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शनिवार, 2 जून 2012

दोहा गीत: धरती भट्टी सम तपी... --संजीव 'सलिल'

दोहा गीत:
धरती भट्टी सम तपी...
संजीव 'सलिल'
*

***
धरती भट्टी सम तपी,
सूरज तप्त अलाव.
धूप लपट लू से हुआ,
स्वजनों सदृश जुड़ाव...


बेटी सर्दी के करे,
मौसम पीले हाथ.
गर्मी के दिन आये हैं,
ले बाराती साथ..

बाबुल बरगद ने दिया,
पत्ते लुटा दहेज.
पवन उड़ाकर ले गया,
रखने विहँस सहेज..

धार पसीने की नदी,
छाँव बन गयी नाव.
बाँह थाम कर आस की,
श्वास पा रही ठाँव...
***

छोटी साली सी सरल,
मीठी लस्सी मीत.
सरहज ठंडाई चहक,
गाये गारी गीत..

घरवारी शरबत सरस,
दे सुख कर संतोष.
चटनी भौजी पन्हा पर,
करती नकली रोष..

प्याज दूर विपदा करे,
ज्यों माँ दूर अभाव.
गमछा अग्रज हाथ रख
सिर पर करे बचाव...
***

देवर मट्ठा हँस रहा,
नन्द महेरी झूम.
झूला झूले पेंग भर
अमराई में लूम..

तोता-मैना गा रहे,
होरी, राई, कबीर.
ऊषा-संध्या ने माला,
नभ के गाल अबीर..

थकन-तपन के चढ़ गाये-
आसमान पर भाव.
बेकाबू होकर बजट
देता अनगिन घाव...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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शुक्रवार, 1 जून 2012

नवगीत: आँख में आंसू ... --संजीव 'सलिल'

नवगीत:
आँख में आंसू ...
संजीव 'सलिल'
*

*
आँख में आँसू,
अधर पर मुस्कराहट...
*

भोर से संझा तलक
सूरज बिचारा,
कर रहा बेगार
बेबस थका-हारा.
अमलतासी दुपहरी ने
हँस गुहारा.
गुलमोहर ने बाँह में
भर-हँस निहारा.
सारिका-शुक के
हृदय में छटपटाहट...
*

पुदीना, अमिया,
नमक, गुड़, मिर्च चटनी.
प्याज-रोटी खा
नचेगी हवा कुटनी.
लू-लपट बनकर
सताए हाय नटनी.
कब रुकेगी हाय!
खुशहाली ये घटनी.
तरावट की चाल में
है लड़खड़ाहट...
*

फट रही छाती,
धरा है विकल प्यासी.
कटे जंगल, खो गये
पंछी प्रवासी.
खुद गये पर्वत,
दसों दिश है उदासी.
तोडती दम नदी
वीरानी हुलासी.
आयी गर्मी
खो गयी है चहचहाहट...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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गुरुवार, 31 मई 2012

नवगीत: गर्मी के दिन... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
गर्मी के दिन...
संजीव 'सलिल'
*
बतियाते-इठलाते
गर्मी के दिन..
*
ठंडी से ठिठुर रहे.
मौसम के पाँव.
सूरज ले उषा किरण
आया हँस गाँव.
नयनों में सपनों ने
पायी फिर ठाँव.
अपनों की पलकों में
खोज रहे छाँव.
महुआ से मदिराए
पनघट के दिन.
चुक जाते-थक जाते
गर्मी के दिन..
*
पेड़ों का कत्ल देख
सिसकता पलाश.
पर्वत का अंत देख
नदी हुई लाश.
शहरों में सीमेंटी
घर हैं या ताश?
जल-भुनता इंसां
फँस यंत्रों के पाश.
होली की लपटें-
चौपालों के दिन.
मुरझाते झुलसाते
गर्मी के दिन..
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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मंगलवार, 29 मई 2012

गीत: प्रभु जैसी चादर दी तूने... संजीव 'सलिल'

