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शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

सलिल-प्रवाह: १. परकम्मावासी संजीव 'सलिल'

सलिल-प्रवाह: १.
परकम्मावासी



संजीव 'सलिल'
*
परकम्मावासी जीवनदायी स्वच्छ वर्षा-जल के साथ नेह नर्मदा में बहुत सा मलिन पानी भी प्रवेश करते देखता है. नित्य निनादित नर्मदा स्वच्छ या मलिन जल को समभाव से समाहित कर बहती रहती है. कभी जलातिरेक हो तो तटबंधों के बाहर जाकर जल प्रवाहित कर स्वानुशासन से तटों के मध्य प्रवहित को वर्षांत तक पुनः अमल-विमल-निर्मल सदानीरा सलिला हो जाती है.



परकम्मावासी की दृष्टि में अपनी सहिष्णुता, ग्राह्यता, सक्रियता, सजगता तथा सर्वहितकारिता के पंचतत्वों से नर्मदा सर्व पूज्य हो जाती है जिसमें अवगाहन कर भव-बाधा तथा पाप-शाप से मुक्ति मिलती है.



परकम्मावासी सृजन सलिला के प्रवाह में रचना-वर्षण होने पर सशक्त-अशक्त, रोचक-अरोचक, शुद्ध-अशुद्ध, पसंद-नापसंद रचनाओं की उपस्थिति स्वाभाविक मानता है. वह भजनों, लोकगीतों, आरतियों, कविताओं आदि के अंतरों से दुखी नहीं, उसमें अन्तर्निहित भावनाओं, रस और कथ्य से आनंदित होता है.  



परकम्मावासी नर्मदा के एक तट पर खड़ा हो तो  दूसरे तट पर खड़े परकम्मावासी का सम्यक-समुचित मूल्यांकन न कर सके यह स्वाभाविक है.



परकम्मावासी (नर्मदा-परिक्रमा- पथिकों) को कई जन गैर जिम्मेदार, कर्त्तव्यविमुख, अयोग्य, पलायनवादी, निठल्ला और न जाने क्या-क्या कहते हैं किन्तु उनमें से कोई भी नर्मदा परिक्रमा और नर्मदा-स्नान से विमुख नहीं होता.



परकम्मावासी को उसके अपने चाहे अनुसार मूल्यांकित न हो पाने के कारण क्या  परकम्मा अधूरी छोड़ने, नर्मदा के बहिष्कार या स्नान न करने जैसे निर्णय करना चाहिए?



परकम्मावासी का मूल्यांकन मूल्यांकक की सामर्थ्य, रूचि, ज्ञान आदि पर निर्भर होता है, इसलिए मूल्यांकक बदलने पर मूल्यांकन बदल जाता है.



परकम्मावासी यदि आलोचना से घबराकर पलायन कर दे तो क्या यह ठीक होगा? क्या उसे पुण्य, यह, शांति मिल सकेगी? महत्वपूर्ण क्या है? स्वनिष्ठा  या पर-आलोचना?



परकम्मावासी के संकल्प पर आपत्ति उअथयी जाए तो वह श्रेष्ठों-ज्येष्ठों अथवा संचालकों तक अपनी शंका पहुँचाकर उनका मार्गदर्शन स्वीकारे या स्वविवेक को सर्वोपरि माने?



परकम्मावासी में पारस्परिक विवाद या मतभेद होना स्वाभाविक है... चार बर्तन तो घर में भी टकराते ही हैं. क्या मतभेद की परिणति मनभेद में करना समझदारी है?



परकम्मावासी के घर में बड़ी-छोटी बहुएँ झगड़ें तो ससुर-सास, नन्द-देवरों की शामत... कुछ कहें तो मुश्किल (न जाने किस के पक्ष में किस के विपक्ष में हो), कुछ न कहें तो और मुश्किल... घर की कलह बाहर सुनायी पड़ने लगती है. जो बहू अप्रिय को सुनके अनसुना कर घर की शांति और एकता बनाये रखती है स्नेह-सम्मान पाती है जबकि मुखर-प्रगल्भा बहू से कोई कुछ कहे-न-कहे वह नजर से तो उतर ही जाती है.



परकम्मावासी घर की झंझटों को कभी-कभी जाने-अनजाने ढोता रहता है. यदि भूल सके तो पर्यटन, स्नान, सत्संगति, नवपरिचय तथा आत्मिक शांति का सुख-लाभ करता है.



