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रविवार, 25 जनवरी 2015

navgeet: -sanjiv

नवगीत;
तुम कहीं भी हो
संजीव

.
तुम कहीं भी हो
तुम्हारे नाम का सजदा करूँगा
.
मिले मंदिर में लगाते भोग मुझको जब कभी तुम
पा प्रसादी यूँ लगा बतियाओगे मुझसे अभी तुम
पर पुजारी ने दिया तुमको सुला पट बंद करके
सोचते तुम रह गये
अब भक्त की विपदा हरूँगा
.
गया गुरुद्वारा मिला आदेश सर को ढांक ले रे!
सर झुका कर मूँद आँखें आत्म अपना आँक ले रे!
सबद ग्रंथी ने सुनाया पूर्णता को खंड करके
मिला हलुआ सोचता मैं
रह गया अमृत चखूँगा
.
सुन अजानें मस्जिदों के माइकों में जा तलाशा
छवि कहीं पाई न तेरी भरी दिल में तब हताशा
सुना फतवा 'कुफ्र है, यूँ खोजना काफिर न आ तू'
जा रहा हूँ सोचते यह
राह अपनी क्यों तजूँगा?
.
बजा घंटा बुलाया गिरजा ने  पहुंचा मैं लपक कर
माँग माफ़ी लूँ कहाँ गलती करी? सोचा अटककर
शमा बुझती देख तम को साथ ले आया निकलकर  
चाँदनी को साथ ले,
बन चाँद, जग रौशन करूँगा
.
कोई उपवासी, प्रवासी कोई जप-तप कर रहा था
मारता था कोई खुद को बिना मारे मर रहा था
उठा गिरते को सम्हाला, पोंछ आँसू बढ़ चला जब
तब लगा है सार जग में
गीत गाकर मैं तरूँगा
*    

समीक्षा: बांसों के झुरमुट से- ब्रजेश श्रीवास्तव का नवगीत संग्रह -संजीव

navgeet: -sanjiv

नवगीत:
भारत आ रै
संजीव

.
भारत आ रै ओबामा प्यारे,
माथे तिलक लगा रे!
संग मिशेल साँवरी आ रईं,
उन खों  हार पिन्हा रे!!
.
अपने मोदी जी नर इन्दर
बाँकी झलक दिखा रए
नाम देस को ऊँचो करने
कैसे हमें सिखा रए
'झंडा ऊँचा रहे हमारा'
संगे गान सुना रे!
.
देश साफ़ हो, हरा-भरा हो
पनपे भाई-चारा
'वन्दे मातरम' बोलो सब मिल
लिये तिरंगा प्यारा
प्रगति करी जो मूंड उठा खें
दुनिया को दिखला रए
.

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

netaji subhash chandra bose aur bharat sarkar


नेताजी जयंती पर: नेताजी सुभाष चन्द्र बोस? और भारत सरकार 
*                                      
देश आजाद होने के बाद संसद में कई बार माँग उठी कि कथित विमान-दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिये सरकार कोशिश करे। प्रधानमंत्री नेहरू इस माँग को दस वर्षों तक टालने में सफल रहे।  भारत सरकार इस बारे में ताईवान  (फारमोसा) सरकार से सम्पर्क ही नहीं करती थी। अन्त में जनप्रतिनिधियों (सांसदों) ने जस्टिस राधाविनोद पाल की अध्यक्षता में गैर-सरकारी जाँच आयोग के गठन का निर्णय लिया तब जाकर नेहरू ने 1956 में भारत सरकार की ओर से जाँच-आयोग के गठन की घोषणा की। 

सांसद चाहते थे कि जस्टिस राधाविनोद पाल को ही आयोग की अध्यक्षता सौंपी जाये। विश्वयुद्ध के बाद जापान के युद्धकालीन प्रधानमंत्री सह युद्ध मंत्री जनरल हिदेकी तोजो पर जो युद्धापराध का मुकदमा चला था, उसकी ज्यूरी (वार क्राईम ट्रिब्यूनल) के एक सदस्य थे- जस्टिस पाल। मुकदमे के दौरान जस्टिस पाल को  जापानी गोपनीय दस्तावेजों के अध्ययन का अवसर मिला था,  स्वाभाविक रूप से जाँच-आयोग की अध्यक्षता के लिये वे सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति थे । ज्यूरी के बारह सदस्यों में से एक जस्टिस पाल ही थे, जिन्होंने जेनरल तोजो का बचाव किया था।


