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शनिवार, 18 मार्च 2023

सॉनेट,अस्ति,मुक्तिका, दोहा, फागुन,गीत, नदी,

सॉनेट
अस्ति

'अस्ति' राह पर चलते रहिए
तभी रहे अस्तित्व आपका
नहीं 'नास्ति' पथ पर पग रखिए
यह भटकाव कुपंथ शाप का

है विराग शिव समाधिस्थ सम
राग सती हो भस्म यज्ञ में
पहलू सिक्के के उजास तम
पाया-खोया विज्ञ-अज्ञ ने

अस्त उदित हो, उदित अस्त हो
कर्म-अकर्म-विकर्म सनातन
त्रस्त मत करे, नहीं पस्त हो
भिन्न-अभिन्न मरुस्थल-मधुवन

काम-अकाम समर्पित करिए
प्रभु चरणों में नत सिर रहिए
१८-३-२०२३
•••
 दोहा सलिला 

रिसते रिसते रस रहित, रिश्ते होते भार।
सरस रहें तो पालिए, नीरस तुरत उतार।।
*
उम्र न गिनिए बरस में, अनुभव से लें माप।
कितना ज्ञान लिया-दिया, यह भी सकते आप।।
*
कहें कहानी सत्य कुछ, कुछ कल्पना नवीन।
भैंस कड़ी गर सामने, नहीं बजाएँ बीन।।
*
मिली जिंदगानी हमें, दिए बिना कुछ मोल।
मूल्यहीन मत मानिए, श्वास श्वास अनमोल।।
*
दोहे फागुन के 
फागुन फगुनायो सलिल, लेकर रंग गुलाल।
दसों दिशा में बिखेरें, झूमें दे दे ताल।।
*
जहँ आशा तहँ स्मिता, बिन आशा नहिं चैन।
बैज सुधेंदु सलिल अनिल, क्यों सुरेंद्र बेचैन।।
*
अफसाना फागुन कहे, दे आनंद अनंत।
रूपचंद्र योगेश हैं, फगुनाहट में संत।।
*
खुशबू फगुनाहट उषा, मोहक सुंदर श्याम।
आभा प्रमिला हमसफ़र, दिनकर ललित ललाम।।
*
समदर्शी हैं नंदिनी, सचिन दिलीप सुभाष।
दत्तात्रय प्राची कपिल, छगन छुए आकाश।।
*
अनिल नाद सुन अनहदी, शारद हुईं प्रसन्न।
दोहे आशा के कहें, रसिक रंग आसन्न।।
*
फगुनाहट कनकाभिती, दे सुरेंद्र वक्तव्य।
फागुन में नव सृजन हो, मंगलमय मंतव्य।।
*
सुधा सुधेन्दु वचन लिए, फगुनाए हम आप।
मातु शारदा से विनय, फागुन मेटे ताप।।
*
मुग्ध प्रियंका ज्योत्स्ना, नवल किरण आदित्य।
वर लय गति यति मंजुला, फगुनाए साहित्य।।
*
किरण किरण बाला बना, माथे बिंदी सूर्य।
शब्द शब्द सलिला लहर, गुंजित रचना तूर्य।।
*
साँची प्राची ने किया, श्रोता मन पर राज।
सरसों सरसा बसंती, वनश्री का है ताज।।
*
छगन लाल पीले न हो, मूठा में भर रंग।
मूछें रंगी सफेद क्यों, देखे दुनिया दंग।।
*
धूप-छाँव सुख-दुःख लिए, फगुनाहट के रंग।
चन्द्रकला भागीरथी, प्रमिला करतीं दंग।।
*
आभा की आभा अमित, शब्द शब्द में अर्थ।
समालोचना में छिपी, है अद्भुत समर्थ।।
१८-३-२०२३
***
मुक्तिका
*
मन मंदिर जब रीता रीता रहता है।
पल पल सन्नाटे का सोता बहता है।।
*
जिसकी सुधियों में तू खोया है निश-दिन
पल भर क्या वह तेरी सुधियाँ तहता है?
*
हमसे दिए दिवाली के हँस कहते हैं
हम सा जल; क्यों द्वेष पाल तू दहता है?
*
तन के तिनके तन के झट झुक जाते हैं
मन का मनका व्यथा कथा कब कहता है?
*
किस किस को किस तरह करे कब किस मंज़िल
पग बिन सोचे पग पग पीड़ा सहता है
१८-३-२०२१
***
गीत
नदी मर रही है
*
नदी नीरधारी, नदी जीवधारी,
नदी मौन सहती उपेक्षा हमारी
नदी पेड़-पौधे, नदी जिंदगी है-
भुलाया है हमने नदी माँ हमारी
नदी ही मनुज का
सदा घर रही है।
नदी मर रही है
*
नदी वीर-दानी, नदी चीर-धानी
नदी ही पिलाती बिना मोल पानी,
नदी रौद्र-तनया, नदी शिव-सुता है-
नदी सर-सरोवर नहीं दीन, मानी
नदी निज सुतों पर सदय, डर रही है
नदी मर रही है
*
नदी है तो जल है, जल है तो कल है
नदी में नहाता जो वो बेअकल है
नदी में जहर घोलती देव-प्रतिमा
नदी में बहाता मनुज मैल-मल है
नदी अब सलिल का नहीं घर रही है
नदी मर रही है
*
नदी खोद गहरी, नदी को बचाओ
नदी के किनारे सघन वन लगाओ
नदी को नदी से मिला जल बचाओ
नदी का न पानी निरर्थक बहाओ
नदी ही नहीं, यह सदी मर रही है
नदी मर रही है
***
१२.३.२०१८
***
मुक्तिका
जो लिखा
*
जो लिखा, दिल से लिखा, जैसा दिखा, सच्चा लिखा
किये श्रद्धा सुमन अर्पित, फ़र्ज़ का चिट्ठा लिखा
समय की सूखी नदी पर आँसुओं की अँगुलियों से
दिल ने बेहद बेदिली से, दर्द का किस्सा लिखा
कौन आया-गया कब-क्यों?, क्या किसी को वास्ता?
गाँव अपने, दाँव अपने, कुश्तियाँ-घिस्सा लिखा
किससे क्या बोलें कहों हम?, मौन भी कैसे रहें?
याद की लेकर विरासत, नेह का हिस्सा लिखा
आँख मूँदे, जोड़ कर कर, सिर झुका कर-कर नमन
है न मन, पर नम नयन ले, दुबारा रिश्ता लिखा
१८-३-२०१६
***
निमाड़ी दोहा:
जिनी वाट मंs झाड नी, उनी वांट की छाँव.
मोह ममता लगन, को नारी छे ठाँव..
१८-३-२०१०
*





शरारों में फागुन कुछ इस तरह आता है जैसे पेंशनधारी के कगते में पेंशन, आई और गई, पता लगने के पाहिले ही लापता। वोला लेते शिशिर की मादकता प्रिय को साथ पाने की कल्पना यथार्थ होकर मन-प्राण को पुलकित कर देती है। उषा की गुनगुनी धुप दुपहरी में प्रिय सखी की तरह और आह्लाददायक लगने लगी है। ऐसे में सायकल उठाये घुमक्कड़ी करना बड़ा ही आनंददायक है। कल घर के पास वाले पोखर से सटे रास्ते पर निकल गया।




निरुद्देश्य पथ भ्रमण कर ही रहा था कि आँखे उलझ कर रह गईं। कचनार और अशोक के पंक्तिबद्ध वृक्ष मोहक फूलो से लद गए थे। मन्त्रमुग्ध सा वहीं रुक गया। कचनार और अशोक दोनो को एक साथ देखना बड़ा ही सम्मोहक अनुभव था। कचनार बर्फ के फाहे सा शीतल और अशोक अंगार सा दहकता हुआ गरम। बस देखता ही रहा। लेकिन इतने मनोहारी पुष्प की तुलना अंगार से मुझे उचित नही लगी। कहीं अन्याय तो नही कर रहा हूँ? लेकिन फिर कुछ याद आता है। राम चरित मानस के पन्ने खुल जाते हैं। विरहाकुल जानकी अशोक वाटिका में कह रही हैं।
नूतन किसलय अनल सामना।
देहि अगिनि जनि करहि निदाना।

