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मंगलवार, 18 मई 2010

दोहा का रंग भोजपुरी के संग: संजीव वर्मा 'सलिल'

दोहा के रंग भोजपुरी के संग:

संजीव वर्मा 'सलिल'

*















सपन दिखावैं रात भर, सुधि के दीपक बार.
जिया जरत बा बिरह में, अँखियाँ दें जल ढार..
*
पल-पल लागत बरस सम, मिल न दिन के चैन.
करवट बदल-बदल कटल, बैरन भइले रैन..
*
सावन सुलगल  जेठ सम, साँसें लागल भार.
पिया बसल परदेस जा, बारिश लगल कटार..
*
अंसुंअन ले फफकलि नदी, अंधड़ भयल उसांस.
विरह अँधेरा, मिलन के आस बिजुरि उर-फांस..
*
ठगवा के लगली नजर, बगिया गइल झुराइ.
अंचरा बोबाइल अगन, मैया भइल पराइ..
*
रोटी के टुकड़ा मिलल, जिनगी भइल रखैल.
सत्य अउर ईमान के, कबहूँ न पकड़ल गैल..
*
प्रभु-मरजी कह कर लिहिल, 'सलिल' चुप्प संतोष.
नेता मेवा खा गइल, सेवा का कर घोष..
*

दोहा के रंग जम गइल, भोजपुरी के संग.
लला-लली पढ़ सीख लिहिल, हे जिनगी के ढंग..
*
केहू मत कहिबे सगा, मत केहू के गैर.
'सलिल' जोड़ कर ईश से, मान सबहिं के खैर..

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

चार चतुष्पदियाँ : तितली पर ---संजीव वर्मा 'सलिल'


                                                         तितली से बगिया हुई, प्राणवान-जीवंत.
तितली यह सच जानती, नहीं मोह में तंत..
भ्रमर लोभ कर रो रहा, धोखा पाया कंत.
फूल कहे, सच को समझ, अब तो बन जा संत..
*

जग-बगिया में साथ ही, रहें फूल औ' शूल.
नेह नर्मदा संग ही, जैसे रहते कूल..
'सलिल' न भँवरा बन, न दे मतभेदों को तूल.
हर दिल बस, हर दिल बसा दिल में, झगड़े भूल..
*

नहीं लड़तीं, नहीं जलतीं, हमेशा मेल से रहतीं.
तितलियों को न देखा आदमी की छाँह भी गहतीं..
हँसों-खेलो, न झगड़ो ज़िंदगी यह चंद पल की है-
करो रस पान हो गुण गान, भँवरे-तितलियाँ कहतीं..
*

तितलियाँ ही न हों तो फूल का रस कौन पायेगा?
भ्रमर किस पर लुटा दिल, नित्य किसके गीत गायेगा?
न कलियाँ खिल सकेंगीं, गर न होंगे चाहनेवाले-
'सलिल' तितली न होगी, बाग़ में फिर कौन जायेगा?.

