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बुधवार, 19 अप्रैल 2017

ग़ज़ल

एक बुंदेली लोक कथा 
बैठे तो उठै नईं, परै तो टरै नईं 
१०१. भौत दिना भए, अपने जा बुन्देलखण्ड मा चन्देलन की तूती बोलत हती।  
१०२. चन्देलन के राज में परजा सुख-चैन की बाँसुरी बजात रही। 
१०३. सुनों है के सेर और बकरिया एकई घाट पै पानी पियर रए।
१०४. राजा की मरजी कें बिना न चिरीया चीकत थी, ना बाज पर फरफरात तो।
१०५. सो ऊ राजा के एक बिटिया हती। 
१०६. भौतऊ खूबसूरत, मनो पूनम कैसो चन्दा।
१०७.    

एक रचना
*
वतन परस्तों से शिकवा किसी को थोड़ी है
गैर मुल्कों की हिमायत ही लत निगोड़ी है
*
भाईचारे के बीच मजहबी दखल क्यों हो?
मनमुटावों का हल, नाहक तलाक थोड़ी है
*
साथ दहशत का न दोगे, अमन बचाओगे
आज तक पाली है, उम्मीद नहीं छोड़ी है
*
गैर मुल्कों की वफादारी निभानेवालों
तुम्हारे बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
*
है दुश्मनों से तुम्हें आज भी जो हमदर्दी
तो ये भी जान लो, तुमने ही आस तोड़ी है
*
खुदा न माफ़ करेगा, मिलेगी दोजख ही
वतनपरस्ती अगर शेष नहीं थोड़ी है
*
जो है गैरों का सगा उसकी वफा बेमानी
हाथ के पत्थरों में आसमान थोड़ी है
*




मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

chhand-bahar


ॐ 
छंद बहर का मूल है: ६  
*
छंद परिचय:
संरचना: SIS ISI S
SI SIS IS 
सूत्र: रजतरलग।
चौदह वार्णिक शर्करी जातीय            छंद।
बाईस मात्रिक महारौद्र जातीय          छंद।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं।
*
देश-गीत गाइए, भेद भूल जाइए
सभ्यता महान है, एक्य-भाव लाइए 
*
कौन था कहाँ रहा?, कौन है कहाँ बसा?
सम्प्रदाय-लिंग क्या?, भूल साथ आइए
 *
प्यार-प्रेम से रहें, स्नेह-भाव ही गहें 
भारती समृद्ध हो, नर्मदा नहाइए
 *
दीन-हीन कौन है?, कार्य छोड़ मौन जो
देह देश में बनी, देश में मिलाइए
 *
वासना न साध्य है, कामना न लक्ष्य है 
भोग-रोग-मुक्त हो, त्याग-राग गाइए
*
ज्ञान-कर्म इन्द्रियाँ, पाँच तत्व देह है  
गह आत्म-आप का, आप में खपाइए 
*
भारतीय-भारती की उतार आरती
भव्य भाव भव्यता, भूमि पे उतरिये
***
१८.४.२०१७ 
*** 

प्रश्न-उत्तर


रोचक चर्चा:
गुड्डो दादी 
ताल मिले नदी के जल से 
नदी और सागर का मेल ताल क्यों ?
*
सलिल-वृष्टि हो ताल में, भरे बहे जब आप
नदी ग्रहण कर समुद तक, पहुँचे हो थिर-व्याप
लघु समुद्र तालाब है, महाताल है सिंधु
बिंदु कहें तालाब को, सागर को कह इंदु
***

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

chhand-bahar

ॐ 
छंद बहर का मूल है: ५  
चामर छंद
*
छंद परिचय:
पन्द्रह वार्णिक अतिशर्करी जातीय चामर छंद।
तेईस मात्रिक रौद्राक जातीय     छंद
 
संरचना: SIS ISI SIS ISI SIS
सूत्र: रजरजर।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं।
*
देश का सवाल है न राजनीति खेलिए
लोक को रहे न शोक लोकनीति कीजिए
*
भेद-भाव भूल स्नेह-प्रीत खूब बाँटिए 

