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शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

मुक्तिका: सत्य -- संजीव 'सलिल'


मुक्तिका

सत्य                                                                                                                   

संजीव 'सलिल'
*
सत्य- कहता नहीं, सत्य- सुनता नहीं?
सरफिरा है मनुज, सत्य- गुनता नहीं..
*
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी.
सिर्फ कहता रहा, सत्य- चुनता नहीं..
*
आह पर वाह की, किन्तु करता नहीं.
दाना नादान है, सत्य- धुनता नहीं..
*
चरखा-कोशिश परिश्रम रुई साथ ले-
कातता है समय, सत्य- बुनता नहीं..
*
नष्ट पल में हुआ, भ्रष्ट भी कर गया.
कष्ट देता असत, सत्य- घुनता नहीं..
*
प्यास हर आस दे, त्रास सहकर उड़े.
वाष्प बनता 'सलिल', सत्य- भुनता नहीं..
*

1 टिप्पणी:

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

चरखा-कोशिश परिश्रम रुई साथ ले-
कातता है समय, सत्य- बुनता नहीं..

कलात्मक अभिव्यक्ति, पूरी रचना एक अलग कलेवर मे , बहुत सुंदर ,