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सोमवार, 17 मई 2010

मस्ती : गर्दन युद्धाभ्यास --- विजय कौशल

गर्दन युद्धाभ्यासwww.FunAndFunOnly.org

परिचर्चा : चिट्ठाकारी का सामाजिक दायित्व और प्रभाव


परिचर्चा : चिट्ठाकारी का सामाजिक दायित्व और प्रभाव जबलपुर. 
स्थानीय सिविक सेंटर में चिट्ठाकारी का सामाजिक दायित्व और प्रभाव विषय पर केन्द्रित एक जीवंत परिचर्चा का आयोजन श्री अनिल माधव सप्रे नव निर्वाचित अध्यक्ष बी.जे.पी. आई.टी.सेल. के मुख्यातिथ्य तथा दिव्य नर्मदा के संपादक श्री संजीव वर्मा 'सलिल' की अध्यक्षता में संपन्न हुआ. विशेष वक्ता थे श्री सचिन खरे प्रांतीय महामंत्री बी.जे.पी. आई.टी.सेल तथा वरिष्ठ चिट्ठाकार श्री विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र'.
परिचर्चा के संयोजक श्री प्रशांत कर्मवीर ने अतिथियों एवं वक्ताओं का स्वागत करते हुए चिट्ठाकारी के आशय, उपयोग तथा भविष्य पर चर्चा को आवश्यक बताया. तकनीकी मार्गदर्शक श्री मन्वंतर ने गत आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी द्वारा चल भाष पर एस.एम्.एस. तथा बड़े नेताओं की वेब साइटों द्वारा आम आदमी से जुड़ने के प्रयास की सराहना करते हुए इसे एक शुभ आरम्भ मात्र निरूपित किया जिसका अनुकरण अन्य दलों द्वारा किया जाना है. 
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ने चिट्ठाकारी की तकनीक से उपस्थितों का परिचय कराया तथा विद्युत् चोरी एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष में चिट्ठे को एक सशक्त औजार बताया. उन्होंने चिट्ठाकारिता को शौक नहीं आदत बनाने का संदेश दिया. 
श्री सचिन खरे ने चिट्ठाकारी के सामने उपस्थित चुनौतियों की चर्चा करते हुए बताया कि अभी न तो नेताओं न ही आम लोगों को इस तकनीक के असर का अंदाज़ न इस पर भरोसा है. उन्होंने बड़े नेताओं की वेब साइटें बनाने के अपने अनुभव को श्रोताओं से बाँटते हुए कहा कि जहाँ प्रारंभ में उन्हें यह फालतू का बखेड़ा लगता था वहीं अब उनमें से कई खुद अपने चिट्ठे देखते-लिखते हैं. चिट्ठाकारी के सामाजिक प्रभाव की चर्चा करते हुए वक्ता ने इसे भावी निर्णायक शक्ति बताया. 
मुख्य अतिथि की आसंदी से श्रोताओं व् प्रशिक्षुओं के संबोधित करते हुए श्री श्री अनिल माधव सप्रे ने चिट्ठाकारी से सम्बंधित सूक्ष्म तथा प्रामाणिक जानकारी देकर उपस्थितों को विस्मित कर दिया. उन्होंने चिट्ठाकारी के अच्छे पक्ष को जानने के साथ-साथ बुरे पक्ष से सजग रहने की अपरिहार्यता प्रतिपादित की. संगणक द्वारा किए जा रहे अपराधों की चर्चा करते हुए वक्ता ने चिट्ठाकारी करते समय जरूरी सावधानियों का उल्लेख किया. 
प्रथम सत्र के समापन के पूर्व अध्यक्षीय उद्बोधन में दिव्य नर्मदा के यशस्वी संपादक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने चिट्ठाकारी के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य के शब्द-चित्र उपस्थित करते हुए युवा पीढी के लिये इसकी उपादेयता पर प्रकाश डाला. वक्ता ने चिट्ठों को शिक्षा, अध्ययन, आजीविका, शोध, सामाजिक परिवर्तन, विश्व बन्धुत्व तथा सकल मानवता हेतु वरदान निरूपित करते हुए इसे अभिशाप बनानेवालों से सजग रहने का संदेश दिया. 
आयोजन का समापन श्री मन्वंतर द्वारा तकनीकी कार्यशाला में पूछे गए सवालों के समाधान से हुआ. आभार प्रदर्शन श्री कर्मवीर ने किया. 
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दोहा का रंग : छत्तीसगढ़ी के संग ---संजीव वर्मा 'सलिल'

दोहा का रंग : छत्तीसगढ़ी के संग

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
महतारी छत्तिसगढ़ी, बार-बार परनाम.
माथ नबावों तोरला, बनहीं बिगरे काम..
*
बंधे रथे सुर-ताल से, छत्तिसगढ़िया गीत.
किसिम-किसिम पढ़तच बनत, गारी होरी मीत..
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कब परधाबौं अरघ दे, सुरज देंव ल गाँव.
अँधियारी मिल दूर कर, छा ले छप्पर छाँव..
*
सुख-सुविधा के लोभ बर, कस्बा-कस्बा जात.
डउका-डउकी बाँट-खुट, दू-दू दाने खात..
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खुल्ली आँखी निहारत, हन पीरा-संताप.
भोगत हन बदलाव चुप, आँचर बर मुँह ढांप..
*   
कस्बा-कस्बा जात हे, लोकाचार निहार.
टुटका-टोना-बैगई,  झांग-पाग उतार..
*
शोषण अउर अकाल बर, गिरवी भे घर-घाट.
खेत-खार खाता लीहस, निगल- सेठ के ठाठ..
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हमर देस के गाँव मा, सुनहा सुरज बिहान.
अरघ देहे बद अंजुरी, रीती- रोय किसान..
*

