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गुरुवार, 11 मार्च 2021

दोहा दुनिया

दोहा दुनिया
*
भाई-भतीजावाद के, हारे ठेकेदार
चचा-भतीजे ने किया, घर का बंटाढार
*
दुर्योधन-धृतराष्ट्र का, हुआ नया अवतार
नाव डुबाकर रो रहे, तोड़-फेंक पतवार
*
माया महाठगिनी पर, ठगी गयी इस बार
जातिवाद के दनुज सँग, मिली पटकनी यार
*
लग्न-परिश्रम की विजय, स्वार्थ-मोह की हार
अवसरवादी सियासत, डूब मरे मक्कार
*
बादल गरजे पर नहीं, बरस सके धिक्कार
जो बोया काटा वही, कौन बचावनहार?
*
नर-नरेंद्र मिल हो सके, जन से एकाकार
सर-आँखों बैठा किया, जन-जन ने सत्कार
*
जन-गण को समझें नहीं, नेतागण लाचार
सौ सुनार पर पड़ गया,भारी एक लुहार
*
गलती से सीखें सबक, बाँटें-पाएँ प्यार
देश-दीन का द्वेष तज, करें तनिक उपकार
*
दल का दलदल भुलाकर, असरदार सरदार
जनसेवा का लक्ष्य ले, बढ़े बना सरकार
*
मन की मन में क्यों रहे, कर मनमानी खूब।
मन उन्मन क्यों हो रहा?बेमन पूछ, न ऊब।।
*
११-३-२०१७

हाइकु

हाइकु के रँग
संजीव
*
धरने पर
बैठा मुख्यमंत्री
आँखें चुराये
*
रंग-बिरंगे
नमो गुजरात को
रोज भुनाएं
*
ममो का मौन
अनकहनी कह
होली मनाये
*
झोपड़ी में जा
शहजादा लालू को
गले लगाये
*
नारी बेचारी
ममता की मारी है
ख्वाब सजाये
*
अन्ना हजारे
मुसीबत के मारे
खोजें सहारे
*
माया की काया
दे न किसी को कभी
थोड़ी भी छाया
*
बाल्टी का रंग
अम्मा को पड़े कम
करुणा दंग
*
११-३-२०१४
मुक्तिका:
खुली आँख सपने…
संजीव
*
खुली आँख सपने बुने जा रहे हैं
कहते खुदी खुद सुने जा रहे हैं
वतन की जिन्हें फ़िक्र बिलकुल नहीं है
संसद में वे ही चुने जा रहे हैं
दलतंत्र मलतंत्र है आजकल क्यों?
जनता को दल ही धुने जा रहे हैं
बजा बीन भैसों के सम्मुख मगन हो
खुश है कि कुछ तो सुने जा रहे हैं
निजी स्वार्थ ही साध्य सबका हुआ है
कमाने के गुर मिल गुने जा रहे हैं
११-३-२०१४ 

नव गीत

नव गीत:
ऊषा को लिए बाँह में,
संध्या को चाह में.
सूरज सुलग रहा है-
रजनी के दाह में...
*
पानी के बुलबुलों सी
आशाएँ पल रहीं.
इच्छाएँ हौसलों को
दिन-रात छल रहीं.
पग थक रहे, मंजिल कहीं
पाई न राह में.
सूरज सुलग रहा है-
रजनी के दाह में...
*
तृष्णाएँ खुद ही अपने
हैं हाथ मल रहीं.
छायाएँ तज आधार को
चुपचाप ढल रहीं.
मोती को रहे खोजते
पाया न थाह में.
सूरज सुलग रहा है-
रजनी के दाह में...
*
११-३-२०१०