नेह नर्मदा नहा , रीति-प्रीति भूलिए
*
नीर के बिना न जिंदगी बिता सको कभी
साफ़ हों नदी-कुएँ सभी प्रयास कीजिए
*
घूस का न कायदा, न फायदा उठाइये  

काम-काज जो करें, न वक्त आप चूकिए
*
ज्यादती न कीजिए, न ज्यादती सहें कभी
कामयाब हों, प्रयास बार-बार कीजिए
*
पीढ़ियाँ न एक सी रहीं, न हो सकें कभी 

हाथ थाम लें, गले लगा न आप जूझिए
*
घालमेल छोड़, ताल-मेल से रहें सुखी
सौख्य पालिए, न राग-द्वेष आप घोलिए
*
१७.४.२०१७
***

रविवार, 16 अप्रैल 2017

bhakti geet

एक रचना
रेवा मैया
*
रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
जग-जीवन की नाव खिवैया
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
भाव सागर से पार लगैया
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
रोग-शोक भव-बाधा टारें
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
सब जनगण मिल जय उच्चारें
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
अमृत जल है जीवनदाता
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
पुण्य अनंत भक्त पा जाता
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
ब्रम्हा-शिव-हरि तव गुण गायें
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
संत असुर सुर नर तर जाएँ
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
विन्ध्य, सतपुड़ा, मेकल हर्षित
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
निंगादेव हुए जन पूजित
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
नरसिंह कनककशिपु संहारे
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
परशुराम ने क्षत्रिय मारे
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
राम-सिया तव तीरे आये
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
हनुमत-जामवंत मिल पाए
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
बाणासुर ने रावण पकड़ा
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
काराग्रह में जमकर जकड़ा
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
पांडवगण वनवास बिताएँ
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
गुप्तेश्वर के यश जन गायें
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
गौरी घाट तीर्थ अतिसुन्दर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
घाट लम्हेटा परम मनोहर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
तिलवारा बैठे तिल ईश्वर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
गौरी-गौरा भेड़े तप कर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
धुआंधार में कूद लगाई
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
चौंसठ योगिनी नाचें माई
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
संगमरमरी छटा सुहाई
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
नौकायन सुख-शांति प्रदाई
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
बंदर कूदनी कूदे हनुमत
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
महर्षि-ओशो पूजें विद्वत
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
कलकल लहर निनाद मनोहर
             रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
हो संजीव हरो विपदा हर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
***

bhakti geet

भक्ति गीत :
कहाँ गया
*
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
कण-कण में तू रम रहा
घट-घट तेरा वास.
लेकिन अधरों पर नहीं
अब आता है हास.
लगे जेठ सम तप रहा
अब पावस-मधुमास
क्यों न गूंजती बाँसुरी
पूछ रहे खद्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
श्वास-श्वास पर लिख लिया
जब से तेरा नाम.
आस-आस में तू बसा
तू ही काम-अकाम.
मन-मुरली, तन जमुन-जल
व्यथित विधाता वाम
बिसराया है बोल क्यों?
मिला ज्योत से ज्योत  
कहाँ गया रणछोड़ रे!,
जला प्रेम की ज्योत
*
पल-पल हेरा है तुझे
पाया अपने पास.
दिखता-छिप जाता तुरत
ओ छलिया! दे त्रास.
ले-ले अपनीं शरण में
'सलिल' तिहारा दास
दूर न रहने दे तनिक
हम दोनों सहगोत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
***

doha

दोहा दुनिया 

नित्य निनादित नर्मदा, कलकल सलिल प्रवाह
ताप किनारे ही रुका, लहर मिटाती दाह
*
परकम्मा करते चरण, वरते पुण्य असीम
छेंक धूप को छाँह दें, पीपल, बरगद, नीम
*
मन कठोर चट्टान सा, तप पा-देता कष्ट
जल संतों सा तप करे, हरता द्वेष-अनिष्ट
*
मग पर पग पनही बिना, नहीं उचित इस काल
बाल न बाँका लू करे, पनहा पी हर हाल
*
गाँठ प्याज की संग रख, लू से करे बचाव
मट्ठा पी ठट्ठा करो, व्यर्थ न खाओ ताव
*
भर गिलास लस्सी पियो, नित्य मलाईदार
कहो 'नर्मदे हर' सलिल, खा ककड़ी हर बार
*
पीस पोदीना पत्तियाँ, मिर्ची-कैरी-प्याज
काला नमक व गुड़ मिला, जमकर खा तज लाज
*
मीठी या नमकीन हो, रुचे महेरी खूब
सत्तू पी ले घोलकर, जा ठंडक में डूब
*
खरबूजे-तरबूज से, मिले तरावट खूब
लीची खा संजीव नित, मस्ती में जा डूब
*
गन्ना-रस ग्लूकोज़ का, करता दूर अभाव
गुड़-पानी अमृत सदृश, पार लगाता नाव
*

