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शनिवार, 27 मार्च 2021

सामयिक दोहे


⭐⭐⭐⭐👌👌👌👌⭐⭐⭐⭐
सामयिक दोहे
लोकतंत्र की हो गई, आज हार्ट-गति तेज?
राजनीति को हार्ट ने, दिया सँदेसा भेज?
वादा कर जुमला बता, करते मन की बात
मनमानी को रोक दे, नोटा झटपट तात
मत करिए मत-दान पर, करिए जग मतदान
राज-नीति जन-हित करे, समय पूर्व अनुमान
लोकतंत्र में लोकमत, ठुकराएँ मत भूल
दल-हित साध न झोंकिए, निज आँखों में धूल
सत्ता साध्य न हो सखे, हो जन-हित आराध्य
खो न तंत्र विश्वास दे, जनहित से हो बाध्य
नोटा का उपयोग कर, दें उन सबको रोक
स्वार्थ साधते जो रहे, उनको ठीकरा लोक
👌👌👌👌⭐⭐⭐⭐👌👌👌👌
२७-३-२०१९

नवगीत

नवगीत 
सच्ची बात
*
मेरे घर में हो प्रकाश
तेरा घर बने मशाल
*
मेरा अनुभव है यही
पैमाने हैं दो।
मुझको रिश्वत खूब दो
बाकी मगर न लो
मैं तेरा रखता न पर
तू मेरा रखे खयाल
मेरे घर में हो प्रकाश
तेरा घर बने मशाल
*
मेरे घर हो लक्ष्मी,
तेरे घर काली
मुझसे ले मत, दे मुझे
तू दहेज-थाली
तेरा नत, मेरा रहे
हरदम ऊँचा भाल
मेरे घर में हो प्रकाश
तेरा घर बने मशाल
*
तेरा पुत्र शहीद हो
मेरा अफसर-सेठ
तेरी वाणी नम्र हो
मैं दूँ गाली ठेठ
तू मत दे, मैं झटक लूँ
पहना जुमला-माल
मेरे घर में हो प्रकाश
तेरा घर बने मशाल
*
२७-३-२०१९
संवस, ७९९९५५९६१८

नवगीत

नवगीत
*
ताप धरा का
बढ़ा चैत में
या तुम रूठीं?
लू-लपटों में बन अमराई राहत देतीं।
कभी दर्प की उच्च इमारत तपतीं-दहतीं।
बाहों में आ, चाहों ने हारना न सीखा-
पगडंडी बन, राजमार्ग से जुड़-मिल जीतीं।
ठंडाई, लस्सी, अमरस
ठंडा खस-पर्दा-
बहा पसीना
हुई घमौरी
निंदिया टूटी।
*
सावन भावन
रक्षाबंधन
साड़ी-चूड़ी।
पावस की मनहर फुहार मुस्काई-झूमी।
लीक तोड़कर कदम-दर-कदम मंजिल चूमी।
ध्वजा तिरंगी फहर हँस पड़ी आँचल बनकर-
नागपंचमी, कृष्ण-अष्टमी सोहर-कजरी।
पूनम-एकादशी उपासी
कथा कही-सुन-
नव पीढ़ी में
संस्कार की
कोंपल फूटी।
*
अन्नपूर्णा!
शक्ति-भक्ति-रति
नेह-नर्मदा।
किया मकां को घर, घरनी कण-कण में पैठीं।
नवदुर्गा, दशहरा पुजीं लेकिन कब ऐंठीं?
धान्या, रूपा, रमा, प्रकृति कल्याणकारिणी-
सूत्रधारिणी सदा रहीं छोटी या जेठी।
शीत-प्रीत, संगीत ऊष्णता
श्वासों की तुम-
सुजला-सुफला
हर्षदायिनी
तुम्हीं वर्मदा।
*
जननी, भगिनी
बहिन, भार्या
सुता नवेली।
चाची, मामी, फूफी, मौसी, सखी-सहेली।
भौजी, सासू, साली, सरहज छवि अलबेली-
गति-यति, रस-जस,लास-रास नातों की सरगम-
स्वप्न अकेला नहीं, नहीं है आस अकेली।
रुदन, रोष, उल्लास, हास,
परिहास,लाड़ नव-
संग तुम्हारे
हुई जिंदगी ही
अठखेली।
*****

मधुमालती छंद

छंद सलिला:
मधुमालती छंद
संजीव
*
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ७-७, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण) होता है.
लक्षण छंद:
मधुमालती आनंद दे
ऋषि साध सुर नव छंद दे
चरणांत गुरु लघु गुरु रहे
हर छंद नवउत्कर्ष दे।
उदाहरण:
१. माँ भारती वरदान दो
सत्-शिव-सरस हर गान दो
मन में नहीं अभिमान हो
घर-अग्र 'सलिल' मधु गान हो।
२. सोते बहुत अब तो जगो
खुद को नहीं खुद ही ठगो
कानून को तोड़ो नहीं-
अधिकार भी छोडो नहीं
*********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

