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गुरुवार, 5 जुलाई 2012

नयी खोज: हिग्स बोसॉन सूक्ष्मतम कण????? --संजीव 'सलिल''

imageनयी खोज हिग्स बोसॉन सूक्ष्मतम कण????? 

संजीव 'सलिल''
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नई दिल्ली। ब्रह्मांड के निर्माण के अनजाने रहस्यों को जानने की दिशा में एक और कदम मानव ने बढ़ाया।आज वह कण खोज निकाला गया जिससे सृष्टि तथा कालांतर में इंसान की रचना हुई। इस कण की अनुभूति विशिष्ट यंत्रों से ही संभव है। यह कण सृष्टि रचना में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है अतन इसे सृष्टि कण या ब्रम्हांड कण कहा जा सकता है। भारत में 'कण-कण में भगवान्' की मान्यता सनातन है। इसीलिए इसे ईश्वर के नाम से जोड़कर 'ईश्वरीय कण' कहा जा रहा है। 

विश्व को द्रव्यमान प्रदान करनेवाले मूल कणों में से एक हिग्स बोसोन के अस्तित्व की वैज्ञानिकों ने कल्पना की है। ये कण स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं हैं। स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर जमीन से 100 मीटर नीचे 27 किलोमीटर लंबी सुरंगनुमा श्रम की प्रयोगशाला में इन कणों की जोरदार टक्कर से उत्पन्न असीम ऊर्जा से ऐसे कण बने हैं। लगभग तीस हजार करोड़ रुपए खर्च कर तलाशे गए इस कण को 100 सालों की सबसे बडी खोज कहा जा रहा है। वैज्ञानिकों ने सृष्टि की उत्पत्तिवाले बिग-बैंग सिद्धांत जैसी परिस्थितियों का कृत्रिम रूप से सृजन कर इन मूल कणों को खजने का प्रयास किया। लियोन लेडरममैन की कण भौतिकी पर केंद्रित लोकप्रिय विज्ञान पुस्तक 'दि गोड पार्टिकल : इफ द यूनिवर्स इज द आंसर, व्हाट इज द क्वश्चन?' है। हिग्स--बोसों कणों के इस नामकरण से एक एक खोजकर्ता पीटर हिग्स अप्रसन्न हुए पर लेडरमैन के अपने तर्क थे। इन कणों की संरचना और गुणों को आधुनिक भौतिकी के ज्ञात सिद्धांतों द्वारा न समझे जा सकने के कारण लेडरमैन को यह नाम उचित प्रतीत हुआ। पुस्तक को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए प्रकाशक ने पुस्तक का नाम 'गोडडैम पार्टिकल' से 'गोड पार्टिकल' कर दिया। इन कणों  को ईश्वरीय कण या गोड पार्टिकल यह खोज अपने पीछे दो अहम सवाल पीछे छोड़ गईं हैं- पहला- क्या इंसान अब ईश्वर बनने की कोशिश में है? क्या वो कुदरत के साथ खेल रहा है? दूसरा- आखिर इस नई खोज से मानवजाति का क्या फायदा होगा? 

सदी का सबसे बड़ा महाप्रयोग सफल :
 
इंसान कुदरत के सबसे बड़े राज को सुलझाने के करीब पहुँच गया है। इस कण की झलक दिखते ही स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर बनी प्रयोगशाला तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी। वैज्ञानिकों ने उस सर्वशक्तिमान कण को खोज निकाला है जो ब्रह्मांड का रचयिता है।

50 सालों से सिर्फ किताब और वैज्ञानिक फॉर्मूलों में कैद ईश्वरीय कण की मौजूदगी का ऐलान जिनेवा में 21 देशों के समूह- यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च यानि सीईआरएन के हेड ने किया। इस कण की तलाश में सर्न की दो-दो टीमें जुटी थी। उन्हें सभी प्रयोग जमीन के 100 मीटर नीचे बनी 27 किलोमीटर लंबी सुरंगनुमा लार्ज हेडरॉन कोलाइडर यानि एलएचसी में करना था। 21 देशों के 15 हजार वैज्ञानिक सदी के इस महाप्रयोग में जुटे थे। 2008 से लेकर 2012 तक चार सालों में इस सुरंग के भीतर अनगिनत प्रयोग किए गए। स्विटज़रलैंड के परमाणु शोध संगठन (सर्न ) तथा फ़र्मी नॅशनल एक्सेलेटर लैब के अनुसार इस कण का वज़न 125-126 गीगा इलेक्ट्रोन वोल्ट है।
 
