कुल पेज दृश्य

शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर संगठन

ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर  
[जगवाणी हिंदी हेतु समर्पित साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक संस्थाओं का स्वैच्छिक अव्यवसायिक परिसंघ]
o साहित्य संगम संस्थान इंदौर o अभियान जबलपुर o सृजन पथ जबलपुर o  
कार्यालय : समन्वय, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
चलभाष- ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४, ईमेल- salil.sanjiv@gmail.com 
=======
दिशादर्शन
आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी 
प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव
पूर्णिमा बर्मन, लखनऊ  
डॉ. सुरेश कुमार वर्मा 
इंजी. अमरेन्द्र नारायण 
डॉ. इला घोष 
डॉ. बिपिन बिहारी ब्योहार 
डॉ. अरुण श्रीवास्तव 'समर्थगुरु' 
पूर्णेंदु कुमार सिंह, शहडोल 
*
संयोजक-संचालक: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कार्यपालन प्रभारी: मन्वन्तर वर्मा 
*
मुख्यालय महासचिव: छाया सक्सेना ७०२४२८५७८८ chhayasaxena2508@gmail.com 
संगठन महासचिव: 
वित्त महासचिव:
प्रचार महासचिव:
केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य ( सभी प्रकोष्ठ प्रभारी, सभी क्षेत्र प्रभारी, सभी विधा अधिष्ठाता)
 सहयोगी संस्थाएँ:
अभियान
अध्यक्ष: बसंत शर्मा ९४७९३५६७०२, ९७५२४१७९०७,  सचिव मिथलेश बड़गैयाँ२४२५९४२
गीतकार साहित्यकार मंच एटा 
संयोजक संजीव तनहा 

    त्रीय समिति: (क्षेत्राध्यक्ष, सहक्षेत्राध्यक्ष, उप क्षेत्राध्यक्ष, क्षेत्रीय सचिव, क्षेत्रीय सह सचिव, क्षेत्रीय उपसचिव, कार्यकारिणी सदस्य प्रति इकाई १) 
*
प्रकोष्ठ समिति भाषावार: (अधिष्ठाता, सहायक अधिष्ठाता, उपअधिष्ठाता, व्याख्याता, शिक्षक)
हिंदी, बुंदेली, बघेली, छत्तीसगढ़ी, मगही, अंगिका, बज्जिका, मैथिली, मागधी, भोजपुरी, अवधी, बृज, कन्नौजी, मिर्जापुरी, बैसवाड़ी, 
पचेली: विजय बागरी ०९६६९२५१३१९, अखिलेश खरे 'अखिल' ९७५२८६३३६९   
निमाड़ी: सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' ९८९३२६६०१४ 
*
प्रकोष्ठ समिति विषय / शाखावार: (अधिष्ठाता, सहायक अधिष्ठाता, उपअधिष्ठाता, व्याख्याता, शिक्षक)
रामकाव्य: डॉ. नीलमणि दुबे शहडोल ९४०७३२४६५० 
यांत्रिकी प्रकोष्ठ- प्रो. शोभित वर्मा ९१९९९३२०१११९ 
*
प्रकोष्ठ समिति विधावार: (अधिष्ठाता, सहायक अधिष्ठाता, उपअधिष्ठाता, व्याख्याता, शिक्षक)
गीत: जयप्रकाश श्रीवास्तव ०७६१ २४२६७८८, ७८६९१९३९२७ 
*
इकाई (अध्यक्ष, कार्यकारी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, सह सचिव, कार्यकारिणी सदस्य २)- न्यूनतम ११ सदस्य बनाने पर। 
जबलपुर 
भोपाल- इंजी. अरुण अर्णव खरे  
नागपुर- वसुंधरा राय ९६२३६९२२५५ 
देहरादून- आभा सक्सेना ९४१०७०६२०७  
मेरठ- आदर्शिनी श्रीवास्तव 
पंचकूला- चंद्रकांता अग्निहोत्री ९८७६६५०२४८  
गुरुग्राम- श्यामल सिन्हा ०१२४ ४३७७७७३, ९३१३१११७१०९ 
कोटा डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ७७२८८२४८१७, ०७४४ २४२४८१८, ८२०९४८३४७७ 
हैदराबाद- कालिपद प्रसाद ९६५७९२७९३१ 
सिरोही- छगनलाल गर्ग- ९४६१४४९६२०
नई दिल्ली- त्रिभवन कॉल ९८७११९०२५६, प्रेम बिहारी मिश्र ९७११८६०५१९, ओमप्रकाश शुक्ल ९७१७६३४६३१, ९६५४४७७११२, नीता सैनी ८५२७१८९२८९, 
नोएडा- रीता सिवानी ९६५०५३८४७    
लखनऊ- डॉ. हरि फैजाबादी ९४५०४८९७८९  
सहारनपुर- रामेश्वर प्रसाद सारस्वत ९५५७८२८९५० 
डूंगरपुर राज.- विनोद जैन 'वाग्वर' ९६४९९७७८९८१ 
डाल्टनगंज झारखंड श्रीधर प्रसाद द्विवेदी ०७३५२९१८०४४
रांची झारखंड- हिमकर श्याम ८६०३१७१७१०  
भिवंडी- अरुण शर्मा ९६८९३०२५७२, ९०२२०९०३८७   
इंदौर- 
उज्जैन
शिवपुरी, 
दतिया 
डबरा 
ग्वालियर 
रीवा 
कटनी 
उमरिया 
शहडोल 
सिवनी- राम कुमार चतुर्वेदी ९४२५८८८८७६, ७००००४१६१० 
नरसिंगपुर 
मंडला 
दमोह 
सागर 
होशंगाबाद 