मनोरम छंद

छंद सलिला:मनोरम छंद
संजीव
*
लक्षण: समपाद मात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणारंभ गुरु, चरणांत गुरु लघु लघु या लघु गुरु गुरु होता है.
लक्षण छंद:
हैं भुवन चौदह मनोहर
आदि गुरुवत पकड़ लो मग
अंत भय से बच हमेशा
लक्ष्य वर लो बढ़ाओ पग
उदाहरण:
१. साया भी साथ न देता
जाया भी साथ न देता
माया जब मन भरमाती
काया कब साथ निभाती
२. सत्य तज मत 'सलिल' भागो
कर्म कर फल तुम न माँगो
प्राप्य तुमको खुद मिलेगा
धर्म सच्चा समझ जागो
३. लो चलो अब तो बचाओ
देश को दल बेच खाते
नीति खो नेता सभी मिल
रिश्वतें ले जोड़ते धन
४. सांसदों तज मोह-माया
संसदीय परंपरा को
आज बदलो, लोक जोड़ो-
तंत्र को जन हेतु मोड़ो
*********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

मुक्तिका

मुक्तिका
*
नेताओं का शगल है, करना बहसें रोज.
बिन कारण परिणाम के, क्यों नाहक है खोज..
नारी माता भगिनी है, नारी संगिनी दिव्य.
सुता सखी भाभी बहू, नारी सचमुच भव्य..
शारद उमा रमा त्रयी, ज्ञान शक्ति श्री-खान.
नर से दो मात्रा अधिक, नारी महिमावान..
तैंतीस की बकवास का, केवल एक जवाब.
शत-प्रतिशत के योग्य वह, किन्तु न करे हिसाब..
देगा किसको कौन क्यों?, लेगा किससे कौन?
संसद में वे भौंकते, जिन्हें उचित है मौन..
*
२७-३-२०१० 
संजीव, ७९९९५५९६१८

शुक्रवार, 26 मार्च 2021

रैप सांग, कोरोना कर्फ्यू

कर्फ्यू वंदना
(रैप सौंग)
*
घर में घर कर
बाहर मत जा
बीबी जो दे
खुश होकर खा
ठेला-नुक्कड़
बिसरा भुख्खड़
बेमतलब की
बोल न बातें
हाँ में हाँ कर
पा सौगातें
ताँक-झाँक तज
भुला पड़ोसन
बीबी के संग
कर योगासन
चौबिस घंटे
तुझ पर भारी
काम न आए
प्यारे यारी
बन जा पप्पू
आग्याकारी
तभी बेअसर
हो बीमारी
बिसरा झप्पी
माँग न पप्पी
चूड़ी कंगन
करें न खनखन
कहे लिपिस्टिक
माँजो बर्तन
झाड़ू मारो
जरा ठीक से
पौंछा करना
बिना पीक के
कपड़े धोना
पर मत रोना
बाई न आई
तुम हो भाई
तुरुप के इक्के
बनकर छक्के
फल चाहे बिन
करो काम गिन
बीबी चालीसा
हँस पढ़ना
अपनी किस्मत
खुद ही गढ़ना
जब तक कहें न
किस मत करना
मिस को मिस कर
मन मत मरना
जान बचाना
जान बुलाना
मिल लड़ जाएँ
नैन झुकाना
कर फ्यू लेकिन
कई वार हैं
कर्फ्यू में
झुक रहो, सार है
बीबी बाबा बेबी की जय
बोल रहो घुस घर में निर्भय।।
***
संजीव
२२-३-२०२०
९४२५१८३२४४
आज सारा देश मेरा लॉक में है 
देख कोरोना बिचारा शॉक में है। 

दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

नवदुर्गा पर्व पर विशेष:
श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
हिंदी काव्यानुवाद
*
शिव बोलेः ‘हे पद्ममुखी! मैं कहता नाम एक सौ आठ।
दुर्गा देवी हों प्रसन्न नित सुनकर जिनका सुमधुर पाठ।१।
ओम सती साघ्वी भवप्रीता भवमोचनी भवानी धन्य।
आर्या दुर्गा विजया आद्या शूलवती तीनाक्ष अनन्य।२।
पिनाकिनी चित्रा चंद्रघंटा, महातपा शुभरूपा आप्त।
अहं बुद्धि मन चित्त चेतना, चिता चिन्मया दर्शन प्राप्त।३।
सब मंत्रों में सत्ता जिनकी, सत्यानंद स्वरूपा दिव्य।
भाएँ भाव-भावना अनगिन, भव्य-अभव्य सदागति नव्य।४।
शंभुप्रिया सुरमाता चिंता, रत्नप्रिया हों सदा प्रसन्न।
विद्यामयी दक्षतनया हे!, दक्षयज्ञ ध्वंसा आसन्न।५।
देवि अपर्णा अनेकवर्णा पाटल वदना-वसना मोह।
अंबर पट परिधानधारिणी, मंजरि रंजनी विहॅंसें सोह।६।
अतिपराक्रमी निर्मम सुंदर, सुर-सुंदरियॉं भी हों मात।
मुनि मतंग पूजित मातंगी, वनदुर्गा दें दर्शन प्रात।७।
ब्राम्ही माहेशी कौमारी, ऐंद्री विष्णुमयी जगवंद्य।
चामुंडा वाराही लक्ष्मी, पुरुष आकृति धरें अनिंद्य।८।
उत्कर्षिणी निर्मला ज्ञानी, नित्या क्रिया बुद्धिदा श्रेष्ठ ।
बहुरूपा बहुप्रेमा मैया, सब वाहन वाहना सुज्येष्ठ।९।
शुंभ-निशुंभ हननकर्त्री हे!, महिषासुरमर्दिनी प्रणम्य।
मधु-कैटभ राक्षसद्वय मारे, चंड-मुंड वध किया सुरम्य।१०।
सब असुरों का नाश किया हॅंस, सभी दानवों का कर घात।
सब शास्त्रों की ज्ञाता सत्या, सब अस्त्रों को धारें मात।११।
अगणित शस्त्र लिये हाथों में, अस्त्र अनेक लिये साकार।
सुकुमारी कन्या किशोरवय, युवती यति जीवन-आधार।१२।
प्रौढ़ा नहीं किंतु हो प्रौढ़ा, वृद्धा मॉं कर शांति प्रदान।
महोदरी उन्मुक्त केशमय, घोररूपिणी बली महान।१३।
अग्नि-ज्वाल सम रौद्रमुखी छवि, कालरात्रि तापसी प्रणाम।
नारायणी भद्रकाली हे!, हरि-माया जलोदरी नाम।१४।
तुम्हीं कराली शिवदूती हो, परमेश्वरी अनंता द्रव्य।
हे सावित्री! कात्यायनी हे!!, प्रत्यक्षा विधिवादिनी श्रव्य।१५।
दुर्गानाम शताष्टक का जों, प्रति दिन करें सश्रद्धा पाठ।
देवि! न उनको कुछ असाध्य हो , सब लोकों में उनके ठाठ।१६।
मिले अन्न धन वामा सुत भी, हाथी-घोड़े बँधते द्वार।
सहज साध्य पुरुषार्थ चार हो, मिले मुक्ति होता उद्धार।१७।
करें कुमारी पूजन पहले, फिर सुरेश्वरी का कर ध्यान।
पराभक्ति सह पूजन कर फिर, अष्टोत्तर शत नाम ।१८।
पाठ करें नित सदय देव सब, होते पल-पल सदा सहाय।
राजा भी हों सेवक उसके, राज्य लक्ष्मी प् वह हर्षाय।१९।
गोरोचन, आलक्तक, कुंकुम, मधु, घी, पय, सिंदूर, कपूर।
मिला यंत्र लिख जो सुविज्ञ जन, पूजे हों शिव रूप जरूर।२०।
भौम अमावस अर्ध रात्रि में, चंद्र शतभिषा हो नक्षत्र।
स्तोत्र पढ़ें लिख मिले संपदा, परम न होती जो अन्यत्र।२१।
।।इति श्री विश्वसार तंत्रे दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र समाप्त।।
--------------
संजीव
९४२५१८३२४४

मुक्तिका

मुक्तिका
*
सुधियाँ तुम्हारी जब तहें
अमृत-कलश तब हम गहें
श्रम दीप मंज़िल ज्योति हो
कोशिश शलभ हम मत दहें
बन स्नेह सलिला बिन रुके
नफरत मिटा बहते रहें
लें चूम सुमुखि कपोल जब
संयम किले पल में ढहें
कर काम सब निष्काम हम
गीता न कहकर भी कहें
*
संजीव
२६-३-२०२०
९४२५१८३२४४

गीत कोरोना

गीत कोरोना 
*
डरो नें कोरोना से गुइयाँ,
जा जमराज-डिठौना
अनाचार जो मानुस कर रै
दुराचार कर के बे मर रै
भार तनक घट रऔ धरती को
संग गहूँ के घुन सोइ पिस रै
भोग-रोग सें ग्रस्त करा रय
असमय अंतिम गौना
खरे बोल सुन खरे रओ रे!
परबत पै भी हरे रओ रे!
झूठी बात नें तनक बनाओ
अनुसासित रै जीबन पाओ
तन-मन ऊँसई साफ करो रे
जैसें करत भगौना
घर में घरकर रओ खुसी सें
एक-दूजे को सओ खुसी सें
गोड़-हांत-मूँ जब-तब धोओ
राम-राम कै, डटकर सोओ
बाकी काम सबई निबटा लो
करो नें अद्धा-पौना
***
संजीव
२६-३-२०२०
९४२५१८३२४४

