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रविवार, 26 मई 2013

paryavaran geet: kis tarah aye basant sanjiv

पर्यावरण गीत:
किस तरह आये बसंत
संजीव
*
मानव लूट रहा प्रकृति को
किस तरह आये बसंत?...
*
होरी कैसे छाये टपरिया?
धनिया कैसे भरे गगरिया?
गाँव लील कर हँसे नगरिया,
राजमार्ग बन गयी डगरिया
राधा को छल रहा सँवरिया
सुत भूला माँ हुई बँवरिया

अंतर्मन रो रहा निरंतर
किस तरह गाये बसंत?...
*
सूखी नदिया कहाँ नहायें?
बोल जानवर कहाँ चरायें?
पनघट सूने अश्रु बहायें,
राई-आल्हा कौन सुनायें?
नुक्कड़ पर नित गुटका खायें.
खलिहानों से आँख चुरायें.

जड़विहीन सूखा पलाश लाख
किस तरह भाये बसंत?...
*
तीन-पाँच करते दो दूनी.
टूटी बागड़ गायब थूनी.
ना कपास, तकली ना पूनी.
यांत्रिकता की दाढ़ें खूनी.
वैश्विकता ने खुशिया छीनी.
नेह नरमदा सूखी-सूनी.

शांति-व्यवस्था मिटी गाँव की
किस तरह लाये बसंत?...
*
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
दिव्यनार्मादा.ब्लागस्पाट.कॉम

5 टिप्‍पणियां:

arun arora ने कहा…

अरुण अरोरा
हमें दो बसंत पर दो ही लेने भाती है जी
बोली यो विरहिन मन को मसोस कर ,
काहे को बसंत बस अंत अब आयो है

Tarun Saxena ने कहा…

Tarun Saxena

if u r writing this den hats off....its too good

himsni chaturvedi ने कहा…

Himani Chaturvedi

bahut sunder

mohoni mishra ने कहा…

Mohini Mishra

bhut sunder rachna...

anamika a ने कहा…

anamika a

apki kawita me jo dhar hai
rab ka diya upahar hai

bahut hi sundar