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शनिवार, 1 जुलाई 2017

rachna-prati rachna: ghanakshari

कार्यशाला: रचना-प्रति रचना 
घनाक्षरी  
फेसबुक
*
गुरु सक्सेना नरसिंहपुर मध्य प्रदेश
*
चमक-दमक साज-सज्जा मुख-मंडल पै
तड़क-भड़क भी विशेष होना चाहिए।
आत्म प्रचार की क्रिकेट का हो बल्लेबाज
लिस्ट कार्यक्रमों वाली पेश होना चाहिए।।
मछली फँसानेवाले काँटे जैसी शब्दावली
हीरो जैसा आकर्षक भेष होना चाहिए।
फेसबुक पर मित्र कैसे मैं बनाऊँ तुम्हे
फेसबुक जैसा भी तो फेस होना चाहिए।।
*
फेस 'बुक' हो ना पाए, गुरु यही बेहतर है 
फेस 'बुक' हुआ तो छुडाना मजबूरी है। 
फेस की लिपाई या पुताई चाहे जितनी हो
फेस की असलियत जानना जरूरी है।। 
फेस रेस करेगा तो पोल खुल जायेगी ही 
फेस फेस ना करे तैयारी जो अधूरी है।
फ़ेस देख दे रहे हैं लाइक पे लाइक जो 
हीरो जीरो, फ्रेंडशिप सिर्फ मगरूरी है।। 
***
salil.sanjiv@gmail.com  

muktika / gazal

मुक्तिका:
ज़ख्म कुरेदेंगे....
संजीव 'सलिल'
*
ज़ख्म कुरेदोगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..
*
छिपे हुए को बाहर लाकर क्या होगा?
रहा छिपा तो पीछे कहीं लगन होगी..
*
मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..
*
फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..
*
बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..
*
आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो, वरना कल से अनबन होगी..
*
नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..
१-७-२०१० 
*************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

ghanakshary

कल और आज: घनाक्षरी
कल :
कज्जल के कूट पर दीप शिखा सोती है कि,
श्याम घन मंडल मे दामिनी की धारा है ।
भामिनी के अंक में कलाधर की कोर है कि,
राहु के कबंध पै कराल केतु तारा है ।
शंकर कसौटी पर कंचन की लीक है कि,
तेज ने तिमिर के हिये मे तीर मारा है ।
काली पाटियों के बीच मोहनी की माँग है कि,
ढ़ाल पर खाँड़ा कामदेव का दुधारा है ।
काले केशों के बीच सुन्दरी की माँग की शोभा का वर्णन करते हुए कवि ने ८ उपमाएँ दी हैं.-
१. काजल के पर्वत पर दीपक की बाती.
२. काले मेघों में बिजली की चमक.
३. नारी की गोद में बाल-चन्द्र.
४. राहु के काँधे पर केतु तारा.
५. कसौटी के पत्थर पर सोने की रेखा.
६. काले बालों के बीच मन को मोहने वाली स्त्री की माँग.
७. अँधेरे के कलेजे में उजाले का तीर.
८. ढाल पर कामदेव की दो धारवाली तलवार.
कबंध=धड़. राहु काला है और केतु तारा स्वर्णिम, कसौटी के काले पत्थर पर रेखा खींचकर सोने को पहचाना जाता है. ढाल पर खाँडे की चमकती धार. यह सब केश-राशि के बीच माँग की दमकती रेखा का वर्णन है.
*****
आज : संजीव 'सलिल'

संसद के मंच पर, लोक-मत तोड़े दम,
राजनीति सत्ता-नीति, दल-नीति कारा है ।
नेताओं को निजी हित, साध्य- देश साधन है,
मतदाता घुटालों में, घिर बेसहारा है ।
'सलिल' कसौटी पर, कंचन की लीक है कि,
अन्ना-रामदेव युति, उगा ध्रुवतारा है।
स्विस बैंक में जमा जो, धन आये भारत में ,
देर न करो भारत, माता ने पुकारा है।
******
घनाक्षरी: वर्णिक छंद, चतुष्पदी, हर पद- ३१ वर्ण, सोलह चरण-
हर पद के प्रथम ३ चरण ८ वर्ण, अंतिम ४ चरण ७ वर्ण.
******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
HINDIHINDI.IN.DIVYANARMADA
DIVYANARMADA.BLOGSPOT.IN