जापान ने दक्षिण-पूर्वी एशियायी देशों को अमेरीकी, ब्रिटिश, फ्राँसीसी और पुर्तगाली आधिपत्य से मुक्त कराने के लिये युद्ध छेड़ा था। नेताजी के दक्षिण एशिया में अवतरण के बाद भारत भी ब्रिटिश आधिपत्य से छुटकारा पाने के लिए  लिये उसके एजेंडे में शामिल हो गया। आजादी के लिये संघर्ष करना अपराध’ कैसे होता? जापान ने कहा था- ‘एशिया- एशियायियों के लिए’- इसमें गलत क्या था? जो भी हो, जस्टिस राधाविनोद पाल का नाम जापान में सम्मान के साथ लिया जाता था मगर नेहरू को आयोग की  अध्यक्षता के लिये  सबसे योग्य व्यक्ति केवल शाहनवाज खान नजर आये।

शाहनवाज खान उर्फ लेफ्टिनेण्ट जनरल एस.एन. खान आजाद हिन्द फौज के भूतपूर्व सैन्याधिकारी, आरम्भ में नेताजी के दाहिने हाथ थे, मगर इम्फाल-कोहिमा फ्रण्ट से उनके द्वारा विश्वासघात  किये जाने की खबर आने के बाद नेताजी ने उन्हें रंगून मुख्यालय वापस बुलाकर उनका कोर्ट-मार्शल करने का आदेश दे दिया था। लाल किले के कोर्ट-मार्शल में शाहनवाज खान ने खुद यह स्वीकार किया था कि आई.एन.ए./आजाद हिन्द फौज में रहते हुए उन्होंने गुप्त रूप से ब्रिटिश सेना को मदद पहुँचाई थी। बँटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गये थे, मगर नेहरू ने उन्हें भारत वापस बुलाकर अपने मंत्री मंडल में सचिव बना दिया था।

जांच आयोग के अध्यक्ष के रूप में शाहनवाज खान ने नेहरू के चाहे अनुसार निराधार निर्णय दे दिया की तथाकथित विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो चुकी थी। शाहनवाज खान को पुरस्कार के रूप में नेहरू मंत्री मण्डल में रेल राज्य मंत्री बना दिया गया। आयोग के दूसरे सदस्य सुरेश कुमार बोस (नेताजी के बड़े भाई) ने खुद को शाहनवाज खान के निष्कर्ष से अलग कर लिया था। उनके अनुसार जापानी राजशाही ने विमान-दुर्घटना  का झूठा ताना-बाना बुना था और नेताजी जीवित थे।

शाहनवाज खान उर्फ लेफ्टिनेण्ट जनरल एस.एन. खान आजाद हिन्द फौज के भूतपूर्व सैन्याधिकारी, आरम्भ में नेताजी के दाहिने हाथ थे, मगर इम्फाल-कोहिमा फ्रण्ट से उनके द्वारा विश्वासघात  किये जाने की खबर आने के बाद नेताजी ने उन्हें रंगून मुख्यालय वापस बुलाकर उनका कोर्ट-मार्शल करने का आदेश दे दिया था। लाल किले के कोर्ट-मार्शल में शाहनवाज खान ने खुद यह स्वीकार किया था कि आई.एन.ए./आजाद हिन्द फौज में रहते हुए उन्होंने गुप्त रूप से ब्रिटिश सेना को मदद पहुँचाई थी। बँटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गये थे, मगर नेहरू ने उन्हें भारत वापस बुलाकर अपने मंत्री मंडल में सचिव बना दिया था।

शाहनवाज आयोग का निष्कर्ष देशवासियों के गले के नीचे नहीं उतरा। साढ़े तीन सौ सांसदों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर इंदिरा गाँधी सरकार को 1970 में (11 जुलाई) एक अन्य आयोग का गठन करना पडा। इस आयोग का अध्यक्ष जस्टिस जी.डी. खोसला को बनाया गया। जस्टिस घनश्याम दास खोसला के बारे में तीन तथ्य उल्लेखनीय हैं:

1. वे नेहरूजी के मित्र रहे थे;
2. वे जाँच के दौरान ही श्रीमती इन्दिरा गाँधी की जीवनी लिख  रहे थे, और
3. वे नेताजी की मृत्यु की जाँच के साथ-साथ तीन अन्य आयोगों की भी अध्यक्षता कर रहे थे।