भिलाई- शुचि भवि ९८२६८०३३९४ 
ईटानगर- सरस्वती कुमारी ७००५८८४०४६


विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर 

[जगवाणी हिंदी हेतु समर्पित साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक संस्थाओं का स्वैच्छिक अव्यवसायिक परिसंघ]

लोक मानस में लोकभाषा हिंदी के प्रति सम्मान भाव जगाने तथा अंग्रेजी, उर्दू या अन्य भाषाओँ-बोलिओं के अन्धाकर्षण या राजनैतिक द्वेष को समाप्त कर हिंदी भाषा की तकनीकी अभिव्यक्ति क्षमता और रोजगार क्षमता मे वृद्धि, विदेशों मे हिंदी के प्रचार-प्रसार-शिक्षण के दूरगामी लक्ष्यों को लेकर १९७४ में देश के ख्यातिलब्ध चिंतक, दर्शनशास्त्री तथा राजनेता डॉ. राम जी सिंह भागलपुर के मुख्यातिय्ह्य तथा प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक ब्योहार राजेन्द्र सिंह जी की अध्यक्षता में  "समन्वय" संस्था की स्थापना संस्कारधानी जबलपुर में शहर कोतवाली के निकट, राजा सागर मार्ग स्थित सुन्दरलाल तहसीलदार (महीयसी महादेवी वर्मा जी के परनाना) के बाड़े में स्थित राज बहादुर वर्मा जेल अधीक्षक के निवास पर की गयी। संस्था के उद्देश्य राजभाषा हिंदी के व्याकरण और छंद-शास्त्र का अध्ययन, किशोरों और युवाओं में सत्साहित्य के प्रति अभिरुचि जाग्रत करना, सांप्रदायिक व जातीय सद्भाव तथा राष्ट्रीयता को प्रोत्साहित करना, दहेज निषेध, आदर्श विवाह कराना, बाल तथा प्रौढ़ शिक्षा आदि थे। समन्वय की नवलेखन गोष्ठी का श्री गणेश ख्यात साहित्यकार रामेश्वर शुक्ल जी अंचल कि अध्यक्षता में किया गया जिसके माध्यम से नगर के कई किशोरों और तरुणों ने अपनी अभिव्क्तियों को तराशा-संवारा।  