chinatan aur charha



चिंतन और चर्चा-
साईं, स्वरूपानंद और मैं
संजीव
*
स्वामी स्वरूपानंद द्वारा उठायी गयी साईं संबंधी आपत्ति मुझे बिलकुल ठीक प्रतीत होती है। एक सामान्य व्यक्ति के नाते मेरी जानकारी और चिंतन के आधार पर मेरा मत निम्न है:
१. सनातन: वह जिसका आदि अंत नहीं है अर्थात जो देश, काल, परिस्थिति का नियंत्रण-मार्गदर्शन करने के साथ-साथ खुद को भी चेतन होने के नाते परिवर्तित करता रहता है, जड़ नहीं होता इसीलिए सनातन धर्म में समय-समय पर देवी-देवता , पूजा-पद्धतियाँ, गुरु, स्वामी ही नहीं दार्शनिक विचार धाराएं और संप्रदाय भी पनपते और मान्य होते रहे हैं।
२. चित्रगुप्त अर्थात वह शक्ति जिसका चित्र गुप्त (अनुपलब्ध) है अर्थात नहीं है. चित्र बनाया जाता है आकार से, आकार काया (बॉडी) का होता है. स्पष्ट है कि चित्रगुप्त वह आदिशक्ति है जिसका आकार (शेप) नहीं है अर्थात जो निराकार है. आकार न होने से परिमाप (साइज़) भी नहीं हो सकती, जो किसी सीमा में नहीं बँधता वही असीम होता है और मापा नहीं जा सकता.आकार के बनने और मिटने के तिथि और स्थान, निर्माता तथा नाशक होते हैं. चित्रगुप्त निराकार अर्थात अनादि, अनंत, अक्षर, अजर, अमर, असीम, अजन्मा, अमरणा हैं. ये लक्षण परब्रम्ह के कहे गए हैं. चित्रगुप्त ही परब्रम्ह हैं. "चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानं सर्वदेहिनां" उन चित्रगुप्त को सबसे पहले प्रणाम जो सब देहधारियों में आत्मा के रूप में विराजमान हैं. इससे लिए चित्रगुप्त की कोई मूर्ति, कथा, कहानी, व्रत, उपवास, मंदिर आदि आदिकाल से ३०० वर्ष पूर्व तक नहीं बनाये गए जबकि उनके उपासक ही शासक-प्रशासक थे. जब-जिस रूप में किसी की पूजा हुई वह चित्रगुप्त जी की ही हुई. " कायास्थित: स: कायस्थ:' अर्थात जब वह (परब्रम्ह) किसी काया में स्थित होता है तो उसे कायस्थ कहते हैं" तदनुसार सकल सृष्टि और उसका कण-कण कायस्थ है.
२. देवता: वेदों में ३३ प्रकार के देवता (१२ आदित्य, १८ रूद्र, ८ वसु, १ इंद्र, और प्रजापति) ही नहीं श्री देवी, उषा, गायत्री आदि अन्य अनेक और भी अन्र्क पूज्य शक्तियाँ वर्णित हैं। आत्मा सो परमात्मा, अयमात्मा ब्रम्ह, कंकर सो शंकर, कंकर-कंकर में शंकर, शिवोहं, अहम ब्रम्हास्मि जैसी उक्तियाँ तो हर कण को ईश्वर कहती हैं। आचार्य रजनीश ने खुद को ओशो कहा और आपत्तिकर्ताओं को उत्तर दिया कि तुम भी ओशो हो अंतर यह है की मैं जानता हूँ कि मैं ओशो हूँ, तुम नहीं जानते। अतः साईं को कोई साईं भक्त भगवान माने और पूजे इसमें किसी सनातन धर्मी को आपत्ति नहीं हो सकती।
३. रामायण महाभारत ही नहीं अन्य वेद, पुराण, उपनिषद, आगम, निगम, ब्राम्हण ग्रन्थ आदि भी न केवल इतिहास हैं न आख्यान या गल्प। भारत में सृजन दार्शनिक चिंतन पर आधारित रहा है। ग्रंथों में पश्चिम की तरह व्यक्तिपरकता नहीं है, यहाँ मूल्यात्मक चिंतन प्रमुख है। दृष्टान्तों या कथाओं का प्रयोग किसी चिंतनधारा को आम लोगों तक प्रत्यक्ष या परोक्षतः पहुँचाने के लिए किया गया है। अतः, सभी ग्रंथों में इतिहास, आख्यान, दर्शन और अन्य शाखाओं का मिश्रण है।
देवताओं को विविध आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। यथा: जन्मा - अजन्मा, आर्य - अनार्य, वैदिक, पौराणिक, औपनिषदिक, सतयुगीन - त्रेतायुगीन - द्वापरयुगीन कलियुगीन, पुरुष देवता- स्त्री देवता, सामान्य मनुष्य की तरह - मानवेतर, पशुरूपी-मनुष्यरूपी आदि।
४. बाली, शंबूक, बर्बरीक, अश्वत्थामा, दुर्योधन जैसे अन्य भी अनेक प्रसंग हैं किन्तु इनका साईं से कुछ लेना-देना नहीं है। इन पर अलग-अलग चर्चा हो सकती है। राम और कृष्ण का देवत्व इन पर निर्भर नहीं है।
५. बुद्ध और महावीर का सनातन धर्म से विरोध और नव पंथों की स्थापना लगभग समकालिक होते हुए भी बुद्ध को अवतार मानना और महावीर को अवतार न मानना अर्थात बौद्धों को सनातनधर्मी माना जाना और जैनियों को सनातन धर्मी न माना जाना भी साईं से जुड़ा विषय नहीं है और पृथक विवेचन चाहता है।
६. अवतारवाद के अनुसार देवी - देवता कारण विशेष से प्रगट होते हैं फिर अदृश्य हो जाते हैं, इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि वे नष्ट हो जाते हैं। वे किसी वाहन से नहीं आते - जाते, वे शक्तियाँ रूपांतरित या स्थानांतरित होकर भी पुनः प्रगट होती हैं, एक साथ अनेक स्थानों पर भी प्रगट हो सकती हैं। यह केवल सनातन धर्म नहीं इस्लाम, ईसाई आय अन्य धर्मों में भी वर्णित है। हरि अनंत हरि कथा अनंता, उनके रूप भी अनंत हैं, प्रभु एक हैं वे भक्त की भावनानुसार प्रगट होते हैं, इसीलिए एक ईश्वर के भी अनेक रूप हैं गोपाल, मधुसूदन, श्याम, कान्हा, मुरारी आदि। इनके मन्त्र, पूजन विधि, साहित्य, कथाएं, माहात्म्य भी अलग हैं पर इनमें अंतर्विरोध नहीं है। सत्यनारायण, शालिग्राम, नृसिंह और अन्य विष्णु के ही अवतार कहे गये हैं।
७. गौतमी, सरस्वती और ऐसे ही अनेक अन्य प्रकरण यही स्थापित करते हैं कि सर्व शक्तिमान होने के बाद भी देवता आम जनों से ऊपर विशेषधिकार प्राप्त नहीं हैं, जब वे देह धारण करते हैं तो उनसे भी सामान्य मनुष्यों की तरह गलतियाँ होती हैं और उन्हें भी इसका दंड भोगना होता है। 'to err is human' का सिद्धांत ही यहाँ बिम्बित है। कर्मफलवाद गीता में भी वर्णित है।
८. रामानंद, नानक, कबीर, चैतन्य, तुलसी, सूर, कबीर, नानक, मीरा या अन्य सूफी फकीर सभी अपने इष्ट के उपासक हैं। 'राम ते अधिक राम के दासा'… सनातन धर्मी किसी देव के भाकर से द्वेष नहीं करता। सिख का अस्तित्व ही सनातन की रक्षा के लिए है, उसे धर्म, पंथ, सम्प्रदाय कुछ भी कहें वह "ॐ" ओंकार का ही पूजक है। एक अकाल पुरुख परमब्रम्ह ही है। सनातन धर्मी गुरुद्वारों को पूजास्थली ही मानता है। गुरुओं ने भी राम,कृष्णादि को देवता माँन कर वंदना की है और उन पर साहित्य रचा है।
९. वाल्मीकि को रामभक्त और आदिकवि के नाते हर सनातनधर्मी पूज्य मानता है। कोई उनका मंदिर बनाकर पूजे तो किसी को क्या आपत्ति? कबीर, तुलसी, मीरा की मूर्तियाँ भी पूजा ग्रहों और मंदिरों में मिल जायेंगी।
१०. मेरी साईं के ईश्वरतत्व से नहीं साईं को अन्य धर्मावलम्बियों के मंदिरों, पूजाविधियों और मन्त्रों में घुसेड़े जाने से असहमति है। नमाज की आयत में, ग्रंथसाहब के सबद में, बाइबल के किसी अंश में साईं नाम रखकर देखें आपको उनकी प्रतिक्रिया मिल जाएगी। सनातन धर्मी ही सर्वाधिक सहिष्णु है इसलिए इतने दिनों तक झेलता रहा किन्तु कमशः साईं के नाम पर अन्य देवी-देवताओं के स्थानों पर बेजा कब्ज़ा तथा मूल स्थान पर अति व्यावसायिकता के कारण यह स्वर उठा है।
अंत में एक सत्य और स्वरूपानंद जी के प्रति उनके कांग्रेस मोह और दिग्विजय सिंग जैसे भ्रष्ट नेताओं के प्रति स्नेह भाव के कारण सनातनधर्मियों की बहुत श्रद्धा नहीं रही। मैं जबलपुर में रहते हुए भी आज तक उन तक नहीं गया किन्तु एक प्रसंग में असहमति से व्यक्ति हमेशा के लिए और पूरी तरह गलत नहीं होता। साई प्रसंग में स्वरूपानंद जी ने सनातनधर्मियों के मन में छिपे आक्रोश, क्षोभ और असंतोष को वाणी देकर उनका सम्मान पाया है। यह दायित्व साई भक्तों का है कि वे अपने स्थानों से अन्य देवी-देवताओं के नाम हटाकर उन्हें साई को इष्ट सादगी, सरलता और शुचितापरक कार्यपद्धति अपनाकर अन्यों का विश्वास जीतें। चढोत्री में आये धन का उपयोग स्थान को मूर्ति और मंदिर को स्वर्ण से मढ़ने के स्थान पर उन दरिद्रों के कल्याण के लिए हो जिनकी सेवा करने का साईं ने उपदेश दिया। कुछ मित्रों के बयान पढ़े हैं कि वे स्वरूपानंद जी के बीसियों वर्षों तक भक्त रहे पर साईं सम्बन्धी वक्तव्य से उनकी श्रद्धा नष्ट हो गयी। ये कैसा शिष्यत्व है जो दोहरी निष्ठा ही नहीं रखता गुरु की कोई बात समझ न आने पर गुरु से मार्गदर्शन नहीं लेता, सत्य नहीं समझता और उसकी बरसों की श्रद्धा पल में नष्ट हो जाती है?
सनातन धर्म में द्वैत को त्याज्य और अद्वैत को वरेण्य कहा गया है. जब आत्मा से गुरु को गुरु नहीं माँना जाता तो शिष्य की श्रद्धा भी कृत्रिम होती है जो पल में ही नष्ट हो जाती है.
अस्तु साईं प्रसंग में स्वरूपानंद जी द्वारा उठाई गयी आपत्ति से सहमत हूँ।
१-७-२०१४