जिनगानी के समंदर, गाँव-गँवई के रीत.                      
जिनगी गुजरत हे 'सलिल', कुरिय-कुंदरा मीत..
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महतारी भुइयाँ असल, बंदत हौं दिन-रात.
दाई! पइयां परत हौं, मूँड़ा पर धर हात..
*
जाँघर टोरत सेठ बर, चिथरा झूलत भेस.
मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस..
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बाँग देही कुकराकस, जिनगी बन के छंद.
कुररी कस रोही 'सलिल', 'मावस दूबर चंद..
*
छेंका-बांधा बहुरिया, सारी-लुगरा संग.
अंतस मं किलकत-खिलत, हँसत- गाँव के रंग..
*
गुनगुनात-गावत-सुनत, अइसन हे दिन-रात.
दोहा जिनगी के चलन, जुरे-जुरे से गात..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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रविवार, 16 मई 2010

एक गपशप / चैट चर्चा:



















एक गपशप / चैट चर्चा:

शायर अशोक : 
नमस्ते सर जी , फुर्सत के पल, ब्लॉग पे
मेरी नई रचना पढियेगा : http://shayarashok.blogspot.com/
"शैतानों की हुकूमत में  हर रोज़ इंसान मरता है
भ्रष्टाचार की दलदल में माँ  का  दम   घुटता है"



मैं: avashya...
ShaYar: ji shukriya
मैं: divyanarmada.blogspot.com par nayee rachna padhiye, buzz par bhee hai...

 6:19 PM बजे रविवार को प्रेषित
ShaYar: aapki rachna ke hum to diwaane  , sir ji.....buzz per khaasker aapko hi  padhne jaate hain.....
मैं: buzz par kyon? divyanarmada par padhariye...follow kariye...comment kariye...likhye bhee...

ShaYar: ji bilkul
abhi hi follow kerta hoon
 6:23 PM बजे रविवार को प्रेषित
मैं: aapmen likhne kee kshamata hai par rachna ko man men der tak pkne den kachcha he n chhap den.. kabhee-kabhee lagta hai ki aap dobara vahee baat kahenge to behtar tareeke se kahenge. aisa hm sabke sath hota hai.

ShaYar: ji
मैं: kabhee-kabhee main bhee aisee hiee bhool kar jata hoon fir pachhtata hoon.
main apne baad kee peedhee ke rachnakaron men aapmen sambhavna dekhta hoon.
ShaYar: ji
6:26 PM बजे रविवार को प्रेषित
मैं: sahityashilpee par 'kavya ka rachnashastra' lekhmala dekhiye. use poora padhiye aur fir 'urdoo sahitya men alnkar' sheershak se har alankar ke udaaharan khoj kar lekh mala divya narmada ke liye likhiye.mehnat ka kaam hai par aap men salaahiyat hai...kar sakte hain.
 6:28 PM बजे रविवार को प्रेषित
ShaYar: ji sir ji.........namaste.

namaskar
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कविता: रखे वैशाख ने पैर -पूर्णिमा वर्मन

कविता :
रखे वैशाख ने पैर
पूर्णिमा वर्मन 
*

रखे वैशाख ने पैर
बिगुल बजाती,
लगी दौड़ने
तेज़-तेज़
फगुनाहट
खिले गुलमुहर दमक उठी फिर
हरी चुनर पर छींट सिंदूरी!
सिहर उठी फिर छाँह
टपकती पकी निबौरी
झरती मद्धम-मद्धम
जैसे
पंखुरी स्वागत
साथ हवा के लगे डोलने
अमलतास के सोन हिंडोले!
धूप ओढनी चटक
दुपहरी कैसे ओढ़े
धूल उड़ाती गली
गली
मौसम की आहट!

पद्य: प्रकृति की गोद में ही है सब सुख भरा ----प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"

