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शनिवार, 18 नवंबर 2017

laghukatha: manvadhikar

लघुकथा:
मानवाधिकार 
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राजमार्ग से आते-जाते विभाजक के एक किनारे पर उसे अक्सर देखते हैं लोग। किसे फुर्सत है जो उसकी व्यथा-कथा पूछे। कुछ साल पहले वह अपने माता-पिता, भाई-बहिन के साथ गरीबी में भी प्रसन्न हुआ करता था। एक रात वे यहीं सो रहे थे कि एक मदहोश रईसजादे की लहराती कार सोते हुई ज़िन्दगियों पर मौत बनकर टूटी। पल भर में हाहाकार मच गया, जब तक वह जागा उसकी दुनिया ही उजड़ गयी थी। कैमरों और नेताओं की चकाचौंध १-२ दिन में और साथ के लोगों की हमदर्दी कुछ महीनों में ख़त्म हो गयी।
एक पडोसी ने कुछ दिन साथ में रखकर उसे बेचना सिखाया और पहचान के कारखाने से बुद्धि के बाल दिलवाये। आँखों में मचलते आँसू, दिल में होता हाहाकार और दुनिया से बिना माँगे मिलती दुत्कार ने उसे पेट पालना तो सीखा दिया पर जीने की चाह नहीं पैदा कर सके। दुनियावी अदालतें बचे हुओं को कोई राहत न दे पाईं। रईसजादे को पैरवीकारों ने मानवाधिकारों की दुहाई देकर छुड़ा दिया लेकिन किसी को याद नहीं आया निरपराध मरने वालों का मानवाधिकार।
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laghukatha: sachcha utsava

लघु कथा:
सच्चा उत्सव 
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उपहार तथा शुभकामना देकर स्वरुचि भोज में पहुँचा, हाथों में थमी प्लेटों में कहीं मुरब्बा दही-बड़े से गले मिल रहा था, कहीं रोटी पापड़ के गाल पर दाल मल रही थी, कहीं भटा भिन्डी से नैन मटक्का कर रहा था और कहीं इडली-सांभर को गुत्थमगुत्था देखकर डोसा मुँह फुलाये था।
इनकी गाथा छोड़ चले हम मीठे के मैदान में वहाँ रबड़ी के किले में जलेबी सेंध लगा रही थी, दूसरे दौने में गोलगप्पे आलूचाप को ठेंगा दिखा रहे थे।
जितने अतिथि उतने प्रकार की प्लेटें और दौने, जिस तरह सारे धर्म एक ईश्वर के पास ले जाते हैं वैसे ही सब प्लेटें और दौने कम खाकर अधिक फेंके गये स्वादिष्ट सामान को वेटर उठाकर बाहर कचरे के ढेर पर पहुँचा रहे थे।
हेलो-हाय करते हुए बाहर निकला तो देखा चिथड़े पहने कई बड़े-बच्चे और श्वान-शूकर उस भंडारे में अपना भाग पाने में एकाग्रचित्त निमग्न थे, उनके चेहरों की तृप्ति बता रही थी की यही है सच्चा उत्सव।
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laghukatha: gan rajya

लघुकथा: 
गणराज्य  
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व्यापम घोटाला समाचार पत्रों, दूरदर्शन, नुक्कड़ से लेकर पनघट हर जगह बना रहा चर्चा का केंद्र, बड़े-बड़ों के लिपटने के समाचारों के बीच पकड़े गए कुछ छुटभैये।
फिर आरम्भ हुआ गवाहों के मरने का क्रम लगभग वैसे ही जैसे श्री आसाराम बापू और अन्य इस तरह के प्रकरणों में हुआ।
सत्ताधारियों के सिंहासन डोलने और परिवर्तन के खबरों के बीच विश्व हिंदी सम्मेलन का भव्य आयोजन, चीन्ह-चीन्ह कर लेने-देने का उपक्रम, घोटाले के समाचारों की कमी, रसूखदार गुनहगारों का जमानत पर रिहा होना, समान अपराध के गिरफ्तार अन्य को जमानत न मिलना, सत्तासीनों के कदम अंगद के पैर की तरह जम जाना, समाचार माध्यमों से व्यापम ही नहीं छात्रवृत्ति और अन्य घोटालों की खबरों का विलोपित हो जाना, पुस्तक हाथ में लिए मैं कोशिश कर रहा हूँ किन्तु समझ नहीं पा रहा हूँ समानता, मौलिक अधिकारों और लोककल्याणकारी गणतांत्रिक गणराज्य का अर्थ।
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laghkaha: sahishnuta