tribhangi chhand

छंद सलिला:
त्रिभंगी छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-८-६, पदांत गुरु, चौकल में पयोधर (लघु गुरु लघु / जगण) निषेध।
लक्षण छंद:
रच छंद त्रिभंगी / रस अनुषंगी / जन-मन संगी / कलम सदा
दस आठ आठ छह / यति गति मति सह / गुरु पदांत कह / सुकवि सदा
उदाहरण:
१. भारत माँ परायी / जग से न्यारी / सब संसारी नमन करें
सुंदर फुलवारी / महके क्यारी / सत आगारी / चमन करें
मत हों व्यापारी / नगद-उधारी / स्वार्थविहारी / तनिक डरें
हों सद आचारी / नीति पुजारी / भू सिंगारी / धर्म धरें
२. मिल कदम बढ़ायें / नग़मे गायें / मंज़िल पायें / बिना थके
'मिल सकें हम गले / नील नभ तले / ऊग रवि ढ़ले / बिना रुके
नित नमन सत्य को / नाद नृत्य को / सुकृत कृत्य को / बिना चुके
शत दीप जलाएं / तिमिर हटायें / भोर उगायें / बिना झुके
३. वैराग-राग जी / तुहिन-आग जी / भजन-फाग जी / अविचल हो
कर दे मन्वन्तर / दुःख छूमंतर / शुचि अभ्यंतर अविकल हो
बन दीप जलेंगे / स्वप्न पलेंगे / कर न मलेंगे / उन्मन हो
मिल स्वेद बहाने / लगन लगाने / अमिय बनाने / मंथन हो 
१-७-२०१४
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिभंगी, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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चिंतन और चर्चा-
साईं, स्वरूपानंद और मैं
संजीव
*
स्वामी स्वरूपानंद द्वारा उठायी गयी साईं संबंधी आपत्ति मुझे बिलकुल ठीक प्रतीत होती है। एक सामान्य व्यक्ति के नाते मेरी जानकारी और चिंतन के आधार पर मेरा मत निम्न है:
१. सनातन: वह जिसका आदि अंत नहीं है अर्थात जो देश, काल, परिस्थिति का नियंत्रण-मार्गदर्शन करने के साथ-साथ खुद को भी चेतन होने के नाते परिवर्तित करता रहता है, जड़ नहीं होता इसीलिए सनातन धर्म में समय-समय पर देवी-देवता , पूजा-पद्धतियाँ, गुरु, स्वामी ही नहीं दार्शनिक विचार धाराएं और संप्रदाय भी पनपते और मान्य होते रहे हैं।
२. चित्रगुप्त अर्थात वह शक्ति जिसका चित्र गुप्त (अनुपलब्ध) है अर्थात नहीं है. चित्र बनाया जाता है आकार से, आकार काया (बॉडी) का होता है. स्पष्ट है कि चित्रगुप्त वह आदिशक्ति है जिसका आकार (शेप) नहीं है अर्थात जो निराकार है. आकार न होने से परिमाप (साइज़) भी नहीं हो सकती, जो किसी सीमा में नहीं बँधता वही असीम होता है और मापा नहीं जा सकता.आकार के बनने और मिटने के तिथि और स्थान, निर्माता तथा नाशक होते हैं. चित्रगुप्त निराकार अर्थात अनादि, अनंत, अक्षर, अजर, अमर, असीम, अजन्मा, अमरणा हैं. ये लक्षण परब्रम्ह के कहे गए हैं. चित्रगुप्त ही परब्रम्ह हैं. "चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानं सर्वदेहिनां" उन चित्रगुप्त को सबसे पहले प्रणाम जो सब देहधारियों में आत्मा के रूप में विराजमान हैं. इससे लिए चित्रगुप्त की कोई मूर्ति, कथा, कहानी, व्रत, उपवास, मंदिर आदि आदिकाल से ३०० वर्ष पूर्व तक नहीं बनाये गए जबकि उनके उपासक ही शासक-प्रशासक थे. जब-जिस रूप में किसी की पूजा हुई वह चित्रगुप्त जी की ही हुई. " कायास्थित: स: कायस्थ:' अर्थात जब वह (परब्रम्ह) किसी काया में स्थित होता है तो उसे कायस्थ कहते हैं" तदनुसार सकल सृष्टि और उसका कण-कण कायस्थ है.
२. देवता: वेदों में ३३ प्रकार के देवता (१२ आदित्य, १८ रूद्र, ८ वसु, १ इंद्र, और प्रजापति) ही नहीं श्री देवी, उषा, गायत्री आदि अन्य अनेक और भी अन्र्क पूज्य शक्तियाँ वर्णित हैं। आत्मा सो परमात्मा, अयमात्मा ब्रम्ह, कंकर सो शंकर, कंकर-कंकर में शंकर, शिवोहं, अहम ब्रम्हास्मि जैसी उक्तियाँ तो हर कण को ईश्वर कहती हैं। आचार्य रजनीश ने खुद को ओशो कहा और आपत्तिकर्ताओं को उत्तर दिया कि तुम भी ओशो हो अंतर यह है की मैं जानता हूँ कि मैं ओशो हूँ, तुम नहीं जानते। अतः साईं को कोई साईं भक्त भगवान माने और पूजे इसमें किसी सनातन धर्मी को आपत्ति नहीं हो सकती।
३. रामायण महाभारत ही नहीं अन्य वेद, पुराण, उपनिषद, आगम, निगम, ब्राम्हण ग्रन्थ आदि भी न केवल इतिहास हैं न आख्यान या गल्प। भारत में सृजन दार्शनिक चिंतन पर आधारित रहा है। ग्रंथों में पश्चिम की तरह व्यक्तिपरकता नहीं है, यहाँ मूल्यात्मक चिंतन प्रमुख है। दृष्टान्तों या कथाओं का प्रयोग किसी चिंतनधारा को आम लोगों तक प्रत्यक्ष या परोक्षतः पहुँचाने के लिए किया गया है। अतः, सभी ग्रंथों में इतिहास, आख्यान, दर्शन और अन्य शाखाओं का मिश्रण है।
देवताओं को विविध आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। यथा: जन्मा - अजन्मा, आर्य - अनार्य, वैदिक, पौराणिक, औपनिषदिक, सतयुगीन - त्रेतायुगीन - द्वापरयुगीन कलियुगीन, पुरुष देवता- स्त्री देवता, सामान्य मनुष्य की तरह - मानवेतर, पशुरूपी-मनुष्यरूपी आदि।
४. बाली, शंबूक, बर्बरीक, अश्वत्थामा, दुर्योधन जैसे अन्य भी अनेक प्रसंग हैं किन्तु इनका साईं से कुछ लेना-देना नहीं है। इन पर अलग-अलग चर्चा हो सकती है। राम और कृष्ण का देवत्व इन पर निर्भर नहीं है।
५. बुद्ध और महावीर का सनातन धर्म से विरोध और नव पंथों की स्थापना लगभग समकालिक होते हुए भी बुद्ध को अवतार मानना और महावीर को अवतार न मानना अर्थात बौद्धों को सनातनधर्मी माना जाना और जैनियों को सनातन धर्मी न माना जाना भी साईं से जुड़ा विषय नहीं है और पृथक विवेचन चाहता है।
