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गुरुवार, 25 मई 2023

दुर्गा भाभी,शकुन्तला खरे, अंगिका दोहा मुक्तिका, बिटिया, स्वरबद्ध दोहे, अनुलोम-विलोम, हाइकु

एक रचना

बिटिया!

कोशिश करी बधाई।

*

पहला पैर रखा धरती पर

खड़े न रहकर

गिरे धम्म से।

कदम बढ़ाया चल न सके थे

बार बार

कोशिश की हमने।

'इकनी एक' न एक बार में

लिख पाए हम 

तो न करें गम।

'अ अनार का' बार बार 

लिख गलत 

सही सीखा था हमने।

नहीं विफलता से घबराया

जो उसने ही

मंजिल पाई।

बिटिया!

कोशिश करी बधाई।

*

उड़ा न पाता जो पतंग वह

कर अभ्यास

उड़ाने लगता।

गोल न रोटी बनती गर तो

आंटा बेलन 

तवा न थकता।

बार बार गिरती मकड़ी पर

जाल बनाए बिना

न रुकती।

अगिन बार तिनके गिरते पर

नीड़ बिना

पाखी कब रुकता।

दुखी न हो, संकल्प न छोड़ो

अश्रु न मीत

न सखी रुलाई।

बिटिया!

कोशिश करी बधाई।

*

कुंडी बार बार खटकाओ

तब दरवाजा

खुल पाता है।

अगणित गीत निरंतर गाओ

तभी कंठ-स्वर

सध पाता है।

श्वास ट्रेन पर आस मुसाफिर

थके-चुके बिन 

चलते रहता।

प्रभु सुन ले या करें अनसुनी

भक्त सतत

भजता जाता है।

रुके न थक जो

वह तरुणाई।

बिटिया!

कोशिश करी बधाई।

२५-५-२०२३

***

दुर्गा भाभी और हम 

*

विधि की विडंबना किअंग्रेजो से माफी माँगनेवाले स्वातंत्र्य वीर और प्रधान मंत्री हो गए किन्तु जान हथेली पर रखकर अंग्रेजों की नाक में दम करनेवाले किसी को याद तक नहीं आते।

एक वो भी थे जो देश हित कुर्बान हो गए। 

एक हम हैं जो उनको याद तक नहीं करते।।    

दुर्गा भाभी  साण्डर्स वध के बाद राजगुरू और भगतसिंह को लाहौर से अंग्रेजो की नाक के नीचे से निकालकर कोलकत्ता ले गई थीं। इनके पति क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा थे। ये भी कहा जाता है किचंद्रशेखर आजाद के पास आखिरी वक्त में  दुर्गा भाभी द्वारा दी गई माउजर पिस्तौल थी। 

१४ अक्टूबर १९९९ में वो इस दुनिया से चुपचाप ही विदा हो गईं। 

आज तक उस वीरांगना को इतिहास के पन्नों में वो जगह मिली जिसकी वो हकदार थीं और न ही वो किसी को याद रही चाहे वो सरकार हो या जनता। 

एक स्मारक तक उनके नाम पर नहीं है, कहीं कोई मूर्ति नहीं है उनकी। सरकार, पत्रकार और जनता किसी को नहीं आती उनकी याद। कितने कृतघ्न हैं हम?

***

स्वरबद्ध दोहे :
*
अक्षर अजर अमर असित, अजित अतुल अमिताभ
अकत अकल अकलक अकथ, अकृत अगम अजिताभ
*
आप आब आनंदमय, आकाशी आल्हाद
आक़ा आक़िल अजगबी, आज्ञापक आबाद
*
इश्वाकु इच्छुक इरा, इर्दब इलय इमाम
इड़ा इदंतन इदंता, इन इब्दिता इल्हाम
*
ईक्षा ईक्षित ईक्षिता, ई ईड़ा ईजान
ईशा ईशी ईश्वरी, ईश ईष्म ईशान
*
उत्तम उत्तर उँजेरा, उँजियारी उँजियार
उच्छ्वासित उज्जवल उतरु, उजला उत्थ उकार
*
ऊजन ऊँचा ऊजरा, ऊ ऊतर ऊदाभ
ऊष्मा ऊर्जा ऊर्मिदा, ऊर्जस्वी ऊ-आभ
*
एकाकी एकाकिनी, एकादश एतबार
एषा एषी एषणा, एषित एकाकार
*
ऐश्वर्यी ऐरावती, ऐकार्थ्यी ऐकात्म्य
ऐतरेय ऐतिह्यदा, ऐणिक ऐंद्राध्यात्म
*
ओजस्वी ओजुतरहित, ओंकारित ओंकार
ओल ओलदा ओबरी, ओर ओट ओसार
*
औगत औघड़ औजसिक, औत्सर्गिक औचिंत्य
औंगा औंगी औघड़ी, औषधीश औचित्य
*
अंक अंकिकी आंकिकी, अंबरीश अंबंश
अंहि अंशु अंगाधिपी, अंशुल अंशी अंश
*
हवा आग धरती गगन, रोटी वस्त्र किताब
'सलिल' कलम जिसको मिले, वह हो मनुज जनाब
२५-५-२०१६
***
हिंदी के सोरठे
*
हिंदी मोतीचूर, मुँह में लड्डू सी घुले
जो पहले था दूर, मन से मन खुश हो मिले
हिंदी कोयल कूक, कानों को लगती भली
जी में उठती हूक, शब्द-शब्द मिसरी डली
हिंदी बाँधे सेतु, मन से मन के बीच में
साधे सबका हेतु, स्नेह पौध को सींच के
मात्रिक-वर्णिक छंद, हिंदी की हैं खासियत
ज्योतित सूरज-चंद, बिसरा कर खो मान मत
अलंकार है शान, कविता की यह भूल मत
छंद हीन अज्ञान, चुभा पेअर में शूल मत
हिंदी रोटी-दाल, कभी न कोई ऊबता
ऐसा सूरज जान, जो न कभी भी डूबता
हिंदी निश-दिन बोल, खुश होगी भारत मही
नहीं स्वार्थ से तोल, कर केवल वह जो सही

२२-५-२०२०
***
अनुलोम-विलोम
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया प्राण
*
अनुलोम अर्थात रचना की किसी पँक्ति को सीधा पढ़ने पर भी अर्थ निकले और विलोम अर्थात् उल्टा (पीछे से ) पढ़ने पर भी अर्थ दे ।
संस्कृत के कई कवियों तथा रीतिकालीन हिन्दी के आचार्य कवि केशव दास ने भी ऐसी रचनाएँ की हैं ।
नीचे लिखी रचना में अनुलोम लावणी में और विलोम ताटंक छन्द में बन पड़ा है।
अनुलोम
=======
क्यों दी रोक सार कह नारी गोधारा नीलिमा नदी ।
क्यों दी मोको तालि लय जया माता मम कालिमा पदी ।।
विलोम
=====
दीन मालिनी राधा गोरी नाहक रसा करोदी क्यों ?
दीप मालिका ममता माया जयललिता को मोदी क्यों ?
अनुलोम का अर्थ
===
हे नारी तूने नीलिमा ( यमुना ) नदी की बहती हुई गो धारा क्यों रोक दी ।ऐसा ही करना था तो उस काले पैरों वाली ( कालिमापदी) मेरी जया माता ने मुझे लय और ताल क्यों दी ? यह बता ।
विलोम का अर्थ
====
दीन गरीब मालिनी ने राधा गोरी से पूछा कि तू नाहक धरती क्यों कुरेद रही है पता लगा कि तेरे होते हुए आजकल ये दीप मालिका सी ममता माया व जयललिता को मोदी क्यों चाहिए ?