थोड़ा संतोष होता है। उपमा सही है। अशोक को निहारने लगता हूँ। इस मनोहारी वृक्ष को देखकर आभास होने लगता है कि बस अब धरित्री पर बसंत अपनी संपूर्ण सैन्यसज्जा के साथ उतरने ही वाला है। फागुन के आने की आहट आने लगी है। फगुनाहट तन और मन दोनों में उल्लास भरने लगी है। किंवदन्तियों के अनुसार फागुन माह में ही चंद्रमा का जन्म भी हुआ था। कदाचित यह सच भी होगा। असंख्य कवियों की कल्पनाओ में उपमान का गौरव प्राप्त शशि का जन्म इस मादक ऋतु में न हुआ होगा तो कब होगा? सोचता हूँ इसे मादक ऋतु न लिख कर मनभावन ऋतु लिखूँ परंतु लेखनी साथ नही देती। साथ देगी भी कैसे? मन के कैनवस पर चित्र उभरता है। वृक्ष नव पल्लवों से भर गए हैं। लताएँ पुष्पों के भार से झुक गयी हैं। तितलियाँ टोलियाँ बना कर सैर को निकल पड़ी हैं। आम रसीली मंजरियों से लद गए हैं और पलाश में आग लग गयी है। ऐसे में इसे मादक लिखना ही सत्य होगा। कुछ और लिखना सरासर झूठ ही होगा। कुछ गलत तो नही कह रहा हूँ। क्या यह ऋतु प्रेमी हृदयों को आकुल नही कर देती है? क्या पुरातन काल से अनगिनत हृदय अनंग के शरों से इसी ऋतु में बींधे न गये होंगे? हाँ, यही सत्य है और कदाचित यही कारण रहा होगा कि बसंत को ही मन्मथ के सहचर होने का गौरव प्राप्त है।

भारतीय परंपरा ने बसंत का आगमन बसंत पंचमी से माना है। प्राचीन भारत में बसंतोत्सव इसी दिन से आरंभ हो कर पूरे माह मनाया जाता था। पहला गुलाल भी इसी दिन उड़ाया जाता है। यहीं से फाल्गुनी या फिर प्रचलित शब्दावली में कहें तो होली का आरंभ भी हो जाता है। लेकिन कभी-कभी कल्पना के पंखों पर उड़ान भरता हूँ। मन आकाश सा विस्तृत हो जाता है। विचार मेघ बन कर तैरने लगते हैं। हो न हो यह रंग उड़ाने की प्रथा हमने प्रकृति से ही सीखी होगी। बसन्त रंगों की बौछार करता हुआ ही तो आता है। चारों ओर रंगों का मेला-सा लग जाता है। खेत के खेत पीली सरसों से भर जाते हैं। कंवल ताल गुलाबी माणिक्यो की तरह छिटक पड़ते हैं। नभ साफ सुथरा नील वर्णीय पुत जाता है और धरा ...हरी कम धानी अधिक दिखाई देती है। विचार और भी आते हैं।

प्राचीन काल में यह उत्सव पूरे माह मनाया जाता था और कुछ मान्यताओ के अनुसार तो दो माह अर्थात चैत्र तक मनाया जाता था। पूरे फाल्गुन और चैत्र तक चलने वाला बसंतोत्सव आजकल के परिदृश्य में देखें तो वस्तुतः फाल्गुन पूर्णिमा पर धूलिवंदन तक ही सिमट कर रह गया है। ऐसा क्यों हुआ होगा? कदाचित इस पर शोध किया जा सकता है। किन्तु फिर सोचने लगता हूँ। सोचता हूँ समय चक्र में परंपराओं और उनसे जुड़े उत्सव भले ही बनते बिगड़ते रहें किन्तु उसमें निहित आत्मा सदैव दैदीप्यमान रहती है। यह मानव मन के उल्लास से जन्मा पर्व है। इसका यही उल्लास, इसकी यही आत्मा कदाचित होली में संरक्षित रह गयी है। होली हँसी ठिठोली का पर्व है। शत्रु को भी मित्र बना लेने का अवसर है। जीवन सबसे सुंदर स्वरूप में शायद स्वयं को इसी पर्व में प्रगट करता है। और रेणु जी के शब्दों में कहूँ तो

सुख से हँसना
जी भर गाना
मस्ती से मन को बहलाना
पर्व हो गया आज-
साजन! होली आई है!

विचारो की रेलगाड़ी रुकने का नाम ही नही ले रही। इंजन जलती हुई होलिका के पास आकर रुक जाता है। बचपन में देखा करता था, माँ होली से पहले ही गोबर के उपले हीरक आकर में बनाकर सुखा लेती थी। उनमें मध्य के छेंद में रस्सी डाल माला की तरह दीवार पर लटका देती। होलिका दहन में गेंहूँ की बालियों के साथ इन्हें भी स्वाहा कर दिया जाता। होलिका दहन की उन गगन चूमती अग्नि शिखाओं को देख कर मन निष्पाप हो जाता है। लोग होलिका पूजन में रम जाते हैं। मेरा बाल मन कौतूहल से भर उठता है। एक राक्षसी की पूजा! उत्तर खोजने का प्रयास करता हूँ लेकिन माँ डाँट देती है। उस समय उत्तर नही मिला। उत्तर आज भी नही है लेकिन उत्तर खोजने का आग्रह मैं अपने प्रबुद्ध पाठको के समक्ष रखता हूँ। वैसे सोचता यह भी हूँ कि वरदान के बावजूद होलिका भस्म कैसे हो गयी।

पुराणों के अनुसार तो वरदान ऐसा कवच है कि जिसे स्वयं देने वाला भी नही काट सकता फिर चाहे वह महादेव ही क्यों न हों। इसका भी कोई समाधानकारक उत्तर तो न पा सका। लेकिन कभी कभी सोचता हूँ कि यदि पौराणिक कथाएँ जीवन और अध्यात्म का सार भर ही है तो होलिका और प्रह्लाद की कथा में कौन-सा तत्व छुपा है? कोई मर्मज्ञ वेद ज्ञाता ही इसकी मीमांसा कर सकता है। हाँ, अपनी छोटी सी बुद्धि और समझ से यदि विवेचना करुँ तो लगता है कि अच्छाई को समाप्त नही किया जा सकता। यदि कोई प्रयास करता भी है तो वह ईश्वरीय संरक्षण से मुक्त होता है। आधा अधूरा ही सही किन्तु लगता है उत्तर मिला तो है। होलिका जल कर समाप्त हो जाती है। प्रह्लाद सुरक्षित रह जाता है। प्रह्लाद जो कि आनंद है। बुराइयाँ जल कर खाक हों रही हैं। बुराइयों के नष्ट होते ही आनंद प्रगट होता है।

मन सतरंगी होने लगता है। सोचता हूँ शीघ्र ही अबीर गुलाल उड़ने लगेंगे। ढोलक और मंजीरे की थाप पर फाग और चैती के राग छिड़ जाएँगे। लोटों और गिलासों में ठंडई नापी जाने लगेगी। मन पुलकित हो रहा है। होली पास आ रही है। रसखान की पंक्तियाँ मानस पटल पर उभरने लगी हैं- फागुन लाग्यो जब से तब ते ब्रजमंडल में धूम मच्यो है। मैं अब भी कचनार और अशोक को निहार रहा हूँ। कचनार इठलाने लगा है। अशोक खिलखिला रहा है। मदनदेव ने प्रत्यंचा खींच ली है। अति शीघ्र धरती पर उत्सव प्रारम्भ होने वाला है।




भारत की लोक सम्पदा: फागुन की फागें
.
भारत विविधवर्णी लोक संस्कृति से संपन्न- समृद्ध परम्पराओं का देश है। इन परम्पराओं में से एक लोकगीतों की है। ऋतु परिवर्तन पर उत्सवधर्मी भारतीय जन गायन-वादन और नर्तन की त्रिवेणी प्रवाहित कर आनंदित होते हैं। फागुन वर्षांत तथा चैत्र वर्षारम्भ के साथ-साथ फसलों के पकने के समय के सूचक भी हैं। दक्षिणायनी सूर्य जैसे ही मकर राशि में प्रवेश कर उत्तरायणी होते हैं इस महाद्वीप में दिन की लम्बाई और तापमान दोनों की वृद्धि होने की लोकमान्यता है। सूर्य पूजन, गुड़-तिल से निर्मित पक्वान्नों का सेवन और पतंगबाजी के माध्यम से गगनचुम्बी लोकांनंद की अभिव्यक्ति सर्वत्र देख जा सकती है।मकर संक्रांति, खिचड़ी, बैसाखी, पोंगल आदि विविध नामों से यह लोकपर्व सकल देश में मनाया जाता है।


