कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 25 मई 2023

साहित्य अर्पण


हिंदी आरती
*
भारती भाषा प्यारी की।
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
वर्ण हिंदी के अति सोहें,
शब्द मानव मन को मोहें।
काव्य रचना सुडौल सुन्दर
वाक्य लेते सबका मन हर।
छंद-सुमनों की क्यारी की
आरती हिंदी न्यारी की।।
*
रखे ग्यारह-तेरह दोहा,
सुमात्रा-लय ने मन मोहा।
न भूलें गति-यति बंधन को-
न छोड़ें मुक्तक लेखन को।
छंद संख्या अति भारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
विश्व की भाषा है हिंदी,
हिंद की आशा है हिंदी।
करोड़ों जिव्हाओं-आसीन
न कोई सकता इसको छीन।
ब्रम्ह की, विष्णु-पुरारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
***
एक मुक्तकी राम-कथा
*
राम जन्मे, वन गए, तारी अहल्या, सिय वरी।
स्वर्णमृग-बाली वधा, सुग्रीव की पीड़ा हरी ।।
सिय हरण, लाँघा समुद,लड़-मार रावण को दिया-
विभीषण-अभिषेक, गद्दी अवध की शोभित करी।।


*

मुक्तिका
*
कहाँ भिखारी?
बता उमा री!

बलि द्वारे पर
गया रमा री!

चुप मुसकाती
रही क्षमा री!

जो पूनम है
वही अमा री!

वह पाया जो
रहा गुमा री!
*
गीत:
नदी डर रही है
नदी मर रही है
*
नदी नीरधारी, नदी जीवधारी,
नदी मौन सहती उपेक्षा हमारी
नदी पेड़-पौधे, नदी जिंदगी है-
नदी माँ हमारी, भुलाया है हमने
नदी ही मनुज का
सदा घर रही है।
नदी मर रही है
*
नदी वीर-दानी, नदी चीर-धानी
नदी ही पिलाती बिना मोल पानी,
नदी रौद्र-तनया, नदी शिव-सुता है-
नदी सर-सरोवर नहीं दीन, मानी
नदी निज सुतों पर सदय, डर रही है
नदी मर रही है
*
नदी है तो जल है, जल है तो कल है
नदी में नहाता जो वो बेअकल है
नदी में जहर घोलती देव-प्रतिमा
नदी में बहाता मनुज मैल-मल है
नदी अब सलिल का नहीं घर रही है
नदी मर रही है
*
नदी खोद गहरी, नदी को बचाओ
नदी के किनारे सघन वन लगाओ
नदी को नदी से मिला जल बचाओ
नदी का न पानी निरर्थक बहाओ
नदी ही नहीं, यह सदी मर रही है
नदी मर रही है
**

साहित्य अर्पण आपको माँ भारती! माँ शारदे!
शिवदत्त सत-सुंदर मिले, गोविंद हमको तार दे

नेहा रहे हर श्वास मैया, आस पूनम सम दमक
मौसमी कविता विनीता, सोनिया सी हो चमक

हो न सीमा भाव की, सरोज मुकुलित हो सदा
जीव हर संजीव हो, आनंद पाएँ सर्वदा

***
मुक्तिका
*
धीरे-धीरे समय सूत को, कात रहा है बुनकर दिनकर
साँझ सुंदरी राह हेरती कब लाएगा धोती बुनकर
.
मैया रजनी की कैयां में, चंदा खेले हुमस-किलककर
तारे साथी धमा-चौकड़ी मचा रहे हैं हुलस-पुलककर
.
बहिन चाँदनी सुने कहानी, धरती दादी कहे लीन हो
पता नहीं कब भोर हो गयी?, टेरे मौसी उषा लपककर
.
बहकी-महकी मंद पवन सँग, कली मोगरे की श्वेतभित
गौरैया की चहचह सुनकर, गुटरूँगूँ कर रहा कबूतर
.
सदा सुहागन रहो असीसे, बरगद बब्बा करतल ध्वनि कर
छोड़ न कल पर काम आज का, वरो सफलता जग उठ बढ़ कर
***अमृत फल है आँवला, कर त्रिदोष का नाश।
आयुवृद्धि कर; स्वस्थ रख, कहता छू आकाश।।
*
नहा आँवला नीर से, रखें चर्म को नर्म।
पौधा रोपें; तरु बना, समझें पूजा-मर्म।।
*
अमित विटामिन सी लिए, करता तेज दिमाग।
नेत्र-ज्योति में वृद्धि हो, उपजा नव अनुराग।।
*
नींबू-रस हल्दी मिला, उबटन मल कर स्नान
नर्म मखमली त्वचा पा, करे रूपसी मान
*
मिला नारियल-तेल में, नींबू-रस नित आध
मलें धूप में बदन पर, मिटे खाज की व्याध
*
खूनी दस्त अगर लगे, घोलें दूध-अफीम
नींबू-रस सँग मिला पी, सोएँ बिना हकीम
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हे-ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढे सुयोग..
*
नींद न आये-अनिद्रा, का है सुलभ उपाय.
शुद्ध शहद सेवन करें, गहरी निद्रा आय..
*
चित्रक-जड़ का चूर्ण लें, मृदा-पात्र में लेप।
दही जमाएँ छाछ पी, अर्श मिटा मत झेंप।
***
शृंगार गीत
*
अधर पर मुस्कान १०
नयनों में निमंत्रण, ११
हाथ में हैं पुष्प, १०
मन में शूल चुभते, ११
बढ़ गए पेट्रोल के फिर भाव, १७
जीवन हुआ दूभर। ११
*
ओ अमित शाही इरादों! १४
ओ जुमलिया जूठ-वादों! १४
लूटते हो चैन जन का १४
नीरवों के छिपे प्यादों! १४
जिस तरह भी हो न सत्ता १४
हाथ से जाए। ९
कुर्सियों में जान १०
संसाधन स्व-अर्पण, ११
बात में टकराव, १०
धमकी खुली देते, ११
धर्म का ले नाम, कर अलगाव, १७
खुद को थोप ऊपर। ११
बढ़ गए पेट्रोल के फिर भाव, १७
जीवन हुआ दूभर। ११
*
रक्तरंजित सरहदें क्यों? १४
खोलते हो मैकदे क्यों? १४
जीविका अवसर न बढ़ते १४
हौसलों को रोकते क्यों? १४
बात मन की, ध्वज न दल का १४
उतर-छिन जाए। ९
लिया मन में ठान १०
तोड़े आप दर्पण, ११
दे रहे हो घाव, १०
नफरत रोज सेते, ११
और की गलती गिनाकर मुक्त, १७
ज्यों संतुष्ट शूकर। ११
बढ़ गए पेट्रोल के फिर भाव, १७
जीवन हुआ दूभर। ११
***

मंगलवार, 23 मई 2023

दोहा दोहा चिकित्सा, आयुर्वेद

दोहा दोहा चिकित्सा
*
गर्म दूध-गुड़ नित पिएँ, त्वचा नर्म हो आप
हर विकार मिट वजन घट, रोग न पाए व्याप
*
नित गुड़ अदरक चबाएँ, जोड़ दर्द हो दूर
मासिक समय न दर्द हो, केश बढ़ें भरपूर
*
श्वास फूलती है अगर, दवा श्रेष्ठ अंजीर
कफ-बलगम कर दूर यह, शीघ्र मिटाए पीर
*
रात फुला अंजीर त्रय, पानी में खा भोर
पानी पी लें माह भर, करें न नाहक शोर
*
काढ़ा तुलसी सौंठ का, श्वसन तंत्र का मीत
श्वास फूलने दमा में, सेवन उत्तम रीत
*
सोंठ चूर्ण चुटकी, नमक काला, काली मिर्च
सेवन से खांसी मिटे, व्यर्थ न करिए खर्च
*
तुलसी पत्ते पाँच सँग, काला नमक उबाल
काली मिर्ची सौंठ सँग, सेवन करे कमाल
*
अजवाइन को पीसकर, पानी संग उबाल
पिएँ भाप लें यदि दमा, मिटे न करे निढाल
*
तिल का तेल गरम मलें, छाती पर लें सेक
दमा श्वास पीड़ा मिटे, है सलाह यह नेक
*
श्वास दमा पीड़ा घटे, खाएँ फल अंगूर
अंगूरी से दूर हों, लाभ मिले भरपूर
*
चौलाई रस-शहद पी, नित्य खाइए साग
कष्ट न दे हो दूर झट, श्वास रोग खटराग
*
तीन कली लहसुन डला, दूध उबालें मीत
शयन पूर्व पी लीजिए, श्वास रोग लें जीत
*
काढ़ा सेवन सौंफ का, बलगम करता दूर
श्वसन रोग से मुक्ति पा, बजे श्वास संतूर
*
लौंग-शहद काढ़ा बना, पीते रहें हुजूर
श्वसन तंत्र मजबूत हो, श्वास मिले भरपूर
*
शहद-दालचीनी मिला, पिएँ गुनगुना नीर
या पी लें गोमूत्र तो, घटे श्वास की पीर
*
हींग-शहद चुप चाटिए, चार बार रह शांत
साँस फूलने से मिले, मुक्ति न रहें अशांत
*
नीबू रस पानी गरम, पिएँ मिले आराम
केला सेवन मत करें, लेती श्वास विराम
*
गुड़-सरसों के तेल में, डाल मिला लें मौन
नित करिए सेवन मलें, रोग न जाने कौन
*
ताजे फल सब्जी हरी, चने अंकुरित श्रेष्ठ
चिकनाई एसिड तजें, कार्बोहाइड्रेट नेष्ठ
***
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हे-ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढे सुयोग..
*
नींद न आये-अनिद्रा, का है सुलभ उपाय.
शुद्ध शहद सेवन करें, गहरी निद्रा आय..
*
२२-५-२०१०

बुन्देली, मुक्तिका, गीत, दोहा, अरिल्ल छंद, संविधान, भारत विभाजन, मुहावरेदार दोहे

गीत
चलें गाँव की ओर
स्नेह की सबल बँधी जहँ डोर
*
अलस्सुबह ऊषा-रवि आगत,
गुँजा प्रभाती करिए स्वागत।
गौ दुह पय पी किशन कन्हैया,
नाचें-खेलें ता ता थैया।
पवन बहे कर शोर
चलें गाँव की ओर
*
पनघट जाए मेंहदी पायल,
खिलखिल गूँजे, हो दिल घायल।
स्नान-ध्यान कर पूजे देवा
छाछ पिए, कर धनी कलेवा।
सुनने कलरव शोर
चलें गाँव की ओर
*
पूजें नीम शीतला मैया,
चल चौपाल मिले वट छैंया।
शुद्ध ओषजन धूप ग्रहणकर
बहा पसीना रोग दूर धर।
सुख-दुख संग अँजोर
चलें गाँव की ओर
२३-५-२०२१