chhand-bahar

ॐ 
छंद बहर का मूल है: ४ 
कुंडल छंद
*
छंद परिचय:
बाईस मात्रिक महारौद्र जातीय कुंडल छंद 

चौदह वार्णिक शर्करी जातीय छंद।
संरचना: SIS ISI SIS ISI SS
सूत्र: रजरजगग।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं फ़ऊलुं।
*
प्रात, शाम, रात रोज आप ही सुहाए 

मौन हेरता रहा न आज आप आए 
*
छंद-गीत, राग-रीत कौन सीखता है?
शारदा कृपा करें तभी न सीख पाए 
*
है कहाँ छिपा हुआ, न चाँद दीखता है 
दीप बाल-बाल रात ही न हार जाए 
*
दूर बैठ ताकती , न भू भुला सकी है 
सूर्य रश्मि-रूप धार श्वास में समाए 
*
आसमान छेदता, दिशा-हवा न रोके 
कामदेव चित्त को अशांत क्यों बनाये?
*
प्रेमिका न ज्ञान-दान प्रेम चाहती है 
रुठती न, रूठना दिखा-दिखा खिझाए 
*
हारता न, हार-हार प्रेम जीतता है 
जीतता न जीत-जीत, प्रेम ही हराए 
*
१६.४.२०१७
***

chhatisgarhi doha


छत्तीसगढ़ी  दोहा:-- 
हमर देस के गाँव मा, सुन्हा सुरुज विहान. 
अरघ देहे बद अंजुरी, रीती रोय किसान.. 
*
जिनगानी के समंदर, गाँव-गँवई के रीत. 
जिनगी गुजरत हे 'सलिल', कुरिया-कुंदरा मीत.. 
*
महतारी भुइयाँ असल, बंदत हौं दिन-रात. 
दाई! पैयाँ परत हौं. मूंडा पर धर हात.. 
*
जाँघर तोड़त सेठ बर, चिथरा झूलत भेस. 
मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस.. 
*
बाँग देही कुकराकस, जिनगी बन के छंद. 
कुररी कस रोही 'सलिल', मावस दूबर चंद..
१६-४-२०१० 
***

pratirachna

माननीय राकेश जी को समर्पित
प्रति रचना:
जीवन के ढाई आखर को
संजीव
*
बीती उमर नहीं पढ़ पाये, जीवन के ढाई आखर को
गृह स्वामी की करी उपेक्षा, सेंत रहे जर्जर बाखर को...
*

रूप-रंग, रस-गंध चाहकर, खुदको समझे बहुत सयाना
समझ न पाये माया-ममता, मोहे मन को करे दिवाना
कंकर-पत्थर जोड़ बनायी मस्जिद, जिसे टेर हम हारे-
मन मंदिर में रहा विराजा, मिला न लेकिन हमें ठिकाना
निराकार को लाख दिये आकार न छवि उसकी गढ़ पाये-
नयन मुँदे मुस्काते पाया कण-कण में उस नटनागर को...
*
श्लोक-ऋचाएँ, मंत्र-प्रार्थना, प्रेयर सबद अजान न सुनता
भजन-कीर्तन,गीत-ग़ज़ल रच, मन अनगिनती सपने बुनता
पूजा-अनुष्ठान, मठ-महलों में रहना कब उसको भाया-
मेवे छोड़ पंजीरी फाके, देख पुजारी निज सर धुनता
खाये जूठे बेर, चुराये माखन, रागी किन्तु विरागी
एक बूँद पा तृप्त हुआ पर है अतृप्त पीकर सागर को...
*
अर्थ खोज-संचित कर हमने, बस अनर्थ ही सदा किया है
अमृत की कर चाह गरल का, घूँट पिलाया सतत पिया है
लूट तिजोरी दान टेक का कर खुद को पुण्यात्मा माना-
विस्मित वह पाखंड देखकर मनुज हुआ पाषाण-हिया है
कैकट्स उपजाये आँगन में, अब तुलसी पूजन हो कैसे?
देशनिकाला दिया हमीं ने चौपालों, पनघट गागर को
१६-४-२०१५
*