६. अवतारवाद के अनुसार देवी - देवता कारण विशेष से प्रगट होते हैं फिर अदृश्य हो जाते हैं, इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि वे नष्ट हो जाते हैं। वे किसी वाहन से नहीं आते - जाते, वे शक्तियाँ रूपांतरित या स्थानांतरित होकर भी पुनः प्रगट होती हैं, एक साथ अनेक स्थानों पर भी प्रगट हो सकती हैं। यह केवल सनातन धर्म नहीं इस्लाम, ईसाई आय अन्य धर्मों में भी वर्णित है। हरि अनंत हरि कथा अनंता, उनके रूप भी अनंत हैं, प्रभु एक हैं वे भक्त की भावनानुसार प्रगट होते हैं, इसीलिए एक ईश्वर के भी अनेक रूप हैं गोपाल, मधुसूदन, श्याम, कान्हा, मुरारी आदि। इनके मन्त्र, पूजन विधि, साहित्य, कथाएं, माहात्म्य भी अलग हैं पर इनमें अंतर्विरोध नहीं है। सत्यनारायण, शालिग्राम, नृसिंह और अन्य विष्णु के ही अवतार कहे गये हैं।
७. गौतमी, सरस्वती और ऐसे ही अनेक अन्य प्रकरण यही स्थापित करते हैं कि सर्व शक्तिमान होने के बाद भी देवता आम जनों से ऊपर विशेषधिकार प्राप्त नहीं हैं, जब वे देह धारण करते हैं तो उनसे भी सामान्य मनुष्यों की तरह गलतियाँ होती हैं और उन्हें भी इसका दंड भोगना होता है। 'to err is human' का सिद्धांत ही यहाँ बिम्बित है। कर्मफलवाद गीता में भी वर्णित है।
८. रामानंद, नानक, कबीर, चैतन्य, तुलसी, सूर, कबीर, नानक, मीरा या अन्य सूफी फकीर सभी अपने इष्ट के उपासक हैं। 'राम ते अधिक राम के दासा'… सनातन धर्मी किसी देव के भाकर से द्वेष नहीं करता। सिख का अस्तित्व ही सनातन की रक्षा के लिए है, उसे धर्म, पंथ, सम्प्रदाय कुछ भी कहें वह "ॐ" ओंकार का ही पूजक है। एक अकाल पुरुख परमब्रम्ह ही है। सनातन धर्मी गुरुद्वारों को पूजास्थली ही मानता है। गुरुओं ने भी राम,कृष्णादि को देवता माँन कर वंदना की है और उन पर साहित्य रचा है।
९. वाल्मीकि को रामभक्त और आदिकवि के नाते हर सनातनधर्मी पूज्य मानता है। कोई उनका मंदिर बनाकर पूजे तो किसी को क्या आपत्ति? कबीर, तुलसी, मीरा की मूर्तियाँ भी पूजा ग्रहों और मंदिरों में मिल जायेंगी।
१०. मेरी साईं के ईश्वरतत्व से नहीं साईं को अन्य धर्मावलम्बियों के मंदिरों, पूजाविधियों और मन्त्रों में घुसेड़े जाने से असहमति है। नमाज की आयत में, ग्रंथसाहब के सबद में, बाइबल के किसी अंश में साईं नाम रखकर देखें आपको उनकी प्रतिक्रिया मिल जाएगी। सनातन धर्मी ही सर्वाधिक सहिष्णु है इसलिए इतने दिनों तक झेलता रहा किन्तु कमशः साईं के नाम पर अन्य देवी-देवताओं के स्थानों पर बेजा कब्ज़ा तथा मूल स्थान पर अति व्यावसायिकता के कारण यह स्वर उठा है।
अंत में एक सत्य और स्वरूपानंद जी के प्रति उनके कांग्रेस मोह और दिग्विजय सिंग जैसे भ्रष्ट नेताओं के प्रति स्नेह भाव के कारण सनातनधर्मियों की बहुत श्रद्धा नहीं रही। मैं जबलपुर में रहते हुए भी आज तक उन तक नहीं गया किन्तु एक प्रसंग में असहमति से व्यक्ति हमेशा के लिए और पूरी तरह गलत नहीं होता। साई प्रसंग में स्वरूपानंद जी ने सनातनधर्मियों के मन में छिपे आक्रोश, क्षोभ और असंतोष को वाणी देकर उनका सम्मान पाया है। यह दायित्व साई भक्तों का है कि वे अपने स्थानों से अन्य देवी-देवताओं के नाम हटाकर उन्हें साई को इष्ट सादगी, सरलता और शुचितापरक कार्यपद्धति अपनाकर अन्यों का विश्वास जीतें। चढोत्री में आये धन का उपयोग स्थान को मूर्ति और मंदिर को स्वर्ण से मढ़ने के स्थान पर उन दरिद्रों के कल्याण के लिए हो जिनकी सेवा करने का साईं ने उपदेश दिया। कुछ मित्रों के बयान पढ़े हैं कि वे स्वरूपानंद जी के बीसियों वर्षों तक भक्त रहे पर साईं सम्बन्धी वक्तव्य से उनकी श्रद्धा नष्ट हो गयी। ये कैसा शिष्यत्व है जो दोहरी निष्ठा ही नहीं रखता गुरु की कोई बात समझ न आने पर गुरु से मार्गदर्शन नहीं लेता, सत्य नहीं समझता और उसकी बरसों की श्रद्धा पल में नष्ट हो जाती है?
सनातन धर्म में द्वैत को त्याज्य और अद्वैत को वरेण्य कहा गया है. जब आत्मा से गुरु को गुरु नहीं माँना जाता तो शिष्य की श्रद्धा भी कृत्रिम होती है जो पल में ही नष्ट हो जाती है.
अस्तु साईं प्रसंग में स्वरूपानंद जी द्वारा उठाई गयी आपत्ति से सहमत हूँ।
१-७-२०१४
कल और आज: घनाक्षरी
कल :
कज्जल के कूट पर दीप शिखा सोती है कि,
श्याम घन मंडल मे दामिनी की धारा है ।
भामिनी के अंक में कलाधर की कोर है कि,
राहु के कबंध पै कराल केतु तारा है ।
शंकर कसौटी पर कंचन की लीक है कि,
तेज ने तिमिर के हिये मे तीर मारा है ।
काली पाटियों के बीच मोहनी की माँग है कि,
ढ़ाल पर खाँड़ा कामदेव का दुधारा है ।
काले केशों के बीच सुन्दरी की माँग की शोभा का वर्णन करते हुए कवि ने ८ उपमाएँ दी हैं.-
१. काजल के पर्वत पर दीपक की बाती.
२. काले मेघों में बिजली की चमक.
३. नारी की गोद में बाल-चन्द्र.
४. राहु के काँधे पर केतु तारा.
५. कसौटी के पत्थर पर सोने की रेखा.
६. काले बालों के बीच मन को मोहने वाली स्त्री की माँग.
७. अँधेरे के कलेजे में उजाले का तीर.
८. ढाल पर कामदेव की दो धारवाली तलवार.
कबंध=धड़. राहु काला है और केतु तारा स्वर्णिम, कसौटी के काले पत्थर पर रेखा खींचकर सोने को पहचाना जाता है. ढाल पर खाँडे की चमकती धार. यह सब केश-राशि के बीच माँग की दमकती रेखा का वर्णन है.
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आज : संजीव 'सलिल'