लक्ष्य था इस सुरंग के भीतर वैसा ही वातावरण पैदा करना जैसा 14 अरब साल पहले 'बिग बैंग' के समय था, जब तारों की भयानक टक्कर से हमारी आकाश गंगा बनी थी। उस आकाश गंगा का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है हमारी पृथ्वी। माना जाता है कि उस समय अंतरिक्ष में हुए उस महाविस्फोट के बाद ही पहली बार ईश्वरीय कण या हिग्स  बोसॉन नजर आये थे।
                                                                                                      
उस बिग बैंग को दोबारा प्रयोगशाला में पैदा करने का काम बेहद जटिल था। उसके लिये इस सुरंग के अन्दर प्रोटोन्स कणों को आपस में टकराया गया। प्रोटोन किसी भी पदार्थ के सूक्ष्म कण होते हैं। जिनकी टक्कर से ऊर्जा निकलती है। माना जा रहा है कि ऐसी असंख्य टक्करों के बाद करीब 300 ईश्वरीय कण पैदा हुए। ये ईश्वरीय कण या गॉड पार्टिकल किसी भी अणु या ऐटम को भार यानि मास और स्थायित्व देते हैं। इस पार्टिकल के जरिए ही अणुओं में स्थायित्व आता है और निराकार से साकार रूप धारण करते हैं। कहा जा सकता है यह कण ही रचना करता है- इसीलिए इसे ईश्वर समान कहा गया है किन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है की अन्य पूर्व ज्ञात या भविष्य में ज्ञात होनेवाले कण ईश्वरीय नहीं होंगे। 
 
वैज्ञानिकों के दावे को सही मानें तो कह सकते हैं कि  इंसान ने जीवन की सबसे मुश्किल पहेली सुलझा ली है। वैज्ञानिक अब भी कह रहे हैं कि ये गॉड पार्टिकल कैसा है, इसे जानने में समय लगेगा लेकिन यह खोज विज्ञान की मान्यताएँ और सृष्टि के निर्माण की अवधारणाएँ बदल सकती है।    

1969 में ब्रिटेन के रिसर्चर पीटर हिग्स ने सबसे पहले इन कणों  की मौजूदगी की बात कह कर सबको चौंका दिया था। तब यह कण सिर्फ 'पार्टिकल फिजिक्स' की थ्योरी में मौजूद था। आज इतने सालों बाद अपनी उस कल्पना को सच होते देखना हिग्स के लिए बेहद रोमांचक अनुभव था। हिग्स को खास तौर पर सर्न ने इस ऐलान के लिए जिनेवा बुलवाया था। 

इंसान इस ब्रह्मांड का फीसदी हिस्सा ही जानता है, हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल या ईश्वरीय कण, हमारे ज्ञान को नई सीमाएं देगा। इसीलिए इसे सदी की सबसे बड़ी और रोमांचक खोज माना जा रहा है।
सृष्टि संरचना की भारतीय मान्यता::


… परमात्मा परमेश्वर का आदि और अन्त नहीं है, वे ही जगत् को धारण करने वाले अनन्त पुरुषोत्तम हैं। उन्हीं परमेश्वर से अव्यक्त की उत्पत्ति होती है और उन्हीं से आत्मा (पुरुष) भी उत्पन्न होता है। उस अव्यक्त प्रकृति से बुद्धि, बुद्धि से मन, मन से आकाश, आकाश से वायु, वायु से तेज, तेज से जल और जल से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है। हे रुद्र! इसके पश्चात् हिरण्मय अण्ड उत्पन्न हुआ। उस अण्ड में वे प्रभु स्वयं प्रविष्ट होकर जगत् की सृष्टि के लिये सर्वप्रथम शरीर धारण करते हैं (निराकार चित्रगुप्त साकार काया ग्रहण कर कायस्थ होते हैं) । तदनन्तर चतुर्मुख ब्रह्मा का रूप धारण कर रजोगुण के आश्रय से उन्हीं देव ने इस चराचर विश्व की सृष्टि की। 