मुक्तक

मुक्तक:
समय बदला तो समय के साथ ही प्रतिमान बदले.
प्रीत तो बदली नहीं पर प्रीत के अनुगान बदले.
हैं वही अरमान मन में, है वही मुस्कान लब पर-
वही सुर हैं वही सरगम 'सलिल' लेकिन गान बदले..
*
रूप हो तुम रंग हो तुम सच कहूँ रस धार हो तुम.
आरसी तुम हो नियति की प्रकृति का श्रृंगार हो तुम..
भूल जाऊँ क्यों न खुद को जब तेरा दीदार पाऊँ-
'सलिल' लहरों में समाहित प्रिये कलकल-धार हो तुम..
*
नारी ही नारी को रोके इस दुनिया में आने से.
क्या होगा कानून बनाकर खुद को ही भरमाने से?.
दिल-दिमाग बदल सकें गर, मान्यताएँ भी हम बदलें-
'सलिल' ज़िंदगी तभी हँसेगी, क्या होगा पछताने से?
*
ममता को समता का पलड़े में कैसे हम तौल सकेंगे.
मासूमों से कानूनों की परिभाषा क्या बोल सकेंगे?
जिन्हें चाहिए लाड-प्यार की सरस हवा के शीतल झोंके-
'सलिल' सिर्फ सुविधा देकर साँसों में मिसरी घोल सकेंगे?
*
११-३-२०१०

शिव भजन ५, स्व. शांति देवी वर्मा

पूज्य मातुश्री द्वारा रचित शिव भजन ५ 
धूमधाम भोले के गाँव 
स्व. शांति देवी वर्मा
*
धूमधाम भोले के गाँव,
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन दिशा में?, कैसे जावें?, किते बसो भोले का गाँव ?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
उत्तर दिशा में कैलाश परवत, बर्फ बीच भोले का गाँव।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन के लालन किते भए हैं?, का है पिता को नाम?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
गौरा के सखी लालन भए हैं, शंकर पिता को नाम।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
किते डालो लालन को पलना, बँधी काए की डोर  ।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कल्प वृक्ष पे झूला डालो है, अमरबेल की है डोर ।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन झुला कौन लोरी सुना रए?, कौन बलैंंया लेत?
चलो पाँव-पाँव सखी!
*
शंकर झुला उमा लोरी सुनाएँ, नंदी बलैंया लेत।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन नाच रए झूम-झूम के, कहो पहिर मुंड माल?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
भूत पिशाच जोगिनी नाचें, पहिरे गले मुंड माल। 
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन चाह रए दर्शन पाएँ, कौन बाँच रए भाग?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
ब्रह्मा-शारद; विष्णु लक्ष्मी, बाँच नें पाएँ भाग। 
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन कर्म-फल लिखे भाग में, किनकी कृपा अपार?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
लिखे कर्म फल चित्रगुप्त प्रभु, रिद्धि-सिद्धि मिले अपार। 
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
धूमधाम भोले के गाँव,
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
 

शिव भजन ४, शांति देवी वर्मा

पूज्य मातुश्री द्वारा रचित शिव भजन ४ 
भोले घर बाजे बधाई 
स्व. शांति देवी वर्मा
*
मंगल बेला आई,
भोले घर बाजे बधाई.....
*
गौरा मैया ने लालन जनमे, गणपति नाम धराई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
द्वारे बंदनवार बँधे हैं, कदली खंब लगाई।
भोले घर बाजे बधाई.....
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हरे-हरे गोबर इन्द्राणी आँगन लीपें, मुतियन चौक पुराई।
भोले घर बाजे बधाई.....
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स्वर्ण कलश ब्रह्माणी लिए हैं, चौमुख दिया जलाई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
लछमी जी पलना पौढ़ाएँ, झूलें गणेश सुखदाई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
नृत्य करें नटराज झूमकर, नारद वीणा बजाई।
भोले घर बाजे बधाई.....
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देव-देवियाँ सोहर गावें, खुशियां त्रिभुवन छाईं।
भोले घर बाजे बधाई.....
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भले बाबा जोगी बैरागी, उमा लालन कहाँ से लाईं।
भोले घर बाजे बधाई.....
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सखियाँ सब मिल करें ठिठोली, उमा झेंप खिसियाईं।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
झूम हिमालय हवन कर रहे, मैना देव मनाईं।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
'शांति' गजानन दर्शन कर ले, सबरे पाप नसाई ।
भोले घर बाजे बधाई.....
*

