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शनिवार, 21 जून 2025

जून २१, लघुकथा, सदोका, महाकाव्य, योग दिवस, दाँत, कुरुक्षेत्र, व्यूह

गरुण व्यूह 
सलिल सृजन जून २१
विश्व योग दिवस
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महाभारत में व्यूह रचना 
कुरुक्षेत्र में रचे गए कुछ प्रमुख व्यूह: चक्रव्यूह, गरुड़ व्यूह, क्रौंच व्यूह, मकर व्यूह, कच्छप व्यूह, अर्धचंद्राकार व्यूह, वज्र व्यूह, सर्वतोभद्र व्यूह, श्रीन्गातका व्यूह आदि थे।  
गरुड़ व्यूह
महाभारत युद्ध में कौरव सेना की ओर से सेनापति भीष्म पितामह ने गरुड़ व्यूह की रचना    की थी। वे स्वयं इसके अग्र स्थान पर थे। गरुड़ व्यूह भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के     आकार में रचा गया था। इसी आकार में कौरवों की सेना ने पांडवों पर आक्रमण किया था।   जिस तरह गरुण अपनी चोंच से प्रहार करता है वैसे ही सर्वाधिक घटक प्रहार भीष्म कर     रहे थे। गरुण के पंखों की तरह दायें-बायें पक्ष से शेष योद्धा भीष्म को मदद कर रहे थे

अर्ध चंद्र व्यूह 
    अर्धचंद्र व्यूह
    कौरव सेना के गरुड़ व्यूह के जवाब में पांडव पक्ष से अर्जुन ने अर्धचंद्र व्यूह की रचना की     थी। अर्धचंद्र अर्थात आधे चंद्र के आकार के इस व्यूह में सबसे आगे सर्वाधिक पराक्रमी        योद्धा अर्जुन ने आक्रमण की बागडोर थाम रखी थी। मध्य भाग में पांडव पक्ष के सेनापति     युधिष्ठिर थे जो कि कमजोर योद्धा थे किंतु ज्येष्ठ पांडव और सेनापति होने के नाते उनकी        सुरक्षा सर्वोपरि थी। शत्रु युधिष्ठिर पर हमला करने के पूर्व अर्जुन से लड़ना पड़ता और          दाहिने-बायें लड़ रहे योद्धा युधिष्ठिर की रक्षा हेतु बीच में आ जाते। अर्धचंद्र व्यूह से ही            पांडवों ने कौरवों के गरुड़ व्यूह को कड़ी चुनौती दी थी। कौरव पक्ष किसी भी तरह            युधिष्ठिर को बंदी बनाकर पांडवों को पराजित करना चाहता ठा किंतु पांडवों ने शत्रु की         यह चाल नाकाम कार दी थी।

क्रौंच व्यूह 

क्रौंच व्यूह
महाभारत युद्ध में क्रौंच व्यूह की रचना पांडवों और कौरवों, दोनों के द्वारा अलग-अलग समय पर की गई थी। क्रौंच एक पक्षी का नाम है। यह सारस की प्रजाति का होता है। इसी क्रौंच पक्षी के आकार में सेना सज गई थी और पांडवों ने कौरव सेना पर आक्रमण किया था। इस क्रौंच व्यूह में सिर, आँख, गर्दन, पंख आदि अंगों पर अलग-अलग महारथी अपनी-अपनी सेना के साथ तैनात थे। सभी महारथियों ने क्रौंच व्यूह में अपने-अपने क्षेत्र की सुरक्षा करते हुए सामने वाली सेना पर आक्रमण किया। यह व्यूह बहुत ताकतवर और सुरक्षा की दृष्टि से श्रेष्ठ था। इसी वजह से दोनों ही पक्षों ने इस व्यूह की रचना की थी।
चक्र व्यूह
चक्र व्यूह की संरचना चक्र के आकार में की जाती थी। इस व्यूह को भेदने का पूरा रहस्य सिर्फ अर्जुन को मालूम था, लेकिन उस समय अर्जुन कौरवों के महारथी सुशर्मा से युद्ध कर रहा था। इस वजह से चक्र व्यूह को भेदने के लिए अभिमन्यु सहित सभी पांडव महारथी तैनात हो गए। चक्र व्यूह के द्वार पर जयद्रथ तैनात था, जिसने अभिमन्यु के अतिरिक्त किसी और पांडव को चक्र व्यूह में प्रवेश नहीं करने दिया। चक्र व्यूह में योद्धाओं की ७ परतें (पंक्तियाँ) थीं। अभिमन्यु चक्र व्यूह की सभी परतों को भेदते हुए मध्य भाग में पहुँच गया। वहाँ कौरवों के सात महारथियों ने एक साथ मिलकर अभिमन्यु की हत्या कर दी थी। जबकि उस युद्ध के नियमों के अनुसार एक योद्धा के साथ एक से अधिक योद्धा नहीं लड़ सकते थे। अभिमन्यु वध से क्रुद्ध अर्जुन ने अगले दिन सूर्यास्त होने के पूर्व जयद्रथ के वध का प्राण किया था।


मंडल व्यूह
कौरवों के सेनापति भीष्म पितामह ने कुरुक्षेत्र में सातवें दिन बहुत कठिन व्यूह रचा था, जिसका नाम है मंडल व्यूह। इस व्यूह की गणना सबसे कठिन व्यूहों में की जाती है। यह व्यूह रचना एक वृत्त या चक्र के आकार की होती है, जिसमें सैनिक एक घेरे में खड़े होते हैं। इस व्यूह में कौरव सेना ने पूरी शक्ति के साथ पांडवों पर आक्रमण किया था। मंडल व्यूह अलग-अलग मंडलों के समूह के समान दिखाई देता था। चारों ओर से सुरक्षित इस व्यूह को भेद पाना अत्यंत कठिन होता है। इसके जवाब में पांडवों की ओर से वज्र व्यूह रचा गया था। वज्र व्यूह के आक्रमण से कौरव सेना का मंडल व्यूह को भेद दिया था।

वज्रव्यूह
कुरुक्षेत्र में युद्ध के पहले दिन पांडवों की ओर से धनुर्धर अर्जुन ने वज्र व्यूह की रचना की थी। वज्र व्यूह की रचना देवराज इंद्र के वज्र के आकार के समान की गई थी। वज्र के आकार का व्यूह होने की वजह से इसे वज्र व्यूह कहा गया। पांडवों की पूरी सेना वज्र के आकार में सज गई थी। इस व्यूह में अर्जुन और भीम सेना को आगे रखते थे। वज्र के अग्र भाग में अर्जुन स्वयं की रक्षा से निश्चिंत होकर दोनों पक्षों की सेनाओं को न केवल देख सकता था अपितु जब जिस दिशा में चाहे धनुष से संधान कर शत्रु पर आक्रमण और जरूरत पड़ने पर अपने पक्ष की रक्षा कर सकता था।


ओर्मी व्यूह
मंडल व्यूह की असफलता के बाद कौरव सेना ने ओर्मी व्यूह की रचना की थी। इस व्यूह में पूरी सेना समुद्र के समान सज गई थी। जिस प्रकार समुद्र में लहरें दिखाई देती हैं, ठीक उसी आकार में कौरव सेना ने पांडवों पर आक्रमण किया था। इसके जवाब में पांडवों ने श्रीन्गातका व्यूह की रचना की थी। इस व्यूह का आकार किसी भव्य भवन के समान दिखाई देता था।