मुक्तिका अर्णव-अरुण

मुक्तिका

*
अर्णव-अरुण का सम्मिलन 
जिस पल हुआ वह खास है
श्री वास्तव में है वहीं
जहँ हर हृदय में हुलास है
श्रद्धा जगत जननी उमा
शंकारि शिव विश्वास है
सद्भाव सलिला है सुखद
मालिन्य बस संत्रास है
मिल गैर से गंभीर रह
अपनत्व में परिहास है
मिथिलेश तन नृप हो भले
मन जनक तो वनवास है
मीरा मनन राधा जतन
कान्हा सुकर्म प्रयास है
***
संजीव
२६-३-२०२०

हास्य सलिला: उमर क़ैद

 हास्य सलिला:

उमर क़ैद
*
नोटिस पाकर कचहरी पहुँचे चुप दम साध.
जज बोलीं: 'दिल चुराया, है चोरी अपराध..'
हाथ जोड़ उत्तर दिया, 'क्षमा करें सरकार!.
दिल देकर ही दिल लिया, किया महज व्यापार..'
'बेजा कब्जा कर बसे, दिल में छीना चैन.
रात स्वप्न में आ किया, बरबस ही बेचैन..
लाख़ करो इनकार तुम, हम मानें इकरार.
करो जुर्म स्वीकार- अब, बंद करो तकरार..'
'देख अदा लत लग गयी, किया न कोई गुनाह.
बैठ अदालत में भरें, हम दिल थामे आह..'
'नहीं जमानत मिलेगी, सात पड़ेंगे फंद.
उम्र क़ैद की अमानत, मिली- बोलती बंद..
***
संजीव वर्मा 'सलिल'

कुंडली दुर्गा

 कुंडली

देह दुर्ग में विराजित, दुर्ग-ईश्वरी आत्म
तुम बिन कैसे अवतरित, हो भू पर परमात्म?
हो भू पर परमात्म, दुर्ग है तन का बन्धन
मन का बन्धन टूटे तो, मन करता क्रंदन
जाति वंश परिवार, हैं सुदृढ़ दुर्ग सदेह
रिश्ते-नातों अदिख, हैं दुर्ग घेरते देह
**
कुंडली
सरिता शर्माती नहीं, हरे जगत की प्यास
बिन सरिता कैसे मिटे, असह्य तृषा का त्रास
असह्य तृषा का त्रास, हरे सरिता बिन बोले
वंदन-निंदा कुछ करिये, चुप रहे न तोले
'सलिल' साक्षी है, युग-प्राण बचाती भरिता
हरे जगत की प्यास नहीं शर्माती सरिता
***