देव, असुर एवं मनुष्यों सहित यह सम्पूर्ण जगत् उसी अण्ड में विद्यमान है। वे ही परमात्मा स्वयं स्रष्टा ( ब्रह्मा) -के रूप में जगत् की संरचना करते हैं, विष्णु रूप में जगत् की रक्षा करते हैं और अन्त में संहर्ता शिव के रूप में वे ही देवसंहार करते हैं। इस प्रकार एकमात्र वे ही परमेश्वर ब्रह्मा केरूप में सृष्टि, विष्णु के रूप में पालन और कल्पान्त के समयरुद्र के रूप में संपूर्ण जगत को विनष्ट करते हैं। सृष्टि के समय वे ही वराह का रूप धारण कर अपने दाँतों से जलमग्न पृथ्वी का उद्धार करते हैं। हे शंकर! संक्षेप में ही मैं देवादि की सृष्टि का वर्णन कर रहा हूं; आप उसको सुनें। 

सबसे पहले उन परमेश्वर से महातत्व की सृष्टि होती है। वह महातत्व उन्हीं ब्रह्म का विकार है। पञ्च तन्मात्राओं (रूप, रस, गण, स्पर्श और शब्द) की उत्पत्ति से युक्त द्वितीय सर्ग है। उसे भूत-सर्ग कहा जाता है। (इन पञ्चतन्मात्राओं से पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकाश-रूप में महाभूतों की सृष्टि होती है।) यह तीसरा वैकारिक सर्ग है, (इसमें कर्मेन्दिय एवं ज्ञानेन्दियों की सृष्टि आती है इसलिये) इसे ऐन्द्रिक भी कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति बुद्धिपूर्वक होती है, यह प्राकृत-सर्ग है। चौथा सर्ग मुख-सर्ग है। पर्वत और वक्षादि स्थावरों को मुख्य माना गया है। पाँचवां सर्गतिर्यक् सर्ग कहा जाता है, इसमें तिर्यक्स्रोता (पशु-पक्षी आदि) आते हैं। इसके पश्चात् ऊर्ध्वस्रोतों की सृष्टि होती है। इस छठे सर्ग को देव-सर्ग भी कहा गया है। तदनन्तर सातवाँ सर्ग अर्वाक् स्रोतों का होता है। यही मानुष-सर्ग है।                                               

आठवाँ अनुग्रह नामक सर्ग है। वह सात्विक और तामसिक गुणों से संयुक्त है। इन आठ सर्गों में पाँच वैकृत-सर्ग और तीन प्राकृत-सर्ग कहे गये हैं। कौमार नामक सर्ग नवाँ सर्ग है। इसमें प्राकृत और वैकृत दोनों सृष्टियाँ विद्यमान रहती हैं। 

हे रुद्र! देवों से लेकर स्थावरपर्यन्त चार प्रकार की सृष्टि कही गयी है। सृष्टि करते समय ब्रह्मा से (सबसे पहले) मानस पुत्र उत्पन्न हुए। तदनन्तर देव, असुर, पितृ और मनुष्य-इस सर्ग चतुष्टय का प्रादुर्भाव हुआ। इसके बाद जल-सृष्टि की इच्छा से उन्होंने अपने मन कोसृष्टि-कार्य में संलग्न किया। सृष्टि-कार्य में प्रवृत्त होने पर ..ब्रह्मा से तमोगुण का प्रादुर्भाव हुआ। अतः, सृष्टि की अभिलाषा रखने वाले ब्रह्मा की जंघा से सर्वप्रथम असुर उत्पन्न हुए। हे शंकर! तदनन्तर ब्रह्मा ने उस तमोगुण से युक्त शरीर का परित्याग किया तो उस शरीर से निकली हुई तमोगुण की मात्रा ने स्वयं रात्रि का रूप धारण कर लिया। उस रात्रिरूप सृष्टि को देखकर यक्ष और राक्षस बहुत ही प्रसन्न हुए।        

