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शनिवार, 19 सितंबर 2020

गीत - हम वही हैं

गीत
हम वही हैं
*
हम वही हैं,
यह न भूलो
झट उठो आकाश छू लो।
बता दो सारे जगत को
यह न भूलो
हम वही है।
*
हमारे दिल में पली थी
सरफरोशी की तमन्ना।
हमारी गर्दन कटी थी
किंतु
किंचित भी झुकी ना।
काँपते थे शत्रु सुनकर
नाम जिनका
हम वही हैं।
कारगिल देता गवाही
मर अमर
होते हमीं हैं।
*
इंकलाबों की करी जयकार
हमने फेंककर बम।
झूल फाँसी पर गये
लेकिन
न झुकने दिया परचम।
नाम कह 'आज़ाद', कोड़े
खाये हँसकर
हर कहीं हैं।
नहीं धरती मात्र
देवोपरि हमें
मातामही हैं।
*
पैर में बंदूक बाँधे,
डाल घूँघट चल पड़ी जो।
भवानी साकार दुर्गा
भगत के
के संग थी खड़ी वो।
विश्व में ऐसी मिसालें
सत्य कहता हूँ
नहीं हैं।
ज़िन्दगी थीं या मशालें
अँधेरा पीती रही
रही हैं।
*
'नहीं दूँगी कभी झाँसी'
सुनो, मैंने ही कहा था।
लहू मेरा
शिवा, राणा, हेमू की
रग में बहा था।
पराजित कर हूण-शक को
मर, जनम लेते
यहीं हैं।
युद्ध करते, बुद्ध बनते
हमीं विक्रम, 'जिन'
हमीं हैं।
*
विश्व मित्र, वशिष्ठ, कुंभज
लोपामुद्रा, कैकयी, मय ।
ऋषभ, वानर, शेष, तक्षक
गार्गी-मैत्रेयी
निर्भय?
नाग पिंगल, पतंजलि,
नारद, चरक, सुश्रुत
हमीं हैं।
ओढ़ चादर रखी ज्यों की त्यों
अमल हमने
तही हैं।
*
देवव्रत, कौंतेय, राघव
परशु, शंकर अगम लाघव।
शक्ति पूजित, शक्ति पूजी
सिय-सती बन
जय किया भव।
शून्य से गुंजित हुए स्वर
जो सनातन
हम सभी हैं।
नाद अनहद हम पुरातन
लय-धुनें हम
नित नयी हैं।
*
हमीं भगवा, हम तिरंगा
जगत-जीवन रंग-बिरंगा।
द्वैत भी, अद्वैत भी हम
हमीं सागर,
शिखर, गंगा।
ध्यान-धारी, धर्म-धर्ता
कम-कर्ता
हम गुणी हैं।
वृत्ति सत-रज-तम न बाहर
कहीं खोजो,
त्रय हमीं हैं।
*
भूलकर मत हमें घेरो
काल को नाहक न टेरो।
अपावन आक्रांताओं
कदम पीछे
हटा फेरो।
बर्फ पर जब-जब
लहू की धार
सरहद पर बही हैं।
कहानी तब शौर्य की
अगणित, समय ने
खुद कहीं हैं।
*
हम वही हैं,
यह न भूलो
झट उठो आकाश छू लो।
बता दो सारे जगत को
यह न भूलो
हम वही है।
*
जय हिंद
जय भारत
वन्दे मातरम्
भारत माता की जय
*
१९-९-२०१६

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

संस्मरण : सीख - महेश सोनी

संस्मरण : सीख                                                                                                                                                                                     महेश सोनी 

एक दिन, मेरे पिता ने हलवे से भरे २ कटोरे ,मेज़ पर रखे। एक के ऊपर २ बादाम थे, जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था।      फिर उन्होंने मुझे हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा, क्योंकि उन दिनों तक हम गरीबों के घर बादाम आना मुश्किल था। मैंने २ बादाम वाले कटोरे को चुना!  मैं अपने बुद्धिमान विकल्प / निर्णय पर खुद को बधाई दे रहा था, और जल्दी जल्दी मुझे मिले २ बादाम हलवा खा रहा था परंतु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था, जब मैंने देखा कि की मेरे पिता वाले कटोरे के नीचे ४ बादाम छिपे थे!