***

चिट्ठी संविधान की
प्रिय नागरिकों।
खुश रहो कहूँ या प्रसन्न रहो?
- बहुत उलझन है, यह कहूँ तो फिरकापरस्ती का आरोप, वह कहूँ तो सांप्रदायिकता का। बचने की एक ही राह है 'कुछ न कहो, कुछ भी न कहो'।
क्या एक संवेदनशील समाज में कुछ न कहना उचित हो सकता है?
- कुछ न कहें तो क्या सकल साहित्य, संगीत और अन्य कलाएँ मूक रहें? चित्र न बनाया जाए, नृत्य न किया जाए, गीत न गाया जाए, लेख न लिखा जाए, वसन न पहने जाएँ, भोजन न पकाया जाए, सिर्फ इसलिए कि इससे कुछ व्यक्त होता है और अर्थ का अनर्थ न कर लिया जाए।
- राजनीति ने सत्ता को साध्य समझकर समाज नीति की हत्या कर स्वहित साधन को सर्वोच्च मान लिया है।
- देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन महानुभाव दलीय हितों को लिए आक्रामक मुद्राओं में पूर्ववर्तियों पर अप्रमाणित आरोपों का संकेत करते समय यह भूल जाते हैं कि जब इतिहास खुद को दोहराएगा तब उनके मुखमंडल का शोभा कैसी होगी?
- सत्तासीनों से सत्य, संयम सहित सर्वहित की अपेक्षा न की जाए तो किससे की जाए?
- दलीय स्पर्धा में दलीय हितों को संरक्षण हेतु दलीय पदाधिकारी आरोप-प्रत्यारोप करें किंतु राष्ट्र प्रमुख अपनी निर्लिप्तता प्रदर्शित करें या क्या वातावरण स्वस्थ्य न होगा?
- मुझे बनाते व अंगीकार करते समय जो सद्भाव तुम सबमें था, वह आज कहाँ है? स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र या निशस्त्र दोनों तरह के प्रयास करनेवालों की लक्ष्य और विदेशी संप्रभुओं की उन पर अत्याचार समान नहीं था क्या?
- स्वतंत्र होने पर सकल भारत को एक देखने की दृष्टि खो क्यों रही है? अपने कुछ संबंधियों के बचाने के लिए आतंकवादियों को छोड़ने का माँग करनेवाले नागरिक, उन्हें समर्थन देनेवाला समाचार माध्यम और उन्हें छोड़नेवाली सरकार सबने मेरी संप्रभुता के साथ खिलवाड़ ही किया।
- आरक्षण का आड़ में अपनी राजनैतिक रोटी सेंकनेवाले देश की संपत्ति को क्षति पहुँचानेवाले अपराधी ही तो हैं।
- चंद कोसों पर बदलनेवाली बोली के स्थानीय रूप को राजभाषा का स्पर्धी बनाने की चाहत क्यों? इस संकीर्ण सोच को बल देती दिशा-हीन राजनीति कभी भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन करती है, कभी प्रांतों को नाम पर प्रांत भाषा (छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी, राजस्थान में राजस्थानी आदि) की घोषणा कर देती है, भले ही उस नाम की भाषा पहले कभी नहीं रही हो।
- साहित्यकारों के चित्रों स् सुसज्जित विश्व हिंदी सम्मेलन के मंच से यह घोषित किया जाना कि 'यह भाषा सम्मेलन है, साहित्य सम्मेलन नहीं' राजनीति के 'बाँटो और राज्य करो' सिद्धांत का जयघोष था जिसे समझकर भी नहीं समझा गया।
- संशोधनों को नाम पर बार-बार अंग-भंग करने के स्थान पर एक ही बार में समाप्त क्यों न कर दो? मेरी शपथ लेकर पग-पग पर मेरी ही अवहेलना करना कितना उचित है?
- मुझे पल-पल पीड़ा पहुँचाकर मेरी अंतरात्मा को दुखी करने के स्थान पर तुम मुझे हटा ही क्यों नहीं देते?
-आम चुनाव लोकतंत्र का महोत्सव होना चाहिए किंतु तुमने इसे दलतंत्र का कुरुक्षेत्र बना दिया है। मैंने आम आदमी को मनोनुकूल प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया था पर पूँजीपतियों से चंदा बटोरकर उनके प्रति वफादार दलों ने नाग, साँप, बिच्छू, मगरमच्छ आदि को प्रत्याशी बनाकर जनाधिकार का परोक्षत: हरण कर लिया।
- विडंबना ही है कि जनतात्र को जनप्रतिनिधि जनमत और जनहित नहीं दलित और दल-हित साधते रहते हैं।
- 'समर शेष नहीं हुआ है, उठो, जागो, आगे बढ़ो। लोक का, लोक के लिए, लोक के द्वारा शासन-प्रशासन तंत्र बनाओ अन्यथा समय और मैं दोनों तुम्हें क्षमा नहीं करेंगे।
- ईश्वर तुम्हें सुमति दें।
शुभेच्छु
तुम्हारा संविधान
२३-५-२०१९

***
भारत विभाजन का सत्य:
= दो देशों का सिद्धांत प्रतिपादक सावरकर, समर्थक हिन्दू महासभा,
मुस्लीम लीग, चौधरी.
= पाकिस्तान बनाने पर क्रमश: सहमत हुए: सरदार पटेल, नेहरू, राजगोपालाचारी. इनके बाद मजबूरी में जिन्ना
= अंत तक असहमत गांधी जी, लोहिया जी, खान अब्दुल गफ्फार खान
= लाहौर से ढाका तक एक राज्य बनाने तक अन्न-लवण न खाने का व्रत लेने और निभानेवाले स्वामी रामचंद्र शर्मा 'वीर' (आचार्य धर्मेन्द्र के स्वर्गवासी पिता).
इतिहास पढ़ें, सचाई जानें.पटेल को हृदयाघात हो चुका था, जिन्ना की लाइलाज टी. बी. अंतिम चरण में थी. दोनों के जीवन के कुछ ही दिन शेष थे, दोनों यह सत्य जानते थे.
पटेल ने अखंड भारत की सम्भावना समाप्त करते हुए सबसे पहले पकिस्तान को मंजूर किया, जिन्ना ने कोंग्रेसी नेताओं द्वारा छले जाने से खिन्न होकर पाकिस्तान माँगा किन्तु ऐसा पकिस्तान उन्हें स्वीकार नहीं था. वे आखिर तक इसके विरोध में थे. कोंग्रेस द्वारा माने जाने के बाद उन्हें बाध्य होकर मानना पड़ा.

***

दोहा सलिला:
मन में अब भी रह रहे, पल-पल मैया-तात।
जाने क्यों जग कह रहा, नहीं रहे बेबात।।
*
रचूँ कौन विधि छंद मैं,मन रहता बेचैन।
प्रीतम की छवि देखकर, निशि दिन बरसें नैन।।
*
कल की फिर-फिर कल्पना, कर न कलपना व्यर्थ।
मन में छवि साकार कर, अर्पित कर कुछ अर्ध्य।।
*
जब तक जीवन-श्वास है, तब तक कर्म सुवास।
आस धर्म का मर्म है, करें; न तजें प्रयास।।
*
मोह दुखों का हेतु है, काम करें निष्काम।
रहें नहीं बेकाम हम, चाहें रहें अ-काम।।
*
खुद न करें निज कद्र गर, कद्र करेगा कौन?
खुद को कभी सराहिए, व्यर्थ न रहिए मौन.
*
प्रभु ने जैसा भी गढ़ा, वही श्रेष्ठ लें मान।
जो न सराहे; वही है, खुद अपूर्ण-नादान।।
*
लता कल्पना की बढ़े, खिलें सुमन अनमोल।
तूफां आ झकझोर दे, समझ न पाए मोल।।
*
क्रोध न छूटे अंत तक, रखें काम से काम।
गीता में कहते किशन, मत होना बेकाम।।
*
जिस पर बीते जानता, वही; बात है सत्य।
देख समझ लेता मनुज, यह भी नहीं असत्य।।
*
भिन्न न सत्य-असत्य हैं, कॉइन के दो फेस।
घोडा और सवार हो, अलग न जीतें रेस।।
७.५.२०१८


***
मुक्तिका/हिंदी ग़ज़ल
.
किस सा किस्सा?, कहे कहानी
गल्प- गप्प हँस कर मनमानी
.
कथ्य कथा है जी भर बाँचो
सुन, कह, समझे बुद्धि सयानी
.
बोध करा दे सत्य-असत का
बोध-कथा जो कहती नानी
.
देते पर उपदेश, न करते
आप आचरण पंडित-ज्ञानी
.
लाल बुझक्कड़ बूझ, न बूझें
कभी पहेली, पर ज़िद ठानी
***
[ सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय, अरिल्ल छन्द]
२३-५-२०१६
तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नालॉजी
जबलपुर, ११.३० ए एम
***
दोहा सलिला
*
कर अव्यक्त को व्यक्त हम, रचते नव 'साहित्य'
भगवद-मूल्यों का भजन, बने भाव-आदित्य
.
मन से मन सेतु बन, 'भाषा' गहती भाव
कहे कहानी ज़िंदगी, रचकर नये रचाव
.
भाव-सुमन शत गूँथते, पात्र शब्द कर डोर
पाठक पढ़-सुन रो-हँसे, मन में भाव अँजोर
.
किस सा कौन कहाँ-कहाँ, 'किस्सा'-किस्सागोई
कहती-सुनती पीढ़ियाँ, फसल मूल्य की बोई
.
कहने-सुनने योग्य ही, कहे 'कहानी' बात
गुनने लायक कुछ कहीं, कह होती विख्यात
.
कथ्य प्रधान 'कथा' कहें, ज्ञानी-पंडित नित्य
किन्तु आचरण में नहीं, दीखते हैं सदकृत्य
.
व्यथा-कथाओं ने किया, निश-दिन ही आगाह
सावधान रहना 'सलिल', मत हो लापरवाह
.
'गल्प' गप्प मन को रुचे, प्रचुर कल्पना रम्य
मन-रंजन कर सफल हो, मन से मन तक गम्य
.
जब हो देना-पावना, नातों की सौगात
ताने-बाने तब बनें, मानव के ज़ज़्बात
.
कहानी गोष्ठी, २२-५-२०१६
कान्हा रेस्टॉरेंट, जबलपुर, १९.३०