संसद के मंच पर, लोक-मत तोड़े दम,
राजनीति सत्ता-नीति, दल-नीति कारा है ।
नेताओं को निजी हित, साध्य- देश साधन है,
मतदाता घुटालों में, घिर बेसहारा है ।
'सलिल' कसौटी पर, कंचन की लीक है कि,
अन्ना-रामदेव युति, उगा ध्रुवतारा है।
स्विस बैंक में जमा जो, धन आये भारत में ,
देर न करो भारत, माता ने पुकारा है।
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घनाक्षरी: वर्णिक छंद, चतुष्पदी, हर पद- ३१ वर्ण, सोलह चरण-
हर पद के प्रथम ३ चरण ८ वर्ण, अंतिम ४ चरण ७ वर्ण.
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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मुक्तिका:
ज़ख्म कुरेदेंगे....
संजीव 'सलिल'
*
ज़ख्म कुरेदोगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..
*
छिपे हुए को बाहर लाकर क्या होगा?
रहा छिपा तो पीछे कहीं लगन होगी..
*
मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..
*
फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..
*
बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..
*
आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो, वरना कल से अनबन होगी..
*
नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..
१-७-२०१० 
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
'दोहा गाथा सनातन' शीर्षक से हिंद युग्म पर ६५ लेखों की श्रृंखला प्रस्तुत है जिसमें शब्दों के उच्चार, मात्र गणना, गण नियम, दोहा लेखन के मानक, प्रकार, दोहा परिवार के कुछ अन्य छंदों का लेखन आदि की विस्तृत और प्रमाणिक जानकारी समाहित है. . साहित्य शिल्पी पर 'काव्य का रचना शास्त्र' शीर्षक से ६७ लेखों की श्रंखला में अलंकारों का सोदाहरण परिचय दिया जा रहा है. रचनाकारों और समीक्षकों के लिए पर्याप्त जानकारी संचयित है.

sawaee sawaiya chhand


छंद सलिला:
सवाई /समान (मात्रिक सवैया) छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १६-१६, पदांत गुरु लघु लघु ।
लक्षण छंद:
हर चरण समान सवाई लख / सोलह-सोलह मात्रा रख 
गुरु लघु-लघु पदांत, हो यति / सोलह-सोलह, रस भी चख  
उदाहरण:
१. 
राय प्रवीण सुनारी विदुषी / चंपकवर्णी तन-मन भावन
वाक् कूक सी, केश मेघवत / नैना मानसरोवर पावन
सुता शारदा की अनुपम वह / नृत्य-गान, शत छंद विशारद
सदाचार की प्रतिमा नर्तन / करे लगे हर्षाया सावन
२. 
केशवदास काव्य गुरु पूजित,/ नीति धर्म व्यवहार कलानिधि
रामलला-नटराज पुजारी / लोकपूज्य नृप-मान्य सभी विधि
भाषा-पिंगल शास्त्र निपुण वे / इंद्रजीत नृप के उद्धारक
दिल्लीपति के कपटजाल के / भंजक- त्वरित बुद्धि के साधक
३. 
दिल्लीपति आदेश: 'प्रवीणा भेजो' नृप करते मन मंथन
प्रेयसि भेजें तो दिल टूटे / अगर न भेजें रण, सुख भंजन
देश बचाने गये प्रवीणा / केशव संग करो प्रभु रक्षण
"बारी कुत्ता काग मात्र ही / करें और का जूठा भक्षण"
कहा प्रवीणा ने लज्जा से / शीश झुका खिसयाया था नृप
छिपा रहे मुख हँस दरबारी / दे उपहार पठाया वापिस
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिभंगी, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन, मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मात्रिक सवैया, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, समान, सरस, सवाई, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

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laghukatha

लघु कथा
विजय दिवस 
*

करगिल विजय की वर्षगाँठ को विजय दिवस के रूप में मनाये जाने की खबर पाकर एक मित्र बोले- 'क्या चोर या बदमाश को घर से निकाल बाहर करना विजय कहलाता है?'
''पड़ोसियों को अपने घर से निकल बाहर करने के लिए देश-हितों की उपेक्षा, सीमाओं की अनदेखी, राजनैतिक मतभेदों को राष्ट्रीयता पर वरीयता और पड़ोसियों की ज्यादतियों को सहन करने की बुरी आदत पर विजय पाने की वर्ष गाँठ को विजय दिवस कहना ठीक ही तो है. '' मैंने कहा.
'इसमें गर्व करने जैसा क्या है? यह तो सैनिकों का फ़र्ज़ है, उन्हें इसकी तनखा मिलती है.' -मित्र बोले.
'''तनखा तो हर कर्मचारी को मिलती है लेकिन कितने हैं जो जान पर खेलकर भी फ़र्ज़ निभाते हैं. सैनिक सीमा से जान बचाकर भाग खड़े होते तो हम और आप कैसे बचते?''
'यह तो सेना में भरती होते समय उन्हें पता रहता है.'
पता तो नेताओं को भी रहता है कि उन्हें आम जनता-और देश के हित में काम करना है, वकील जानता है कि उसे मुवक्किल के हित को बचाना है, न्यायाधीश जानता है कि उसे निष्पक्ष रहना है, व्यापारी जानता है कि उसे शुद्ध माल कम से कम मुनाफे में बेचकर विक्रय कर देना है, अफसर कि उसे जानता की सेवा करना है पर कोई करता है क्या? सेना ने अपने फ़र्ज़ को दिलो-जां से अंजाम दिया इसीलिये वे तारीफ और सलामी के हकदार हैं. विजय दिवस उनके बलिदानों की याद में हमारी श्रद्धांजलि है, इससे नयी पीढी को प्रेरणा मिलेगी.''
प्रगतिवादी मित्र भुनभुनाते हुए सर झुकाए आगे बढ़ गए..
जुलाई २९,२००९
**************** 