शिव भजन ३, शांति देवी वर्मा

पूज्य मातुश्री द्वारा रचित शिव भजन ३ 
मोहक छटा पारवती-शिव की 
स्व. शांति देवी वर्मा
*
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
ऊँचो तेरहो-मेढ़ो कैलाश परवत, बीच मां बहे गंग धार।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
शीश पे उमा के मुकुट सुहावे, भोले के जूट-रुद्राक्ष।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
माथे पे गौरी के सिंदूर बिंदिया, शंकर के भस्मी राख।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
सती के कानों में हीरक कुंडल, त्रिपुरारी के बिच्छू कान।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
कंठ शिवा के नौलख हरवा, नीलकंठ के नाग।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
हाथ अपर्णा के मुक्तक कंगन,  डमरू साथ। 
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
कुँवरि बदन केसर-कस्तूरी, महादेव तन राख।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
पहने भवानी नौ रंग चूनर, भोले बाघ की खाल। 
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
दुर्गा रचतीं सकल सृष्टि को, महानाशक महाकाल।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
भुवन मोहनी महामाया हैं, औघड़दानी हैं नाथ ।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
'शांति' सार्थक जन्म दरस पा, सदय शिवा-शिव साथ। 
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*

शिव भजन २, शांति देवी

पूज्य मातुश्री द्वारा रचित शिव भजन २ 
गिरिजा कर सोलह सिंगार
स्व. शांति देवी वर्मा
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गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
*
माँग में सेंदुर; भाल पे बिंदी, नैनन कजरा सजाय।
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
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बेनी गूँथी मुतियन के संग; चंपा-चमेली महकाय।
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
*
बांह बाजूबंद हाथ में कंगन, नौलखा कंठ सुहाय।
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
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कानन झुमका; नाक नथनिया, बेसर हीरा भाय।
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
*
कटि करधनिया; पाँव पैजनिया, घुँघुरु रतन जड़ाय।
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
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बिछिया में मणि; मुंदरी नीलम, चलीं ठुमुक बल खाँय।
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
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लहँगा लाल; चुनरिया नीली गोटा-जरी लगाय।
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
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ओढ़ चदरिया सात रंग की,  शोभा बरनि न जाय। 
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
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गजगामिन हौले पग धरतीं, मन ही मन मुस्कांय। 
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....
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नत नयनों; बंकिम सैनों से, अनकहनी कँह जांय। 
गिरिजा कर सोलह सिंगार,
चलीं शिव शंकर ह्रदय लुभांय.....

शिव भजन १, शांति देवी वर्मा

पूज्य मातुश्री द्वारा रचित शिव भजन १ 
शिवजी की आई बारात 
स्व. शांति देवी वर्मा 
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शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।  
देखन चलिए, मुदित मन रहिए,
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
भूत प्रेत बैताल जोगिनी, खप्पर लिए हैं हाथ। 
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
कानों में बिच्छू के कुंडल सोहें, कंठ सर्प की माल। 
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
अंग बभूत, कमर बाघंबर, नैना हैं लाल विशाल। 
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
कर त्रिशूल-डमरू मन मोहे, नंदी करते नाच। 
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
कर सिंगार भोला बन दूलह, चंदा सजाए माथ। 
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
'शांति' सफल जीवन कर दर्शन, करिए जय-जयकार। 
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*

                 
                           


 

