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मंगलवार, 1 जून 2021

मुक्तक

मुक्तक
खुद पर हो विश्वास, बहुत है
पूरी हो कुछ आस, बहुत है
चिर अतृप्ति या तृप्ति न चाहूँ
लगे-बुझे नित प्यास, बहुत है
*
राजीव बिन शोभा न सलिल-धार की
वास्तव में श्री अमर है प्यार की
सृजन पथ पर अक्षरी आराधना
राह है संसार से उद्धार की
*
बिंदु-सिन्धु सा खुद में और खुदा में अंतर
कंकर-शंकर किये समाहित सच का मंतर
आप आत्म, परमात्म आप है, द्वैत नहीं कुछ
जो देखे अद्वैत मलिन हो कभी न अंतर
*
इंसानी फितरत समान है, रहो देश या बसों विदेश
ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ मलिनता मिले न लेश
जैसा देश वेश हो वैसा पुरखे सच ही कहते थे-
स्वीकारें सच किन्तु क्षुब्ध हो नोचें कभी न अपने केश
*
बाधाएँ अनगिन आयेंगीं, करना तनिक उजास बहुत है
तपिश झेलने को मन में मधुबन का हो आभास बहुत है
तिमिर अमावस का लाया है खबर जल्द राकेश आ रहा
फिर पूनम-चंदा चमकेगा बस इतना विश्वास बहुत है
*
ममता-समता पाने खातिर जी भर करें प्रयास बहुत है
प्रभु सुमिरन से बने एकता किंचित हो आभास बहुत है
करें प्रार्थना पर न याचना, पौरुष-कोशिश कभी न त्यागें-
कर्मयोग ही फलदायक है, करिए कुछ विश्वास बहुत है. *

*
'जैसी करनी वैसी भरनी' अगर नहीं तो न्याय कहाँ?
लेख-जोखा अगर नहीं तो असत-सत्य का दाय कहाँ?
छाँह न दे तो बेमानी छाता हो जाता क्यों रखिए-
कुछ न करे तो शक्तिमान का किंचित भी अभिप्राय कहाँ?
*
१-६-२०१५ 

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