 
 हे शिव! उसके बाद सत्वगुण की मात्रा के उत्पन्न होने परप्रजापति ब्रह्मा के मुख से देवता उत्पन्न हुए। तदनन्तर जब उन्होंने सत्वगुण-समन्वित अपने उस शरीर का परित्याग किया तो उससे दिन का प्रादुर्भाव हुआ, इसीलिये रात्रि में असुर और दिन में देवता अधिक शक्तिशाली होते हैं। उसके पश्चात ब्रह्मा के उस सात्विक शरीर से पितृगणों की उत्पत्ति हुई। इसके बाद ब्रह्मा के द्वारा उस सात्विक शरीर का परित्याग करने पर संध्या की उत्पत्ति हुई जो दिन और रात्रि के मध्य अवस्थित रहती है। तदनन्तर ब्रह्मा के रजोमयशरीर से मनुष्यों का प्रादुर्भाव हुआ। जब ब्रह्मा ने उसका परित्याग किया तो उससे ज्योत्सना (उषा) उत्पन्न हुई, जो प्राक्सन्ध्या के नाम से जानी जाती है। ज्योत्सना, रात्रि, दिन और संध्या - ये चारों उस ब्रह्मा के ही शरीर हैं।    तत्पश्चात् (ब्रह्मा के

रजोगुणमय शरीर के आश्रय से सुधा और क्रोध का जन्म हुआ। उसके बाद ब्रह्मा से ही भूख-प्यास से आतुर एवं रक्त-मांस पीने खाने वाले राक्षसों तथा यक्षों की उत्पत्ति हुई। राक्षसों से रक्षण के कारण राक्षस कहा गया और भक्षण के कारण यक्षों को यक्ष नाम की प्रसिद्धि प्राप्त हुई। तदनन्तर ब्रह्मा के केशों से सर्प उत्पन्न हुए। ब्रह्मा के केश उनके सिर से नीचे गिरकर पुन : उनके सिर पर आरूढ़ हो गये- यही सर्पण है। इसी सर्पण (गतिविरोध ) के कारण उन्हें सर्प कहा गया। 

उसके बाद ब्रह्मा के क्रोध से भूतों (इन प्राणियों में क्रोध की मात्रा अधिक होती है) का जन्म हुआ। तदनन्तर ब्रह्मा से गंधर्वों की उत्पत्ति हुई। गायन करते हुए इन सभी का जन्म हुआ था. इसलिये इन्हें गंधर्व और अप्सरा की ख्याति प्राप्त हुई। उसके बाद प्रजापति ब्रह्मा के वक्ष स्थल से स्वर्ग और द्युलोक उत्पन्न हुआ। उनके मुख से अज, उदर- भाग से तथा पार्श्व- भाग से गौ, पैर- भाग से हाथी सहित अश्व, महिष, ऊँट और भेड़ की उत्पत्ति हुई। उनके रोमों से फल -फूल एवं औषधियों का प्रादुर्भाव हुआ। 

गौ, अज, पुरुष- ये मेध्य या अवध्य ( पवित्र ) हैं। घोड़े, खच्चर और गदहे प्राप्य पशु कहे जाते हैं। अब मुझ से वन्य पशुओं का सुनो - इन वन्य जन्तुओं में पहले श्वापद ( हिंसकव्याघ्रादि ) पशु दूसरे दो खुरोंवाले, तीसरे हाथी, चौथे बंदर, पाँचवें पक्षी, छठे कच्छपादि जलचर और सातवें सरीसृप जीव ( उत्पन्न हुए ) हैं।

उन ब्रह्मा के पूर्वादि चारों मुखों से ऋक्, यजुष्, सामतथा अथर्व - इन चार वेदों का प्रादुर्भाव हुआ। उन्हीं के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, ऊरु- भाग से वैश्य तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए। उसके बाद उन्होंने ब्राह्मणों के लिये ब्रह्मलोक, क्षत्रियों के लिये इन्द्रलोक, वैश्यों कै लिये वायुलोक और शूद्रों के लिये गन्धर्व लोक का निर्धारण किया। उन्होंने ही ब्रह्मचारियों के लिये ब्रह्मलोक, स्वधर्मनिरत गहस्थाश्रम का पालन करने वाले लोगों के लिये प्राजापत्यलोक, वानप्रस्थाश्रमियों के लिये सप्तर्षिलोक और संन्यासी तथा इच्छानुकूल सदैव विचरण करने वाले परम तपोनिधियों के लिये अक्षयलोक का निर्धारण किया। 