गीत:
प्रभु जैसी चादर दी तूने...
संजीव 'सलिल'
*

*
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार.
जैसी भी मैं रख पाया
अब तू कर अंगीकार...
*
तुझसे मेरी कोई न समता,
मैं अक्षम, तू है सक्षमता.
तू समर्थ सृष्टा निर्णायक,
मेरा लक्षण है अक्षमता.
जैसा नाच नचाया नाचूँ-
विजयी हूँ वर हार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
*
तू ऐसा हो, तू वैसा कर,
मेरी रही न शर्त.
क्यों न मुझे स्वीकार रहा हरि!
ज्यों का त्यों निश्शर्त.
धर्माधर्म कहाँ-कैसा
हारो अब सकूँ बोसार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
*
जला न पाये आग तनिक प्रभु!
भीगा न पाये पानी.
संचयकर्ता मुझे मत बना,
और न अवढरदानी.
जग-नाटक में 'सलिल' सम्मिलित
हो निर्लिप्त निहार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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मुक्तिका: दिल में दूरी... --संजीव 'सलिल'

 
मुक्तिका:
दिल में दूरी...
संजीव 'सलिल'

*
 
*
दिल में दूरी हो मगर हाथ मिलाये रखना.
भूख सहकर भी 'सलिल' साख बचाये रखना..

जहाँ माटी ही न मजबूत मिले छोड़ उसे.
भूल कर भी न वहाँ नीव के पाये रखना..

गैर के डर से न अपनों को कभी बिसराना.
दर पे अपनों के न कभी मुँह को तू बाये रखना..

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

कोई प्यासा ले बुझा प्यास, मना मत करना.
जूझ पत्थर से सलिल धार बहाये रखना..

********


सोमवार, 28 मई 2012

ॐ सूर्य द्वादश नामावली --हिंदी काव्यानुवाद: संजीव 'सलिल'

ॐ सूर्य द्वादश नामावली
हिंदी काव्यानुवाद: संजीव 'सलिल'
*



आदित्यः प्रथमं नामः, द्वितीयं तु दिवाकरः.
तृतीयं भास्करं प्रोक्तं, चतुर्थं च प्रभाकरः..
पंचमं च सहस्त्रान्शु, षष्ठं चैव त्रिलोचनः .
सप्तमं हरिदश्वश्चं, ह्यअष्ठं च विभावसु:..
नवमं दिनकृतं प्रोक्तं, दशमं द्वादशात्मकः.
एकादशं त्रयीमूर्ति द्वादशं सूर्य एव च..
द्वादशैतानि नामानि प्रातःकाले पठेन्नरः.
दु:स्वप्न नाशन सद्यः सर्व सिद्धिः प्रजायते..
***
ॐ सूर्य द्वादश नामावली हिंदी काव्यानुवाद



प्रथम नाम आदित्य, दूसरा नाम दिवाकर.
नाम तीसरा भास्कर, चौथा नाम प्रभाकर..
पंचम सहस्त्रान्शु है, छठवां नाम त्रिलोचन.
हरिद अश्व सातवाँ, विभावसु नाम सुअष्टम..
दिनकृत नवमां नाम, द्वादशात्मक है दसवां. 
त्रयीमूर्ति ग्यारहवां,  सूर्य सुनाम बारवाँ..
नित्य प्रात बारह नामों का, जाप करे जो.
तुरत दुस्वप्न नष्ट हों, सिद्धि सभी पाये वो.



*****
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त्रिपदिक नवगीत : नेह नर्मदा तीर पर - संजीव 'सलिल'

: अभिनव सारस्वत प्रयोग :
त्रिपदिक नवगीत :
             नेह नर्मदा तीर पर
                            - संजीव 'सलिल'

                     *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन कर धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
कौन उदासी-विरागी,
विकल किनारे पर खड़ा?
किसका पथ चुप जोहता?

          निष्क्रिय, मौन, हताश है.
          या दिलजला निराश है?
          जलती आग पलाश है.

जब पीड़ा बनती भँवर,
       खींचे तुझको केंद्र पर,
           रुक मत घेरा पार कर...
                   *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन का धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
सुन पंछी का मशविरा,
मेघदूत जाता फिरा-
'सलिल'-धार बनकर गिरा.

          शांति दग्ध उर को मिली.
          मुरझाई कलिका खिली.
          शिला दूरियों की हिली.

मन्दिर में गूँजा गजर,
       निष्ठां के सम्मिलित स्वर,
           'हे माँ! सब पर दया कर...
                   *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन का धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
पग आये पौधे लिये,
ज्यों नव आशा के दिये.
नर्तित थे हुलसित हिये.

          सिकता कण लख नाचते.
          कलकल ध्वनि सुन झूमते.
          पर्ण कथा नव बाँचते.