बुधवार, 10 मार्च 2021

लोककथाएँ कहावतों की

लोककथाएँ कहावतों की
१. ये मुँह और मसूर की दाल
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
एक राजा था, अन्य राजाओं की तरह गुस्से का तेज हुए खाने का शौक़ीन। रसोइया बाँकेलाल उसके चटोरेपन से परेशान था। राजा को हर दिन कुछ नया खाने की लत और कोढ़ में खाज यह कि मसूर मसालेदार दाल की दाल राजा को विशेष पसंद थी। मसूर की दाल बाँकेलाल के अलावा और कोई  बनाना नहीं जानता था। इसलिए बांके लाल राजा की मूँछ का बाल बन गया।  
एक दिन बाँकेलाल की साली, अपने जीजा के घर आई। उसकी खातिरदारी में कोई कमी न रह जाए इसलिए बाँकेलाल ने राजा से कुछ दिनों के लिए छुट्टी माँगी। 
राजा के पास उसके मित्र पड़ोसी देश के राजा के आगमन का संदेश आ चुका था।  
हुआ यह कि राजा ने अपने मित्र राजा से बाँकेलाल की बनाई मसूर की दाल की खूब तारीफ की थी। मित्र राजा अपनी रानी सहित आया, ताकि मसूर की दाल का स्वाद ले सके। इसलिए राजा ने बाँकेलाल की छुट्टी मंजूर नहीं की। बाँकेलाल की साली ने उसका खूब मजाक उड़ाया कि  जीजाजी साली से ज्यादा राजा का ख्याल रखते हैं। घरवाली का मुँह गोलगप्पे की तरह फूल गया कि उसकी बहिन के कहने पर भी बाँकेलाल ने उसके साथ समय नहीं बिताया। बाँकेलाल मन मसोसकर काम पर चला गया। 
खीझ के कारण उसका मन खाना बनाने में कम था। उस दिन दाल में नमक कुछ ज्यादा पड़ गया और दाल कुछ कम गली। मेहमान राजा को भोजन में आनंद नहीं आया। नाराज राजा से बाँकेलाल को नौकरी से निकाल दिया। बेरोजगारी ने बाँकेलाल के सामने समस्या खड़ी कर दी। राजा एक रसोइया रह चुका था इसलिए किसी आम आदमी के घर काम करने में उसे अपमान अनुभव होता। घर में रहता तो घरवाली जली-कटी सुनाती। 
कहते हैं सब दिन जात न एक समान, बिल्ली के भाग से छींका टूटा, नगर सेठ मन ही मन राजा से ईर्ष्या करता था। उसे घमंड था कि राजा उससे धन उधार लेकर झूठी शान-शौकत दिखाता था। उसे बाँकेलाल के निकले जाने की खबर मिली तो उसने बाँकेलाल को बुलाकर अपन रसोइया बना लिया और सबसे कहने लगा कि राजा क्या जाने गुणीजनों की कदर करना? 
अँधा क्या चाहे दो आँखें, बाँकेलाल ने जी-जान से काम करना आरंभ कर दिया। सेठ को राजसी स्वाद मिला तो वह झूम उठा। 
सेठ की शादी की सालगिरह का दिन आया। अधेड़ सेठ युवा रानी को किसी भी कीमत पर प्रसन्न देखना चाहता था। उसने बाँकेलाल से कुछ ऐसा बनाने की फरमाइश की जिसे खाकर सेठानी खुश हो जाए। बाँकेलाल ने शाही मसालेदार मसूर की दाल पकाई। सेठ के घर में इसके पहले मसूर की दाल कभी नहीं बनी थी। सेठ-सेठानी और सभी मेहमानों ने जी भरकर मसूर की दाल खाई। सेठ ने बाँकेलाल को ईनाम दिया। यह देखकर उसका मुनीम कुढ़ गया।   
अब सेठ अपना वैभव प्रदर्शित करने के लिए जब-तब मित्रों को दावत देकर वाहवाही पाने लगा। 
बाँकेलाल खुद जाकर रसोई का सामान खरीद लाता था इस कारण मुनीम को पहले की तरह गोलमाल करने का अवसर नहीं मिल पा रहा था। मुनीम बाँकेलाल से बदला लेने का मौका खोजने लगा। बही में देखने पर मुनीम ने पाया की जब से बाँकेलाल आया था रसोई का खर्च लगातार बढ़ था। उसे मौका मिल गया। उसने सेठानी के कान भरे कि बाँकेलाल बेईमानी करता है। सेठानी ने सेठ से कहा। सेठ पहले तो अनसुनी करता रहा पर सेठानी ने दबाव डाला तो उसकी नाराजगी से डरकर सेठ ने बाँकेलाल को बुलाकर डाँट लगाई और जवाब-तलब किया कि वह रसोई का सामान लाने में गड़बड़ी कर रहा है। 
बाँकेलाल को काटो तो खून नहीं, वह मेहनती और ईमानदार था। उसने सेठ को मेहमानों और दावतों की बढ़ती संख्या और मसलों के लगातार लगातार बढ़ते बाजार भाव का सच बताया और मसूर की दाल में गरम मसाले और मखाने आदि डलने की जानकारी दी। सेठ की आँखें फ़टी की फ़टी रह गईं। उसने नौकर को भेजकर किरानेवाले को बुलवाया और पूछताछ की। किरानेवाले ने बताया कि बाँकेलाल हमेशा उत्तम किस्म के मसाले पूरी तादाद में लता था और भाव भी काम करते था। बाँकेलाल बेईमानी के झूठे इल्जाम से बहुत दुखी हुआ और सेठ की नौकरी छोड़ने का निश्चय कर अपना सामान उठाने चला गया। 
वह जा ही रहा था कि उसके कानों में आवाज पड़ी सेठानी नौकर से कह रही थी कि शाम को भोजन में मसूर की दाल बनाई जाए। स्वाभिमानी बाँकेलाल ने यह सुनकर कमरे में प्रवेश कर कहा 'ये मुँह और मसूर की दाल'। मैं काम छोड़कर जा रहा हूँ। 
सेठ-सेठानी मनाते रह गए पाए वन नहीं माना। तब से किसी को सामर्थ्य से अधिक पाने की चाह रखते देख कहा जाने लगा 'ये मुँह और मसूर की दाल'। 
*
संपर्क- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१। चलभाष ९४२५१८३२४४ (वॉट्सऐप), ईमेल salil.sanjiv@gmail.com 
 