भारत का योगदान::

इस महत्वपूर्ण अनुसन्धान में भारत के 100 से अधिक वैज्ञानिक विविध स्तरों पर सम्मिलित रहे। भारतीय वैज्ञानिक डॉ. अर्चना शर्मा प्रारंभ से ही इस महाप्रयोग का हिस्सा रही हैं। इस अनुसन्धान में प्रयोग हुए महा चुम्बक एफिल टोवर से अधिक भारी लगभग 800 टन के हैं तथा भारत में बने हैं।

महत्त्व::

इस कण की खोज से परमाणु ऊर्जा, कम्प्यूटर, औषध निर्माण, तथा अन्तरिक्ष के अनुसन्धान में महती मदद मिलेगी। . 

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(साभार - कल्याण संक्षिप्त गरूड़पुराणांक जनवरी - फरवरी 2000)

(आभार:: रचनाकार)

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बुधवार, 4 जुलाई 2012

संस्मरण: मेहनती का अंत ---इन्दिरा प्रताप

संस्मरण:               


मेहनती का अंत 
इन्दिरा प्रताप                                                                                     

बात आज से बीस–तीस साल पुरानी है | तब हम यूनिवर्सिटी कैम्पस में रहा करते थे | बँगलेनुमा घर और आस–पास बहुत सारी खाली जमीन थी जो जितना चाहता उतनी जमीन घेर लेता और उसके चारों ओर बंधान बांध लेता और उसे अपने घर का हिस्सा बना लेता और मनपसंद फूल पौधे लगा लेता पर वहाँ की जमीन लाल मिट्टी से युक्त, पथरीली थी जो बहुत मेहनत माँगती थी | इसके लिए आसपास के गाँव से मजदूर भी मिल ही जाते थे और लोगों में एक दूसरे से बढ़ कर अपने गार्डन को सजाने की होड़ भी लग जाती थी | उन्हीं दिनों कैम्पस में एक हृष्ट-पुष्ट, बेहद काला पर चेहरे पर मृदुता लिये एक मजदूर अकसर नजर आता | मैंने उसे बड़े मनोयोग से लोगों के घर काम करते देखा | बस अपने काम में मस्त | ऐसा लगता था मानों काम ही उसकी पूजा हो | उसको इस तरह काम करते देख कुछ आश्चर्य तो होता पर इससे अधिक उसके बारे में जानने की उत्सुकता मुझे कभी नहीं हुई |
एक दिन मेरे पति को अपने गार्डन में पानी लगाते देख मेरी एक पड़ोसन मेरे पास आई और कहने लगी – ‘आप उस बहरे से काम क्यों नहीं करा लेतीं |’ मैंने कहा –‘कौन बहरा ?’ वह बोलीं –‘वही जो हमारे गार्डन में काम करता है और भी घरों में हमने उसे लगवा दिया है, बोलता – सुनता कुछ नहीं , गूँगा-बहरा है न बेचारा, केवल आठ आने घंटा लेता है जबकि और लोग एक रुपया लेते हैं और फिर वह काम भी और लोगों से दुगना करता है |’
मैनें सुनकर यूँ ही टाल दिया, मन ने एक गूँगे-बहरे का इस तरह शोषण करना स्वीकार नहीं किया| मैंने उसे अपने घर काम करने के लिए कभी नहीं बुलाया | कुछ ही दिनों में वह आस–पास के घरों में काम करता दिखाई देने लगा | कभी–कभी मन में आता कि उसे घर बुलाकर समझाऊँ कि सब उसका फ़ायदा उठा रहे हैं पर समझ नहीं आया कि उसे किस तरह समझाऊँगी, फिर ये भी डर था कि आस–पास के लोग मेरे दुश्मन हो जाएँगे, यह सोचकर मैं चुप रही |
जो उससे काम कराते वे उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते और गर्व से बताते कि कैसे कम पैसों में वो इतना बढ़िया और अधिक काम करवा लेते हैं |
फिर सुना उसकी शादी हो गई पर देखते–देखते ही कुछ वर्षों में उसके काले रंग की चमक समाप्त हो गई | वह थका-हारा सा दिखाई देने लगा | फिर एक बार किसी के घर काम करता दिखाई दिया तो बड़ा क्षीणकाय सा लगा | उसके बाद मैंने फिर उसको बहुत दिनों तक नहीं देखा |
एक दिन ऐसे ही उसकी याद आई तो पड़ोसिन से पूछा– ‘बौहरा अब दिखाई नहीं देता |’ वह बोलीं –‘अरे ! उसे मरे तो बहुत दिन हो गए|’ उसका मेहनत का यह सफ़र लगभग दस सालों का रहा होगा | यह सुनकर मन में लोगों के प्रति वितृष्णा सी उत्पन्न हुई और अपने पर प्रसन्नता कि कम से कम मैंने उसका शोषण नहीं किया |
आज जब मैं अपने जीवन की इस सांध्यवेला में अपनी यादों की पिटारी खोलती हूँ तो उसमें एक चेहरा उसका भी नजर आता है और अपने को मैं उतना ही दोषी पाती हूँ जितना ओरों को जिन्होंने उसकी जिंदगी के न जाने कितने वर्ष उससे छीन लिये और उसे मृत्यु के मुख में असमय ही ढकेल दिया |
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Indira Pratap  pindira77@yahoo.co.in