gazal

एक बहर दो ग़ज़लें
बहर - २१२२ २१२२ २१२
छन्द- महापौराणिक जातीय, पीयूषवर्ष छंद
*
१. महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश
*
बस दिखावे की तुम्हारी प्रीत है
ये भला कोई वफ़ा की रीत है
*
साथ बस दो चार पल का है यहाँ
फिर जुदा हो जाए मन का मीत है
*
ज़िंदगी की असलियत है सिर्फ़ ये
चार दिन में जाए जीवन बीत है
*
फ़िक्र क्यों हो इश्क़ के अंजाम की
प्यार में क्या हार है क्या जीत है
*
कब ख़लिश चुक जाए ये किसको पता
ज़िंदगी का आखिरी ये गीत है.
*****
२. संजीव वर्मा 'सलिल'
*
हारिए मत, कोशिशें कुछ और हों
कोशिशों पर कोशिशों के दौर हों
*
श्याम का तन श्याम है तो क्या हुआ?
श्याम मन में राधिका तो गौर हों
*
जेठ की गर्मी-तपिश सह आम में
पत्तियों संग झूमते हँस बौर हों
*
साँझ पर सूरज 'सलिल' है फिर फ़िदा
साँझ के अधरों न किरणें कौर हों
*
'हाय रे! इंसान की मजबूरियाँ
पास रहकर भी हैं कितनी दूरियाँ' गीत इसी बहर में है।
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शुक्रवार, 30 जून 2017

vyangya: purnima burman

मेरी रूहानी यात्रा: पूर्णिमा वर्मन


साभार: ब्लॉग बुलेटिन 
पूर्णिमा वर्मन का नाम वेब पर हिंदी की स्थापना करने वालों में अग्रगण्य है। १९९६ से निरंतर वेब पर सक्रिय, उनकी जाल पत्रिकाएँ अभिव्यक्ति तथा अनुभूति वर्ष २००० से अंतर्जाल पर नियमित प्रकाशित होने वाली पहली हिंदी पत्रिकाएँ हैं। इनके द्वारा उन्होंने प्रवासी तथा विदेशी हिंदी लेखकों को एक साझा मंच प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण काम किया है। लेखन एवं वेब प्रकाशन के अतिरिक्त वे जलरंग, रंगमंच, संगीत तथा हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय विकास के अनेक कार्यों से जुड़ी हैं।
संप्रति : 
संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन और कला कर्म में व्यस्त।
पुरस्कार व सम्मान : 
दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी तथा अक्षरम के संयुक्त अलंकरण "प्रवासी मीडिया सम्मान", जयजयवंती द्वारा जयजयवंती सम्मान, रायपुर में सृजन गाथा के "हिंदी गौरव सम्मान", विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर द्वारा मानद विद्यावाचस्पति (पीएच.डी.) की उपाधि तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान के पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से सम्मानित।
प्रकाशित कृतियाँ : 
कविता संग्रह : पूर्वा, वक्त के साथ एवं चोंच में आकाश, संपादित कहानी संग्रह- वतन से दूर, संपादित नवगीत संग्रह- नवगीत - २०१३, चिट्ठा : चोंच में आकाश, एक आँगन धूप, नवगीत की पाठशाला, शुक्रवार चौपाल, अभिव्यक्ति अनुभूति।
अन्य भाषाओं में- फुलकारी (पंजाबी में), मेरा पता (डैनिश में), चायखाना (रूसी में)

गर्मी फिर आ गई सजनी

।। मंगलाचरण ।।

जिन सूर्य भगवान के पीले कॉडरॉय के अंगरीय अर्थात् जीन्स के समान परिधान से निकलती पीली किरणें आठ बजे तक सोने वाले कलियुगी प्राणियों को सुबह–सुबह जगा कर 'बोर' करती हैं, जिनके लाल रंग के उत्तरीय अर्थात जैकेट के समान परिधान से बिखरने वाली सम्मोहक लाल किरणें खूबसूरत प्राणियों को गॉगल्स और छाता लगाने को मजबूर करती है, इस प्रकार के लाल–पीली किरणों के स्वामी, ग्रीष्म ऋतु के पिता, राजनीति रूपी आकाश में तानाशाह के पुत्र की भाँति चमकने वाले सूर्य भगवान को नमस्कार है, जिनके प्रताप से हे सजनी, गर्मी फिर आ गई है।

।। अथ ऋतु संदर्भ ।।

घर में हर ओर कामिक्स के पन्ने इधर उधर उड़ने लगे। साल भर से 'लिविंग रूम' में सजे बैटरी के खिलौने फ़र्श पर सर्वत्र दिखाई देने लगे। कैरम की गोटियों के खड़खड़ाने की आवाज़ें नियमित रूप से सुनाई देने लगीं। बैगाटेल की गोलियाँ बिस्तरों और कालीनों पर लुढ़कने लगीं। रसोईघर के 'ब्लेंडर' नामक यंत्र से 'मिल्कशेक' नामक व्यंजन बनाने की मधुर ध्वनि कानों को भँवरों के गुँजन के समान आह्लादित करने लगी। दोपहर भर दंगा करने वाले बच्चे 'ए सी' नामक यंत्र की ऐसी की तैसी कर के लंबी–लंबी नींद काटने लगे। बारामदे में लगा तापमापक यंत्र 45 डिग्री सेल्सियस की रेखा को पार कर गया। प्रात:काल स्कूल जानेवाले बच्चों के स्थान पर पीले अमलतास के फूल चारदीवारी के पार से हाथ हिला–हिला कर टाटा कहने लगे। छोटे बच्चे स्कूल बंद होने के कारण घर में ऊधम करने लगे। इन सभी दृष्यों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि हे सजनी गर्मी फिर आ गई।

हे सजनी गर्मी क्या आई पसीने का कूलर चालू हो कर तन बदन को शीतल करने लगा। भागती हुई लू ने अगले ओलंपिक दौड़ का पूर्वाभ्यास नियमित रूप से शुरू कर दिया। दाद देते हुए सूखे पत्तों के ढेर ने भी उसको उत्साहित करते हुए खड़खड़ाना शुरू कर दिया। हे सजनी बाह्य वातावरण पर्णरूपेण यह विदित कराने लगा कि गरमी फिर आ गई।