समीक्षा ज़ख्म विद्यालाल

पुस्तक सलिला-
ज़ख्म - स्त्री विमर्श की लघुकथाएँ
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[पुस्तक विवरण- ज़ख्म, लघुकथा संग्रह, विद्या लाल, वर्ष २०१६, पृष्ठ ८८, मूल्य ७०/-, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, बोधि प्रकाशन ऍफ़ ७७, सेक़्टर ९, मार्ग ११, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम, जयपुर ३०२००६, ०१४१ २५०३९८९, bodhiprakashan@gmail.com, रचनाकार संपर्क द्वारा श्री मिथलेश कुमार, अशोक नगर मार्ग १ ऍफ़, अशोक नगर, पटना २०, चलभाष ०९१६२६१९६३६]
*
वैदिक काल से भारतीय संस्कृति सनातनता की पोषक रही है। साहित्य सनातन मूल्यों का सृजक और रक्षक की भूमिका में सत्य-शिव-सुन्दर को लक्षित कर रचा जाता रहा। विधा का 'साहित्य' नामकरण ही 'हित सहित' का पर्याय है. हित किसी एक का नहीं, समष्टि का। 'सत्यं ज्ञानं अनंतं ब्रम्ह' सत्य और ज्ञान ब्रम्ह की तरह अनन्त हैं। स्वाभाविक है कि उनके विस्तार को देखने के अनेक कोण हों। दृष्टि जिस कोण पर होगी उससे होनेवाली अनुभूति को ही सत्य मान लेगी, साथ ही भिन्न कोण से हो रही अनुभूति को असत्य कहने का भ्रम पाल लेगी। इससे बचने के लिये समग्र को समझने की चेष्टा मनीषियों ने की है। बोध कथाओं, दृष्टांत कथाओं, उपदेश कथाओं, जातक कथाओं, पंचतंत्र, बेताल कथाओं, किस्सा चहार दरवेश, किस्सा हातिम ताई, अलीबाबा आदि में छोटी-बड़ी कहानियों के माध्यम से शुभ-अशुभ, भले-बुरे में अंतर कर सकनेवाले जीवन मूल्यों के विकास, बुरे से लड़ने का मनोबल देने वाली घटनाओं का शब्दांकन, स्वस्थ्य मनोरंजन देने का प्रयास हुआ। साहित्य का लक्ष्य क्रमश: सकल सृष्टि, समस्त जीव, मानव संस्कृति तथा उसकी प्रतिनिधि इकाई के रूप में व्यक्ति का कल्याण रहा।
पराभव काल में भारतीय साहित्य परंपरा पर विदेशी हमलावरों द्वारा कुठाराघात तथा पराधीनता के दौर ने सामाजिक समरसता को नष्टप्राय कर दिया और तन अथवा मन से कमजोर वर्ग शोषण का शिकार हुआ। यवनों द्वारा बड़ी संख्या में स्त्री-हरण के कारण नारियों को परदे में रखने, शिक्षा से वंचित रखने की विवशता हो गयी। अंग्रेजों ने अपनी भाषा और संस्कृति थोपने की प्रक्रिया में भारत के श्रेष्ठ को न केवल हीं कहा अपितु शिक्षा के माध्यम से यह विचार आम जन के मानस में रोप दिया। स्वतंत्रता के पश्चात अवसरवादी राजनिति का लक्ष्य सत्ता प्राप्ति रह गया। समाज को विभाजित कर शासन करने की प्रवृत्ति ने सवर्ण-दलित, अगड़े-पिछड़े, बुर्जुआ-सर्वहारा के परस्पर विरोधी आधारों पर राजनीति और साहित्य को धकेल दिया। आधुनिक हिंदी को आरम्भ से अंग्रेजी के वर्चस्व, स्थानीय भाषाओँ-बोलियों के द्वेष तथा अंग्रेजी व् अन्य भाषाओं से ग्रहीत मान्यताओं का बोझ धोना पड़ा। फलत: उसे अपनी पारम्परिक उदात्त मूल्यों की विरासत सहेजने में देरी हुई।
विदेश मान्यताओं ने साहित्य का लक्ष्य सर्वकल्याण के स्थान पर वर्ग-हित निरुपित किया। इस कारण समाज में विघटन व टकराव बढ़ा। साहित्यिक विधाओं ने दूरी काम करने के स्थान पर परस्पर दोषारोपण की पगडण्डी पकड़ ली। साम्यवादी विचारधारा के संगठित रचनाकारों और समीक्षकों ने साहित्य का लक्ष्य अभावों, विसंगतियों, शोषण और विडंबनाओं का छिद्रान्वेषण मात्र बताया। समन्वय, समाधान तथा सहयोग भाव हीं साहित्य समाज के लिये हितकर न हो सका तो आम जन साहित्य से दूर हो गया। दिशाहीन नगरीकरण और औद्योगिकीकरण ने आर्थिक, धार्मिक, भाषिक और लैंगिक आधार पर विभाजन और विघटन को प्रश्रय दिया। इस पृष्ठभूमि में विसंगतियों के निराकरण के स्थान पर उन्हें वीभत्स्ता से चित्रित कर चर्चित होने ही चाह ने साहित्य से 'हित' को विलोपित कर दिया। स्त्री प्रताड़ना का संपूर्ण दोष पुरुष को देने की मनोवृत्ति साहित्य ही नहीं, राजनीती आकर समाज में भी यहाँ तक बढ़ी कि सर्वोच्च न्यायलय को हबी अनेक प्रकरणों में कहना पड़ा कि निर्दोष पुरुष की रक्षा के लिये भी कानून हो।
विवेच्य कृति ज़ख्म का लेखन इसी पृष्ठ भूमि में हुआ है। अधिकांश लघुकथाएँ पुरुष को स्त्री की दुर्दशा का दोषी मानकर रची गयी हैं। लेखन में विसंगतियों, विडंबनाओं, शोषण, अत्याचार को अतिरेकी उभार देने से पीड़ित के प्रति सहानुभूति तो उपज सकती है, पर पीड़ित का मनोबल नहीं बढ़ सकता। 'कथ' धातु से व्युत्पन्न कथा 'वह जो कही जाए' अर्थात जिसमें कही जा सकनेवाली घटना (घटनाक्रम नहीं), उसका प्रभाव (दुष्प्रभाव हो तो उससे हुई पीड़ा अथवा निदान, उपदेश नहीं), आकारगत लघुता (अनावश्यक विस्तार न हो), शीर्षक को केंद्र में रखकर कथा का बुनाव तथा प्रभावपूर्ण समापन के निकष पर लघुकथाओं को परखा जाता है। विद्यालाल जी का प्रथम लघुकथा संग्रह 'जूठन और अन्य लघुकथाएँ' वर्ष २०१३ में आ चुका है। अत: उनसे श्रेष्ठ लघुकथाओं की अपेक्षा होना स्वाभाविक है।
ज़ख्म की ६४ लघुकथाएँ एक ही विषय नारी-विमर्श पर केंद्रित हैं। विषयगत विविधता न होने से एकरसता की प्रतीति स्वाभाविक है। कृति समर्पण में निर्भय स्त्री तथा निस्संकोच पुरुष से संपन्न भावी समाज की कामना व्यक्त की गयी है किन्तु कृति पुरुष को कटघरे में रखकर, पुरुष के दर्द की पूरी तरह अनदेखी करती है। बेमेल विवाह, अवैध संबंध, वर्ण-वैषम्य, जातिगत-लिंगगत, भेदभाव, स्त्री के प्रति स्त्री की संवेदनहीनता, बेटी-बहू में भेद, मिथ्याभिमान, यौन-अपराध, दोहरे जीवन मूल्य, लड़कियों और बहन के प्रति भिन्न दृष्टि, आरक्षण का गलत लाभ, बच्चों से दुष्कर्म, विजातीय विवाह, विधवा को सामान्य स्त्री की तरह जीने के अधिकार, दहेज, पुरुष के दंभ, असंख्य मनोकामनाएँ, धार्मिक पाखण्ड, अन्धविश्वास, स्त्री जागरूकता, समानाधिकार, स्त्री-पुरुष के दैहिक संबंधों पर भिन्न सोच, मध्य पान, भाग्यवाद, कन्या-शिक्षा, पवित्रता की मिथ्या धारणा, पुनर्विवाह, मतदान में गड़बड़ी, महिला स्वावलम्बन, पुत्र जन्म की कामना, पुरुष वैश्या, परित्यक्ता समस्या, स्त्री स्वावलम्बन, सिंदूर-मंगलसूत्र की व्यर्थता आदि विषयों पर संग्रह की लघुकथाएं केंद्रित हैं।
विद्या जी की अधिकांश लघुकथाओं में संवाद शैली का सहारा लिया गया है जबकि समीक्षकों का एक वर्ग लघुकथा में संवाद का निषेध करता है। मेरी अपनी राय में संवाद घटना को स्पष्ट और प्रामाणिक बनने में सहायक हो तो उन्हें उपयोग किया जाना चाहिए। कई लघुकथाओं में संवाद के पश्चात एक पक्ष को निरुत्तरित बताया गया है, इससे दुहराव तथा सहमति का आभाव इंगित होता है। संवाद या तर्क-वितरक के पश्चात सहमति भी हो सकती है। रोजमर्रा के जीवन से जुडी लघुकथाओं के विषय सटीक हैं। भाषिक कसाव और काम शब्दों में अधिक कहने की कल अभी और अभ्यास चाहती है। कहीं-कहीं लघुकथा में कहानी की शैली का स्पर्श है। लघुकथा में चरित्र चित्रण से बचा जाना चाहिए। घटना ही पात्रों के चरित को इंगित करे, लघुकथाकार अलग से न बताये तो अधिक प्रभावी होता है। ज़ख्म की लघुकथाएँ सामान्य पाठक को चिंतन सामग्री देती हैं। नयी पीढ़ी की सोच में लोच को भी यदा-कदा सामने लाया गया है।संग्रह का मुद्रण सुरुचिपूर्ण तथा पाठ्य त्रुटि-रहित है।
*****

-समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, ९४२५१ ८३२४४, salil.sanjivgmail.com

सामयिक गीत 

कर फैसला कौन?
संजीव
*
मन का भाव बुनावट में निखरा कढ़कर है
जो भीतर से जगा, कौन उससे बढ़कर है?
करे फैसला कौन?, कौन किससे बढ़कर है??
*
जगा जगा दुनिया को हारे खुद सोते ही रहे
गीत नर्मदा के गाये पर खुद ही नहीं बहे
अकथ कहानी चाह-आह की किससे कौन कहे
कर्म चदरिया बुने कबीरा गुपचुप बिना तहे
निज नज़रों में हर कोई सबसे चढ़कर है
जो भीतर से जगा, कौन उससे बढ़कर है?
करे फैसला कौन?, कौन किससे बढ़कर है??
*
निर्माता-निर्देशक भौंचक कितनी पीर सहे
पात्र पटकथा लिख मनमानी अपने हाथ गहे
मण्डी में मंदी, मानक के पल में मूल्य ढहे
सोच रहा निष्पक्ष भाव जो अपनी आग दहे
माटी माटी से माटी आयी गढ़कर है
जो भीतर से जगा, कौन उससे बढ़कर है?
करे फैसला कौन?, कौन किससे बढ़कर है??
*

दोहा होली

दोहा सलिला:
दोहा पिचकारी लिये
संजीव 'सलिल'
*
दोहा पिचकारी लिये,फेंक रहा है रंग.
बरजोरी कुंडलि करे, रोला कहे अभंग.. 
*
नैन मटक्का कर रहा, हाइकु होरी संग.
फागें ढोलक पीटती, झांझ-मंजीरा तंग.. 
*
नैन झुके, धड़कन बढ़ी, हुआ रंग बदरंग.
पनघट के गालों चढ़ा, खलिहानों का रंग.. 
*
चौपालों पर बह रही, प्रीत-प्यार की गंग.
सद्भावों की नर्मदा, बजा रही है चंग.. 
*
गले ईद से मिल रही, होली-पुलकित अंग.
क्रिसमस-दीवाली हुलस, नर्तित हैं निस्संग.. 
*
गुझिया मुँह मीठा करे, खाता जाये मलंग.
दाँत न खट्टे कर- कहे, दहीबड़े से भंग.. 
*
मटक-मटक मटका हुआ, जीवित हास्य प्रसंग.
मुग्ध, सुराही को तके, तन-मन हुए तुरंग.. 
*
बेलन से बोला पटा, लग रोटी के अंग.
आज लाज तज एक हैं, दोनों नंग-अनंग.. 
*
फुँकनी को छेड़े तवा, 'तू लग रही सुरंग'.
फुँकनी बोली: 'हाय रे! करिया लगे भुजंग'.. 
*
मादल-टिमकी में छिड़ी, महुआ पीने जंग.
'और-और' दोनों करें, एक-दूजे से मंग.. 
*
हाला-प्याला यों लगे, ज्यों तलवार-निहंग.
भावों के आवेश में, उड़ते गगन विहंग.. 
*
खटिया से नैना मिला, भरता माँग पलंग.
उसने बरजा तो कहे:, 'यही प्रीत का ढंग'.. 
*
भंग भवानी की कृपा, मच्छर हुआ मतंग.
पैर न धरती पर पड़ें, बेपर उड़े पतंग.. 
*
रंग पर चढ़ा अबीर या, है अबीर पर रंग.
बूझ न कोई पा रहा, सारी दुनिया दंग.. 
*
मतंग=हाथी, विहंग = पक्षी,

