंद = जिसके चरण असमान हों।
लय = छंद  पढ़ने या गाने की धुन या तर्ज़।
छंद भेद =  छंद के प्रकार।
वृत्त = पद्य, छंद, वर्स, काव्य रचना । ४ प्रकार- क. स्वर वृत्त, ख. वर्ण वृत्त, ग. मात्रा वृत्त, घ. ताल वृत्त।
जाति = समान मात्रा भार के छंदों का  समूहनाम।
प्रत्यय = वह रीति जिससे छंदों के भेद तथा उनकी संख्या जानी जाए। ९ प्रत्यय: प्रस्तार, सूची, पाताल, नष्ट, उद्दिष्ट, मेरु, खंडमेरु, पताका तथा मर्कटी।
दशाक्षर = आठ गणों  तथा लघु - गुरु मात्राओं के प्रथमाक्षर य म त र ज भ न स ल ग ।
दग्धाक्षर = छंदारंभ में वर्जित लघु अक्षर - झ ह  र भ ष। देवस्तुति में प्रयोग वर्जित नहीं।
गुरु या संयुक्त दग्धाक्षर छन्दारंभ में प्रयोग किया जा सकता है।                                                                                  
अष्ट मात्रिक छंद / वासव छंद

जाति नाम वासव (अष्ट वसुओं के आधार पर), भेद ३४,  संकेत: वसु, सिद्धि, विनायक, मातृका, मुख्य छंद: अखंड, छवि, मधुभार आदि।

वासव छंदों के ३४ भेदों की मात्रा बाँट लघु-गुरु मात्रा संयोजन के आधार पर ५ वर्गों में निम्न अनुसार होगी:

अ वर्ग. ८ लघु: (१) १. ११११११११,
आ वर्ग. ६ लघु १ गुरु: (७) २. ११११११२ ३. १११११२१, ४. ११११२११, ५. १११२१११, ६. ११२११११, ७. १२१११११, ८. २११११११,
इ वर्ग. ४ लघु २ गुरु: (१५) ९. ११११२२, १०. १११२१२, ११. १११२२१, १२, ११२१२१, १३. ११२२११, १४, १२१२११, १५. १२२१११,  १६. २१२१११, १७. २२११११, १८. ११२११२,, १९. १२११२१, २०. २११२११, २२. १२१११२, २३. २१११२१,
ई वर्ग. २ लघु ३ गुरु: (१०) २४. ११२२२, २५. १२१२२, २६. १२२१२, २७. १२२२१, २८. २१२२१, २९. २२१२१, ३०. २२२११, ३१. २११२२, ३२. २२११२, ३३. २१२१२
उ वर्ग. ४ गुरु: (१) २२२२

छंद की ४ या ६ पंक्तियों में विविध तुकान्तों प्रयोग कर और भी अनेक उप प्रकार रचे जा सकते हैं।

छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ८ मात्रा
लक्षण छंद:
अष्ट कला चुन
वासव रचिए।
सम तुकांत रख
रस भी चखिए।
उदाहरण:
कलकल बहती
नदिया कहती
पतवार थाम
हिम्मत न हार
***
अ वर्ग. मलयज छंद: ८ लघु (११११११११)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ८ लघु मात्राएँ, प्रकार एक।
लक्षण छंद:
सुरभित मलयज
लघु अठ कल सज
रुक मत हरि भज
भव शव रव तज
उदाहरण:
१. अनवरत सतत
   बढ़, न तनिक रुक
   सजग रह न थक
   'सलिल' न चुक-झुक
--------
आ वर्ग. अष्टक छंद: ६ लघु १ गुरु (११११११२)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ६ लघु तथा १ गुरु मात्राएँ, प्रकार ७।
लक्षण छंद:
शुभ अष्टक रच
छै लघु गुरु वर
छंद निहित सच
मधुर वाद्य सुर
उदाहरण:
१. कर नित वंदन
   शुभ अभिनन्दन
   मत कर क्रंदन
   तज पर वंचन
--------
इ वर्ग. अष्टांग छंद: ४ लघु २ गुरु (११११२२)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ४ लघु तथा २ गुरु मात्राएँ, प्रकार १५।
लक्षण छंद:
चौ-द्वै लघु-गुरु
अष्टांग सृजित    
सत्काव्य मधुर
सत्कार्य अजित  
उदाहरण:
१. संभाव्य न सच
   सर्वदा घटित।
   दुर्भाग्य न पर
   हो सदा विजित।
--------
ई वर्ग. पर्यावरणी छंद: २ लघु ३ गुरु (११२२२)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति २ लघु तथा ३ गुरु मात्राएँ, प्रकार १०।
लक्षण छंद:
मात्रा द्वै लघु
पूजें त्रै गुरु
पर्यावरणी    
लगा रोपणी    
उदाहरण:
१. नहीं फैलने
   दें बीमारी।
   रहे न बाकी
   अब लाचारी।
--------
उ. ४ गुरु: धारावाही छंद (२२२२)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ४ लघु तथा २ गुरु मात्राएँ, प्रकार १।
लक्षण छंद:
धारावाही
चौपालों से      
शिक्षा फ़ैली
ग्रामीणों में
उदाहरण:
१. टेसू फूला
   झूले झूला
   गौरा-बौरा
   गाये भौंरा।
--------
अखण्ड छंद
*
छंद-लक्षण: वासव जाति, प्रति पंक्ति ८ मात्रा, सामान्यतः ४ पंक्तियाँ, ३२ मात्राएँ।
लक्षण छंद:
चार चरण से, दो पद रचिए
छंद अखंड न, बंधन रखिए।
अष्ट मात्रिक पंक्ति-पंक्ति हो-
बिम्ब भाव रस, गति लय लखिए।
उदाहरण:
१.  सुनो प्रणेता!
    बनो विजेता।
    कहो कहानी,
    नित्य सुहानी।
    तजो बहाना,
    वचन निभाना।
    सजन सजा ना!
    साज बजा ना!
    लगा डिठौना,
    नाचे छौना
    चाँद चाँदनी,
    पूत पावनी।
    है अखंड जग,
    आठ दिशा मग
    पग-पग चलना,
    मंज़िल वरना।
२. कवि जी! युग की
    करुणा लिख दो.
    कविता अरुणा-
    वरुणा लिख दो.
    सरदी-गरमी-
    बरखा लिख दो.
    बुझना-जलना-
    चलना लिख दो
    रुकना-झुकना-
    तनना लिख दो
    गिरना-उठना-
    बढ़ना लिख दो
    पग-पग सीढ़ी
    चढ़ना लिख दो
    ----------------