khanjan

खंजन 
भारतीय साहित्य के एक चिरपरिचित और उपमेय पक्षी खंजक को खिंडरिच, खंजरीट, खंडलिच, खड़इंच (अवध), पुचुक चिरैया (छ.ग.) आदि नामों से भी पुकारते हैं। यह मोटासिलिडी (Motacillidae) कुल के मोटासिला (motacilla) वर्ग (genus) का पक्षी है जिसे अंग्रेजीमें वैगटेल कहते हैं। रंगरूप और स्वभाव में भेद के अनुसार इसकी चार जातियां देश में पाई जाती हैं।यह भारत का बहुत प्रसिद्ध पक्षी है जो जाड़ों में उत्तर की ओर से आकर सारे देश में फैल जाता है और गरमी आरंभ होते ही शीत प्रदेशों को लौट जाता है। यह छोटा सा चंचल पक्षी है। इसकी लंबाई ७ से ९ इंच तक होती है। देह लंबी तथा पतली होती है। यह पानी के किनारे बैठा अपनी पूँछ बराबर हिलाता रहता है। इसके नेत्र हर समय चंचल रहते हैं जिसके कारण भारतीय कवि नेत्रों की उपमा खंजन से दिया करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी मानस में लिखा है :"खंजन मुंज तिरीछे नैननि।" 
खंजन लगभग ८ इंच लंबा और रंग में चितकबरा होता है। जाड़ों में इसके नर के सिर के पीछे एक काला चकत्ता रहता है जो गले के चारों ओर फैल जाता है। सिर का ऊपरी भाग और शरीर का निचला हिस्सा सफेद होता है जिसमें थोड़ी कंजई झलक रहती है। ऊपर का हिस्सा हल्का सिलेटी और डैने काले होते हैं। डैने के परों के किनारे सिलेटी और सफेद होते है ; दुम काली होती है जिसके दोनों बाहरी पंख सफेद रहते हैं। गर्मियों में ठुट्ढी से सीने तक का रंग काला हो जाता है। नर की अपेक्षा मादा धुमैली होती है और शरीर पर की चित्तियां चटक नहीं होती। यह जाड़ों में देश में प्राय: सर्वत्र पानी के किनारे दिखाई देता है। गरमियों में यह यहाँ से लौटकर कश्मीर तथा हिमालय की तराई में अपने घोंसले बनाकर रहता है और वहीं अंडे देता है। इस प्रकार ऋतु के अनुसार इतनी इतनी दूरियों का स्थानांतरण प्रकृति का एक आश्चर्यजनक चमत्कार ही कहा जाएगा। यह पानी के किनारे छोटे छोटे झुंडों में कीड़े मकोड़ों का शिकार करता रहता है और दौड़कर चलता है, अन्य पक्षियों की भाँति फुदकता नहीं। खतरे का आभास मिलने पर उड़ जाता है किंतु थोड़ी ही दूर के बाद पुन: जमीन पर उतर आता है। इसकी उड़ान लहराती हुई होती है और उड़ते समय चिट् चिट् जैसी बोली बोलता रहता है। सामान्यत: यह पक्षी दो-चार की ही टोली में देखा जाता है किंतु जब वे पहाड़ों की ओर लौटते हैं तो इनका एक बड़ा समूह बन जाता है।
खंजन लगभग ८ इंच लंबा और रंग में चितकबरा होता है। जाड़ों में इसके नर के सिर के पीछे एक काला चकत्ता रहता है जो गले के चारों ओर फैल जाता है। सिर का ऊपरी भाग और शरीर का निचला हिस्सा सफेद होता है जिसमें थोड़ी कंजई झलक रहती है। ऊपर का हिस्सा हल्का सिलेटी और डैने काले होते हैं। डैने के परों के किनारे सिलेटी और सफेद होते है ; दुम काली होती है जिसके दोनों बाहरी पंख सफेद रहते हैं। गर्मियों में ठुट्ढी से सीने तक का रंग काला हो जाता है। नर की अपेक्षा मादा धुमैली होती है और शरीर पर की चित्तियां चटक नहीं होती। यह जाड़ों में देश में प्राय: सर्वत्र पानी के किनारे दिखाई देता है। गरमियों में यह यहाँ से लौटकर कश्मीर तथा हिमालय की तराई में अपने घोंसले बनाकर रहता है और वहीं अंडे देता है। इस प्रकार ऋतु के अनुसार इतनी इतनी दूरियों का स्थानांतरण प्रकृति का एक आश्चर्यजनक चमत्कार ही कहा जाएगा।
सफेद खंजन- यह पानी के किनारे छोटे छोटे झुंडों में कीड़े मकोड़ों का शिकार करता रहता है और दौड़कर चलता है, अन्य पक्षियों की भाँति फुदकता नहीं। खतरे का आभास मिलने पर उड़ जाता है किंतु थोड़ी ही दूर के बाद पुन: जमीन पर उतर आता है। इसकी उड़ान लहराती हुई होती है और उड़ते समय चिट् चिट् जैसी बोली बोलता रहता है। सामान्यत: यह पक्षी दो चार की ही टोली में देखा जाता है किंतु जब वे पहाड़ों की ओर लौटते हैं तो इनका एक बड़ा समूह बन जाता है।
शबल खंजन- ममोला और कालकंठ भी कहते हैं। यह सफेद खंजन से कुछ बड़ा और उससे अधिक चितकबरा होता है। नर का सिर, ऊपरी सीना और शरीर का सारा ऊपरी भाग काला होता है। आँख के ऊपर एक चौड़ी पट्टी होती है जो नथुने से लेकर कान तक चली जाती है। डैने काले होते हैं, जिनके किनारे सफेद रहते हैं ; दुम काली होती है जिसके बाहर के दोनों पंखों का अधिकांश भाग सफेद होता है नीचे शरीर का सारा भाग सफेद होता है। नर और मादा रूपरंग में प्राय: एक से ही होते हैं। अंतर केवल इतना ही है कि मादा का काला भाग चटक काला न होकर कुछ रखीले भूरेपन को लिए होता है। यह भारतवर्ष का बारहमासी पक्षी है और अपना देश छोड़कर कहीं बाहर नहीं जाता। यह देश के प्राय: सभी स्थानों पर तथा हिमालय में भी पाँच हजार फुट की ऊंचाई तक देखने में आता है। यह अकेले या झुंड में नदियों, झीलों और तलाबों के किनारे कीड़े मकोड़े ढूंढ़ता फिरता है। इसकी प्राय: सभी आदतें सफेद खंजन जैसी ही होती हैं। घोसला बनाने के मामले में यह पक्षी अत्यंत लापरवाह है। पानी के निकट किसी भीटे या चट्टानों की सूराख में थोड़ा सा घासफूस रखकर ही मादा अंडा दे देती है।
भूरा खंजन- इसे खैरैया भी कहते हैं। यह जाड़ों में उत्तर और पश्चिम की ओर से आता है और हिमालय से लेकर धुर दक्षिण तक फैल जाता है। यह पानी के किनारे अकेले ही रहता है। यह अपनी लंबी दुम, निलछौंह स्लेटी पीठ और पीले पेट के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। जाड़ों में नर और मादा दोनों का ऊपरी भाग निलछौंह स्लेटी रहता है और उसमें हरछौंह झलक भी जान पड़ती है। दुम की जड़ के पास एक पिलछौंह हरा चकत्ता रहता है और आँख के ऊपर एक गंदी सफेद रेखा जाती है। डैने काले भूरे होते हैं जिसके किनारे पिलछौंह सफेद रहते हैं। दुम काली जिसके किनारे हरछौंह और ........ के तीन जोड़े पंख एकदम सफेद रहते हैं। ठुड्ढी गला और गर्दन का अगला भाग सफेद रहाता है। नीचे का सारा भाग पीला होता है जो दुम तक जाते जाते अधिक चटक हो जाता है। गर्मियों में नर की ठुड्ढी गला और गर्दन का अगला भाग काला हो जाता है। यह समान्यत: पहाड़ी झरनों के किनारे रहने वाला पक्षी है लेकिन इसे सभी प्रकार के जलाशयों के किनारे देखा जा सकता है। गर्मियों में यह पक्षी स्वदेश लौट जाता है; कुछ हिमालय में रह भी जाते हैं और वहीं मई जून में अंडे देते हैं।
पीला खंजन- इसे पिनाकी भी कहते हैं। यह ७ इंच का छोटा पक्षी है। जाड़ों में इसके नर के सिर का ऊपरी हिस्सा निलछौंह सिलेटी और पीठ का सारा भाग धुमैला जैतूनी भूरा रहता है। डैने गाढ़े भूरे रंग के होते हैं; दुम काली होती है। सिर के दोनों ओर एक चौड़ी कलछौंह पट्टी होती हैं। शरीर के नीचे का सारा हिस्सा पीला होता है। गर्मियों में नर के सिर के ऊपर का हिस्सा सिलेटी और पीठ का सारा भाग पिलछौंह हरा हो जाता है। सिर के दोनों ओर की पट्टी काली हो जाती है और नीचे का पीला रंग और चटक हो जाता है। मादा सामान्यत: नर के समान ही होती है अंतर यह है कि उसका सिर हरा और पीठ गाढ़ी जैतूनी भूरी होती है। शरीर के नीचे का पीला रंग हलका रहता है। यह खंजनों में सबसे सुंदर कहा जाता है। इस जाति का खंजन जाड़ों में अगस्त महीने के आसपास उत्तर और पश्चिम से आते हैं और जाड़ा समाप्त होने पर अप्रैल तक उसी ओर लौट जाते हैं। यह अकेला रहने वाला पक्षी है किंतु शाम को बहुत से पीले खंजन एकत्र होकर नरकुल आदि पर बसेरा करते हैं
इन सभी जातियों के खंजन ४ से ७ अंडे देते हैं।
आभार: विकीपीडिया 