***
मुहावरेदार दोहे
*
पाँव जमकर बढ़ 'सलिल', तभी रहेगी खैर
पाँव फिसलते ही हँसे, वे जो पाले बैर
*
बहुत बड़ा सौभाग्य है, होना भारी पाँव
बहुत बड़ा दुर्भाग्य है होना भारी पाँव
*
पाँव पूजना भूलकर, फिकरे कसते लोग
पाँव तोड़ने से मिटे, मन की कालिख रोग
*
पाँव गए जब शहर में, सर पर रही न छाँव
सूनी अमराई हुई, अश्रु बहाता गाँव
*
जो पैरों पर खड़ा है, मन रहा है खैर
धरा न पैरों तले तो, अपने करते बैर
*
सम्हल न पैरों-तले से, खिसके 'सलिल' जमीन
तीसमार खाँ हबी हुए, जमीं गँवाकर दीन
*
टाँग अड़ाते ये रहे, दिया सियासत नाम
टाँग मारते वे रहे, दोनों है बदनाम
*
टाँग फँसा हर काम में, पछताते हैं लोग
एक पूर्ण करते अगर, व्यर्थ न होता सोग
*
बिन कारण लातें न सह, सर चढ़ती है धूल
लात मार पाषाण पर, आप कर रहे भूल
*
चरण कमल कब रखे सके, हैं धरती पर पैर?
पैर पड़े जिसके वही, लतियाते कह गैर
*
धूल बिमाई पैर का, नाता पक्का जान
चरण कमल की कब हुई, इनसे कह पहचान?
१९-५-२०१६
***
मुक्तिका
*
धीरे-धीरे समय सूत को, कात रहा है बुनकर दिनकर
साँझ सुंदरी राह हेरती कब लाएगा धोती बुनकर
.
मैया रजनी की कैयां में, चंदा खेले हुमस-किलककर
तारे साथी धमाचौकड़ी मच रहे हैं हुलस-पुलककर
.
बहिन चाँदनी सुने कहानी, धरती दादी कहे लीन हो
पता नहीं कब भोर हो गयी?, टेरे मौसी उषा लपककर
.
बहकी-महकी मंद पवन सँग, क्लो मोगरे की श्वेतभित
गौरैया की चहचह सुनकर, गुटरूँगूँ कर रहा कबूतर
.
सदा सुहागन रहो असीसे, बरगद बब्बा करतल ध्वनि कर
छोड़न कल पर काम आज का, वरो सफलता जग उठ बढ़ कर
हरदोई
८-५-२०१६
***
मुक्तक:
*
पैर जमीं पर जमे रहें तो नभ बांहों में ले सकते हो
आशा की पतवार थामकर भव में नैया खे सकते हो.
शब्द-शब्द को कथ्य, बिंब, रस, भाव, छंद से अनुप्राणित कर
स्नेह-सलिल में अवगाहन कर नित काव्यामृत दे सकते हो
२३-५-२०१५
***
एक दोहा
करें आरती सत्य की, पूजें श्रम को नित्य
हों सहाय सब देवता, तजिए स्वार्थ अनित्य
१७-५-२०१५
***
मुक्तक
तुझको अपना पता लगाना है?
खुद से खुद को अगर मिलाना है
मूँद कर आँख बैठ जाओ भी
दूर जाना करीब आना है
१६-५-२०१५
***
बुन्देली मुक्तिका :
काय रिसा रए
*
काय रिसा रए कछु तो बोलो
दिल की बंद किवरिया खोलो
कबहुँ न लौटे गोली-बोली
कओ बाद में पैले तोलो
ढाई आखर की चादर खों
अँखियन के पानी सें धो लो
मिहनत धागा, कोसिस मोती
हार सफलता का मिल पो लो
तनकउ बोझा रए न दिल पे
मुस्काबे के पैले रो लो
२३-५-२०१३
===
आयुर्वेद दोहा
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हे-ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढे सुयोग..
*
नींद न आये-अनिद्रा, का है सुलभ उपाय.
शुद्ध शहद सेवन करें, गहरी निद्रा आय..
*
२२-५-२०१०
***

राष्ट्रीय गीत, बंकिमचंद्र, वंदे मातरम् हिंदी काव्यानुवाद

राष्ट्रगीत 
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय
*
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
***
राष्ट्रीय गीत का हिंदी अनुवाद

माँ! वंदन है, माँ! वंदन है
जलमय, फलमय, शीत पवनमय
कटी फसलमय माँ! वंदन है

श्वेत चाँदनी रात प्रफुल्लित
पुष्पित तरु से वसुधा सज्जित
शिष्ट हँसीमय, मधुर वाकमय
सुख दो, वर दो, माँ! वंदन है।
माँ! वंदन है, माँ! वंदन है
२३-५-२०२३

हिंदी काव्यानुवाद - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

९४२५१८३२४४
***

सोमवार, 22 मई 2023

आयुर्वेद, नींबू

आयुर्वेद - नींबू 
दोहे का रंग नीबू के संग :
*



वात-पित्त-कफ दोष का, नीबू करता अंत
शक्ति बढ़ाता बदन की, सेवन करिए  कंत
*
ए बी सी त्रय विटामिन, लौह वसा कार्बोज
फॉस्फोरस पोटेशियम, सेवन से दें ओज
*
मैग्निशियम प्रोटीन सँग, सोडियम तांबा प्राप्य
साथ मिले क्लोरीन भी, दे यौवन दुष्प्राप्य
*
नेत्र ज्योति की वृद्धि कर, करे अस्थि मजबूत
कब्ज मिटा, खाया-पचा, दे सुख-ख़ुशी अकूत
*
जल-नीबू-रस नमक लें, सुबह-शाम यदि छान
राहत दे गर्मियों में, फूँक जान में जान
*
नींबू-बीज न खाइये, करे बहुत नुकसान
भोजन में मत निचोड़ें, बाद करें रस-पान
*
कब्ज अपच उल्टियों से, लेता शीघ्र उबार
नीबू-सेंधा नमक सँग, अदरक है उपचार
*
नींबू अजवाइन शहद, चूना-जल लें साथ
वमन-दस्त में लाभ हो, हँसें उठकर माथ
*
जी मिचलाये जब कभी, तनिक न हों बेहाल
नीबू रस-पानी-शहद, आप पिएँ तत्काल
*



नींबू-रस सेंधा नमक, गंधक सोंठ समान
मिली गोलियाँ चूसिये, सुबह-शाम मतिमान
*
नींबू रस-पानी गरम, अम्ल पित्त कर दूर
हरता उदर विकार हर, नियमित पिएँ हुज़ूर
*
आधा सीसी दर्द से, परेशान-बेचैन
नींबू रस जा नाक में, देता पल में चैन
*
चार माह के गर्भ पर, करें शिकंजी पान
दिल-धड़कन नियमित रहे, प्रसव बने आसान
*
कृष्णा तुलसी पात ले, पाँच- चबाएँ खूब
नींबू-रस पी भगा दें, फ्लू को सुख में डूब
*
पिएँ शिकंजी, घाव पर, मलिए नींबू रीत
लाभ एक्जिमा में मिले, चर्म नर्म हो मीत
*
कान दर्द हो कान में, नींबू-अदरक अर्क
डाल साफ़ करिए मिले, शीघ्र आपको फर्क
*
नींबू-छिलका सुखाकर, पीस फर्श पर डाल
दूर भगा दें तिलचटे, गंध करे खुशहाल
*
नीबू-छिलके जलाकर, गंधक दें यदि डाल
खटमल सेना नष्ट हो, खुद ही खुद तत्काल
*
पीत संखिया लौंग संग, बड़ी इलायची कूट
नींबू-रस मलहम लगा, करें कुष्ठ को हूट
*



नींबू-रस हल्दी मिला, उबटन मल कर स्नान
नर्म मखमली त्वचा पा, करे रूपसी मान
*
मिला नारियल-तेल में, नींबू-रस नित आध
मलें धूप में बदन पर, मिटे खाज की व्याध
*
खूनी दस्त अगर लगे, घोलें दूध-अफीम
नींबू-रस सँग मिला पी, सोएँ  बिना हकीम
*
बवासीर खूनी दुखद, करें दुग्ध का पान
नींबू-रस सँग-सँग पिएँ, बूँद-बूँद मतिमान
*
नींबू-रस जल मिला-पी, करें नित्य व्यायाम
क्रमश: गठिया दूर हो, पाएँगे आराम
*
गला बैठ जाए- करें, पानी हल्का गर्म
नींबू-अर्क नमक मिला, कुल्ला करना धर्म
*
लहसुन-नींबू रस मिला, सिर पर मल कर स्नान
मुक्त जुओं से हो सकें, महिलाएँ अम्लान
*
नींबू-एरंड बीज सम, पीस चाटिए रात
अधिक गर्भ संभावना, होती मानें बात
*
प्याज काट नीबू-नमक, डाल खाइए रोज
गर्मी में हो ताजगी, बढ़े देह का ओज
*
काली मिर्च-नमक मिली, पिएँ शिकंजी आप
मिट जाएँगी घमौरियाँ, लगे न गर्मी शाप
*
चेहरे पर नींबू मलें, फिर धो रखिये शांति
दाग मिटें आभा बढ़े, अमल-विमल हो कांति
३-७-२-१५ 
***

आयुर्वेद आँवला

अमृत फल है आँवला
*
अमृत फल है आँवला, कर त्रिदोष का नाश।
आयुवृद्धि कर; स्वस्थ रख, कहता छू आकाश।।
*
नहा आँवला नीर से, रखें चर्म को नर्म।
पौधा रोपें; तरु बना, समझें पूजा-मर्म।।
*
अमित विटामिन सी लिए, करता तेज दिमाग।
नेत्र-ज्योति में वृद्धि हो, उपजा नव अनुराग।।
*
रक्त-शुद्धि-संचार कर, पाचन करता ठीक।
ओज-कांति को बढ़ाकर, नई बनाता लीक।।
*
जठर-अग्नि; मंदाग्नि में, फँकें आँवला चूर्ण।
शहद और घी लें मिला, भोजन पचता पूर्ण।।
*
भुनी पत्तियाँ फाँक लें, यदि मेथी के साथ।
दस्त बंद हो जाएंगे, नहीं दुखेगा माथ।।
*
फुला आँवला-चूर्ण को, आँख धोइए रोज।
त्रिफला मधु-घी खाइए, तिनका भी लें खोज।।
*
अाँतों में छाले अगर, मत हों अाप निराश।
शहद आँवला रस पिएँ, मिटे रोग का पाश।।
*
चूर्ण आँवला फाँकिए, नित भोजन के बाद।
आमाशय बेरोग हो, मिले भोज्य में स्वाद।।
*
खैरसार मुलहठी सँग, लघु इलायची कूट।
मिली अाँवला गोलियाँ, कंठ-रोग लें लूट।।
*
बढ़े पित्त-कफ; वमन हो, मत घबराएँ आप।
शहद-आँवला रस पाएँ, शक्ति सकेगी व्याप।।
५-६-२०१८

रविवार, 21 मई 2023

गीत

गीत 

सफर अधूरा लगता है 

*

मीत-प्रीत बिन गीत का सफर अधूरा लगता है 

*

चरण करें अभिषेक पंथ का 

नयन करें नित संग ग्रंथ का 

चल गिर उठ बढ़ बिना रुके तू 

बिना रुके तू, बिना झुके तू 

मोह-छोह बिन रीत का सफर अधूरा लगता है 

मीत-प्रीत बिन गीत का सफर अधूरा लगता है 

*

मन में मनबसिया बैठा है 

चाहे-अनचाहे पैठा है 

राधा कैसे कहो निकाले  

जब राधा को वही सम्हाले 

हार मिले बिन जीत का  सफर अधूरा लगता है 

मीत-प्रीत बिन गीत का सफर अधूरा लगता है 

*

मनमानी कर मन की बातें 

मुई सियासत करती घातें 

बिना सिया-सत राम नाम ले 

भक्ति भूल आसक्ति थाम ले 

बिना राग संगीत का सफर अधूरा लगता है 

मीत-प्रीत बिन गीत का सफर अधूरा लगता है 

**


आत्म विश्वास

 प्रश्नोत्तर 

प्रश्न - 

आत्म विश्वास की कमी को कैसे दूर करें?