सांसदों के दवाब के कार जांच योग को आयोग को ताईवान भेजा गया मगर ताईवान जाकर भी जस्टिस खोसला ने किसी भी सरकारी संस्था से सम्पर्क नहीं किया। वे हवाई अड्डे तथा शवदाहगृह से घूम कर वापिस आ गये। कारण यह बताया कि ताईवान के साथ भारत का कूटनीतिक सम्बन्ध नहीं है। कथित विमान-दुर्घटना में जीवित बचे कुछ लोगों के बयान इस आयोग ने लिये मगर पाकिस्तान में बसे मुख्य गवाह कर्नल हबीबुर्रहमान ने खोसला आयोग से मिलने से इन्कार कर दिया और आयोग चुप होकर बैठ गया। भारत सरकार के माध्यम से पाकिस्तान सरकार से संपर्क कर कनल हबीब को बयान देने हेतु सहमत करने का प्रयास तक नहीं किया।

खोसला आयोग की रपट पिछले शाहनवाज आयोग की रपट का सारांश साबित हुई। इसमें अगर नया कुछ था तो वह था भारत सरकार को इस मामले में पाक-साफ एवं ईमानदार साबित करने का जोरदार प्रयास। 28 अगस्त 1978 को संसद में प्रोफेसर समर गुहा के सवालों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने कहा कि कुछ ऐसे आधिकारिक दस्तावेजी अभिलेख (Official Documentary Records) उजागर हुए हैं, जिनके आधार पर; साथ ही, पहले के दोनों आयोगों के निष्कर्षों पर उठनेवाले सन्देहों तथा (उन रपटों में दर्ज) गवाहों के विरोधाभासी बयानों के मद्देनजर सरकार के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल है कि वे निर्णय अन्तिम हैं।
प्रधानमंत्री जी का यह आधिकारिक बयान अदालत में चला गया और वर्षों बाद ३०  अप्रैल 1998 को कोलकाता उच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि उन अभिलेखों के प्रकाश में फिर से इस मामले की जाँच करवायी जाए।

इस समय अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे। विविध दलों के तालमेल से किसी तरह घिसट रही यह सरकार दो-दो जाँच आयोगों का हवाला देकर इस मामले से पीछा छुड़ाना चाह रही थी, मगर न्यायालय के आदेश के बाद सरकार को तीसरे आयोग के गठन को मंजूरी देनी पड़ी।

इस बार सरकार को मौका न देते हुए आयोग के अध्यक्ष के रूप में (अवकाशप्राप्त) न्यायाधीश मनोज कुमार मुखर्जी की नियुक्ति खुद सर्वोच्च न्यायालय ही कर दी। सरकार ने  तक हो सका मुखर्जी आयोग के गठन और उनकी जाँच में रोड़े अटकाने की कोशिश की मगर जस्टिस मुखर्जी 

जीवट के आदमी साबित हुए। विपरीत परिस्थितियों में भी वे जाँच को आगे बढ़ाते रहे। आयोग ने सरकार से उन दस्तावेजों (“टॉप सीक्रेट” पी.एम.ओ. फाईल 2/64/78-पी.एम.) की माँग की, जिनके आधार पर 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संसद में बयान दिया था और जिनके आधार पर कोलकाता उच्च न्यायालय ने तीसरे जाँच-आयोग के गठन का आदेश दिया था

प्रधानमंत्री कार्यालय और गृहमंत्रालय दोनों साफ मुकर जाते हैं- ऐसे कोई दस्तावेज नहीं हैं; होंगे भी      
तो हवा में गायब हो गये आप यकीन नहीं करेंगे कि जो दस्तावेज खोसला आयोग को दिए गए थे, वे दस्तावेज भी मुखर्जी आयोग को देखने नहीं दिये गये, 'गोपनीय' और 'अतिगोपनीय' दस्तावेजों की बात तो छोड़ ही दीजिये । प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय सभी जगह नौकरशाहों का यही एक जवाब था- “भारत के संविधान की धारा 74(2) और साक्ष्य कानून के भाग 123 एवं 124 के तहत इन दस्तावेजों को आयोग को नहीं दिखाने का “प्रिविलेज” उन्हें प्राप्त है!”