पर्वराज होली से ही मध्योत्तर भारत में फागों की बयार बहने लगती है। बुंदेलखंड में फागें, बृजभूमि में नटनागर की लीलाएँ चित्रित करते रसिया और बधाई गीत, अवध में राम-सिया की जुगल जोड़ी की होली-क्रीड़ा जन सामान्य से लेकर विशिष्ट जनों तक को रसानंद में आपादमस्तक डुबा देते हैं। राम अवध से निकाकर बुंदेली माटी पर अपनी लीलाओं को विस्तार देते हुए लम्बे समय तक विचरते रहे इसलिए बुंदेली मानस उनसे एकाकार होकर हर पर्व-त्यौहार पर ही नहीं हर दिन उन्हें याद कर 'जय राम जी की' कहता है। कृष्ण का नागों से संघर्ष और पांडवों का अज्ञातवास नर्मदांचली बुन्देल भूमि पर हुआ। गौरा-बौरा तो बुंदेलखंड के अपने हैं, शिवजा, शिवात्मजा, शिवसुता, शिवप्रिया, शिव स्वेदोभवा आदि संज्ञाओं से सम्बोधित आनन्ददायिनी नर्मदा तट पर बम्बुलियों के साथ-साथ शिव-शिवा की लीलाओं से युक्त फागें गयी जाना स्वाभाविक है।


बुंदेली फागों के एकछत्र सम्राट हैं लोककवि ईसुरी। ईसुरी ने अपनी प्रेमिका 'रजउ' को अपने कृतित्व में अमर कर दिया। ईसुरी ने फागों की एक विशिष्ट शैली 'चौघड़िया फाग' को जन्म दिया। हम अपनी फाग चर्चा चौघड़िया फागों से ही आरम्भ करते हैं। ईसुरी ने अपनी प्राकृत प्रतिभा से ग्रामीण मानव मन के उच्छ्वासों को सुर-ताल के साथ समन्वित कर उपेक्षित और अनचीन्ही लोक भावनाओं को इन फागों में पिरोया है। रसराज श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्ष इन फागों में अद्भुत माधुर्य के साथ वर्णित हैं। सद्यस्नाता युवती की केशराशि पर मुग्ध ईसुरी गा उठते हैं:


ईसुरी राधा जी के कानों में झूल रहे तरकुला को उन दो तारों की तरह बताते हैं जो राधा जी के मुख चन्द्र के सौंदर्य के आगे फीके फड़ गए हैं:
कानन डुलें राधिका जी के, लगें तरकुला नीके
आनंदकंद चंद के ऊपर, तो तारागण फीके


ईसुरी की आराध्या राधिका जी सुंदरी होने के साथ-साथ दीनों-दुखियों के दुखहर्ता भी हैं:
मुय बल रात राधिका जी को, करें आसरा की कौ
दीनदयाल दीन दुःख देखन, जिनको मुख है नीकौ
पटियाँ कौन सुगर ने पारी, लगी देहतन प्यारी
रंचक घटी-बड़ी है नैयाँ, साँसे कैसी ढारी
तन रईं आन सीस के ऊपर, श्याम घटा सी कारी
'ईसुर' प्राण खान जे पटियाँ, जब सें तकी उघारी


कवि पूछता है कि नायिका की मोहक चोटियाँ किस सुघड़ ने बनायी हैं? चोटियाँ जरा भी छोटी-बड़ी नहीं हैं और आती-जाती साँसों की तरह हिल-डुल रहीं हैं। वे नायिका के शीश के ऊपर श्यामल मेघों की तरह छाईं हैं। ईसुरी ने जब से इस अनावृत्त केशराशि की सुनदरता को देखा है उनकी जान निकली जा रही है।
ईसुर की नायिका नैनों से तलवार चलाती है:
दोई नैनन की तरवारें, प्यारी फिरें उबारें
अलेपान गुजरान सिरोही, सुलेमान झख मारें
ऐंच बाण म्यान घूंघट की, दे काजर की धारें
'ईसुर' श्याम बरकते रहियो, अँधियारे उजियारे


तलवार का वार तो निकट से ही किया जा सकता है नायक दूर हो तो क्या किया जाए? क्या नायिका उसे यूँ ही जाने देगी? यह तो हो ही नहीं सकता। नायिका निगाहों को बरछी से भी अधिक पैने तीर बनाकर नायक का ह्रदय भेदती है:
छूटे नैन-बाण इन खोरन, तिरछी भौंह मरोरन
नोंकदार बरछी से पैंने, चलत करेजे फोरन


नायक बेचारा बचता फिर रहा है पर नायिका उसे जाने देने के मूड में नहीं है। तलवार और तीर के बाद वह अपनी कातिल निगाहों को पिस्तौल बना लेती है:
अँखियाँ पिस्तौलें सी करके, मारन चात समर के
गोली बाज दरद की दारू, गज कर देत नज़र के


इतने पर भी ईसुरी जान हथेली पर लेकर नवयौवना नायिका का गुबखान करते नहीं अघाते:
जुबना कड़ आये कर गलियाँ, बेला कैसी कलियाँ
ना हम देखें जमत जमीं में, ना माली की बगियाँ
सोने कैसे तबक चढ़े हैं, बरछी कैसी भलियाँ
'ईसुर' हाथ सँभारे धरियो फुट न जावें गदियाँ


लोक ईसुरी की फाग-रचना के मूल में उनकी प्रेमिका रजऊ को मानती है। रजऊ ने जिस दिन गारो के साथ गले में काली काँच की गुरियों की लड़ियों से बने ४ छूँटा और बिचौली काँच के मोतियों का तिदाने जैसा आभूषण और चोली पहिनी, उसके रूप को देखकर दीवाना होकर हार झूलने लगा। ईसुरी कहते हैं कि रजऊ के सौंदर्य पर मुग्ध हुए बिना कोई नहीं रह सकता।
जियना रजऊ ने पैनो गारो, हरनी जिया बिरानो
छूँटा चार बिचौली पैंरे, भरे फिरे गरदानो
जुबनन ऊपर चोली पैरें, लटके हार दिवानो
'ईसुर' कान बटकने नइयाँ, देख लेव चह ज्वानो


ईसुरी को रजऊ की हेरन (चितवन) और हँसन (हँसी) नहीं भूलती। विशाल यौवन, मतवाली चाल, इकहरी पतली कमर, बाण की तरह तानी भौंह, तिरछी नज़र भुलाये नहीं भूलती। वे नज़र के बाण से मरने तक को तैयार हैं, इसी बहाने रजऊ एक बार उनकी ओर देख तो ले। ऐसा समर्पण ईसुरी के अलावा और कौन कर सकता है?
हमख़ाँ बिसरत नहीं बिसारी, हेरन-हँसन तुमारी
जुबन विशाल चाल मतवारी, पतरी कमर इकारी
भौंह कमान बान से तानें, नज़र तिरीछी मारी
'ईसुर' कान हमारी कोदी, तनक हरे लो प्यारी


ईसुरी के लिये रजऊ ही सर्वस्व है। उनका जीवन-मरण सब कुछ रजऊ ही है। वे प्रभु-स्मरण की ही तरह रजऊ का नाम जपते हुए मरने की कामना करते हैं, इसलिए कुछ विद्वान रजऊ की सांसारिक प्रेमिका नहीं, आद्या मातृ शक्ति को उनके द्वारा दिया गया सम्बोधन मानते हैं:
जौ जी रजऊ रजऊ के लाने, का काऊ से कानें
जौलों रहने रहत जिंदगी, रजऊ के हेत कमाने
पैलां भोजन करैं रजौआ, पाछूं के मोय खाने
रजऊ रजऊ कौ नाम ईसुरी, लेत-लेत मर जाने