उत्तर -

दर्पण सम्मुख बैठकर, मिला नैन से नैन।

कहें आप से आप ही, मन मत हो बेचैन।।

किस्मत मेरे हाथ में, बनकर रहे लकीर।

अंकित भाग्य कपाल पर, हूँ सच बहुत अमीर।।

धरती माँ की गोद है, गगन पिता की छाँव।

स्नेहपूर्ण संबंध ही, है मेरा घर-गाँव।।

अपने मन का ब्रह्म मैं, विष्णु देह का सत्य।

तजता शिव बन असत को, मेरी आत्म अनित्य।।

जो वह वह मैं है नहीं, मुझमें प्रभु में भेद।

मुझसे मिलने अवतरे, वह भी करे न खेद।।

अधिक राम से भी रहे सिर्फ राम का दास।

मैं भी हूँ प्रभु से अधिक, मेरा बल विश्वास।।

आयुर्वेद, चित्रक, ममता सैनी

 चित्रक हरता कष्ट
*
चित्रक की दो जातियाँ, श्वेत-रक्त हैं फूल।
भारत लंका बांग्ला, खिले न इसमें शूल।१।
*
कालमूल चीता दहन, अग्नि ब्याल है आम।
बेखबरंदा फारसी, अरब शैतरज नाम।२।
*
चित्रमूल चित्रो कहें, महाराष्ट्र गुजरात।
चित्रा है पंजाब में, लीडवर्ट ही भ्रात।३।
*
प्लंबैगो जेलेनिका, है वैज्ञानिक नाम।
कुल प्लंबैजिलेनिका, नेफ्थोक्विनोन अनाम।४।
*
कोमल चिकनी हरी हों, शाख आयु भरपूर।
जड़ पत्ते अरु अर्क भी, करें रोग झट दूर।५।
*
चीनी लिपिड फिनोल है, संग प्रोटीन-स्टार्च।
संधिशोथ कैंसर हरे, करे पंगु भी मार्च।६।
*
एंटीबायोटिक जड़ें, एंटी ऑक्सीडेन्ट।
करतीं दूर मलेरिया, सचमुच एक्सीलेंट।७।
*
अल्कलाइड प्लंबेंगिन, कैंसर हरता तात।
नेफ्रोटॉक्सिक असर को, सिस्प्लेटिन दे मात।८।
*
प्लंबेगिन अग्न्याशयी, कैंसर देता रोक।
कोलस्ट्राल एलडीएल, कम करता हर शोक।९।
*
पथरी गठिया पीलिया, प्रजनन कैंसर रोक।
किडनी-ह्रदय विकार हर, घाव भरे मत टोंक।१०।
*
छह फुटिया झाड़ीनुमा, पौधा सदाबहार। 
तना रहे छोटा हरा, पत्ते लट्वाकार।११।
*
तीन इंच लंबा रहे, एक इंच फैलाव। 
अग्रभाग पैना रहे, जड़ के साथ जुड़ाव।१२ ।
*
लंबाई नौ इंच के, नलिकावाले फूल। 
गंधहीन गुच्छे खिलें, पुष्पदण्ड हो मूल।१३।
*
लंब-गोल फल में रहे, बीज हमेशा एक। 
श्याम-श्वेत बाह्यांsतर, खाएँ सहित विवेक।१४।
*   
जड़ भंगुर हों छाल पर, छोटे कई उभार। 
स्वाद तीक्ष्ण-कटु चिपचिपे, रोमयुक्त फलदार।१५।
*
है यह ऊष्ण त्रिदोष हर, करे वात को शांत। 
कृमिनाशी मल निकाले, पाचन दीपन कांत।१६।
*
कफ-ज्वर बंधक शोथहर, है पौष्टिक-कटु रुक्ष।  
श्लेष्मा वमन प्रमेह विष, कुष्ठ मिटाए दक्ष।१७। 
*
दुग्ध-रक्त शोधन करे, योनीदोष भी दूर। 
गुल्म वायु दीपन अरुचि, मिटे शांति भरपूर।१८।
*
हो जाए नकसीर यदि, शहद-चूर्ण दो ग्राम। 
चाट लीजिए तुरत हो, सच मानें आराम।१९।
*
चित्रक-हल्दी-आँवला, अजमोदा-यवक्षार। 
तीन ग्राम चूरन बना, दिन में लें दो बार।२० अ। 

खाएँ मधु-घृत में मिला, दूर रहे स्वर भेद। 
रामबाण है यह दवा, चूक न करिए खेद।२० आ।
*
चित्रक-सेंधा नमक लें, हरड़-पिप्पली संग। 
सुबह-शाम दो ग्राम पी, पानी गर्म मलंग।२१ अ। 

पचता भोज्य गरिष्ठ भी, मत सँकुचें सरकार।  
अग्नि दीप्त हो पच सके, जो खाएँ आहार।२१ आ।  
*
ताजी जड़ का चूर्ण लें, नागरमोथे साथ। 
वायविडंग न भूलिए, सम मात्रा रख हाथ।२२ अ। 

पाँच ग्राम खा जाइए, भोजन करने पूर्व। 
पाचन शक्ति दुरुस्त हो, लगती भूख अपूर्व।२२ आ।
कल्क सिद्ध घी लीजिए, चित्रक क्वाथ समेत। 
भोजन पहले कीजिए, संग्रहणी हो खेत।२३।
*
चित्रक चूर्ण मिटा सके, तिल्ली-सूजन सत्य।  
बीस ग्राम घृतकुमारी, गूदे सँग लें नित्य।२४।
*
चित्रक जड़ का चूर्ण लें, तीन बार हर रोज। 
प्लीहा रोग मिटे- बढ़े, बल चेहरे का ओज।२५।
*
तक्र सहित दो ग्राम लें, चित्रक त्वक का चूर्ण। 
तब ही भोजन कीजिए, अर्श मिटे संपूर्ण।२६।
*
चित्रक-जड़ का चूर्ण लें, मृदा-पात्र में लेप। 
दही जमाएँ छाछ पी, अर्श मिटा मत झेंप।२७।
*
चित्रक-जड़ चूरन शहद, चाटें यदि दस ग्राम।     
सहज सुखद हो प्रसव अरु, माँ पाए आराम।२८। 
*
चित्रक-जड़ कुटकी हरड़, इंद्रजौ और अतीस। 
काली पहाड़ जड़ मिलाएँ, सम उन्नीस न बीस।२९ अ।

तीन ग्राम लें चूर्ण नित, सुबह-शाम बिन भूल।
वात रोग से मुक्त हों, मिटे दर्द का शूल।२९ आ।
*
चित्रक जड़ पीपल हरड़, अरु चीनी रेबंद। 
काला नमक व आँवला, लें पीड़ा हो मंद।३० अ।

गर्म नीर के साथ लें, पाँच ग्राम हर रात।
आंत-वायु के संग ही, संधिवात की मात।३० आ। 
*
चित्रक जड़ ब्राह्मी सहित, वच समान लें पीस। 
तीन बार दो ग्राम लें, हिस्टीरिआ मरीज।३१। 
*
चित्रक जड़ पीपल मरीच, सौंठ चूर्ण सम आप। 
चार ग्राम लें तो मिटे, जल्दी ही ज्वर-ताप।३२।
*
ज्वर में अन्न न खा सके, रक्त संचरण मंद। 
टुकड़े चित्रक मूल के, चबा मिले आनंद।३३।
*
छत्रक जड़ रस निर्गुंडी, तीन बार दो ग्राम। 
लें प्रसूतिका ज्वर घटे, झट पाएँ आराम।३४ अ।

गर्भाशय देता बहा, दूषित आर्तव दूर। 
मिटता मक्क्ल शूल भी, पीड़ा होती दूर।३४ आ। 
*
चित्रक छाला दूध-जल, पीस लेपिए आप।  
चरम रोग अरु कुष्ठ भी, मिटे घटे संताप।३५ अ।

पुल्टिस बाँधें उठेगा, छाला जब हो ठीक।      
दाग दूर हो जाएँगे, कहती आयुष लीक।३५ आ।
*
दूध लाल चित्रक लगा, खुजली पर लें लीप। 
मिले शीघ्र आराम अरु, रोग न रहे समीप।३६।
*
सिफलिस-कोढ़ मिटा सके, सूखी जड़ की छाल। 
सुबह-शाम त्रै ग्राम लें, चित्रक होगा लाल।३७।
*
पीप बहे लें घाव पर, लेप चित्रकी छाल।
घाव ठीक हो शीघ्र ही, आयुर्वेद कमाल।३८।
*
मूषक ज्वर जाए उतर, तलुए मलिए तेल। 
चित्रक छाला चूर्ण सँग, पका न पीड़ा झेल।३९।
*
मात्रा अधिक न लें 'सलिल', विष सम करे अनिष्ट। 
मात्रा-विधि हो सही तो, चित्रक हरता कष्ट।४०।
***

चित्रपटीय गीत



चित्रपटीय गीतों में साहित्यिक हिंदी

*

सामान्यत: नई पीढ़ी साहित्यिक पुस्तकों की भाषा समझ में न आने को कारण बताकर हिंगलिश का प्रयोग करती है किन्तु चित्रपटीय गीतों में प्रयुक्त हुई साहित्यिक हिंदी इन्हें कठिन नहीं लगती। इसका कारण गीतकार की अभिव्यक्ति सामर्थ्य है। ऐसे कुछ गीतों के मुखड़े निम्न हैं। आप अपना मनपसंद गीत (गीतकार , संगीतकार, कलाकार तथा चाचित्र के नाम आदि सहित) पूरा प्रस्तुत कीजिए तथा पसंद आने का कारण भी बताइए।

१.आधा है चंद्रमा रात आधी..

२. तुम गगन के चंद्रमा हो..

३. कल्पना के घन बरसते..

४. ये कौन चित्रकार है...

५. ज्योति कलश छलके..

६. कोई जब तुम्हारा हृदय..

७. जा तोंसे नहीं बोलूं कन्हैया..

८. कान्हा बजाये बंसरी…

९. तोरा मन दरपन कहलाये..

१०. केतकी गुलाब जूही चंपक बन फूले..

११. मन तरपत हरि दर्शन को आज..

१२. तोरा मनवा क्यूँ घबराये रे…

१३. आज सजन मोहे अंग लगालो…

१४. तू प्यार का सागर है…

१५. मधुबन में राधिका नाचे रे…

१६. नाचे मन मोरा मगन तिक धा धिगि…

१७. सुर ना सजे क्या गाऊँ मैं…

१८. कुहू कुहू बोले कोयलिया…

१९. मुझे ना बुला…

२०. मैं पिया तेरी तू माने या न माने..