navgeet

नव गीत: 
संजीव 
.
अपने ही घर में 
बेबस हैं 
खुद से खुद ही दूर
.
इसको-उसको परखा फिर-फिर
धोखा खाया खूब
नौका फिर भी तैर न पायी
रही किनारे डूब
 दो दिन मन में बसी चाँदनी
फिर छाई क्यों ऊब?
काश! न होता मन पतंग सा
बन पाता हँस दूब
पतवारों के
वार न सहते
माँझी होकर सूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
एक हाथ दूजे का बैरी
फिर कैसे हो खैर?
पूर दिये तालाब, रेत में
कैसे पायें तैर?
फूल नोचकर शूल बिछाये
तब करते है सैर
अपने ही जब रहे न अपने
गैर रहें क्यों गैर?
रूप मर रहा
बेहूदों ने
देखा फिर-फिर घूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
संबंधों के अनुबंधों ने
थोप दिये प्रतिबंध
जूही-चमेली बिना नहाये
मलें विदेशी गंध
दिन दोपहरी किन्तु न छटती
फ़ैली कैसी धुंध
लंगड़े को काँधे बैठाकर
अब न चल रहे अंध
मन की किसको परख है
ताकें तन का नूर
***

१६-४-२०१५ 
नवगीत
संजीव
.
बांसों के झुरमुट में
धांय-धांय चीत्कार 
.
परिणिति
अव्यवस्था की
आम लोग
भोगते.
हाथ पटक
मूंड पर
खुद को ही
कोसते.
बाँसों में
 उग आये
कल्लों को
पोसते.
चुभ जाती झरबेरी
करते हैं सीत्कार
.
असली हो
या नकली
वर्दी तो
है वर्दी.
असहायों
को पीटे
खाखी हो
या जर्दी.
गोलियाँ
सुरंग जहाँ
वहाँ सिर्फ
नामर्दी.
बिना किसी शत्रुता
अनजाने रहे मार
.
सूखेंगे
आँसू बह.
रक्खेंगे
पीड़ा तह.
बलि दो
या ईद हो
बकरी ही
 हो जिबह.
कुंठा-वन
खिसियाकर
खुद ही खुद
होता दह
जो न तर सके उनका
दावा है रहे तार
***

१६-४-२०१५ 
मन-रंजन 
नवगीत:
संजीव
.
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
कथ्य अमरकंटक पर
तरुवर बिम्ब झूमते
डाल भाव पर विहँस
 बिम्ब कपि उछल लूमते
रस-रुद्राक्ष माल धारेंगे
लोक कंठ बस छंद कन्त रे!
 नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
 दुग्ध-धार लहरें लय
देतीं नवल अर्थ कुछ
गहन गव्हर गिरि उच्च
सतत हरते अनर्थ कुछ
निर्मल सलिल-बिंदु तर-तारें
ब्रम्हलीन हों साधु-संत रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
विलय करे लय मलय
न डूबे माया नगरी
सौंधापन माटी का
मिटा न दुनिया ठग री!
ढाई आखर बिना न कोई
किसी गीत में तनिक तंत रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.