ईसुरी रचित सहस्त्रों फागें चार कड़ियों (पंक्तियों) में बँधी होने के कारन चौकड़िया फागें कही जाती हैं। इनमें सौंदर्य को पाने के साथ-साथ पूजने और उसके प्रति मन-प्राण से समर्पित होने के आध्यात्मजनित भावों की सलिला प्रवाहित है।


रचना विधान:
ये फागें ४ पंक्तियों में निबद्ध हैं। हर पंक्ति में २ चरण हैं। विषम चरण (१, ३, ५, ७ ) में १६ तथा सम चरण (२, ४, ६, ८) में १२ मात्राएँ हैं। चरणांत में प्रायः गुरु मात्राएँ हैं किन्तु कहीं-कहीं २ लघु मात्राएँ भी मिलती हैं। ये फागें छंद प्रभाकर के अनुसार महाभागवत जातीय नरेंद्र छंद में निबद्ध हैं। इस छंद में खड़ी हिंदी में रचनाएँ मेरे पढ़ने में अब तक नहीं आयी हैं। ईसुरी की एक फाग का खड़ी हिंदी में रूपांतरण देखिए:


किस चतुरा ने छोटी गूँथी, लगतीं बेहद प्यारी
किंचित छोटी-बड़ी न उठ-गिर, रहीं सांस सम न्यारी
मुकुट समान शीश पर शोभित, कृष्ण मेघ सी कारी
लिये ले रही जान केश-छवि, जब से दिखी उघारी
नरेंद्र छंद में एक चतुष्पदी देखिए:
बात बनाई किसने कैसी, कौन निभाये वादे?
सब सच समझ रही है जनता, कहाँ फुदकते प्यादे?
राजा कौन? वज़ीर कौन?, किसके बद-नेक इरादे?
जिसको चाहे 'सलिल' जिता, मत चाहे उसे हरा दे








होली २०२३

जोगी रा सा रा रा रा रा

चौपाई पर रीझकर, करे हाइकू ब्याह 

सत्रह इंची वर भरे, चौंसठ इंची आह 

जोगी रा सा रा रा रा रा

गीत फ़िदा हो ग़ज़ल पर, कर बैठा है प्यार  

रुबाई है नज़्म सँग, लिव इन में बेज़ार 

जवां कबीरा भा गया, हसीं फाग को आज 

राखी का धागा लिए, दौड़ी तज सब काज 

जोगी रा सा रा रा रा रा 

मिलन-विरह श्रृंगार का, देखा दारुण रंग

सर शहीद का ले प्रिया, खेल संयम जंग 

आँख से बहे पनाला आ 

बरगद बब्बा पर रही, नीम मुई रंग डाल 

 कहे ससुर देवर लगें, फागुन करे कमाल 

जोगी रा सा रा रा रा रा 

संसद में घुस गए हैं कैसे कैसे साँड़

निज दल को दल रहे हैं, तोड़ रहे हैं बाड़

जोगी रा सा रा रा रा रा

होते पाँव दिमाग के, जा संसद में बैठ

वेतन-भत्ते बढ़ाकर, क्यों न बनता पैठ

जोगी रा सा रा रा रा रा

दल खूँटा सांसद पड़ा, करे जुगाली मौन

खली-चुनी की फ़िक्र है, जनहित सोचे कौन

जोगी रा सा रा रा रा रा

बतकहाव कर रहे हैं, मंत्री जी बिन बात

हाँ में हाँ करते चतुर, बाकी खाते लात

जोगी रा सा रा रा रा रा

चखना काजू देखकर, चमक गए हैं गाल

अंगूरी ले नाचते, नेता करें धमाल

दोहे सलिला 

जोगी रा सा रा रा रा रा

सभी एक से एक हैं, अधिक धार्मिक नेक

राधा-कुर्सी अब्याही, चाह रहा हर एक

जोगी रा सा रा रा रा रा

सीता-निष्ठा को दिया, सबने जंगल भेज

शूर्पणखा सत्ता मिली, सजी तुरत ही सेज

जोगी रा सा रा रा रा रा

स्वार्थ सिद्ध जो कर सका, वही हुआ सिद्धार्थ

जन सेवार्थ न जी कभी, साध निजी सर्वार्थ

जोगी रा सा रा रा रा रा

विधा विधायक सीख लें, जुमलेबाजी ख़ास

काम नहीं वादा करो, खूब बँधाओ आस

जोगी रा सा रा रा रा रा

चट्टे-बट्टे एक ही, थैली के हैं आप

लोकनीति को भूलकर, बने देश को शाप

जोगी रा सा रा रा रा रा

 

 

शुक्रवार, 17 मार्च 2023

सॉनेट, शारदा, गीत,गीतिका,मुक्तिका,सरसी,छंद,

सॉनेट
शारद

शारद! उठो बलैया ले लौं।
भोर भई फिर मत सो जइयो।
आँखें खोल तनक मुसकइयो।।
झटपट आजा मूँ धुलवा दौं।।

टेर रई तो खौं गौरैया।
हेर गिलहरी चुगे न दाना।
रिसा न मोखों कर न बहाना।।!
ठुमक ठुमक नच ताजा थैया।।

शारद! दद्दू गरम पिला दौं।
पाटी पूजन कर अच्छर लिख।
झटपट मीठे सहद चटा दौं।।

याद दिला रई काहे नानी?
तैं ईसुर सौं भौत सयानी।
आ जा कैंया मोर भवानी!
१७-३-२०२३
•••
गीत

हम राही बलिदानों के हैं, वे मुस्कानों के
हम चाहक हैं मतिमानों के, वे नादानों के

हम हैं पथिक एक ही पथ के
हम चाबुक, वे ध्वज हैं रथ के
सात वचन हम, वे नग नथ के
हम ध्रुव तारे के दर्शक, वे नाचों-गानों के
हम राही बलिदानों के हैं, वे मुस्कानों के

एक थैली के चट्टे-बट्टे
बोल मधुर अरु कड़वे-खट्टे
हम कृश, वे सब हट्टे-कट्टे
हम थापें टिमकी-मादल के, वे स्वर प्यानो के
हम राही बलिदानों के हैं, वे मुस्कानों के

हम हैं सत्-शिव के आराधक
वे बस सुंदरता के चाहक
हम शीतल, वे मारक-दाहक
वे महलों के मृत, जीवित हम जीव मसानों के
हम राही बलिदानों के हैं, वे मुस्कानों के

कह जुमले वे वोट बटोरें
हम धोखे खा खींस निपोरें
वे मेवे, हम बेरी झोरें
वे चुभते तानों के रसिया, हम सुर-तानों के
हम राही बलिदानों के हैं, वे मुस्कानों के।

वंचित-वंचक संबंधी हम
वे स्वतंत्र हैं, प्रतिबंधी हम
जनम-जनम को अनुबंधी हम
हम राही बलिदानों के हैं, वे मुस्कानों के।
१७-३-२०२२
•••
सृजन सलिला
भले ही आपकी फितरत रही मक्कार हो जाना
हमारी चाहतों ने आपको सरकार ही माना
किये थे वायदे जो आपने हमसे भुलाए हैं
हसीनों की अदा है, बोल देना और बिसराना
करेगा क्या ये कोरोना कभी मिल जाए तो उस पे
चलाना तीर नज़रों के मिटा देना़; न घबराना
अदा-ए-पाक की सौं; देख तुमको मन मचलता है
दबाकर जीभ होंठों में, दिखा ठेंगा न इठलाना
बुलाओगे तो आएँगे कफ़न को तोड़कर भी हम
बशर्ते बुलाकर हमको न वादे से मुकर जाना
तुम्हारे थे; तुम्हारे हैं; तुम्हारे रहेंगे जानम
चले आओ गुँजा दें फ़िज़ाओं में फिर से दोगाना
कहीं सरकार बनती है, कहीं सरकार गिरती है
मेरी सरकार! गिर सकती नहीं;
मैंने यही जाना
१७-३-२०२०
***