नवगीत: कब होंगे आज़ाद?

नवगीत:
कब होंगे आज़ाद?
संजीव 'सलिल'
*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?

गए विदेशी पर देशी
अंग्रेज कर रहे शासन
भाषण देतीं सरकारें पर दे
न सकीं हैं राशन
मंत्री से संतरी तक कुटिल
कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?

नेता-अफसर दुर्योधन हैं,
जज-वकील धृतराष्ट्र
धमकी देता सकल राष्ट्र
को खुले आम महाराष्ट्र
आँख दिखाते सभी
पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होगे आजाद?

खाप और फतवे हैं अपने
मेल-जोल में रोड़ा
भष्टाचारी चौराहे पर खाए
न जब तक कोड़ा
तब तक वीर शहीदों के
हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?

पनघट फिर आबाद हो
सकें, चौपालें जीवंत
अमराई में कोयल कूके,
काग न हो श्रीमंत
बौरा-गौरा साथ कर सकें
नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?

रीति-नीति, आचार-विचारों
भाषा का हो ज्ञान
समझ बढ़े तो सीखें
रुचिकर धर्म प्रीति
विज्ञान
सुर न असुर, हम आदम
यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
***

मुक्तक

मुक्तक
ममता को समता के पलड़े में कैसे हम तौल सकेंगे.
मासूमों से कानूनों की परिभाषा क्या बोल सकेंगे?
जिन्हें चाहिए लाड-प्यार की सरस हवा के शीतल झोंके-
'सलिल' सिर्फ सुविधा देकर साँसों में मिसरी घोल सकेंगे?
*
२६-३-२०१०
दोहा
नेह-नर्मदा सनातन, 'सलिल' सच्चिदानंद.
अक्षर की आराधना, शाश्वत परमानंद..
भोजपुरी दोहे:
नेह-छोह राखब सदा
संजीव 'सलिल'
*
नेह-छोह रखाब सदा, आपन मन के जोश.
सत्ता दान बल पाइ त, 'सलिल; न छाँड़ब होश..
*
कइसे बिसरब नियति के, मन में लगल कचोट.
खरे-खरे पीछे रहल, आगे आइल खोट..
*
जीए के सहरा गइल, आरच्छन के हाथ.
अनदेखी काबलियत कs, लख- हरि पीटल माथ..
*
आस बन गइल सांस के, हाथ न पड़ल नकेल.
खाली बतिय जरत बा, बाकी बचल न तेल..
*
दामन दोस्तन से बचा, दुसमन से मत भाग.
नहीं पराया आपना, ला लगावत आग..
*
प्रेम बाग़ लहलहा के, क्षेम सबहिं के माँग.
सूरज सबहिं बर धूप दे, मुर्गा सब के बाँग..
*
शीशा के जेकर मकां, ऊहै पाथर फेंक.
अपने घर खुद बार के, हाथ काय बर सेंक?.
*