बम्बुलिया के स्वर मधुर,
       पग मादल की थाप पर,
           लिखें कथा नव थिरक कर...
                   *
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शनिवार, 26 मई 2012

-- श्री सूर्यमंडलाष्टकं -- हिंदी काव्यानुवाद : संजीव 'सलिल'

-- श्री सूर्यमंडलाष्टकं --
हिंदी काव्यानुवाद : संजीव 'सलिल'
*


नमः सवित्रे जगदेक चक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थिति नाशहेतवे.
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरंचिनारायण शंकरात्मने..१..

जगत-नयन सविते! नमन, रचें-पाल कर अंत.
त्रयी-त्रिगुण के नाथ हे!, विधि-हरि-हर प्रिय कंत....



यंमन्डलं दीप्तिकरं विशालं, रत्नप्रभं तीव्रमनादि रूपं.
दारिद्र्य-दुःख-क्षय कारणं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम..२..

आभा मंडल दीप्त सुविस्तृत, रूप अनादि रत्न-मणि-भासित.
दुःख-दारिद्र्य क्षरणकर्ता हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..२..



यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितं विप्रेस्तुते भावन मुक्तिकोविदं.
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..३..

आभा मंडल मुक्तिप्रदाता, सुरपूजित विप्रों से वन्दित.
लो प्रणाम देवाधिदेव हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..३..



यन्मण्डलं ज्ञान घनं त्वगम्यं, त्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपं.
समस्त तेजोमय दिव्यरूपं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..४..

आभा मंडल गम्य ज्ञान घन, त्रिलोकपूजित त्रिगुण समाहित.
सकल तेजमय दिव्यरूप हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..४..


यन्मण्डलं गूढ़मति प्रबोधं, धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानां.
यत्सर्वपापक्षयकारणं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..५..

आभा मंडल सूक्ष्मति बोधक, सुधर्मवर्धक पाप विनाशित .
नित प्रकाशमय भव्यरूप हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..५..
 

यन्मण्डलं व्याधि-विनाशदक्षं, यद्द्रिग्यजुः साम सुसंप्रगीतं.
प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्व:, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..६..

आभा मंडल व्याधि-विनाशक,ऋग-यजु-साम कीर्ति गुंजरित.
भूर्भुवः व: लोक प्रकाशक!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..६..




यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति, गायन्ति यच्चारण सिद्ध्-संघाः.
यदयोगिनो योगजुषां च संघाः, पुनातु मांतत्सवितुर्वरेण्यं..७..

आभा मंडल वेदज्ञ-वंदित, चारण-सिद्ध-संत यश-गायित .
योगी-योगिनी नित्य मनाते, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..७..
 

यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितं, ज्योतिश्च कुर्यादित मर्त्यलोके.
यत्कालकल्पक्षय कारणं च , पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..८..

आभा मंडल सब दिश पूजित, मृत्युलोक को करे प्रभासित.
काल-कल्प के क्षयकर्ता हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..८.. 
 

यन्मण्डलंविश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्ति रक्षा पल प्रगल्भं.
यस्मिञ्जगत्संहरतेsअखिलन्च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..९..

आभा मंडल सृजे विश्व को, रच-पाले कर प्रलय-प्रगल्भित.
लीन अंत में सबको करते, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..९.
.


यन्मण्डलं सर्वगतस्थ विष्णोरात्मा परंधाम विशुद्ध् तत्वं  .
सूक्ष्मान्तरै योगपथानुगम्यं, पुनातु मां तत्सवितुरवतुरवरेण्यं..१०..

आभा मंडल हरि आत्मा सम, सब जाते जहँ धाम पवित्रित.
सूक्ष्म बुद्धि योगी की गति सम, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..१०..
 

यन्मण्डलं विदविदोवदन्ति, गायन्तियच्चारण सिद्ध-संघाः.   
यन्मण्डलं विदविद: स्मरन्ति, पुनातु मां तत्सवितुरवतुरवरेण्यं..११..

आभा मंडल सिद्ध-संघ सम, चारण-भाटों से यश-गायित.
आभा मंडल सुधिजन सुमिरें, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..११..
 


मण्डलाष्टतयं पुण्यं, यः पथेत्सततं नरः.
सर्व पाप विशुद्धात्मा, सूर्य लोके महीयते..

मण्डलाष्टय पाठ कर, पायें पुण्य अनंत.
पापमुक्त शुद्धतम हो, वर रविलोक दिगंत..



..इति श्रीमदादित्य हृदयेमण्डलाष्टकं संपूर्णं.. 
..अब श्रीमदसूर्यहृदयमंडल अष्टक पूरा हुआ..