।। अथ प्रयाग वर्णन ।।

हे सजनी, शीतल पेय यत्र–तत्र सर्वत्र दिखाई देने लगे। सिविल लाइन्स की 'सोफेस्टिकेटेड' महिलाएँ फव्वारे वाले चौराहे पर खड़ी हो आइसक्रीम के कोन को जीभ निकाल कर चाटने लगी। उन्हें यह भी ध्यान न रहा कि उनके ओठों पर पुती महँगी लिपस्टिक इस क्रिया द्वारा लुप्त हो रही है। हे सजनी, किशोर युवक–युवतियाँ अपने–अपने गर्ल फ्रेंड और ब्वाय फ्रेंड के साथ सोडावाटर की बोतलों पर माँ–बाप का पैसा फूँकने लगे। आइसक्रीम और सोडावाटर ख़रीद सकने की सामर्थ्य न रखनेवाले ग़रीब प्राणी दस पैसे गिलास वाले ठंडे पानी से अपनी–अपनी महबूबाओं को संतुष्ट करने लगे। हे सजनी अमीर–ग़रीब हर प्रकार के प्राणी को शीतल पेय का आनंद प्रदान करनेवाली गर्मी की ऋतु का आगमन निश्चय ही फिर हो गया।

पुदीने से सजे लाल मटकों में आम के पने वाले चौक बाज़ार में अपने–अपने ठेलों सहित सुशोभित होने लगे। ताज़ा–ताज़ा ठंडा–मीठा बर्फ़ की चुस्की वाले बर्फ़ की नन्हीं सिल्लियों और शर्बत की लाल–पीली बोतलों के साथ चौक से अतरसुइया तक के फेरे लगाने लगे। लोकनाथ के शुद्ध घी वाले गर्मागरम समोंसों की सुगंध अब कुछ मंद पड़ गई। जगमग करती बड़े–बड़े शीशों की शोविंडो वाली बृहदाकार दूकानों के सामने, अफ्रीकी हाथी के बड़े–बड़े कानों के सदृश तिरपाल के पर्दे लहराने लगे। हे सजनी, जनगण का रंग परिवर्तित करने वाली गर्मी फिर आ गई।

।। अथ वाराणसी वर्णन ।।

वर्षा के विरह में गंगा घट कर आधी रह गई। वे सभी लोग जो जाड़ों में मनों मैल लादे रहने का गौरव धारण किए थे, प्रात:काल निद्रा त्याग कर तट पर भीड़ बनाने लगे। डुबकियाँ लेने और नहाने लगे। इसी बहाने कुछ मनचले और मनचलियाँ नैन और सैन लड़ाने लगे। किनारों पर छिपे हुए चोर चेन, घड़ियाँ और ट्रांज़िस्टर चुराने लगे। भैसें ग्वालों के खूँटे त्याग कर तालाबों की शोभा बढ़ाने लगीं। उनकी रखवाली करते किशोर लड़के धूप में घूमते खेलते विदेशी मेमों की तरह अपने शरीर को 'टैन' करते नगर परिसर की शोभा बढ़ाने लगे। विदेशी फ़कीर अर्थात हिप्पी छोकरे छोकरियाँ मंदिरों की आड़ में यत्र-तत्र सुस्ताने लगे। भदैनी से दशाश्वमेध घाट तक लगने वाले लंबे-लंबे ट्रैफ़िक जाम अब दिखाई नहीं देते। 

पति बच्चों और रिश्तेदारों को व्यस्त रखने वाली जाड़े की दोपहर अब गर्मी के दिनों में चहल पहल से भर उठी। ठंडाई और पान के दौर जमने लगे। मिर्ज़ापुरी कालीनों पर चादर बिछाकर मामा मामी बच्चों सहित ताश के पत्तों पर ट्वैंटी टू खेलने लगे। खेलते–खेलते खरबूज़ों के बीज छिलकों के बड़े ढेर में परिवर्तित होने लगे। हर शाम उनको झाड़ू से बुहारती महरी ज़ोर–ज़ोर से बड़बड़ाने लगी। इस प्रकार मौसम में गरमागरम बड़बड़ाहट भरने वाली गर्मी फिर आ गई।

।। अथ दिल्ली वर्णन ।।

हे सजनी, गर्मी की प्रचंड तपन से व्याकुल होकर बिजली की सप्लाई आँख–मिचौली करने लगी। जब–तब 'पावर–कट' होने लगे। इस प्रकार देश में स्वयं ही समाजवाद आने लगा। जिन धनिकों के वातानुकूलित कमरे एयरकंडीशनर की कृपा से ठंडे शिमला बने रहते थे, उन्हें काले धन की कमाई के फलस्वरूप 'पावर–कट' का कष्ट भोगने का दंड मिला। इस प्रकार पूँजीपतियों को उनकी काला–बाज़ारी का दंड पाते देख ग़रीब प्राणी प्रसन्न होकर समान जीवन–स्तर के गुण गाने लगे। हे सजनी, गर्मी एक बार फिर प्रत्येक प्राणी को समान अधिकार का सुख देने लगी। जवान युवक–युवतियाँ अपने–अपने कमरे बंद कर डिस्को संगीत की ब्लां–ब्लां पर तन–बदन को हिचकोले देने लगे। हे सजनी, दिशाओं में डिस्को की धुन भर देने वाली गर्मी सचमुच ही आ गईं।

बाज़ारों में मोटी भारी सिल्क की साड़ियाँ पीछे वाले स्टोर में रख दी गई। कोटा, वायल और आरगेंडी के हरे, गुलाबी छोटे–छोटे आकर्षक छापे शो विंडो में अपनी छवि बिखरने लगे। अद्दी और मलमल की आकस्मिक यानी 'सीजनल' दुकानों में आठ रुपए पीस के कपड़े धड़ल्ले से बिकने लगे। ठेलों पर सजे फुलपैंट अब नहीं दिखते और रंग–बिरंगे निक्कर पुन: धूम मचाने लगे। चिकन के कुर्ते की दूकानों में ठेलमेल और भीड़भाड़ दिखाई देने लगी। मोजे और दस्तानों की दूकानों में जन–सामान्य की आवाजाही बहुत कम हो गई। हर दूसरी–तीसरी दुकान पर लटकती, दस रुपए की लच्छी वाली रंग–बिरंगी ऊन की मालाओं के इंद्रधनुष, शरदकालीन बादलों की तरह लुप्त हो गए। गर्मी फिर आ ही गई।

।। अथ मीरजापुर वर्णन ।।

सालभर से सूने पड़े दूसरे और तीसरे पहर अब रंगीन हो उठे। ग्रामीण बूढ़ों के झुंड पीपल के नीचे बने चबूतरे पर बैठकर नाती–पोतों की बुराई–भलाई करने में व्यस्त हो गए। घर की औरतें दोपहर भर बैठी बहू–बेटियों और नए ज़माने को कोसने लगी। छोटे शहरों में बड़े भैया यूनिवर्सिटी बंद हो जाने पर यार–दोस्तों सहित अड्‌डा जमाकर 'वीडियो पर नई फ़िल्में देखने लगे। संतरे और गन्ने के रस के ठेले अपनी कांति बिखेरने लगे। फलों की सुगंध से आकर्षित होकर मक्खियों के माता–पिता अपने संपूर्ण अनियोजित, असुखी, मरभुक्खे परिवार के साथ ठेलों पर छा गए। स्वास्थ्य और सफ़ाई के सारे कार्यक्रम पर पानी फेरते मक्खियों के झुंड हैजे का प्रकोप फैलाते हुए, डाक्टरों के बीच फैली बेरोज़गारी दूर करने का प्रयास करने लगे। जन साधारण में फैलते अतिसार और पेट की ख़राबी के रोगों के कारण हर नुक्कड़ पर बैठने वाले हर छोटे–बड़े डाक्टर की आमदनी के रास्ते खुलने लगे। हे सजनी, इस प्रकार डाक्टरों का भला करनेवाली गर्मी फिर आ गई।