भारत सरकार के रवैये के विपरीत ताईवान सरकार ने मुखर्जी आयोग द्वारा माँगा गया एक-एक दस्तावेज आयोग उपलब्ध कराया। ताईवान के साथ भारत का कूटनीतिक सम्बन्ध न होने के कारण  भारत सरकार किसी प्रकार का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दवाब ताईवान सरकार पर नहीं डाल सकती थी शायद इसलिए ही योग को ताइवान सरकार का सहयोग मिल सका।

प्रधानमंत्री कार्यालय और गृहमंत्रालय दोनों साफ मुकर जाते हैं- ऐसे कोई दस्तावेज नहीं हैं; होंगे भी तो हवा में गायब हो गये आप यकीन नहीं करेंगे कि जो दस्तावेज खोसला आयोग को दिए गए थे, वे दस्तावेज भी मुखर्जी आयोग को देखने नहीं दिये गये, 'गोपनीय' और 'अतिगोपनीय' दस्तावेजों की बात तो छोड़ ही दीजिये । प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय सभी जगह नौकरशाहों का यही एक जवाब था- “भारत के संविधान की धारा 74(2) और साक्ष्य कानून के भाग 123 एवं 124 के तहत इन दस्तावेजों को आयोग को नहीं दिखाने का “प्रिविलेज” उन्हें प्राप्त है!”   

रूस के मामले में ऐसा नहीं था। भारत का रूस के साथ गहरा सम्बन्ध था। अतः रूस सरकार का स्पष्ट मत था कि जब तक भारत सरकार आधिकारिक रूप से अनुरोध नहीं भेजती, वह आयोग को न तो नेताजी से जुड़े गोपनीय दस्तावेज देखने दे सकती थी और न ही कुजनेत्सन, क्लाश्निकोव- जैसे महत्वपूर्ण गवाहों का साक्षात्कार लेने दे सकती थी। भारत सर्मर ने अपने द्वारा गठित आयोग के साथ सहयोग करने का अनुरोध रूस सरकार से नहीं किया। फलतः, आयोग रूस से खाली हाथ लौट आया। जनता के सामने सरकार की बदनीयत का पर्दाफाश हो गया की वह सच सामने नहीं आने देना चाहती। इसके बावजूद मुखेर्जी योग ने जाँच जारी रखी। 
मुखर्जी आयोग ने जहाँ  “गुमनामी बाबा” के मामले में गम्भीर तरीके से जाँच की, वहीं स्वामी शारदानन्द के मामले में गम्भीरता नहीं दिखाई। आयोग फैजाबाद के राम भवन तक तो गया जहाँ गुमनामी बाबा रहे थे किन्तु राजपुर रोड की उस कोठी तक नहीं गया, जहाँ शारदानन्द रहे थे। आयोग ने गुमनामी बाबा की हर वस्तु की जाँच की मगर उ.प्र. पुलिस/प्रशासन से शारदानन्द के अन्तिम संस्कार के छायाचित्र माँगने का कष्ट नहीं उठाया।

मई' 64 के बाद जब स्वामी शारदानन्द सतपुरा (महाराष्ट्र) के मेलघाट के जंगलों में अज्ञातवास किया था, तब उनके साथ सम्पर्क में रहे डॉ. सुरेश पाध्ये का आयोग योग के सामने कहना था कि उन्होंने खुद स्वामी शारदानन्द और उनके परिवारजनों तथा वकील के कहने के कारण (1971 में) ‘खोसला आयोग’ के सामने सच्चाई का बयान नहीं किया था। अब चूँकि स्वामीजी का देहावसान हो चुका है, इसलिए वे (26 जून 2003 को) मुखर्जी आयोग को सच्चाई बताते हैं। मगर आयोग उनकी तीन दिनों की गवाही को (अपनी रिपोर्ट में) आधे वाक्य में समेट देता है और दस्तावेजों को (जो कि वजन में ही 70 किलो है) एकदम नजरअन्दाज कर देता है। यह सब कुछ किसके दवाब में  किया गया- यह राज शायद भविष्य में ही खुले।
2005 में दिल्ली में फिर काँग्रेस की सरकार बनी। इस सरकार ने मई में जाँच आयोग को छह महीनों की समय वृद्धि दी। 8 नवम्बर 2005 को आयोग ने अपनी रपट सरकार को सौंप दी। सरकार इस पर कुण्डली मारकर बैठ गयी। दवाब पड़ने पर 18 मई 2006 को रपट को संसद के पटल पर रखा गया।

मुखर्जी आयोग को पाँच विन्दुओं पर जाँच करना था:               
1. नेताजी जीवित हैं या मृत? 
2. अगर वे जीवित नहीं हैं, तो क्या उनकी मृत्यु विमान-दुर्घटना में हुई, जैसा कि बताया जाता है? 
3. क्या जापान के रेन्कोजी मन्दिर में रखा अस्थि भस्म नेताजी  का है? 
4. क्या उनकी मृत्यु कहीं और, किसी और तरीके से हुई, अगर ऐसा है, तो कब और कैसे? 
5. अगर वे जीवित हैं, तो अब वे कहाँ हैं?