मधुभार / छवि छंद
*
छंद-लक्षण: जाति वासव, प्रति पंक्ति ८ मात्रा,  चरणान्त पयोधर, जगण (लघु गुरु लघु)।
लक्षण छंद:
रचें मधुभार,
कला अठ धार
जगण छवि अंत,
रखें कवि कंत
उदाहरण:
१. करुणानिधान!
    सुनिए पुकार
    रख दास-मान,
    भव से उबार
२. कर ले सितार,
    दें छेड़ तार
    नित तानसेन,
    सुध-बुध बिसार
३. जब लोकतंत्र,
    हो लोभतंत्र
    बन कोकतंत्र,
    हो शोकतंत्र
    ----------------
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: chhand salila / sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

6 टिप्‍पणियां:

shar_j_n shar_j_n@yahoo.com ने कहा…

shar_j_n shar_j_n@yahoo.com [ekavita]

आदरणीय आचार्य जी

संभाव्य न सच
सर्वदा घटित।
दुर्भाग्य न पर
हो सदा विजित। --- अति सुन्दर!


१. नहीं फैलने
दें बीमारी।
रहे न बाकी
अब लाचारी। -- वाह वाह- ये तो जनस्वास्थ्य विभाग का नारा होना चाहिए !
--------

१. सुनो प्रणेता!
बनो विजेता।
कहो कहानी,
नित्य सुहानी।
तजो बहाना,
वचन निभाना। -- सुन्दर!

२. कवि जी! युग की
करुणा लिख दो.
कविता अरुणा-
वरुणा लिख दो. -- आह! क्या बात !

सादर शार्दुला

sanjiv ने कहा…

शार्दुला जी आपका अंतर्मन से आभार।
हिंदी छंद शास्त्र के मानक ग्रन्थ 'छंद प्रभाकर' में ८ मात्रा का केवल एक छंद 'छवि' वर्णित है. 'छंद विधान' में 'छवि' व ' अखंड' दो छंद वर्णित हैं.
अष्ट मात्रिक कुल ३४ छंद रचे जा सकते हैं. इन्हें ५ वर्गों में वर्गीकृत कर हर वर्ग का एक छंद कुल ५ नये छंद यहाँ पहली बार प्रस्तुत किये हैं. साथ ही पूर्व वर्णित २ छंद भी हैं.
क्या छंदों का सृजन सार्थक है?
भानु जी १ से ६ मात्राओं के छंद नहीं बताये हैं. रचे हैं. क्या उन्हें प्रस्तुत करना उचित होगा?

sanjiv ने कहा…

शार्दुला जी आपका अंतर्मन से आभार।
हिंदी छंद शास्त्र के मानक ग्रन्थ 'छंद प्रभाकर' में ८ मात्रा का केवल एक छंद 'छवि' वर्णित है. 'छंद विधान' में 'छवि' व ' अखंड' दो छंद वर्णित हैं.
अष्ट मात्रिक कुल ३४ छंद रचे जा सकते हैं. इन्हें ५ वर्गों में वर्गीकृत कर हर वर्ग का एक छंद कुल ५ नये छंद यहाँ पहली बार प्रस्तुत किये हैं. साथ ही पूर्व वर्णित २ छंद भी हैं.
क्या छंदों का सृजन सार्थक है?
भानु जी १ से ६ मात्राओं के छंद नहीं बताये हैं. रचे हैं. क्या उन्हें प्रस्तुत करना उचित होगा?

kusumvir@gmail.com ने कहा…


Kusum Vir kusumvir@gmail.com [ekavita]

अद्भुत, आचार्य जी l
आपकी काव्य प्रतिभा को नमन l
सादर,
कुसुम

Mahesh Dewedy via yahoogroups.com ने कहा…


Mahesh Dewedy mcdewedy@gmail.com

सलिल जी,
आप के आलेख संग्रहणीय हैं. इन्हेँ पुस्तक के रूप मे प्रकाशित कराइये.

महेश चंद्र द्विवेदी

sanjiv ने कहा…

कुसुम जी, महेश जी
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
अभी तो बहुत कार्य शेष है. यदि पूर्ण कर सका तो पुस्तकाकार लाने का मन है.