चक्रशकट व्यूह
अभिमन्यु की हत्या के बाद अगले दिन कौरव सेना ने जयद्रथ को बचाने के लिए चक्रशकट व्यूह की रचना की थी। इस व्यूह के मध्य भाग में जयद्रथ को रखा गया, ताकि अर्जुन उसे मार न सके और स्वयं अग्नि को समर्पित हो जाए। अर्जुन के न होने से कौरव आसानी से युद्ध जीत सकते थे। इसी वजह से कौरव सेना ने चक्रशकट व्यूह की रचना कर जयद्रथ को बचाने का प्रयास किया। इस व्यूह का आकार भी चक्र के समान की दिखाई देता है और इसमें अलग-अलग परतों में सेना सजी रहती है। सभी परतों पर अलग-अलग कौरव महारथी तैनात किए गए थे, लेकिन अर्जुन ने इस व्यूह को भेद दिया और जयद्रथ को मार दिया था।
सर्वतोभद्र व्यूह:
यह एक व्यापक व्यूह था जिसका उपयोग कौरवों द्वारा किया गया था.
श्रीन्गातका व्यूह:
यह एक भवन के समान दिखने वाला व्यूह था जिसका उपयोग अर्जुन ने किया था.
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लघुकथा
दूसरा चेहरा
साहित्य सेवा को अपना जूनून बताकर उन्होंने संपर्क किया।उनके शहर जाना हुआ तो बहुत आग्रह के साथ अपने आवास पर आमंत्रित किया, सास, पति, पुत्र आदि से परिचय कराकर स्वादिष्ट भोजन कराया, आते-जाते समय चरण स्पर्श किए।
मेरे शहर में उनका आगमन हुआ तो उन्हें गृह आमंत्रित कर मैंने अपने परिवारजनों से मिलवाया, उनके स्वागत में गोष्ठी आदि का आयोजन किया। वे जिस विधा में लेखन कर रही थीं, उसकी कुछ अनुपलब्ध पुस्तकें भेंट कीं, कुछ योजनाएँ बनाई गईं, उनकी संस्था की अपने शहर में ईकाई आरंभ कराई।
सार यह कि बहुत आत्मीय, मधुर और पारिवारिक संबंध हो गए।
कुछ वर्ष बाद उनका पुनरागमन हुआ। अब तक वे अपनी विधा की प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हो गयी थीं, अपना प्रकाशन गृह आरंभ कर चुकी थीं। प्रकाशन गृह संबंधी कई समस्याओं की चर्चा उन्होंने की। एक महिला रचनाकार के बारे में बताया जिसने उनके अनुसार, उन्हें विश्वास में लेकर अपनी पुस्तक छपाकर भुगतान ही नहीं किया।
मैंने उन्हें सहयोग करने की भावना से अपनी एक पुस्तक की पी डी एफ और नगर के मुद्रक ने जो राशि बताई थी, वह अग्रिम देते हुए उनके प्रकाशन की सफलता हेतु शुभकामना दी।
इसके बाद माह पर माह बीतते रहे पर पुस्तक की प्रगति नहीं हो पाई। इस मध्य बेटे का विवाह तय हुआ तो सोचा कि नव दंपत्ति से नव प्रकाशित पुस्तक का विमोचन कराऊँ। उन्होंने अन्य कार्यों में व्यस्त होने का कारण बताकर पुस्तक उपलब्ध कराने में असमर्थता व्यक्त कर दी। लंबी चर्चा के बाद कहा कि दस प्रतियाँ भिजवा देती हूँ। मैंने यह सोचकर संतोष किया कि शेष २९० प्रतियाँ कुछ विलंब से ही सही, मिलेंगी तो।
बेटे का विवाह हुए डेढ़ साल बीत चुका है, अब तक पुस्तक की शेष प्रतियाँ अप्राप्त हैं। अब वे निरंतर प्रकाशकीय गतिविधियाँ बढ़ाती जा रही हैं पर मेरी पुस्तक का भेजने या का अवकाश नहीं है उनके पास।
मैं स्तब्ध हूँ यह देखकर कि एक सुसंस्कारी महिला के सुपरिचित चेहरे पर हावी हो गया है व्यावसायिक प्रकाशक का दूसरा चेहरा।
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द्विपदी
मौन दर-दीवार हैं; चौपाल चुप
दोस्त भी मिलते हैं अंतरजाल पर।
शब्द सलिला सूखती जा रही है
जमाना अब इमोजी का आ आ गया।
सदोका सलिला ५
योग-वियोग
जग की रीत-नीत
जीवन का संगीत।
योग-संयोग
ऐसे होते प्रतीत
जैसे प्रीत-संगीत।२६।
रिश्ते-नाते
सत्य ही बताते
कोई नहीं किसी का।
कोई न गैर
वही अपना सगा
जो मनाता है खैर।२७।
वादा निभाना
आदमी की निशानी
दुनिया आनी-जानी।
वादा भुलाना
सुरासुरी चलन
स्वार्थ-भोग अगन।२८।
देर सबेर
मिलता कर्म-फल
मत होना विकल।
धीरज धर
तलाश अवसर
वर देगा ईश्वर।२९।
मन उन्मन
हरि का सुमिरन
लगी रहे लगन।
दूर हो भ्रांति
जब न हो संक्रांति
तभी मिलेगी शांति।
२१-६-२०२२
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दोहा सलिला
*
दोहा सलिला-स्नान दे, ग्रहण दोष से मुक्ति।
ग्रहण करें रस भाव लय, गति-यति कल संयुक्ति।।
*
ग्रहण करे सुख-दुख धरा, दे-पा सह समभाव।
ग्रहण न लगता इसलिए, हर ग्रह रखे लगाव।।
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ग्रहण न रवि-शशि कुछ करें, देते जग उजियार।
राहु-केतु निज स्वार्थ हित, फैलाते अँधियार।।
*
राहु-केतु पथ रोकते,बनें आप दीवार।
नहीं अधिग्रहण कर सकें, हटें विवश लाचार।।
*
अब तक ग्रहण किया सलिल, जो तूने दे बाँट
दुष्प्रभाव हर ग्रहण का, दूर करो झट छाँट।।
*
संग्रहणी का योग ही, सबसे सरल इलाज।
सद्गृहणी संयोग से, मिले राज बिन राज।।
*
योग-भोग सम भोग ही, तन-मन का संभोग।
मिलन आत्म-परमात्म का, दूर करे हर रोग।।
*
जोड़-घटाना व्यर्थ है, गुणा-भाग फलहीन।
योग मात्र संतोष है, पाकर रहें न दीन।।
*
२२-६-२०२०
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विमर्श
हिंदी वांग्मय में महाकाव्य विधा
*
संस्कृत वांग्मय में काव्य का वर्गीकरण दृश्य काव्य (नाटक, रूपक, प्रहसन, एकांकी आदि) तथा श्रव्य काव्य (महाकाव्य, खंड काव्य आदि) में किया गया है। आचार्य विश्वनाथ के अनुसार 'जो केवल सुना जा सके अर्थात जिसका अभिनय न हो सके वह 'श्रव्य काव्य' है। श्रव्य काव्य का प्रधान लक्षण रसात्मकता तथा भाव माधुर्य है। माधुर्य के लिए लयात्मकता आवश्यक है। श्रव्य काव्य के दो भेद प्रबंध काव्य तथा मुक्तक काव्य हैं। प्रबंध अर्थात बंधा हुआ, मुक्तक अर्थात निर्बंध। प्रबंध काव्य का एक-एक अंश अपने पूर्व और पश्चात्वर्ती अंश से जुड़ा होता है। उसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता। पाश्चात्य काव्य शास्त्र के अनुसार प्रबंध काव्य विषय प्रधान या करता प्रधान काव्य है। प्रबंध काव्य को महाकाव्य और खंड काव्य में पुनर्वर्गीकृत किया गया है।
महाकाव्य के तत्व -
महाकाव्य के ३ प्रमुख तत्व है १. (कथा) वस्तु , २. नायक तथा ३. रस।
१. कथावस्तु - महाकाव्य की कथा प्राय: लंबी, महत्वपूर्ण, मानव सभ्यता की उन्नायक, होती है। कथा को विविध सर्गों (कम से कम ८) में इस तरह विभाजित किया जाता है कि कथा-क्रम भंग न हो। कोई भी सर्ग नायकविहीन न हो। महाकाव्य वर्णन प्रधान हो। उसमें नगर-वन, पर्वत-सागर, प्रात: काल-संध्या-रात्रि, धूप-चाँदनी, ऋतु वर्णन, संयोग-वियोग, युद्ध-शांति, स्नेह-द्वेष, प्रीत-घृणा, मनरंजन-युद्ध नायक के विकास आदि का सांगोपांग वर्णन आवश्यक है। घटना, वस्तु, पात्र, नियति, समाज, संस्कार आदि चरित्र चित्रण और रस निष्पत्ति दोनों में सहायक होता है। कथा-प्रवाह की निरंतरता के लिए सरगारंभ से सर्गांत तक एक ही छंद रखा जाने की परंपरा रही है किन्तु आजकल प्रसंग परिवर्तन का संकेत छंद-परिवर्तन से भी किया जाता है। सर्गांत में प्रे: भिन्न छंदों का प्रयोग पाठक को भावी परिवर्तनों के प्रति सजग कर देता है। छंद-योजना रस या भाव के अनुरूप होनी चाहिए। अनुपयुक्त छंद रंग में भंग कर देता है। नायक-नायिका के मिलन प्रसंग में आल्हा छंद अनुपतुक्त होगा जबकि युद्ध के प्रसंग में आल्हा सर्वथा उपयुक्त होगा।
२. नायक - महाकव्य का नायक कुलीन धीरोदात्त पुरुष रखने की परंपरा रही है। समय के साथ स्त्री पात्रों (सीता, कैकेयी, मीरा, दुर्गावती, नूरजहां आदि), किसी घटना (सृष्टि की उत्पत्ति आदि), स्थान (विश्व, देश, शहर आदि), वंश (रघुवंश) आदि को नायक बनाया गया है। संभव है भविष्य में युद्ध, ग्रह, शांति स्थापना, योजना, यंत्र आदि को नायक बनाकर महाकव्य रचा जाए। प्राय: एक नायक रखा जाता है किन्तु रघुवंश में दिलीप, रघु और राम ३ नायक है। भारत की स्वतंत्रता को नायक बनाकर महाकाव्य लिखा जाए तो गोखले, तिकल। लाजपत राय, रविंद्र नाथ, गाँधी, नेहरू, पटेल, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद आदि अनेक नायक हो सकते हैं। स्वातंत्र्योत्तर देश के विकास को नायक बना कर महाकाव्य रचा जाए तो कई प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति अलग-अलग सर्गों में नायक होंगे। नायक के माध्यम से उस समय की महत्वाकांक्षाओं, जनादर्शों, संघर्षों अभ्युदय आदि का चित्रण महाकाव्य को कालजयी बनाता है।
३. रस - रस को काव्य की आत्मा कहा गया है। महाकव्य में उपयुक्त शब्द-योजना, वर्णन-शैली, भाव-व्यंजना, आदि की सहायता से अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं। पाठक-श्रोता के अंत:करण में सुप्त रति, शोक, क्रोध, करुणा आदि को काव्य में वर्णित कारणों-घटनाओं (विभावों) व् परिस्थितियों (अनुभावों) की सहायता से जाग्रत किया जाता है ताकि वह 'स्व' को भूल कर 'पर' के साथ तादात्म्य अनुभव कर सके। यही रसास्वादन करना है। सामान्यत: महाकाव्य में कोई एक रस ही प्रधान होता है। महाकाव्य की शैली अलंकृत, निर्दोष और सरस हुए बिना पाठक-श्रोता कथ्य के साथ अपनत्व नहीं अनुभव कर सकता।
अन्य नियम - महाकाव्य का आरंभ मंगलाचरण या ईश वंदना से करने की परंपरा रही है जिसे सर्वप्रथम प्रसाद जी ने कामायनी में भंग किया था। अब तक कई महाकाव्य बिना मंगलाचरण के लिखे गए हैं। महाकाव्य का नामकरण सामान्यत: नायक तथा अपवाद स्वरुप घटना, स्थान आदि पर रखा जाता है। महाकाव्य के शीर्षक से प्राय: नायक के उदात्त चरित्र का परिचय मिलता है किन्तु पथिक जी ने कारण पर लिखित महाकव्य का शीर्षक 'सूतपुत्र' रखकर इस परंपरा को तोडा है।
महाकाव्य : कल से आज
विश्व वांग्मय में लौकिक छंद का आविर्भाव महर्षि वाल्मीकि से मान्य है। भारत और सम्भवत: दुनिया का प्रथम महाकाव्य महर्षि वाल्मीकि कृत 'रामायण' ही है। महाभारत को भारतीय मानकों के अनुसार इतिहास कहा जाता है जबकि उसमें अन्तर्निहित काव्य शैली के कारण पाश्चात्य काव्य शास्त्र उसे महाकाव्य में परिगणित करता है। संस्कृत साहित्य के श्रेष्ठ महाकवि कालिदास और उनके दो महाकाव्य रघुवंश और कुमार संभव का सानी नहीं है। सकल संस्कृत वाङ्मय के चार महाकाव्य कालिदास कृत रघुवंश, भारवि कृत किरातार्जुनीयं, माघ रचित शिशुपाल वध तथा श्रीहर्ष रचित नैषध चरित अनन्य हैं।