*****
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मुक्तिका: कुशलता से... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
कुशलता से...
संजीव 'सलिल'
*

*
कुशलता से मैं यहाँ हूँ, कुशलता से आप हों.
कोशिशों की सुमिरनी ले, सफलता के जाप हों.

जमाना कुछ भी कहे, हो राह कितनी भी कठिन.
कदम हों मजबूत ऐसे, मंजिलों के नाप हों..

अहल्या शुचिता से यदि, टकराये कोई इन्द्र तो.
मेट कोई भी न पाये, आप ऐसे शाप हों..

सियासत लंका दशानन भ्रष्ट नेता मुख अनेक.
चुनावी रण राम, हम मतदान शर, मत चाप हों.. 

खुले खिड़की दिमागों की, हवा ताज़ी आ सके.
बंद दरवाज़ा न दिल का कीजिए, मत खाप हों..

पोछ लें आँसू किसी की आँख का- पूजा यही.
आत्म हो परमात्मपूजक, ना तिलक ना छाप हों..

संकटों के नगाड़े हों सामने तो मत डरो.
हौसलों की हथेली, संकल्प की शत थाप हों..

नियम-पालन का हवन, संतोष की करिए कथा.
दूसरों का प्राप्य पाने का 'सलिल' मत पाप हों..
************
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रचना-प्रति रचना : ...लिखूँगा मुकेश श्रीवास्तव-संजीव 'सलिल'

रचना-प्रति रचना :
...लिखूँगा  
मुकेश श्रीवास्तव-संजीव 'सलिल'
*

*
अपनी भी इक दिन कहानी लिखूंगा
टीस  है  कितनी  पुरानी - लिखूंगा
तफसील से तुम्हारी अदाएं  याद  हैं
ली तुमने कब कब अंगड़ाई - लिखूंगा 
साए में तुम्हारे गुज़ारे हैं तमाम दिन
ज़ुल्फ़ हैं तुम्हारी - अमराई लिखूंगा
तपते दिनों में ठंडा ठंडा सा एहसास
है  रूह  तुम्हारी रूहानी - लिखूंगा
छेड़ छेड़ डालती रही मुहब्बत के रंग
है आँचल तुम्हारा - फगुनाई लिखूगा
तुलसी का बिरवा, मुहब्बत की बेल
स्वर्ग सा तुम्हारा - अंगनाई लिखूंगा 
*
मुकेश इलाहाबादी
<mukku41@yahoo.com>
***
मुकेश जी आपकी कहानी तो आपकी हर रचना में पढ़ कर हम आनंदित होते ही हैं. इस सरस रचना हेतु बधाई. आपको समर्पित कुछ पंक्तियाँ-
मुक्तिका:
लिखूँगा...
संजीव 'सलिल'
*
कही-अनकही हर कहानी लिखूँगा.
बुढ़ाती नहीं वह जवानी लिखूँगा..

उफ़ न करूँगा, मिलें दर्द कितने-
दुनिया है अनुपम सुहानी लिखूँगा..

भले जग बताये कि नातिन है बच्ची
मैं नातिन को नानी की नानी लिखूँगा..

रही होगी नादां कभी मेरी बेटी.
बिटिया है मेरी सयानी लिखूँगा..

फ़िदा है नयेपन पे सारा जमाना.
मैं बेहतर विरासत पुरानी लिखूँगा..

राइम सुनाते हैं बच्चे- सुनायें.
मैं साखी, कबीरा, या बानी लिखूँगा..

गिरा हूँ, उठा हूँ, सम्हल कर बढ़ा हूँ.
'सलिल' हूँ लहर की रवानी लिखूँगा..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil' 

शुक्रवार, 25 मई 2012

दोहा मुक्तिका: देर भले उसके यहाँ... संजीव 'सलिल'

दोहा मुक्तिका:
देर भले उसके यहाँ...
संजीव 'सलिल'
*
*
देर भले उसके यहाँ, किन्तु नहीं अंधेर..
कहो उसे अंधेर का, कारण केवल देर..
*
सपने बुनता व्यर्थ ही, नाहक करता देर.
मन सुनता-गुनता नहीं, मैं थक जाता टेर..
*
दर-दरबान नहीं वहाँ, जब जी चाहे टेर.
सवा सेर वह तू अगर, खुद को समझे सेर.
*
पाव छटाक नहीं रहे, कहीं न बाकी सेर.
जो आया सो जाएगा, समय-समय का फेर..
*
कर्मों का कर कीर्तन, कोशिश-माला फेर.
'सलिल' सरस रसपान कर, तन गन्ने को पेर..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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गीत: भटक रहे हम... संजीव 'सलिल'

गीत:
भटक रहे हम...
संजीव 'सलिल'
*

*
भटक रहे हम
राह दिखाओ...
*
कण-तृण-क्षण की कैद यह,
सुखद-दुखद है दैव.
मुक्त करो भव-जाल से-
टेरें तुम्हें सदैव..