         

अमृत महोत्सव गीत ९

गीत ९
सर्वोदय गीत 
सर्वोदय भारत का सपना।
हो साकार स्वप्न हर अपना।।
*
हम सब करें प्रयास निरंतर।
रखें न मनुज मनुज में अंतर।।
एक साथ हम कदम बढ़ाएँ।
हाथ मिला श्रम की जय गाएँ।।
युग अनुकूल गढ़ों नव नपना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*
हर जन हरिजन हुआ जन्म से।
ले-देकर है वणिक कर्म से।।
रक्षा कर क्षत्रिय हैं हम सब।
हो मतिमान ब्राह्मण हैं सब।।
कर्म साध्य नहिं माला जपना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*
श्रम सीकर में विहँस नहाएँ।
भूमिहीन को भू दे गाएँ।।
ऊँच-नीच दुर्भाव मिटाएँ। 
स्नेह सलिल में सतत नहाएँ।।
अंधभक्ति तज, सच है वरना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*

गीत प्रतिभा सक्सेना

 पठनीय गीत

हिन्दी पढ़ना भूल गए ,
डॉ. प्रतिभा सक्सेना
*
ये मेरे भारत के सपूत अब हिन्दी पढ़ना भूल गए ,
हिन्दी की गिनती क्या जाने, वो पढ़े पहाड़े भूल गए !
सारे विशेष दिन भूल गए त्यौहार कौन सा कब होता,
क्रिसमस की छुट्टी याद कि जैसे पट्टी पढ़ लेता तोता ,
लल्ला-लल्ली से ज्यादा अपने लगते हैं पिल्ला-पिल्ली ,
अंग्रेजी,असली मैडम है ,हिन्दी देसी औरत झल्ली.
रह गये नकलची बंदर बन वह मौज मस्तियाँ भूल गए !
दादी-नानी ये क्या जाने सब इनकी लगती हैं ग्रम्मा
मौसा फूफा क्या होते हैं,,चाची मामी में अंतर ना
फागुन और चैत बला क्या है कितनी ऋतुएं कैसी फसलें,
कुछ अक्षर जैसे ठ ढ़,ण अब श्रीमुख से कैसे निकलें
ञ,फ ,ङ,क्षत्रज्ञ बिसरे अंग्रेज़ी पढ़ कर फूल गए !
करवा पर टीवी का बतलाया ठाठ सिंगार सुहाता है
पर गौरा की पूजा कैसे हो कहाँ समझ में आता है ,
मामा-काका की संताने बस हैं उनके कज़िना-कज़नी,
जीजा-भाभी के नाते इन-लॉ लग कर बन जाते वज़नी,
उनसठ-उन्तालिस-उन्तिस का अन्तर क्या जाने, कूल भए !
इन-लॉ बन कर सब हुआ ठीक ,बिन लॉ के कोई बात नहीं .
है सभी ज़बानी जमा-खर्च रिश्तों में खास मिजाज़ नहीं.
ये अँग्रेज़ी में हँसते हैं ,इँगलिश में ही मुस्काते हैं,
इंडिया निकलता है मुख से भरत तो समझ न पाते हैं