लघुकथा:
सहिष्णुता  
देश की स्वतंत्रता के लिए बलिदान करने का दावा कर येन-केन प्रकारेण सत्ता पर काबिज रहने तक येन-केन-प्रकारेण विरोधियों और विपक्षियों को परेशान करने झूठे मुकदमे चलाने लोकनायक जय प्रकाश पर लाठी चलाने, आपात काल लगाने, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस प्रकरण में देश को गुमराह करने, शास्त्री जी के संदिग्ध निधन को छिपाने, सिखों को दंगों और कश्मीरी ब्राम्हणों को पलायन के बाद धोखा देनेवालों ने गत आम चुनाव में मिली पराजय से कोई सबक नहीं सीखा। विरोधी तो दूर अपने ही दाल के भीतर असहमति को न सह सकने वाले आब आरोप लगा रहे हैं प्रचुर जनमत से चुनी गयी सरकार पर असहिष्णुता का.
संसद ठप करने से मन नहीं भरा तो पुरस्कार वापिसी की नौटंकी करते समय यह तो सोच लें कि १९४७ से आपने देश के बहुसंखयक लोगों के प्रति कैसी सहिष्णुता दिखाई की उनकी जनसँख्या वृद्धि दर घट गयी और अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ने की दर बढ़ गयी.आप जिन्हें विरोधी दल के रूप में भी सहन नहीं कर पा रहे थे उन्हें जनता ने सत्ता सौंप कर परीक्षा आरम्भ कर दी है आपकी सहिष्णुता की और आप हो रहे हैं पूरी तरह असफल।

laghukatha andh moh

लघुकथा:
अंध मोह 
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मध्य प्रदेश बांगला साहित्य अकादमी रजत जयंती समारोह मुख्य अतिथि वक्ता के नाते भाषा के उद्भव, उपादेयता, स्वर-व्यंजन, लिपि के विकास,विविध भाषाओँ बोलिओं के मध्य सामंजस्य, जीवन में भाषा की भूमिका, भाषा से आजीविका, अनुवाद, लिप्यंतरण तथा स्थानीय, देशज व् राष्ट्रीय भाषा में मध्य अंतर्संबंध जैसे जटिल और नीरस विषय को सहज बनाते हुए हिंदी में अपनी बात पूरी की. महिलाएं, बच्चे तथा पुरुष रूचि लेकर सुनते रहे, उनके चेहरों से पता चलता था कि वे बात समझ रहे हैं, सुनना चाहते हैं.
मेरे बाद भागलपुर से पधारे ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता बांगला प्रोफ़ेसर ने बांगला में बोलना प्रारम्भ किया। विस्मय हुआ की बांगलाभाषी जनों ने हिंदी में कही बात मन से सुनी किन्तु बांगला वक्तव्य आरम्भ होते ही उनकी रूचि लगभग समाप्त हो गयी, आपस में बात-चीत होने लगी. वोिदवान वक्त ने आंकड़े देकर बताया कि गीतांजलि के कितने अनुवाद किस-किस भाषा में हुए. शरत, बंकिम, विवेकानंद आदि कासाहित्य किन-किन भाषाओँ में अनूदित हुआ किन्तु यह नहीं बता सके कि कितनी भाषाओँ का साहित्य बांगला में अनूदित हुआ.
कोई कितना भी धनी हो उसके कोष से धन जाता रहे किन्तु आये नहीं तो तिजोरी खाली हो ही जाएगी। प्रयास कर रहा हूँ कि बांगला भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाने लगे तो हम मूल रचनाओं को उसी तरह पढ़ सकें जैसे उर्दू की रचनाएँ पढ़ लेते हैं. लिपि के प्रति अंध मोह के कारण वे नहीं समझ पा रहे हैं मेरी बात का अर्थ
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laghukatha: saanson ka kaidee

लघु कथा:
साँसों का कैदी  
*
जब पहली बार डायलिसिस हुआ था तो समाचार मिलते ही देश में तहलका मच गया था। अनेक महत्वपूर्ण व्यक्ति और अनगिनत जनता अहर्निश चिकित्सालय परिसर में एकत्र रहते, डॉक्टर और अधिकारी खबरचियों और जिज्ञासुओं को उत्तर देते-देते हलाकान हो गए थे।
गज़ब तो तब हुआ जब प्रधान मंत्री ने संसद में उनके देहावसान की खबर दे दी, जबकि वे मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे। वस्तुस्थिति जानते ही अस्पताल में उमड़ती भीड़ और जनाक्रोश सम्हालना कठिन हो गया। प्रशासन को अपनी भूल विदित हुई तो उसके हाथ-पाँव ठन्डे हो गए। गनीमत हुई कि उनके एक अनुयायी जो स्वयं भी प्रभावी नेता थे, वहां उपस्थित थे, उन्होंने तत्काल स्थिति को सम्हाला, प्रधान मंत्री से बात की, संसद में गलत सूचना हेतु प्रधानमंत्री ने क्षमायाचना की।
धीरे-धीरे संकट टला.… आंशिक स्वास्थ्य लाभ होते ही वे फिर सक्रिय हो गए, सम्पूर्ण क्रांति और जनकल्याण के कार्यों में। बार-बार डायलिसिस की पीड़ा सहता तन शिथिल होता गया पर उनकी अदम्य जिजीविषा उन्हें सक्रिय किये रही। तन बाधक बनता पर मन कहता मैं नहीं हो सकता साँसों का कैदी।
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laghu katha: pinjra

