कुल पेज दृश्य

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

नव गीत

नव गीत :
संजीव 'सलिल'
*
जीवन की जय बोल,
धरा का दर्द तनिक सुन...
*
तपता सूरज आँख दिखाता,
जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी अधिक हुई है,
नेह गल रहा.
हिम्मत तनिक न हार-
नए सपने फिर से बुन...
*
निशा उषा संध्या को
छलता सुख का चंदा.
हँसता है पर काम किसी के
आये न बन्दा
सब अपने में लीन,
तुझे प्यारी अपनी धुन...
*
महाकाल के हाथ
जिंदगी यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही
साँसों का मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर, रहे न हावी
कर कुछ सुन-गुन...
२०-४-२०१७
*

अरुण छंद

छंद सलिला:
अरुण छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति ५-५-१०
लक्षण छंद:
शिशु अरुण को नमन कर ;सलिल; सर्वदा
मत रगड़ एड़ियाँ मंज़िलें पा सदा
कर्म कर, ज्ञान वर, मन व्रती पारखी
एक दो एक पग अंत में हो सखी
उदाहरण:
१. प्रेयसी! लाल हैं उषा से गाल क्यों
मुझ अरुण को कहो क्यों रही टाल हो?
नत नयन, मृदु बयन हर रहे चित्त को-
बँधो भुज पाश में कहो क्या हाल हो?
२. आप को आप ने आप ही दी सदा
आप ने आप के भाग्य में क्या लिखा"
व्योम में मोम हो सोम ढल क्यों गया?
पाप या शाप चुक, कल उगे हो नया
३. लाल को गोपियाँ टोंकती ही रहीं
'बस करो' माँ उन्हें रोकती ही रहीं
ग्वाल थे छिप खड़े, ताक में थे अड़े
प्रीत नवनीत से भाग भी थे बड़े
घर गयीं गोपियाँ आ गयीं टोलियाँ
जुट गयीं हट गयीं लूटकर मटकियाँ
२०-४-२०१४
*********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

शास्त्र छंद

छंद सलिला:
शास्त्र छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु (तगण, जगण)
लक्षण छंद:
पढ़ो उठकर शास्त्र समझ-गुन कर याद
रचो सुमधुर छंद याद रख मर्याद
कला बीसी रखें हर चरण पर्यन्त
हर चरण में कन्त रहे गुरु लघु अंत
उदाहरण:
१. शेष जब तक श्वास नहीं तजना आस
लक्ष्य लाये पास लगातार प्रयास
शूल हो या फूल पड़े सब पर धूल
सम न हो समय प्रतिकूल या अनुकूल
२. किया है सच सचाई को ही प्रणाम
हुआ है सच भलाई का ही सुनाम
रहा है समय का ईश्वर भी गुलाम
हुआ बदनाम फिर भी मिला है नाम
३. निर्भय होकर वन्देमातरम बोल
जियो ना पीटो लोकतंत्र का ढोल
कर मतदान, ना करना रे मत-दान
करो पराजित दल- नेता बेइमान
*********************************************
विशेष टिप्पणी :
हिंदी के 'शास्त्र' छंद से उर्दू के छंद 'बहरे-हज़ज़' (मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन) की मुफ़र्रद बह्र 'मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईल' की समानता देखिये.
उदाहरण:
१. हुए जिसके लिए बर्बाद अफ़सोस
वो करता भी नहीं अब याद अफ़सोस
२. फलक हर रोज लाता है नया रूप
बदलता है ये क्या-क्या बहुरूपिया रूप
३. उन्हें खुद अपनी यकताई पे है नाज़
ये हुस्ने-ज़न है सूरत-आफ़रीं से
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)
२०-४-२०१४
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
2 शेयर

नव गीत

नव गीत :
संजीव 'सलिल'
*
जीवन की जय बोल,
धरा का दर्द तनिक सुन...
तपता सूरज आँख दिखाता,
जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी अधिक
हुई है, नेह गल रहा.
हिम्मत तनिक न हार-
नए सपने फिर से बुन...
निशा उषा संध्या को
छलता सुख का चंदा.
हँसता है पर काम किसी के
आये न बन्दा...
सब अपने में लीन,
तुझे प्यारी अपनी धुन...
महाकाल के हाथ
जिंदगी यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही
साँसों का मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर, रहे न हावी
कर कुछ सुन-गुन...
*

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
पीर पराई हो सगी, निज सुख भी हो गैर.
जिसको उसकी हमेशा, 'सलिल' रहेगी खैर..

सबसे करले मित्रता, बाँट सभी को स्नेह.
'सलिल' कभी मत किसी के, प्रति हो मन में बैर..
२०-४-२०१०
**************************

रविवार, 19 अप्रैल 2020

गीत - बबूल

गीत
बबूल
*
जब तन्हाई मिली गले तो
सहमा चुभा बबूल

दूर देश से आफत लाये
मस्ती के सौदागर
वायुयात्रा सस्ती, सस्ते होटल
भोगे जी भर
तापमान की जाँच हुई,
आँखों में झोंकी धूल
पोल खुली जब हुआ संक्रमण
भारी पड़ती भूल
रोक न पाए उचित समय क्यों
पूछे सहम बबूल