आयोग का निष्कर्ष कहता है कि-
1. नेताजी अब जीवित नहीं हैं। 
2. किसी विमान-दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु नहीं हुई है।
3. रेन्कोजी मन्दिर (टोक्यो) में रखा अस्थिभस्म नेताजी का नहीं है।
4. उनकी मृत्यु कैसे और कहाँ हुई- इसका जवाब आयोग नहीं ढूँढ़ पाया।
5. इसका उत्तर क्रमांक 1 में दे दिया गया है। 
सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया।  बाद में सरकार द्वारा नेताजी को भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित किये जाने के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत वाद में सरकार ने नेताजी के जीवित न होने सम्बन्धी कोई जानकारी न देकर निर्णय वापिस ले लिया।    
निस्संदेह नेताजी सुभाषचंद्र बोस आज भी भारतीय जनता के नायक हैं। उनके जीवन का उत्तरार्ध आज भी अज्ञात है। जनता सच जानना चाहती है और उसे इसका हक भी है। लम्बे समय बाद भारत में राष्ट्रीयता और जनमत का सम्मान करनेवाली स्शाक्र सरकार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के मन में नेताजी के व्यक्तित्व और अवदान के प्रति गहरा सम्मान है। सरदार पटेल के व्यक्तित्व और अवदान के प्रति गहन सम्मान प्रदर्शित करते हुए उनकी सर्वोच्च प्रतिमा निर्माण का कार्य मोदी जी करा रहे हैं। क्या वे नेता जी सबन्धी सच जानने की जनाकांक्षा का सम्मान करते हुए एक स्वतंत्र योग का गठन कर उसे सरकार की ओर से समस्त प्रपत्र, नस्तियां, समर्थन और सहयोग दे सकेंगे? समय उनकी सामर्थ्य और योगदान की चर्चा करते समय नेताजी के सम्बन्ध में उनके द्वारा उठाये गए कदम का भी लेखा-जोखा करेगा ही। 
***

navgeet: -sanjiv

अभिनव प्रयोग
नवगीत:
संजीव
.
ओबामा आते देश में
करो पहुनाई २

चोला बदल के किरन बेदी आई
सुषमा के संगे करें पहुनाई
ओबामा आये देश में
करो पहुनाई २

दिल्ली में होता घमासान भाई
केजरी परेशां न होवे रुसवाई
ओबामा आते देश में
करो पहुनाई २

कृष्णा ने जबसे है पीठ फिराई
पंजे को आती है जमके रुलाई  
ओबामा आये देश में करो पहुनाई २

वाह रे नरिंदर! अमित लीला गाई
लालू-नितिन को पटकनी लगाई
ओबामा आते देश में
करो पहुनाई २

मुल्ला मुलायम को माया न भाई  
ममता ने दिल्ली की किल्ली भुलाई
ओबामा आते देश में
करो पहुनाई २

मिशल खेलें होली अबीर लिए धाई
चली पिचकारी तो भीगी लजाई
ओबामा आते देश में
करो पहुनाई २

तिरंगा ने सुन्दर छटा जब दिखाई
जनगण ने जोरों से ताली बजाई
ओबामा आते देश में
करो पहुनाई २

(सोहर लोकगीत की धुन पर)

muktika: -sanjiv

मुक्तिका:
रात
संजीव
.
चुपके-चुपके आयी रात
शाम-सुबह को भायी रात

झरना नदिया लहरें धार
घाट किनारे काई रात

शरतचंद्र की पूनम है
'मावस की परछाईं रात

आसमान की कंठ लंगोट
चाहे कह लो टाई रात
पर्वत जंगल धरती तंग
कोहरा-पाला लाई रात

वर चंदा तारे बरात
हँस करती कुडमाई रात

दिन है हल्ला-गुल्ला-शोर
गुमसुम चुप तनहाई रात
… 

गुरुवार, 22 जनवरी 2015

navgeet: -sanjiv

नवगीत:
उपयंत्री की यंत्रणा
संजीव
.
'अगले जनम
उपयंत्री न कीजो'