लघुकथा 
पिंजरा  
*
परिंदे के पंख फ़ड़फ़ड़ाने से उनकी तन्द्रा टूटी, न जाने कब से ख्यालों में डूबी थीं। ध्यान गया कि पानी तो है ही नहीं है, प्यासी होगी सोचकर उठीं, खुद भी पानी पिया और कटोरी में भी भर दिया।
मन खो गया यादों में, बचपन, गाँव, खेत-खलिहान, छात्रावास, पढ़ाई, विवाह, बच्चे, बच्चों का बसा होना, नौकरी, विवाह और घर में खुद का अकेला होना। यह अकेलापन और अधिक सालने लगा जब वे भी चले गए कभी न लौटने के लिये। दुनिया का दस्तूर, जिसने सुना आया, धीरज धराया और पीठ फेर ली, किसी से कुछ घंटों में, किसी ने कुछ दिनों में।
अंत में रह गया बेटा, बहु तो आयी ही नहीं कि पोते की परीक्षा है, आज बेटा भी चला गया।
उनसे साथ चलने का अनुरोध किया किन्तु उन्हें इस औपचारिकता के पीछे के सच का अनुमान करने में देर न लगी, अनुमान सच साबित हुआ जब बेटे ने उनके दृढ़ स्वर में नकारने के बाद चैन की सांस ली।
चारों ओर व्याप्त खालीपन को भर रही थी परिंदे की आवाज़। 'बाई साब! कब लौं बिसूरत रैहो? उठ खें सपर ल्यो, मैं कछू बना देत हूँ। सो चाय-नास्ता कर ल्यो जल्दी से। जे आ गयी है जिद करके, जाहे सीखना है कछू, तन्नक बता दइयो' सुनकर चौंकी वह। देखा कामवाली के पीछे उसकी अनाथ नातिन छिप रही थी।
'कहाँ छिप रही है? यहाँ आ, कहते हुए हाथ बढ़ाकर बच्ची को खींच लिया अपने पास। क्या सीखेगी पूछा तो बच्ची ने इशारा किया हारमोनियम की तरफ। विस्मय से पूछा यह सीखेगी? अच्छा, सिखाऊँगी तुझे लेकिन तू क्या देगी मुझे?
सुनकर बच्ची ठिठकी कुछ सोचती रही फिर आगे बढ़कर दे दी एक पप्पी। पानी पीकर गा रही थी चिड़िया और मुस्कुरा रही बच्ची के साथ अब उन्हें घर नहीं लग रहा था पिंजरा।
***

navgeet

नवगीत:  
संजीव 'सलिल'
मैं लड़ूँगा....
.
लाख दागो गोलियाँ
सर छेद दो
मैं नहीं बस्ता तजूँगा।
गया विद्यालय
न वापिस लौट पाया
तो गए तुम जीत
यह किंचित न सोचो,
भोर होते ही उठाकर
फिर नये बस्ते हजारों
मैं बढूँगा।
मैं लड़ूँगा....
.
खून की नदियाँ बहीं
उसमें नहा
हर्फ़-हिज्जे फिर पढ़ूँगा।
कसम रब की है
मदरसा हो न सूना
मैं रचूँगा गीत
मिलकर अमन बोओ।
भुला औलादें तुम्हारी
तुम्हें, मेरे साथ होंगी
मैं गढूँगा।
मैं लड़ूँगा....
.
आसमां गर स्याह है
तो क्या हुआ?
हवा बनकर मैं बहूँगा।
दहशतों के
बादलों को उड़ा दूँगा
मैं बनूँगा सूर्य
तुम रण हार रोओ ।
वक़्त लिक्खेगा कहानी
फाड़ पत्थर मैं उगूँगा
मैं खिलूँगा।
मैं लड़ूँगा.... 
.  

