नवगीत:
लोकतंत्र के
शहंशाह की जय...
*
राजे-प्यादे
कभी हुए थे.
निज सुख में
नित लीन मुए थे.
करवट बदले समय
मिटे सब-
तनिक नहीं संशय.
कोपतंत्र के
शहंशाह की जय....
*
महाकाल ने
करवट बदली.
गायब असली,
आये नकली.
सिक्के खरे
नहीं हैं बाकि-
खोटे हैं निर्भय.
लोभतंत्र के
शहंशाह की जय...
*
जन-मत कुचल
माँगते जन-मत.
मन-मथ,तन-मथ
नाचें मन्मथ.
लोभ, हवस,
स्वार्थ-सुख हावी
करुनाकर निर्दय.
शोकतंत्र के
शहंशाह की जय....
******
11 टिप्पणियां:
sahi kaha
Avaneesh
लोकतंत्र की अच्छी खबर ली है.....दर असल राजनैतिक विकास की प्रक्रिया में बहुत सारी खूबियों के साथ लोकतंत्र की जो कमियाँ सामने आयी हैं उनसे फिर किसी नयी अधिक उन्नत/उत्तम शासन प्रणाली की आवश्यकता महसूस होने लगी है.
संजीवजी,
आपका ब्लॉग आज ही देखा. ख़ुशी हुई.
आप तो इस मैदान के पुराने खिलाडी नज़र आ रहे है.
मै नया हू.मेरा ब्लॉग भी देख ले. अभी तो केवल कविताये ही पोस्ट कर रहा हू. बहुत देर तक कम्पोज़ करने की आदत नहीं बनी है.
आप की मेहनत साफ़ झलक रही है. अब इसे देखता रहूँगा. मेरा ब्लॉग भी ज़रूर देखे.
September 18, 2009 10:03 PM
mera blog hai-girish pankaj(http//sadhawanadarpan.blogspot.com)
September 18, 2009 10:05 PM
mera blog hai-girish pankaj(http//sadhawanadarpan.blogspot.com)
September 18, 2009 10:05 PM
bahut sundar ABHIVYAKTI ki hai aapne.
aapki kalam ke to ham hamesha kaayal rahe hain.
aapke aane se BLOG ko nai uchai mili hai.
sahyog hetu aabhar.
September 19, 2009 11:18 AM
BAHUT UMDA RACHNA
लाजवाब रचना है. आज के लोकतंत्र की सटीक अभिव्यक्ति. शुभकामनायें.
बहुत सही व सटीक चित्रण किया है अपने इस रचना के द्वारा. बहुत-बहुत बधाई.
सलिल साहब!
इतनी खूबसूरती से यह बात सिर्फ आप ही कह सकते हैं.
ईद मुबारक..
heart touching poem.
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