गुरुवार, 25 मार्च 2021

सप्तश्लोकी दुर्गा काव्यानुवाद

सप्तश्लोकी दुर्गा
नवरात्रि और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र हिंदी काव्यानुवाद सहित)
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नवरात्रि पर्व में मां दुर्गा की आराधना हेतु नौ दिनों तक व्रत किया जाता है। रात्रि में गरबा व डांडिया रास कर शक्ति की उपासना तथा विशेष कामनापूर्ति हेतु दुर्गा सप्तशती, चंडी तथा सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती तथा चंडी पाठ जटिल तथा प्रचण्ड शक्ति के आवाहन हेतु है। इसके अनुष्ठान में अत्यंत सावधानी आवश्यक है, अन्यथा क्षति संभावित हैं। दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ करने में अक्षम भक्तों हेतु प्रतिदिन दुर्गा-चालीसा अथवा सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ का विधान है जिसमें सामान्य शुद्धि और पूजन विधि ही पर्याप्त है। त्रिकाल संध्या अथवा दैनिक पूजा के साथ भी इसका पाठ किया जा सकता है जिससे दुर्गा सप्तशती,चंडी-पाठ अथवा दुर्गा-चालीसा पाठ के समान पूण्य मिलता है।
कुमारी पूजन
नवरात्रि व्रत का समापन कुमारी पूजन से किया जाता है। नवरात्रि के अंतिम दिन दस वर्ष से कम उम्र की ९ कन्याओं को माँ दुर्गा के नौ रूप (दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी चार वर्ष की कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा, दस वर्ष की सुभद्रा) मान पूजन कर मिष्ठान्न, भोजन के पश्चात् व दान-दक्षिणा भेंट करें।
सप्तश्लोकी दुर्गा
निराकार ने चित्र गुप्त को, परा प्रकृति रच व्यक्त किया।
महाशक्ति निज आत्म रूप दे, जड़-चेतन संयुक्त किया।।
नाद शारदा, वृद्धि लक्ष्मी, रक्षा-नाश उमा-नव रूप-
विधि-हरि-हर हो सके पूर्ण तब, जग-जीवन जीवन्त किया।।
*
जनक-जननि की कर परिक्रमा, हुए अग्र-पूजित विघ्नेश।
आदि शक्ति हों सदय तनिक तो, बाधा-संकट रहें न लेश ।।
सात श्लोक दुर्गा-रहस्य को बतलाते, सब जन लें जान-
क्या करती हैं मातु भवानी, हों कृपालु किस तरह विशेष?
*
शिव उवाच-
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥
शिव बोले: 'सब कार्यनियंता, देवी! भक्त-सुलभ हैं आप।
कलियुग में हों कार्य सिद्ध कैसे?, उपाय कुछ कहिये आप।।'
*
देव्युवाच-
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥
देवी बोलीं: 'सुनो देव! कहती हूँ इष्ट सधें कलि-कैसे?
अम्बा-स्तुति बतलाती हूँ, पाकर स्नेह तुम्हारा हृद से।।'
*
विनियोग-
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः
अनुष्टप्‌ छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
ॐ रचे दुर्गासतश्लोकी स्तोत्र मंत्र नारायण ऋषि ने
छंद अनुष्टुप महा कालिका-रमा-शारदा की स्तुति में
श्री दुर्गा की प्रीति हेतु सतश्लोकी दुर्गापाठ नियोजित।।
*
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥
ॐ ज्ञानियों के चित को देवी भगवती मोह लेतीं जब।
बल से कर आकृष्ट महामाया भरमा देती हैं मति तब।१।
*
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥२॥
माँ दुर्गा का नाम-जाप भयभीत जनों का भय हरता है,
स्वस्थ्य चित्त वाले सज्जन, शुभ मति पाते, जीवन खिलता है।
दुःख-दरिद्रता-भय हरने की माँ जैसी क्षमता किसमें है?
सबका मंगल करती हैं माँ, चित्त आर्द्र पल-पल रहता है।२।
*
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥३॥
मंगल का भी मंगल करतीं, शिवा! सर्व हित साध भक्त का।
रहें त्रिनेत्री शिव सँग गौरी, नारायणी नमन तुमको माँ।३।
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शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥४॥
शरण गहें जो आर्त-दीन जन, उनको तारें हर संकट हर।
सब बाधा-पीड़ा हरती हैं, नारायणी नमन तुमको माँ ।४।
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सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥५॥
सब रूपों की, सब ईशों की, शक्ति समन्वित तुममें सारी।
देवी! भय न रहे अस्त्रों का, दुर्गा देवी तुम्हें नमन माँ! ।५।
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रोगानशोषानपहंसि तुष्टा
रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥६॥
शेष न रहते रोग तुष्ट यदि, रुष्ट अगर सब काम बिगड़ते।
रहे विपन्न न कभी आश्रित, आश्रित सबसे आश्रय पाते।६।
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सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥७॥
माँ त्रिलोकस्वामिनी! हर कर, हर भव-बाधा।
कार्य सिद्ध कर, नाश बैरियों का कर दो माँ! ।७।
*
॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌॥
।श्री सप्तश्लोकी दुर्गा (स्तोत्र) पूर्ण हुआ।
२९.३.२०१७
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दोहा दुनिया

दोहा दुनिया
*
रश्मि अभय रह कर करे, घोर तिमिर पर वार
खुद को करले अलग तो, कैसे हो भाव-पार?
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बाती जग उजयारती , दीपक पाता नाम
रुके नहीं पर मदद से, सधता जल्दी काम
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बाती सँग दीपक मिला, दिया पुलिस ने ठोंक
टीवी पर दो टाँग के, श्वान रहे हैं भौंक
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यह बाती उस दीप को, देख जल उठी आप
किसका कितना दोष है?, कौन सकेगा नाप??
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बाती-दीपक को रहा, भरमाता जो तेल
उसे न कोइ टोंकता, और न भेजे जेल
*
दोष न 'का'-'की' का कहें, यही समय की माँग
बिना पिए भी हो नशा,घुली कुएँ में भाँग
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