आह भर रहे,
चाह मिटाओ...
*
हाव भाव के चाव से,
बेबस ठाँव-कुठाँव.
शहर हुए बेचैन तो-
चैन न पायें गाँव.

श्रम-प्रयास की
वाह कराओ.
भटक रहे हम
राह दिखाओ...
*
नन्हें पर ले भर रहे,
नव संकल्प उड़ान.
शुभाशीष-कर शीश पर-
है नीलाभ वितान.

गहन तिमिर से
सूर्य उगाओ.
भटक रहे हम
राह दिखाओ...
*
खोज-खोजकर थक रहे,
गुप्त तुम्हारा चित्र.
गुप्त चित्त से प्रगट हो,
हाथ थाम लो मित्र.

अंश-पूर्ण का
मिलन कराओ.
भटक रहे हम
राह दिखाओ...
*

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बुधवार, 23 मई 2012

मुक्तिका: तुम्हारे लिये -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
तुम्हारे लिये
संजीव 'सलिल'
*
मन बहुत अनमना है तुम्हारे लिये.
ख्वाब हर अधबुना है तुम्हारे लिये..
*
पाठ संयम के हमने किये याद पर-
पैर तो फिसलना है तुम्हारे लिये..
*
आँख हमसे चुराओ, झुकाओ, मिला
प्यार तो झुनझुना है तुम्हारे लिये..
*
बेरुखी की, विरह की कड़ी शीत में
दिल को भीत मचलना है तुम्हारे लिये..
*
कल्पना में मिलन की घड़ी हर मधुर.
भाग्य में कलपना है तुम्हारे लिये..
*
हाले-दिल क्या सुनायें-किसे कब 'सलिल'
गीत हर अनसुना है तुम्हारे लिये..
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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दोहा सलिला: सूर्य घूमता केंद्र पर... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला
सूर्य घूमता केंद्र पर...
संजीव 'सलिल'
*

*
सूर्य घूमता केंद्र पर, होता निकट न दूर.
चंचल धरती नाचती, ज्यों सुर-पुर में हूर..
*
सन्नाटा छाया यहाँ, सब मुर्दों से मौन.
रवि सोचे चुप ही रहूँ, सत्य सुनेगा कौन..
*
सूर्य कृष्ण दो गोपियाँ, ऊषा-संध्या नाम.
एक कराती काम औ', दूजी दे आराम.
*
छाया-पीछे दौड़ता, सूरज सके न थाम.
यह आया तो वह गयी, हुआ विधाता वाम.
*
मन सूरज का मोहता, है वसुधा का रूप.
याचक बनकर घूमता, नित त्रिभुवन का भूप..
*
आता खाली हाथ है, जाता खाली हाथ.
दिन भर बाँटे उजाला, रवि न झुकाए माथ..
*
देख मनुज की हरकतें, सूरज करता क्रोध.
कब त्यागेगा स्वार्थ यह?, कब जागेगा बोध.
*
पाप मनुज के बढ़ाते, जब धरती का ताप.
रवि बरसाता अश्रु तब, वर्षा कहते आप..
*
आठ-आठ गृह अश्व बन, घूमें चारों ओर.
रथपति कसकर थामता, संबंधों की डोर..
*
रश्मि गोपियाँ अनगिनत, हर पल रचती रास.
सूर्य न जाने किस तरह, रहता हर के पास..
*
नेह नर्मदा में नहा, दिनकर जाता झूम.
स्नेह-सलिल का पान कर, थकन न हो मालूम..
*
सूरज दिनपति बन गया, लगा नहीं प्रतिबन्ध.
नर का नर से यों हुआ, चिरकालिक अनुबंध..
*
भास्कर भास्वर हो 'सलिल', पुजा जगत में खूब.
भोग पुजारी खा गये, गया त्रस्त हो डूब..
*
उदय-अस्त दोनों समय, लोग लगाते भीड़.
शेष समय खाली रहे, क्यों सूरज का नीड़..
*
रमा रहा मन रमा में, किसको याद रमेश.
बलिहारी है समय की, दिया जलायें दिनेश..
*
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मंगलवार, 22 मई 2012