***


चिंतन:
जाति, विवाह और कर्मकांड
*
जात कर्म = जन्म देने की क्रिया, जातक = नज्म हुआ बच्चा, जातक कथा = विविध योनियों में अवतार लिए बुद्ध की कथाएं.
विविध योनियों में बुद्ध कौन थे यह पहचान उनकी जाति से हुई. जाति = गुण-धर्म.
'जन्मना जायते शूद्रो' के अनुसार हर जातक जन्मा शूद्र होता है.
कर्म के अनुसार वर्ण होता है. 'चातुर्वण्य मया सृष्टम गुण कर्म विभागश:' कृष्ण गीता में.
सनातन धर्म में एक गोत्र, एक कुल, पिता की सात पीढ़ी और माँ की सात पीढ़ी में, एक गुरु के शिष्यों में, एक स्थान के निवासियों में विवाह वर्जित है. यह 'जेनेटिक मिक्सिंग' का भारतीय रूप ही है.
इनमें से हर आधार के पीछे एक वैज्ञानिक कारण है.
जो अव्यक्त है, वह निराकार है. जो निराकार है उसका चित्र नहीं बनाया जा सकता अर्थात चित्र गुप्त है. यह चित्रगुप्त कौन है?
चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानं सर्वदेहिनाम' चित्रगुप्त सर्व प्रथम प्रणाम के योग्य हैं जो सर्व देहधारियों में आत्मा के रूप में विराजमान हैं'
'कायास्थिते स: कायस्थ:' वह (चित्रगुप्त या परमात्मा) जब किसी काया का निर्माण कर उसमें स्थित (आत्मा रूप में) होता है तो कायस्थ कहलाता है.
जैसे कुँए में जल, बाल्टी में निकाला तो जल, लोटे में भरा तो जल, चुल्लू से पिया तो जल, उसी प्रकार परमात्मा का अंश हर आत्मा भी काया धारण कर कायस्थ है.इसीलिये कायस्थ किसी एक वर्ण में नहीं है.
तात्पर्य यह कि सनातन चिंतन में वह है ही नहीं जो समाज में प्रचलन में है. आवश्यकता चिंतन को छोड़ने की नहीं सामाजिक आचार को बदलने की है. जो परिवर्तन की दिशा में सबसे आगे चले वह अग्रवाल, जिसके पास वास्तव में श्री हो वह श्रीवास्तव. जब दोनों का मेल हो तो सत्य और श्रेष्ठ ही बढ़ेगा.
विवाह दो जातकों का होता है, उनके रिश्तेदारों, परिवारों, प्रतिष्ठा या व्यवसाय का नहीं होता. पारस्परिक ताल-मेल, समायोजन, सहिष्णुता और संवेदनशीलता हो तो विवाह करना चाहिए अन्यथा विग्रह होना ही है.
पंडा, पुजारी, मुल्ला, मौलवी, ग्रंथी, पादरी होना धंधा है. जब कोई दूकानदार, कोई मिल मालिक हमें नियंत्रित नहीं करता करे तो हम स्वीकारेंगे नहीं तो कर्मकांड का व्यवसाय करनेवालों की दखलंदाजी हम क्यों मानते हैं? कमजोरी हमारी है, दूर भी हमें ही करना है.
२५-५-२०१७
***
एक दोहा
हवा आग धरती गगन, रोटी वस्त्र किताब
'सलिल' कलम जिसको मिले, वह हो मनुज जनाब
***
नवगीत:
*
श्वास मुखड़े
संग गूथें
आस के कुछ अंतरे
*
जिंदगी नवगीत बनकर
सर उठाने जब लगी
भाव रंगित कथ्य की
मुद्रा लुभाने तब लगी
गुनगुनाकर छंद ने लय
कहा: 'बन जा संत रे!'
श्वास मुखड़े
संग गूथें
आस के कुछ अंतरे
*
बिम्ब ने प्रतिबिम्ब को
हँसकर लगाया जब गले
अलंकारों ने कहा:
रस सँग ललित सपने पले
खिलखिलाकर लहर ने उठ
कहा: 'जग में तंत रे!'
*
बन्दगी इंसान की
भगवान ने जब-जब करी
स्वेद-सलिला में नहाकर
सृष्टि खुद तब-तब तरी
झिलमिलाकर रौशनी ने
अंधेरों को कस कहा:
भास्कर है कंत रे!
श्वास मुखड़े
संग गूथें
आस के कुछ अंतरे
२५-५-२०१५
***
हाइकु चर्चा : १.
*
हाइकु (Haiku 俳句 high-koo) ऐसी लघु कवितायेँ हैं जो एक अनुभूति या छवि को व्यक्त करने के लिए संवेदी भाषा प्रयोग करती है. हाइकु बहुधा प्रकृति के तत्व, सौंदर्य के पल या मार्मिक अनुभव से प्रेरित होते हैं. मूलतः जापानी कवियों द्वारा विकसित हाइकु काव्यविधा अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ द्वारा ग्रहण की गयी.
पाश्चात्य काव्य से भिन्न हाइकु में सामान्यतः तुकसाम्य, छंद बद्धता या काफ़िया नहीं होता।
हाइकु को असमाप्त काव्य चूँकि हर हाइकु में पाठक / श्रोता के मनोभावों के अनुसार पूर्ण किये जाने की अपेक्षा होती है.
हाइकु का उद्भव 'रेंगा नहीं हाइकाइ haikai no renga सहयोगी काव्य समूह' जिसमें शताधिक छंद होते हैं से हुआ है. 'रेंगा' समूह का प्रारंभिक छंद 'होक्कु' मौसम तथा अंतिम शब्द का संकेत करता है. हाइकु अपने काव्य-शिल्प से परंपरा के नैरन्तर्य बनाये रखता है.
समकालिक हाइकुकार कम शब्दों से लघु काव्य रचनाएँ करते हैं. ३-५-३ सिलेबल के लघु हाइकु भी रचे जाते हैं.
हाइकु का वैशिष्ट्य
१. ध्वन्यात्मक संरचना:
Write a Haiku Poem Step 2.jpgपारम्परिक जापानी हाइकु १७ ध्वनियों का समुच्चय है जो ५-७-५ ध्वनियों की ३ पदावलियों में विभक्त होते हैं. अंग्रेजी के कवि इन्हें सिलेबल (लघुतम उच्चरित ध्वनि) कहते हैं. समय के साथ विकसित हाइकु काव्य के अधिकांश हाइकुकार अब इस संरचना का अनुसरण नहीं करते। जापानी या अंग्रेजी के आधुनिक हाइकु न्यूनतम एक से लेकर सत्रह से अधिक ध्वनियों तक के होते हैं. अंग्रेजी सिलेबल लम्बाई में बहुत परिवर्तनशील होते है जबकि जापानी सिलेबल एकरूपेण लघु होते हैं. इसलिए 'हाइकु चंद ध्वनियों का उपयोग कर एक छवि निखारना है' की पारम्परिक धारणा से हटकर १७ सिलेबल का अंग्रेजी हाइकु १७ सिलेबल के जापानी हाइकु की तुलना में बहुत लंबा होता है. ५-७-५ सिलेबल का बंधन बच्चों को विद्यालयों में पढाये जाने के बावजूद अंग्रेजी हाइकू लेखन में प्रभावशील नहीं है. हाइकु लेखन में सिलेबल निर्धारण के लिये जापानी अवधारणा "हाइकु एक श्वास में अभिव्यक्त कर सके" उपयुक्त है. अंग्रेजी में सामान्यतः इसका आशय १० से १४ सिलेबल लंबी पद्य रचना से है. अमेरिकन उपन्यासकार जैक कैरोक का एक हाइकू देखें:
Snow in my shoe मेरे जूते में बर्फ
Abandoned परित्यक्त

२५-५-२०१४
Sparrow's nest गौरैया-नीड़
***
कृति चर्चा:
सर्वमंगल: संग्रहणीय सचित्र पर्व-कथा संग्रह
आचार्य संजीव
*
[कृति विवरण: सर्वमंगल, सचित्र पर्व-कथा संग्रह, श्रीमती शकुन्तला खरे, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ संख्या १८६, मूल्य १५० रु., लेखिका संपर्क: योजना क्रमांक ११४/१, माकन क्रमांक ८७३ विजय नगर, इंदौर. म. प्र. भारत]
*
विश्व की प्राचीनतम भारतीय संस्कृति का विकास सदियों की समयावधि में असंख्य ग्राम्यांचलों में हुआ है. लोकजीवन में शुभाशुभ की आवृत्ति, ऋतु परिवर्तन, कृषि संबंधी क्रिया-कलापों (बुआई, कटाई आदि), महापुरुषों की जन्म-निधन तिथियों आदि को स्मरणीय बनाकर उनसे प्रेरणा लेने हेतु लोक पर्वों का प्रावधान किया गया है. इन लोक-पर्वों की जन-मन में व्यापक स्वीकृति के कारण इन्हें सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता प्राप्त है. वास्तव में इन पर्वों के माध्यम से वैयक्तिक, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सामंजस्य-संतुलन स्थापित कर, सार्वजनिक अनुशासन, सहिष्णुता, स्नेह-सौख्य वर्धन, आर्थिक संतुलन, नैतिक मूल्य पालन, पर्यावरण सुधार आदि को मूर्त रूप देकर समग्र जीवन को सुखी बनाने का उपाय किया गया है. उत्सवधर्मी भारतीय समाज ने इन लोक-पर्वों के माध्यम से दुर्दिनों में अभूतपूर्व संघर्ष क्षमता और सामर्थ्य भी अर्जित की है.
आधुनिक जीवन में आर्थिक गतिविधियों को प्रमुखता मिलने के फलस्वरूप पैतृक स्थान व् व्यवसाय छोड़कर अन्यत्र जाने की विवशता, अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा के कारण तर्क-बुद्धि का परम्पराओं के प्रति अविश्वासी होने की मनोवृत्ति, नगरों में स्थान, धन, साधन तथा सामग्री की अनुपलब्धता ने इन लोक पर्वों के आयोजन पर परोक्षत: कुठाराघात किया है. फलत:, नयी पीढ़ी अपनी सहस्त्रों वर्षों की परंपरा, जीवन शैली, सनातन जीवन-मूल्यों से अपरिचित हो दिग्भ्रमित हो रही है. संयुक्त परिवारों के विघटन ने दादी-नानी के कध्यम से कही-सुनी जाती कहानियों के माध्यम से समझ बढ़ाती, जीवन मूल्यों और जानकारियों से परिपूर्ण कहानियों का क्रम समाप्त प्राय कर दिया है. फलत: नयी पीढ़ी में पारिवारिक स्नेह-सद्भाव का अभाव, अनुशासनहीनता, उच्छंखलता, संयमहीनता, नैतिक मूल्य ह्रास, भटकाव और कुंठा लक्षित हो रही है.
मूलतः बुंदेलखंड में जन्मी और अब मालवा निवासी विदुषी श्रीमती शाकुंताका खरे ने इस सामाजिक वैषम्य की खाई पर संस्कार सेतु का निर्माण कर नव पीढ़ी का पथ-प्रदर्शन करने की दृष्टि से ४ कृतियों मधुरला, नमामि, मिठास तथा सुहानो लागो अँगना के पश्चात विवेच्य कृति ' सर्वमंगल' का प्रकाशन कर पंच कलशों की स्थापना की है. शकुंतला जी इस हेतु साधुवाद की पात्र हैं. सर्वमंगल में चैत्र माह से प्रारंभ कर फागुन तह सकल वर्ष में मनाये जानेवाले लोक-पर्वों तथा त्योहारों से सम्बन्धी जानकारी (कथा, पूजन सामग्री सूचि, चित्र, आरती, भजन, चौक, अल्पना, रंगोली आदि ) सरस-सरल प्रसाद गुण संपन्न भाषा में प्रकाशित कर लोकोपकारी कार्य किया है.
संभ्रांत-सुशिक्षित कायस्थ परिवार की बेटी, बहु, गृहणी, माँ, और दादी-नानी होने के कारण शकुन्तला जी शैशव से ही इन लोक प्रवों के आयोजन की साक्षी रही हैं, उनके संवेदनशील मन ने प्रस्तुत कृति में समस्त सामग्री को बहुरंगी चित्रों के साथ सुबोध भाषा में प्रकाशित कर स्तुत्य प्रयास किया है. यह कृति भारत के हर घर-परिवार में न केवल रखे जाने अपितु पढ़ कर अनुकरण किये जाने योग्य है. यहाँ प्रस्तुत कथाएं तथा गीत आदि पारंपरिक हैं जिन्हें आम जन के ग्रहण करने की दृष्टि से रचा गया है अत: इनमें साहित्यिकता पर समाजीकर और पारम्परिकता का प्राधान्य होना स्वाभाविक है. संलग्न चित्र शकुंतला जी ने स्वयं बनाये हैं. चित्रों का चटख रंग आकर्षक, आकृतियाँ सुगढ़, जीवंत तथा अगढ़ता के समीप हैं. इस कारण इन्हें बनाना किसी गैर कलाकार के लिए भी सहज-संभव है.
भारत अनेकता में एकता का देश है. यहाँ अगणित बोलियाँ, लोक भाषाएँ, धर्म-संप्रदाय तथा रीति-रिवाज़ प्रचलित हैं. स्वाभाविक है कि पुस्तक में सहेजी गयी सामग्री उन परिवारों के कुलाचारों से जुडी हैं जहाँ लेखिका पली-बढ़ी-रही है. अन्य परिवारों में यत्किंचित परिवर्तन के साथ ये पर्व मनाये जाना अथवा इनके अतिरिक्त कुछ अन्य पर्व मनाये जाना स्वाभाविक है. ऐसे पाठक अपने से जुडी सामग्री मुझे या लेखिका को भेजें तो वह अगले संस्करण में जोड़ी जा सकेगी. सारत: यह पुस्तक हर घर, विद्यालय और पुस्तकालय में होना चाहिए ताकि इसके मध्याम से समाज में सामाजिक मूल्य स्थापन और सद्भावना सेतु निर्माण का कार्य होता रह सके.
२३-५-२०१५
***
अंगिका दोहा मुक्तिका
*
काल बुलैले केकर, होतै कौन हलाल?
मौन अराधें दैव कै, एतै प्रातःकाल..
*
मौज मनैतै रात-दिन, हो लै की कंगाल.
संग न आवै छाँह भी, आगे कौन हवाल?
*
एक-एक कै खींचतै, बाल- पकड़ लै खाल.
नींन नै आवै रात भर, पलकें करैं सवाल..
*
कौन हमर रच्छा करै, मन में 'सलिल' मलाल.
केकरा से बिनती करभ, सब्भै हवै दलाल..
*
धूल झौंक दैं आँख में, कज्जर लेंय निकाल.
जनहित कै नाक रचैं, नेता निगलैं माल..
*
मत शंका कै नजर सें, देख न मचा बवाल.
गुप-चुप हींसा बाँट लै, 'सलिल' बजा नैं गाल..
*
ओकर कोय जवाब नै, जेकर सही सवाल.
लै-दै कै मूँ बंद कर, ठंडा होय उबाल..