इस विरासत पर हिंदी साहित्य की महाकाव्य परंपरा में प्रथम दो हैं चंद बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो तथा मलिक मुहम्मद जायसी कृत पद्मावत। निस्संदेह जायसी फारसी की मसनवी शैली से प्रभावित हैं किन्तु इस महाकाव्य में भारत की लोक परंपरा, सांस्कृतिक संपन्नता, सामाजिक आचार-विचार, रीति-नीति, रास आदि का सम्यक समावेश है। कालांतर में वाल्मीकि और कालिदास की परंपरा को हिंदी में स्थापित किया महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस में। तुलसी के महानायक राम परब्रह्म और मर्यादा पुरुषोत्तम दोनों ही हैं। तुलसी ने राम में शक्ति, शील और सौंदर्य तीनों का उत्कर्ष दिखाया। केशव की रामचद्रिका में पांडित्य जनक कला पक्ष तो है किन्तु भाव पक्ष न्यून है। रामकथा आधारित महाकाव्यों में मैथिलीशरण गुप्त कृत साकेत और बलदेव प्रसाद मिश्र कृत साकेत संत भी महत्वपूर्ण हैं। कृष्ण को केंद्र में रखकर अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने प्रिय प्रवास और द्वारिका मिश्र ने कृष्णायन की रचना की। कामायनी - जयशंकर प्रसाद, वैदेही वनवास हरिऔध, सिद्धार्थ तथा वर्धमान अनूप शर्मा, दैत्यवंश हरदयाल सिंह, हल्दी घाटी श्याम नारायण पांडेय, कुरुक्षेत्र दिनकर, आर्यावर्त मोहनलाल महतो, नूरजहां गुरभक्त सिंह, गाँधी परायण अम्बिका प्रसाद दिव्य, उत्तर भगवत तथा उत्तर रामायण डॉ. किशोर काबरा, कैकेयी डॉ.इंदु सक्सेना देवयानी वासुदेव प्रसाद खरे, महीजा तथा रत्नजा डॉ. सुशीला कपूर, महाभारती डॉ. चित्रा चतुर्वेदी कार्तिका, दधीचि आचार्य भगवत दुबे, वीरांगना दुर्गावती गोविन्द प्रसाद तिवारी, क्षत्राणी दुर्गावती केशव सिंह दिखित 'विमल', कुंवर सिंह चंद्र शेखर मिश्र, वीरवर तात्या टोपे वीरेंद्र अंशुमाली, सृष्टि डॉ. श्याम गुप्त, विरागी अनुरागी डॉ. रमेश चंद्र खरे, राष्ट्रपुरुष नेताजी सुभाष चंद्र बोस रामेश्वर नाथ मिश्र अनुरोध, सूतपुत्र महामात्य तथा कालजयी दयाराम गुप्त 'पथिक', आहुति बृजेश सिंह आदि ने महाकाव्य विधा को संपन्न और समृद्ध बनाया है।
समयाभाव के इस दौर में भी महाकाव्य न केवल निरंतर लिखे-पढ़े जा रहे हैं अपितु उनके कलेवर और संख्या में वृद्धि भी हो रही है, यह संतोष का विषय है।
२१-६-२०१९
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विमर्श:
योग दिवस...
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- योग क्या?
= जोड़ना, संचय करना.
- संचय क्या और क्यों करना?
= सृष्टि का निर्माण और विलय का कारक है 'ऊर्जा', अत: संचय ऊर्जा का... लक्ष्य ऊर्जा को रूपांतरित कर परम ऊर्जा तक आरोहण कर पाना.
- ऊर्जा संचय और योग में क्या संबंध है?
= योग शारीरिक, मानसिक और आत्मिक ऊर्जा को चैतन्य कर, उनकी वृद्धि करता है .फलत: नकारात्मकता का ह्रास होकर सकारात्मकता की वृद्धि होती है. व्यक्ति का स्वास्थ्य और चिंतन दोनों का परिष्कार होता है.
- योग धनाढ्यों और ढोंगियों का पाखंड है.
= योग के क्षेत्र में कुछ धनाढ्य और ढोंगी हैं. धनाढ्य होना अपराध नहीं है, ढोंगी होना और ठगना अपराध है. पहचानना और बचना अपनी जागरूकता और विवेक से ही संभव है, गेहूं के बोर में कुछ कंकर होने से पूरा गेहूं नहीं फेंका जा सकता. इसी तरह कुछ पाखंडियों के कारण पूरा योग त्याज्य नहीं हो सकता.
- दैनिक जीवन की व्यस्तता और समयाभाव के कारण योग करने नहीं जाया जा सकता.
= योग करने के लिए कहीं जाना नहीं है, न अलग से समय चाहिए. एक बार सीखने के बाद अभ्यास अपना काम करते हुए भी किया जा सकता है. कार्यालय, कारखाना, खेत, रसोई हर जगह योग किया जा सकता है, वह भी अपना काम करते-करते.
- योग कैसे कार्य करता है?
= योग मुद्राएँ शरीर की शिराओं में रक्त प्रवाह की गति को सुधरती हैं. मन को प्रसन्न करती है. फलत: थकान और ऊब समाप्त होती है. प्रसन्न मन काम करने पर परिणाम की मात्रा और गुण दोनों में वृद्धि होती है. इससे मिली प्रशंसा और सफलता अधिक अच्छा करने की प्रेरणा देती है.
- योग खर्ची ला है.
= नहीं योग बिन किसी अतिरिक्त व्यय के किया जा सकता है. योग रोग घटाकर बचत कराता है.
- कैसे?
= योग से सही आसन सीख कर कार्य करते समय शरीर को सही स्थिति में रखें तो थकान कम होगी, श्वास-प्रश्वास नियमित हो तो रक्त प्रवाह की गति और उनमें ओषजन की मात्रा बढ़ेगी.फलत: ऊर्जा, उत्साह, प्रसन्नता और सामर्थ्य में वृद्धि होगी.
- योग सिखाने वाले बाबा ढोंगी और विलासी होते हैं.
= निस्संदेह कुछ बाबा ऐसे हो सकते हैं. उन्हें छोड़कर सच्च्ररित्र प्रशिक्षक को चुना जा सकता है. दूरदर्शन, अंतरजाल आदि की मदद से बिना खर्च भी सीखा जा सकता है.
- योग और भोग में क्या अंतर है?
= योग और भोग एक सिक्के के दो पहलू हैं. 'दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा', जीने के लिए अन्न, वस्त्र, मकान का भोग करना ही होगा. बेहतर जीवन स्तर और आपदा-प्रबंधन हेतु संचय भी करना होगा. राग और विराग का संतुलन और समन्वय ही 'सम्भोग' है. इसे केवल दैहिक क्रिया मानना भूल है. 'सम्भोग' की प्राप्ति में योग सहायक होता है. 'सम्भोग' से 'समाधि' अर्थात आत्म और परमात्म के ऐक्य की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है. अत्यधिक योग और अत्यधिक भोग दोनों अतृप्ति, अरुचि और अंत में विनाश के कारण बनते हैं. 'योग; 'भोग' का प्रेरक और 'भोग' 'योग' का पूरक है.
- योग कौन कर सकता है?
= योग हर जीवित प्राणी कर सकता है. पशु-पक्षी स्वचेतना से प्रकृति अनुसार आचरण करते हैं जो योग है. मनुष्य में बुद्धितत्व की प्रधानता उसे सर्वार्थ से दूर कर स्वार्थ के निकट कर देती है. योग उसे आत्म तत्व के निकट ले जाकर ब्रम्हांश होने की प्रतीति कराता है. कंकर-कंकर में शंकर होने की अनुभूति होते ही वह सृष्टि के कण-कण से आत्मीयता अनुभव करता है. योग मौन से संवाद की कला है. बिन बोले सुनना-कहना और ग्रहण करना और बाँट देना ही सच्चा योग है.
- योग दिवस क्यों?
योग दिवस केवल स्मरण करने के लिए कि अगले योग दिवस तक योगरत रहकर अपने और सबके जीवन को बेहतर और प्रसन्नता पूर्ण बनाएँ.
२१.६.२०१८
***
नवगीत
राम रे!
*
राम रे!
कैसो निरदै काल?
*
भोर-साँझ लौ गोड़ तोड़ रए
कामचोर बे कैते।
पसरे रैत ब्यास गादी पै
भगतन संग लपेटे।
काम पुजारी गीता बाँचें
गोपी नचें निढाल-
आँधर ठोंके ताल
राम रे!
बारो डाल पुआल।
राम रे!
कैसो निरदै काल?
*
भट्टी देह, न देत दबाई
पैलउ माँगें पैसा।
अस्पताल मा घुसे कसाई
थाने अरना भैंसा।
करिया कोट कचैरी घेरे
बकरा करें हलाल-
बेचें न्याय दलाल
राम रे !
लूट बजा रए गाल।
राम रे!
कैसो निरदै काल?
*
झिमिर-झिमिर-झम बूँदें टपकें
रिस रओ छप्पर-छानी।
दागी कर दई रौताइन की
किन नें धुतिया धानी?
अँचरा ढाँके, सिसके-कलपे
ठोंके आपन भाल
राम रे !
जीना भओ मुहाल।
राम रे!
कैसो निरदै काल?
२१-६-२०१६
***
दोहा का रंग दांत के संग:
संजीव
*
दाँतों काटी रोटियाँ, रहें हमेशा याद
माँ-हाथों के कौर सा, पाया कहीं न स्वाद
*
दाँत निपोरो तो मिटे, मन का 'सलिल' तनाव
दाँत दिखाओ चमकते, अच्छा पड़े प्रभाव
*
पाँत दाँत की दमकती, जैसे मुक्ता-माल
अधर-कमल के मध्य में, शोभित लगे कमाल
*
दाँत तले उँगली दबा, लगते खूब जनाब
कभी शांत नटखट कभी, जैसे कली गुलाब
*
दाँतों से नख कुतरते, देते नहीं जवाब
नज़र झुकी बिजली गिरी, पलकें हुईं नकाब
*
दाँत बज रहे- काँपता, बदन चढ़ा ज्वर तेज
है मलेरिया बुला लें, दवा किसी को भेज
*
दाँत न टूटे दूध के,चले निभाने प्रीत
दिल के बिल को देखकर, बिसर गया लव-गीत
*
दाँतों में पल्लू दबा, चला नज़र के तीर
लूट लिया दिल ध्वस्त कर, अंतर की प्राचीर
*
दाँत तोड़कर शत्रु के, सैन्य बचाती देश
जान हथेली पर लिये, कसर न छोड़ें लेश
*
दाँतों लोहे के चने, चबा रहे रह शांत
धीरज को करिये नमन, 'सलिल' न होते भ्रांत
*
दहशतगर्दों के करें, मिलकर खट्टे दाँत
'सलिल' रहम मत खाइये, खींच लीजिए आँत
*
दाँत मिलें तो चनों का, होता रहा अभाव
चने मिले बेदाँत को, कैसे करें निभाव?
*
दाँत खोखले हो गये, समझें खिसकी नींव
सजग रहें खुद सदय हों, पल-पल करुणासींव
*
और दिखाने के 'सलिल', खाने के कुछ और
दाँतों की महिमा अमित, करिए इन पर गौर
*
हैं कठोर बाँटें नहीं, अलग-अलग रह पीर
दाँत टूटते जीभ झुक, बच जाती धर धीर
*
दाँत दीन चुप पीसते, चक्की बिना पगार
जी भर रस ले जीभ चुप, पेट गहे आहार
*
खट्टा मीठा चिरपरा, चाबे निस्पृह संत
आह-वाह रसना करे, नहीं स्वार्थ का अंत
*
जिव्हा बहिन रक्षित-सुखी, गाती मधुरिम छंद
बंधु दाँत रक्षा करे, मिले अमित आनंद
*
योग कर रहा शांत रह, दाँत न करता बैर
जिए ऐक्य-सद्भाव से, हँसी-खुशी निर्वैर
*
दाँत स्वच्छता-दूत है, नित्य हो रहा साफ़
जो घिसता उसको करे, तत्क्षण ही यह माफ़
*
क्षुधा मिटाता उदर की, चबा-चबा दे भोज्य
बचा मसूढ़ों को रहा, दाँत नमन के योग्य
*
उगे टूट गिर फिर बढ़े, दाँत न माने हार
कर्मवीर है सूर्य सा, करे नहीं तकरार
*दाँत पीस मत कीजिए, भोजन लगे न अंग। भोज्य चबाएँ दाँत से, मधु-रस सा सत्संग।।
२१-६-२०१५
***
गीत :
उड़ने दो…
*
पर मत कतरो
उड़ने दो मन-पाखी को।
कहो कबीरा
सीख-सिखाओ साखी को...
*
पढ़ो पोथियाँ,
याद रखो ढाई आखर।
मन न मलिन हो,
स्वच्छ रहे तन की बाखर।
जैसी-तैसी
छोड़ो साँसों की चादर।
ढोंग मिटाओ,
नमन करो सच को सादर।
'सलिल' न तजना
रामनाम बैसाखी को...
*
रमो राम में,
राम-राम सब से कर लो।
राम-नाम की
ज्योति जला मन में धर लो।
श्वास सुमरनी
आस अंगुलिया संग चले।
मन का मनका,
फेर न जब तक सांझ ढले।
माया बहिना
मोह न, बांधे राखी को…
२१-६-२०१३
***