शब्दसागर खंजन संज्ञा पुं॰ [सं॰] 


१. एक प्रसिद्ध पक्षी । खँड़रिच । विशेष—इसकी अनेक जातियाँ एशिया, युरोप, और अफ्रिका में अधिकता से पाई जाती हैं । इनमें से भारतवर्ष का खंजन मुख्य और असली माना जाता है । यह कई रग तथा आकार का होता है तथा भारत में यह हिमालय की तराई, आशाम और बरमा में अधिकता से होता है । इसका रंग बीच बीच में कहीं सफेद और कहीं काला होता है । यह प्रायः एक बालिश्त लंबा होता है और इसकी चोंच लाल और दुम हलकी काली झाई लिए सफेद और बहुत सुंदर होती है । यह प्रायः निर्जन स्थानों में और अकेला ही रहता है तथा जाड़े के आरंभ में पहाड़ों से नीचे उतर आता है । लोगों का विश्वास है कि यह पाला नहीं जा सकता, और जब इसके सिर पर चोटी निकलती है, तब यह छिप जाता है और किसी को दिखाई नहीं देता । यह पक्षी बहुत चंचल होता है इसलिये कवि लोग इससे नेत्रों की उपमा देते हैं । ऐसा प्रसिद्ध है कि यह बहुत कम और छिपकर रति करता है । कहीं कहीं लोग इसे 'खँडरिच' या 'ममोला' कहते हैं । पर्या॰—खंजखल । मुनिपुत्रक । भद्रनामा । रत्ननिधि । चर । काकछड़ । नीलकंठ । कणाटीर
२. खंडरिच के रंग का घोड़ा ।
३. 'गंगाधर' या 'गंगोदक' नामक छद का एक नाम ।
४. लँगड़ाते हुए चलना ।
अंग्रेज़ी में नाम : White Wagtail, वैज्ञानिक नाम : Motacilla alba
{L. motacilla, a wagtail,-cilla, hair, alba : L. albus, white.}
स्थानीय नाम : हिंदी में इसे धोबन भी कहा जाता है। पंजाब में इसे बालकटारा, बांग्ला में खंजन, आसाम में बालीमाटी और तिपोसी और मलयालम में वेल्ला वलकुलुक्की कहते हैं।
विवरण व पहचान : बड़े प्यारे और सुंदर दिखने वाले इस पक्षी का आकार गोरैयों के बराबर, लगभग 8 इंच लंबा और रंग में चितकबरा होता है। ये पतली होती हैं। इन्हें खड़रिच भी कहा जाता है। नर और मादा रूपरंग में प्राय: एक से ही होते हैं। नर के शरीर ऊपरी हिस्सा राख के रंग का और नीचे का सफेद होता है। सिर के ऊपर का हिस्सा काला होता है। इसकी छाती पर एक काला चन्द्राकार चित्ता भी रहता है। डैने काले होते हैं, जिन पर सफेद धारियां बनी होती हैं। किन्तु उनके सिरों पर सफेदी रहती है। यह पक्षी साल में कई बार अपना रंग बदलता है। जाड़ों में इसके नर के सिर के पीछे एक काला चकत्ता रहता है जो गले के चारों ओर फैल जाता है। सिर का ऊपरी भाग और शरीर का निचला हिस्सा सफेद होता है जिसमें थोड़ी कंजई झलक रहती है। ऊपर का हिस्सा हल्का सिलेटी और डैने काले होते हैं। डैने के परों के किनारे सिलेटी और सफेद होते हैं ; दुम काली होती है जिसके दोनों बाहरी पंख सफेद रहते हैं। गरमी आते ही नर का सारा वक्षस्थल चमकीला काला हो जाता है और मादा का धूमिल होती हैं और शरीर पर की चित्तियां चटक नहीं होती। आंख की पुतलियां भूरी और चोंच और पांव काले होते हैं। भौंहें सफेद होती हैं। जाड़े में, जब इनका प्रजनन काल नहीं होता, आगे का वक्ष पर का काला भाग सफेद हो जाता है। ठोड़ी और गला भी नीचे की तरह सफेद हो जाता है।
व्याप्ति : जाड़े में समस्त भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के घास वाले मैदानी इलाक़ों में पाया जाता है। हमने इसकी तस्वीरें राजगीर, नालंदा और गंगासागर में ली थी।
अन्य प्रजातियां : भारत में पाई जाने वाली इसकी प्रमुख क़िस्में निम्नलिखित हैं –
1. Forest Wagtail – Dendronanthus indicus
2. चितकबरी – ख़ूबसूरती के लिए मशहूर – Large Pied Wagtail – M. maderaspatensis इसे ममोला और कालकंठ भी कहते हैं। यह सफेद खंजन से कुछ बड़ा और उससे अधिक चितकबरा होता है। यह भारतवर्ष का बारहमासी पक्षी है और अपना देश छोड़कर कहीं बाहर नहीं जाता।
gray_wagtail3. भूरी – Grey Wagtail – M. cinerea इसे खैरैया भी कहते हैं। यह जाड़ों में उत्तर और पश्चिम की ओर से आता है और हिमालय से लेकर धुर दक्षिण तक फैल जाता है। यह अपनी लंबी दुम, निलछौंह स्लेटी पीठ और पीले पेट के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। गर्मियों में यह पक्षी स्वदेश लौट जाता है।