करे प्रार्थना उपअभियंता
पिघले-प्रगटे भाग्यनियंता
'वत्स! बताओ, मुश्किल क्या है?
क्यों है इस माथे पर चिंता?'
'देव! प्रमोशन एक दिला दो
फिर चाहे जो काम करा लो'
'वत्स न यह संभव हो सकता
कलियुग में सच कभी न फलता'
तेरा हर अफसर स्नातक
तुझ पर डिप्लोमा का पातक
वह डिग्री के साथ रहेगा
तुझ पर हरदम वार करेगा
तुझे भेज साईट पर सोये
तू उन्नति के अवसर खोये
तू है नींव कलश है अफसर
इसीलिये वह पाता अवसर
जे ई से ई इन सी होता
तू अपनी किस्मत को रोता
तू नियुक्त होता उपयंत्री
और रिटायर हो उपयंत्री
तेरी मेहनत उसका परचम
उसको खुशियाँ, तुझको मातम
सर्वे कर प्राक्कलन बनाता
वह स्वीकृत कर नाम कमाता
तू साईट पर बहा पसीना
वह कहलाता रहा नगीना
काम करा तू देयक लाता
वह पारित कर दाम कमाता
ठेकेदार सगे हैं उसके
पत्रकार फल पाते मिलके
मंत्री-सचिव उसी के संग हैं
पग-पग पर तू होता तंग है
पार न तू इनसे पायेगा
रोग पाल, घुट मर जाएगा
अफसर से मत, कभी होड़ ले
भूल पदोन्नति, हाथ जोड़ ले
तेरा होना नहीं प्रमोशन
तेरा होगा नहीं डिमोशन
तू मृत्युंजय, नहीं झोल दे
उठकर इनकी पोल खोल दे
खुश रह जैसा और जहाँ है
तुझसे बेहतर कौन-कहाँ है?
पाप कट रहे तेरे सारे
अफसर को ठेंगा दिखला रे!
बच्चे पढ़ें-बढ़ेंगे तेरे
तब संवरेंगे सांझ-सवेरे
अफसर सचिवालय जाएगा
बाबू बनकर पछतायेगा
कर्म योग तेरी किस्मत में
भोग-रोग उनकी किस्मत में
कह न किसी से कभी पसीजो
श्रम-सीकर में खुश रह भीजो


laghukatha: anand pathak

लघु कथाआनन्द पाठक




*... एक बार फिर
"खरगोश" और ’कछुए’ के बीच दौड़ का आयोजन हुआ
पिछली बार भी दौड़ का आयोजन हुआ था मगर ’गफ़लत’ के कारण ’खरगोश’ हार गया ।मगर ’खरगोश’ इस बार सतर्क था। यह बात ’कछुआ: जानता था
इस बार ....
दौड़ के पहले कछुए ने खरगोश से कहा -’मित्र ! तुम्हारी दौड़ के आगे मेरी क्या बिसात । निश्चय ही तुम जीतोगे और मैं हार जाऊँगा। तुम्हारी जीत के लिए अग्रिम बधाई। मेरी तरफ़ से उपहार स्वरूप कुछ ’बिस्कुट’ स्वीकार करो। खरगोश इस अभिवादन से खुश होकर बिस्कुट खा लिया।
दौड़ शुरू हुई....खरगोश को फिर नीद आ गई ...कछुआ फिर जीत गया
xxxxx               xxxxx    xxxxx

पुलिस को आजतक न पता चल सका कि उस बिस्कुट में क्या था। जहरखुरानी तो नहीं थी ?
इस बार कछुआ एक ’ राजनीतिक पार्टी ’ का कर्मठ व सक्रिय कार्यकर्ता था
 इस नीति से आलाकमान बहुत खुश हुआ और कछुए को पार्टी के ’मार्ग दर्शन मंडल’ का सचिव बना दिया

अस्तु

muktika: -sanjiv

मुक्तिका:
संजीव
.
आप मानें या न मानें, सत्य हूँ किस्सा नहीं हूँ
कौन कह सकता है, हूँ इस सरीखा, उस सा नहीं हूँ

मुझे भी मालुम नहीं है, क्या बता सकता है कोई
पूछता हूँ आजिजी से, कहें मैं किस सा नहीं हूँ

साफगोई ने अदावत का दिया है दंड हरदम
फिर भी मुझको फख्र है, मैं छल रहा घिस्सा नहीं हूँ

हाथ थामो या न थामो, फैसला-मर्जी तुम्हारी
कस नहीं सकता गले में, आदमी- रस्सा नहीं हूँ

अधर पर तिल समझ मुझको, दूर अपने से न करना  
हनु न रवि को निगल लेना, हाथ में गस्सा नहीं हूँ

निकट हो या दूर हो तुम, नूर हो तुम हूर हो तुम
पर बहुत मगरूर हो तुम, सच कहा गुस्सा नहीं हूँ

खामियाँ कम, खूबियाँ ज्यादा, तुम्हें तब तक दिखेंगी
मान जब तक यह न लोगे, तुम्हारा हिस्सा नहीं हूँ
.