बहुत पछतावे के साथ, मैंने अपने निर्णय में जल्दबाजी करने के लिए खुद को डाँटा। मेरे पिता मुस्कुराए और मुझे यह याद रखना सिखाया कि आपकी आँखें जो देखती हैं वह हरदम सच नहीं हो सकता, उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ की आदत की अपनी आदत बना लेते हैं तो आप जीत कर भी हार जाएंगे।

अगले दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे से भरे २  कटोरे  टेबल पर रक्खे एक कटोरा के शीर्ष पर २ बादाम और दूसरा कटोरा जिसके ऊपर कोई बादाम नहीं था। फिर से उन्होंने मुझे अपने लिए कटोरा चुनने को कहा। इस बार मुझे कल का संदेश याद था, इसलिए मैंने शीर्ष पर बिना किसी बादाम कटोरी को चुना परंतु मेरे आश्चर्य करने के लिए इस बार इस कटोरे के नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था! 

मेरे पिता ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, "मेरे बच्चे, आपको हमेशा अनुभवों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी, जीवन आपको धोखा दे सकता है या आप पर चालें खेल सकता है स्थितियों से कभी भी ज्यादा परेशान या दुखी न हों, बस अनुभव को एक सबक अनुभव के रूप में समझें, जो किसी भी पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

तीसरे दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे से भरे २ कटोरे रखे। पहले २दिन की ही तरह, एक कटोरे के ऊपर २ बादाम, और दूसरे के शीर्ष पर कोई बादाम नहीं। मुझे उस कटोरे को चुनने के लिए कहा जो मुझे चाहिए था लेकिन इस बार, मैंने अपने पिता से कहा, पिताजी, आप पहले चुनें, आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं । आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वही चुनेंगे।

मेरे पिता मेरे लिए खुश थे। उन्होंने शीर्ष पर २ बादाम के साथ कटोरा चुना, लेकिन जैसा कि मैंने अपने  कटोरे का हलवा खाया!  कटोरे के हलवे के एकदम नीचे ८ बादाम और थे। मेरे पिता मुस्कुराए और मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए, उन्होंने कहा मेरे बच्चे, तुम्हें याद रखना होगा कि, जब तुम भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हो, तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करेंगे। जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो, अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर आपके साथ भी हमेशा होती रहेंगी ।

शिक्षा:  बड़ों का सम्मान करते हुए उन्हें पहले मौका व स्थान देवें, बड़ों का आदर-सम्मान करोगे तो कभी भी खाली हाथ नही लौटोगे ।   "अनुभव व  दृष्टि का ज्ञान व विवेक के साथ सामंजस्य हो जाये बस यही सार्थक जीवन है।"

***

सरस्वती -वंदना अमरनाथ

 सरस्वती -वंदना अमरनाथ लखनऊ (उ प्र,)

(शिव छंद- 11मात्रिक, चरणांत रगण)
-------माता शारदे-------
हे माता शारदे!
मत मुझे बिसार दे।
मैं तेरा पुत्र हूँ
मुझको भी प्यार दे।।
हे माता शारदे!
मुझको आशीष दे
विद्या की सीख दे।
संचारित बुद्धि हो,
विवेक तू सींच दे।
अनगढ़ हूँ मातु! मैं,
हाथ रख, सँवार दे।।
हे माता शारदे!
छाया चीत्कार है।
बस हाहाकार है।
हुआ बुद्धि शून्य मैं ,
घिरा अंधकार है।
कुछ न सुझाई पड़े,
चीर अंधकार दे।
हे माता शारदे!
अज्ञानी मूढ़, मैं।
नासमझ , विमूढ़ मैं।
थक अब, मैं तो चुका,
तुझे ढूँढ -ढूँढ , मैं।
मेरी अज्ञानता,
मातु! अब बुहार दे।
हे माता शारदे!!
---------------,-------,,-

मैथिली : सरस्वती वंदना - कांता रॉय

मैथिली : सरस्वती वंदना कांता रॉय

जागो तुमि माँ सरस्वती
अज्ञानेर अंधोकारे
हारियेचे संसार
विद्या दिये तुलिये दाउ जगोत के
दाउ विश्व के तुमि गोती
जागो तुमि माँ सरस्वती
दुर्बुद्धिर प्रभाबे मानब
जाति डुबिए गिएचे
मुक्तो करो तोमार संतान के
निजेर शरोने दाउ मोति
जागो तुमि माँ सरस्वती
भक्ति दिये मोनर
शोक्ति दाउ बरदाने
तुमि दाउ वेद, तुमि दाउ पुराण
जगोत के बानिए दाउ बुद्धिमोती
जागो तुमि माँ सरस्वती
कर मध्ये कमंडले,
गलाय तोमार रुद्रे
श्वेतवस्त्रे पदमाशीनी भद्रे
भ्रष्टाचार उन्मीलिए विवेकमोति
जागो तुमि माँ सरस्वती