रसानंद दे छंद नर्मदा २१ १७ मार्च २०१६
दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला,गीतिका,घनाक्षरी, बरवै तथात्रिभंगी छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए सरसी से।
सरसी में है सरसता
*
सरसी में है सरसता, लिखकर देखें आप।
कवि मन की अनुभूतियाँ, 'सलिल' सकें जग-व्याप।।
*
'सरसी' छंद लगे अति सुंदर, नाम 'सुमंदर' धीर।
नाक्षत्रिक मात्रा सत्ताइस , उत्तम गेय 'कबीर'।।
विषम चरण प्रतिबन्ध न कोई, गुरु-लघु अंतहिं जान।
चार चरण यति सोलह-ग्यारह, 'अम्बर' देते मान।।
-अंबरीश श्रीवास्तव
सरसी एक सत्ताईस मात्रिक सम छंद है जिसे हरिपद, कबीर व समुन्दर भी कहा जाता है। सरसी में १६-११ पर यति तथा पंक्तयांत गुरु लघु का विधान है। सूरदास, तुलसीदास, नंददास, मीरांबाई, केशवदास आदि ने सरसी छंद का कुशलता प्रयोग किया है। विष्णुपद तथा सार छंदों के साथ सरसी की निकटता है। भानु के अनुसार होली के अवसर पर कबीर के बानी की बानी के उलटे अर्थ वाले जो कबेर कहे जाते हैं, वे प्राय: इसी शैली में होते है। सरसी में लघु-गुरु की संख्या या क्रम बदलने के साथ लय भी बदल जाती है।
उदाहरण-
०१. अजौ न कछू नसान्यो मूरख, कह्यो हमारी मानि।१
०२. सुनु कपि अपने प्रान को पहरो, कब लगि देति रहौ?३
०३. वे अति चपल चल्यो चाहत है, करत न कछू विचार।४
०४. इत राधिका सहित चन्द्रावली, ललिता घोष अपार।५
०५. विषय बारि मन मीन भिन्न नहि, होत कबहुँ पल एक।६
'छंद क्षीरधि' के अनुसार सरसी के दो प्रकार मात्रिक तथा वर्णिक हैं।
क. सरसी छंद (मात्रिक)
सोलह-ग्यारह यति रखें, गुरु-लघु से पद अंत।
घुल-मिल रहए भाव-लय, जैसे कांता- कंत।।
मात्रिक सरसी छंद के दो पदों में सोलह-ग्यारह पर यति, विषम चरणों में सोलह तथा सम चरणों में
ग्यारह मात्राएँ होती हैं। पदांत सम तुकांत तथा गुरु लघु मात्राओं से युक्त होता है।
उदाहरण:
-ॐप्रकाश बरसैंया 'ओमकार'
०६. काली है यह रात रो रही, विकल वियोगिनि आज।
मैं भी पिय से दूर रो रही, आज सुहाय न साज।।
०७.आप चले रोती मैं, ये भी, विवश रात पछतात।
लेते जाओ संग सौत है, ये पावस की रात।।
संजीव वर्मा 'सलिल'
०८. पिता गए सुरलोक विकल हम, नित्य कर रहे याद।
सकें विरासत को सम्हाल हम, तात! यही फरियाद।।
०९. नव स्वप्नों के बीज बो रही, नव पीढी रह मौन।
नेह नर्मदा का बतलाओ, रोक सका पथ कौन?
१०. छंद ललित रमणीय सरस हैं, करो न इनका त्याग।
जान सीख रच आनंदित हों, हो नित नव अनुराग।।
दोहा की तरह मात्रिक सरसी छंद के भी लघु-गुरु मात्राओं की विविधता के आधार पर विविध प्रकार हो
सकते हैं किन्तु मुझे किसी ग्रन्थ में सरसी छंद के प्रकार नहीं मिले।
ख. वर्णिक सरसी छंद:
सरसी वर्णिक छंद के दो पदों में ११ तथा १० वर्णों के विषम तथा सम चरण होते हैं। वर्णिक छंदों में हर वर्ण को एक गिना जाता है. लघु-गुरु मात्राओं की गणना वर्णिक छंद में नहीं की जाती।
उदाहरण:
-ॐप्रकाश बरसैंया 'ओमकार'
११. धनु दृग-भौंह खिंच रही, प्रिय देख बना उतावला।
अब मत रूठ के शर चला,अब होश उड़ा न ताव ला।
१२. प्रिय! मदहोश है प्रियतमा, अब और बना न बावला।
हँस प्रिय, साँवला नत हुआ, मन हो न तना, सुचाव ला।
संजीव वर्मा 'सलिल'
१३. अफसर भरते जेब निज, जनप्रतिनिधि सब चोर।
जनता बेबस सिसक रही, दस दिश तम घनघोर।।
१४. 'सलिल' न तेरा कोई सगा है, और न कोई गैर यहाँ है।
मुड़कर देख न संकट में तू, तम में साया बोल कहाँ है?
१५. चलता चल मत थकना रे, पथ हरदम पग चूमे।
गिरि से लड़ मत झुकना रे, 'सलिल' लहर संग झूमे।।
अरुण कुमार निगम
चाक निरंतर रहे घूमता , कौन बनाता देह।
क्षणभंगुर होती है रचना , इससे कैसा नेह।।
जीवित करने भरता इसमें , अपना नन्हा भाग।
परम पिता का यही अंश है , कर इससे अनुराग।।
हरपल कितने पात्र बन रहे, अजर-अमर है कौन।
कोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है , उत्तर लेकिन मौन।।
एक बुलबुला बहते जल का , समझाता है यार ।
छल-प्रपंच से बचकर रहना, जीवन के दिन चार।।
नवीन चतुर्वेदी सरसी छंद
१७. बातों की परवा क्या करना, बातें करते लोग।
बात-कर्म-सिद्धांत-चलन का, नदी नाव संजोग।।
कर्म प्रधान सभी ने बोला, यही जगत का मर्म।
काम बड़ा ना छोटा होता, करिए कभी न शर्म।।
१८. वक़्त दिखाए राह उसी पर, चलता है इंसान।
मिले वक़्त से जो जैसा भी , प्रतिफल वही महान।।
मुँह से कुछ भी कहें, समय को - देते सब सम्मान।
बिना समय की अनुमति, मानव, कर न सके उत्थान।।
राजेश झा 'मृदु'
खुरच शीत को फागुन आया, फूले सहजन फूल।
छोड़ मसानी चादर सूरज, चहका हो अनुकूल।।
गट्ठर बांधे हरियाली ने, सेंके कितने नैन।
संतूरी संदेश समध का, सुन समधिन बेचैन।।
कुंभ-मीन में रहें सदाशय, तेज पुंज व्‍योमेश।
मस्‍त मगन हो खेलें होरी, भोला मन रामेश।।
हर डाली पर कूक रही है, रमण-चमन की बात।
पंख चुराए चुपके-चुपके, भागी सीली रात।
बौराई है अमिया फिर से, मौका पा माकूल।
खा *चासी की ठोकर पतझड़, फांक रही है धूल।।
संदीप कुमार पटेल
१६.सुन्दर से अति सुन्दर सरसी, छंद सुमंदर नाम।
मात्रा धारे ये सत्ताइस, उत्तम लय अभिराम।।
संजीव वर्मा 'सलिल'
छंद:- सरसी मिलिंदपाद छंद, विधान:-१६-११ मात्रा पर यति, चरणान्त:-गुरू लघु
*
दिग्दिगंत-अंबर पर छाया, नील तिमिर घनघोर।
निशा झील में उतर नहाये, यौवन-रूप अँजोर।।
चुपके-चुपके चाँद निहारे, बिम्ब खोलता पोल।
निशा उठा पतवार, भगाये, नौका में भूडोल।।
'सलिल' लहरियों में अवगाहे, निशा लगाये आग।
कुढ़ चंदा दिलजला जला है, साक्षी उसके दाग।।
घटती-बढ़ती मोह-वासना, जैसे शशि भी नित्य।
'सलिल' निशा सँग-साथ साधते, राग-विराग अनित्य।।
संदर्भ- १. छन्दोर्णव, पृ.३२, २. छन्द प्रभाकर, पृ. ६६, ३. हिन्दी साहित्य कोश, भाग १, प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी।संकलन: भारतकोश पुस्तकालय।संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा।पृष्ठ संख्या: ७३५। ४. सूरसागर, सभा संस्करण, पद ५३६, ५. सूरसागर, वैंकटेश्वर प्रेस, पृ. ४४५, ६. वि. प., पद १०२
***
मुक्तिका-
मापनी: 1222 - 1222 - 122
*
हजारों रंग हैं फागुन मनाओ
भुला शिकवे कबीरा आज गाओ
*
तुम्हें सत्ता सियासत हो मुबारक
हमें सीमा बुलाती, शीश लाओ
*
न खेलो खेल मजहब का घिनौना
करो पूजा-इबादत सर झुकाओ
*
जुबां से मौन ज्यादा बोलता है
न लफ्जों को बिना मकसद लुटाओ
*
नरमदा नेह की सूखे न यारों
सफाई हो,सभी को साथ पाओ
*
कहो जय हिन्द, भारत माँ की जय-जय
फखर से सिर 'सलिल' अपना उठाओ
*
दिलों में दूरियाँ होने न देना
गले मिल, बाँह में लें बांह आओ
***
[बहर:- बहरे-हज़ज मुसद्दस महज़ूफ। वज़्न:-1222 - 1222 - 122 अरकानमफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन काफ़िया-आ रदीफ़- ओ फ़िल्मी गीत अकेले हैं चले आओ जहाँ हो। मिसरा ये गूंगा गुनगुनाना जानता है।]
***
मुक्तिका
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २१२
*
आज संसद में पगड़ियाँ, फिर उछालीं आपने
शब्द-जालों में मछलियाँ, हँस फँसा लीं आपने
आप तो पढ़ने गये थे, अब सियासत कर रहे
लोभ सत्ता पद कुरसियाँ, मन बसा लीं आपने
जिसे जनता ने चुना, उसके विरोधी भी चुने
दूरियाँ अपने दरमियाँ, अब बना लीं आपने
देश की रक्षा करें जो, जान देकर रात-दिन
वक्ष पर उनके बरछियाँ, क्यों चला लीं आपने?
पूँछ कुत्ते की न सीधी, हो कभी सब जानते
व्यर्थ झोले से पुँगलियाँ, फिर निकालीं आपने
सात फेरे डाल लाये, बुढ़ापे में भूलकर
अल्पवस्त्री नव तितलियाँ मन बसा लीं आपने
***
मुक्तिका
*
फ़ागुन में फगुनाओ यारों जमकर खेलो रंग चुराकर
लोटा भर पहले अड़ेल लो ठंडाई संग भंग चुराकर
हाथ लगाया है शासन ने, घपले-घोटाले होंगे ही
विश्वनाथ जी जागो-सम्हलो, भाग न जाए गंग चुराकर
बुतशिकनी से जिन्हें शिकायत रही हमेशा उनसे पूछो
मक्का में क्यों पूज रहे हैं ढाँक-मूँदकर संग चुराकर
बेढंगी हो रही सियासत, कोशिश कर तस्वीर बदल दो
नेताओं को भत्ते मत दो, देना है दो ढंग चुराकर
छीछालेदर एक-दूसरे की करने का शौक बहुत है
संसद में लेकर जाओ रे ताज़ा काऊ डंग चुराकर
१७-३-२०१६