yellow wagtail4. पीली – Yellow Wagtail – Motacilla flava इसे पिल्किया भी कहते हैं। यह खंजनों में सबसे सुंदर कहा जाता है। इस जाति का खंजन जाड़ों में अगस्त महीने के आसपास उत्तर और पश्चिम से आते हैं और जाड़ा समाप्त होने पर अप्रैल तक उसी ओर लौट जाते हैं।
citrine wagtail (2)5. नीम्बू के रंग का - Citrine Wagtail – M. citreola
6. Eastern Yellow Wagtail – M. tschutchensis

आदत और वास : ये सितम्बर अक्तूबर में आ जाते हैं और मार्च-अप्रैल में वापस चले जाते है। काफ़ी चंचल होते हैं। घने जंगलों में ये शायद ही नज़र आएं। अधिकतर ये दिनभर जलाशयों के किनारे या खेत-खलिहानों, पगडंडियों पर या मानव-आवास के बीच, गोशाला, घर के आंगन में आदि स्थानों पर लगातार अपनी दुम ऊपर-नीचे हिलाते हुए इधर-उधर कीड़ों-मकोड़ों के लिए दौड़ लगाते रहते हैं। यह दौड़कर चलता है, अन्य पक्षियों की भाँति फुदकता नहीं। खतरे का आभास मिलने पर उड़ जाता है किंतु थोड़ी ही दूर के बाद पुन: जमीन पर उतर आता है। इसकी उड़ान लहराती हुई होती है और उड़ते समय ‘चिट् चिट्’ जैसी बोली बोलता रहता है। सामान्यत: यह पक्षी दो चार की ही टोली में देखा जाता है किंतु गरमी आते ही जब वे अपने स्थायी स्थानों पहाड़ों की ओर लौटते हैं तो इनका एक बड़ा समूह बन जाता है। गर्मी और बरसात ये पहाड़ों पर या हिमालय की घाटियों में बिताते हैं। वहीं अंडे देते है और शरद ऋतु में इनका फिर से मैदानों और आबादी वाले क्षेत्रों में आगमन होता है। इस प्रकार ऋतु के अनुसार इतनी इतनी दूरियों का स्थानांतरण प्रकृति का एक आश्चर्यजनक चमत्कार ही कहा जाएगा। इस पक्षी को धोबिन भी कहा जाता है। कपड़े धोती महिलाओं के बीच खुद भी मज़े से टहलता रहता है। यह अत्यंत मधुर तान छेड़ता है।
भोजन : यह छोटे-छोटे कीड़ों, मकोड़ों, मच्छरों और नम भूमि से इकट्ठा किए गए सूंड़ियों को अपना आहार बनाता है। कभी-कभी यह घास चरने वाले जानवरों द्वारा परेशान किए गए उड़ते कीड़े को भी पकड़ता है।
प्रजनन : वसंत के समाप्त होते ही ये पक्षी पहाड़ों की ओर चले जाते हैं। वहीं, हिमालय की गोद में पत्थरों के कोटरों में मई से जुलाई के बीच यह अपना प्यालानुमा घोंसला बनाता है। घोंसला सूखी घास, जड़ें, दूब, और इसी तरह के कर्कटों से बना होता है। प्रजनन काल में नर कई मिनटों तक सुरीले गीत गाता है। इसके अंडों की संख्या साधारणतः 4-6 होती है। अंडे चौड़े-अंडाकार होते हैं। छोटे किनारे की तरफ़ नुकीले होते हैं। नर और मादा दोनों मिलकर अंडों की देखभाल करते हैं। चूजों को प्रायः कीड़े खिलाए जाते हैं। नर और मादा द्वारा संतानों को पाल-पोस कर यह इस लायक कर दिया जाता है कि वे वर्षा के समाप्त होते ही नीचे उतर आएं।