वे सारे अक्षर ,-गुरु स्वर ,मात्राएँ आदि समूल गए !
हा,अमरीका में क्यों न हुए या लंदन में पैदा होते
क्यों नाम हमारा चंदन है ,लिंकन होते ,विलियम होते
आँखें नीली-पीली होतीं ये केश जरा भूरे होते ,
ये वेश हमारा क्यों होता क्यों ब्राउन हैं गोरे होते
हम काहे भारत में जन्मे, क्यों हाय जनम के फ़ूल भये !
*

घनाक्षरी

घनाक्षरी
*


नैन पिचकारी तान-तान बान मार रही, देख पिचकारी ​मोहे ​बरजो न राधिका
​आस-प्यास रास की न फागुन में पूरी हो तो, मुँह ही न फेर ले साँसों की साधिका
गोरी-गोरी देह लाल-लाल हो गुलाल सी, बाँवरे से ​साँवरे की कामना भी बाँवरी-
बैन​ से मना करे, सैन से न ना कहे, नायक के आस-पास घूम-घूम नायिका ​
*
होली पर चढ़ाए भाँग, लबों से चुआए पान, झूम-झूम लूट रहे रोज ही मुशायरा
शायरी हसीन करें, तालियाँ बटोर चलें, हाय-हाय करती जलें-भुनेंगी शायरा
फख्र इरफान पै है, फन उन्वान पै है, बढ़ता ही जाए रोज आशिकों का दायरा
कत्ल मुस्कान करे, कैंची सी जुबान चले, माइक से यारी है प्यारा जैसे मायरा
*

गीत

गीत:
*
ओ! मेरे प्यारे अरमानों, 
आओ, तुम पर जान लुटाऊँ. 
ओ! मेरे सपनों अनजानों- 
तुमको मैं साकार बनाऊँ... 
*
मैं हूँ पंख उड़ान तुम्हीं हो, 
मैं हूँ खेत, मचान तुम्हीं हो. 
मैं हूँ स्वर, सरगम हो तुम ही- 
मैं अक्षर हूँ गान तुम्हीं हो. 
ओ! मेरी निश्छल मुस्कानों 
आओ, लब पर तुम्हें सजाऊँ... 
*
मैं हूँ मधु, मधु गान तुम्हीं हो. 
मैं हूँ शर संधान तुम्हीं हो. 
जनम-जनम का अपना नाता- 
मैं हूँ रस रसखान तुम्हीं हो. 
ओ! मेरे निर्धन धनवानों 
आओ! श्रम का पाठ पढाऊँ... 
*मैं हूँ तुच्छ, महान तुम्हीं हो. 
मैं हूँ धरा, वितान तुम्हीं हो. 
मैं हूँ षडरसमधुमय व्यंजन. 
'सलिल' मान का पान तुम्हीं हो. 
ओ! मेरी रचना संतानों 
आओ, दस दिश तुम्हें गुंजाऊँ...
***
१०-३-२०१० 

दोहा

दोहा दुनिया
आँखमिचौली खेलते , बादल सूरज संग।
यह भागा वह पकड़ता, देखे धरती दंग।।
*
पवन सबल निर्बल लता , वह चलता है दाँव।
यह थर-थर-थर काँपती , रहे डगमगा पाँव।।
*
देवर आये खेलने, भौजी से रंग आज।
भाई ने दे वर रंगा, भागे बिगड़ा काज।।
*