शालीमार आइसक्रीम की आवाज़ें दोपहर के घोर सन्नाटे को वेधने लगीं। सफ़ेद खरबूजे के ढेर बड़े–बड़े हीरों के पहाड़ की तरह मंडी में चमकने लगे। इसके साथ ही रखे हरे तरबूज, पन्ने के भीमकाय गोल आकारों की तरह दृष्टि को चकाचौंध करने लगे। लैला की उँगलियाँ– मजनू की पसलियाँ– ककड़ियाँ अपने नाजुक कलेवर के साथ भोजन–प्रेमियों का हृदय जीतने लगीं। सोने के चंद्रहार की तरह आकर्षक कटहल, भगवान विष्णु के मुकुट में टँके बड़े–से पन्ने के आकार के परवल और नवदूर्वादल के समान हरी–हरी भिंडियों ने मटर और गोभी की छुट्टी कर दी। हे सजनी, यत्र–तत्र छा जानेवाली गर्मी फिर आ गई। 

।। अथ दुबई नगर वर्णन ।।

बच्चों ने देर रात तक सड़कों पर खेलना बंद कर दिया। इसके कारण अरबी भाषा में बिखरते हुए मनोरंजक शब्दों की ध्वनि अब सुनाई नहीं देती। विदेशी अपने अपने देशों को छुट्टी मनाने चले गए। हमेशा भरी रहने वाली सड़कें सुनसान हो गईं। दूकानों और बाज़ारों में अब भीड़ नहीं दिखाई देती। फिर भी सड़कें "समर फ़ेस्टिवल" नामक उत्सव के बड़े-बड़े 'होर्डिंग' नामक चित्रों से सज गईं। भारी भरकम "मेगा–माल" कही जाने वाली बाज़ारनुमा इमारतें अपने यहाँ प्रतियोगिताएँ और नाच गाने आयोजित करने लगीं। इस प्रकार वे विदेशी कलाकारों को बुलाकर उनके नाम से स्थानीय लोगों को आकर्षित करने लगीं। सूर्य भगवान की तेज़ किरनें नगर के चार दीर्घाओं वाले विस्तृत राजमार्गों पर तीव्र गति से दौड़ने वाली वातानुकूलित कारों के भीतर भी किरणावरोधी नयन कवच अर्थात पोलरायड ऐनक पहनने को बाध्य करने लगीं। ओपेन एअर रेस्ट्रां अपना बोरिया बिस्तर उठा कर अंदर 'ए सी' में पैक हो गए। 

जन सामान्य का सारा ध्यान और मनोरंजन रेडियो, टी वी, कंप्यूटर और वीडियो गेम पर सिमट आया। रेडियो पर गर्मी के गाने बजने लगे, गर्मी के नाटक होने लगे। यहाँ तक कि कविताएँ और लेख भी गर्मी के विषय में ही प्रसारित होने लगे। यही हाल पत्र–पत्रिकाओं का भी हुआ। कहीं कटहल के कोफ्ते छपने लगे, कहीं शर्बतों के सौ व्यंजन प्रकाशित होने लगे। गर्मियों में 'रूप की रक्षा कैसे' इस विषय पर सिने अभिनेत्रियाँ अपने-अपने व्याख्यान देने लगीं। यूरोप और अमरीका में छुट्टियाँ कहाँ और कैसे मनायी जाएँ इस विषय पर बड़ी–बड़ी यात्रा कंपनियाँ अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करने लगीं। रात में 'वाटर किगडम' नामक मनोरंजन स्थलों पर भीड़ जमा होने लगी। हे सजनी जो लोग साल भर काम में अपना भेजा खपाए रहते थे उनको आराम देने की यह ऋतु अब आ ही गई।

।। अथ उपसंहार ।।

इस प्रकार हर ओर ग्रीष्म ऋतु का सौंदर्य देख कर हे सजनी मेरा मन भी विचलित हो उठा है। मैं यहाँ अपने बगीचे में अंतिम साँसें लेती हुई पैंज़ी की क्यारियों के दु:ख में दुखी हूँ और उधर बर्मिंघम से शैल जीजी अपने बगीचे में डैफोडिल खिला रही हैं। लानत है मुझ पर इस दुख को दूर करने की बजाय मैं फ़ालतू बैठी अपना की-बोर्ड टिपटिपा रही हूँ। मित्रों ये क्यारियाँ अब साफ़ करनी हैं। गरमी भर यहाँ कोचिया और पोर्टूलका के सिवा और कुछ नहीं उगेगा। तो फिर, कही डैफोडिल खिलाने और कहीं पैंजी का समूल नाश करने वाली इस ग्रीष्म ऋतु का वर्णन यहीं संपूर्ण करते हैं। विश्व में कहीं सुख और कहीं दु:ख का वितरण करने वाली यह ऋतु हमारे सभी पाठकों का कल्याण करे।

ayurved / swasthya

स्वास्थ्य लाभ के आयुर्वेदिक सूत्र
*
गला और छाती की बीमारी का इलाज :
गले में इन्फेक्शन की श्रेष्ठ दवा है हल्दी । गले में दर्द, खराश, खांसी, कफ, तोसिल या अन्य पीड़ा हो तो आधा चम्मच कच्ची हल्दी का रस गले में डालकर थोड़ी देर चुप बैठ जाएँ। हल्दी गले में लार के साथ गले के अंदर जायेगी और एक खुराक में ही आराम मिलेगा।
दूसरी दवा है अदरक। अदरक का छोटा सा टुकड़ा मुह में रखकर और टॉफी की तरह चूसें तो खाँसी ठीक होगी। खाँसते-खाँसते चेहरा लाल पड़ गया हो तो अदरक के रस में थोड़ा पान का रस, गुड या शहद मिलाकर, थोडा गरम कर एक-एक चम्मच पीने से तुरंत आराम होगा ।
अनार का रस गरम कर पियें तो खाँसी तुरन्त ठीक होती है।
काली मिर्च चबाकर गरम पानी पियें या काली मिर्च चूसें तो खाँसी बंद होती है।
दमा, ब्रोंकिओल अस्थमा आदि की सबसे अच्छा दवा है गौमूत्र। गौ का सवेरे निकला आधा कप गोमूत्र पियें तो दमा, अस्थमा, ब्रोंकिओल अस्थमा ठीक होता है ।
दालचीनी का पाउडर रोज सुबह आधे चम्मच खाली पेट गुड या शहद मिलाकर गरम पानी के साथ लेने से दमा, अस्थमा ठीक होता है।
लगातार पाँच-छ: माह गोमूत्र पीने से टी.बी. ठीक होता है।
***