laghu katha aur laghu kathakar

लघु कथा और लघु कथाकार 
*
लघु कथा संबंधी जानकारी -
कृपया, अपने नगर के लघुकथाकारों के नाम और चलभाष/दूरभाष नीचे टिप्पणी में प्रस्तुत करें। आपके पास जो लघुकथा संकलन हों उनकी जानकारी निम्न क्रम में दें- पुस्तक का नाम,लघुकथाकार का नाम, ISBN क्रमांक, आवरण सजिल्द / पेपरबैक, बहुरंगी / एकरंगी / दोरंगी, आकार, पृष्ठ संख्या, मूल्य, प्रकाशक का नाम पता, लघुकथाकार का नाम- पता, चलभाष, ई मेल। यह जानकारी शोध छात्रों के लिए उपयोगी होगी।
जिलेवार लघु कथाकार-
जबलपुर
०१. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ०७६१ २४१११३१ / ९४२५१८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com, २. अशोक श्रीवास्तव 'सिफर' ९४२५१६४८९६, ३. कुँवर प्रेमिल ९३०१८२२७८२, ३. प्रदीप शशांक ९४२५८६०५४०, ४. धीरेन्द्र बाबू खरे ९४२५८६७६८४, ५. सुरेश तन्मय ९८९३२६६०१४, १५. रमेश सैनी, ६. रमाकांत ताम्रकार, ७. ओमप्रकाश बजाज, ८. सनातन कुमार बाजपेयी ९०७४३ ६४५१५, ९. १०. गीता गीत,
विजय किसलय, १०. दिनेश नंदन तिवारी, ११. १२. गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त, १३ सुरेंद्र सिंह सेंगर, १४. विजय बजाज, १६. प्रभात दुबे, १७. पवन जैन, १८. नीता कसार, १९. मधु जैन, २० शशि कला सेन, २१. प्रकाश चंद्र जैन, २२. अनुराधा गर्ग, २३. सुनीता मिश्र, २४. आशा भाटी, २५. राकेश भ्रमर, २६. २८ छाया त्रिवेदी, २९.रामप्रसाद अटल, ३०.अविनाश दत्तात्रेय कस्तूरे, ३१. अर्चना मलैया, ३२ बिल्लोरे, ३३. अरुण यादव, ३४. आशा वर्मा, ३५, मिथलेश बड़गैयां, ३६. सुरेंद्र सिंह पवार, ३७. मनोज शुक्ल, ३८ आचार्य भगवत दुबे, ३९. गार्गीशरण मिश्र ४०. विनीता श्रीवास्तव, ४१. डॉ. वीरेंद्र कुमार दुबे, ४२. राजेश पाठक प्रवीण,
***
लघु कथा साहित्य -
१९८६-
१. नेताजी की वापसी, बलराम, जयश्री प्रकाशन दिल्ली, क्राउन आकार, सजिल्द, पृष्ठ १०३, ६ व्यंग्य, ११ लघुकथाएँ, १४ छोटी कहानियाँ।
२.
२००४
१. गद्य सप्तक २, उमाशंकर मिश्र (सं), सजिल्द, बहुरंगी, २१.७ से. मी. x १३.७ से. मी., पृष्ठ १४३, मूल्य १५०/-, उद्योग नगर प्रकाशन ११ बी १३६ नेहरू नगर गाज़ियाबाद।
२.
२०१२-
१. पहचान, राधेश्याम पाठक, आवरण पेपरबैक , बहुरंगी, २१.५ से.मी. x १४.० से.मी., पृष्ठ १०८, मूलतः १५०/-, शब्दप्रवाह साहित्य मंच ए ९९ व्ही. डी. मार्केट उज्जैन ४५६००६ प्रकाशन दिल्ली, लेखक संपर्क औदुम्बर भवन एल आई जी ११-१४ सांदीपनि नगर उज्जैन ४५६००६, ९८२६८१६६१९।
२. निर्वाचित लघु कथाएं, अशोक भैया (सं), तृतीय संस्करण (प्रथम २००५, द्वितीय २००६), ISBN ८१-८२३५-०३१-x, पेपरबैक, बहुरंगी, पृष्ठ २५५, १०५/-, साहित्य उपक्रम प्रकाशन, ९६५४७३२१७४, संपादक संपर्क १८८२ सेक्टर ३ अर्बन एस्टेट करनाल १३२००१। ३. आधुनिक हिंदी लघुकथाएं, त्रिलोक सिंह ठकुरेला (सं),सजिल्द बहुरंगी, २२.५ से. मी. x १४.५ से.मी., पृष्ठ १०४, १५०/-, अरिहंत प्रकाशन राजू साड़ी के ऊपर, सोजती गेट जोधपुर, ०२९१२६५७५३०, संपादक संपर्क ९९ रेलवे चिकित्सालय के सामने, आबूरोड ३०७०२६, ९४६०७१४२६७, ०२९७४२२१४२२ ।
२०१३-
मुखौटों के पार, मो. मोईनुद्दीन अतहर, अयन प्रकाशन दिल्ली, isbn ९७८-७४०८-६५२-५, पृष्ठ ९६, मूल्य २००/- सजिल्द