२१. तेरे द्वार खड़ा भगवान…

२२. पूछो न कैसे मैंने रैन बितायी..

२३. कौन आया मेरे मन के द्वारे…

२४. लपक झपक तू आ रे बदरवा..

२५. ज्योत से ज्योत जगाते चलो…

२६. कैसे मनाउं पियवा गुन मेरे एकहु नाहीं…

२७. भय भंजना वंदना सुन हमारी…

२८. ओ निर्दयी प्रीतम…

२९. हे माता सरस्वती शारदा..

३०. आन मिलो श्याम सांवरे..

३१. ना मैं धन चाहूँ…

३२. प्रभु तेरो नाम जो ध्याये…

३३. जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए…

३४. दरसन दो घनश्याम नाथ मोरी…

३५. घूंघट के पट खोल रे तोहे…

३६. ए री मैं तो दर्द दीवानी…

३७. संसार से भागे फिरते हो..

३८. निर्बल से लड़ाई बलवान की…

३९. जागो मोहन प्यारे..

४०. सत्यम् शिवम् सुंदरम्….

४१. एक राधा एक मीरा दोनों ने श्याम को…

४२. झिलमिल सितारों का आंगन होगा..

४३. मनमोहना बड़े झूठे…

४४. मन रे तू काहे न धीर धरे..

४५. कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाये..

४६. रजनीगंधा फूल तुम्हारे…

४७. नदिया किनारे हेराई आई कंगना..

४८. तेरी बिंदिया रे..

४९. कैसे आऊं जमुना के तीर…

५०. वृंदावन का कृष्ण कन्हैया..

५१. जरा सामने तो आओ छलिए..

५२. तेरे बिन सूने नैन हमारे…

५३. सुन मेरे बंधु रे…

५४. मेरे साजन हैं उस पार..

५५. पिया तोसे नेहा लागी रे…

५६. लाली लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया…

५७. चंदन सा बदन चंचल चितवन…

५८. तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो..

५९. मन क्यूँ बहका रे बहका आधी रात को…

६०. काहे तरसाये जियरा…..

६१. जिया लागे ना मोरा तुम बिन…

६२. बोल रे पपीहर..

६३. जब दीप जले आना..

६४. का करूँ सजनी आये न बालम…

६५. कई बार यूं भी देखा है ये जो मन की सीमा…

६६. कहाँ से आये बदरा…

६७. मन मोर हुआ मतवारा…

६८. मन मोरा बावरा…

६९. झनक झनक तोरी बाजे पायलिया…

७०. सांवरे सांवरे काहे करो मोसे…

७१. हो उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा..

दोहा, कान, नाक, वास्तु, नवगीत, मुक्तिका,इमारत, औरत, पुरुष विमर्श

मुक्तिका
*
मुश्किल कोई डगर नहीं है
बेरस कोई बहर नहीं है
किस मन में मिलने-जुलने की
कहिए उठती लहर नहीं है
सलिल-नलिन हैं रात-चाँद सम
इस बिन उसकी गुजर नहीं है
हो ऊषा तुम गृहाकाश की
तुम बिन होती सहर नहीं है
हूँ सूरज श्रम करता दिन भर
बिन मजदूरी बसर नहीं है
***
***
औरत
*
औरत होती नहीं रिटायर
करती रोज पुरुष को टायर
माँ बन आँचल में दुबकाए
बहना बन पहरा दिलवाए
सखी अँगुलि पर नाच नचाए
भौजी ताने नित्य सुनाए
बीबी सहयोगिनी कह आए
पर गृह की स्वामिन बन जाए
बेटी चिंता-फिक्र बढ़ाए
पल-पुस कर झट फुर हो जाए
बहू छीन ले आकर कमरा
वृद्धाश्रम की राह दिखाए
कहो न अबला, नारी सबला
तबला नर को बना बजाए
नर बेचारा समझ रहा यह
तम में आशा दीप जलाए
शारद-रमा-उमा नित पूजे
घर न घाट का पर रह जाए
२१-५-२०२०
***
मुक्तिका: जिंदगी की इमारत
जिंदगी की इमारत में, नींव हो विश्वास की।
प्रयासों की दिवालें हों, छत्र हों नव आस की।
*
बीम संयम की सुदृढ़, मजबूत कॉलम नियम के।
करें प्रबलीकरण रिश्ते, खिड़कियाँ हों हास की।।
*
कर तराई प्रेम से नित, छपाई कर नीति से।
ध्यान धरना दरारें बिलकुल न हों संत्रास की।।
*
रेत कसरत, गिट्टियाँ शिक्षा, कला सीमेंट हो।
फर्श श्रम का, मोगरा सी गंध हो वातास की।।
*
उजाला शुभकामना का, द्वार हो सद्भाव का।
हौसला विद्युतिकरण हो, रौशनी सुमिठास की।।
*
फेंसिंग व्यायाम, लिंटल मित्रता के हों 'सलिल'।
बालकनियाँ पड़ोसी अपनत्व के अहसास की।।
*
वरांडे हो मित्र, स्नानागार सलिला सरोवर।
पाकशाला तृप्ति, पूजास्थली हो सन्यास की।।
***
***
मुक्तिका
.
शब्द पानी हो गए
हो कहानी खो गए
.
आपसे जिस पल मिले
रातरानी हो गए
.
अश्रु आ रूमाल में
प्रिय निशानी हो गए
.
लाल चूनर ओढ़कर
क्या भवानी हो गए?
.
नाम के नाते सभी
अब जबानी हो गए
.
गाँव खुद बेमौत मर
राजधानी हो गए
.
हुए जुमले, वायदे
पानी पानी हो गए
२१-५-२०१७
...


एक गीत
*
मात्र मेला मत कहो
जनगण हुआ साकार है।
*
'लोक' का है 'तंत्र' अद्भुत
पर्व, तिथि कब कौन सी है?
कब-कहाँ, किस तरह जाना-नहाना है?
बताता कोई नहीं पर
सूचना सब तक पहुँचती।
बुलाता कोई नहीं पर
कामना मन में पुलकती
चलें, डुबकी लगा लें
यह मुक्ति का त्यौहार है।
*
'प्रजा' का है 'पर्व' पावन
सियासत को लगे भावन
कहीं पण्डे, कहीं झंडे- दुकाने हैं
टिकाता कोई नहीं पर
आस्था कब है अटकती?
बुझाता कोई नहीं पर
भावना मन में सुलगती
करें अर्पित, पुण्य पा लें
भक्ति का व्यापार है।
*
'देश' का है 'चित्र' अनुपम
दृष्ट केवल एकता है।
भिन्नताएँ भुला, पग मिल साथ बढ़ते
भुनाता कोई नहीं पर
स्नेह के सिक्के खनकते।
स्नान क्षिप्रा-नर्मदा में
करे, मानें पाप धुलते
पान अमृत का करे
मन आस्था-आगार है।
*
***

मुक्तिका
*
मखमली-मखमली
संदली-संदली
.
भोर- ऊषा-किरण
मनचली-मनचली
.
दोपहर है जवाँ
खिल गयी नव कली
.
साँझ सुन्दर सजी
साँवली-साँवली
.
चाँद-तारें चले
चन्द्रिका की गली
.
रात रानी न हो
बावली-बावली
.
राह रोके खड़ा
दुष्ट बादल छली
***
(दस मात्रिक दैशिक छन्द
रुक्न- फाइलुन फाइलुन)
२१-५-२०१६


***
अमीर खुसरो के रोचक घरेलू नुस्खे
अमीर खुसरो ने वैद्यराज खुसरो के रुप में काव्यात्मक घरेलू नुस्खे भी लिखे हैं-
1 हरड़-बहेड़ा आँवला, घी सक्कर में खाए!
हाथी दाबे काँख में, साठ कोस ले जाए!!
2 मारन चाहो काऊ को, बिना छुरी बिन घाव!
तो वासे कह दीजियो, दूध से पूरी खाए!!
3 प्रतिदिन तुलसी बीज को, पान संग जो खाए!
रक्त-धातु दोनों बढ़े, नामर्दी मिट जाय!!
4 माटी के नव पात्र में, त्रिफला रैन में डारी!
सुबह-सवेरे-धोए के, आँख रोग को हारी!!
5 चना-चून के-नोन दिन, चौंसठ दिन जो खाए!
दाद-खाज-अरू सेहुवा-जरी मूल सो जाए!!
6 सौ-दवा की एक दवा, रोग कोई न आवे!
खुसरो-वाको-सरीर सुहावे, नित ताजी हवा जो खावे!!


***
दोहा सलिला- कान
वाद-विवाद किये बिना, करते चुप सहयोग
कान धीर-गंभीर पर, नहीं चाहते शोर
*
कान कतरना चाहती, खुद को स्याना मान
अपने ही माँ-बाप के, 'सलिल' आज सन्तान
*
कान न भरिये किसी के, मत तोड़ें विश्वास
कान-दान मत कीजिए, पायेंगे संत्रास
*
कर्ण न हो तो श्रवण, रण, ज्यामिति शोभाहीन
कर्ण-शूल बेचैन कर, अमन चैन ले छीन
*
कान न हों तो सुन सकें, हम कैसे आवाज?
हो न सके संवाद तो, रुक जाएँ जग-काज
*


कान मकान दूकान से, बढ़ते क्रिया-कलाप
नहीं एक भी हो अगर, जीवन बने विलाप
*

कान-नाक से जुड़ा है, नाज़ुक नाड़ी-तन्त्र
छेद-कीलते विज्ञ जन, स्वस्थ्य रहे तन-यंत्र
*
आँखें चश्मा हीन हों, अगर नहीं हों कान
कान पकड़ चश्मा सजे, मगर न घटता मान

*
कान कटे जिसके लगे, श्रीयुत भी श्री हीन
नकटी शूर्पनखा लगे, नहीं श्रेष्ठ अति दीन
*
कान खींचना ही नहीं, भूलों का उपचार
मार्ग प्रदर्शन भी करें, तब हो बेडा पार
*
कनबहरी करिए नहीं, अवसर जाता चूक
व्यर्थ विवादों की दवा, लेकिन यही अचूक
*
आन गाँव का कनफटा, लगता जोगी सिद्ध
कौन बताये कब कहाँ, रहा मोह में बिद्ध
*
छवि देखें मुख चन्द्र की, कर्ण फूल के साथ
शतदल पाटल मध्य ज्यों, देख मुग्ध शशिनाथ
*

कान खड़े कर सुन रहा, जो न समय की बात
कान बंद कर जो रहा, दोनों की है मात
*
जो जन कच्चे कान के, उनसे रहें सतर्क
अफवाहों पर भरोसा, करें- न मानें तर्क
*
रूप नहीं गुण देखते, जो- वे हैं मतिमान
सुनें सतासत कान पर, दें न असत पर ध्यान
*
सूपे जैसे नख लिये, गई सुपनखा हार
सूप-कार्टन ले गणपति, पुजें सकल संसार
*