***

गीतिका

आदमी ही भला मेरा गर करेंगे।

बदी करने से सितारे भी डरेंगे।।

बिना मतलब मदद कर दे तू किसी की

दुआ के शत फूल तुझ पर तब झरेंगे।।

कलम थामे, जो नहीं कहते हकीकत

समय से पहले ही वे बेबस मरेंगे।।

नरमदा नित वे नेह की जो नहाते हैं

बिना तारे किसी के खुद तरेंगे।।

नहीं रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते

यह सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे।।

१७-३-२०१०

***

गुरुवार, 16 मार्च 2023

श्रृंगार गीत,तुम,मुक्तिका,बाँसुरी,दोहा,यमक,

गले मिलें दोहा यमक
*
चिंता तज चिंतन करें, दोहे मोहें चित्त
बिना लड़े पल में करें, हर संकट को चित्त
*
दोहा भाषा गाय को, गहा दूध सम अर्थ
दोहा हो पाया तभी, सचमुच छंद समर्थ
*
सरिता-सविता जब मिले, दिल की दूरी पाट
पानी में आगी लगी, झुलसा सारा पाट
*
राज नीति ने जब किया, राजनीति थी साफ़
राज नीति को जब तजे, जनगण करे न माफ़
*
इह हो या पर लोक हो, करके सिर्फ न फ़िक्र
लोक नेक नीयत रखे, तब ही हो बेफ़िक्र
*
धज्जी उड़ा विधान की, सभा कर रहे व्यर्थ
भंग विधान सभा करो, करो न अर्थ-अनर्थ
*
सत्ता का सौदा करें, सौदागर मिल बाँट
तौल रहे हैं गड्डियाँ, बिना तराजू बाँट
*
किसका कितना मोल है, किसका कितना भाव
मोलभाव का दौर है, नैतिकता बेभाव
*
योगी भूले योग को, करें ठाठ से राज
हर संयोग-वियोग का, योग करें किस व्याज?
*
जनप्रतिनिधि जन के नहीं, प्रतिनिधि दल के दास
राजनीति दलदल हुई, जनता मौन-उदास
*
कब तक किसके साथ है, कौन बताये कौन?
प्रश्न न ऐसे पूछिए, जिनका उत्तर मौन
१६-३-२०२०
***
दोहा दुनिया
*
भाई-भतीजावाद के, हारे ठेकेदार
चचा-भतीजे ने किया, घर का बंटाढार
*
दुर्योधन-धृतराष्ट्र का, हुआ नया अवतार
नाव डुबाकर रो रहे, तोड़-फेंक पतवार
*
माया महाठगिनी पर, ठगी गयी इस बार
जातिवाद के दनुज सँग, मिली पटकनी यार
*
लग्न-परिश्रम की विजय, स्वार्थ-मोह की हार
अवसरवादी सियासत, डूब मरे मक्कार
*
बादल गरजे पर नहीं, बरस सके धिक्कार
जो बोया काटा वही, कौन बचावनहार?
*
नर-नरेंद्र मिल हो सके, जन से एकाकार
सर-आँखों बैठा किया, जन-जन ने सत्कार
*
जन-गण को समझें नहीं, नेतागण लाचार
सौ सुनार पर पड़ गया,भारी एक लुहार
*
गलती से सीखें सबक, बाँटें-पाएँ प्यार
देश-दीन का द्वेष तज, करें तनिक उपकार
*
दल का दलदल भुलाकर, असरदार सरदार
जनसेवा का लक्ष्य ले, बढ़े बना सरकार
१६-३-२०१८

***

श्रृंगार गीत
तुम बिन
*
तुम बिन नेह, न नाता पगता
तुम बिन जीवन सूना लगता
*
ही जाती तब दूर निकटता
जब न बाँह में हृदय धड़कता
दिपे नहीं माथे का सूरज
कंगन चुभे, न अगर खनकता
तन हो तन के भले निकट पर
मन-गोले से मन ही दगता
*
फीकी होली, ईद, दिवाली
हों न निगाहें 'सलिल' सवाली
मैं-तुम हम बनकर हर पल को
बाँटें आजीवन खुशहाली
'मावस हो या पूनम लेकिन
आँख मूँद, मन रहे न जगता
*
अपना नाता नेह-खज़ाना
कभी खिजाना, कभी लुभाना
रूठो तो लगतीं लुभावनी
मानो तो हो दिल दीवाना
अब न बनाना कोई बहाना
दिल न कहे दिलवर ही ठगता
***
मुक्तिका :
मापनी- २१२२ २१२२ २१२
*
तू न देगा, तो न क्या देगा खुदा?
है भरोसा न्याय ही देगा खुदा।
*
एक ही है अब गुज़ारिश वक़्त से
एक-दूजे से न बिछुड़ें हम खुदा।
*
मुल्क की लुटिया लुटा दें लूटकर
चाहिए ऐसे न नेता ऐ खुदा!
*
तब तिरंगे के लिये हँस मर मिटे
हाय! भारत माँ न भाती अब खुदा।
*
नौजवां चाहें न टोंके बाप-माँ
जोश में खो होश, रोएँगे खुदा।
*
औरतों को समझ-ताकत कर अता
मर्द की रहबर बनें औरत खुदा।
*
लौ दिए की काँपती चाहे रहे
आँधियों से बुझ न जाए ऐ खुदा!
***
(टीप- 'हम वफ़ा करके भी तन्हा रह गए' गीत इसी मापनी पर है.)
१६-३-२०१६