- पत्रिका लघु कथा अभिव्यक्ति, संपादक मोहम्मद मोईनुद्दीन अतहर (अब स्वर्गीय), प्रकाशन बन्द,२००४ से २०१६ तक छपी।
२०१६-
१. हरियाणा से लघुकथाएँ : अशोक भाटिया (सं.), २. मधुदीप की ६६ लघुकथाएँ: उमेश महादोषी, ३. भगीरथ की ६६ लघुकथाएँ: मधुदीप, ४. बलराम अग्रवाल की ६६ लघुकथाएँ: मधुदीप (सं.), ISBN ९७८-९३-८४७१३-१६-४, सजिल्द, आकार २२.५X१५ से.मी., आवरण बहुरंगी, पृष्ठ २०८, मूल्य ५००/-, दिशा प्रकाशन १३८/१६ त्रिनगर दिल्ली ११००३५, ५. सतीश दुबे की ६६ लघुकथाएँ: मधुदीप (सं.), ६. कमल चोपड़ा की ६६ लघुकथाएँ: मधुदीप (सं.), ISBN ९७८-९३-८४७१३-२०-१, सजिल्द, आकार २२.५X१५ से.मी., आवरण बहुरंगी, पृष्ठ २७२, मूल्य ५००/-, दिशा प्रकाशन १३८/१६ त्रिनगर दिल्ली ११००३५, ७. अशोक भाटिया की ६६ लघुकथाएँ: मधुदीप (सं.), ८. सतीशराज पुष्करणा की ६६ लघुकथाएँ: मधुदीप (सं.), ९. मधुकान्त की ६६ लघुकथाएँ: मधुदीप (सं.), १०. चलें नीड़ की ओर: कान्ता राय (सं.), ११. बूँद बूँद सागर: जितेन्द्र जीतू, नीरज सुधांशु (सं.), १२. समसामयिक लघुकथाएँ, सं. त्रिलोकसिंह ठकुरेला, प्रथम संस्करण २०१६, ISBN ९७८-९३-८५५९३-८९-५, प्रकाशन राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर, पृष्ठ १४४, मूल्य २००/- ११ लघुकथाकारों की ११ रचनाएँ, चित्र, संक्षिप्त परिचय, १३. आँखों देखी लघुकथा: विकास मिश्र (सं.), १४. लघुकथा अनवरत: सुकेश साहनी-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ (सं.), १५. आदिम पुराकथाएँ (पुराकथा संकलन) वसन्त निरगुणे (सं.), १६. ज़ख्म,१५ संग्रह, विद्या लाल, वर्ष २०१६, पृष्ठ ८८, मूल्य ७०/-, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, बोधि प्रकाशन ऍफ़ ७७, सेक़्टर ९, मार्ग ११, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम, जयपुर ३०२००६, ०१४१ २५०३९८९, bodhiprakashan@gmail.com, रचनाकार संपर्क द्वारा श्री मिथलेश कुमार, अशोक नगर मार्ग १ ऍफ़, अशोक नगर, पटना २०, चलभाष ०९१६२६१९६३६, १७. अंदर एक समंदर, लघु कथा संग्रह, डॉ. सुरेश तन्मय, सजिल्द १०४ पृष्ठ, २२०/-, अयन प्रकाशन १/२० महरौली नयी दिल्ली, १८. एक पेग जिंदगी, पूनम डोगरा, लघुकथा संग्रह, प्रथम संस्करण २०१६, ISBN९७८-८१-८६८१०-५१-X, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी, पेपरबैक, पृष्ठ १३८, मूल्य२८०/-, समय साक्ष्य प्रकाशन १५, फालतू लाइन, देहरादून २४८००१, दूरभाष ०१३५ २६५८८९४, १९. बड़ा भिखारी, रमेश मनोहरा, ISBN ९७८-८१-७४०८-८८८-८ आवरण,सजिल्द, बहुरंगी, २२.५ से.मी. x १४.५ से.मी., अयन प्रकाशन दिल्ली, लेखक संपर्क शीतला गली, जावरा रतलाम ४५७२२६, ९७५२९३१४८१, २०. अनसुलझा प्रश्न, किशन लाल शर्मा, आवरण सजिल्द रंगीन, २२.५ से.मी. x १४.५ से.मी., पृष्ठ १०४, मूल्य २२०, अयन प्रकाशन दिल्ली, लेखक संपर्क १०३ रामस्वरूप कॉलोनी आगरा २८२०१०, ९७६०६१७००१। २१. आँखों देखी, विकास मिश्र (सं), पेपरबैक, ISBN १३-९७८-९३-८५१४६-३७-४ बहुरंगी, २०.५ से. मी. x १३.५ से.मी., पृष्ठ ८८, मूल्य १२०/-, उद्योग नगर प्रकाशन ६९५ न्यू कोटगांव, जी.टी.रोड गाज़ियाबाद २०१००८, ९८१८२४९९०२, २२. पथ का चुनाव, कांता रॉय, १३८ कहानियाँ, पृष्ठ १६५, ३९५/-,आकार २२.५ से.मी. X १४.५ से.मी., आवरण बहुरंगी, ज्ञान गीता प्रकाशन दिल्ली,
*