शुक्रवार, 20 जून 2025

जून २०, सदोका, पद्मावती, कमलावती, छंद, व्यंग्य, लघु कथा, शिवलिंग, शालिग्राम, पिता,

सलिल सृजन जून २०
पूर्णिका
आँख खोल दे गुलबकावली
सुरभि घोल दे गुलबकावली
.
शुभ्र ज्योत्स्ना थकन मिटाए
बोल बोल दो गुलबकावली
.
अर्क सुँघा कर दे तनाव कम
बिना मोल ही गुलबकावली
कमसिन कोमल कली हरे मन
डोल-डोलकर गुलबकावली
.
माई की बगिया में खेले
सलिल संग नित गुलबकावली
२०.६.२०२५
०००
पूर्णिका
.
आजीवन सुनता रहा जो मन का संगीत
श्वास-श्वास उसकी अमर तज तन का संगीत
.
करता रहा प्रयास नित लेकर प्रभु का नाम
सफल-विफल सम भाव हो जीवन का संगीत
.
स्वार्थ साध्य जिसको सलिल वह न कभी संतुष्ट
हो न सका रसखान रच, वह  धुन का संगीत
आम आदमी बन जियो छोड़ो पद मद मोह
कलकल-कलरव में मिले, मधुवन का संगीत
.
कर स्वदेश से प्रीति मन, निज माटी अनमोल
रवि-शशि किरण हृदय बसा, रच जन का संगीत
२०.६.२०२५
०००
सदोका सलिला
ई​ कविता में
करते काव्य स्नान ​
कवि​-कवयित्रियाँ।
सार्थक​ होता
जन्म निरख कर
दिव्य भाव छवियाँ।१।
ममता मिले
मन-कुसुम खिले,
सदोका-बगिया में।
क्षण में दिखी
छवि सस्मित मिली
कवि की डलिया में।२।
​न​ नौ नगद ​
न​ तेरह उधार,
लोन ले, हो फरार।
मस्तियाँ कर
किसी से मत डर
जिंदगी है बहार।३।
धूप बिखरी
कनकाभित छवि
वसुंधरा निखरी।
पंछी चहके
हुलस, न बहके
सुनयना सँवरी।४।
• ​
श्लोक गुंजित
मन भाव विभोर,
पुजा माखनचोर।
उठा हर्षित
सक्रिय हो नीरव
क्यों हो रहा शोर?५।
है चौकीदार
वफादार लेकिन
चोरियाँ होती रही।
लुटती रहीं
देश की तिजोरियाँ
जनता रोती रही।६।
गुलाबी हाथ
मृणाल अंगुलियाँ
कमल सा चेहरा।
गुलाब थामे
चम्पा सा बदन
सुंदरी या बगिया?७।
लिए उच्चार
पाँच, सात औ' सात
दो मर्तबा सदोका।
रूप सौंदर्य
क्षणिक, सदा रहे
प्रभाव सद्गुणों का।८।
सूरज बाँका
दीवाना है उषा का
मुट्ठी भर गुलाल
कपोलों पर
लगाया, मुस्कुराया
शोख उषा शर्माई।९।
आवारा मेघ
कर रहा था पीछा
देख अकेला दौड़ा
हाथ न आई
दामिनी ने गिराई
जमकर बिजली।१०।
हवलदार
पवन ने जैसे ही
फटकार लगाई।
बादल हुआ
झट नौ दो ग्यारह
धूप खिलखिलाई।११।
महकी कली
गुनगुनाते गीत
मँडराए भँवरे।
सगे किसके
आशिक हरजाई
बेईमान ठहरे।१२।
घर ना घाट
सन्यासी सा पलाश
ध्यानमग्न, एकाकी।
ध्यान भग्न
करना चाहे संध्या
दिखला अदा बाँकी।१३।
सतत बही
जो जलधार वह
सदा निर्मल रही।
ठहर गया
जो वह मैला हुआ
रहो चलते सदा।१४।
पंकज खिला
करता नहीं गिला
जन्म पंक में मिला।
पुरुषार्थ से
विश्व-वंद्य हुआ
देवों के सिर चढ़ा।१५।
खिलखिलाई
इठलाई शर्माई
सद्यस्नाता नवोढ़ा।
चिलमन भी
रूप देख बौराया
दर्पण आहें भरे।१६।
लहराती है
नागिन जैसी लट,
भाल-गाल चूमती।
बेला की गंध
मदिर सूँघ-सूँघ
बेड़नी सी नाचती।१७।
क्षितिज पर
मेघ घुमड़ आए
वसुंधरा हर्षाई।
पवन झूम
बिजली संग नाचा,
प्रणय पत्र बाँचा।१८।
लोकतंत्र में
नेता करे सो न्याय
अफसर का राज।
गौरैयों ने
राम का राज्य चाहा
बाजों को चुन लिया।१९।
घर को लगी
घर के चिराग से
दिन दहाड़े आग।
मंत्री का पूत
किसानों को कुचले
और छाती फुलाए। २०।
मेघ गरजे
रिमझिम बरसे
आसमान भी तर।
धरती भीगी
हवा में हवा हुआ
दुपट्टा, गाल लाल ।२१।
निर्मल नीर
गगन से भू पर
आकर मैला हुआ।
ज्यों कलियों का
दामन भँवरों ने
छूकर पंकिल किया।२२।
चुभ रही थी
गर्मी में तीखी धूप
जीव-जंतु परेशां।
धरा झुलसी
धन्य धरा धीरज
बारिश आने तक।२३।
करते पहुनाई
ढोल बजा दादुर
पत्ते बजाते ताली।
सौंधी महक
माटी ने फैला दी
झूम उठीं शाखाएँ।२४।
मेघ ठाकुर
आसमानी ड्योढी में
जमाए महफिल।
दिखाए नृत्य
कमर लचकाती
बिजली बलखाती।२५।
•••
ॐ सरस्वत्यै नम: ॐ
शारद वंदना
लाक्षणिक जातीय पद्मावती/कमलावती छंद
*
शारद छवि प्यारी, सबसे न्यारी, वेद-पुराण सुयश गाएँ।
कर लिए सुमिरनी, नाद जननि जी, जप ऋषि सुर नर तर जाएँ।।
माँ मोरवाहिनी!, राग-रागिनी नाद अनाहद गुंजाएँ।
सुर सरगमदात्री, छंद विधात्री, चरण - शरण दे मुसकाएँ।।
हे अक्षरमाता! शब्द प्रदाता! पटल लेखनी लिपि वासी।
अंजन जल स्याही, वाक् प्रवाही, रस-धुन-लय चारण दासी।।
हो ॐ व्योम माँ, श्वास-सोम माँ, जिह्वा पर आसीन रहें।
नित नेह नर्मदा, कहे शुभ सदा, सलिल लहर सम सदा बहें।।
कवि काव्य कामिनी, छंद दामिनी, भजन-कीर्तन यश गाए।
कर दया निहारो, माँ उपकारो, कवि कुल सारा तर जाए।।
*
२०-६-२०२०
***
विमर्श
निर्बल नागरिकों के अधिकारों का हनन
*
लोकतंत्र में निर्बल नागरिकों की जीवन रक्षा का भर जिन पर है वे उसका जीना मुश्किल कर दें और जब कोई असामाजिक तत्व ऐसी स्थिति में उग्र हो जाए तो पूरे देश में हड़ताल कर असंख्य बेगुनाहों को मरने के लिए विवश कर दिया जाए।
शर्म आनी चाहिए कि बिना इलाज मरे मरीजों के कत्ल का मुकदमा आई एम् ए के
पदाधिकारियों पर क्यों नहीं चलाती सरकार?
आम मरीजोंजीवन रक्षा के लिए कोर्ट में जनहित याचिका क्यों नहीं लाई जाती ?
मरीजों के मरने के बाद भी जो अस्पताल इलाज के नाम पर लाखों का बिल बनाते हैं,
और लाश तक रोक लेते हैं उनके खिलाफ क्यों नहीं लाते पिटीशन?
दुर्घटना के बाद घायलों को बिना इलाज भगा देनेवाले डाक्टरों के खिलाफ क्यों नहीं
होती पिटीशन?
राजस्थान में डॉक्टर ने मरीज को अस्पताल में सबके साबके मारा, उसके खिलाफ
आई एम् ए ने क्या किया?
यही बदतमीजी वकील भी कर रहे हैं। एक वकील दूसरे वकील को मारे और पूरे देश में हड़ताल कर दो। न्याय की आस में घर, जमीन बेच चुके मुवक्किदिलाने ल की न्याय की चिंता नहीं है किसी वकील को।
आम आदमी को ब्लैक मेल कर रहे पत्रकारों के साथ पूरा मीडिया जुट जाता है।
कैसा लोकतंत्र बना रहे हैं हम। निर्बल और गरीब की जान बचानेवाला, न्याय
दिलाने वाला, उसकी आवाज उठाने वाला, उसके जीवन भर की कमाई देने का सपना दिखानेवाला सब संगठन बनाकर खड़े हैं। उन्हें समर्थन को संरक्षण चाहिए, और ये सब असहायकी जान लेते रहें उनके खिलाफ कुछ नहीं हो रहा।
शर्मनाक।
***
***
नवाविष्कृत सवैया
गण सूत्र: स म त न भ स म ग ।वर्णिक यति: ७-७-७ ।
*
अँखुआए बीजों को, स्नेह सलिल से सींचो, हरियाली आयेगी।
अँकुराए पत्तों को, पाल धरणि धानी हो, खुशहाली पायेगी।
शुचिता के पौधों को, पाल कर बढ़ाओ तो, रँग होली लाएगी।
ममता के वृक्षों को, ढाल बन बचाओ तो, नव पीढ़ी गायेगी।
*
***
हिंदी का दैदीप्यमान सूर्य सलिल
आभा सक्सेना 'दूनवी'
संजीव वर्मा सलिल एक ऐसा नाम जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है |उनकी प्रशंसा करना मतलब सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा |उनसे मेरा परिचय मुख पोथी पर सन 2014 - 2015 में हुआ |उसके बाद तो उनसे दूरभाष पर वार्तालाप का सिलसिला चल रहा है| सलिल जी स्वयं में ही एक पूरा छंद काव्य हैं| उन्होने किस विधा में नहीं लिखा हर विधा के वे ज्ञानी पंडित हैं उन के व्यक्तित्व में उनकी कवियित्री बुआ महादेवी वर्मा जी की साफ झलक दिखाई देती है |
सन 2014, उस समय मैं नवगीत लिखने का प्रयास कर रही थी उस समय मुझे उन्हों ने ही नवगीत विधा की बारीकियाँ सिखाईं
मेरा नव गीत उनके कुछ सुझावों के बाद -----------
नव गीत
कुछ तो
मुझसे बातें कर लो
अलस्सुबह जा
सांझ ढले
घर को आते हो
क्या जाने
किन हालातों से
टकराते हो
प्रियतम मेरे!
सारे दिन मैं
करूँ प्रतीक्षा-
मुझ को
निज बाँहों में भर लो
थका-चुका सा
तुम्हें देख
कैसे मुँह खोलूँ
बैठ तुम्हारे निकट
पीर क्या
हिचक टटोलूँ
श्लथ बाँहों में
गिर सोते
शिशु से भाते हो
मन इनकी
सब पीड़ा हर लो
.....आभा
आज कल वे सवैया छंद पर कार्य कर रहे हैं उनका कहना है कि
“सवैया आधुनिक हिंदी की शब्दावली के लिए पूरी तरह उपयुक्त छंद' है।
यह भ्रांति है कि सरस सवैये केवल लोकभाषाओं लिखे जा सकते हैं।
सत्य यह है कि सवैया वाचिक परंपरा से विकसित छंद है। लोक गायक प्रायः अशिक्षित या अल्प शिक्षित थे। उन्होंने लोक भाषा में सवैया रचे और उन्हें पढ़कर उन्हीं की शब्दावली हमें सहज लगती है। मैं सवैया कोष पर काम कर रहा हूँ। 160 प्रकार के सवैये बना चुका हूँ। सब आधुनिक हिंदी में हैं जिनमें वर्णिक व मात्रिक गणना व यति समान हैं। के सवैये बना चुका हूँ। सब आधुनिक हिंदी में हैं जिनमें वर्णिक व मात्रिक गणना व यति समान हैं”|
एक कथ्य चार छंद:
*
जनक छंद
फूल खिल रहे भले ही
गर्मी से पंजा लड़ा
पत्ते मुरझा रहे हैं
*
माहिया
चाहे खिल फूल रहे
गर्मी से हारे
पत्ते कुम्हलाय हरे.
*
दोहा
फूल भले ही खिल रहे, गर्मी में भी मौन.
पत्ते मुरझा रहे हैं, राहत दे कब-कौन.
*
सोरठा
गर्मी में रह मौन, फूल भले ही खिल रहे,
राहत दे कब-कौन, पत्ते मुरझा रहे हैं.
रोला
गर्मी में रह मौन, फूल खिल रहे भले ही.
राहत कैसे मिलेगी, पत्ते मुरझा रहे हैं.
*
सलिल जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं | उनको देख कर लगता है कि उनका साहित्य के प्रति विशेष रूप से लगाव है इसी लिए उन्होने अपना जीवन साहित्य के प्रति समर्पित कर दिया है |
दोहा लिखना भी मैंने उन से ही सीखा |
एक दोहा लिखा और लिख कर उन्होने मेरे नाम ही कर दिया |
आभामय दोहे नवल, आ भा करते बात। आभा पा आभित सलिल, पंक्ति पंक्ति जज़्बात ।।
इसे कहते हैं बड़प्पन |उनकी प्रतिभा दूर दूर तक देदीप्यमान है और रहेगी |
बेहद आभार आपका
अतः ऐसे व्यक्तित्व को मेरा कोटिशः नमन भविष्य में उनकी साहित्यिक प्रगति और अच्छे स्वास्थ्य एवं शतायु की कामना करते हुए .....
आभा सक्सेना दूनवी
देहरादून
***
व्यंग्य रचना:
अभिनंदन
लो
*
युग-कवयित्री!
अभिनंदन
लो....
*
सब जग अपना, कुछ न पराया
शुभ सिद्धांत तुम्हें यह भाया.
गैर नहीं कुछ भी है जग में-
'विश्व एक' अपना सरमाया.
जहाँ मिले झट झपट वहीं से
अपने माथे यश-चंदन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
मेरा-तेरा मिथ्या माया
दास कबीरा ने बतलाया.