मंगलवार, 9 मार्च 2021

अमृत महोत्सव गीत ८

अमृत महोत्सव गीत ८
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
*
मनुज सभ्यता का जन्मस्थल, 
वेद भूमि, नर का कर्मस्थल। 
आदर्शों का जीवनदाता,
जग-जीवन माने धर्मस्थल।।
करे काम निष्काम, 
आप ले अपनी करनी तोल।
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
*
दुर्दिन आए, गौरव खोया, 
तजा न साहस, तनिक न रोया।।
धीरज-धर्म सहारे जूझा-
त्याग बीज जन-मन में बोया।।
सत्तावन की क्रांति  
देख अरि दल था डाँवाडोल।  
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
हुई जागृति, मिटी भ्रांति जब, 
युवा देश हित करें क्रांति सब। 
गोली खाई, फाँसी झूले-
सत्ता खीझी, हुई न शांति तब।।
'वंदे मातरम्' गान 
रहा था, गोरों में भय घोल। 
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
भारत की सरकार बनाई,
नेताजी ने आस जगाई। 
देख फ़ौज थर्राए गोरे-
'दिल्ली चलो' दहाड़ लगाई।।
अणुबम से जापान डरा 
आया जैसे भूडोल। 
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
सत्याग्रह का शस्त्र मिला जब,
आंदोलन का अस्त्र फला तब। 
दांडी जाकर नमक बनाया 
बापू ने, अरि-सूर्य ढला अब।।
नव संकल्पों की साक्षी 
रावी थी रही किलोल। 
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
गाँधी की आँधी में, गोरा 
शासन तिनके भाँति उड़ गया। 
आजादी की हँसी-ख़ुशी में 
बँटवारे का दर्द जुड़ गया।।  
पस्त हुए अंग्रेज, 
खुल गई  अन्यायी की पोल। 
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
नव भारत ने होश सम्हाला,
पंचशील का सपना पाला। 
बाँध कारखानों सड़कों से 
ट्राम्बे ने था हाथ मिलाया।।
द्रुत विकास का
चक्र चल पड़ा पिटा विश्व में ढोल। 
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
*   
स्वतंत्रता के साल पचहत्तर, 
निर्भरता का फूँकें मंतर।
साबरमती कहे सब मिलकर,
बना देश को दें अभ्यंकर।।
कंकर-कंकर कर दें शंकर
करें न टालमटोल। 
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
*   
हर मुश्किल को मानें अवसर,
परचम फहरे जल-थल-नभ पर। 
आयुर्वेद-योग गुरु हैं हम,
जगवाणी हिंदी दे अवसर।।
नेह नर्मदा सलिल 
आचमन कर लें किस्मत खोल। 
भारत की जय बोल 
विश्व मिल भारत की जय बोल।। 
*



अमृत महोत्सव गीत ७

अमृत महोत्सव गीत ७  
*
ध्वजा तिरंगी वंदन करती 
स्वतंत्रता का फहर फहर कर। 
साबरमती नदी की लहरें 
कलकल करतीं सिहर सिहर कर।।
*
संकल्पों की नई इबारत, 
दांडी यात्रा ने लिख दी थी। 
सत्याग्रहियों ने सत्ता से, 
जूझ नाक में दम कर दी थी।। 
गोरों की काली सत्ता का, 
मिटा अँधेरा; सूरज ऊगा-
लाल किले से नव युग की 
वाणी गूँजी थी ठहर ठहर कर।   
ध्वजा तिरंगी वंदन करती 
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।। 
*
ट्राम्बे भेल भिलाई भाखरा, 
नव भारत के तीर्थ बने तब।
सर्वोदय से अंत्योदय तक 
करी यात्रा जनगण ने अब।।
जगवाणी हो हिंदी कहती 
जगद्गुरु भारत की महिमा-
इसरो, आई टी, कोरोना में  
क्षमता बिखरी शिखर नगर पर। 
ध्वजा तिरंगी वंदन करती 
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।। 
*
पर न मारता कोई परिन्दा 
सरहद पर सेना सशक्त है। 
उद्यम कौशल युवा शक्ति का 
सचमुच सारा जगत भक्त है।।
योग सिखाते जगद्गुरु हम, 
लिखते कथा-कथानक कल का- 
हैं संजीव न जीव मात्र हम,
प्रतिभा निखरे उभर उभर कर।  
ध्वजा तिरंगी वंदन करती 
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।। 
*