chhand bahar: 3

कार्य शाला
छंद-बहर दोउ एक हैं ३
*
मुक्तिका
चलें साथ हम 
(छंद- तेरह मात्रिक भागवत जातीय, अष्टाक्षरी अनुष्टुप जातीय छंद, सूत्र ययलग )
[बहर- फऊलुं फऊलुं फअल १२२ १२२ १२, यगण यगण लघु गुरु ]
*
चलें भी चलें साथ हम
करें दुश्मनों को ख़तम
*
न पीछे हटेंगे कदम
न आगे बढ़ेंगे सितम
*
न छोड़ा, न छोड़ें तनिक
सदाचार, धर्मो-करम
*
तुम्हारे-हमारे सपन
हमारे-तुम्हारे सनम
*
कहीं और है स्वर्ग यह
न पाला कभी भी भरम
***

शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

kirti chhand

छंद सलिला :  
संजीव
*
कीर्ति छंद
छंद विधान:
द्विपदिक, चतुश्चरणिक, मात्रिक कीर्ति छंद इंद्रा वज्रा तथा उपेन्द्र वज्रा के संयोग से बनता है. इसका प्रथम चरण उपेन्द्र वज्रा (जगण तगण जगण दो गुरु / १२१-२२१-१२१-२२) तथा शेष तीन दूसरे, तीसरे और चौथे चरण इंद्रा वज्रा (तगण तगण जगण दो गुरु / २२१-२२१-१२१-२२) इस छंद में ४४ वर्ण तथा ७१ मात्राएँ होती हैं.
उदाहरण:
१. मिटा न क्यों दें मतभेद भाई, आओ! मिलाएं हम हाथ आओ
आओ, न जाओ, न उदास ही हो, भाई! दिलों में समभाव भी हो.
२. शराब पीना तज आज प्यारे!, होता नहीं है कुछ लाभ सोचो
माया मिटा नष्ट करे सुकाया, खोता सदा मान, सुनाम भी तो.
३. नसीहतों से दम नाक में है, पीछा छुड़ाएं हम आज कैसे?
कोई बताये कुछ तो तरीका, रोके न टोके परवाज़ ऐसे.
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shabda salila

शब्द सलिला १- 
सैलाब या शैलाब?

*
सही शब्द ’सैलाब’ ही है -’शैलाब ’ नहीं।
’सैलाब’[ सीन,ये,लाम,अलिफ़,बे] -अरबी/फ़ारसी का लफ़्ज़ है, जो ’सैल’ और ’आब’ से बना है। ’सैल’ [अरबी लफ़्ज़] मानी बहाव और ’आब’ [फ़ारसी लफ़्ज़] मानी पानी सैलाब माने पानी का बहाव। हम इसका अर्थ अचानक आया पानी का बहाव ,जल-प्लावन या बाढ़ से लेते हैं।    
आब गई, आदर गया, नैनन गया सनेह। 
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देय।।    
सैल के साथ आब के अलिफ़ का वस्ल [ मिलन ] हो गया है। अत:, ’सैल आब ’ के बजाय ’सैलाब’ ही पढ़ते - बोलते है । हिन्दी में इसे आप ’दीर्घ सन्धि’ कहते हैं। ’सैल’ मानी ’बहाव’ अर्थात एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना।  इसी लफ़्ज़ से ’सैलानी’ बना है, वह जो निरन्तर सैर तफ़्रीह करते हुए एक जगह से दूसरी जगह जाता रहता है। 
आँसुओं की बाढ़ को सैल-ए-अश्क भी कहते हैं।
पानी बहने के बाद लौटता नहीं, एक बार जाने के बाद इज्जत भी फिर नहीं मिलती, इस समानता को मद्देनज़र रखकर कवि रहीम ने आब का प्रयोग निम्न दोहे में किया है। आब के पर्यायवाची 'पानी' का प्रयोग कर रहीम ने एक और दोहा कहा है- 
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून 
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून 
यहाँ 'पानी' का अर्थ मोती की चमक, मनुष्य की इज्जत और चूने के सूखने से है। किसी शब्द को किस तरह नए-नए अर्थ दिए जाते हैं, यह दोहा इसका उदहारण है। 
हिन्दी शब्द ’शैल’ अर्थ पर्वत होता है। 'जा' का अर्थ  उत्पन्न करना, पैदा करना, जन्म देना। इसी से  'जाया' क्रिया बनी है। जिसे जाया जाए वह 'जातक' अर्थात संतान। बुद्ध की जातक कथाएँ विविध योनिओं में जन्म लेने की कहानियाँ हैं। 
'शैल' + 'जा' = हिमालय पर्वत की पुत्री पार्वती 
पर्वतों से निकलकर बहनेवाली नदियों को भी शैलजा, शैलसुता, शैलात्मजा, शैलकन्या, शैलदुहिता आदि कहते हैं। 
***  