संदर्भ

1. The Book of Indian Birds – Salim Ali

2. Popular Handbook of Indian Birds – Hugh Whistler

3. Birds of the Indian Subcontinent – Richard Grimmett, Carlos Inskipp, Tim Inskipp

4. Latin Names of Indian Birds – Explained – Satish Pande

5. Pashchimbanglar Pakhi – Pranabesh Sanyal, Biswajit Roychowdhury

6. हमारे पक्षी – असद आर. रहमानी

7. एन्साइक्लोपीडिया पक्षी जगत – राजेन्द्र कुमार राजीव

vedokt ratri sukta


यह वेदोक्त रात्रि सूक्त है
*
नमन​ रात्रि! करतीं प्रगट, देश काल जड़-जीव।
यथोचित​ दें कर्म-फल, जय माँ! करुणासींव।१।​
*
ओ​ देवी! हो अमर तुम, उछ-अधम में व्याप्त।
नष्ट​ करो अज्ञान को, ज्ञान-ज्योति 'थिर आप्त।२।
*
पराशक्ति रजनी करें, प्रगट उषा को नित्य।
नष्ट अविद्या-तिमिर हो, प्रगटे ज्ञान अनित्य।३।​
*
प्रगटें​ खुश हों रात्रि माँ!, ​कर सुख-निद्रा लीन।
ज्यों​ कोटर में खग हुए, मिश्रित अभय अदीन।४।
*
रजनी माँ के अंक में, शयन करें सुख-धार।
पशु-पक्षी, ग्रामीणजन, पथिक भूल व्यापार।५।
*
​वृकी वासना; पाप वृक, माँ राका! कर दूर।
मोक्ष​दायिनी! कर कृपा, ​दो निद्रा भरपूर।६।
*
उषा! रात्रि!! अज्ञान-तम, घेरे है चहुँ ओर। ​
​ऋणवत मुझसे दूर कर, दो; लूँ ज्ञान अँजोर।७।
*
धेनु​ दुधारू सदृश हो, रात्रि! रहो अनुकूल।
मिली कृपा हूँ अरिजयी, लो स्तोम-दुकूल।८। ​
​*
(​स्तोम​ = स्तुति)

समीक्षा

पुस्तक चर्चा:
समस्याओं को उकेर, उनके निदान सुझाता दोहा संग्रह: "उठने लगे सवाल"
चर्चाकार- सोनिया वर्मा
[पुस्तक विवरण: उठने लगे सवाल, दोहा संग्रह, राजपाल सिंह गुलिया, प्रथम संस्करण २०१८, पृष्ठ संख्या ९६, मूल्य २००/-,  अयन प्रकाशन १/२०, महरौली, नई दिल्ली ११००३०। चर्चाकार संपर्क: सोनिया वर्मा
जूनियर एम. आई . जी - ९१७, वीर सावरकर नगर  हीरापुर , रायपुर ४९२०९९ ( छ.ग.)
*
'उठने लगे सवाल' उत्सुकता व जिज्ञासा जगानेवाला नाम है। कैसे सवाल? किस-किस के मन में? और क्यों उठ रहे हैं? यही बात पाठक के मन में पुस्तक पढ़ने की प्रेरणा उत्पन्न करती है। 'उठने लगे सवाल' लोकप्रिय दोहाकार राजपाल सिंह गुलिया का दोहा संग्रह है। साहित्य में अपने मन की बात को कहने की बहुत-सी विधाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय विधा दोहा है। मात्र दो पंक्तियोंमें १३-११, १३-११ मात्राभार में प्रभावपूर्ण तरीक़े से अपनी बात कहने के लिए शब्द-संयम आवश्यक है। दोहा में मारक क्षमता उत्पन्न कर पाना ही दोहाकार की कसौटी है। तभी पाठक को दोहे में निहित रस की अनुभूति होकर मुख से वाह निकलती है। दोहा समाज की समस्याओं व निदान को आदिकाल से इंगित करता रहा है, कर रहा है और भविष्य में भी करता रहेगा। समसामयिक प्रभावी दोहाकार झज्जर (हरियाणा) के राजपाल सिंह गुलिया आरंभ में सैन्य सेवा में थे और अब अध्यापन कार्य से जुड़े हुए हैं।

गुलिया जी का दोहा संग्रह यह दर्शाता है कि कवि के मन में पारिवारिक समस्याओं, बढ़ते अलगाववाद, लूट-खसोट, चोरी, भ्रष्टाचार, धर्मनिरपेक्षता, पाखंडों, कृषि और कृषक से जुड़ी समस्याओं पर सवाल उठते हैं। बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्तियों और आतंकवाद की गतिविधियों में वृद्धि को देखते हुए कवि मन विचलित हो यह स्वाभाविक है पर उससे ज़्यादा तब आहत होता है, जब अपराधियों में कानून या सज़ा का भय भी न रहे। आक्रोशित कवि- मन स्वतः ही कह उठता है कि-
खौफ़ मौत का भी नहीं, मान रहे शैतान।
जिम्मा हर अपराध का, लेते सीना तान।।

राजनीति के दाव-पेंच समझना बहुत कठिन होता है। आम आदमी राजनैतिक दलों द्वारा किये जा रहे प्रचार और झूठे वादों में फँसकर बहुधा ग़लत फैसला कर बैठता है। कवि  समस्याओं पर सवाल मात्र नहीं उठाते बल्कि यथोचित सुझाव भी दोहों में ही देते हैं। जनतंत्र में सरकार जन-मत से बनती है, अगर जनता जागृत हो जाये तो फिर क्या कहने? समस्या और समस्या का सुझाव-
रैली भाषण घोषणा, नारे और प्रचार।
मत हथियाने के यही, हैं सारे हथियार।।

बन जाए सरकार तब, कोसो मत श्रीमान।
अभी समय है सोच कर, करो सभी मतदान।।

फूट डालने का काम करता है झूठ। लोग झूठे आरोपों पर मनमुटाव कर लेते हैं। यहाँ तक कि ऐसे शीत युद्ध बहुत लम्बे समय तक चलते रहते हैं। ऐसे में कवि मन सहसा ही कह उठता है कि-
निराधार आरोप पर, बात बढ़ाए कौन।
सबसे अच्छा झूठ का, उत्तर है बस मौन।।