भुला परायेपन को तुमने
गैर लिखे को कंठ बसाया.
पर उपकारी अन्य न तुमसा
जहाँ रुचे कविता कुंदन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
हिमगिरी-जय सा किया यत्न है
तुम सी प्रतिभा काव्य रत्न है.
चोरी-डाका-लूट कहे जग
निशा तस्करी मुदित-मग्न है.
अग्र वाल पर रचना मेरी
तेरी हुई, महान लग्न है.
तुमने कवि को धन्य किया है
खुद का खुद कर मूल्यांकन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
कवि का क्या? 'बेचैन' बहुत वह
तुमने चैन गले में धारी.
'कुँवर' पंक्ति में खड़ा रहे पर
हो न सके सत्ता अधिकारी.
करी कृपा उसकी रचना ले
नभ-वाणी पर पढ़कर धन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
तुम जग-जननी, कविता तनया
जब जी चाहा कर ली मृगया.
किसकी है औकात रोक ले-
हो स्वतंत्र तुम सचमुच अभया.
दुस्साहस प्रति जग नतमस्तक
'छद्म-रत्न' हो, अलंकरण लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
२०-६-२०१८
टीप: श्रेष्ठ कवि की रचना को अपनी बताकर २३-५-२०१८ को प्रात: ६.४० बजे काव्य धारा कार्यक्रम में आकाशवाणी पर प्रस्तुत कर धनार्जन का अद्भुत पराक्रम करने के उपलक्ष्य में यह रचना समर्पित उसे ही जो इसका सुपात्र है)
***
लघु कथा
राष्ट्रीय एकता
*
'माँ! दो भारतीयों के तीन मत क्यों होते हैं?'
''क्यों क्या हुआ?''
'संसद और विधायिकाओं में जितने जन प्रतिनिधि होते हैं उनसे अधिक मत व्यक्त किये जाते हैं.'
''बेटा! वे अलग-अलग दलों के होते हैं न.''
'अच्छा, फिर दूरदर्शनी परिचर्चाओं में किसी बात पर सहमति क्यों नहीं बनती?'
''वहाँ बैठे वक्ता अलग-अलग विचारधाराओं के होते हैं न?''
'वे किसी और बात पर नहीं तो असहमत होने के लिये ही सहमत हो जाएँ।
''ऐसा नहीं है कि भारतीय कभी सहमत ही नहीं होते।''
'मुझे तो भारतीय कभी सहमत होते नहीं दीखते। भाषा, भूषा, धर्म, प्रांत, दल, नीति, कर, शिक्षा यहाँ तक कि पानी पर भी विवाद करते हैं।'
''लेकिन जन प्रतिनिधियों की भत्ता वृद्धि, अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने, व्यापारियों के कर घटाने, विद्यार्थियों के कक्षा से भागने, पंडितों के चढोत्री माँगने, समाचारों को सनसनीखेज बनाकर दिखाने, नृत्य के नाम पर काम से काम कपड़ों में फूहड़ उछल-कूद दिखाने और कमजोरों के शोषण पर कोई मतभेद देखा तुमने? भारतीय पक्के राष्ट्रवादी और आस्तिक हैं, अन्नदेवता के सच्चे पुजारी, छप्पन भोग की परंपरा का पूरी ईमानदारी से पालन करते हैं। मद्रास का इडली-डोसा, पंजाब का छोला-भटूरा, गुजरात का पोहा, बंगाल का रसगुल्ला और मध्यप्रदेश की जलेबी खिलाकर देखो, पूरा देश एक नज़र आयेगा।''
और बेटा निरुत्तर हो गया...
*
दोहा सलिला
*
जूही-चमेली देखकर, हुआ मोगरा मस्त
सदा सुहागिन ने बिगड़, किया हौसला पस्त
*
नैन मटक्का कर रहे, महुआ-सरसों झूम
बरगद बब्बा खाँसते। क्यों? किसको मालूम?
*
अमलतास ने झूमकर, किया प्रेम-संकेत
नीम षोडशी लजाई, महका पनघट-खेत
*
अमरबेल के मोह में, फँसकर सूखे आम
कहे वंशलोचन सम्हल, हो न विधाता वाम
*
शेफाली के हाथ पर, नाम लिखा कचनार
सुर्ख हिना के भेद ने, खोदे भेद हजार
*
गुलबकावली ने किया, इन्तिज़ार हर शाम
अमन-चैन कर दिया है,पारिजात के नाम
*
गौरा हेरें आम को, बौरा हुईं उदास
मिले निकट आ क्यों नहीं, बौरा रहे उदास?
*
बौरा कर हो गया है, आम आम से ख़ास
बौरा बौराये, करे दुनिया नहक हास
२०-६-२०१६
lnct jabalpur
***
एक रचना
*
प्रभु जी! हम जनता, तुम नेता
हम हारे, तुम भए विजेता।।
प्रभु जी! सत्ता तुमरी चेरी
हमें यातना-पीर घनेरी ।।
प्रभु जी! तुम घपला-घोटाला
हमखों मुस्किल भयो निवाला।।
प्रभु जी! तुम छत्तीसी छाती
तुम दुलहा, हम महज घराती।।
प्रभु जी! तुम जुमला हम ताली
भरी तिजोरी, जेबें खाली।।
प्रभु जी! हाथी, हँसिया, पंजा
कंघी बाँटें, कर खें गंजा।।
प्रभु जी! भोग और हम अनशन
लेंय खनाखन, देंय दनादन।।
प्रभु जी! मधुवन, हम तरु सूखा
तुम हलुआ, हम रोटा रूखा।।
प्रभु जी! वक्ता, हम हैं श्रोता
कटे सुपारी, काट सरोता।।
(रैदास से क्षमा प्रार्थना सहित)
२०-११-२०१५
चित्रकूट एक्सप्रेस, उन्नाव-कानपूर
***
शिवलिंग और शालिग्राम
*
हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख देवता हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश को क्रमश: शंख, शिवलिंगऔर शालिग्राम रूप में सर्वोत्तम माना है। शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है।
वैदिक धर्म में मूर्ति की पूजा नहीं होती। शिवलिंग और शालिग्राम की भगवान का विग्रह रूप मानकर पूजा की जानी चाहिए।
शालिग्राम का मंदिर : नेपाल में स्थित मुक्तिनाथ में स्थित शालिग्राम का प्रसिद्ध मंदिर वैष्‍णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। काठमांडु से पोखरा, जोमसोम होकर जाना होता है। दुर्लभ शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाता है। काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और ज्योतियुक्त शालिग्राम का पाया मिलना दुर्लभ है। पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति अंकित होती है।
शालिग्राम के प्रकार : विष्णु के अवतारों के अनुसार शालिग्राम पाया जाता है। गोल शालिग्राम विष्णु का गोपाल रूप है। मछली के आकार काशालिग्राम मत्स्य अवतार का प्रतीक है। यदि शालिग्राम कछुए के आकार का है तो यह भगवान के कच्छप/कूर्म अवतार का प्रतीक है। शालिग्राम पर उभरने वाले चक्र और रेखाएं भी विष्णु के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण के कुल के लोगों को इंगित करती हैं। ३३ प्रकार के शालिग्राम में से २४ विष्णु के २४ अवतारों से संबंधित हैं। ये २४ शालिग्राम वर्ष की २४ एकादशी व्रत से संबंधित हैं।
शालिग्राम की पूजा :
* घर में सिर्फ एक ही शालिग्राम की पूजा करना चाहिए।
* विष्णु की मूर्ति से कहीं ज्यादा उत्तम है शालिग्राम की पूजा करना।
* शालिग्राम पर चंदन लगाकर उसके ऊपर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
* प्रतिदिन शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराया जाता है।
* जिस घर में शालिग्राम का पूजन होता है उस घर में लक्ष्मी का सदैव वास रहता है।
* शालिग्राम पूजन करने से अगले-पिछले सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
* शालिग्राम सात्विकता के प्रतीक हैं। उनके पूजन में आचार-विचार की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
शिवलिंग : शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है तो जलाधारी को माता पार्वती का प्रतीक। निराकार रूप में भगवान शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है।
ॐ नम: शिवाय । यह भगवान का पंचाक्षरी मंत्र है। इसका जप करते हुए शिवलिंग का पूजन या अभिषेक किया जाता है। इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र और शिवस्त्रोत का पाठ किया जाता है। शिवलिंग की पूजा का विधान बहुत ही विस्तृत है इसे किसी पुजारी के माध्यम से ही सम्पन्न किया जाता है।
शिवलिंग पूजा के नियम :
* शिवलिंग को पंचांमृत से स्नानादि कराकर उन पर भस्म से तीन आड़ी लकीरों वाला तिलक लगाएं।
*शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए, लेकिन जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जा सकती है।
*शिवलिंग पर दूध, जल, काले तिल चढ़ाने के बाद बेलपत्र चढ़ाएं।
* केवड़ा तथा चम्पा के फूल न चढाएं। गुलाब और गेंदा किसी पुजारी से पूछकर ही चढ़ाएं।
* कनेर, धतूरे, आक, चमेली, जूही के फूल चढ़ा सकते हैं।
* शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
* शिवलिंग नहीं शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
* शिवलिंग के पूजन से पहले पार्वती का पूजन करना जरूरी है
शिवलिंग का अर्थ : शिवलिंग को नाद और बिंदु का प्रतीक माना जाता है। पुराणों में इसे ज्योर्तिबिंद कहा गया है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे- प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि।
शिव का अर्थ 'परम कल्याणकारी शुभ' और 'लिंग' का अर्थ है- 'सृजन ज्योति'। वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है। 1- मन, 2- बुद्धि, 3- पांच ज्ञानेन्द्रियां, 4- पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु। भ्रकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह है। बिंदु रूप।
ब्राह्मांड का प्रतीक : शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
अरुणाचल है प्रमुख शिवलिंगी स्थान : भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई। यह घटना अरुणाचल में घटित हुई थी।
आकाशीय पिंड : ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्राब्‍दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां ये पिंड गिरे, वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया। उनमें से प्रमुख थे 108 ज्योतिर्लिंग।
संग-ए-असवद : शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद भी आकाश से गिरा था।
***
स्मृति गीत:
हर दिन पिता याद आते हैं...
संजीव 'सलिल'
*
जान रहे हम अब न मिलेंगे.
यादों में आ, गले लगेंगे.
आँख खुलेगी तो उदास हो-
हम अपने ही हाथ मलेंगे.
पर मिथ्या सपने भाते हैं.हर
दिन पिता याद आते हैं...
*
लाड़, डाँट, झिड़की, समझाइश.
कर न सकूँ इनकी पैमाइश.
ले पहचान गैर-अपनों को-
कर न दर्द की कभी नुमाइश.
अब न गोद में बिठलाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.
नित घर-घाट दिखाए तुमने.
जब-जब मन कोशिश कर हारा-
फल साफल्य चखाए तुमने.
पग थमते, कर जुड़ जाते हैं
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
२०-६-२०१०