२१-५-२०१३
===
गीत:
संजीव 'सलिल'
*
साजों की कश्ती से
सुर का संगीत बहा
लहर-लहर चप्पू ले
ताल देते भँवर रे....
*
थापों की मछलियाँ,
नर्तित हो झूमतीं
नादों-आलापों को
सुन मचलतीं-लूमतीं.
दादुर टरटरा रहे
कच्छप की रास देख-
चक्रवाक चहक रहे
स्तुति सुन सिहर रे....
*
टन-टन-टन घंटे का
स्वर दिशाएँ नापता.
'नर्मदे हर' घोष गूँज
दस दिश में व्यापता. .
बहते-जलते चिराग
हार नहीं मानते.
ताकत भर तम को पी
डूब हुए अमर रे...
२५-५-२०१०
***

साहित्य अर्पण


हिंदी आरती
*
भारती भाषा प्यारी की।
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
वर्ण हिंदी के अति सोहें,
शब्द मानव मन को मोहें।
काव्य रचना सुडौल सुन्दर
वाक्य लेते सबका मन हर।
छंद-सुमनों की क्यारी की
आरती हिंदी न्यारी की।।
*
रखे ग्यारह-तेरह दोहा,
सुमात्रा-लय ने मन मोहा।
न भूलें गति-यति बंधन को-
न छोड़ें मुक्तक लेखन को।
छंद संख्या अति भारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
विश्व की भाषा है हिंदी,
हिंद की आशा है हिंदी।
करोड़ों जिव्हाओं-आसीन
न कोई सकता इसको छीन।
ब्रम्ह की, विष्णु-पुरारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
***
एक मुक्तकी राम-कथा
*
राम जन्मे, वन गए, तारी अहल्या, सिय वरी।
स्वर्णमृग-बाली वधा, सुग्रीव की पीड़ा हरी ।।
सिय हरण, लाँघा समुद,लड़-मार रावण को दिया-
विभीषण-अभिषेक, गद्दी अवध की शोभित करी।।


*

मुक्तिका
*
कहाँ भिखारी?
बता उमा री!

बलि द्वारे पर
गया रमा री!

चुप मुसकाती
रही क्षमा री!

जो पूनम है
वही अमा री!

वह पाया जो
रहा गुमा री!
*
गीत:
नदी डर रही है
नदी मर रही है
*
नदी नीरधारी, नदी जीवधारी,
नदी मौन सहती उपेक्षा हमारी
नदी पेड़-पौधे, नदी जिंदगी है-
नदी माँ हमारी, भुलाया है हमने
नदी ही मनुज का
सदा घर रही है।
नदी मर रही है
*
नदी वीर-दानी, नदी चीर-धानी
नदी ही पिलाती बिना मोल पानी,
नदी रौद्र-तनया, नदी शिव-सुता है-
नदी सर-सरोवर नहीं दीन, मानी
नदी निज सुतों पर सदय, डर रही है
नदी मर रही है
*
नदी है तो जल है, जल है तो कल है
नदी में नहाता जो वो बेअकल है
नदी में जहर घोलती देव-प्रतिमा
नदी में बहाता मनुज मैल-मल है
नदी अब सलिल का नहीं घर रही है
नदी मर रही है
*
नदी खोद गहरी, नदी को बचाओ
नदी के किनारे सघन वन लगाओ
नदी को नदी से मिला जल बचाओ
नदी का न पानी निरर्थक बहाओ
नदी ही नहीं, यह सदी मर रही है
नदी मर रही है
**

साहित्य अर्पण आपको माँ भारती! माँ शारदे!
शिवदत्त सत-सुंदर मिले, गोविंद हमको तार दे

नेहा रहे हर श्वास मैया, आस पूनम सम दमक
मौसमी कविता विनीता, सोनिया सी हो चमक

हो न सीमा भाव की, सरोज मुकुलित हो सदा
जीव हर संजीव हो, आनंद पाएँ सर्वदा

***
मुक्तिका
*
धीरे-धीरे समय सूत को, कात रहा है बुनकर दिनकर
साँझ सुंदरी राह हेरती कब लाएगा धोती बुनकर
.
मैया रजनी की कैयां में, चंदा खेले हुमस-किलककर
तारे साथी धमा-चौकड़ी मचा रहे हैं हुलस-पुलककर
.
बहिन चाँदनी सुने कहानी, धरती दादी कहे लीन हो
पता नहीं कब भोर हो गयी?, टेरे मौसी उषा लपककर
.
बहकी-महकी मंद पवन सँग, कली मोगरे की श्वेतभित
गौरैया की चहचह सुनकर, गुटरूँगूँ कर रहा कबूतर
.
सदा सुहागन रहो असीसे, बरगद बब्बा करतल ध्वनि कर
छोड़ न कल पर काम आज का, वरो सफलता जग उठ बढ़ कर
***अमृत फल है आँवला, कर त्रिदोष का नाश।
आयुवृद्धि कर; स्वस्थ रख, कहता छू आकाश।।
*
नहा आँवला नीर से, रखें चर्म को नर्म।
पौधा रोपें; तरु बना, समझें पूजा-मर्म।।
*
अमित विटामिन सी लिए, करता तेज दिमाग।
नेत्र-ज्योति में वृद्धि हो, उपजा नव अनुराग।।
*
नींबू-रस हल्दी मिला, उबटन मल कर स्नान
नर्म मखमली त्वचा पा, करे रूपसी मान
*
मिला नारियल-तेल में, नींबू-रस नित आध
मलें धूप में बदन पर, मिटे खाज की व्याध
*
खूनी दस्त अगर लगे, घोलें दूध-अफीम
नींबू-रस सँग मिला पी, सोएँ बिना हकीम
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हे-ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढे सुयोग..
*
नींद न आये-अनिद्रा, का है सुलभ उपाय.
शुद्ध शहद सेवन करें, गहरी निद्रा आय..
*
चित्रक-जड़ का चूर्ण लें, मृदा-पात्र में लेप।
दही जमाएँ छाछ पी, अर्श मिटा मत झेंप।
***
शृंगार गीत
*
अधर पर मुस्कान १०
नयनों में निमंत्रण, ११
हाथ में हैं पुष्प, १०
मन में शूल चुभते, ११
बढ़ गए पेट्रोल के फिर भाव, १७
जीवन हुआ दूभर। ११
*
ओ अमित शाही इरादों! १४
ओ जुमलिया जूठ-वादों! १४
लूटते हो चैन जन का १४
नीरवों के छिपे प्यादों! १४
जिस तरह भी हो न सत्ता १४
हाथ से जाए। ९
कुर्सियों में जान १०
संसाधन स्व-अर्पण, ११
बात में टकराव, १०
धमकी खुली देते, ११
धर्म का ले नाम, कर अलगाव, १७
खुद को थोप ऊपर। ११
बढ़ गए पेट्रोल के फिर भाव, १७
जीवन हुआ दूभर। ११
*
रक्तरंजित सरहदें क्यों? १४
खोलते हो मैकदे क्यों? १४
जीविका अवसर न बढ़ते १४
हौसलों को रोकते क्यों? १४
बात मन की, ध्वज न दल का १४
उतर-छिन जाए। ९
लिया मन में ठान १०
तोड़े आप दर्पण, ११
दे रहे हो घाव, १०
नफरत रोज सेते, ११
और की गलती गिनाकर मुक्त, १७
ज्यों संतुष्ट शूकर। ११
बढ़ गए पेट्रोल के फिर भाव, १७
जीवन हुआ दूभर। ११
***