१६-४-२०१५ 
***
नव गीत:
संजीव
.
अपने ही घर में
बेबस हैं 
खुद से खुद ही दूर
.
इसको-उसको परखा फिर-फिर
धोखा खाया खूब
नौका फिर भी तैर न पायी
रही किनारे डूब
 दो दिन मन में बसी चाँदनी
फिर छाई क्यों ऊब?
काश! न होता मन पतंग सा
बन पाता हँस दूब
पतवारों के
वार न सहते
माँझी होकर सूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
एक हाथ दूजे का बैरी
फिर कैसे हो खैर?
पूर दिये तालाब, रेत में
कैसे पायें तैर?
फूल नोचकर शूल बिछाये
तब करते है सैर
अपने ही जब रहे न अपने
गैर रहें क्यों गैर?
रूप मर रहा
बेहूदों ने
देखा फिर-फिर घूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
संबंधों के अनुबंधों ने
थोप दिये प्रतिबंध
जूही-चमेली बिना नहाये
मलें विदेशी गंध
दिन दोपहरी किन्तु न छटती
फ़ैली कैसी धुंध
लंगड़े को काँधे बैठाकर
अब न चल रहे अंध
मन की किसको परख है
ताकें तन का नूर
***

१६-४-२०१५

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

chhand-bahar

ॐ 
छंद बहर का मूल है: ३
राग छंद
*
छंद परिचय:
बीस मात्रिक महादैशिक जातीय छंद।
तेरह वार्णिक अति जगती जातीय राग छंद।
संरचना: SIS ISI SIS ISI S
सूत्र: रजरजग।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं 
मुफ़ाइलुं अल
*
आइये! मनाइए, रिझाइए हमें 

प्यार का प्रमाण भी दिखाइए हमें 
*
चाह में रहे, न सिर्फ बाँह में रहे 
क्रोध से तलाक दे न जाइए हमें 
*
''हैं न आप संग तो अजाब जिंदगी''
बोल प्यार बाँट संग पाइए हमें 
*
जान हैं, बनें सुजान एक हों सदा 
दे अजान रोज-रोज भाइये हमें 
*
कौन छंद?, कौन बहर?, क्यों पता करें?
शब्द-भाव में पिरो बसाइए हमें 
*
संत हों न साधु हों, न देवता बनें 
आदमी बने तभी सुहाइये हमें
*
दो, न दो रहें, न एक बनें, क्यों कहो?
जान हमारी बनें बनाइए हमें 
१५.४.२०१७ 
***

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

madhumalti chhand

नवलेखन कार्यशाला 
*
आ गुरूजी
एक प्रयास किया है । कृपया मार्गदर्शन दें । सादर ।
शारदे माँ ( मधुमालती छंद)
माँ शारदे वरदान दो
सद्बुद्धि दो संग ज्ञान दो
मन में नहीं अभिमान हों
अच्छे बुरे की पहचान दो ।
वाणी मधुर रसवान दो
मैं मैं का न गुणगान हों
बच्चे अभी नादान हम
निर्मल एक मुस्कान दो
न जाने कि हम कौन हैं
हमें अपनी पहचान दो
अल्प ज्ञानी मानो हमें
बस चरण में तुम स्थान दो ।।
कल्पना भट्ट
*
प्रिय कल्पना!
सदा खुश रहें।
मधुमालती १४-१४ के दो चरण, ७-७ पर यति, पदांत २१२ ।
शारदे माँ ( मधुमालती छंद)
माँ शारदे! वरदान दो
सदबुद्धि दो, सँग ज्ञान दो
मन में नहीं अभिमान हो
शुभ-अशुभ की पहचान दो।
वाणी मधुर रसवान दो
'मैं' का नहीं गुण गान हो
बच्चे अभी नादान हैं
निर्मल मधुर मुस्कान दो
किसको पता हम कौन हैं
अपनी हमें पहचान दो
हम अल्प ज्ञानी माँ! हमें
निज चरण में तुम स्थान दो ।।
*

chhand-bahar

ॐ 
छंद बहर का मूल है: २ 
*
छंद परिचय:
ग्यारह मात्रिक रौद्र जातीय छंद।
सप्तवार्णिक उष्णिक जातीय समानिका छंद।
संरचना: SIS ISS
सूत्र: रगण जगण गुरु / रजग। 
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं ।
*
सूर्य आप भी बने 
          * 
सत्य को न मारना 
झूठ से न हारना 
गैर को न पूजना 
दीन से न भागना 
बात आत्म की सुनें 
सूर्य आप भी बने 
          * 
काम काम से रखें 
राम-राम भी भजें 
डूब राग-रंग में 
धर्म-कर्म ना तजें                                     
शुभ विचार कर गुनें 
सूर्य आप भी बने 
          * 
देव दैत्य आप हैं 
पुण्य-पाप आप हैं
आप ही बुरे-भले 
आप ही उगे-ढले 
साक्ष्य भाव से जियें 
सूर्य आप भी बने 
१४.४.२०१७ 
       *** 

गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

chhand-bahar

छंद बहर का मूल है: १
छंद परिचय:
दस मात्रिक दैशिक जातीय भव छंद।
षडवार्णिक गायत्री जातीय सोमराजी छंद।
संरचना: ISS ISS,
सूत्र: यगण यगण, यय।
बहर: फ़ऊलुं फ़ऊलुं ।
*
कहेगा-कहेगा
सुनेगा-सुनेगा।
हमारा-तुम्हारा
फ़साना जमाना।
          मिलेंगे-खिलेंगे
          चलेंगे-बढ़ेंगे।
          गिरेंगे-उठेंगे
          बनेंगे निशाना।
न रोके रुकेंगे
न टोंके झुकेंगे।
कभी ना चुकेंगे
हमें लक्ष्य पाना।
          नदी हो बहेंगे
          न पीड़ा तहेंगे।
          ख़ुशी से रहेंगे
          सुनाएँ तराना।  
नहीं हार मानें
नहीं रार ठानें।
नहीं भूल जाएँ
वफायें निभाना।
***

kundali, shashi purwar-sanjiv

एक कुंडली- दो रचनाकार
दोहा: शशि पुरवार
रोला: संजीव
*
सड़कों के दोनों तरफ, गंधों भरा चिराग 
गुलमोहर की छाँव में, फूल रहा अनुराग
फूल रहा अनुराग, लीन घनश्याम-राधिका 
दग्ध कंस-उर, हँसें रश्मि-रवि श्वास साधिका 
नेह नर्मदा प्रवह, छंद गाती मधुपों के 
गंधों भरे चिराग, प्रज्वलित हैं सड़कों के 
***

suvichar ratan tata

रतन टाटा के सुविचार दोहानुवाद सहित 
१. नाश न लोहे का करे, अन्य किन्तु निज जंग 
    अन्य नहीं मस्तिष्क निज, करें व्यक्ति को तंग 
1. None can destroy iron, but its own rust can!
Likewise, none can destroy a person, but his own mindset can.

२. ऊँच-नीच से ही मिले, जीवन में आनंद 
    ई.सी.जी. में पंक्ति यदि, सीधी धड़कन बंद 
2. Ups and downs in life are very important to keep us going, because a straight line even in an E.C.G. means we are not alive.
३. भय के दो ही अर्थ हैं, भूल भुलाकर भाग 
    या डटकर कर सामना, जूझ लगा दे आग 
3. F-E-A-R : has two meanings :
1. Forget Everything And Run
2. Face Everything And Rise.
***