मुक्तिका: सूना-सूना पनघट हैं संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

सूना-सूना पनघट हैं

संजीव 'सलिल'
*




सूना-सूना पनघट हैं, सूखी-सूखी अमराई है।
चौपालों-खलिहानों में, सन्नाटे की पहुनाई है।।

बरगद बब्बा गुजर गए,  पछुआ की सोच विषैली है।
पात झरे पीपल के, पुरखिन पुरवैया पछताई है।।

बदलावों की आँधी में, जड़ उखड़ी जबसे जंगल की।
हत्या हुई पहाड़ों की, नदियों की शामत आई है।।

कोंवेन्ट जा जुही-चमेली-चंपा के पर उग आये।
अपनापन अंगरेजी से है, हिन्दी  मात पराई है।।

भोजपुरी, अवधी, बृज गुमसुम, बुन्देली के फूटे भाग।
छत्तीसगढ़ी, निमाड़ी बिसरी, हाडौती  पछताई है।।

मोदक-भोग न अब लग पाए, चौथ आयी है खाओ केक।
दिया जलाना भूले बच्चे, कैंडल हँस  सुलगाई है।।

श्री गणेश से मूषक बोला, गुड मोर्निंग राइम सुन लो।
'सलिल'' आरती करे कौन? कीर्तन करना रुसवाई है।।

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someone cares....



मंगलवार, 3 जुलाई 2012

बाल कविता - फैशन -सन्तोष कुमार सिंह

बाल कविता - फैशन


-सन्तोष कुमार सिंह, मथुरा
*
देख-देख रोजाना टी०वी०,
फैशन का चढ़ गया बुखार।
कपड़े, गहने, सेंडल लेने,
बिल्ली पहुँची बिग बाजार।।
 
स्लीव लैस दो सूट खरीदे,
ऊँची ऐड़ी के सेंडल।
भरि-भरि हाथ खरीदी चूड़ीं,
और गले का इक पेंडल।।
 
पहना सूट, पहन कर सेंडल,
भागी चूहे के पीछे।
सेंडल फिसल गया सीढ़ी पर,
बिल्ली गिरी धम्म नीचे।।
 
फैशन की मारी बिल्ली की,
किस्मत उस दिन फूट गई।
चूहा छूटा, सिर भी फूटा,
एक टाँग भी टूट गई।।
 
कष्ट देख कर उस बिल्ली का,
बात समझ में यह आई।
कभी-कभी ज्यादा फैशन भी,
बच्चो बनती दुःखदाई।।
---।

mathematics of love

bathroom mirror

bathroom mirror



This should probably be taped
to your bathroom mirror
where one could read it every day.
You may not realize it,
but it's 100% true.


1. There are at least two people in this world
that you would die for.


2.. At least 15 people in this world
love you in some way.