गुरुवार, 19 जून 2025

जून १९, दोना-पत्तल, सुखदा छंद, मिट्टी, शुद्ध ध्वनि छंद, मल्लिका छंद, दुर्गावती, ओशो, सरस्वती

सलिल सृजन जून १९
विश्व तापस (स्पेनिश चाट) दिवस
*
सरस्वती वंदना,
आलोक दो माँ शारदे!
*
तम-तोम से दुनिया घिरी है
भीड़ एकाकी निरी है
अजब माया, आप छाया
अकेलेपन से डरी है
लेने न चिंता चैन देती
आमोद दो माँ शारदे!
*
सननसन बह पवन बनकर
छूम छनननन बज सके मन
कलल कलकल सलिल निर्मल
करे कलरव नाचकर तन
सुन सकूँ पल पल अनाहद
नाद नित माँ शारदे!
*
बरस टप टप तृषा हर लूँ
अंकुरित हो आँख खोलूँ
पल्लवित कर हरी धरती
पुलक पुष्पित धन्य हो लूँ
झुकूँ चरणों में फलित हो
पग-लोक दो माँ शारदे!
१९-६-२०२०
***
गीत
*
मल्लिका छंद
रजगल
ग ल ग ल ग ल ग ल
२१ २१ २१ २१
*
मल्लिका रहे न मौन
.
लोकतंत्र की पुकार
लोग ही करें सुधार
दोष और का न मान
लें सुधार रीति जान
गंदगी बटोर साफ
कीजिए; न धार मौन
.
शक्ति लोक की अपार
तंत्र से न मान हार
पौध रोप दें हजार
भूमि हो हरी निहार
राजनीति स्वार्थ त्याग
अग्रणी बनें; न मौन
.
ऊगता न आप भोर
सूर्य ले उषा अँजोर
आसमान दे बुहार
अंधकार मान हार
भागता; प्रकाशवान
सूर्य लोग हों; न मौन
*
संवस, ७९९९५५९६१८
१९-६-२०१९
***
ओशो चिंतन: घाट भुलाना 5
*
निष्ठा-श्रद्धा का नहीं, बंधन है स्वीकार।
ढाँचे में बँधती नहीं, जैसे मुक्त बयार।।
*
श्रद्धा-निष्ठा पर बने, ढाँचा जड़ मजबूत।
गत-आगत तक एक सा, जड़ता प्रबल-अकूत।।
*
यदि न बदलता; तो हुआ, समझें जीवन-अंत।
हर पल नया कहूँ तभी, हो चिंतन में तंत।।
*
हर कल हो यदि आज सा, ले केवल दोहराव।
तब समझे मैं मर गया, शेष न यदि बदलाव।।
*
मित्र जुड़े; चाहें बनूँ, मैं उनके अनुकूल।
नहीं बना तो शत्रु बन, हो जाते प्रतिकूल।।
*
दोष न उनका; मानता, अपना आप कसूर।
वे ज्यों का त्यों चाहते, मुझे नहीं मंजूर।।
*
जीवन में सादृश्यता, न्यून; अधिक है भेद।
मात्र मृत्यु है एक सी, सत्य यही; क्यों खेद?
*
सूरज कल जैसा उगे, लिए पुराना रूप।
तब पूजोगे यदि कहो, मान न उगे अनूप।।
*
28.5.2018
***
दोहा सलिला:
*
जन्म; ब्याह; राखी; तिलक; गृह-प्रवेश; त्यौहार.
सलिल बचा; पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार.
*
पुस्तक जग की प्रीत है, पुस्तक मन का मीत.
पुस्तक है तो साथ है, भावी-आज-अतीत.
*
पुश्त-पुश्त पुस्तक चले, शेष न रहता साथ.
जो पुस्तक पढ़ता रहा, उसका ऊँचा माथ.
*
पौधारोपण कीजिए, सतत बचाएँ नीर.
पंछी कलरव करें तो, आप घटेगी पीर.
*
तबियत होती है हरी, हरियाली को देख.
रखें स्वच्छता हमेशा, सुधरे जीवन-लेख.
***
१९.६.२०१८
***
२४ जून १५६४ महारानी दुर्गावती शहादत दिवस पर विशेष रचना
छंद सलिला: ​​​शुद्ध ध्वनि छंद
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-८-६, पदांत गुरु
लक्षण छंद:
लाक्षणिक छंद है / शुद्धध्वनि पद / अंत करे गुरु / यश भी दे
यति रहे अठारह / आठ आठ छह, / विरुद गाइए / साहस ले
चौकल में जगण न / है वर्जित- करि/ए प्रयोग जब / मन चाहे
कह-सुन वक्ता-श्रो/ता हर्षित, सम / शब्द-गंग-रस / अवगाहे
.
उदाहरण:
१. बज उठे नगाड़े / गज चिंघाड़े / अंबर फाड़े / भोर हुआ
खुर पटकें घोड़े / बरबस दौड़े / संयम छोड़े / शोर हुआ
गरजे सेनानी / बल अभिमानी / मातु भवानी / जय रेवा
ले धनुष-बाण सज / बड़ा देव भज / सैनिक बोले / जय देवा
कर तिलक भाल पर / चूड़ी खनकीं / अँखियाँ छलकीं / वचन लिया
'सिर अरि का लेना / अपना देना / लजे न माँ का / दूध पिया'
''सौं मातु नरमदा / काली मैया / यवन मुंड की / माल चढ़ा
लोहू सें भर दौं / खप्पर तोरा / पिये जोगनी / शौर्य बढ़ा''
सज सैन्य चल पडी / शोधकर घड़ी / भेरी-घंटे / शंख बजे
दिल कँपे मुगल के / धड़-धड़ धड़के / टँगिया सम्मुख / प्राण तजे
गोटा जमाल था / घुला ताल में / पानी पी अति/सार हुआ
पेड़ों पर टँगे / धनुर्धारी मा/रें जीवन दु/श्वार हुआ
वीरनारायण अ/धार सिंह ने / मुगलों को दी / धूल चटा
रानी के घातक / वारों से था / मुग़ल सैन्य का / मान घटा
रूमी, कैथा भो/ज, बखीला, पं/डित मान मुबा/रक खां लें
डाकित, अर्जुनबै/स, शम्स, जगदे/व, महारख सँग / अरि-जानें
पर्वत से पत्थर / लुढ़काये कित/ने हो घायल / कुचल मरे-
था नत मस्तक लख / रण विक्रम, जय / स्वप्न टूटते / हुए लगे
बम बम भोले, जय / शिव शंकर, हर / हर नरमदा ल/गा नारा
ले जान हथेली / पर गोंडों ने / मुगलों को बढ़/-चढ़ मारा
आसफ खां हक्का / बक्का, छक्का / छूटा याद हु/ई मक्का
सैनिक चिल्लाते / हाय हाय अब / मरना है बिल/कुल पक्का
हो गयी साँझ निज / हार जान रण / छोड़ शिविर में / जान बचा
छिप गया: तोपखा/ना बुलवा, हो / सुबह चले फिर / दाँव नया
रानी बोलीं "हम/ला कर सारी / रात शत्रु को / पीटेंगे
सरदार न माने / रात करें आ/राम, सुबह रण / जीतेंगे
बस यहीं हो गयी / चूक बदनसिंह / ने शराब थी / पिलवाई
गद्दार भेदिया / देश द्रोह कर / रहा न किन्तु श/रम आई
सेनानी अलसा / जगे देर से / दुश्मन तोपों / ने घेरा
रानी ने बाजी / उलट देख सो/चा वन-पर्वत / हो डेरा
बारहा गाँव से / आगे बढ़कर / पार करें न/र्रइ नाला
नागा पर्वत पर / मुग़ल न लड़ पा/येंगे गोंड़ ब/नें ज्वाला
सब भेद बताकर / आसफ खां को / बदनसिंह था / हर्षाया
दुर्भाग्य घटाएँ / काली बनकर / आसमान पर / था छाया
डोभी समीप तट / बंध तोड़ मुग/लों ने पानी / दिया बहा
विधि का विधान पा/नी बरसा, कर / सकें पार सं/भव न रहा
हाथी-घोड़ों ने / निज सैनिक कुच/ले, घबरा रण / छोड़ दिया
मुगलों ने तोपों / से गोले बर/सा गोंडों को / घेर लिया
सैनिक घबराये / पर रानी सर/दारों सँग लड़/कर पीछे
कोशिश में थीं पल/टें बाजी, गिरि / पर चढ़ सकें, स/मर जीतें
रानी के शौर्य-पराक्रम ने दुश्मन का दिल दहलाया था
जा निकट बदन ने / रानी पर छिप / घातक तीर च/लाया था
तत्क्षण रानी ने / खींच तीर फें/का, जाना मु/श्किल बचना
नारायण रूमी / भोज बच्छ को / चौरा भेज, चु/ना मरना
बोलीं अधार से / 'वार करो, लो / प्राण, न दुश्मन / छू पाये'
चाहें अधार लें / उन्हें बचा, तब / तक थे शत्रु नि/कट आये
रानी ने भोंक कृ/पाण कहा: 'चौरा जाओ' फिर प्राण तजा
लड़ दूल्हा-बग्घ श/हीद हुए, सर/मन रानी को / देख गिरा
भौंचक आसफखाँ / शीश झुका, जय / पाकर भी थी / हार मिली
जनमाता दुर्गा/वती अमर, घर/-घर में पुजतीं / ज्यों देवी
पढ़ शौर्य कथा अब / भी जनगण, रा/नी को पूजा / करता है
जनहितकारी शा/सन खातिर नित / याद उन्हें ही / करता है
बारहा गाँव में / रानी सरमन /बग्घ दूल्ह के / कूर बना
ले कंकर एक र/खे हर जन, चुप / वीर जनों को / शीश नवा
हैं गाँव-गाँव में / रानी की प्रति/माएँ, हैं ता/लाब बने
शालाओं को भी , नाम मिला, उन/का- देखें ब/च्चे सपने
नव भारत की नि/र्माण प्रेरणा / बनी आज भी / हैं रानी
रानी दुर्गावति / हुईं अमर, जन / गण पूजे कह / कल्याणी
नर्मदासुता, चं/देल-गोंड की / कीर्ति अमर, दे/वी मैया
जय-जय गाएंगे / सदियों तक कवि/, पाकर कीर्ति क/था-छैंया
*********
टिप्पणी: कूर = समाधि,
दूरदर्शन पर दिखाई जा रही अकबर की छद्म महानता की पोल रानी की संघर्ष कथा खोलती है.
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
***
मुक्तिका
मिट्टी मेरी...
*
मोम बनकर थी पिघलती रही मिट्टी मेरी.
मौन रहकर भी सुलगती रही मिट्टी मेरी..
बाग़ के फूल से पूछो तो कहेगा वह भी -
कूकती, नाच-चहकती रही मिट्टी मेरी..
पैर से रौंदी गयी, सानी गयी, कूटी गयी-
चाक-चढ़कर भी, सँवरती रही मिट्टी मेरी..
ढाई आखर न पढ़े, पोथियाँ रट लीं, लिख दीं.
रही अनपढ़ ही, सिसकती रही मिट्टी मेरी..
कभी चंदा, कभी तारों से लड़ायी आखें.
कभी सूरज सी दमकती रही मिट्टी मेरी..
खता लम्हों की, सजा पाती रही सदियों तक.
पाक-नापाक दहकती रही मिट्टी मेरी..
खेत-खलिहान में, पनघट में, रसोई में भी.
मैंने देखा है, खनकती रही मिट्टी मेरी..
गोद में खेल, खिलाया है सबको गोदी में.
फिर भी बाज़ार में बिकती रही मिट्टी मेरी..
राह चुप देखती है और समय आने पर-
सूरमाओं को पटकती रही मिट्टी मेरी..
कभी थमती नहीं, रुकती नहीं, न झुकती है.
नर्मदा नेह की, बहती रही मिट्टी मेरी..
१९-६-२०१७
***
नवगीत
*
होरा भूँज रओ छाती पै
आरच्छन जमदूत
पैदा होतई बनत जा रए
बाप बाप खें, पूत
*
लोकनीति बनबास पा रई
राजनीति सिर बैठ
नाच नचाउत नित तिगनी का
घर-घर कर खें पैठ
नाम आधुनिकता को जप रओ
नंगेपन खों भूत
*
नींव बगैर मकान तान रए
भौत सयाने लोग
त्याग-परिस्रम खों तलाक दें
चाह भोग लें भोग
फूँक रए रे, मिली बिरासत
काबिल भए सपूत
*
ईंट-ईंट में खेंच दिवारें
तोड़ रए हर जोड़
लाज-लिहाज कबाड़ बता रए
बेसरमी हित होड़
राह बिसर कें राह दिखा रओ
सयानेपन खों भूत
२०-११-२०१५
चित्रकूट एक्सप्रेस,
उन्नाव-कानपूर
***
मुक्तिका:
*
मापनी:
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
ल ला ल ला ल ल ला ला, ल ला ल ला ला ला
महारौद्र जातीय सुखदा छंद
*
मिलो गले हमसे तुम मिलो ग़ज़ल गाओ
चलो चलें हम दोनों चलो चलें आओ
.
यही कहीं लिखना है हमें कथा न्यारी
कली खिली गुल महके सुगंध फैलाओ
.
कहो-कहो कुछ दोहे चलो कहो दोहे
यहीं कहीं बिन बोले हमें निकट पाओ
.
छिपाछिपी कब तक हो?, लुकाछिपी छोड़ो
सुनो बुला मुझ को लो, न हो तुम्हीं आओ
.
भुला गिले-शिकवे दो, सुनो सपन देखो
गले मिलो हँस के प्रिय, उन्हें 'सलिल' भाओ
१९-६-२०१५
क्या यह 'बहरे मुसम्मन मुरक़्क़ब मक्बूज़ मख्बून महज़ूफ़ो मक्तुअ' में है?
***
नवगीत:
*
पगड़ी हो
या हो दिल
न किसी का उछालिये
*
हँसकर गले लगाइये
या हाथ मिलायें
तीरे-नज़र से दिल,
छुरे से पीठ बचायें
हैं आम तो न ख़ास से
तकरार कीजिए-
जो कीजिए तो झूठ
न इल्जाम लगायें
इल्हाम हो न हो
नहीं किरदार गिरायें
कैसे भी हो
हालात
न जेबें खँगालिये
पगड़ी हो
या हो दिल
न किसी का उछालिये
*
दिल से भले भुलाइये
नीचे न गिरायें
यादें न सही जाएँ तो
चुपके से सिरायें
माने न मन तो फिर
मना इसरार कीजिए-
इकरार कीजिए
अगर तो शीश चढ़ायें
जो पाठ खुद पढ़ा नहीं
न आप पढ़ायें
बच्चे बिगड़ न जाएँ
हो सच्चे
सम्हालिए
पगड़ी हो
या हो दिल
न किसी का उछालिये
***
स्वास्थ्य चर्चा
दोना-पत्तल से स्वास्थ्य
*
भारत में 2000 से ज्यादा वनस्पतियों से भोजन को रखने के लिए दोने पत्तल बनाई जाती है और इन दोने पत्तल मे हर एक दोने पत्तल कई कई बीमारियो का इलाज है और औषधीय गुण रखता है।
केला - प्राचीन ग्रंथों मे केले की पत्तियो पर परोसे गये भोजन को स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है। आजकल मँहगे होटलों और रिसोर्ट में भी केले पत्ते प्रयोग हो रहे हैं।
पलाश - पलाश के पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है। रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है। पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी इसका उपयोग होता है। सफेद फूलों वाला पलाश से तैयार पत्तल बवासीर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी है।
करंज - जोड़ों के दर्द के लिये करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है। पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना में अधिक उपयोगी माना जाता है।
अमलतास - लकवा (पैरालिसिस) होने पर अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी है।
दोन-पत्तल के अन्य लाभ :
१. मितव्ययिता - कम पैसों में उपलब्ध।
२. परावरण मित्र - दोना-पत्तल पशु खा लें तो उन्हें हानि नहीं होती। मिट्टी में दबा दें तो उर्वरता बढ़ती है।
३. श्रम और पानी की बचत - अन्य बर्तन धोने में लगनेवाले श्रम और पानी की बचत होती हैl
४. रोजगार - पत्ते तोड़ने और दोना-पत्तल बनाने के कार्य से कम शिक्षित लोगों को रोजकार मिलता हैl
५. बर्तन धोने से निकले डिटर्जेंट व रसायनों से डोनेवाले ले अहथ खराब नहीं होंगे तथा मिट्टी का प्रदूषण नहीं होगाl
६. पत्तों की आवश्यकता पूर्ति के लिए अधिक वृक्ष होंगे, जिससे अधिक आक्सीजन भी मिलेगी l
७. जलस्रोतों का प्रदूषण कम होगा।
८. पेड़ों से प्राप्त लकड़ी बहुत उपयोगी होगी।
९. कम पूँजी तथा अकुशलता के बाद भी व्यवसाय का अवसर मिलेगा।
१९-६-२०१०
***