दोहा सलिला: अमलतास हँसता रहा... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
अमलतास हँसता रहा...
संजीव 'सलिल'
*
अमलतास हँसता रहा, अंतर का दुःख भूल.
जो बीता अप्रिय लगा, उस पर डालो धूल..
*
हर अशोक ने शोक को, बाँटा हर्ष-उछाह.
सींच रहा जो नर वही, उस में पाले डाह..
*
बैरागी कचनार को, मोह न पायी नार.
सुमन-वृष्टि कर धरा पर, लुटा रहा है प्यार..
*
कनकाभित चादर बिछी, झरा गुलमोहर खूब.
वसुंधरा पीताभ हो, गयी हर्ष में डूब..
*
गले चाँदनी से मिलीं, जुही-चमेली प्रात.
चम्पा जीजा तरसते, साली करें न बात..
*
सेमल नाना कर रहे, नाहक आँखें लाल.
चूजे नाती कर रहे, कलरव धूम धमाल..
*
पीपल-घर पाहुन हुए, शुक-सारिका रसाल.
सूर्य-किरण भुज भेंटतीं, पत्ते देते ताल..
*
मेघ गगन पर छा रहे, नाच मयूर नाच.
मुग्ध मयूरी सँग मिल, प्रणय-पत्रिका बाँच..
*
महक मोगरा ने किया, सबका चैन हराम.
हर तितली दे रही है, चहक प्रीत पैगाम..
*
दूधमोगरा-भ्रमर का, समझौता गंभीर.
सरहद की लाँघे नहीं, कोई कभी लकीर..
*
ओस बूँद से सज लगे, न्यारी प्यारी दूब.
क्यारी वारी जा रही, हर्ष-खुशी में ड़ूब..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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सोमवार, 21 मई 2012

गीत: प्रभु किस विधि... --संजीव 'सलिल'

गीत:
प्रभु किस विधि...
संजीव 'सलिल'
*
प्रभु! किस विधि
विधि को ध्याऊँ मैं?...
*
आँख मूंदकर बैठा जब-जब
अंतर्मन में पैठा जब-जब
कभी कालिमा, कभी लालिमा-
बिंदु, वृत्त, वर्तुल पाऊँ मैं
प्रभु! किस विधि
विधि को ध्याऊँ मैं?...
*
चित्त-वृत्ति एकाग्र कर रहा,
तज अशांति मन शांति वर रहा.
लीं-छोड़ी श्वासें-प्रश्वासें-
स्वर-सरगम-लय हो पाऊँ मैं
प्रभु! किस विधि
विधि को ध्याऊँ मैं?...
*
बनते-मिटते सरल -वक्र जो,
जागृत हो, है सुप्त चक्र जो.
कुण्डलिनी से मन-मंदिर में-
दीप जला, जल-जल जाऊँ मैं
प्रभु! किस विधि
विधि को ध्याऊँ मैं?...
*

नवगीत : जैसे इंटरनेट पर... धर्मेन्द्र कुमार सिंह

नवगीत : 
जैसे इंटरनेट पर...
धर्मेन्द्र कुमार सिंह 
 *
 नवगीत : जैसे इंटरनेट पर यूँ ही मिले पाठ्य... 



भीड़ भरे इस चौराहे पर
आज अचानक उसका मिलना
जैसे इंटरनेट पर यूँ ही
मिले पाठ्य पुस्तक की रचना

यूँ तो मेरे प्रश्नपत्र में यह रचना भी आई थी पर

इसके हल से कभी न मिलते मुझको वे मनचाहे नंबर
सुंदर सरल कमाऊ भी था
तुलसी बाबा को हल करना

रचना थी ये मुक्तिबोध की छोड़ गया पर भूल न पाया

आखिर इस चौराहे पर आकर मैं इससे फिर टकराया
आई होती तभी समझ में
आज न घटती ये दुर्घटना
 
*****

रविवार, 20 मई 2012

दोहा सलिला: --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
संजीव 'सलिल'
*