3. The only reason anyone would ever hate you
is because they want to
be just like you.


4. A smile from you can bring happiness to anyone,
even if they don't
like you.


5. Every night,
SOMEONE thinks about you
before they go to sleep.


6. You mean the world to someone.


7. You are special and unique.


8. Someone that you don't even know exists loves you.


9. When you make the biggest mistake ever,
something good comes from it.


10. When you think the world
has turned its back on you
take another look.



11. Always remember the compliments you received...
Forget about the rude remarks.


Groups in English

WORD POWER & VOCABULARY: Anthropomorphic Nouns!

 groups in English 


jagar sharma - salil

*
      The English language has some wonderfully anthropomorphic collective nouns for the various groups of animals.

      We are all familiar with


- a Herd of cows, 



- a Flock of chickens, 



- a School of fishes, 



- a Gaggle of geeses.
  


- and a Pride of lions,


       
However, less widely known is:

- a Murder of crows  (as well as their cousins the rooks and ravens),


- an Exaltation of doves and presumably because they look so wise:





- a Congress of owls. 



- Now consider a group of Baboons.

          They are the loudest, most dangerous, most obnoxious, most viciously aggressive and least intelligent of all primates.

          And what is the proper collective noun for a group of baboons?

- Believe it or not ……. a Parliament

       - A PARLIAMENT OF BABOONS! 




- I guess that pretty much explains the things that come out of Parliament. 


****


Is in't it Very, very funny


आज का विचार : thought of the day

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आज का  विचार : thought of the day

ऊर्जा जीवन की परिमल है.
पहले जानो क्या पाना है?
फिर सोचो कैसे पाना है??
कैसे सदुपयोग करोगे
नित निर्णय लो।

*

Energy is the essence of life. 
Every day you decide 
how you're going to use it 
by knowing 
what you want and 
what it takes 
to reach that goal.

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सोमवार, 2 जुलाई 2012

दोस्त / FRIEND





दोस्त












POEM : FRIEND

 

You came into my life as an unwelcome face,

Not ever knowing our friendship, I would one day embrace.

As I wonder through my thoughts and memories of you,

It brings many big smiles and laughter so true.





I love the special bond that we beautifully share,

I love the way you show you really care,

Our friendship means the absolute world to me,

I only hope this is something I can make you see.



Thankyou for opening your mind and your souls,

I wiee do all I can to help heal your hearts little holes.

Remember, your secrects are forever safe within me,

I will keep them under the tightest lock and key.



Thankyou for trusting me right from the start.

You truely have got a wonderful heart.

 I am now so happy I felt that embrace.

For now I see the beauty of my best friend's face...

 

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SMILE ALWAYS

SMILE ALWAYS 
 
 
 
 
 
 
 
Inside the strength is the laughter. 

 
 
Inside the strength is the game. 
 
 
 
Inside the strength is the freedom. 
 
 
 
The one who knows his strength knows the paradise.
 
 
All which appears over your strengths is not necessarily Impossible,
 
 
 
but all which is possible for the human cannot be over your 
 
 
 
strengths.
 
 
 
Know how to smile : 
 
 
 
What a strength of reassurance, 
 
 
 
Strength of sweetness, peace, 
 
 
 
Strength of brilliance !
 
 
 
May the wings of the butterfly kiss the sun
 
 
 
and find your shoulder to light on... 
 
 
 
to bring you luck 
 
 
 
happiness and cheers
 
 
 
smile always
 
 
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रविवार, 1 जुलाई 2012

आज का विचार thought of the day:

आज का विचार  thought of  the day:

यदि दुखी हो तो कभी मत कहो कि सुखी हो, यदि ठीक नहीं तो कभी मत कहो कि बढ़िया हूँ, यदि बुरा लगे तो कभी मत कहो कि अच्छा लग रहा है और जब तक मैं जिन्दा हूँ कभी मत कहो कि तुम एकाकी हो।



विपरीत विचार:

दुःख को सुख कह जी पाओगे, तो न दुखी तुम हो पाओगे।

सदा बुरे में अच्छा देखो, एकाकी आये-जाओगे।.