हिंदी की तस्वीर

 समस्या पूर्ति

'हिंदी की तस्वीर'
'हिंदी की तस्वीर' शब्दों का उपयोग करते हुए पद्य की किसी भी विधा में रचना टिप्पणी के रूप में प्रस्तुत करें।
*
हिंदी की तस्वीर के, अनगिन उजले पक्ष
जो बोलें वह लिख-पढ़ें, आम लोग, कवि दक्ष
*
हिदी की तस्वीर में, भारत एकाकार
फूट डाल कर राज की, अंग्रेजी आधार
*
हिंदी की तस्वीर में, सरस सार्थक छंद
जितने उतने हैं कहाँ, नित्य रचें कविवृंद
*
हिंदी की तस्वीर या, पूरा भारत देश
हर बोली मिलती गले, है आनंद अशेष
*
हिंदी की तस्वीर में, भरिए अभिनव रंग
उनकी बात न कीजिए, जो खुद ही भदरंग
*
हिंदी की तस्वीर पर अंग्रेजी का फेम
नौकरशाही मढ़ रही, नहीं चाहती क्षेम
*
हिंदी की तस्वीर में, गाँव-शहर हैं एक
संस्कार-साहित्य मिल, मूल्य जी रहे नेक
*

गीत: हरसिंगार मुस्काए

 गीत:

हरसिंगार मुस्काए
संजीव 'सलिल'
*
खिलखिलायीं पल भर तुम
हरसिंगार मुस्काए
अँखियों के पारिजात
उठें-गिरें पलक-पात
हरिचंदन देह धवल
मंदारी मन प्रभात
शुक्लांगी नयनों में
शेफाली शरमाए
परजाता मन भाता
अनकहनी कह जाता
महुआ तन महक रहा
टेसू रंग दिखलाता
फागुन में सावन की
हो प्रतीति भरमाए
पनघट खलिहान साथ,
कर-कुदाल-कलश हाथ
सजनी-सिन्दूर सजा-
कब-कैसे सजन-माथ?
हिलमिल चाँदनी-धूप
धूप-छाँव बन गाए
*
हरसिंगार पर्यायवाची: हरिश्रृंगार, परिजात, शेफाली, श्वेतकेसरी, हरिचन्दन, शुक्लांगी, मंदारी, परिजाता, पविझमल्ली, सिउली, night jasmine, coral jasmine, jasminum nitidum, nycanthes arboritristis, nyclan,

infinitheism की प्रेयर

infinitheism की प्रेयर आनंद कृष्ण *

PRAYER
Feeling thy presence
Feeling thy grace
Feeling thy radiance
You are my source of faith and strength
You are my path and destination
And I am always connected to You
Nothing of me and everything of You
Lead me higher ……………....
Lead me deeper …………..….
Lead me beyond ……….…….
Lead me to you ……………….
प्रार्थना
तेरे होने की अनुभूति मुझको होती है ।
तेरे अनुग्रह की प्रतीति मुझको होती है ।
तेरा दिव्य प्रकाश उतरता आता है तब-
तेरे चरणों से जब प्रीति मुझको होती है ।
तू मेरा विश्वास, और है शक्ति तू ही ।
तू ही पथ है, लक्ष्य और अनुरक्ति तू ही ।
सदा-सर्वदा से मैं तुझमें, और तू मुझमें-
तू ही मेरी तथता, और है भक्ति तू ही ।
मेरे प्रभु-! ले चल मुझको ऊंचाइयों तक ।
और मुझे ले चल मन की गहराइयों तक ।
मुझको, मुझसे परे हटा कर, ले चल-! ले चल-!!
और मुझे ले चल अपनी परछाइयों तक ।
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मूल अँग्रेजी में ये प्रेयर यहाँ सुनी जा सकती है : www.infinitheism.com/infiniprayer.html
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