*
प्राची से होती प्रगट, खोल कक्ष का द्वार.
अलस्सुबह ऊषा पुलक, गुपचुप झाँक-निहार..
*
पौ फटती सासू धरा, देती गरज गुहार.
'अब लौं सो रईं बहुरिया, अँगना झाड़-बुहार'.
*
सूरज भैया डोलते, भौजी-रूप निहार.
धरती माँ ना देख ले, सिर लटकी तलवार..
*
दादी हवा खंखारती, बोली- 'मैं बलिहार.
छुटकू चंदा पीलिया-ग्रस्त लगा इस बार..
*
कोयल ननदी कूकती, आयी किये सिंगार.
'भौजी चइया चाहिए, भजिये तल दो चार'..
*
आसमान दादा घुसे, घर में करी पुकार.
'ला बिटिया! दे जा तनक, किते धरो अखबार'..
*
चश्मा मोटे काँच का,  अँखियाँ पलक उघार.
चढ़ा कान पर घूरता, बनकर थानेदार..
*
'कै की मोंडी कौन से, करती नैना चार'.
धोबिन भौजी लायीं हैं, खबर मसालेदार..
*
ठन्डे पानी से नहा, बैठे प्रभु लाचार.
भोग दिखा, खा भक्त खुद, लेता रोज डकार..
*
दिया पड़ोसन ने दिया, अँगना में जब बार.
अपने घर का अँधेरा, गहराया तब यार..
*
'सलिल' स्नेह हो तो मने, कुटिया में त्यौहार.
द्वेष-डाह हो तो महल, लगता कारगर..
**
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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विशेष रचना: नौ का महत्त्व -- संतोष भाऊवाला

विशेष रचना:
           नौ का महत्त्व
                                     संतोष  भाऊवाला 
 
विश्व के समस्त पदार्थों में जैसे, ब्रह्म एकरस आप्त
वैसे अंक नौ सर्वत्र ह्रास -वृद्धि रहित , एक सा ब्याप्त
            नौ का गुणन करने पर भी रहता ज्यों का त्योंही
            इसका सम्पूर्ण पहाडा रहे,आदि से अंत तक वही
आठ के अंक में जब एक अंक और होता संयुक्त
नौ का रूप धारण कर ह्रास वृद्धि से होता मुक्त
         अंक आठ  माया स्वरुप ,जब हो माया ब्रह्म में लीन
          स्वरुप खोकर होती विलीन, घटना बढ़ना होता क्षीण
नवग्रह ,नौ छंद,नौ रस,नौ दुर्गा, नौ नाडी,नौ हव्य,
नौ सिद्धि, नौ निधि ,नौ रत्न,  नौ  छवि ,नौ द्रव्य
            तुलसी नौ की महिमा की तुलना करे श्री राम संग  
            आदि अंत नीरबाहिये, अंक नौ करे ना नियम भंग   
  