राजीव गण / माली छंद

 कार्यशाला

राजीव गण / माली छंद
*
छंद-लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १८ मात्रा, यति ९ - ९
लक्षण छंद:
प्रति चरण मात्रा, अठारह रख लें
नौ-नौ पर रहे, यति यह परख लें
राजीव महके, परिंदा चहके
माली-भ्रमर सँग, तितली निरख लें
उदाहरण:
१. आ गयी होली, खेल हमजोली
भिगा दूँ चोली, लजा मत भोली
भरी पिचकारी, यूँ न दे गारी,
फ़िज़ा है न्यारी, मान जा प्यारी
खा रही टोली, भाँग की गोली
मार मत बोली,व्यंग्य में घोली
तू नहीं हारी, बिरज की नारी
हुलस मतवारी, डरे बनवारी
पोल क्यों खोली?, लगा ले रोली
प्रीती कब तोली, लग गले भोली
२. कर नमन हर को, वर उमा वर को
जीतकर डर को, ले उठा सर को
साध ले सुर को, छिपा ले गुर को
बचा ले घर को, दरीचे-दर को
३. सच को न तजिए, श्री राम भजिए
सदग्रन्थ पढ़िए, मत पंथ तजिए
पग को निरखिए, पथ भी परखिए
कोशिशें करिए, मंज़िलें वरिये
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९-३-२०२०

महिला दिवस

एक रचना
महिला दिवस
*
एक दिवस क्या
माँ ने हर पल, हर दिन
महिला दिवस मनाया।
*
अलस सवेरे उठी पिता सँग
स्नान-ध्यान कर भोग लगाया।
खुश लड्डू गोपाल हुए तो
चाय बनाकर, हमें उठाया।
चूड़ी खनकी, पायल बाजी
गरमागरम रोटियाँ फूली
खिला, आप खा, कंडे थापे
पड़ोसिनों में रंग जमाया।
विद्यालय से हम,
कार्यालय से
जब वापिस हुए पिताजी
माँ ने भोजन गरम कराया।
*
ज्वार-बाजरा-बिर्रा, मक्का
चाहे जो रोटी बनवा लो।
पापड़, बड़ी, अचार, मुरब्बा
माँ से जो चाहे डलवा लो।
कपड़े सिल दे, करे कढ़ाई,
बाटी-भर्ता, गुझिया, लड्डू
माँ के हाथों में अमृत था
पचता सब, जितना जी खा लो।
माथे पर
नित सूर्य सजाकर
अधरों पर
मृदु हास रचाया।
*
क्रोध पिता का, जिद बच्चों की
गटक हलाहल, देती अमृत।
विपदाओं में राहत होती
बीमारी में माँ थी राहत।
अन्नपूर्णा कम साधन में
ज्यादा काम साध लेती थी
चाहे जितने अतिथि पधारें
सबका स्वागत करती झटपट।
नर क्या,
ईश्वर को भी
माँ ने
सोंठ-हरीरा भोग लगाया।
*
आँचल-पल्लू कभी न ढलका
मेंहदी और महावर के सँग।
माँ के अधरों पर फबता था
बंगला पानों का कत्था रँग।
गली-मोहल्ले के हर घर में
बहुओं को मिलती थी शिक्षा
मैंनपुरी वाली से सीखो
तनक गिरस्थी के कुछ रँग-ढंग।
कर्तव्यों की
चिता जलाकर
अधिकारों को
नहीं भुनाया।
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