तेल कान में डालकर, बैठे सत्तासीन
कौन सुधारे देश को, सब स्वार्थों में लीन
*
स्वर्णहार ले आओ तो, विहँस कंठ में धार
पहना दूँ पल में तुम्हें, झट बाँहों का हार
*
रक्त कमल दल मध्य है, मुक्ता मणि रद-पंक्ति
आप आप पर रीझते, नयन गहें भव-मुक्ति
*

मिले अकेलापन कभी, खुद से खुद कर भेंट
'सलिल' व्यर्थ बिखराव को, होकर मौन समेट
***
षटपदी के रंग नाक के संग
*
नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ राह निकालें
नाक नकेल भी डाल सखे, न कटे जंजाल तो नाक़ चढ़ा लें
२१-५-२०१५
***
वास्तु सूत्र
*
(१ ) भवन के मुख्य द्वार पर किसी भी ईमारत, मंदिर, वृक्ष, मीनार आदि की छाया नहीं पड़नी चाहिए।
(२ ) मुख्य द्वार के सामने रसोई बिलकुल नहीं होनी चाहिए।
(३ ) रसोई घर, पूजा कक्ष तथा शौचालय एक साथ अर्थात लगे हुए न हों। इनमे अंतर होना चाहिए।
(४ ) वाश बेसिन, सिंक, नल की टोंटी, दर्पण आदि उत्तरी या पूर्वी दीवार के सहारे ही लगवाएं।
(५) तिजोरी (केश बॉक्स या सेफ) दक्षिण या पश्चिमी दीवार में लगवाएं ताकि उसका दरवाजा उत्तर या पूर्व में खुले।
(६) भवन की छत एवं फर्श नैऋत्य में ऊँचा रखें एवं शान में नीचा रखें।
(७) पूजा स्थान इस तरह हो कि पूजा करते समय आपका मुँह पूर्व, उत्तर या ईशान (उत्तर-पूर्व) दिशा में हो।
(८) जल स्रोत (नल, कुआँ, ट्यूब वेल आदि), जल-टंकी ईशान में हो।
(९) अग्नि तत्व (रसोई गृह) भूखंड के आग्नेय में हो। चूल्हा, ओवन, बिजली का मीटर आदि कक्ष के दक्षिणआग्नेय में हों।
(१०) नैऋत्य दिशा में भारी निर्माण जीना, ममटी आदि तथा भारी सामान हो। घर की चहार दीवारी नैऋत्य में अधिक ऊँची व मोटी तथा ईशान में दीवार कम नीची व कम मोटी अर्थात पतली हो।
(११) वायव्य दिशा में अतिथि कक्ष, अविवाहित कन्याओं का कक्ष, कारखाने का उत्पादन कक्ष रखें। यहाँ सेप्टिक टैंक बना सकते हैं। टैक्सी सर्विस वाले यहाँ वहां रखें तो सफलता अधिक मिलेगी।
२१-५-२०१३
***
एक दोहा
प्राची से होती प्रगट, खोल कक्ष का द्वार.
अलस्सुबह ऊषा पुलक, गुपचुप झाँक-निहार..
२१-५-२०१२
***
नव गीत:
*
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
शांति-शिष्टता,
धैर्य-भद्रता,
जीवट की पहचान.
शांत सतह के
नीचे हलचल,
मचल रहे अरमान.
श्वेत-शयन लख
यह मत समझो
रंगों से अनजान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
ऊपर-नीचे
सब जानें पर
ऊँच-नीच से दूर.
दिक्-दिगंत पर
नजर जमाये
आशान्वित भरपूर.
मुस्कानों से
'सलिल' न होगा
पीड़ा का अनुमान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
उत्तर का
प्रत्युत्तर देना
बहुत सहज आसान.
कह न अनर्गल
मौन साधना
क्या जानें नादान?
जो सचमुच
है बड़ा, 'सलिल' वह
नहीं दिखता शान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
२१-५-२०१०
*