बुधवार, 18 जून 2025

जून १८, पिकनिक दिवस, सोनेट दोहा, नामदेव, रेलवे, शारदा छंद, कवित्त,जल संकट

सलिल सृजन जून १८
पिकनिक दिवस
*
सोनेट दोहा
नामदेव
*
भक्त-भक्ति में है नहीं, ऊँच-नीच का भेद।
नामदेव वाणी बनी, ऐक्य भाव का हेतु।
प्रभु सम्मुख सब एक हैं, गंगा जल या स्वेद।।
मन को मन से जोड़कर, बना भक्ति को सेतु।।
*
नाम देव बेनाम हो, भजे ईश को भक्त।
नामदेव की विरासत, है कबीर के पास।
वर्ण भेद को भूलकर, हो प्रभु में अनुरक्त।।
नानक मीरा तुका भी, रहे बुझाते प्यास।।
*
भाषा भेद न मानकर, भाव भूमि तैयार।
तृषा मिटाता सरोवर, छूत-अछूत न मान।
नामदेव ने की न क्यों, हम करते स्वीकार।।
अंजुरी में ले पी सलिल, पाए शांति समान।।
*
सबै भूमि गोपाल की, हर जन प्रभु का भक्त।
निर्गुण-सगुण न शक्ति दो, चित-पट सं संयुक्त।।
१८-६-२०२३
***
सोनेट दोहा
नामदेव
छंद अभंग भगत रचे, भंग न होती भक्ति।
निर्गुण काव्य परंपरा, नामदेव-उपहार।
प्रभु चरणों में हो सदा, अविकल शुभ अनुरक्ति।।
दसों दिशा में भ्रमणकर, दिया लोक को प्यार।।
*
सांगीतिक संयोजना, करती हृद-स्पर्श।
सगुण भक्ति का प्रतिफलन, निर्गुण भक्ति स्वरूप।
हरि भज नैना मूँद ले, झट हो प्रभु का दर्श।।
दोनों का सम्मिलन है, छंद अभंग अनूप।।
*
कातर अंतर्वेदना, गुणातीत आराध्य।
गीत और संगीत से, सहज सधे प्रभु भक्ति।
नाम देव से ही मिला, हुआ नाम ही साध्य ।।
नामदेव रस-राग से, प्रभु पाएँ शुभ युक्ति।।
*
स्वर लय भाव-विभाव ही, ब्रहमानंद-उपाय।
सुने गीत-संगीत प्रभु, विट्ठल भू पर आय।।
***
सोनेट दोहा
नामदेव
*
हों सन्यस्त ग्रहस्थ भी, प्रभु भजते हैं संत।
सतत सनातन साधना, गायन आहत नाद।
बिंदु सिंधु मिल एक हों, व्यापें दिशा-दिगंत।।
नाद अनाहद योगमय, प्रभु सुनते फ़रियाद।।
*
नाद ब्रह्म समकक्ष हैं, ज्ञान-ध्यान हैं एक।
सांसारिक सुख शोक दे, लिप्त रहे खुद जीव।
शरणागति का भाव ही, भक्त धारते नेक।।
जब अलिप्त हो प्रभु मिले, होता मन संजीव।।
*
श्रेष्ठ यज्ञ जप जानकर, नामदेव लें नाम।
ध्वनि से ही आकार हो, ओंकार है मूल।
एकहि सधे सब सधे, करे काम निष्काम।।
विधि-हरि-हर त्रय नाद हैं, जपिए सब जग भूल।।
*
ढोल दमामा जब बजे, गूँजे अनहद नाद।
मुरली-डमरू धर कहें, गहो भक्ति का स्वाद।।
२८-५-२०२३
==========================
गीत
पश्चिम-मध्य रेलवे की जय।
जन-सेवा-साधक हम निर्भय।।
तीर नर्मदा नगर जबलपुर।
मुख्यालय मनमोहक सुंदर।।
पथ विद्युतीकरण सुविधामय
पश्चिम-मध्य रेलवे की जय
ऐतिहासिक नगरी भोपाल।
उज्जयिनी बैठे जगपाल।।
साँची बुद्ध अस्थियाँ अक्षय
पश्चिम-मध्य रेलवे की जय
कोटा कोचिंग हब लासानी।
हवामहल जयपुर अभिमानी।।
मीरां कृष्ण-भक्ति की धुन-लय
पश्चिम-मध्य रेलवे की जय
शेर सफेद विंध्य बाँधवगढ़।
घूम पचमढ़ी चौरागढ़ चढ़।।
जा पातालकोट तज विस्मय
पश्चिम-मध्य रेलवे की जय
१८-६-२०२२
•••
शारद वंदना
पौराणिक जातीय शारदा छंद
विधान : न न म ज ग
यति : ८ - १०
*
नित पुलक करें दीदार शारदा!
हँस अभय करो दो प्यार शारदा!
*
विधि हरि हर को जन्मा सुपूज्य हो
कर जन जन का उद्धार शारदा!
*
कण-कण प्रगटाया भाव-सृष्टि की
लय गति यति गूँजा नाद शारदा!
*
सुर-सरगम है आवास देवि का
मम मन बस जा आ मातु शारदा!
*
भव समुद फँसी है नाव मातु! आ
झटपट कर बेड़ा पार शारदा!
*
तुम हर रचना में आप आ बसो
हर धड़कन हो झंकार शारदा!
*
नव रस रसना में मातु! दो बसा
जस-भजन करूँ मैं नित्य शारदा!
*
सर पर कर हो तो हार ना सकूँ
तव शरण करी स्वीकार शारदा!
*
नित सलिल तुम्हारे पैर धो रहा
कर कलम लिए गा गान शारदा!
*
१४/१५ जून २०२०
शारद वंदन
*
शारद मैया शस्त्र उठाओ,
हंस छोड़ सिंह पर सज आओ...
सीमा पर दुश्मन आया है, ले हथियार रहा ललकार।
वीणा पर हो राग भैरवी, भैरव जाग भरें हुंकार।।
रुद्र बने हर सैनिक अपना, चौंसठ योगिनी खप्पर ले।
पिएँ शत्रु का रक्त तृप्त हो,
गुँजा जयघोषों से जग दें।।
नव दुर्गे! सैनिक बन जाओ
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...
एक वार दो को मारे फिर, मरे तीसरा दहशत से।
दुनिया को लड़ मुक्त कराओ, चीनी दनुजों के भय से।।
जाप महामृत्युंजय का कर, हस्त सुमिरनी हाे अविचल।
शंखघोष कर वक्ष चीर दो,
भूलुंठित हों अरि के दल।।
रणचंडी दस दिश थर्राओ,
शारद मैया शस्त्र उठाओ...
कोरोना दाता यह राक्षस,
मानवता का शत्रु बना।
हिमगिरि पर अब शांति-शत्रु संग, शांति-सुतों का समर ठना।।
भरत कनिष्क समुद्रगुप्त दुर्गा राणा लछमीबाई।
चेन्नम्मा ललिता हमीद सेंखों सा शौर्य जगा माई।।
घुस दुश्मन के किले ढहाओ,
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...
***
१७-६-२०२०
शारद वंदन
*
वर्णिक शारद छंद
विधान :
त भ र स ज ज
९-९
*
माँ शारदा पग में पड़ा, रचता रहूँ नव छंद
पीने सभी तम मैं जलूँ, बन दीप-ज्योति अमंद
आनंद दूँ जग को लुटा, रच गीत दूँ सुख-हर्ष
पीड़ा सहूँ रह मौन मैं, चुप दर्द आप सहर्ष
ज्यों तार खाकर चोट भी, बजता सुना नव राग
ज्यों चोट पत्थर खा पुजे, बन देव पा अनुराग
सेवा करा कुछ मातु त्यों, सुत को बना निज दास
हो जन्म सार्थक शारदा!, भव-मुक्ति पा कर हास
हो हंस वाहन मैं बनूँ, ममता मिले तव मात
आसीन हों मम पीठ पे, भव से तरे यह गात
***
१७-६-२०२०
कवित्त
*
शिवशंकर भर हुंकार, चीन पर करो प्रहार, हो जाए क्षार-क्षार, कोरोना दानव।
तज दो प्रभु अब समाधि, असहनीय हुई व्याधि, भूकलंक है उपाधि, देह भले मानव।।
करता नित अनाचार, वक्ष ठोंक दुराचार, मिथ्या घातक प्रचार, करे कपट लाघव।
स्वार्थ-रथ हुआ सवार, धोखा दे करे वार, सिंह नहीं है सियार, मिटा दो अमानव।।
१८-६-२०२०
***
मुक्तक
श्रेया है बगिया की कलिका, झूमे नित्य बहारों संग।
हर दिन होली रात दिवाली, पल-पल खुशियाँ भर दें रंग।।
कदम-कदम बढ़ नित नव मंजिल पाओ, दुनिया देखे दंग।रुकना झुकना चुकना मत तुम, जीते जीवन की हर जंग।।
दोपदी
प्रेम करें राधा-किशन, होते सुमिर विदेह।
मन्मथ मन मथ कहे हम, भाव न केवल देह।।
*
जड़ाते जब कभी ठंडी में हम तो हमें बरबस ही
बरफ गोला औ कुल्फी वाला मटका याद आता है
*
पा पा कह हर इच्छित पाने को जो प्रोत्साहित करते।
नतमस्तक हो पापा कहकर प्यार उन्हें बच्चे करते।।
***
गीत
क्या???
*
क्या तेरा?
क्या मेरा? साधो!
क्या तेरा?
क्या मेरा? रे!....
*
ताना-बाना कौन बुन रहा?
कहो कपास उगाता कौन?
सूत-कपास न लट्ठम-लट्ठा,
क्यों करते हम, रहें न मौन?
किसका फेरा?
किसका डेरा?
किसका साँझ-सवेरा रे!....
*
आना-जाना, जाना-आना
मिले सफर में जो; बेगाना।
किसका अब तक रहा?, रहेगा
किसका हरदम ठौर-ठिकाना?
जिसने हेरा,
जिसने टेरा
उसका ही पग-फेरा रे!....
*
कालकूट या अमिय; मिले जो
अँजुरी में ले; हँसकर पी।
जीते-जीते मर मत जाना,
मरते-मरते जीकर जी।
लाँघो घेरा,
लगे न फेरा
लूट, न लुटा बसेरा रे!....
१८-६-२०१८
***
एक रचना-
गीत और
नवगीत नहीं हैं
भारत इंग्लिस्तान।
बने मसीहा
खींचें सरहद
मठाधीश हैरान।
पकड़ न आती
गति-यति जैसे
हों बच्चे शैतान।
अनुप्रासों के
मधुमासों का
करते अनुसंधान।
साठ साल
पहले की बातें
थोपें, कहें विधान।
गीत और
नवगीत नहीं हैं
दुश्मन सच पहचान।
लगे दूर से
बेहद सुंदर
पहले हर मुखड़ा।
निकट हुए तो
फेर लिया मुख
यही रहा दुखड़ा।
कर-कर हारे
कोशिश फिर भी
सुर न सधा सुखड़ा।
तुक तलाशने
अटक-भटककर
निकली हाए! जान।
गीत और
नवगीत नहीं हैं
सच से तनिक अजान।
कभी लक्षणा
कभी व्यंजना
खेल रहीं भॅंगड़ा।
थोप विसंगति
हाय! हो रहा
भाव पक्ष लॅंगड़ा।
बिम्ब-प्रतीकों
ने, मारा है
टॅंगड़ी को टॅंगड़ा।
बन विडंबना
मिथक कर गये
नव रस रेगिस्तान।
गीत और
नवगीत नहीं हैं
आपस में अनजान।
दाल-भात
हो रहे अंतरा
मुखड़ा मूसरचंद।
नवता का
ले नाम मरोड़े
जोड़-तोड़कर छंद।
मनमानी
मात्रा की, जैसे
झगड़ें भौजी-नंद।
छोटी-बड़ी
पंक्तियाॅं करते
बन उस्ताद महान।
गीत और
नवगीत नहीं हैं
भारत पाकिस्तान।
काव्य वृक्ष की
गीति शाख पर
खिला पुहुप नवगीत।
कुछ नवीनता,
कुछ परंपरा
विहॅंस रचे नवरीत।
जो जैसा है
वह वैसा ही
कहे, झूठ को जीत।
कथन-कहन का
दे तराश जब
झूम उठे इंसान।
गीत और
नवगीत मानिए
भारत हिंदुस्तान।
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१८.६.२०१६
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दोहा के रंग बाल के संग
*
बाल-बाल जब भी बचें, कहें देव! आभार
बाल न बांका हो कभी कृपा करें सरकार...
*
बाल खड़े हों जब कभी, प्रभु सुमिरें मनमीत
साहस कर उठ हों खड़े, भय पर पायें जीत
*
नहीं धूप में किये हैं, हमने बाल सफेद
जी चाहा जीभर लिखा, किया न किंचित खेद
*
सुलझा काढ़ो ऊँछ लो, पटियां पारो खूब
गूंथौ गजरा बाल में, प्रिय हेरे रस-डूब
*
बाल न बढ़ते तनिक भी, बाल चिढ़ाते खूब
तू न तरीका बताती, जाऊँ नदी में डूब
*
गिरें खुद-ब-खुद तो नहीं, देते किंचित पीर
नोचें-तोड़ें बाल तो, हों अधीर पा पीर
*
बाल होलिका-ज्वाल में, बाल भूनते साथ
दीप बाल, कर आरती, नवा रहे हैं माथ
*
बाल मुँड़ाने से अगर, मिटता मोह-विकार
हो जाती हर भेद तब, भवसागर के पार
*
बाल और कपि एक से, बाल-वृद्ध हैं एक
वृद्ध और कपि एक क्यों, माने नहीं विवेक?
*
बाल बनाते जा रहे, काट-गिराकर बाल
सर्प यज्ञ पश्चात ज्यों, पड़े अनगिनत व्याल
*
बाल बढ़ें लट-केश हों, मिल चोटी हों झूम
नागिन सम लहर रहे, बेला-वेणी चूम
*
अगर बाल हो तो 'सलिल', रहो नाक के बाल
मूंछ-बाल बन तन रखो, हरदम उन्नत भाल
*
भौंह-बाल तन चाप सम, नयन बाण दें मार
पल में बिंध दिल सूरमा, करे हार स्वीकार
*
बाल पूंछ का हो रहा, नित्य दुखी हैरान
धूल हटा, मक्खी भगा, थके-चुके हैरान
*
बाल बराबर भी अगर, नैतिकता हो संग
कर न सकेगा तब सबल, किसी निबल को तंग
*
बाल भीगकर भिगाते, कुंकुम कंचन देह
कंगन-पायल मुग्ध लख, बिन मौसम का मेह
१८-६-२०१५
***
विशेष आलेख
जल संकट और नहरें
*
अनिल, अनल, भू, नभ, सलिल, पंच तत्वमय देह
रखें समन्वय-संतुलन, आत्म तत्व का गेह
जल जीवन का पर्याय है. जीवन हेतु अपरिहार्य शेष ४ तत्व मिलने पर भी जीवन क्रम तभी आरम्भ होता है जब जल का संयोग होता है. शेष ४ तत्वों की तुलना में पृथ्वी पर जल की सीमित मात्रा उसे और अधिक महत्वपूर्ण बना देती है. सकल जल में से मानव जीवन हेतु आवश्यक पेय जल अथवा मीठे पानी की मात्रा न केवल कम है अपितु निरंतर कम होती जा रही है जबकि मानव की जनसँख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. फलत:, अगला विश्व युद्ध जल भंडारों को लेकर होने की संभावना व्यक्त की जाने लगी है.पानी की घटती मात्रा और बढ़ती आवश्यकता से बढ़ रही विषमता के लिए लोक और तंत्र दोनों बराबरी से जिम्मेदार हैं. लोक इसलिए कि वह जल का अपव्यय तो करता है पर जल-संरक्षण का कोई उपाय नहीं करता, तंत्र इसलिए की वह साधन संपन्न होने पर भी जन सामान्य को न तो जल-संरक्षण के प्रति जागरूक करता हैं न ही जल-संरक्षण कार्यक्रम और योजनाओं को प्राथमिकता देता है.
नहर: क्या और क्यों?
जल की उपलब्धता के २ प्रकार प्राकृतिक तथा कृत्रिम हैं. प्राकृतिक संसाधन नदी, झरने, झील, तालाब और समुद्र हैं, कृत्रिम साधन तालाब, कुएँ, बावड़ी, तथा जल-शोधन संयंत्र हैं. भारत जैसे विशाल तथा बहुसांस्कृतिक देश में ऋतु परिवर्तन के अनुसार पानी की आवश्यकता विविध आय वर्ग के लोगों में भिन्न-भिन्न होती है. जल का सर्वाधिक दोहन तथा बर्बादी संपन्न वर्ग करता है जबकि जल-संरक्षण में इसकी भूमिका शून्य है. जल संरक्षण के कृतिम या मानव निर्मित साधनों में नहर सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक है. नहर का आकार-प्रकार प्रकृति, पर्यावरण, आवश्यकता और संसाधन का तालमेल कर निर्धारित किया जाता है. नदी की तुलना में लघ्वाकारी होने पर भी नहर जन-जीवन को अधिक लाभ और काम हानि पहुँचाती है.