***

गीत

बजा बाँसुरी
झूम-झूम मन...
*
जंगल-जंगल
गमक रहा है.
महुआ फूला
महक रहा है.
बौराया है
आम दशहरी-
पिक कूकी, चित
चहक रहा है.
डगर-डगर पर
छाया फागुन...
*
पियराई सरसों
जवान है.
मनसिज ताने
शर-कमान है.
दिनकर छेड़े
उषा लजाई-
प्रेम-साक्षी
चुप मचान है.
बैरन पायल
करती गायन...
*
रतिपति बिन रति
कैसी दुर्गति?
कौन फ़िराये
बौरा की मति?
दूर करें विघ्नेश
विघ्न सब-
ऋतुपति की हो
हे हर! सद्गति.
गौरा माँगें वर
मन भावन...
१६-३-२०१०

***

छत्तीसगढ़ के कायस्थ सत्याग्रही

विशेष लेख 
छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता सत्याग्रह और कायस्थ सत्याग्रही
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*

                भारत के स्वतंत्रता संघर्षों (विप्लव, सशस्त्र क्रांति तथा अहिंसक सत्याग्रह आदि) में कायस्थों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही। इसका कारण कायस्थों का सर्वाधिक शिक्षित होना तथा शासन-प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होना था। नौकरीपेशा कायस्थों ने आंदोलनों के विरोध में कार्य किया तो उनके बच्चों और कृषि या व्यवसायों से जुड़े पारिवारिक सदस्यों ने आन्दोलनों में प्राण शक्ति का संचार किया। बड़ी संख्या में कायस्थ पत्रकारों गणेश शंकर विद्यार्थी जी, पन्नालाल श्रीवास्तव जी आदि ने जन जागरण के लिए कलम के जौहर दिखाए।  

                दुर्भाग्यवश कायस्थ जन आजीविका कमाने या दमन से बचने के लिए निरंतर स्थान परिवर्तित करते रहे। फलत:, उनका स्थायित्व न हो सका। पूर्वजों से कुलनाम, धन-संपत्ति, गहने-जेवर आदि ग्रहण करनेवाली नई पीढ़ी ने पूर्वजों के अवदान को याद नहीं रखा। कायस्थों को २-३ पीढ़ियों से अधिक पुरखों की जानकारी ही नहीं है तो उनके कार्य और अवदान की जानकारी या खोज कैसे हो? कायस्थों का सशक्त सामाजिक संगठन न होना, संस्थाएँ स्थापित न करना, पुस्तक आदि न लिखना, खानदान के कागजात सम्हालकर न रखना, पारस्परिक द्वेषवश स्मृति चिन्हों को नष्ट करना आदि ने वर्तमान पीढ़ी के लिए स्वतंत्रता आंदोलनों में कायस्थों के अवदान को रेखांकित करना कठिन कर दिया है। यह लेखा कायस्थ सत्याग्रहियों के अवदान को प्रमाणिकता सहित प्रस्तुत करने का नन्हा प्रयास है। यह न समझें कि केवल इतने ही कायस्थ आजादी के लिए लड़े थे। प्रस्तुत से कई गुना अधिक कायस्थ सत्याग्रहियों की जानकारी नहीं मिल सकी। 

                आप सबसे अनुरोध है कि अपने खानदान के बड़ों से जानकारी प्राप्त करें। अपने पूर्व तथा वर्तमान निवास स्थानों से जानकारी एकत्र करें। अपने जिले के कलेक्टर कार्यालय में स्वतंत्रता संग्राम शाखा, पुरातत्व संग्रहालयों, पुस्तकालयों, कहाविद्यालयों में इतिहास के प्राध्यापकों आदि से जानकारी लेकर मुझे, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, वाट्स ऐप ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com  पर भेजें ताकि मैं उन्हें पुस्तक में सम्मिलित कर सकूँ। 

                छत्तीसगढ़ अंचल की अब तक मुझे उपलब्ध जानकारी प्रस्तुत है। नई पीढ़ी की जानकारी के लिए छत्तीसगढ़ के प्रमुख नगरों में हुई आंदोलनात्मक गतिविधियों का संकेत कर दिया गया है।   

रायपुर 

                छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध बगावत का बिगुल १८५६ में नारायण सिंह जी जमींदार सोनाखान ने फूँका था।उन्हें १९ दिसंबर १९५७ को जयस्तंभ चायक रायपुर में तोपे से उड़ा दिया गया था। १८ जनवरी १९५८ को नेटिव इन्फेंट्री की तीसरी रेजीमेन्ट ने  मेजर सिडवेल की हत्या कर विद्रोह किया किंतु १७ सिपाहियों को फाँसी देकर  उसे दबा दिया गया। मार्च १९०७ को आर.एन.मुधोलकर की अध्यक्षता में हुए सम्मलेन में डॉ. हरिसिंह गौर और रविशंकर शुक्ल ने महती भूमिका निभाई। १९१० में गुण्डाधुर के नेतृत्व में हुए बस्तर विद्रोह ने वनवासी आदिवासियों में चेतना का संचार किया। १९१५ को रायपुर में एनी बेसेंट द्वारा स्थापित होम रूल लीग की शाखा स्थापित की गई। १९१९ में कॉंग्रेस द्वारा अमृतसर सम्मलेन में खिलाफत आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया। रायपुर में १७ मार्च १९२० को खिलाफत उपसमिति का गठन किया गया। २० दिसंबर १९२० को गाँधी जी के रायपुर-धमतरी-कुरुद  प्रवास के समय जिला कॉंग्रेस समिति का गठन किया गया। छोटेलाल श्रीवास्तव जी के नेतृत्व में कंडेल नहर सत्याग्रह हुआ। १९२१ में डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा राजाजी के रायपुर प्रवास का प्रभाव यह हुआ कि लोगों ने उपाधियाँ लौटा दीं, वकालत बंद कर दी, १६ पुलिस कर्मियों ने त्यागपत्र दे दिए और १९२३ के झंडा सत्याग्रह में रायपुए के सत्याग्रही जत्थे ने भाग लिया। १५ अप्रैल १९३० को रायपुर में महाकौशल राजनैतिक सम्मलेन हुआ। नमक सत्याग्रह में रविशंकर शुक्ल, सेठ गोविंददास, द्वारकाप्रसाद मिश्र, महंत लक्षमीनारायण दास तथा गयाचरण त्रिवेदीको ३ वर्ष की कैद हुई। रायपुर सुलग उठा१० जुलाई १९३० को रायपुर  कोतवाली का घेराव किया गया। रुद्री में ५००० लोगों ने जंगल सत्याग्रह में भाग लिया। १९३१-३२ ३२ में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, शराब दुकानों की पिकेटिंग, लगान बंद आदि आंदोलन हुए। नेताओं को जेल भेजने और जुर्माने लगाए जाने पर १४ वर्षीय बालक बलिराम ने वानर सेना का गठन कर आंदोलन की अलख जगाए रखी। १९३३ में गाँधी जी, १९३५ में डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा १९३६ में नेहरू जी के रायपुर प्रवासों के फलस्वरूप आई जन चेतना ने १९३७ विशाल बहुमत से डॉ. एन. बी.खरे की प्रथम कोंग्रे सर्कार के गठन की राह बना दी। १९३९ में द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों  करने के इंकार कर सर्कार ने स्तीफा दे दिया। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में २७६१ सत्याग्रहियों में से रायपुर के ४७३ सत्याग्रही रायपुर से थे। भारत छोडो आंदोलन १९४२ में ४४७ सत्याग्रही कैद किए गए। स्वाधीनता सत्याग्रहों तथा संघर्षों का सिलसिला रायपुर में देश के स्वतंत्र होने तक निरंतर चला जिसमें कायस्थ समाज ने भी अपनी समिधा निरंतर समर्पित की।        