शनिवार, 20 मई 2023

अपूर्णान्वयी छंद, Enjambment poetry, हास्य, रूपमाला छंद, द्विपदी, आँख

दोहा सलिला
*
मन बच्चा-सच्चा रहे, कच्चा तन बदनाम।
बिन टूटे बादाम हो, टूटे तो बेदाम।।
*
कैसे हैं? क्या होएँगे?, सोच न आती काम।
जैसा चाहे विधि रखे, करे न बस बेकाम।
*
कांता जैसी चाँदनी, लिये हाथ में हाथ।
कांत चाँद सा सोहता, सदा उठाए माथ।।
*
मिल कर भी मिलती नहीं, मंजिल खेले खेल।
यात्रा होती रहे तो, हर मुश्किल लें झेल।।
*
मार न पड़ती उम्र की, बढ़ता अनुभव संग।
तब करते थे जंग, अब जमा रहे हैं रंग।।
२०-५-२०१८
***
पुस्तक चर्चा-
संक्रांतिकाल की साक्षी कवितायें
आचार्य भगवत दुबे
*
[पुस्तक विवरण- काल है संक्रांति का, गीत-नवगीत संग्रह, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', प्रथम संस्करण २०१६, आकार २२ से.मी. x १३.५ से.मी., आवरण बहुरंगी, पेपरबैक जैकेट सहित, पृष्ठ १२८, मूल्य जन संस्करण २००/-, पुस्तकालय संस्करण ३००/-, समन्वय प्रकाशन, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१]
कविता को परखने की कोई सर्वमान्य कसौटी तो है नहीं जिस पर कविता को परखा जा सके। कविता के सही मूल्याङ्कन की सबसे बड़ी बाधा यह है कि लोग अपने पूर्वाग्रहों और तैयार पैमानों को लेकर किसी कृति में प्रवेश करते हैं और अपने पूर्वाग्रही झुकाव के अनुरूप अपना निर्णय दे देते हैं। अतः, ऐसे भ्रामक नतीजे हमें कृतिकार की भावना से सामंजस्य स्थापित नहीं करने देते। कविता को कविता की तरह ही पढ़ना अभी अधिकांश पाठकों को नहीं आता है। इसलिए श्री दिनकर सोनवलकर ने कहा था कि 'कविता निश्चय ही किसी कवि के सम्पूर्ण व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है। किसी व्यक्ति का चेहरा किसी दूसरे व्यक्ति से नहीं मिलता, इसलिए प्रत्येक कवी की कविता से हमें कवी की आत्मा को तलाशने का यथासम्भव यत्न करना चाहिए, तभी हम कृति के साथ न्याय कर सकेंगे।' शायद इसीलिए हिंदी के उद्भट विद्वान डॉ. रामप्रसाद मिश्र जब अपनी पुस्तक किसी को समीक्षार्थ भेंट करते थे तो वे 'समीक्षार्थ' न लिखकर 'न्यायार्थ' लिखा करते थे।
रचनाकार का मस्तिष्क और ह्रदय, अपने आसपास फैले सृष्टि-विस्तार और उसके क्रिया-व्यापारों को अपने सोच एवं दृष्टिकोण से ग्रहण करता है। बाह्य वातावरण का मन पर सुखात्मक अथवा पीड़ात्मक प्रभाव पड़ता है। उससे कभी संवेद नात्मक शिराएँ पुलकित हो उठती हैं अथवा तड़प उठती हैं। स्थूल सृष्टि और मानवीय भाव-जगत तथा उसकी अनुभूति एक नये चेतन संसार की सृष्टि कर उसके साथ संलाप का सेतु निर्मित कर, कल्पना लोक में विचरण करते हुए कभी लयबद्ध निनाद करता है तो कभी शुष्क, नीरस खुरदुरेपन की प्रतीति से तिलमिला उठता है।
गीत-नवगीत संग्रह 'काल है संक्रांति का' के रचनाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका 'दिव्य नर्मदा' के यशस्वी संपादक रहे हैं जिसमें वे समय के साथ चलते हुए १९९४ से अंतरजाल पर अपने चिट्ठे (ब्लॉग) के रूप में निरन्तर प्रकाशित करते हुए अब तक ४००० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित कर चुके हैं। अन्य अंतर्जालीय मंचों (वेब साइटों) पर भी उनकी लगभग इतनी ही रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। वे देश के विविध प्रांतों में भव्य कार्यक्रम आयोजित कर 'अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण' के माध्यम से हिंदी के श्रेष्ठ रचनाकारों के उत्तम कृतित्व को वर्षों तक विविध अलंकरणों से अलंकृत करने, सत्साहित्य प्रकाशित करने तथा पर्यावरण सुधर, आपदा निवारण व् शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने का श्रेय प्राप्त अभियान संस्था के संस्थापक-अध्यक्ष हैं। इंजीनियर्स फॉर्म (भारत) के महामंत्री के अभियंता वर्ग को राष्ट्रीय-सामाजिक दायित्वों के प्रति सचेत कर उनकी पीड़ा को समाज के सम्मुख उद्घाटित कर सलिल जी ने सथक संवाद-सेतु बनाया है। वे विश्व हिंदी परिषद जबलपुर के संयोजक भी हैं। अभिव्यक्ति विश्वम दुबई द्वारा आपके प्रथम नवगीत संग्रह 'सड़क पर...' की पाण्डुलिपि को 'नवांकुर अलंकरण २०१६' (१२०००/- नगद) से अलङ्कृत किया गया है। अब तक आपकी चार कृतियाँ कलम के देव (भक्तिगीत), लोकतंत्र का मक़बरा तथा मीत मेरे (काव्य संग्रह) तथा भूकम्प ले साथ जीना सीखें (लोकोपयोगी) प्रकाशित हो चुकी हैं।
सलिल जी छन्द शास्त्र के ज्ञाता हैं। दोहा छन्द, अलंकार, लघुकथा, नवगीत तथा अन्य साहित्यिक विषयों के साथ अभियांत्रिकी-तकनीकी विषयों पर आपने अनेक शोधपूर्ण आलेख लिखे हैं। आपको अनेक सहयोगी संकलनों, स्मारिकाओं तथा पत्रिकाओं के संपादन हेतु साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा ने 'संपादक रत्न' अलंकरण से सम्मानित किया है। हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग ने संस्कृत स्त्रोतों के सारगर्भित हिंदी काव्यानुवाद पर 'वाग्विदाम्बर सम्मान' से सलिल जी को सम्मानित किया है। कहने का तात्पर्य यह है कि सलिल जी साहित्य के सुचर्चित हस्ताक्षर हैं। 'काल है संक्रांति का' आपकी पाँचवी प्रकाशित कृति है जिसमें आपने दोहा, सोरठा, मुक्तक, चौकड़िया, हरिगीतिका, आल्हा अदि छन्दों का आश्रय लेकर गीति रचनाओं का सृजन किया है।
भगवन चित्रगुप्त, वाग्देवी माँ सरस्वती तथा पुरखों के स्तवन एवं अपनी बहनों (रक्त संबंधी व् मुँहबोली) के रपति गीतात्मक समर्पण से प्रारम्भ इस कृति में संक्रांतिकाल जनित अराजकताओं से सजग करते हुए चेतावनी व् सावधानियों के सन्देश अन्तर्निहित है।
'सूरज को ढाँके बादल
सीमा पर सैनिक घायल
नाग-सांप फिर साथ हुए
गुँजा रहे वंशी मादल
लूट-छिप माल दो
जगो, उठो।'
उठो सूरज, जागो सूर्य आता है, उगना नित, आओ भी सूरज, उग रहे या ढल रहे?, छुएँ सूरज, हे साल नये आदि शीर्षक नवगीतों में जागरण का सन्देश मुखर है। 'सूरज बबुआ' नामक बाल-नवगीत में प्रकृति उपादानों से तादात्म्य स्थापित करते हुए गीतकार सलिल जी ने पारिवारिक रिश्तों के अच्छे रूपक बाँधे हैं-
'सूरज बबुआ!
चल स्कूल।
धरती माँ की मीठी लोरी
सुनकर मस्ती खूब करी।
बहिम उषा को गिर दिया
तो पिता गगन से डाँट पड़ीं।
धूप बुआ ने लपक उठाया
पछुआ लायी
बस्ते फूल।'
गत वर्ष के अनुभवों के आधार पर 'में हिचक' नामक नवगीत में देश की सियासी गतिविधियों को देखते हुए कवी ने आशा-प्रत्याशा, शंका-कुशंका को भी रेखांकित किया है।
'नये साल
मत हिचक
बता दे क्या होगा?
सियासती गुटबाजी
क्या रंग लाएगी?
'देश एक' की नीति
कभी फल पाएगी?
धारा तीन सौ सत्तर
बनी रहेगी क्या?
गयी हटाई
तो क्या
घटनाक्रम होगा?'
पाठक-मन को रिझाते ये गीत-नवगीत देश में व्याप्त गंभीर समस्याओं, बेईमानी, दोगलापन, गरीबी, भुखमरी, शोषण, भ्रष्टाचार, उग्रवाद एवं आतंक जैसी विकराल विद्रूपताओं को बहुत शिद्दत के साथ उजागर करते हुए गम्भीरता की ओर अग्रसर होते हैं।
बुंदेली लोकशैली का पुट देते हुए कवि ने देश में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक, विषमताओं एवं अन्याय को व्यंग्यात्मक शैली में उजागर किया है।
मिलती काय ने ऊँचीबारी
कुर्सी हमखों गुईंया
पैला लेऊँ कमिसन भारी
बेंच खदानें सारी
पाँछू घपले-घोटालों सों
रकम बिदेस भिजा री
समीक्ष्य कृति में 'अच्छे दिन आने वाले' नारे एवं स्वच्छता अभियान को सटीक काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी गयी है। 'दरक न पायेन दीवारें नामक नवगीत में सत्ता एवं विपक्ष के साथ-साथ आम नागरिकों को भी अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति सचेष्ट करते हुए कवि ने मनुष्यता को बचाये रखने की आशावादी अपील की है।
कवी आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने वर्तमान के युगबोधी यथार्थ को ही उजागर नहीं किया है अपितु अपनी सांस्कृतिक अस्मिता के प्रति सुदृढ़ आस्था का परिचय भी दिया है। अतः, यह विश्वास किया जा सकता है कि कविवर सलिल जी की यह कृति 'काल है संक्रांति का' सारस्वत सराहना प्राप्त करेगी।
आचार्य भगवत दुबे
महामंत्री कादंबरी
***
दोहों के रंग आंख के संग
*
आँख लड़ी झुक उठ मिली, मुंदी कहानी पूर्ण
लाड़ मुहब्बत ख्वाब सँग, श्वास-आस का चूर्ण
*
आँख कहानी लघुकथा, उपन्यास रस छंद
गीत गजल कविता भजन, सुख-दुःख परमानंद
*
एक आँख से देखते, धूप-छाँव जो मीत
वही उतार-चढ़ाव पर, चलकर पाते जीत
*
धूल झोंकते आँख में, आँख बिछाकर लोग
चुरा-मिला आँखें दिखा, झूठ मनाते सोग
*
कभी किसी की आँख का, बनें न काँटा आप
कभी आप की आँख में, सके न काँटा व्याप
*
***
नवगीत:
*
जिंदगी के गणित में
कुछ इस तरह
उलझे हैं हम.
बंदगी के गणित
कर लें हल
रही बाकी न दम.
*
इंद्र है युग लीन सुख में
तपस्याओं से डरे.
अहल्याओं को तलाशे
लाख मारो न मरे.
जन दधीची अस्थियाँ दे
बनाता विजयी रहा-
हुई हर आशा दुराशा
कभी कुछ संयम वरे.
कामनाओं से ग्रसित
होकर भ्रमित
बिखरे हैं हम.
वासनाओं से जड़ित
होते दमित
अँखियाँ न नम.
जिंदगी के गणित में
कुछ इस तरह
उलझे हैं हम.
बंदगी के गणित
कर लें हल
चलो मिलकर सनम.
*
पडोसी के द्वार पर जा
रोज छिप कचरा धरें.
चाह आकर विधाता-
नित व्याधियाँ-मुश्किल हरें .
सुधारों का शंख जिसने
बजाया विनयी रहा-
सिया को वन भेजता जो
देह तज कैसे तरे?
भूल को स्वीकार
संशोधन किये
निखरे हैं हम.
शूल से कर प्यार
वरते कूल
लहरें हैं न कम.
जिंदगी के गणित में
कुछ इस तरह
उलझे हैं हम.
बंदगी के गणित
कर लें हल
बढ़ें संग रख कदम.
*
***
द्विपदी सलिला:
*
जो दिखता होता नहीं, केवल उतना सत्य
छोटे तन में बड़ा मन, करता अद्भुत कृत्य
*
ओझा कर दे टोटका, फूंक कभी तो मन्त्र
मन-अँगना में भी लगे, फूलों का संयंत्र
*
नित मन्दिर में माँगते, किन्तु न होते तृप्त
दो चहरे ढोते फिरे, नर-पशु सदा अतृप्त
*
जब जो जी चाहे करे, राजा वह ही न्याय
लोक मान्यता कराती, राजा से अन्याय
*
पर उपकारी हैं बहुत, हम भारत के लोग
मुफ्त मशवरे दें 'सलिल', यही हमारा रोग
*
वक़्त सुनता ही नहीं सिर्फ सुनाता रहता
नजर घरवाली की ही इसमें अदा आती है
*
दिखाया आईना मैंने कि वो भी देख सके
आँख में उसकी बसा चेहरा मेरा ही है
*
आसमां को थाम लें हाथों में अपने हम अगर
पैर ज़माने के लिये जमीं रब हमें दे दे
*
तुम्हें जानना है महज इसलिए ही
दुनिया के सारे शिखर नापते हैं
*
दिले-दिलवर को खटखटाते रहे नज़रों से
आँख का डाकिया पैगाम कभी तो देगा
*
बेरुखी लाख दिखाये वो सरे-आम मगर
नज़र जो मिल के झुके प्यार भी हो सकती है
*
अंत नहीं है प्यास का, नहीं मोह का छोर
मुट्ठी में ममता मिली, दिनकर लिया अँजोर
*
लेन-देन जिंदगी में इस कदर बढ़ा
बाकी नहीं है फर्क आदमी-दूकान में
*
साथ चलते हाथ छूटे कब-कहाँ- कैसे कहें
बेहतर है फिर मिलें मन मीत! हम कुछ मत कहें
*
सारे सौदे वो नगद करता है जन्म से ही रहे उधार हैं हम
सारी दुनिया में जाके कहते हैं भारत में हुए सुधार हैं हम
२०-५-२०१५
*

छंद सलिला:
रूपमाला छंद
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति चौदह-दस, पदांत गुरु-लघु (जगण)
लक्षण छंद:
रूपमाला रत्न चौदह, दस दिशा सम ख्यात
कला गुरु-लघु रख चरण के, अंत उग प्रभात
नाग पिंगल को नमनकर, छंद रचिए आप्त
नव रसों का पान करिए, ख़ुशी हो मन-व्याप्त
उदाहरण:
१. देश ही सर्वोच्च है- दें / देश-हित में प्राण
जो- उन्हीं के योग से है / देश यह संप्राण
करें श्रद्धा-सुमन अर्पित / यादकर बलिदान
पीढ़ियों तक वीरता का / 'सलिल'होगा गान
२. वीर राणा अश्व पर थे, हाथ में तलवार
मुगल सैनिक घेर करते, अथक घातक वार
दिया राणा ने कई को, मौत-घाट उतार
पा न पाये हाय! फिर भी, दुश्मनों से पार
ऐंड़ चेटक को लगायी, अश्व में थी आग
प्राण-प्राण से उड़ हवा में, चला शर सम भाग
पैर में था घाव फिर भी, गिरा जाकर दूर
प्राण त्यागे, प्राण-रक्षा की- रुदन भरपूर
किया राणा ने, कहा: 'हे अश्व! तुम हो धन्य
अमर होगा नाम तुम हो तात! सत्य अनन्य।
२०-५-२०१४
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)



1 शेयर


अपूर्णान्वयी छंद:
(Enjambment poetry in Hindi)
झूठ न होता झूठ
संजीव
'झूठ कभी मत बोलना', शिक्षक ने दी सीख
पूछा बालक ने: 'कहाँ इससे बढ़कर झूठ।
झूठ न बोलें तो कहें, कैसे होगा काम?
काम बिना हो जाएगा, अपना काम तमाम।
झूठ बिना क्या कहेगा? नेता, पंडित, चोर।
रहे मौन तो नहीं क्या, होगा संकट घोर?
झूठ बिना थाने सभी, हो जायेंगे बंद।
सभी वकील-अदालतें, गायेंगे क्या छंद?
झूठ बिना क्या कहेंगे, दफ्तर जाकर लेट?
छापा मारे आयकर, जिस पर वह अपसेट।
झूठ बिना खुद सत्य भी, मर जाए बिन मौत।
क्या कह दें? पूछे पुलिस कौन हुआ है फौत?