मंगलवार, 23 मई 2023

दोहा दोहा चिकित्सा, आयुर्वेद

दोहा दोहा चिकित्सा
*
गर्म दूध-गुड़ नित पिएँ, त्वचा नर्म हो आप
हर विकार मिट वजन घट, रोग न पाए व्याप
*
नित गुड़ अदरक चबाएँ, जोड़ दर्द हो दूर
मासिक समय न दर्द हो, केश बढ़ें भरपूर
*
श्वास फूलती है अगर, दवा श्रेष्ठ अंजीर
कफ-बलगम कर दूर यह, शीघ्र मिटाए पीर
*
रात फुला अंजीर त्रय, पानी में खा भोर
पानी पी लें माह भर, करें न नाहक शोर
*
काढ़ा तुलसी सौंठ का, श्वसन तंत्र का मीत
श्वास फूलने दमा में, सेवन उत्तम रीत
*
सोंठ चूर्ण चुटकी, नमक काला, काली मिर्च
सेवन से खांसी मिटे, व्यर्थ न करिए खर्च
*
तुलसी पत्ते पाँच सँग, काला नमक उबाल
काली मिर्ची सौंठ सँग, सेवन करे कमाल
*
अजवाइन को पीसकर, पानी संग उबाल
पिएँ भाप लें यदि दमा, मिटे न करे निढाल
*
तिल का तेल गरम मलें, छाती पर लें सेक
दमा श्वास पीड़ा मिटे, है सलाह यह नेक
*
श्वास दमा पीड़ा घटे, खाएँ फल अंगूर
अंगूरी से दूर हों, लाभ मिले भरपूर
*
चौलाई रस-शहद पी, नित्य खाइए साग
कष्ट न दे हो दूर झट, श्वास रोग खटराग
*
तीन कली लहसुन डला, दूध उबालें मीत
शयन पूर्व पी लीजिए, श्वास रोग लें जीत
*
काढ़ा सेवन सौंफ का, बलगम करता दूर
श्वसन रोग से मुक्ति पा, बजे श्वास संतूर
*
लौंग-शहद काढ़ा बना, पीते रहें हुजूर
श्वसन तंत्र मजबूत हो, श्वास मिले भरपूर
*
शहद-दालचीनी मिला, पिएँ गुनगुना नीर
या पी लें गोमूत्र तो, घटे श्वास की पीर
*
हींग-शहद चुप चाटिए, चार बार रह शांत
साँस फूलने से मिले, मुक्ति न रहें अशांत
*
नीबू रस पानी गरम, पिएँ मिले आराम
केला सेवन मत करें, लेती श्वास विराम
*
गुड़-सरसों के तेल में, डाल मिला लें मौन
नित करिए सेवन मलें, रोग न जाने कौन
*
ताजे फल सब्जी हरी, चने अंकुरित श्रेष्ठ
चिकनाई एसिड तजें, कार्बोहाइड्रेट नेष्ठ
***
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हे-ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढे सुयोग..
*
नींद न आये-अनिद्रा, का है सुलभ उपाय.
शुद्ध शहद सेवन करें, गहरी निद्रा आय..
*
२२-५-२०१०

बुन्देली, मुक्तिका, गीत, दोहा, अरिल्ल छंद, संविधान, भारत विभाजन, मुहावरेदार दोहे

गीत
चलें गाँव की ओर
स्नेह की सबल बँधी जहँ डोर
*
अलस्सुबह ऊषा-रवि आगत,
गुँजा प्रभाती करिए स्वागत।
गौ दुह पय पी किशन कन्हैया,
नाचें-खेलें ता ता थैया।
पवन बहे कर शोर
चलें गाँव की ओर
*
पनघट जाए मेंहदी पायल,
खिलखिल गूँजे, हो दिल घायल।
स्नान-ध्यान कर पूजे देवा
छाछ पिए, कर धनी कलेवा।
सुनने कलरव शोर
चलें गाँव की ओर
*
पूजें नीम शीतला मैया,
चल चौपाल मिले वट छैंया।
शुद्ध ओषजन धूप ग्रहणकर
बहा पसीना रोग दूर धर।
सुख-दुख संग अँजोर
चलें गाँव की ओर
२३-५-२०२१

***

चिट्ठी संविधान की
प्रिय नागरिकों।
खुश रहो कहूँ या प्रसन्न रहो?
- बहुत उलझन है, यह कहूँ तो फिरकापरस्ती का आरोप, वह कहूँ तो सांप्रदायिकता का। बचने की एक ही राह है 'कुछ न कहो, कुछ भी न कहो'।
क्या एक संवेदनशील समाज में कुछ न कहना उचित हो सकता है?
- कुछ न कहें तो क्या सकल साहित्य, संगीत और अन्य कलाएँ मूक रहें? चित्र न बनाया जाए, नृत्य न किया जाए, गीत न गाया जाए, लेख न लिखा जाए, वसन न पहने जाएँ, भोजन न पकाया जाए, सिर्फ इसलिए कि इससे कुछ व्यक्त होता है और अर्थ का अनर्थ न कर लिया जाए।
- राजनीति ने सत्ता को साध्य समझकर समाज नीति की हत्या कर स्वहित साधन को सर्वोच्च मान लिया है।
- देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन महानुभाव दलीय हितों को लिए आक्रामक मुद्राओं में पूर्ववर्तियों पर अप्रमाणित आरोपों का संकेत करते समय यह भूल जाते हैं कि जब इतिहास खुद को दोहराएगा तब उनके मुखमंडल का शोभा कैसी होगी?
- सत्तासीनों से सत्य, संयम सहित सर्वहित की अपेक्षा न की जाए तो किससे की जाए?
- दलीय स्पर्धा में दलीय हितों को संरक्षण हेतु दलीय पदाधिकारी आरोप-प्रत्यारोप करें किंतु राष्ट्र प्रमुख अपनी निर्लिप्तता प्रदर्शित करें या क्या वातावरण स्वस्थ्य न होगा?
- मुझे बनाते व अंगीकार करते समय जो सद्भाव तुम सबमें था, वह आज कहाँ है? स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र या निशस्त्र दोनों तरह के प्रयास करनेवालों की लक्ष्य और विदेशी संप्रभुओं की उन पर अत्याचार समान नहीं था क्या?
- स्वतंत्र होने पर सकल भारत को एक देखने की दृष्टि खो क्यों रही है? अपने कुछ संबंधियों के बचाने के लिए आतंकवादियों को छोड़ने का माँग करनेवाले नागरिक, उन्हें समर्थन देनेवाला समाचार माध्यम और उन्हें छोड़नेवाली सरकार सबने मेरी संप्रभुता के साथ खिलवाड़ ही किया।
- आरक्षण का आड़ में अपनी राजनैतिक रोटी सेंकनेवाले देश की संपत्ति को क्षति पहुँचानेवाले अपराधी ही तो हैं।
- चंद कोसों पर बदलनेवाली बोली के स्थानीय रूप को राजभाषा का स्पर्धी बनाने की चाहत क्यों? इस संकीर्ण सोच को बल देती दिशा-हीन राजनीति कभी भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन करती है, कभी प्रांतों को नाम पर प्रांत भाषा (छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी, राजस्थान में राजस्थानी आदि) की घोषणा कर देती है, भले ही उस नाम की भाषा पहले कभी नहीं रही हो।
- साहित्यकारों के चित्रों स् सुसज्जित विश्व हिंदी सम्मेलन के मंच से यह घोषित किया जाना कि 'यह भाषा सम्मेलन है, साहित्य सम्मेलन नहीं' राजनीति के 'बाँटो और राज्य करो' सिद्धांत का जयघोष था जिसे समझकर भी नहीं समझा गया।
- संशोधनों को नाम पर बार-बार अंग-भंग करने के स्थान पर एक ही बार में समाप्त क्यों न कर दो? मेरी शपथ लेकर पग-पग पर मेरी ही अवहेलना करना कितना उचित है?
- मुझे पल-पल पीड़ा पहुँचाकर मेरी अंतरात्मा को दुखी करने के स्थान पर तुम मुझे हटा ही क्यों नहीं देते?
-आम चुनाव लोकतंत्र का महोत्सव होना चाहिए किंतु तुमने इसे दलतंत्र का कुरुक्षेत्र बना दिया है। मैंने आम आदमी को मनोनुकूल प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया था पर पूँजीपतियों से चंदा बटोरकर उनके प्रति वफादार दलों ने नाग, साँप, बिच्छू, मगरमच्छ आदि को प्रत्याशी बनाकर जनाधिकार का परोक्षत: हरण कर लिया।
- विडंबना ही है कि जनतात्र को जनप्रतिनिधि जनमत और जनहित नहीं दलित और दल-हित साधते रहते हैं।
- 'समर शेष नहीं हुआ है, उठो, जागो, आगे बढ़ो। लोक का, लोक के लिए, लोक के द्वारा शासन-प्रशासन तंत्र बनाओ अन्यथा समय और मैं दोनों तुम्हें क्षमा नहीं करेंगे।
- ईश्वर तुम्हें सुमति दें।
शुभेच्छु
तुम्हारा संविधान
२३-५-२०१९

***
भारत विभाजन का सत्य:
= दो देशों का सिद्धांत प्रतिपादक सावरकर, समर्थक हिन्दू महासभा,
मुस्लीम लीग, चौधरी.
= पाकिस्तान बनाने पर क्रमश: सहमत हुए: सरदार पटेल, नेहरू, राजगोपालाचारी. इनके बाद मजबूरी में जिन्ना
= अंत तक असहमत गांधी जी, लोहिया जी, खान अब्दुल गफ्फार खान
= लाहौर से ढाका तक एक राज्य बनाने तक अन्न-लवण न खाने का व्रत लेने और निभानेवाले स्वामी रामचंद्र शर्मा 'वीर' (आचार्य धर्मेन्द्र के स्वर्गवासी पिता).
इतिहास पढ़ें, सचाई जानें.पटेल को हृदयाघात हो चुका था, जिन्ना की लाइलाज टी. बी. अंतिम चरण में थी. दोनों के जीवन के कुछ ही दिन शेष थे, दोनों यह सत्य जानते थे.
पटेल ने अखंड भारत की सम्भावना समाप्त करते हुए सबसे पहले पकिस्तान को मंजूर किया, जिन्ना ने कोंग्रेसी नेताओं द्वारा छले जाने से खिन्न होकर पाकिस्तान माँगा किन्तु ऐसा पकिस्तान उन्हें स्वीकार नहीं था. वे आखिर तक इसके विरोध में थे. कोंग्रेस द्वारा माने जाने के बाद उन्हें बाध्य होकर मानना पड़ा.