तब लीगी; अब तब्लीगी
हैं जन-जीवन के दुश्मन
सिर्फ मारना लक्ष्य हुआ
आहों-आँसू का वंदन
नहीं मानते विनय-नियम भी
मानव तन में दानव
ज्वर, अवरुद्ध कंठ में चुभते
जब प्राणांतक शूल
चाहे लेकिन बचा न पाये
होता दुखी बबूल

बेगैरत पत्थर बरसाते
थूक रहे डॉक्टर पर
देख नर्स निर्वसन हो रहे
शर्म देश को इन पर
बिन इलाज मरने दो
फूँको छिड़क तुरत पेट्रोल
कहता लेकिन कर न सके
मन मारे मौन बबूल
*
संजीव
१९-४-२०२०
९४२५१८३२४४

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
*
स्मित की रेखा अधर पर, लोढ़ा थामे हाथ।
स्वागत अद्भुत देखकर, लोढ़ा जी नत-माथ।।
*
है दिनेश सँग चंद्र भी, देख समय का फेर।
धूप-चाँदनी कह रहीं, यह कैसा अंधेर?
*
एटीएम में अब नहीं, रहा रमा का वास।।
खाली हाथ रमेश भी, शर्मा रहे उदास।
*
वास देव का हो जहाँ, दानव भागें दूर।।
शर्मा रहे हुजूर क्यों? तजिए अहं-गुरूर।
*
किंचित भी रीता नहीं, कभी कल्पना-कोष।
जीव तभी संजीव हो, जब तज दे वह रोष।।
*
दोहा उनका मीत है, जो दोहे के मीत।
रीत न केवल साध्य है, सदा पालिए प्रीत।।
*
असुर शीश कट लड़ी हैं, रामानुज को देख।
नाम लड़ीवाला हुआ, मिटी न लछमन-रेख?
*
आखा तीजा में बिका, सोना सोनी मस्त।
कर विनोद खुश हो रहे, नोट बिना हम त्रस्त।।
*
अवध बसे या बृज रहें, दोहा तजे न साथ।
दोहा सुन वर दें 'सलिल' खुश हो काशीनाथ।।
*
दोहा सुरसरि में नहा, कलम कीजिए धन्य।
छंद-राज की जय कहें, रच-पढ़ छंद अनन्य।।
*
शैल मित्र हरि ॐ जप, काट रहे हैं वृक्ष।
श्री वास्तव में खो रही, मनुज हो रहा रक्ष।।
*
बिरज बिहारी मधुर है, जमुन बिहारी मौन।
कहो तनिक रणछोड़ जू, अटल बिहारी कौन?
*
पंचामृत का पान कर, गईं पँजीरी फाँक।
संध्या श्री ऊषा सहित, बगल रहे सब झाँक।।
*
मगन दीप सिंह देखकर, चौंका सुनी दहाड़।
लौ बेचारी काँपती, जैसे गिरा पहाड़।।
*
श्री धर रहे प्रसाद में, कहें चलें जजमान।
विष्णु प्रसाद न दे रहे, संकट में है जान।।
*
१९.४.२०१८
श्रीधर प्रसाद द्विवेदी
सुरसरि सलिल प्रवाह सम, दोहा सुरसरि धार।
सहज सरल रसमय विशद, नित नवरस संचार।।
*
शैलमित्र अश्विनी कुमार
आधा वह रसखान है,आधा मीरा मीर।
सलिल सलिल का ताब ले,पूरा लगे कबीर।
*
कवि ब्रजेश
सुंदर दोहे लिख रहे, भाई सलिल सुजान।
भावों में है विविधता, गहन अर्थ श्रीमान।।
*
रमेश शर्मा
लिखें "सलिल" के नाम से, माननीय संजीव!
छंदशास्त्र की नींव हैं, हैं मर्मज्ञ अतीव!!
*

मुक्तिका

मुक्तिका
*
वतन परस्तों से शिकवा किसी को थोड़ी है
गैर मुल्कों की हिमायत ही लत निगोड़ी है
*
भाईचारे के बीच मजहबी दखल क्यों हो?
मनमुटावों का हल, नाहक तलाक थोड़ी है
*
साथ दहशत का न दोगे, अमन बचाओगे
आज तक पाली है, उम्मीद नहीं छोड़ी है
*
गैर मुल्कों की वफादारी निभानेवालों
तुम्हारे बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
*
है दुश्मनों से तुम्हें आज भी जो हमदर्दी
तो ये भी जान लो, तुमने ही आस तोड़ी है
*
खुदा न माफ़ करेगा, मिलेगी दोजख ही
वतनपरस्ती अगर शेष नहीं थोड़ी है
*
जो है गैरों का सगा उसकी वफा बेमानी
हाथ के पत्थरों में आसमान थोड़ी है
*
१९-४-२०१७

ध्यान विधि



*ध्यान विधि :-*
















१) *कपालभांती:-* नासापुटों से जोर जोरसे उच्छ्वास बाहर फेंकना!
२) *हुंकारजाप:-* जोर जोरसे उच्छास बाहर फेंकते हुए हुं कार के जरिए मुलाधार पर कि चोट करना!
३) *भ्रुकुटिध्यान:-* जगी हुई उर्जाको भ्रुकुटियोंके बीच धारण करके चित्त प्रफुल्लित करते हुए सर्वव्यापि निर्गुण निराकार आनंदमय परमात्माका ध्यान करना!
४) *अहोभाव:-* आनंदित होकर मन को आल्हादित करते हुए परमात्माका अहोभावपुर्वक अभिवादन करना