*

जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है।

मरो तो  ऐसे कि  जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं।


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*

कहो सत्य आघात भले दे, मिथ्या कहो न सुख की खातिर।

Hurt me with the Truth 
but 
never Comfort me with a Lie

*

शनिवार, 30 जून 2012

contrary proverbs

Contrary Proverbs:



All good things come to those who waits

But time and tide waits for none.

The pen is mighter than the sword.

But action speaks louder than the words.

Wise man think alike.

But fools seldom differ.

The best things in life are free.

But there is no such thing as free lunch.

Slow and steady wins the race.

But time waits for none.

Look before you leep.

But strike while the iron is hot.

Do it well or not at all.

But half the loaf is better than none.

Birds of a feather flocks together.

But opposite attracts.

Do'nt cross your bridges before you come to them.

But Forwarned is forearned.

Doubt is the begining of wisdom.

But faith will move mountains.

Great starts makes great finishes.

But it is'nt over till it's over.

Practice makes perfect.

But all work and no play makes Jack a dull boy.

Silence is Golden.

But the sqeaky wheels gets the grease.

You are never too old to learn.

But You can'nt teach an old dog new tricks.

Whats good for the Goose is good for the gander.

But one man's meet is another man's poison.

Absence makes the heart grow fonder.

But out of sight, out of mind.

Too many cooks spoil the broth.

But many hands makes the work light.

Hold fast to the words of your ancestors.

But wise man make proverbs and fools repeat. 







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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

आज का विचार : thought of the day:

आज का विचार : thought of the day:
 1.
तूफां कब गुजरेगा, देखें राह, नहीं यह जीवन।


छम-छम बूंदों के संग नाचें, सफल तभी हो जीवन।।

Life is not about waiting for the storms to pass.. It's about learning how to dance in the rain.
 2.

कम मत आंकें कभी किसी को, हो सकता आभास।


फेंका हीरा कांच समझकर, कंकर रखकर पास।।

NEVER TAKE SOMEONE FOR GRANTED BECAUSE YOU MIGHT WAKE UP ONE DAY AND REALIZE THAT YOU'VE LOST A DIAMOND WHILE YOU WERE TOO BUSY COLLECTING STONES.

भजन गीत: यह सब संसार विकल है ..... संजीव 'सलिल'

भजन गीत:
यह सब संसार विकल है .....
 संजीव 'सलिल'
*

*
यह सब संसार विकल है,
जो अविचल वह अविकल है...
*



तन-मन-धन के सब नाते,
जीवन की राह सिखाते.
निज हित की परिभाषाएँ-
तोते की तरह रटाते.
कोई न बताता किसका
कैसा कल था या कल है...
*



किसने-क्यों हमको भेजा?
क्या था पाथेय सहेजा?
हम जोड़े माया-गठरी-
कब कह पाये: 'अब ले जा?
औरों पर दोष लगाया-
कब बतलाया निज छल है...
*



कब साथ कौन आता है?
क्या संग कहो जाता है?
फिर क्यों झगड़े-घोटाले-
कर मनुआ पछताता है?
सदियों के ख्वाब सजाये-
किसने जाना कब पल है?...

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रचना - प्रति रचना: विजय कुमार सप्पत्ती - संजीव 'सलिल'

रचना - प्रति रचना:

विजय कुमार सप्पत्ती - संजीव 'सलिल'

*

परायों के घर

कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी .....!!!

मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,
मैंने तुम्हारे लिये ;
एक उम्र भर के लिये ...!

आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ;
शायद उन्ही रास्तों में ;
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो .......!!

लेकिन ;
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!
 Vijay  Kumar Sappatti <vksappatti@gmail.com>   

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*
तुमने ठीक कहा
'परायों के घर
भीगी आँखों से नहीं जाते'.
तभी तो मैं साधिकार
यहाँ चली आयी.
ये बात और है कि
यहाँ आकर जान सकी
कि तुम ज़िंदगी का
सबसे बड़ा सच भूल गये
सुनोपरायों को लेकर
कही गयी नज्में
दिल से लगाकर
नहीं रखी जातीं।
लौटा दो मुझे
तमाम नज्मे,
जो मेरे-तुम्हारी
यादों से बावस्ता हैं।
और अब दिल से नहीं 
दिमाग से लिखो,
आईने में अपने आप को
खुद से ही अपरिचित दिखो.

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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in


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