chhand bahar 2

कार्य शाला 
छंद-बहर दोउ एक हैं २
*
गीत
फ़साना 
(छंद- दस मात्रिक दैशिक जातीय, षडाक्षरी गायत्री जातीय सोमराजी छंद)
[बहर- फऊलुन फऊलुन १२२ १२२]
*
कहेगा-सुनेगा
सुनेगा-कहेगा
हमारा तुम्हारा
फसाना जमाना
*
तुम्हें देखता हूँ
तुम्हें चाहता हूँ
तुम्हें माँगता हूँ
तुम्हें पूजता हूँ
बनाना न आया
बहाना बनाना
कहेगा-सुनेगा
सुनेगा-कहेगा
हमारा तुम्हारा
फसाना जमाना
*
तुम्हीं जिंदगी हो
तुम्हीं बन्दगी हो
तुम्हीं वन्दना हो
तुम्हीं प्रार्थना हो
नहीं सीख पाया
बिताया भुलाना
कहेगा-सुनेगा
सुनेगा-कहेगा
हमारा तुम्हारा
फसाना जमाना
*
तुम्हारा रहा है
तुम्हारा रहेगा
तुम्हारे बिना ना
हमारा रहेगा
कहाँ जान पाया
तुम्हें मैं लुभाना
कहेगा-सुनेगा
सुनेगा-कहेगा
हमारा तुम्हारा
फसाना जमाना
***
उग, बढ़, झर पत्ते रहे,
रहे न कुछ भी जोड़
सीख न लेता कुछ मनुज,
कब चाहे दे छोड़
उग, बढ़, झर पत्ते रहे,
रहे न कुछ भी जोड़
सीख न लेता कुछ मनुज,
कब चाहे दे छोड़

maahiya- pran sharma

माहिया
प्राण शर्मा  
       -------
क्या तुमको भाती हूँ 
जुड़े में अपने 
जब फूल सजाती हूँ 
+
नित मांग सजाती हूँ 
सच बतलाना तुम 
क्या तुमको भाती हूँ 
+
जगमग सा करता है 
तन पे तुम्हारे प्रिये 
हर फूल निखरता है 
+
जब मांग सजाती हो 
सचमुच ,जादू सा 
मन पर छा जाती हो 
+
क्या अच्छी लगती हूँ 
पीली साड़ी में 
मैं कैसी लगती हूँ 
+
जब सम्मुख आती हो 
सूर्यमुखी जैसी 
तुम ख़ूब सुहाती हो

श्याम - दोहान्जलि

मन-मन्जूषा में बसा, जब से राधा-रूप.
गोकुल का छोरा हुआ, सकल सृष्टि का भूप.
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यश न यशोदा का अमित, नंद नंद का लाल.
पल्लू बँध हर्षित बहुत, जसुदा मालामाल.
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गागर में सागर लिए, आँचल में गोपाल.
वसुमति जसुमति को निरख, भाव विभोर निहाल.
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मैया गैया दुह रही, बैठा कान्ह समीप.
दुग्ध रहा धारोष्ण पी, रहा आँगना लीप.
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जगपालक को पालती, मैया गैया मौन.
ठिठक भ्रमित नभ सोचता, किसका भर्ता कौन?
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गुरुवार, 16 नवंबर 2017

दोहा

ले-देकर सुलझा रहे,
मंदिर-मस्जिद लोग.
प्रभु के पहले लग रहा,
भक्तो को ही भोग.