एक लघु कथा 03


.... एक बार फिर
"खरगोश" और ’कछुए’ के बीच दौड़ का आयोजन हुआ
पिछली बार भी दौड़ का आयोजन हुआ था मगर ’गफ़लत’ के कारण ’खरगोश’ हार गया ।मगर ’खरगोश’ इस बार सतर्क था। यह बात ’कछुआ: जानता था
इस बार ....
दौड़ के पहले कछुए ने खरगोश से कहा -’मित्र ! तुम्हारी दौड़ के आगे मेरी क्या बिसात । निश्चय ही तुम जीतोगे और मैं हार जाऊँगा। तुम्हारी जीत के लिए अग्रिम बधाई। मेरी तरफ़ से उपहार स्वरूप कुछ ’बिस्कुट’ स्वीकार करो। खरगोश इस अभिवादन से खुश होकर बिस्कुट खा लिया।
दौड़ शुरू हुई....खरगोश को फिर नीद आ गई ...कछुआ फिर जीत गया
xxxxx               xxxxx    xxxxx

पुलिस को आजतक न पता चल सका कि उस बिस्कुट में क्या था। जहरखुरानी तो नहीं थी ?
इस बार कछुआ एक ’ राजनीतिक पार्टी ’ का कर्मठ व सक्रिय कार्यकर्ता था
 इस नीति से आलाकमान बहुत खुश हुआ और कछुए को पार्टी के ’मार्ग दर्शन मंडल’ का सचिव बना दिया

-आनन्द.पाठक
09413395592

navgeet: -sanjiv

नवगीत:
संजीव
.

चित्र: श्रीकांत
.
उग रहे या ढल रहे तुम
कान्त प्रतिपल रहे सूरज
.
हम मनुज हैं अंश तेरे
तिमिर रहता सदा घेरे
आस दीपक जला कर हम
पूजते हैं उठ सवेरे
पालते या पल रहे तुम
भ्रांत होते नहीं सूरज
.
अनवरत विस्फोट होता
गगन-सागर चरण धोता
कैंसर झेलो ग्रहण का
कीमियो नव आस बोता
रश्मियों की कलम ले
नवगीत रचते मिले सूरज
.
कै मरे कब गिने तुमने?
बिम्ब के प्रतिबिम्ब गढ़ने
कैमरे में कैद होते
हास का मधुमास वरने
हौसले तुमने दिये शत
ऊगने  फिर ढले सूरज
.  


navgeet: -sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
अधर पर धर अधर १०
छिप २
नवगीत का मुखड़ा कहा १४   
.
चाह मन में जगी १०
अब कुछ अंतरे भी गाइये १६
पंचतत्वों ने बनाकर १४
देह की लघु अंजुरी १२
पंच अमृत भर दिये १२
कर पान हँस-मुस्काइये १४
हाथ में पा हाथ १०
मन  २
लय गुनगुनाता खुश हुआ १४
अधर पर धर अधर १०
छिप २
नवगीत का मुखड़ा कहा १४
.
सादगी पर मर मिटा १२
अनुरोध जब उसने किया १४
एक संग्रह अब मुझे १२
नवगीत का ही चाहिए १४
मिटाकर खुद को मिला क्या? १४
कौन कह सकता यहाँ? १२ 
आत्म से मिल आत्म १०
हो २
परमात्म मरकर जी गया १४
अधर पर धर अधर १०
छिप २
नवगीत का मुखड़ा कहा १४
…  


बुधवार, 21 जनवरी 2015

muktak: - sanjiv

मुक्तक:
संजीव 
*
चिंता न करें हाथ-पैर अगर सर्द हैं 
कुछ फ़िक्र न हो चहरे भी अगर ज़र्द हैं 
होशो-हवास शेष है, दिल में जोश है
गिर-गिरकर उठ खड़े हुए, हम ऐसे मर्द हैं.
*
जीत लेंगे लड़ के हम कैसा भी मर्ज़ हो
चैन लें उतार कर कैसा भी क़र्ज़ हो
हौसला इतना हमेशा देना ऐ खुदा!
मिटकर भी मिटा सकूँ मैं कैसा भी फ़र्ज़ हो
*