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

tantrokta raatri sukta

हिंदी काव्यानुवाद-
तंत्रोक्त रात्रिसूक्त 
*
II यह तंत्रोक्त रात्रिसूक्त है II
I ॐ ईश्वरी! धारक-पालक-नाशक जग की, मातु! नमन I 
II हरि की अनुपम तेज स्वरूपा, शक्ति भगवती नींद नमन I१I
*
I ब्रम्हा बोले: 'स्वाहा-स्वधा, वषट्कार-स्वर भी हो तुम I
II तुम्हीं स्वधा-अक्षर-नित्या हो, त्रिधा अर्ध मात्रा हो तुम I२I
*
I तुम ही संध्या-सावित्री हो, देवी! परा जननि हो तुम I
II तुम्हीं विश्व को धारण करतीं, विश्व-सृष्टिकर्त्री हो तुम I३I  
*
I तुम ही पालनकर्ता मैया!, जब कल्पांत बनातीं ग्रास I
I सृष्टि-स्थिति-संहार रूप रच-पाल-मिटातीं जग दे त्रास I४I 
*
I तुम्हीं महा विद्या-माया हो, तुम्हीं महा मेधास्मृति हो I
II कल्प-अंत में रूप मिटा सब, जगन्मयी जगती तुम हो I५I
*
I महा मोह हो, महान देवी, महा ईश्वरी तुम ही हो I 
II सबकी प्रकृति, तीन गुणों की रचनाकर्त्री भी तुम हो I६I
*
I काल रात्रि तुम, महा रात्रि तुम, दारुण मोह रात्रि तुम हो I
II तुम ही श्री हो, तुम ही ह्री हो, बोधस्वरूप बुद्धि तुम हो I७I
*
I तुम्हीं लाज हो, पुष्टि-तुष्टि हो, तुम ही शांति-क्षमा तुम हो I
II खड्ग-शूलधारी भयकारी, गदा-चक्रधारी तुम हो I८I
*
I तुम ही शंख, धनुष-शर धारी, परिघ-भुशुण्ड लिए तुम हो I
II सौम्य, सौम्यतर तुम्हीं सौम्यतम, परम सुंदरी तुम ही हो I९I
*
I अपरा-परा, परे सब से तुम, परम ईश्वरी तुम ही हो I
II किंचित कहीं वस्तु कोई, सत-असत अखिल आत्मा तुम होI१०I
*
I सर्जक-शक्ति सभी की हो तुम, कैसे तेरा वंदन हो ?
II रच-पालें, दे मिटा सृष्टि जो, सुला उन्हें देती तुम हो I११I 
*
I हरि-हर,-मुझ को ग्रहण कराया, तन तुमने ही हे माता! I
II कर पाए वन्दना तुम्हारी, किसमें शक्ति बची माता!! I१२I
*
I अपने सत्कर्मों से पूजित, सर्व प्रशंसित हो माता!I
II मधु-कैटभ आसुर प्रवृत्ति को, मोहग्रस्त कर दो माता!!I१३II'
*
I जगदीश्वर हरि को जाग्रत कर, लघुता से अच्युत कर दो I
II बुद्धि सहित बल दे दो मैया!, मार सकें दुष्ट असुरों को I१४I
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IIइति रात्रिसूक्त पूर्ण हुआII
१२-४-२०१७

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

doha

दोहा दुनिया
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गौड़-तुच्छ कोई नहीं, कहीं न नीचा-हीन
निम्न-निकृष्ट किसे कहें, प्रभु-कृति कैसे दीन?
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मिले 'मरा' में 'राम' भी, डाकू में भी संत
ऊँच-नीच माया-भरम, तज दे तनिक न तंत
*
अधमाधम भी तर गए, कर प्रयास है सत्य
'सलिल' हताशा पाल मात, अपना नहीं असत्य
*
जिसको हरि से प्रेम है, उससे हरि को प्रेम,
हरिजन नहीं अछूत है, करे सफाई-क्षेम
*
दीपक के नीचे नहीं, अगर अँधेरा मीत
उजियारा ऊपर नहीं, यही जगत की रीत
*
रात न श्यामा हो अगर, उषा न हो रतनार
वाम रहे वामा तभी, रुचे मिलन-तकरार
*
विरह बिना कैसे मिले, मिलने का आनंद
छन्दहीन रचना बिना, कैसे भाये छंद?
*
बसे अशुभ में शुभ सदा, शुभ में अशुभ विलीन
अशरण शरण मिले 'सलिल', हो अदीन जब दीन
*
मृग-तृष्णा निज श्रेष्ठता, भ्रम है पर का दैन्य
नत पांडव होते जयी, कुरु मरते खो सैन्य
*
नर-वानर को हीन कह, असुरों को कह श्रेष्ठ
मिटा दशानन आप ही, अहं हमेशा नेष्ट
*
दुर्योधन को श्रेष्ठता-भाव हुआ अभिशाप
धर्मराज की दीनता, कौन सकेगा नाप?
*

सूचना

बैठक में पधारिये विश्व वाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
पुस्तक समीक्षा तथा नवलेखन-गोष्ठी निम्नानुसार आयोजित है:
दिनांक: १४-४-२०१७।
समय: सायं ५.०० बजे।
स्थान: हिंदी गुरुकुल - अभियान कार्यालय
(२०४ विजय अपार्टमेंट, ए सी सी सीमेंट -मधुवन शहद के पीछे, होम साइंस कोलेज मानस भवन मार्ग, नेपियर टाउन जबलपुर) ।

