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सोमवार, 9 दिसंबर 2019

द्विपदी - दोहा


द्विपदी दुनिया 
शिखर पर रहो सूर्य जैसे सदा तुम
हटा दो तिमिर, रौशनी दो जरा तुम
*
खुशी हो या गम देन है उस पिता की
जिसे चाहते हम, जिसे पूजते तुम
*

जितने भी दाना हैं, स्वार्थ घिरे बैठे हैं 
नादां ही बेहतर जो, अहं से न ऐंठे हैं.
*

दोहा सलिला  


लोकतंत्र का हो रहा, भरी दुपहरी खून.
सद्भावों का निगलते, नेता भर्ता भून.
*


मन में का? के से कहें? सुन हँस लैहें लोग.
मन की मन में ही धरी, नदी-नाव संजोग.
*


पौधों, पत्तों, फूल को, निगल गया इंसान
मैं तितली निज पीर का, कैसे करूँ बखान?
*

करें वंदना शब्द की ले अक्षर के हार 
सलिल-नाद सम छंद हो, जैसे मंत्रोच्चार
*

सबखों कुरसी चाइए, बिन कुरसी जग सून.
राजनीति खा रई रे, आदर्सन खें भून.
*


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