नीति का दोहा

मन की मन में ही रखो,
सबसे कहो न बात.
साथ न तम में छाँव दे,
अपने करते घात.

chhand indra vajra

छंद सलिला:
इंद्र वज्रा छंद
सलिल
*
इस द्विपदिक मात्रिक चतुःश्चरणी छंद के हर पद में २ तगण, १ जगण तथा २ गुरु मात्राएँ होती हैं. इस छंद का प्रयोग मुक्तक हेतु भी किया ज सकता है.
इन्द्रवज्रा एक पद = २२१ / २२१ / १२१ / २२ = ११ वर्ण तथा १८ मात्राएँ
उदाहरण:
१. तोड़ो न वादे जनता पुकारे
बेचो-खरीदो मत धर्म प्यारे
लूटो तिजोरी मत देश की रे!
चेतो न रूठे, जनता न मारे
२. नाचो-नचाओ मत भूलना रे!
आओ! न जाओ, कह चूमना रे!
माशूक अपनी जब साथ में हो-
झूमो, न भूले हँस झूलना रे!
३. पाया न / खोया न / रखा न / रोका
बोला न / डोला न / कहा न / टोंका
खेला न / झेला न / तजा न / हारा
तोडा न / फोड़ा न / पिटा न / मारा
४. आराम / ही राम / हराम / क्यों हो?
माशूक / के नाम / पयाम / क्यों हो?
विश्वास / प्रश्वास / नि:श्वास टूटा-
सायास / आभास / हुलास / झूठा
***

chhand upendra vajraa

छंद सलिला:
उपेन्द्र वज्रा
संजीव
*
इस द्विपदिक मात्रिक छंद के हर पद में क्रमश: जगण तगण जगण २ गुरु अर्थात ११ वर्ण और १७ मात्राएँ होती हैं.
उपेन्द्रवज्रा एक पद = जगण तगण जगण गुरु गुरु = १२१ / २२१ / १२१ / २२
उदाहरण:
१. सरोज तालाब गया नहाया
सरोद सायास गया बजाया
न हाथ रोका नत माथ बोला
तड़ाग झूमा नभ मुस्कुराया
२. हथेलियों ने जुड़ना न सीखा
हवेलियों ने झुकना न सीखा।
मिटा दिया है सहसा हवा ने-
फरेबियों से बचना न सीखा
३. जहाँ-जहाँ फूल खिलें वहाँ ही,
जहाँ-जहाँ शूल, चुभें वहाँ भी,
रखें जमा पैर हटा न पाये-
भले महाकाल हमें मनायें।

kavita- baad deepawali ke

गीति रचना :
बाद दीपावली के... कविता, दीवाली के बाद 
संजीव
*
बाद दीपावली के दिए ये बुझे
कह रहे 'अंत भी एक प्रारम्भ है.
खेलकर अपनी पारी सचिन की तरह-
मैं सुखी हूँ, न कहिये उपालम्भ है.
कौन शाश्वत यहाँ?, क्या सनातन यहाँ?
आना-जाना प्रकृति का नियम मानिए.
लाये क्या?, जाए क्या? साथ किसके कभी
कौन जाता मुझे मीत बतलाइए?
ज्यों की त्यों क्यों रखूँ निज चदरिया कहें?
क्या बुरा तेल-कालिख अगर कुछ गहें?
श्वास सार्थक अगर कुछ उजाला दिया,
है निरर्थक न किंचित अगर तम पिया.
*
जानता-मानता कण ही संसार है,
सार किसमें नहीं?, कुछ न बेकार है.
वीतरागी मृदा - राग पानी मिले
बीज श्रम के पड़े, दीप बन, उग खिले.
ज्योत आशा की बाली गयी उम्र भर.
तब प्रफुल्लित उजाला सकी लख नज़र.
लग न पाये नज़र, सोच कर-ले नज़र
नोन-राई उतारे नज़र की नज़र.
दीप को झालरों की लगी है नज़र
दीप की हो सके ना गुजर, ना बसर.
जो भी जैसा यहाँ उसको स्वीकार कर
कर नमन मैं हुआ हूँ पुनः अग्रसर.
*
बाद दीपावली के सहेजो नहीं,
तोड़ फेंकों, दिए तब नये आयेंगे.
तुम विदा गर प्रभाकर को दोगे नहीं
चाँद-तारे कहो कैसे मुस्कायेंगे?
दे उजाला चला, जन्म सार्थक हुआ.
दुख मिटे सुख बढ़े, गर न खेलो जुआ.
मत प्रदूषण करो धूम्र-ध्वनि का, रुको-
वृक्ष हत्या करे अब न मानव मुआ.
तीर्थ पर जा, मनाओ हनीमून मत.
मुक्ति केदार प्रभु से मिलेगी 'सलिल'
पर तभी जब विरागी रहो राग में
और रागी नहीं हो विरागी मनस।
इसलिए हैं विकल मानवों के हिये।
चल न पाये समय पर रुके भी नहीं
अलविदा कह चले, हरने तम आयें फिर
बाद दीपावली के दिए जो बुझे.
*
salil.sanjiv@gmail.com