gazal, bahar,

ग़ज़ल की प्रचलित बहरें 
नवीन चतुर्वेदी
1. बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212
ये चमन ही अपना वुजूद है इसे छोड़ने की भी सोच मत
नहीं तो बताएँगे कल को क्या यहाँ गुल न थे कि महक न थी
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2. बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
प्या ‘स’ को प्या ‘र’ करना था केवल
एक अक्षर बदल न पाये हम
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3. बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
221 2122 221 2122
जब जामवन्त गरजा, हनुमत में जोश जागा
हमको जगाने वाला, लोरी सुना रहा है
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4. बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
भुला दिया है जो तूने तो कुछ मलाल नहीं
कई दिनों से मुझे भी तेरा ख़याल नहीं
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5. बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
क़िस्मत को ये मिला तो मशक़्क़त को वो मिला
इस को मिला ख़ज़ाना उसे चाभियाँ मिलीं
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6. बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122
कहानी बड़ी मुख़्तसर है
कोई सीप कोई गुहर है
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7. बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
वो जिन की नज़र में है ख़्वाबेतरक़्क़ी
अभी से ही बच्चों को पी. सी. दिला दें
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8. बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
इबादत की किश्तें चुकाते रहो
किराये पे है रूह की रौशनी
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9. बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212
सीढ़ियों पर बिछी है हयात
ऐ ख़ुशी! हौले-हौले उतर
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10. बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
अब उभर आयेगी उस की सूरत
बेकली रंग भरने लगी है
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11. बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
जब छिड़ी तज़रूबे और डिग्री में जंग
कामयाबी बगल झाँकती रह गयी
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12. बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 22
बड़ी सयानी है यार क़िस्मत, सभी की बज़्में सजा रही है
किसी को जलवे दिखा रही है कहीं जुनूँ आजमा रही है
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13. बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
ये नस्ले-नौ है साहिबो
अम्बर से लायेगी नदी
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14. बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून
मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन
2212 1212
क्या आप भी ज़हीन थे?
आ जाइये – क़तार में
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15. बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212
मैं वो नदी हूँ थम गया जिस का बहाव
अब क्या करूँ क़िस्मत में कंकर भी नहीं
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16. बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212 2212
उस पीर को परबत हुये काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नयी इक तरजुमानी चाहिये
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17. बहरे रमल मुरब्बा सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122
मौत से मिल लो, नहीं तो
उम्र भर पीछा करेगी
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18. बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन
फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22
सनसनीखेज़ हुआ चाहती है
तिश्नगी तेज़ हुआ चाहती है
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19. बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 212
अजनबी हरगिज़ न थे हम शह्र में
आप ने कुछ देर से जाना हमें
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20. बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122
ये अँधेरे ढूँढ ही लेते हैं मुझ को
इन की आँखों में ग़ज़ब की रौशनी है
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21. बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 21222 212
वह्म चुक जाते हैं तब जा कर उभरते हैं यक़ीन
इब्तिदाएँ चाहिये तो इन्तिहाएँ ढूँढना
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22. बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22
गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को
उस के दरबार में साकार मुहब्बत देखी
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23. बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]
फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन
1121 2122 1121 2122
वो जो शब जवाँ थी हमसे उसे माँग ला दुबारा
उसी रात की क़सम है वही गीत गा दुबारा
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24. बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122 2122
कल अचानक नींद जो टूटी तो मैं क्या देखता हूँ
चाँद की शह पर कई तारे शरारत कर रहे हैं
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25. बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन ,
1222 1222 122
हवा के साथ उड़ कर भी मिला क्या
किसी तिनके से आलम सर हुआ क्या
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26. बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222
हरिक तकलीफ़ को आँसू नहीं मिलते
ग़मों का भी मुक़द्दर होता है साहब
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27. बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़
मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन
221 1221 1221 122
आवारा कहा जायेगा दुनिया में हरिक सम्त
सँभला जो सफ़ीना किसी लंगर से नहीं था
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28. बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222
हम दोनों मुसाफ़िर हैं इस रेत के दरिया के
उनवाने-ख़ुदा दे कर तनहा न करो मुझ को
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29. बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
ख़ूब थी वो मक़्क़ारी ख़ूब ये छलावा है
वो भी क्या तमाशा था ये भी क्या तमाशा है
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30. बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़
फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
212 1212 1212 1212
लुट गये ख़ज़ाने और गुन्हगार कोइ नईं
दोष किस को दीजिये जवाबदार कोई नईं
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31. बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212
गिरफ़्त ही सियाहियों को बोलना सिखाती है
वगरना छूट मिलते ही क़लम बहकने लगते हैं
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32
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
मुझे पहले यूँ लगता था करिश्मा चाहिये मुझको
मगर अब जा के समझा हूँ क़रीना चाहिये मुझको
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