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बुधवार, 8 मई 2013

SHATPADEE : acharya sanjiv 'salil'

षट्पदी  :
संजीव 
*
भाल पर, गाल पर, अम्बरी थाल पर
चांदनी शाल ओढ़े ठिठककर खड़ी .
देख सुषमा धरा भी ठगी रह गयी
ओढ़नी भायी मन को सितारों  जड़ी ..
कुन्तलों सी घटा छू पवन है मगन
चाल अनुगामिनी दामिनी की हुई.
नैन ने पालकी में सजाये सपन
देह री! देहरी कोशिशों की मुई..
*
 
एक संध्या निराशा में डूबी मगर, 
थाम कर कर निशा ने लगाया गले.
भेद पल में गले, भेद सारे खुले, 
थक अँधेरे गए, रुक गए मनचले..
मौन दिनकर ने दिन कर दिया रश्मियाँ , 
कोशिशों की कशिश बढ़ चली मनचली-
द्वार संकल्प के खुल गए खुद-ब-खुद, 
पग चले अल्पना-कल्पना की गली..    

8 टिप्‍पणियां:

vijay3@comcast.net ने कहा…

vijay3@comcast.net via yahoogroups.com

आपकी मधुर पंक्तिओं को बहुत देर तक गुनगुनाता रहा। बधाई।

विजय

Madhu Gupta via yahoogroups ने कहा…

Madhu Gupta via yahoogroups.

संजीव जी
छंद बंद बुन कर कहे , गुन गुण कहे- कहते गए
लेखनी ने क्या लिख दिया
चित्र सचित्र देखते हम रह गए
कल्पना की अल्पना
वाह वाह क्या बात है
पढकर
मन्त्र मुग्ध होते गए
मधु

santosh kumar ने कहा…

ksantosh_45@yahoo.co.in via yahoogroups.com

अति सुन्दर सलिल जी । सुन्दर शब्द चयान बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta via yahoogroups.com

अगर हम गलत नहीं है तो आपने यह रात्रि के आगमन का 'छायावादी' चित्र उकेरा है ! बहुत ही मनोहर है !

भाल पर, गाल पर, अम्बरी थाल पर
चांदनी शाल ओढ़े ठिठककर खड़ी .

ढेर सराहना के साथ,
दीप्ति

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com

आदरणीय सलिल जी,
अम्बरी थाल पर सितारों जड़ी ओढ़नी, और उसपर आचार्य जी के जगमगाते अलंकारों की
इंद्र धनुषी छटा बेमिसाल है l

निम्नांकित पंक्तियों की सुन्दर छटा देखते ही बनती है ;


मौन दिनकर ने दिन कर दिया रश्मियाँ , कोशिशों की कशिश बढ़ चली मनचली-
द्वार संकल्प के खुल गए खुद-ब-खुद, पग चले अल्पना-कल्पना की गली..

सादर,
कुसुम वीर

sanjiv ने कहा…

किसी कवि के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण यहे एही की उसकी रचना कोई सहृदय गुनगुनाये ... आपकी गुणग्राहकता को नमन.

sanjiv ने कहा…

शब्द चित्र तो रात्रि का ही है, वाद से दूर रहना ठीक है क्या पता कब विवाद हो जाये …

deepti gupta ने कहा…

*:)) laughing *:)) laughing सही कहा !