  1. नवधा भक्ति: श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य, आत्मनिवेदन
  2. नौ सिद्धि: ब्राह्मी, वैष्णवी, रौद्री, माहेश्वरी, नारसिंही, वाराही, इन्द्रानी, कार्तिकी, सर्वमंगला
  3. नौ निधि: पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील, ख़राब  
  4. नौ रत्न: मानिक, मोती, मूंगा, वैदूर्य ,गोमेद, हीरा, पद्मराग, पन्ना, नीलम  
  5. नौ दुर्गा: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री
  6. नौ गृह: सूर्य, चन्द्रमा, भौम, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु  
  7. नौ छंद: दोहा, सोरठा, चौपाई, हरिगीतिका, त्रिभंगी, नाग स्वरुपिनी, तोमर, भुजंग प्रयात, तोटक  
  8. नौ छवि: द्युति, लावण्य, स्वरूप, सुंदर, रमणीय, कांटी, मधुर, मृदु, सुकुमार  
  9. नौ द्रव्य: पृथ्वी, जल, तेज, वायु, नभ, काल, दिक्, आत्म, मन  
  10. काव्य शास्त्र के नौ रस: श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत  
  11. नौ हव्य: घृत, दुग्ध, दधि, मधु, चीनी, तिल, चावल, यव, मेवा   
  12. नौ नाडी: इडा, पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, गज, जिम्हा, पुष्प, प्रसादा, शनि, शंखिनी
  13. पृथवी के नौ खंड: किम्पुरुष, इलावृत, रम्यक, हिरंमय, कुरु, हरी, भारत, केतुमाल, भाद्रक्ष 
  14. शरीर के नौ द्वार ...दो नेत्र, दो नाक, दो कान, मुख, गुदा, उपस्थ
  15. विक्रमादित्य के नवरत्न: क्षपणक, अमर सिंह, शंकु, वेताल भट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराह मिहिर, धन्वन्तरी, वररूचि.    
    ९ से संबंधित कुछ और जानकारी:
    -- नौकडा: ९ कौड़ियों से तीन व्यक्तियों द्वारा खेला जानेवाला जुआ.
    -- नौगजी: स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाली ९ गज की साड़ी.
    -- नौगही: ९ रत्नों वाला हार.
    -- नौ दसी: क़र्ज़ की विधि जिसमें ९ लेकर १० चुकाना होता है.
    -- नौनगा: ९ नग जड़ा हाथ में पहनने का कंगन.
    -- नौमासा: गर्भाधान के ९ वें माह में की जानेवाली रस्म जिसमें स्त्री के अंचल में मिठाई आदि भरी तथा बांटी जाती है.
    -- नौलखा: ९ लाख रुपये कीमत का हार.
    -- नौ सरा: ९ लड़ियोंवाली माला.
    -- नौतोड़ : पहली बार जोता गया खेत.
    -- नौबढ़ : बुरी स्थिति से एकाएक अच्छी दशा को प्राप्त व्यक्ति.
    -- नौसिखिया: नया-नया सीख हुआ, आधा-अधूरा सीखा हुआ.
    -- नौचंदा: चाँद से दूसरा दिन.
    -- नौचंदी : चाँद से प्रारंभ माहों की पहली जुमेरात.
    -- नौजवान: नवयुवक.
    -- नौनिहाल: होनहार युवक.
    -- नौबरार: पहली बार लगन लगी जमीं.
    -- नौबाला: अभी-अभी बालिग हुई कन्या.
    -- नौरोज़: पारसी वर्ष का पहला दिन.
    -- नौशाहाना: दूल्हे के जैसा.
    -- नौशा: दूल्हा.
    -- नौशी: दुल्हन.
    -- नौकर: सेवक.
    -- नौकरानी: सेविका.
    -- नौकरशाही: सेवकों से संचालित शासन.
    -- नौका: नाव.
    -- नौची: तवायफ की पट्टशिष्या जिसे वह अपना फन सिखाती है.
    -- नौजा: बादाम / चिलगोजा.
    -- नौजी: लीची.
    -- नौटंकी: एक लोक नाट्य.
    -- नौतन: अनाड़ी. तुम सतगुरु मैं नौतन चेला- कबीर.
    -- नौता: न्योता, आमंत्रण.
    -- नौना: नम्र/ सुंदर.
    -- नौबत: दशा / नगाड़ा.
    -- नौबती: नौबत बजानेवाला.
    -- नौरंगी: नारंगी.
    -- नौमी: नवमी तिथि. नौमी तिथि नाधू नास पुनीता- तुलसी
    -- नौशेरवां: ईसा की छठवीं सदी में फारस का लोकप्रिय बध्सः.
    -- नौसादर: एक प्रकार का क्षार.
    -- नौहा: कर्बला के शहीदों पर रचित शोकगीत.
    -- नौरात: नव रात्रि.
    -- नौरन्ध्र / नौद्वार: २ आँख, २ कान, नाक, मुख, लिंग/योनी, गुदा.
        (दसवां द्वार:ब्रम्हद्वार  )
    -- नौ कुमारी: कल्याणी, काली, कुमारिका, चण्डिका, त्रिमूर्ति, दुर्गा, रोहिणी, शांभवी, सुभद्रा.
    -- नौकन्या: ब्राम्हणी, कापालिकी, ग्वालिन, धोबिन, नटी, नाइन, मालिन, वैश्या, शूद्रा.
    *** 

गीत: अनछुई ये साँझ --संजीव 'सलिल'

गीत:
अनछुई ये साँझ
संजीव 'सलिल'
*
 
*
साँवरे की याद में है बाँवरी 
अनछुई ये साँझ...
*
दिन की चौपड़ पर सूरज ने,
जमकर खेले दाँव.
उषा द्रौपदी के ज़मीन पर,
टिक न सके फिर पाँव.

बाधा मरुथल, खे आशा की नाव री
प्रसव पीढ़ा बाँझ.
साँवरे की याद में है बाँवरी 
अनछुई ये साँझ...
*
अमराई का कतल किया,
खोजें खजूर की छाँव.
नगर हवेली हैं ठाकुर की,
मुजरा करते गाँव.

सांवरा सत्ता पे, तजकर साँवरी
बज रही दरबार में है झाँझ.
साँवरे की याद में है बाँवरी 
अनछुई ये साँझ...
*