निर्दिष्ट कार्यावली:
१. पुस्तक चर्चा- पिछले दिनों पढ़ी पुस्तक पर पाठकीय टिप्पणी का वाचन. पुस्तक साथ ला सकें तो बेहतर, ४५ t ।

२. पिछली बैठक में हुई साहित्यिक चर्चाओं और रचना कर्म संबंधी शंका-समाधान. प्रश्न लिखकर लायें।

३. तात्कालिक लेखन सत्र, १५ मिनिट लेखन अवधि, ३० मिनिट चर्चा।

४. रचना पाठ, प्रत्येक सहभागी ३ मिनिट।

५. अन्य अध्यक्ष की अनुमति से।

टीप: १. अपने साथ अपनी कोरे कागज़, कलम लायें ताकि दिए गये विषय पर त्वरित लेखन किया जा सके ।
२. समय का विशेष ध्यान रखें।
३. समिहिक लघुकथा संकलनों हेती रचनाओं की लिखित प्रति साथ लायें।
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प्रतिनिधि भारतीय लघुकथाएँ
शीर्षक से २५ लघुकथाकारों की १०-१० लघु कथाएँ १०-१० पृष्ठों पर चित्र, संक्षिप्त परिचय तथा संपर्क सूत्र सहित सहयोगाधार पर प्रकाशित करने की योजना है। संकलन का आवरण बहुरंगी, जैकेट सहित पेपरबैक होगा। ्आवरण, कागज, मुद्रण तथा बंधाई अच्छा होगा। प्रत्येक सहभागी को मात्र ३०००/- का अंशदान, सभी सहयोगी जुटने तथा रचनाएँ स्वीकृत होने के बाद भेजना होगा। प्रत्येक सहभागी को २० प्रतियाँ निशुल्क उपलब्ध कराई जाएँगी जिनका विक्रय या अन्य उपयोग करने हेतु वे स्वतंत्र होंगे। इच्छुक लघुकथाकार ९४२५१८३२४४ या ९५७५४६५१४७ पर संयोजकों से बात कर सकते हैं। प्रत्येक सहभागी को प्रशस्तिपत्र, स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया जायेगा। ग्रन्थ के आरंभ में लघुकथा विषयक शोधपरक लेख तथा अंत में परिशिष्ट में शोध छात्रों हेतु उपयोगी सूचनाएं और सामग्री संकलित की जाएगी। हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओँ की लघु कथाएं भी आमंत्रित हैं। सहमति व सामग्री भेजने हेतु ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com, roy. kanta@gmail.com .
'सार्थक लघुकथाएँ'
'सार्थक लघुकथाएँ' शीर्षक से १११ लघुकथाकारों की २-२ प्रतिनिधि लघु कथाएँ २ पृष्ठों पर चित्र, पते सहित सहयोगाधार पर प्रकाशित करने की जा रही हैं। लगभग २५० पृष्ठों का संकलन पेपरबैक होगा। आवरण बहुरंगी, मुद्रण अच्छा होगा। प्रत्येक सहभागी को मात्र ३००/- का अंशदान रचनाएँ स्वीकृत होने के बाद भेजना होगा। प्रत्येक सहभागी को २-२ प्रतियाँ, प्रमाणपत्र ितथा स्मृति चिंस से सम्मानित किया जायेगा। इच्छुक लघुकथाकार नीचे टिप्पणी में नाम-पता, चलभाष (मोबाइल) क्रमांक अंकित कर सकते हैं अथवा ९४२५१८३२४४ पर बात कर सकते हैं। सहमति व सामग्री भेजने हेतु ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com, roy. kanta@gmail.com इच्छुक लघुकथाकार ९४२५१८३२४४ या ९५७५४६५१४७ पर संयोजकों से बात कर सकते हैं।
अतिरिक्त प्रतियों पर मुद्रित मूल्य से ३०% रियायतपर मिलेंगी .
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