जीवन की आधारभूत आवश्यकता भोजन है और भोजन मिलता है कृषक के अथक प्रयास से। कृषक किसी देश की रीढ़ की हड्डी के समान होते हैं पर इनकी दशा बहुत ख़राब है। जिसके कारण अधिकतर कृषक कृषि छोड़, कुछ अन्य कामकाज करने लगें हैं और जो बच गये उनकी स्थिति को दोहे में कुछ ऐसे बयां किया है कवि ने-
घटाटोप को देखकर, सोचे खड़ा किसान।
देखूँ सूखा खेत या, दरका हुआ मकान।।

किसान बारिश से परेशान हो या ख़ुश, समझ नहीं पाता है। ख़ुद की ग़लतियों से मनुष्य ने पर्यावरण को इतना दूषित कर दिया है कि पृथ्वी का प्रकोप अब अम्ल वर्षा, सूखा और अकाल आदि के रूप में सामने आ रहा है।पर्यावरण के सबसे अच्छे रक्षक हैं पेड़। मृदा, पानी और वातावरण सब नियंत्रित रहता है पेड़ के होने से। इस पर कवि मन सवाल करता है कि-
भीषण गर्मी पड़ रही, सूरज उगले आग।
बहुत ज़रूरी पेड़ हैं, मानव अब तो जाग।।

वायु प्रदूषण के साथ-साथ कवि ने जल प्रदूषण पर भी कई प्रश्न किये हैं। बढ़ते जल प्रदूषण के कारण नदियों का अस्तित्व भी ख़तरें में पड़ गया है-
मैली गंगा देखकर, उभरा यही सवाल।
आज भगीरथ देखते, होता बहुत मलाल।।

मनुष्य चाहे जैसा भी रहे, अपने परिवार के बारे में सोचता ही है।वर्तमान परिवेश में माँ-बाप की महत्ता घटती जा रही है, रिश्ते गौण हो गये हैं। माता-पित अपमान का घूँट पीकर रह जाते हैं, तब वह प्रसन्न होता है जिसकी संतानें नहीं हैं-
रिश्तों ने जब-जब किया, पगड़ी का अपमान।
गर्वित किस्मत पर हुआ, तब-तब निस्संतान।।

परिवार, समाज के कार्य और अपना दायित्व निर्वाह करते-करते मनुष्य की उम्र तो बढ़ती जाती है परंतु अपने सपने पूरे नहीं कर पाने का मलाल रह ही जाता है। अपने कार्य पूर्ण करने के लिए सुबह शाम काम, काम और बस काम ही करता है। कई बार ऐसी परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता है, जिसे हम पसंद नहीं करते-
नाम इसी का चाकरी, खटो सुबह और शाम।
आए गुस्सा देखकर, उनको करो सलाम।

चाह अधूरी ही रही, मनुआ रहा अधीर।
सपने पूरे कब हुए, पूरा हुआ शरीर।।

चापलूस लोगों का बोलबोला हर जगह रहता है। हर काम बहुत ही आसानी से निकाल लेते हैं ऐसे लोग। ज़िन्दगी की सच्चाई को बहुत ही सरल शब्दों में कवि ने कहा है कि-
लिखे महल की शान में, उसने सुंदर लेख।
टपक रही थी छत मगर, किया नहीं उल्लेख।।

प्रस्तुत संग्रह में गुलिया जी ने सरल और सधे हुए शब्दों में प्रभावशाली दोहे कहे हैं। यह दोहा संग्रह पठनीय व संग्रहणीय है।
*** 

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

दोहा दोहा नर्मदा, सड़क पर





दोहा सलिला निर्मला



दोहा दीप्त दिनेश



saptshloki durga hindi kavyanuvaad

नवरात्रि और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र (हिंदी काव्यानुवाद सहित)
*
नवरात्रि पर्व में माँ दुर्गा की आराधना हेतु नौ दिनों तक व्रत किया जाता है। रात्रि में गरबा व डांडिया रास कर शक्ति की उपासना तथा विशेष कामनापूर्ति हेतु दुर्गा सप्तशती, चंडी तथा सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती तथा चंडी पाठ जटिल तथा प्रचण्ड शक्ति के आवाहन हेतु है। लोक-मान्यता है कि इसके अनुष्ठान में अत्यंत सावधानी आवश्यक है, अन्यथा क्षति संभावित हैं। दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ करने में अक्षम भक्तों हेतु प्रतिदिन दुर्गा-चालीसा अथवा सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ का विधान है जिसमें सामान्य शुद्धि और पूजन विधि ही पर्याप्त है। त्रिकाल संध्या अथवा दैनिक पूजा के साथ भी इसका पाठ किया जा सकता है जिससे दुर्गा सप्तशती,चंडी-पाठ अथवा दुर्गा-चालीसा पाठ के समान पुण्य मिलता है।
कुमारी पूजन
नवरात्रि व्रत का समापन कुमारी पूजन से करते हैं। नवरात्रि के अंतिम दिन दस वर्ष से कम उम्र की ९ कन्याओं को माँ दुर्गा के नौ रूप (दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शांभवी, नौ वर्ष की दुर्गा, दस वर्ष की सुभद्रा) मान पूजन कर मिष्ठान्न, भोजन के पश्चात् व दान-दक्षिणा भेंट करें।
सप्तश्लोकी दुर्गा
निराकार ने चित्र गुप्त को, परा प्रकृति रच व्यक्त किया।
महाशक्ति ने आत्म रूप दे, जड़-चेतन संयुक्त किया।।
नाद शारदा, वृद्धि लक्ष्मी, रक्षा-नाश उमा-नव रूप-
विधि-हरि-हर हो सके पूर्ण तब, जग-जीवन जी​वंत किया।।
*
जनक-जननि की कर परिक्रमा, हुए अग्र-पूजित विघ्नेश।
आदि शक्ति हों सदय तनिक तो, बाधा-संकट रहें न लेश ।।
सात श्लोक दुर्गा-रहस्य को बतलाते, सब जन लें जान-
क्या करती हैं मातु भवानी, हों कृपालु किस तरह विशेष?
*
शिव उवाच-
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥

शिव बोले: 'सब कार्यनियंता, देवी! भक्त-सुलभ हों आप।
कलियुग में हों कार्य सिद्ध कैसे?, उपाय कुछ कहिये आप।।'
*
देव्युवाच-
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥

देवी बोलीं: 'सुनो देव! कहती हूँ इष्ट सधें कलि-कैसे?
अंबास्तुति बतलाती हूँ मैं, पाकर स्नेह तुम्हारा हृद से।।'
*
विनियोग-
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः​
अनुष्टप्‌ छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।

ॐ रचे दुर्गासतश्लोकी स्तोत्र मंत्र नारायण ऋषि ने
छंद अनुष्टुप महा कालिका-रमा-शारदा की स्तुति कर
श्री दुर्गा की प्रीति हेतु सतश्लोकी दुर्गापाठ नियोजित।।
*
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥

ॐ ज्ञानियों के चित को देवी भगवती मोह लेतीं जब।
बल से कर आकृष्ट महामाया भरमा देती हैं मति तब।१।
*
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजंतो:
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥२॥

माँ दुर्गा का नाम-जाप भयभीत जनों का भय हरता है,
स्वस्थ्य चित्त वाले सज्जन, शुभ मति पाते, जीवन खिलता है।
दुःख-दरिद्रता-भय हरने की माँ जैसी क्षमता किसमें है?
सबका मंगल करती हैं माँ, चित्त आर्द्र पल-पल रहता है।२।
*
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥३॥

मंगल का भी मंगल करतीं, शिवा! सर्व हित साध भक्त का।
रहें त्रिनेत्री शिव सँग गौरी, नारायणी नमन तुमको माँ।३।
*
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥४॥

शरण गहें जो आर्त-दीन जन, उनको तारें हर संकट हर।
सब बाधा-पीड़ा हरती हैं, नारायणी नमन तुमको माँ ।४।
*
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥५॥

सब रूपों की, सब ईशों की, शक्ति समन्वित तुममें सारी।
देवी! भय न रहे अस्त्रों का, दुर्गा देवी तुम्हें नमन माँ! ।५।
*
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा
रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥६॥

शेष न रहते रोग तुष्ट यदि, रुष्ट अगर सब काम बिगड़ते।
रहे विपन्न न कभी आश्रित, आश्रित सबसे आश्रय पाते।६।
*
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥७॥

माँ त्रिलोकस्वामिनी! हर कर, हर भव-बाधा।
कार्य सिद्ध कर, नाश बैरियों का कर दो माँ! ।७।
*
॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌॥
।श्री सप्तश्लोकी दुर्गा (स्तोत्र) पूर्ण हुआ।

गुरुवार, 11 अक्टूबर 2018

दोहे बात की बात में

दोहा सलिला दोहे बात ही बात में * बात करी तो बात से, निकल पड़ी फिर बात बात कह रही बात से, हो न बात बेबात * बात न की तो रूठकर, फेर रही मुँह बात बात करे सोचे बिना, बेमतलब की बात * बात-बात में बढ़ गयी, अनजाने ही बात किये बात ने वार कुछ, घायल हैं ज़ज्बात * बात गले मिल बात से, बन जाती मुस्कान अधरों से झरता शहद, जैसे हो रस-खान * बात कर रही चंद्रिका, चंद्र सुन रहा मौन बात बीच में की पड़ी, डांट अधिक ज्यों नौन? * आँखों-आँखों में हुई, बिना बात ही बात कौन बताये क्यों हुई, बेमौसम बरसात? * बात हँसी जब बात सुन, खूब खिल गए फूल ए दैया! मैं क्या करूँ?, पूछ रही चुप धूल * बात न कहती बात कुछ, रही बात हर टाल बात न सुनती बात कुछ, कैसे मिटें सवाल * बात काट कर बात की, बात न माने बात बात मान ले बात जब, बढ़े नहीं तब बात * दोष न दोषी का कहे, बात मान निज दोष खर्च-खर्च घटत नहीं, बातों का अधिकोष * बात हुई कन्फ्यूज़ तो, कनबहरी कर बात 'आती हूँ' कह जा रही, बात कहे 'क्या बात' *

दोहा

दोहा
नेता जी कर जोड़़ते, आया आम चुनाव।
कौआ रामायण पढ़े, ओढ़े सूप सुभाव।।
*

बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

मुक्तिका

एक रचना
(१४ मात्रिक , यति ५-९)
मापनी- २१ २, २२ १ २२
*
आँख में बाकी न पानी
बुद्धि है कैसे सयानी?
.
है धरा प्यासी न भूलो
वासना, हावी न मानी
.
कौन है जो छोड़ देगा
स्वार्थ, होगा कौन दानी?
.
हैं निरुत्तर प्रश्न सारे
भूल उत्तर मौन मानी
.
शेष हैं नाते न रिश्ते
हो रही है खींचतानी
.
देवता भूखे रहे सो
पंडितों की मेहमानी
.
मैं रहूँ सच्चा विधाता!
तू बना देना न ज्ञानी
.
संजीव, १०.१०.२०१८