नहर मानव निर्मित कृत्रिम जल-प्रवाह पथ है जिसका आकार, दिशा, ढाल, बहाव तथा पानी की मात्रा तथा समय मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार निर्धारित-नियंत्रित कर सकता है.
नदी का बहाव-पथ प्राकृतिक भौगोलिक परिस्थिति अनुसार ऊपर से नीचे की ओर होता है. नदी में आनेवाले जल की मात्रा जल संग्रहण क्षेत्र के आकार-प्रकार तथा वर्षा की तीव्रता एवं अवधि पर निर्भर होती है. इसीलिए वर्ष कम-अधिक होने पर नदी में बाढ़ कम या अधिक आती है. वर्षा न्यून हो तो नदी घाटी में जलाभाव से फसलें तथा जन-जीवन प्रभावित होता है. वर्षा अधिक हो तो जलप्लावन से जन-जीवन संकट में पड़ जाता है. नदी के प्रवाह-पथ परिवर्तन से सभ्यताओं के मिटने के अनेक उदहारण मानव को ज्ञात हैं तो सभ्यता का विकास नदी तटों पर होना भी सनातन सत्य है.
नहर नदियों के समान उपयोगी होती है पर नदियों के समान विनाशकारी नहीं होती। इसलिए नहर का अधिकतम निर्माण कर पीने, सिंचाई तथा औद्योगिक उपयोग हेतु जल की अधिक उपलब्धता कर सकना संभव है. नहर से भूजल स्तर में वृद्धि, मरुस्थल के विस्तार पर रोक, अनुपजाऊ भूमि पर कृषि, वन संवर्धन, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार अवसर तथा वाणिज्य-उद्योग का विस्तार करना भी संभव है. नहरें देश से लुप्त होती वनस्पतियों और पशु-पक्षियों के साथ-साथ जनजातीय संस्कृति के संवर्धन में भी उपयोगी हो सकती है. नहर लोकजीवन, लोक संस्कृति की रक्षा कर ग्रामीण जीवन को सरल, सहज, समृद्ध कर नगरों में बढ़ते जनसँख्या दबाब को घटा सकती है.
नहर वायुपथ, रेलगाड़ी और सड़क यातायात की तुलना में बहुत कम खर्चीला जल यातायात साधन उपलब्ध करा सकती है. नहर के किनारों पर नई तथा व्यवस्थित बस्तियां बनाई जा सकती हैं. नहरों के किनारों पर पौधरोपण कर वन तथा बागीचे लगाये जाएँ तो वर्षा की नियमितता तथा वृद्धि संभव है. इस वनों तथा उद्यानों की उपज समीपस्थ गाँवों में उद्योग-व्यापार को बढ़ाकर आजीविका के असंख्य साधन उपलब्ध करा सकती है. नहरों के किनारों पर पवन चक्कियों तथा सौर ऊर्जा उत्पादन की व्यवस्था संभव है जिससे विद्युत-उत्पादन किया जा सकता है.
नहर बनाकर प्राकृतिक नदियों को जोड़ा जा सके तो बाढ़-नियंत्रण, आवश्यकतानुसार जल वितरण तथा अल्पव्ययी व न्यूनतम जोखिमवाला आवागमन संभव है. नहर में मत्स्य पालन कर बड़े पैमाने पर खाद्य प्राप्त किया जा सकता है. नहर से कमल व् सिंघाड़े की तरह जलीय फसलें लेकर उनसे विविध रोजगार साधन बढ़ाये जा सकते हैं. नहरों में तैरते हुए होटल, उद्यान आदि का विकास हो तो पर्यटन का विकास हो सकता है. नहर के किनारों पर संरक्षित वन लगाकर उन्हें दीवाल से घेरकर अभयारण्य बनाये जा सकते हैं.
नहर निर्माण : उद्देश्य और उपादेयता
नहर निर्माण की योजना बनाने के पूर्व आवश्यकता और उपदेयता का आकलन जरूरी है. मरुथली क्षेत्र में नहर बनाने का उद्देश्य किसी नदी के जल से पेयजल तथा कृषि कार्य हेतु जल उपलब्ध करना हो सकता है. राजस्थान तथा गुजरात में इस तरह का कुछ कार्य हुआ है. बारहमासी नदियों से जल लेकर सूखती हुई नदियों में डाला जाए तो उन्हें नव जीवन मिलने के साथ-साथ समीपस्थ नगरों को पेय जल मिलता है, उजड़ रहे तीर्थ फिर से बसते हैं. नर्मदा नदी से साबरमती में जल छोड़कर गुजरात तथा क्षिप्रा नदी में जल छोड़कर मध्य प्रदेश में यह कार्य किया गया है.
नहर निर्माण का प्रमुख उद्देश्य सिंचाई रहा है. देश के विविध प्रदेशों में वृहद, माध्यम तथा लघु सिंचाई योजनाओं के माध्यम से लाखों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई कर खड़ी वृद्धि की गयी है. खेद है कि इन नहरों का निर्माण करनेवाला विभाग राजस्व तो संकलित करता है पर नहरों की मरम्मत, देखरेख तथा विस्तार या अन्य गतिविधियों के लिये आर्थिक रूप से विपन्न रहा आता है. जल संसाधन विभाग में नहरों में जम रही तलछट को एकत्र कर खाद के रूप में विक्रय करने, नहरों में साल भर जल रखकर जलीय फसलों का उत्पादन करने, नहरों का जल यातायात हेतु उपयोग करने, नहरी जल को हर गाँव के पास जल शोधन संयंत्र में शुद्ध कर पेयजल उपलब्ध कराने, नहर के किनारों पर मृदा का रासायनिक परीक्षण कर अधितम् लाभ देनेवाली फसल उगने और गाँवों के दूषित जल-मल को शोधन संयंत्रों में शुद्ध कर पुन: नहर में मिलाने की कोई परिकल्पना या योजना ही नहीं है.
नहरों का बहुउद्देश्यीय उपयोग करने के लिये आकार, ढाल, जल की मात्रा, जलक्षरणरोधी होने तथा उनके किनारों के अधिकतम उपयोग करने की व्यावहारिक योजनाएं बनाना होंगी. अभियंताओं और कृषिवैज्ञानिकों को नवीन अवधराओं के विकास तथा नये प्रयोगों स्वतंत्रता तथा क्रिवान्वयन हेतु वित्त व अधिकार देना होंगे. विभागों द्वारा संकलित राजस्व का कुछ अंश विभाग को देना होगा ताकि नहरों का संधारण और विकास नियमित रूप से हो सके.
स्थल चयन:
नहर कहाँ बनाई जाए? यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है. अब तक जल परियोजनाओं के अंतर्गत बांधों से खेतों की सिंचाई करने के लिये नहरें बनायी जाती रही हैं. इन नहरों को बारहमासी जलप्रवाही बनाने के लिए उन्हें जलरोधी भी बनाना होग. इस हेतु आर्थिक साधनों की आवश्यकता होगी. पूर्वनिर्मित तथा प्रस्तावित नहरों के प्रवाह-पथ क्षेत्र का सर्वेक्षण कर भूस्तर के अनुसार खुदाई-भराई की जानेवाली मृदा की मात्रा, समीपस्थ या प्रस्तावित बस्तियों की जनसँख्या के आधार पर वर्तमान तथा २० वर्ष बाद वांछित पेय जल तथा निष्क्रमित जल-मल की मात्रानुसार शोधन संयंत्रों की आवश्यकता, हो रही तथा संभावित कृषि हेतु वांछित जल की मात्रा व समय, नहरों में तथा उपलब्ध स्थल अनुसार मत्स्य पालन कुण्ड निर्माण की संभावना, संख्या तथा व्यय, नहर के किनारों पर लगाई जा सकनेवाली वनोपज तथा वनस्पतियाँ (बाँस आँवला, बेल, सीताफल, केला, संतरा, सागौन, साल ) का मृदा के आधार पर चयन, इन वनोपजों के विक्रय हेतु बाजार की उपलब्धता, वनोपजों का उपयोग कर सकने वाले लघु-कुटीर उद्योगों का विकास व उत्पाद के विपणन की व्यवस्था, नहरों के किनारों पर विकसित वनों में अभयारण्य बनाकर प्राणियों को खला छोड़ने एवं पर्यटकों को सुरक्षित पिंजरों में घूमने की व्यवस्था, मृदा के प्रकार, संभावित फसलों हेतु वांछित जल की मात्रा व समय, समीपस्थ तीर्थों तथा प्राकृतिक स्थलों का विकास कर पर्यटन को प्रोत्साहन, नहर के तटों पर वायु प्रवाह के अनुसार पवनचक्कियों ऊर्जा केन्द्रों की स्थापना, विद्युत उत्पादन-विपणन, जनसंख्यानुसार नए ग्रामों की स्थापना-विकास नहर में जल ग्रहण तह नहर से जल निकास की मात्रा का आकलन तथा उपाय, अधिकतम-न्यूनतम वर्षाकाल में नहर में आनेवाली जल की मात्रा का आकलन व्यवस्था जल-परिवहन तथा यातायात हेति वांछित नावों, क्रूजरों की आवश्यकता और उन्हें किनारों पर लगाने के लिये घाट निर्माण आदि महत्वपूर्ण बिंदु हैं जिनका पूर्वानुमान कर लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिए. भौगोलिक स्थिति के अनुसार आवश्यकता होने पर सुरंग बनाने, बाँध बनाकर जलस्तर उठाने का भी ध्यान रखना होगा.
बाधा और निदान:
बाँध आरम्भ होते समय अभियंताओं की बड़ी संख्या में भर्ती तथा परियोजना पूरी होने पर उन्हें अनावश्यक भार मानकर आर्थिक आवंटन न देने की प्रशासनिक नीति ने अभियंताओं के अमनोबल को तोडा है तथा उनकी कार्यक्षमता व् गुणवत्ता पर पड़ा है. दूसरी और राजस्व वसूली का पूरा विभाग होते हुए भी अभियंताओं को तकनीकी काम से हटाकर राजस्व वसूली पर लगाना और वसूले राजस्व में से कोई राशि नहर या बांध के संरक्षण हेतु न देने की नीति ने बाँधों और नहरों के रख-रखाव पर विपरीत छोड़ा है. इस समस्या को सुलझाने के लिये एक नीति बनायी जा सकती है. योजना पूर्ण होने पर प्राप्त राजस्व के ४ हिस्से कर एक हिस्सा भावी निर्माणों के लिये राशि जुटाने के लिये केंद्र सरकार को, एक हिस्सा योजनाओं पर लिया ऋण छकाने के लिये राज्य सरकार को, एक हिस्सा योजना के संधारण हेतु सम्बंधित विभाग / प्राधिकरण को, एक हिस्सा समीपस्थ क्षेत्र या गाँव का विकास करने हेतु स्थानीय निकाय को दिया जा सकता है. योजना के आरम्भ से लेकर पूर्ण होने और संधारण तक का कार्य एक ही निकाय का हो तो पूर्ण जानकारी, नियंत्रण तथा संधारण सहज होग. इससे जिम्मेदारी की भावना पनपेगी तथा उत्तरदायित्व का निर्धारण भी किया जा सकेगा. विविध विभागों को एक साथ जोड़ने पर अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को लेकर अनावश्यक टकराव होता है.
लाभ:
यदि नहर निर्माण को प्राथमिकता के साथ पूरे देश में प्रारम्भ किया जाए तो अनेक लाभ होंगे.
१. विविध विभागों में नियुक्त तथा सिंचाई योजनाएं पूर्ण हो चुकने पर निरुपयोगी कार्य कर वेतन पा रहे अभियन्ताओं की क्षमता तथा योग्यता का उपयोग हो सकेगा.
२. असिंचित-बंजर भूमि पर कृषि हो सकेगी, उत्पादन बढ़ेगा.
३. व्यर्थ बहता वर्ष जल संचित-वितरित कर जल-प्लावन (बाढ़) को नियंत्रित किया जा सकेगा.
४. गाँवों का द्रुत विकास होगा. शुद्ध पेय जल मिलाने तथा मल-जल शोधन व्यवस्था होने से स्वास्थ्य सुधरेगा.
५. पवन तथा सौर ऊर्जा का उपयोग कर जीवनस्तर को उन्नत किया जा सकेगा.
६. सस्ती और सर्वकालिक जल यातायात से को व्यकिगत वाहन ईंधन पर व्यय से राहत मिलेगी.
७. देश के ऑइल पूल का घाटा कम होगा.
८. नये रोजगार अवसरों होगा। इसका लाभ गाँव के सामान्य युवाओं को होगा.
९. कृषि, वनोपजों, वनस्पतियों, मत्स्य आदि का उत्पादन बढ़ेगा.
१०. नये पर्यटन स्थलों का विकास होगा.
११.कुटीर तथा लघु उद्योगों को नयी दिशाएँ मिलेंगी.
१२. पशु पालन सुविधाजनक होगा।
१३. सहकारिता आंदोलन सशक्त होगा.
१४. अभ्यारण्यों तथा वानस्पतिक उद्यानों के निर्माण से लुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण संभव होगा.
१५. समरसता तथा सद्भाव की वृद्धि होगी.
१६. केंद्र-राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों की आय बढ़ेगी तथा व्यय घटेगा.
१७. गाँवों में सुविधाएँ बढ़ने और यातायात सस्ता होने से शहरों पर जनसँख्या वृद्धि का दबाब घटेगा.
१८. पर्यावरण प्रदूषण कम होगा.
१९. भूजल स्तर बढ़ेगा.
२०. निरंतर बढ़ते तापमान पर अंकुश लगेगा.
२१. वनवासी अपने सांस्कृतिक वैभव और परम्पराओं के साथ सुदूर अंचलों में रहते हुए जीवनस्तर उठा सकेंगे.
इन्फ्लुएंस ऑफ़ सिल्वीकल्चर प्रैक्टिसेस ऑन द हाइड्रोलॉजी ऑफ़ पाइन फ्लैटवुडस इन फ्लोरिडा के तत्वावधान में एच. रिकर्क द्वारा संपन्न शोध के अनुसार ''वनस्पतियों का विदोहन किये जाने से वृक्षों के छत्र में अन्तारोधन तथा भूमि में पानी का अंत:रिसाव घटता है. जलधारा में सीधे बहकर आनेवाले पानी से आकस्मिक बाढ में तेजी आती है.''
नहरों का विकास इस दुष्प्रभाव को रोककर बाढ़ की तीव्रता को कम कर सकता है. वर्तमान भूकम्पीय त्रसदियों के जनसंख्या सघनता कम म होना मानव जीवन की हानि को कम करेगा. बड़े बांधों और परमाणु विद्युत उत्पदान की जटिल, मँहगी तथा विवादास्पद परियोजनाओं की तुलना में सघन नहर प्रणाली विकसित करने में ही देश का कल्याण है. क्या सरकारें, जन-प्रतिनिधि, पत्रकार और आम नागरिक इस ओर ध्यान देकर यह परिवर्तन ला सकेंगे? भावी सम्पन्नता का यह द्वार खोलने में जितनी देर होगी नुक्सान उतना ही अधिक होगा.
१८-६-२-१५
***
मान गनीमत समय पड़ा तो
कहें गधे को अपना बाप
सहा न जाये बिना काम जब
कहें बाप को लोग गधा.
१८-६-२०१४
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