***

दोहा सलिला:
मन में अब भी रह रहे, पल-पल मैया-तात।
जाने क्यों जग कह रहा, नहीं रहे बेबात।।
*
रचूँ कौन विधि छंद मैं,मन रहता बेचैन।
प्रीतम की छवि देखकर, निशि दिन बरसें नैन।।
*
कल की फिर-फिर कल्पना, कर न कलपना व्यर्थ।
मन में छवि साकार कर, अर्पित कर कुछ अर्ध्य।।
*
जब तक जीवन-श्वास है, तब तक कर्म सुवास।
आस धर्म का मर्म है, करें; न तजें प्रयास।।
*
मोह दुखों का हेतु है, काम करें निष्काम।
रहें नहीं बेकाम हम, चाहें रहें अ-काम।।
*
खुद न करें निज कद्र गर, कद्र करेगा कौन?
खुद को कभी सराहिए, व्यर्थ न रहिए मौन.
*
प्रभु ने जैसा भी गढ़ा, वही श्रेष्ठ लें मान।
जो न सराहे; वही है, खुद अपूर्ण-नादान।।
*
लता कल्पना की बढ़े, खिलें सुमन अनमोल।
तूफां आ झकझोर दे, समझ न पाए मोल।।
*
क्रोध न छूटे अंत तक, रखें काम से काम।
गीता में कहते किशन, मत होना बेकाम।।
*
जिस पर बीते जानता, वही; बात है सत्य।
देख समझ लेता मनुज, यह भी नहीं असत्य।।
*
भिन्न न सत्य-असत्य हैं, कॉइन के दो फेस।
घोडा और सवार हो, अलग न जीतें रेस।।
७.५.२०१८


***
मुक्तिका/हिंदी ग़ज़ल
.
किस सा किस्सा?, कहे कहानी
गल्प- गप्प हँस कर मनमानी
.
कथ्य कथा है जी भर बाँचो
सुन, कह, समझे बुद्धि सयानी
.
बोध करा दे सत्य-असत का
बोध-कथा जो कहती नानी
.
देते पर उपदेश, न करते
आप आचरण पंडित-ज्ञानी
.
लाल बुझक्कड़ बूझ, न बूझें
कभी पहेली, पर ज़िद ठानी
***
[ सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय, अरिल्ल छन्द]
२३-५-२०१६
तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नालॉजी
जबलपुर, ११.३० ए एम
***
दोहा सलिला
*
कर अव्यक्त को व्यक्त हम, रचते नव 'साहित्य'
भगवद-मूल्यों का भजन, बने भाव-आदित्य
.
मन से मन सेतु बन, 'भाषा' गहती भाव
कहे कहानी ज़िंदगी, रचकर नये रचाव
.
भाव-सुमन शत गूँथते, पात्र शब्द कर डोर
पाठक पढ़-सुन रो-हँसे, मन में भाव अँजोर
.
किस सा कौन कहाँ-कहाँ, 'किस्सा'-किस्सागोई
कहती-सुनती पीढ़ियाँ, फसल मूल्य की बोई
.
कहने-सुनने योग्य ही, कहे 'कहानी' बात
गुनने लायक कुछ कहीं, कह होती विख्यात
.
कथ्य प्रधान 'कथा' कहें, ज्ञानी-पंडित नित्य
किन्तु आचरण में नहीं, दीखते हैं सदकृत्य
.
व्यथा-कथाओं ने किया, निश-दिन ही आगाह
सावधान रहना 'सलिल', मत हो लापरवाह
.
'गल्प' गप्प मन को रुचे, प्रचुर कल्पना रम्य
मन-रंजन कर सफल हो, मन से मन तक गम्य
.
जब हो देना-पावना, नातों की सौगात
ताने-बाने तब बनें, मानव के ज़ज़्बात
.
कहानी गोष्ठी, २२-५-२०१६
कान्हा रेस्टॉरेंट, जबलपुर, १९.३०

***
मुहावरेदार दोहे
*
पाँव जमकर बढ़ 'सलिल', तभी रहेगी खैर
पाँव फिसलते ही हँसे, वे जो पाले बैर
*
बहुत बड़ा सौभाग्य है, होना भारी पाँव
बहुत बड़ा दुर्भाग्य है होना भारी पाँव
*
पाँव पूजना भूलकर, फिकरे कसते लोग
पाँव तोड़ने से मिटे, मन की कालिख रोग
*
पाँव गए जब शहर में, सर पर रही न छाँव
सूनी अमराई हुई, अश्रु बहाता गाँव
*
जो पैरों पर खड़ा है, मन रहा है खैर
धरा न पैरों तले तो, अपने करते बैर
*
सम्हल न पैरों-तले से, खिसके 'सलिल' जमीन
तीसमार खाँ हबी हुए, जमीं गँवाकर दीन
*
टाँग अड़ाते ये रहे, दिया सियासत नाम
टाँग मारते वे रहे, दोनों है बदनाम
*
टाँग फँसा हर काम में, पछताते हैं लोग
एक पूर्ण करते अगर, व्यर्थ न होता सोग
*
बिन कारण लातें न सह, सर चढ़ती है धूल
लात मार पाषाण पर, आप कर रहे भूल
*
चरण कमल कब रखे सके, हैं धरती पर पैर?
पैर पड़े जिसके वही, लतियाते कह गैर
*
धूल बिमाई पैर का, नाता पक्का जान
चरण कमल की कब हुई, इनसे कह पहचान?
१९-५-२०१६
***
मुक्तिका
*
धीरे-धीरे समय सूत को, कात रहा है बुनकर दिनकर
साँझ सुंदरी राह हेरती कब लाएगा धोती बुनकर
.
मैया रजनी की कैयां में, चंदा खेले हुमस-किलककर
तारे साथी धमाचौकड़ी मच रहे हैं हुलस-पुलककर
.
बहिन चाँदनी सुने कहानी, धरती दादी कहे लीन हो
पता नहीं कब भोर हो गयी?, टेरे मौसी उषा लपककर
.
बहकी-महकी मंद पवन सँग, क्लो मोगरे की श्वेतभित
गौरैया की चहचह सुनकर, गुटरूँगूँ कर रहा कबूतर
.
सदा सुहागन रहो असीसे, बरगद बब्बा करतल ध्वनि कर
छोड़न कल पर काम आज का, वरो सफलता जग उठ बढ़ कर
हरदोई
८-५-२०१६
***
मुक्तक:
*
पैर जमीं पर जमे रहें तो नभ बांहों में ले सकते हो
आशा की पतवार थामकर भव में नैया खे सकते हो.
शब्द-शब्द को कथ्य, बिंब, रस, भाव, छंद से अनुप्राणित कर
स्नेह-सलिल में अवगाहन कर नित काव्यामृत दे सकते हो
२३-५-२०१५
***
एक दोहा
करें आरती सत्य की, पूजें श्रम को नित्य
हों सहाय सब देवता, तजिए स्वार्थ अनित्य
१७-५-२०१५
***
मुक्तक
तुझको अपना पता लगाना है?
खुद से खुद को अगर मिलाना है
मूँद कर आँख बैठ जाओ भी
दूर जाना करीब आना है
१६-५-२०१५
***
बुन्देली मुक्तिका :
काय रिसा रए
*
काय रिसा रए कछु तो बोलो
दिल की बंद किवरिया खोलो
कबहुँ न लौटे गोली-बोली
कओ बाद में पैले तोलो
ढाई आखर की चादर खों
अँखियन के पानी सें धो लो
मिहनत धागा, कोसिस मोती
हार सफलता का मिल पो लो
तनकउ बोझा रए न दिल पे
मुस्काबे के पैले रो लो
२३-५-२०१३
===
आयुर्वेद दोहा
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हे-ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढे सुयोग..
*
नींद न आये-अनिद्रा, का है सुलभ उपाय.
शुद्ध शहद सेवन करें, गहरी निद्रा आय..
*
२२-५-२०१०
***

राष्ट्रीय गीत, बंकिमचंद्र, वंदे मातरम् हिंदी काव्यानुवाद

राष्ट्रगीत 
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय
*
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
***
राष्ट्रीय गीत का हिंदी अनुवाद

माँ! वंदन है, माँ! वंदन है
जलमय, फलमय, शीत पवनमय
कटी फसलमय माँ! वंदन है

श्वेत चाँदनी रात प्रफुल्लित
पुष्पित तरु से वसुधा सज्जित
शिष्ट हँसीमय, मधुर वाकमय
सुख दो, वर दो, माँ! वंदन है।
माँ! वंदन है, माँ! वंदन है
२३-५-२०२३

हिंदी काव्यानुवाद - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

९४२५१८३२४४
***

सोमवार, 22 मई 2023

आयुर्वेद, नींबू

आयुर्वेद - नींबू 
दोहे का रंग नीबू के संग :
*



वात-पित्त-कफ दोष का, नीबू करता अंत
शक्ति बढ़ाता बदन की, सेवन करिए  कंत
*
ए बी सी त्रय विटामिन, लौह वसा कार्बोज
फॉस्फोरस पोटेशियम, सेवन से दें ओज
*
मैग्निशियम प्रोटीन सँग, सोडियम तांबा प्राप्य
साथ मिले क्लोरीन भी, दे यौवन दुष्प्राप्य
*
नेत्र ज्योति की वृद्धि कर, करे अस्थि मजबूत
कब्ज मिटा, खाया-पचा, दे सुख-ख़ुशी अकूत
*
जल-नीबू-रस नमक लें, सुबह-शाम यदि छान
राहत दे गर्मियों में, फूँक जान में जान
*
नींबू-बीज न खाइये, करे बहुत नुकसान
भोजन में मत निचोड़ें, बाद करें रस-पान
*
कब्ज अपच उल्टियों से, लेता शीघ्र उबार
नीबू-सेंधा नमक सँग, अदरक है उपचार
*
नींबू अजवाइन शहद, चूना-जल लें साथ
वमन-दस्त में लाभ हो, हँसें उठकर माथ
*
जी मिचलाये जब कभी, तनिक न हों बेहाल
नीबू रस-पानी-शहद, आप पिएँ तत्काल
*