गहरे सागर वन उपवन धरा औ' गगन

प्रकृति नियमों का सब कर रहे हैं अनुसरण

आदमी को भी जीना है जो संसार में

पर्यावरण से करना ही होगा संतुलन 


                                                            विश्व विकसा ये, पा माँ प्रकृति की कृपा

गहन दोहन उसी का पर कर रहा

भूल अपनी मनुज न सुधारेगा तो

सुख के युग का असंभव फिर आगमन


हो रहा मृदा जल वन पवन का क्षरण

है प्रदूषित हुआ सारा वातावरण

साँस लेना भी मुश्किल सा अब हो चला

जो न संभले तो दिखता निकट है मरण


                                                            प्रकृति माँ है जो देती है सब कुछ हमें

हमें चाहिये कि हम लालचों से थमें

विश्व हित में प्रकृति साथ व्यवहार में

उसकी गति और मति का करें अनुसरण


मिलें उपहार हैं भूमि जल वन पवन

सूर्य की ऊर्जा , स्वस्थ जीवन गगन

इनका लें लाभ पर बिना आहत किये

वन औ' वनप्राणियों का विवर्धीकरण


                                                              अपनी पर्यावरण से ही पहचान है

इससे गहरा जुडा हरेक उत्थान है

हो गया है जरूरी बहुत आज अब

कल के जीवन के बारे में चिंतन मनन


                                                              आओ! संकल्प लें कोई काटे न वन

मिटाने गलतियाँ वन बढ़ायें सगन

प्रदूषण हटें जल स्त्रोत के , वायु के

प्रकृति पूजा की हर मन में उपजे लगन


                                                          प्रकृति की गोद में ही है सब सुख भरा

प्रकृति के ही प्यार से ही है हरी यह धरा

अगर पर्यावरण नष्ट हमने किया

हमको भगवान भी कल न देंगे शरण .


                                                      *****************************

नवगीत: निर्माणों के गीत गुँजायें...... --संजीव वर्मा 'सलिल'















नवगीत:

निर्माणों के गीत गुँजायें...

संजीव वर्मा 'सलिल'
*













निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
मतभेदों के गड्ढें पाटें,
सद्भावों की सड़क बनायें.
बाधाओं के टीले खोदें,
कोशिश-मिट्टी-सतह बिछायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














निष्ठां की गेंती-कुदाल लें,
लगन-फावड़ा-तसला लायें.
बढ़ें हाथ से हाथ मिलाकर-
कदम-कदम पथ सुदृढ़ बनायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*



















विश्वास-इमल्शन को सींचें,
आस गिट्टियाँ दबा-बिछायें.
गिट्टी-चूरा-रेत छिद्र में-
भर धुम्मस से खूब कुटायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














है अतीत का लोड बहुत सा,
सतहें सम कर नींव बनायें.
पेवर माल बिछाये एक सा-
पंजा बारम्बार चलायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














मतभेदों की सतह खुरदुरी,
मन-भेदों का रूप न पायें.
वाइब्रेशन-कोम्पैक्शन दें-
रोलर से मजबूत बनायें.
दूरियाँ दूरकर एक्य बढ़ायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














राष्ट्र-प्रेम का डामल डालें-
प्रगति-पन्थ पर रथ दौड़ायें.
जनगण देखे स्वप्न सुनहरे,
कर साकार, बमुलियाँ गायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














श्रम-सीकर का अमिय पान कर,
पग को मंजिल तक ले जाएँ.
बनें नींव के पत्थर हँसकर-
काँधे पर ध्वज-कलश उठायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*















टिप्पणी: इमल्शन =  सड़क  निर्माण के पूर्व मिट्टी-गिट्टी की पकड़ बनाने के लिये डामल-पानी का तरल मिश्रण, पेवर = डामल-गिट्टी का मिश्रण समान मोती में बिछानेवाला यंत्र, पंजा = लोहे के मोटे तारों का पंजा आकार, गिट्टियों को खींचकर गड्ढों में भरने के लिये उपयोगी, वाइब्रेटरी रोलर से उत्पन्न कंपन तथा स्टेटिक रोलर से बना दबाव गिट्टी-डामल के मिश्रण को एकसार कर पर्त को ठोस बनाते हैं, बमुलिया = नर्मदा अंचल का लोकगीत, 













दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

शनिवार, 15 मई 2010

तितलियाँ : कुछ अश'आर संजीव 'सलिल'

 तितलियाँ : कुछ अश'आर

संजीव 'सलिल'

तितलियाँ जां निसार कर देंगीं.
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
*
तितलियों की चाह में दौड़ो न तुम.
फूल बन महको तो खुद आयेंगी ये..
*
तितलियों को देख भँवरे ने कहा.
भटकतीं दर-दर न क्यों एक घर किया?

कहा तितली ने मिले सब दिल जले.
कोई न ऐसा जहाँ जा दिल खिले..
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पिता के आँगन में खेलीं तितलियाँ.
गयीं तो बगिया उजड़ सूनी हुई..
*
बागवां के गले लगकर तितलियाँ.
बिदा होते हुए खुद भी रो पडीं..
*
तितलियाँ ही बैग की रौनक बनी.
भ्रमर तो बेदाम के गुलाम हैं..
*
'आदाब' भँवरे ने कहा, तितली हँसी.
उड़ गयी 'आ दाब' कहकर वह तुरत..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com