परकम्मावासी परिक्रमा का संकल्प अधूरा छोड़ दे तो उसे हाथ क्या लगेगा? क्या वह सर्वत्र उपहास का पात्र नहीं बनेगा? लोक-निंदा, धर्म-हानि, सुख समाप्ति, नये स्थानों, लोगों संस्कृतियों के परिचय से वंचित होना अर्थात हानि ही हानि...



परकम्मावासी बनने का सौभाग्य हर एक को नहीं मिलता किन्तु सृजन नर्मदा के  परकम्मावासी तो हम घर बैठे भी बन सकते हैं. अहं के वहम से मुक्त होकर,  अपनी असहमति साथी के मन को आहत किये बिना विनम्रता से व्यक्त कर, साथी के द्वारा व्यक्त असहमति अथवा नापसंद विचार को मौन भाव से सुन-सहनकर अथवा विनम्र असहमति
व्यक्त कर, किसी भी स्थिति में पारस्परिक स्नेह, सद्भाव, सौजन्य, शालीनता तथा सौख्य
से सहकारिता व सहभागिता बनाये रखकर ही परकम्मावासी नर्मदा परिक्रमा पूर्ण कर पाता है.



परकम्मावासी बनने का संकल्प करें तो प्राण-प्राण से निभाएं वरना कैसे गा पायेंगे:

नरमदा तो ऐसी मिली, ऐसी मिली, ऐसी मिली रे
जैसे मिल गये मताई औ' बाप रे....

हास्य रचना: प्रवचन संजीव 'सलिल'


हास्य रचना:
प्रवचन



संजीव 'सलिल'
 
*



आधी रात पुलिस अफसर ने पकड़ा एक मुसाफिर.
'नाम बात, तू कहाँ जा रहा?, क्या मकसद है आखिर?'

घुड़की सुन, गुम सिट्टी-पिट्टी, वह घबराकर बोला:
' जी हुजूर! प्रवचन सुनने जाता, न चोर, मैं भोला.'

हँसा ठठाकर अफसर 'तेरा झूठ पकड़ में आया.
चल थाने, कर कड़ी ठुकाई, सच जानूंगो भाया.'

'माई-बाप! है कसम आपकी, मैंने सच बोला है.
जाता किसका प्रवचन सुनने? राज न यह खोला है.'

'कह जल्दी, वरना दो हत्थड़ मार राज जानूँगा.'
'वह बोला: क्या सच न बोलकर व्यर्थ रार ठानूँगा.'

'देर रात को प्रवचन केवल मैं न, आप भी सुनते.
और न केवल मैं, सच बोलूँ? शीश आप भी धुनते.'

सब्र चुका डंडा फटकारा, गरजा थानेदार.
जल्दी पूरी बात बता वरना खायेगा मार.'

यात्री बोला:'मैं, तुम, यह, वह सबकी व्यथा निराली.
देर रात प्रवचन सुनते सब, देती नित घरवाली.



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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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गुरुवार, 6 सितंबर 2012

गीत: पहचान क्यों हो?... संजीव 'सलिल'

गीत:
पहचान क्यों हो?...
संजीव 'सलिल'
*
कह अलग
पहचान क्यों हो?
*
तू परात्पर अमर अक्षर.
मैं विनाशी तू अनश्वर.
नाद लय धुन ताल है तू-
मैं न मैं, हूँ मैं तेरा स्वर.
भाव रस छवि बिम्ब तू तो
कहीं मेरा
गान क्यों हो?
कह अलग
पहचान क्यों हो?
*
क्रिया कारक कर्म-कर्ता.
सकल जग का एक भर्ता.
भोगता निज कर्म का फल-
तू ही मेरा कष्ट-हर्ता.
कहीं कुछ चाहे-अचाहे
कभी मेरा
मान क्यों हो?
कह अलग
पहचान क्यों हो?
*
दीप मृण्मय मैं, तू बाती.
कंठ मैं तू स्वर-प्रभाती.
सूर्य है तू, तू ही काया
मैं तेरी छाया संगाती.
कहीं कुछ
स्थान क्यों हो
कह अलग
पहचान क्यों हो?
*


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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सूक्ति, सुभाषित, उद्धरण



सूक्ति, सुभाषित, उद्धरण, quotations  

विजय निकोर Vijay Nikore
संजीव 'सलिल' sanjiv 'salil' 
*
-- ''people rose with the rising of the sun and slept with the setting of the sun
     – plants and animals continue to be in tune with Creation."
        - Acharya Vivek ji (head of Chinmaya Mission, Niagara Falls, Canada)
 == जग, श्रमकर, विश्राम ले, भोर दुपहरी रात.
      सत-रज-तम का समन्वय, नवजीवन दे तात..