नींबू-रस सेंधा नमक, गंधक सोंठ समान
मिली गोलियाँ चूसिये, सुबह-शाम मतिमान
*
नींबू रस-पानी गरम, अम्ल पित्त कर दूर
हरता उदर विकार हर, नियमित पिएँ हुज़ूर
*
आधा सीसी दर्द से, परेशान-बेचैन
नींबू रस जा नाक में, देता पल में चैन
*
चार माह के गर्भ पर, करें शिकंजी पान
दिल-धड़कन नियमित रहे, प्रसव बने आसान
*
कृष्णा तुलसी पात ले, पाँच- चबाएँ खूब
नींबू-रस पी भगा दें, फ्लू को सुख में डूब
*
पिएँ शिकंजी, घाव पर, मलिए नींबू रीत
लाभ एक्जिमा में मिले, चर्म नर्म हो मीत
*
कान दर्द हो कान में, नींबू-अदरक अर्क
डाल साफ़ करिए मिले, शीघ्र आपको फर्क
*
नींबू-छिलका सुखाकर, पीस फर्श पर डाल
दूर भगा दें तिलचटे, गंध करे खुशहाल
*
नीबू-छिलके जलाकर, गंधक दें यदि डाल
खटमल सेना नष्ट हो, खुद ही खुद तत्काल
*
पीत संखिया लौंग संग, बड़ी इलायची कूट
नींबू-रस मलहम लगा, करें कुष्ठ को हूट
*



नींबू-रस हल्दी मिला, उबटन मल कर स्नान
नर्म मखमली त्वचा पा, करे रूपसी मान
*
मिला नारियल-तेल में, नींबू-रस नित आध
मलें धूप में बदन पर, मिटे खाज की व्याध
*
खूनी दस्त अगर लगे, घोलें दूध-अफीम
नींबू-रस सँग मिला पी, सोएँ  बिना हकीम
*
बवासीर खूनी दुखद, करें दुग्ध का पान
नींबू-रस सँग-सँग पिएँ, बूँद-बूँद मतिमान
*
नींबू-रस जल मिला-पी, करें नित्य व्यायाम
क्रमश: गठिया दूर हो, पाएँगे आराम
*
गला बैठ जाए- करें, पानी हल्का गर्म
नींबू-अर्क नमक मिला, कुल्ला करना धर्म
*
लहसुन-नींबू रस मिला, सिर पर मल कर स्नान
मुक्त जुओं से हो सकें, महिलाएँ अम्लान
*
नींबू-एरंड बीज सम, पीस चाटिए रात
अधिक गर्भ संभावना, होती मानें बात
*
प्याज काट नीबू-नमक, डाल खाइए रोज
गर्मी में हो ताजगी, बढ़े देह का ओज
*
काली मिर्च-नमक मिली, पिएँ शिकंजी आप
मिट जाएँगी घमौरियाँ, लगे न गर्मी शाप
*
चेहरे पर नींबू मलें, फिर धो रखिये शांति
दाग मिटें आभा बढ़े, अमल-विमल हो कांति
३-७-२-१५ 
***

आयुर्वेद आँवला

अमृत फल है आँवला
*
अमृत फल है आँवला, कर त्रिदोष का नाश।
आयुवृद्धि कर; स्वस्थ रख, कहता छू आकाश।।
*
नहा आँवला नीर से, रखें चर्म को नर्म।
पौधा रोपें; तरु बना, समझें पूजा-मर्म।।
*
अमित विटामिन सी लिए, करता तेज दिमाग।
नेत्र-ज्योति में वृद्धि हो, उपजा नव अनुराग।।
*
रक्त-शुद्धि-संचार कर, पाचन करता ठीक।
ओज-कांति को बढ़ाकर, नई बनाता लीक।।
*
जठर-अग्नि; मंदाग्नि में, फँकें आँवला चूर्ण।
शहद और घी लें मिला, भोजन पचता पूर्ण।।
*
भुनी पत्तियाँ फाँक लें, यदि मेथी के साथ।
दस्त बंद हो जाएंगे, नहीं दुखेगा माथ।।
*
फुला आँवला-चूर्ण को, आँख धोइए रोज।
त्रिफला मधु-घी खाइए, तिनका भी लें खोज।।
*
अाँतों में छाले अगर, मत हों अाप निराश।
शहद आँवला रस पिएँ, मिटे रोग का पाश।।
*
चूर्ण आँवला फाँकिए, नित भोजन के बाद।
आमाशय बेरोग हो, मिले भोज्य में स्वाद।।
*
खैरसार मुलहठी सँग, लघु इलायची कूट।
मिली अाँवला गोलियाँ, कंठ-रोग लें लूट।।
*
बढ़े पित्त-कफ; वमन हो, मत घबराएँ आप।
शहद-आँवला रस पाएँ, शक्ति सकेगी व्याप।।
५-६-२०१८

रविवार, 21 मई 2023

गीत

गीत 

सफर अधूरा लगता है 

*

मीत-प्रीत बिन गीत का सफर अधूरा लगता है 

*

चरण करें अभिषेक पंथ का 

नयन करें नित संग ग्रंथ का 

चल गिर उठ बढ़ बिना रुके तू 

बिना रुके तू, बिना झुके तू 

मोह-छोह बिन रीत का सफर अधूरा लगता है 

मीत-प्रीत बिन गीत का सफर अधूरा लगता है 

*

मन में मनबसिया बैठा है 

चाहे-अनचाहे पैठा है 

राधा कैसे कहो निकाले  

जब राधा को वही सम्हाले 

हार मिले बिन जीत का  सफर अधूरा लगता है 

मीत-प्रीत बिन गीत का सफर अधूरा लगता है 

*

मनमानी कर मन की बातें 

मुई सियासत करती घातें 

बिना सिया-सत राम नाम ले 

भक्ति भूल आसक्ति थाम ले 

बिना राग संगीत का सफर अधूरा लगता है 

मीत-प्रीत बिन गीत का सफर अधूरा लगता है 

**


आत्म विश्वास

 प्रश्नोत्तर 

प्रश्न - 

आत्म विश्वास की कमी को कैसे दूर करें?

उत्तर -

दर्पण सम्मुख बैठकर, मिला नैन से नैन।

कहें आप से आप ही, मन मत हो बेचैन।।

किस्मत मेरे हाथ में, बनकर रहे लकीर।

अंकित भाग्य कपाल पर, हूँ सच बहुत अमीर।।

धरती माँ की गोद है, गगन पिता की छाँव।

स्नेहपूर्ण संबंध ही, है मेरा घर-गाँव।।

अपने मन का ब्रह्म मैं, विष्णु देह का सत्य।

तजता शिव बन असत को, मेरी आत्म अनित्य।।

जो वह वह मैं है नहीं, मुझमें प्रभु में भेद।

मुझसे मिलने अवतरे, वह भी करे न खेद।।

अधिक राम से भी रहे सिर्फ राम का दास।

मैं भी हूँ प्रभु से अधिक, मेरा बल विश्वास।।

आयुर्वेद, चित्रक, ममता सैनी

 चित्रक हरता कष्ट
*
चित्रक की दो जातियाँ, श्वेत-रक्त हैं फूल।
भारत लंका बांग्ला, खिले न इसमें शूल।१।
*
कालमूल चीता दहन, अग्नि ब्याल है आम।
बेखबरंदा फारसी, अरब शैतरज नाम।२।
*
चित्रमूल चित्रो कहें, महाराष्ट्र गुजरात।
चित्रा है पंजाब में, लीडवर्ट ही भ्रात।३।
*
प्लंबैगो जेलेनिका, है वैज्ञानिक नाम।
कुल प्लंबैजिलेनिका, नेफ्थोक्विनोन अनाम।४।
*
कोमल चिकनी हरी हों, शाख आयु भरपूर।
जड़ पत्ते अरु अर्क भी, करें रोग झट दूर।५।
*
चीनी लिपिड फिनोल है, संग प्रोटीन-स्टार्च।
संधिशोथ कैंसर हरे, करे पंगु भी मार्च।६।
*
एंटीबायोटिक जड़ें, एंटी ऑक्सीडेन्ट।
करतीं दूर मलेरिया, सचमुच एक्सीलेंट।७।
*
अल्कलाइड प्लंबेंगिन, कैंसर हरता तात।
नेफ्रोटॉक्सिक असर को, सिस्प्लेटिन दे मात।८।
*
प्लंबेगिन अग्न्याशयी, कैंसर देता रोक।
कोलस्ट्राल एलडीएल, कम करता हर शोक।९।
*
पथरी गठिया पीलिया, प्रजनन कैंसर रोक।
किडनी-ह्रदय विकार हर, घाव भरे मत टोंक।१०।
*
छह फुटिया झाड़ीनुमा, पौधा सदाबहार। 
तना रहे छोटा हरा, पत्ते लट्वाकार।११।
*
तीन इंच लंबा रहे, एक इंच फैलाव। 
अग्रभाग पैना रहे, जड़ के साथ जुड़ाव।१२ ।
*
लंबाई नौ इंच के, नलिकावाले फूल। 
गंधहीन गुच्छे खिलें, पुष्पदण्ड हो मूल।१३।
*
लंब-गोल फल में रहे, बीज हमेशा एक। 
श्याम-श्वेत बाह्यांsतर, खाएँ सहित विवेक।१४।
*   
जड़ भंगुर हों छाल पर, छोटे कई उभार। 
स्वाद तीक्ष्ण-कटु चिपचिपे, रोमयुक्त फलदार।१५।
*
है यह ऊष्ण त्रिदोष हर, करे वात को शांत। 
कृमिनाशी मल निकाले, पाचन दीपन कांत।१६।
*
कफ-ज्वर बंधक शोथहर, है पौष्टिक-कटु रुक्ष।  
श्लेष्मा वमन प्रमेह विष, कुष्ठ मिटाए दक्ष।१७। 
*
दुग्ध-रक्त शोधन करे, योनीदोष भी दूर। 
गुल्म वायु दीपन अरुचि, मिटे शांति भरपूर।१८।
*
हो जाए नकसीर यदि, शहद-चूर्ण दो ग्राम। 
चाट लीजिए तुरत हो, सच मानें आराम।१९।
*
चित्रक-हल्दी-आँवला, अजमोदा-यवक्षार। 
तीन ग्राम चूरन बना, दिन में लें दो बार।२० अ। 

खाएँ मधु-घृत में मिला, दूर रहे स्वर भेद। 
रामबाण है यह दवा, चूक न करिए खेद।२० आ।
*
चित्रक-सेंधा नमक लें, हरड़-पिप्पली संग। 
सुबह-शाम दो ग्राम पी, पानी गर्म मलंग।२१ अ। 

पचता भोज्य गरिष्ठ भी, मत सँकुचें सरकार।  
अग्नि दीप्त हो पच सके, जो खाएँ आहार।२१ आ।  
*
ताजी जड़ का चूर्ण लें, नागरमोथे साथ। 
वायविडंग न भूलिए, सम मात्रा रख हाथ।२२ अ। 

