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गुरुवार, 16 सितंबर 2010

मुक्तिका: ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                                                                                                            
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई

संजीव 'सलिल'


*
मुक्तिका:

ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह ग
यी

संजीव 'सलिल'
*
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गयी.
 
रिश्तों में भी न कुछ हमदमी रह गयी..

गैर तो गैर थे, अपने भी गैर हैं.
 
आँख में इसलिए तो नमी रह गयी..

जो खुशी थी वो न जाने कहाँ खो गयी.
आये जब से शहर संग गमी रह गयी..

अब गरमजोशी ढूँढ़े से मिलती नहीं.
लब पे नकली हँसी ही जमी रह गयी..


गुम गयी गिल्ली, डंडा भी अब दूर है.
हाय! बच्चों की संगी रमी रह गयी..  


माँ न मैया न माता न लाड़ो-दुलार.
'सलिल' घर में हावी ममी रह गयी ...


गाँव में थी खुशी, भाईचारा, हँसी. 
अब सियासत 'सलिल' मातमी रह गयी..

*********************************

-- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

9 टिप्‍पणियां:

Asheesh Yadav ने कहा…

सलिल जी को मेरा प्रणाम,
रिश्तों की डोर पकड़कर क्या ग़ज़ल कही है आपने | और फिर वो पुरानी यादे| आज के जीवन की सब बनावती बाते| वाह वाह

yograj prabhakar ने कहा…

आचार्य सलिल जी,
बहुत ही सारगर्भित रचना है आपकी !
राणा जी ने तो "काफिया: ई की मात्रा, रद्दीफ़: रह गई" ही दिया था मगर आपने तो दिए हुए मिसरे की ही तर्ज़ पर "मी" को काफिया बना कर जिस तरह आगे बढाया है वो प्रशंसनीय है और आपकी बहुत ही समृद्ध शब्कोष भंडार की तरफ भी इशारा करता है ! निम्नलिखित शेअर ने दिल जीत लिया :

//गुम गयी गिल्ली, डंडा भी अब दूर है.
हाय! बच्चों की संगी रमी रह गयी..//

मेरी मुबारकबाद स्वीकार करें इस बहुत ही सुन्दर रचना के लिए !

Rana Pratap Singh … ने कहा…

आचार्य जी इस बार भी आप बहुत सुन्दर ग़ज़ल लेकर आये है|
बदलते ज़माने की नब्ज़ पकड़कर आपने ये बड़ी खूबसूरत माला गूंथी है|
दिली दाद स्वीकार करें|

subodh kumar ने कहा…

sunder rachana sanjeev jee..

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

गुम गयी गिल्ली, डंडा भी अब दूर है.
हाय! बच्चों की संगी रमी रह गयी..

वाह सलिल जी, क्या प्रयोग धर्म का निर्वाहन किया है आप ने... बधाई....

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

गुम गयी गिल्ली, डंडा भी अब दूर है.
हाय! बच्चों की संगी रमी रह गयी..
वाह क्या सुंदर और उम्द्दा शे'र कहा है आपने ,
कुछ तो कारण है जो हम कायल रहते है,
ऐसे शेरों से ही तो हम घायल रहते है ,
वाह वाह के सिवा और क्या कह सकते है , बधाई ,

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

शुक्रिया.

डोर रिश्तों की पकड़ी है आशीष भी.
पर दुआओं में थोड़ी कमी रह गई..

राणा के प्रताप से डरकर दाद, खाज जो भी दे क़ुबूल करना ही पड़ेगा... हा..हा...हा...

आपकी सद्भावनाओं के प्रति नत शिर आभार.

आप हौसला बढ़ा देते हैं तो कलम चल जाती है. चाँदनी का माध्यम भले ही चंद हो पर रौशनी तो सूर्य की ही होती है. इसी तरह कुछ धन का लिख जाये तो श्रेय पाठको / श्रोताओं का ही होता है.

dharmendra kumar singh ने कहा…

बहुत खूब सारी ग़ज़ल ही सुन्दर है, किस किस शे’र की तारीफ़ करूँ।

Asha Pande Ojha ने कहा…

waah bahut khoobsurat dil ko chhu lene walee gazal hai Snjeev saahb kee