'झूठ न होता झूठ गर सच दें उसको नाम।'
शिक्षक बोला, छात्र ने सविनय किया प्रणाम।।
*****
***
हास्य रचना
बतलायेगा कौन?
*
मैं जाता था ट्रेन में, लड़ा मुसाफिर एक.
पिटकर मैंने तुरत दी, धमकी रखा विवेक।।
मुझको मारा भाई को, नहीं लगाना हाथ।
पल में रख दे फोड़कर, हाथ पैर सर माथ ।।
भाई पिटा तो दोस्त का, उच्चारा था नाम।
दोस्त और फिर पुत्र को, मारा उसने थाम।।
रहा न कोई तो किया, उसने एक सवाल।
आप पिटे तो मौन रह, टाला क्यों न बवाल?
क्यों पिटवाया सभी को, क्या पाया श्रीमान?
मैं बोला यह राज है, किन्तु लीजिये जान।।
अब घर जाकर सभी को रखना होगा मौन।
पीटा मुझको किसी ने, बतलायेगा कौन??
२०-५-२०१३
+++

शुक्रवार, 19 मई 2023

जिकड़ी, दोहे, आँख, नाक, मुक्तिका, मुक्तक

दोहा सलिला:
दोहा का रंग नाक के संग
*
मीन कमल मृग से नयन, शुक जैसी हो नाक
चंदन तन में आत्म हो, निष्कलंक निष्पाप
*
बैठ न पाये नाक पर, मक्खी रखिये ध्यान
बैठे तो झट दें उड़ा, बने रहें अनजान
*
नाक घुसेड़ें हर जगह, जो वे पाते मात
नाक अड़ाते बिन वजह, हो जाते कुख्यात
*
नाक न नीची हो तनिक, करता सब जग फ़िक्र
नाक कटे तो हो 'सलिल', घर-घर हँसकर ज़िक्र
*
नाक सदा ऊँची रखें, बढ़े मान-सम्मान
नाक अदाए व्यर्थ जो, उसका हो अपमान
*
शूर्पणखा की नाक ने, बदल दिया इतिहास
ऊँची थी संत्रास दे, कटी सहा संत्रास
*
नाक छिनकना छोड़ दें, जहाँ-तहाँ हम-आप
'सलिल' स्वच्छ भारत बने, मिटे गंदगी शाप
*
नाक-नार दें हौसला, ठुमक पटकती पैर
ख्वाब दिखा पुचकार लो, 'सलिल' तभी हो खैर
*
जिसकी दस-दस नाक थीं, उठा न सका पिनाक
बीच सभा में कट गयी, नाक मिट गयी धाक
*
नाक नकेल बिना नहीं, घोड़ा सहे सवार
बीबी नाक-नकेल बिन, हो सवार कर प्यार
*
आँख कान कर पैर लब, दो-दो करते काम
नाक शीश मन प्राण को, मिलता जग में नाम
*
मुक्तक
भावना की भावना है शुद्ध शुभ सद्भाव है
भाव ना कुछ, अमोली बहुमूल्य है बेभाव है
साथ हैं अभियान संगम ज्योति हिंदी की जले
प्रकाशित सब जग करे बस यही मन में चाव है
१६-५-२०२०
मुक्तिका
कोयल कूक कह रही कल रव जैसा था, वैसा मत करना
गौरैया कहती कलरव कर, किलकिल करने से अब डरना
पवन कहे मत धूम्र-वाहनों से मुझको दूषित कर मानव
सलिल कहे निर्मल रहने दे, मलिन न पंकिल मुझको करना
कोरोना बोले मैं जाऊँ अगर रहेगा अनुशासित तू
खुली रहे मधुशाला पीने जाकर बिन मारे मत मरना
साफ-सफाई करो, रहो घर में, मत घर को होटल मानो
जो न चाहते हो तुमसे, व्यवहार न कभी किसी से करना
मेहनतकश को इज्जत दो, भूखा न रहे कोई यह देखो
लोकतंत्र में लोक जगे, जाग्रत हो, ऐसा पथ मिल वरना
***
मुक्तिका
इसने मारा उसने मारा
क्या जानूँ किस-किस ने मारा
श्रमिक-कृषक जोरू गरीब की
भौजी कहकर सबने मारा
नेता अफसर सेठ मजे में
पत्रकार-भक्तों ने मारा
चोर-गिरहकट छूटे पीछे
संतों-मुल्लों ने भी मारा
भाग्यविधाता भागा फिरता
कौन न जिसने जी भर मारा
१९-५-२०२०
***
अभिनव प्रयोग:
प्रस्तुत है पहली बार खड़ी हिंदी में बृजांचल का लोक काव्य भजन जिकड़ी
जय हिंद लगा जयकारा
(इस छंद का रचना विधान बताइए)
*
भारत माँ की ध्वजा, तिरंगी कर ले तानी।
ब्रिटिश राज झुक गया, नियति अपनी पहचानी।। ​​​​​​​​​​​​​​
​अधरों पर मुस्कान।
गाँधी बैठे दूर पोंछते, जनता के आँसू हर प्रात।
गायब वीर सुभाष हो गए, कोई न माने नहीं रहे।।
जय हिंद लगा जयकारा।।
रास बिहारी; चरण भगवती; अमर रहें दुर्गा भाभी।
बिन आजाद न पूर्ण लग रही, थी जनता को आज़ादी।।
नहरू, राजिंदर, पटेल को, जनगण हुआ सहारा
जय हिंद लगा जयकारा।।
हुआ विभाजन मातृभूमि का।
मार-काट होती थी भारी, लूट-पाट को कौन गिने।
पंजाबी, सिंधी, बंगाली, मर-मिट सपने नए बुने।।
संविधान ने नव आशा दी, सूरज नया निहारा।
जय हिंद लगा जयकारा।।
बनी योजना पाँच साल की।
हुई हिंद की भाषा हिंदी, बाँध बन रहे थे भारी।
उद्योगों की फसल उग रही, पञ्चशील की तैयारी।।
पाकी-चीनी छुरा पीठ में, भोंकें; सोचें: मारा।
जय हिंद लगा जयकारा।।
पल-पल जगती रहती सेना।
बना बांग्ला देश, कारगिल, कहता शौर्य-कहानी।
है न शेष बासठ का भारत, उलझ न कर नादानी।।
शशि-मंगल जा पहुँचा इसरो, गर्वित हिंद हमारा।।
जय हिंद लगा जयकारा।।
सर्व धर्म समभाव न भूले।
जग-कुटुंब हमने माना पर, हर आतंकी मारेंगे।
जयचंदों की खैर न होगी, गाड़-गाड़कर तारेंगे।।
आर्यावर्त बने फिर भारत, 'सलिल' मंत्र उच्चारा।।
जय हिंद लगा जयकारा।।
***
६.७.२०१८
दोहा सलिला
देव लात के मानते, कब बातों से बात
जैसा देव उसी तरह, पूजा करिए तात
*
चरण कमल झुक लात से, मना रहे हैं खैर
आये आम चुनाव क्या?, पड़ें पैर के पैर
*
पाँव पूजने का नहीं, शेष रहा आनंद
'लिव इन' के दुष्काल में, भंग हो रहे छंद
*
पाद-प्रहार न भाई पर, कभी कीजिए भूल
घर भेदी लंका ढहे, चुभता बनकर शूल
*
'सलिल न मन में कीजिए, किंचित भी अभिमान
तीन पगों में नाप भू, हरि दें जीवन-दान
*

मुक्तिका
कल्पना की अल्पना से द्वार दिल का जब सजाओ
तब जरूरी देखना यह, द्वार अपना या पराया?
.
छाँह सर की, बाँह प्रिय की. छोड़ना नाहक कभी मत
क्या हुआ जो भाव उसका, कुछ कभी मन को न भाया
.
प्यार माता-पिता, भाई-भगिनी, बच्चों से किया जब
रागमय अनुराग में तब, दोष किंचित भी न पाया
.
कौन क्या कहता? न इससे, मन तुम्हारा हो प्रभावित
आप अपनी राह चुन, मत करो वह जो मन न भाया
.
जो गया वह बुरा तो क्यों याद कर तुम रो रहे हो?
आ रहा जो क्यों न उसके वास्ते दीपक जलाया?
.
मुक्तिका
जिनसे मिले न उनसे बिछुड़े अपने मन की बात है
लेकिन अपने हाथों में कब रह पाये हालात हैं?
.
फूल गिरे पत्थर पर चोटिल होता-करता कहे बिना
कौन जानता, कौन बताये कहाँ-कहाँ आघात है?
.
शिकवे गिले शिकायत जिससे उसको ही कुछ पता
रात विरह की भले अँधेरी उसके बाद प्रभात है
.
मिलने और बिछुड़ने का क्रम जीवन को जीवन देता
पले सखावत श्वास-आस में, यादों की बारात है
.
तन दूल्हे ने मन दुल्हन की रूप छटा जब-जब देखी
लूट न पाया, खुद ही लुटकर बोला 'दिल सौगात है'
.***
मुहावरेदार दोहे
*
पाँव जमकर बढ़ 'सलिल', तभी रहेगी खैर
पाँव फिसलते ही हँसे, वे जो पाले बैर
*
बहुत बड़ा सौभाग्य है, होना भारी पाँव
बहुत बड़ा दुर्भाग्य है होना भारी पाँव
*
पाँव पूजना भूलकर, फिकरे कसते लोग
पाँव तोड़ने से मिटे, मन की कालिख रोग
*
पाँव गए जब शहर में, सर पर रही न छाँव
सूनी अमराई हुई, अश्रु बहाता गाँव
*
जो पैरों पर खड़ा है, मन रहा है खैर
धरा न पैरों तले तो, अपने करते बैर
*
सम्हल न पैरों-तले से, खिसके 'सलिल' जमीन
तीसमार खाँ हबी हुए, जमीं गँवाकर दीन
*
टाँग अड़ाते ये रहे, दिया सियासत नाम
टाँग मारते वे रहे, दोनों है बदनाम
*
टाँग फँसा हर काम में, पछताते हैं लोग
एक पूर्ण करते अगर, व्यर्थ न होता सोग
*
बिन कारण लातें न सह, सर चढ़ती है धूल
लात मार पाषाण पर, आप कर रहे भूल
*
चरण कमल कब रखे सके, हैं धरती पर पैर?
पैर पड़े जिसके वही, लतियाते कह गैर
*
धूल बिमाई पैर का, नाता पक्का जान
चरण कमल की कब हुई, इनसे कह पहचान?
१९-५-२०१६
***
दोहा सलिला:
दोहा के रंग आँखों के संग ४
*
आँख न रखते आँख पर, जो वे खोते दृष्टि
आँख स्वस्थ्य रखिए सदा, करें स्नेह की वृष्टि
*
मुग्ध आँख पर हो गये, दिल को लुटा महेश
एक न दो, लीं तीन तब, मिला महत्त्व अशेष
*
आँख खुली तो पड़ गये, आँखों में बल खूब
आँख डबडबा रह गयी, अश्रु-धार में डूब
*
उतरे खून न आँख में, आँख दिखाना छोड़
आँख चुराना भी गलत, फेर न, पर ले मोड़
*
धूल आँख में झोंकना, है अक्षम अपराध
आँख खोल दे समय तो, पूरी हो हर साध
*
आँख चौंधियाये नहीं, पाकर धन-संपत्ति
हो विपत्ति कोई छिपी, झेल- न कर आपत्ति
*
आँखें पीली-लाल हों, रहो आँख से दूर
आँखों का काँटा बनें, तो आँखें हैं सूर
*
शत्रु किरकिरी आँख की, छोड़ न कह: 'है दीन'
अवसर पा लेता वही, पल में आँखें छीन
*
आँख बिछा स्वागत करें,रखें आँख की ओट
आँख पुतलियाँ मानिये, बहू बेटियाँ नोट
*
आँखों का तारा 'सलिल', अपना भारत देश
आँख फाड़ देखे जगतं, उन्नति करे विशेष
१९-५-२०१५
*