पाँच ग्राम खा जाइए, भोजन करने पूर्व। 
पाचन शक्ति दुरुस्त हो, लगती भूख अपूर्व।२२ आ।
कल्क सिद्ध घी लीजिए, चित्रक क्वाथ समेत। 
भोजन पहले कीजिए, संग्रहणी हो खेत।२३।
*
चित्रक चूर्ण मिटा सके, तिल्ली-सूजन सत्य।  
बीस ग्राम घृतकुमारी, गूदे सँग लें नित्य।२४।
*
चित्रक जड़ का चूर्ण लें, तीन बार हर रोज। 
प्लीहा रोग मिटे- बढ़े, बल चेहरे का ओज।२५।
*
तक्र सहित दो ग्राम लें, चित्रक त्वक का चूर्ण। 
तब ही भोजन कीजिए, अर्श मिटे संपूर्ण।२६।
*
चित्रक-जड़ का चूर्ण लें, मृदा-पात्र में लेप। 
दही जमाएँ छाछ पी, अर्श मिटा मत झेंप।२७।
*
चित्रक-जड़ चूरन शहद, चाटें यदि दस ग्राम।     
सहज सुखद हो प्रसव अरु, माँ पाए आराम।२८। 
*
चित्रक-जड़ कुटकी हरड़, इंद्रजौ और अतीस। 
काली पहाड़ जड़ मिलाएँ, सम उन्नीस न बीस।२९ अ।

तीन ग्राम लें चूर्ण नित, सुबह-शाम बिन भूल।
वात रोग से मुक्त हों, मिटे दर्द का शूल।२९ आ।
*
चित्रक जड़ पीपल हरड़, अरु चीनी रेबंद। 
काला नमक व आँवला, लें पीड़ा हो मंद।३० अ।

गर्म नीर के साथ लें, पाँच ग्राम हर रात।
आंत-वायु के संग ही, संधिवात की मात।३० आ। 
*
चित्रक जड़ ब्राह्मी सहित, वच समान लें पीस। 
तीन बार दो ग्राम लें, हिस्टीरिआ मरीज।३१। 
*
चित्रक जड़ पीपल मरीच, सौंठ चूर्ण सम आप। 
चार ग्राम लें तो मिटे, जल्दी ही ज्वर-ताप।३२।
*
ज्वर में अन्न न खा सके, रक्त संचरण मंद। 
टुकड़े चित्रक मूल के, चबा मिले आनंद।३३।
*
छत्रक जड़ रस निर्गुंडी, तीन बार दो ग्राम। 
लें प्रसूतिका ज्वर घटे, झट पाएँ आराम।३४ अ।

गर्भाशय देता बहा, दूषित आर्तव दूर। 
मिटता मक्क्ल शूल भी, पीड़ा होती दूर।३४ आ। 
*
चित्रक छाला दूध-जल, पीस लेपिए आप।  
चरम रोग अरु कुष्ठ भी, मिटे घटे संताप।३५ अ।

पुल्टिस बाँधें उठेगा, छाला जब हो ठीक।      
दाग दूर हो जाएँगे, कहती आयुष लीक।३५ आ।
*
दूध लाल चित्रक लगा, खुजली पर लें लीप। 
मिले शीघ्र आराम अरु, रोग न रहे समीप।३६।
*
सिफलिस-कोढ़ मिटा सके, सूखी जड़ की छाल। 
सुबह-शाम त्रै ग्राम लें, चित्रक होगा लाल।३७।
*
पीप बहे लें घाव पर, लेप चित्रकी छाल।
घाव ठीक हो शीघ्र ही, आयुर्वेद कमाल।३८।
*
मूषक ज्वर जाए उतर, तलुए मलिए तेल। 
चित्रक छाला चूर्ण सँग, पका न पीड़ा झेल।३९।
*
मात्रा अधिक न लें 'सलिल', विष सम करे अनिष्ट। 
मात्रा-विधि हो सही तो, चित्रक हरता कष्ट।४०।
***

चित्रपटीय गीत



चित्रपटीय गीतों में साहित्यिक हिंदी

*

सामान्यत: नई पीढ़ी साहित्यिक पुस्तकों की भाषा समझ में न आने को कारण बताकर हिंगलिश का प्रयोग करती है किन्तु चित्रपटीय गीतों में प्रयुक्त हुई साहित्यिक हिंदी इन्हें कठिन नहीं लगती। इसका कारण गीतकार की अभिव्यक्ति सामर्थ्य है। ऐसे कुछ गीतों के मुखड़े निम्न हैं। आप अपना मनपसंद गीत (गीतकार , संगीतकार, कलाकार तथा चाचित्र के नाम आदि सहित) पूरा प्रस्तुत कीजिए तथा पसंद आने का कारण भी बताइए।

१.आधा है चंद्रमा रात आधी..

२. तुम गगन के चंद्रमा हो..

३. कल्पना के घन बरसते..

४. ये कौन चित्रकार है...

५. ज्योति कलश छलके..

६. कोई जब तुम्हारा हृदय..

७. जा तोंसे नहीं बोलूं कन्हैया..

८. कान्हा बजाये बंसरी…

९. तोरा मन दरपन कहलाये..

१०. केतकी गुलाब जूही चंपक बन फूले..

११. मन तरपत हरि दर्शन को आज..

१२. तोरा मनवा क्यूँ घबराये रे…

१३. आज सजन मोहे अंग लगालो…

१४. तू प्यार का सागर है…

१५. मधुबन में राधिका नाचे रे…

१६. नाचे मन मोरा मगन तिक धा धिगि…

१७. सुर ना सजे क्या गाऊँ मैं…

१८. कुहू कुहू बोले कोयलिया…

१९. मुझे ना बुला…

२०. मैं पिया तेरी तू माने या न माने..

२१. तेरे द्वार खड़ा भगवान…

२२. पूछो न कैसे मैंने रैन बितायी..

२३. कौन आया मेरे मन के द्वारे…

२४. लपक झपक तू आ रे बदरवा..

२५. ज्योत से ज्योत जगाते चलो…

२६. कैसे मनाउं पियवा गुन मेरे एकहु नाहीं…

२७. भय भंजना वंदना सुन हमारी…

२८. ओ निर्दयी प्रीतम…

२९. हे माता सरस्वती शारदा..

३०. आन मिलो श्याम सांवरे..

३१. ना मैं धन चाहूँ…

३२. प्रभु तेरो नाम जो ध्याये…

३३. जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए…

३४. दरसन दो घनश्याम नाथ मोरी…

३५. घूंघट के पट खोल रे तोहे…

३६. ए री मैं तो दर्द दीवानी…

३७. संसार से भागे फिरते हो..

३८. निर्बल से लड़ाई बलवान की…

३९. जागो मोहन प्यारे..

४०. सत्यम् शिवम् सुंदरम्….

४१. एक राधा एक मीरा दोनों ने श्याम को…

४२. झिलमिल सितारों का आंगन होगा..

४३. मनमोहना बड़े झूठे…

४४. मन रे तू काहे न धीर धरे..

४५. कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाये..

४६. रजनीगंधा फूल तुम्हारे…

४७. नदिया किनारे हेराई आई कंगना..

४८. तेरी बिंदिया रे..

४९. कैसे आऊं जमुना के तीर…

५०. वृंदावन का कृष्ण कन्हैया..

५१. जरा सामने तो आओ छलिए..

५२. तेरे बिन सूने नैन हमारे…

५३. सुन मेरे बंधु रे…

५४. मेरे साजन हैं उस पार..

५५. पिया तोसे नेहा लागी रे…

५६. लाली लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया…

५७. चंदन सा बदन चंचल चितवन…

५८. तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो..

५९. मन क्यूँ बहका रे बहका आधी रात को…

६०. काहे तरसाये जियरा…..

६१. जिया लागे ना मोरा तुम बिन…

६२. बोल रे पपीहर..

६३. जब दीप जले आना..

६४. का करूँ सजनी आये न बालम…

६५. कई बार यूं भी देखा है ये जो मन की सीमा…

६६. कहाँ से आये बदरा…

६७. मन मोर हुआ मतवारा…

६८. मन मोरा बावरा…

६९. झनक झनक तोरी बाजे पायलिया…

७०. सांवरे सांवरे काहे करो मोसे…

७१. हो उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा..

दोहा, कान, नाक, वास्तु, नवगीत, मुक्तिका,इमारत, औरत, पुरुष विमर्श

मुक्तिका
*
मुश्किल कोई डगर नहीं है
बेरस कोई बहर नहीं है
किस मन में मिलने-जुलने की
कहिए उठती लहर नहीं है
सलिल-नलिन हैं रात-चाँद सम
इस बिन उसकी गुजर नहीं है
हो ऊषा तुम गृहाकाश की
तुम बिन होती सहर नहीं है
हूँ सूरज श्रम करता दिन भर
बिन मजदूरी बसर नहीं है
***
***
औरत
*
औरत होती नहीं रिटायर
करती रोज पुरुष को टायर
माँ बन आँचल में दुबकाए
बहना बन पहरा दिलवाए
सखी अँगुलि पर नाच नचाए
भौजी ताने नित्य सुनाए
बीबी सहयोगिनी कह आए
पर गृह की स्वामिन बन जाए
बेटी चिंता-फिक्र बढ़ाए
पल-पुस कर झट फुर हो जाए
बहू छीन ले आकर कमरा
वृद्धाश्रम की राह दिखाए
कहो न अबला, नारी सबला
तबला नर को बना बजाए
नर बेचारा समझ रहा यह
तम में आशा दीप जलाए
शारद-रमा-उमा नित पूजे
घर न घाट का पर रह जाए
२१-५-२०२०
***
मुक्तिका: जिंदगी की इमारत
जिंदगी की इमारत में, नींव हो विश्वास की।
प्रयासों की दिवालें हों, छत्र हों नव आस की।
*
बीम संयम की सुदृढ़, मजबूत कॉलम नियम के।
करें प्रबलीकरण रिश्ते, खिड़कियाँ हों हास की।।
*
कर तराई प्रेम से नित, छपाई कर नीति से।
ध्यान धरना दरारें बिलकुल न हों संत्रास की।।
*
रेत कसरत, गिट्टियाँ शिक्षा, कला सीमेंट हो।
फर्श श्रम का, मोगरा सी गंध हो वातास की।।
*
उजाला शुभकामना का, द्वार हो सद्भाव का।
हौसला विद्युतिकरण हो, रौशनी सुमिठास की।।
*
फेंसिंग व्यायाम, लिंटल मित्रता के हों 'सलिल'।
बालकनियाँ पड़ोसी अपनत्व के अहसास की।।
*
वरांडे हो मित्र, स्नानागार सलिला सरोवर।
पाकशाला तृप्ति, पूजास्थली हो सन्यास की।।
***
***
मुक्तिका
.
शब्द पानी हो गए
हो कहानी खो गए
.
आपसे जिस पल मिले
रातरानी हो गए
.
अश्रु आ रूमाल में
प्रिय निशानी हो गए
.
लाल चूनर ओढ़कर
क्या भवानी हो गए?
.
नाम के नाते सभी
अब जबानी हो गए
.
गाँव खुद बेमौत मर
राजधानी हो गए
.
हुए जुमले, वायदे
पानी पानी हो गए
२१-५-२०१७
...