-- “Computers are useless. They can only give you answers.” -Pablo Picasso
== यंत्र-संगणक दें तुझे, उत्तर पर बेकार.
     स्वप्न न कोई देखकर, कर पाते साकार..

-- “Being happy doesn't mean that everything is perfect. It means that you've
     decided to look beyond the imperfections.” - Aristotle
== हुए सुखी मत मानना, हो पाये सम्पूर्ण.
     तुम अपूर्णता के परे, देख रहे परिपूर्ण..

-- “Any fool can criticize, condemn, and complain but it takes character and
    self control to be understanding and forgiving.” -Dale carnegy
== मूर्ख करें आलोचना, निंदा-शिकवा नित्य.
     समझ नियंत्रण क्षमा ही, सत्चरित्रमय कृत्य..

-- “Let your mind start a journey thru a strange new world.
     Leave all thoughts of the world you knew before.
     Let your soul take you where you long to be...
     Close your eyes let your spirit start to soar,
     and you'll live as you've never lived before.” -Erich Fromm
== तज सुज्ञात मस्तिष्क- वर, जो अज्ञात है आज.
     नयन मूँदकर आत्म में डूब, न करना लाज..
     आत्म वहाँ ले जाये जो, तेरा गृह चिर काल.
     अब तक जिया न जिस तरह, वैसे जी तत्काल..
*



POEM: friend

POEM:

friend 

I Am Your Friend
we are far away from eachother
But you know that I am here.
You can feel me in your heart
As you enter each new day.

I will always be there for you
I am your friend.

Someone to share the good times
As well as the bad.
I make no judgments by what you say
I just listen with my heart and
Hope to be of help in anyway I can.

I will be there for you now and forever
And always please remember

बुधवार, 5 सितंबर 2012

दोहा सलिला: शिक्षक पारसमणि सदृश... संजीव 'सलिल

दोहा सलिला:
शिक्षक पारसमणि सदृश...



संजीव 'सलिल
*
शिक्षक पारसमणि सदृश, करे लौह को स्वर्ण.
दूर करे अज्ञानता, उगा बीज से पर्ण..



सत-शिव-सुंदर साध्य है, साधन शिक्षा-ज्ञान.
सत-चित-आनंद दे हमें, शिक्षक गुण-रस-खान..



शिक्षक शिक्षा दे सदा, पाये शिष्य निखार.
कंकर को शंकर बना, जीवन सके संवार..



शिक्षक वह जो सिखा दे, भाषा गुण विज्ञान.
नेह निनादित नर्मदा, बहे बना गुणवान..



प्रतिभा को पहचानकर, जो दिखलाता राह.
शिक्षक उसको जानिए, जिसमें धैर्य अथाह..



जान-समझ जो विषय को, रखे पूर्ण अधिकार.
उस शिक्षक का प्राप्य है, शत शिष्यों का प्यार..



शिक्षक हो संदीपनी, शिष्य सुदामा-श्याम.
बना सकें जो धरा को, तीरथ वसुधा धाम..



विश्वामित्र-वशिष्ठ हों, शिक्षक ज्ञान-निधान.
राम-लखन से शिष्य हों, तब ही महिमावान..



द्रोण न हों शिक्षक कभी, ले शिक्षा का दाम.
एकलव्य से शिष्य से, माँग अँगूठा वाम..



शिक्षक दुर्वासा न हो, पल-पल दे अभिशाप.
असफल हो यदि शिष्य तो, गुरु को लगता पाप..



राधाकृष्णन को कभी, भुला न सकते छात्र.
जानकार थे विश्व में, वे दर्शन के मात्र..



महीयसी शिक्षक मिलीं, शिष्याओं का भाग्य.
करें जन्म भर याद वे, जिन्हें मिला सौभाग्य..



शिक्षक मिले रवीन्द्र सम, शिष्य शिवानी नाम.
मणि-कांचन संयोग को, करिए विनत प्रणाम..



ओशो सा शिक्षक मिले, बने सरल-हर गूढ़.
विद्वानों को मात दे, शिष्य रहा हो मूढ़..



हो कलाम शिक्षक- 'सलिल', झट बन जा तू छात्र.
गत-आगत का सेतु सा, ज्ञान मिले बन पात्र..



ज्यों गुलाब के पुष्प में, रूप गंध गुलकंद.
त्यों शिक्षक में समाहित, ज्ञान-भाव-आनंद..



Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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