एक गीत
*
मात्र मेला मत कहो
जनगण हुआ साकार है।
*
'लोक' का है 'तंत्र' अद्भुत
पर्व, तिथि कब कौन सी है?
कब-कहाँ, किस तरह जाना-नहाना है?
बताता कोई नहीं पर
सूचना सब तक पहुँचती।
बुलाता कोई नहीं पर
कामना मन में पुलकती
चलें, डुबकी लगा लें
यह मुक्ति का त्यौहार है।
*
'प्रजा' का है 'पर्व' पावन
सियासत को लगे भावन
कहीं पण्डे, कहीं झंडे- दुकाने हैं
टिकाता कोई नहीं पर
आस्था कब है अटकती?
बुझाता कोई नहीं पर
भावना मन में सुलगती
करें अर्पित, पुण्य पा लें
भक्ति का व्यापार है।
*
'देश' का है 'चित्र' अनुपम
दृष्ट केवल एकता है।
भिन्नताएँ भुला, पग मिल साथ बढ़ते
भुनाता कोई नहीं पर
स्नेह के सिक्के खनकते।
स्नान क्षिप्रा-नर्मदा में
करे, मानें पाप धुलते
पान अमृत का करे
मन आस्था-आगार है।
*
***

मुक्तिका
*
मखमली-मखमली
संदली-संदली
.
भोर- ऊषा-किरण
मनचली-मनचली
.
दोपहर है जवाँ
खिल गयी नव कली
.
साँझ सुन्दर सजी
साँवली-साँवली
.
चाँद-तारें चले
चन्द्रिका की गली
.
रात रानी न हो
बावली-बावली
.
राह रोके खड़ा
दुष्ट बादल छली
***
(दस मात्रिक दैशिक छन्द
रुक्न- फाइलुन फाइलुन)
२१-५-२०१६


***
अमीर खुसरो के रोचक घरेलू नुस्खे
अमीर खुसरो ने वैद्यराज खुसरो के रुप में काव्यात्मक घरेलू नुस्खे भी लिखे हैं-
1 हरड़-बहेड़ा आँवला, घी सक्कर में खाए!
हाथी दाबे काँख में, साठ कोस ले जाए!!
2 मारन चाहो काऊ को, बिना छुरी बिन घाव!
तो वासे कह दीजियो, दूध से पूरी खाए!!
3 प्रतिदिन तुलसी बीज को, पान संग जो खाए!
रक्त-धातु दोनों बढ़े, नामर्दी मिट जाय!!
4 माटी के नव पात्र में, त्रिफला रैन में डारी!
सुबह-सवेरे-धोए के, आँख रोग को हारी!!
5 चना-चून के-नोन दिन, चौंसठ दिन जो खाए!
दाद-खाज-अरू सेहुवा-जरी मूल सो जाए!!
6 सौ-दवा की एक दवा, रोग कोई न आवे!
खुसरो-वाको-सरीर सुहावे, नित ताजी हवा जो खावे!!


***
दोहा सलिला- कान
वाद-विवाद किये बिना, करते चुप सहयोग
कान धीर-गंभीर पर, नहीं चाहते शोर
*
कान कतरना चाहती, खुद को स्याना मान
अपने ही माँ-बाप के, 'सलिल' आज सन्तान
*
कान न भरिये किसी के, मत तोड़ें विश्वास
कान-दान मत कीजिए, पायेंगे संत्रास
*
कर्ण न हो तो श्रवण, रण, ज्यामिति शोभाहीन
कर्ण-शूल बेचैन कर, अमन चैन ले छीन
*
कान न हों तो सुन सकें, हम कैसे आवाज?
हो न सके संवाद तो, रुक जाएँ जग-काज
*


कान मकान दूकान से, बढ़ते क्रिया-कलाप
नहीं एक भी हो अगर, जीवन बने विलाप
*

कान-नाक से जुड़ा है, नाज़ुक नाड़ी-तन्त्र
छेद-कीलते विज्ञ जन, स्वस्थ्य रहे तन-यंत्र
*
आँखें चश्मा हीन हों, अगर नहीं हों कान
कान पकड़ चश्मा सजे, मगर न घटता मान

*
कान कटे जिसके लगे, श्रीयुत भी श्री हीन
नकटी शूर्पनखा लगे, नहीं श्रेष्ठ अति दीन
*
कान खींचना ही नहीं, भूलों का उपचार
मार्ग प्रदर्शन भी करें, तब हो बेडा पार
*
कनबहरी करिए नहीं, अवसर जाता चूक
व्यर्थ विवादों की दवा, लेकिन यही अचूक
*
आन गाँव का कनफटा, लगता जोगी सिद्ध
कौन बताये कब कहाँ, रहा मोह में बिद्ध
*
छवि देखें मुख चन्द्र की, कर्ण फूल के साथ
शतदल पाटल मध्य ज्यों, देख मुग्ध शशिनाथ
*

कान खड़े कर सुन रहा, जो न समय की बात
कान बंद कर जो रहा, दोनों की है मात
*
जो जन कच्चे कान के, उनसे रहें सतर्क
अफवाहों पर भरोसा, करें- न मानें तर्क
*
रूप नहीं गुण देखते, जो- वे हैं मतिमान
सुनें सतासत कान पर, दें न असत पर ध्यान
*
सूपे जैसे नख लिये, गई सुपनखा हार
सूप-कार्टन ले गणपति, पुजें सकल संसार
*


तेल कान में डालकर, बैठे सत्तासीन
कौन सुधारे देश को, सब स्वार्थों में लीन
*
स्वर्णहार ले आओ तो, विहँस कंठ में धार
पहना दूँ पल में तुम्हें, झट बाँहों का हार
*
रक्त कमल दल मध्य है, मुक्ता मणि रद-पंक्ति
आप आप पर रीझते, नयन गहें भव-मुक्ति
*

मिले अकेलापन कभी, खुद से खुद कर भेंट
'सलिल' व्यर्थ बिखराव को, होकर मौन समेट
***
षटपदी के रंग नाक के संग
*
नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ राह निकालें
नाक नकेल भी डाल सखे, न कटे जंजाल तो नाक़ चढ़ा लें
२१-५-२०१५
***
वास्तु सूत्र
*
(१ ) भवन के मुख्य द्वार पर किसी भी ईमारत, मंदिर, वृक्ष, मीनार आदि की छाया नहीं पड़नी चाहिए।
(२ ) मुख्य द्वार के सामने रसोई बिलकुल नहीं होनी चाहिए।
(३ ) रसोई घर, पूजा कक्ष तथा शौचालय एक साथ अर्थात लगे हुए न हों। इनमे अंतर होना चाहिए।
(४ ) वाश बेसिन, सिंक, नल की टोंटी, दर्पण आदि उत्तरी या पूर्वी दीवार के सहारे ही लगवाएं।
(५) तिजोरी (केश बॉक्स या सेफ) दक्षिण या पश्चिमी दीवार में लगवाएं ताकि उसका दरवाजा उत्तर या पूर्व में खुले।
(६) भवन की छत एवं फर्श नैऋत्य में ऊँचा रखें एवं शान में नीचा रखें।
(७) पूजा स्थान इस तरह हो कि पूजा करते समय आपका मुँह पूर्व, उत्तर या ईशान (उत्तर-पूर्व) दिशा में हो।
(८) जल स्रोत (नल, कुआँ, ट्यूब वेल आदि), जल-टंकी ईशान में हो।
(९) अग्नि तत्व (रसोई गृह) भूखंड के आग्नेय में हो। चूल्हा, ओवन, बिजली का मीटर आदि कक्ष के दक्षिणआग्नेय में हों।
(१०) नैऋत्य दिशा में भारी निर्माण जीना, ममटी आदि तथा भारी सामान हो। घर की चहार दीवारी नैऋत्य में अधिक ऊँची व मोटी तथा ईशान में दीवार कम नीची व कम मोटी अर्थात पतली हो।
(११) वायव्य दिशा में अतिथि कक्ष, अविवाहित कन्याओं का कक्ष, कारखाने का उत्पादन कक्ष रखें। यहाँ सेप्टिक टैंक बना सकते हैं। टैक्सी सर्विस वाले यहाँ वहां रखें तो सफलता अधिक मिलेगी।
२१-५-२०१३
***
एक दोहा
प्राची से होती प्रगट, खोल कक्ष का द्वार.
अलस्सुबह ऊषा पुलक, गुपचुप झाँक-निहार..
२१-५-२०१२
***
नव गीत:
*
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
शांति-शिष्टता,
धैर्य-भद्रता,
जीवट की पहचान.
शांत सतह के
नीचे हलचल,
मचल रहे अरमान.
श्वेत-शयन लख
यह मत समझो
रंगों से अनजान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
ऊपर-नीचे
सब जानें पर
ऊँच-नीच से दूर.
दिक्-दिगंत पर
नजर जमाये
आशान्वित भरपूर.
मुस्कानों से
'सलिल' न होगा
पीड़ा का अनुमान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
उत्तर का
प्रत्युत्तर देना
बहुत सहज आसान.
कह न अनर्गल
मौन साधना
क्या जानें नादान?
जो सचमुच
है बड़ा, 'सलिल' वह
नहीं दिखता शान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
२१-५-२०१०
*