* कुंजबिहारी लाल श्रीवास्तव जी

                कुंजबिहारी लाल श्रीवास्तव जी आत्मज गणपत्त लाल जी का जन्म १८९८ में हुआ। आपको भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लेने के कारन ३ वर्ष ९ माह कारावास भोगना पड़ा। आपका  निवास नहरपारा रायपुर में था।

* कैलाश नारायण सक्सेना जी 

                जे. एन. सक्सेना जी के पुत्र कैलाश नारायण सक्सेना जी ने भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लिया तथा १५ दिन कारावास की सज पाई। आपका निवास निवास बूढ़ापारा रायपुर में था। 

* बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव जी 

                जन्म २८ फरवरी १८८९, आत्मज गुलाब बाबू, शिक्षा १० वीं, भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में ७ माह कारावास। बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव दृढ़ता और संकल्प के प्रतीक थे। छत्तीसगढ़ के इतिहास की प्रमुख घटना कंडेल नहर सत्याग्रह के वह सूत्रधार थे। पं. सुंदरलाल शर्मा और पं. नारायणराव मेघावाले के संपर्क में आकर उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया। वर्ष 1915 में उन्होंने श्रीवास्तव पुस्तकालय की स्थापना की। यहां राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ मंगवाई जाती थी। धमतरी स्थित उनका घर स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। वह वर्ष 1918 में धमतरी तहसील राजनीतिक परिषद के प्रमुख आयोजकों में से थे। छोटेलाल श्रीवास्तव को सर्वाधिक ख्याति कंडेल नहर सत्याग्रह से मिली। अंग्रेजी सरकार के अत्याचार के खिलाफ उन्होंने किसानों को संगठित किया। अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संगठित जनशक्ति का यह पहला अभूतपूर्व प्रदर्शन था। वर्ष 1921 में स्वदेशी प्रचार के लिए उन्होंने खादी उत्पादन केंद्र की स्थापना की। वर्ष 1922 में श्यामलाल सोम के नेतृत्व में सिहावा में जंगल सत्याग्रह हुआ। बाबू साहब ने उस सत्याग्रह में भरपूर सहयोग दिया। जब वर्ष 1930 में रुद्री के नजदीक नवागांव में जंगल सत्याग्रह का निर्णय लिया गया, तब बाबू साहब की उसमें सक्रिय भूमिका रही। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में उन्हें कड़ी यातना दी गई। वर्ष 1933 में गांधीजी ने छत्तीसगढ़ दौरे में धमतरी गए। वहाँ उन्होंने छोटेलाल बाबू के नेतृत्व की प्रशंसा की। वर्ष 1937 में श्रीवास्तवजी धमतरी नगर पालिका निगम के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी बाबू साहब की सक्रिय भूमिका थी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। स्वतंत्रता संग्राम के महान तीर्थ कंडेल में 18 जुलाई 1976 को उनका देहावसान हो गया।

* ज्वाला प्रसाद श्रीवास्तव जी

                जन्म १९१८, आत्मज रामविशाल श्रीवास्तव जी के पुत्र ज्वाला प्रसाद श्रीवास्तव जी ने  शिक्षा माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की थी। उनहोंने विदेशी वस्तु बहिष्कार आंदोलन १९३२ में भाग लिया। उन्हें ३ माह कारावास की सज मिली। उनका निवास पिथौरा रायपुर में था।

श्री आनंद दास जी

                जन्म ४ अप्रैल १९१४, आत्मज - अयोध्या दास जी, शिक्षा प्राथमिक, भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में ६ माह कारावास। निवास बंगोली रायपुर।

जगदेव दास जी

                वर्ष १९१५ में जन्मे जगदेव दास जी के पिता का नाम नारायण दास था । माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त जगदेव दास जी ने वर्ष १९३२ के सविनय अवज्ञ आंदोलन में भाग लिया । आपको ६ माह के कारावास का दंड मिला था। आप रायपुर पंडरी तराई में रहते थे।

जगन्नाथ नायडू जी

                रामगुलाम नायडू जी के पुत्र जगन्नाथ नायडू का जन्म ७ नवंबर १९१९ को हुआ । माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त जगन्नाथ जी ने १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में उत्साह पूर्वक भाग लिया । आपको अंग्रेजों द्वरा ६ माह का कारावास दिया गया। आपका निवास बैरन बाजार में था।

तुलसीराम पिल्लै जी

                महासमुंद निवासी तुलसीराम पिल्लै आत्मज शिवचरण पिल्लै ने भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लिया। उन्हें ६ माह कारावास का दंड मिला।  

दयालु दास जी -

                सुंदर दास जी के पुत्र दयालु दास दृढ़ संकल्प के धनी थे। उन्होंने प्राथमिक तक शिक्षा प्राप्त की। वे राष्ट्रीय काँग्रेस दल से जुड़ गए। उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह १९१९ तथा भारत छोड़ो आंदोलन आ २ में भाग लिया। उन्हें ६ मास कारावास का दंड मिला। वे बंग ओली रायपुर में रहते थे।

दयाबाई जी

                वर्ष १९०४ में जन्मी दयाबाई अपने समय से बहुत आगे की सोच रखनेवाली नारी थीं। आपके जीवन साथी बंगओली निवासी शिवलाल जी थे। भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागी होकर आपने ६ माह जेल की सजा पाई थी।

मनोहरलाल श्रीवास्तव जी -

                श्री रघुवरदयाल श्रीवास्तव के पुत्र मनोहर का जन्म १६ सितंबर १९०८ को हुआ था। उन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की थी। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने का पुरस्कार आपको ७ माह १५ दिन के कारावास के रूप में मिला था।

शंकरलाल श्रीवास्तव जी

                लमकेनी निवासी शंकरलाल जी का जन्म १८ फरवरी १८९८ को हुआ था। उन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा पाई। देश की पुकार पर वे स्वतंत्रता अत्याग्रहों से जुड़ गए। १९३० के जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें ४ माह का कारावास मिला था।

सूरजप्रसाद सक्सेना जी

                चौबे कॉलोनी निवासी नर्मदाप्रसाद सक्सेना जी के पुत्र सूरजप्रसाद जी ने स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त की थी । उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपने व्यवसाय पर देश सेवा को वरीयता दी। भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में नेतृत्व करने के कारण आपको १ वर्ष ६ माह का सख्त कारावास दिया गया था।

दुर्ग

                वीर प्रसूता दुर्ग की माटी ने अनेक वीर सपूतों को जन्म दिया जिन्होंने स्वतंत्रता के महायज्ञ में अपनी आहुति दी थी। वर्ष १९०६ में राजनांदगाँव में शिवलाल मास्टर, शंकरराव खरे आदि ने स्वदेशी आंदोलन का श्री गणेश कर खादी का प्रचार किया। १९१५ में मध्य प्रांत और बरार प्रादेशिक संघ तथा होम रूल लीग की स्थापना से राजनैतिक चेतना में वृद्धि हुई। १९१९ में रोलेट एक्ट के विरोध में दुर्ग में ३७ दिवसीय ऐतिहासिक श्रमिक हड़ताल हुई। शिवलाल मास्टर, ठाकुर प्यारेलाल तथा रज्जूलाल को जिला बदर करने पर हुए जन विरोध के दबाब में गवर्नर के आदेश पर पॉलिटिकल एजेंट को आदेश रद्द कर माफी माँगनी पड़ी। १९२० में जलियाँवाला बाग कांड के बाद वकीलों ने वकालत छोड़ दी। १९२१ में जिला स्तरीय राजनैतिक सम्मेलन हुआ। १९२३ में झण्डा सत्याग्रह में की स्वयंसेवक सम्मिलित हुए। २६ जनवरी १९३० को दांडी यात्रा के समय सविनय अवज्ञा आंदोलन में दुर्ग ने हिस्सा लिया। इसी साल जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण रामप्रसाद देशमुख तथा साथियों को जेल हुई। १९३२ में श्रीमती लक्ष्मी बाई धर्मपत्नी श्री गुलाब चंद ने जेल जाकर महिलाओं के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया। २२ नवंबर १९३३ को गाँधी जी के आगमन पर ५०,००० नर-नारी एकत्र हुए।१९३८ में खैरागढ़ में सेवादल तथा कॉंग्रेस का गठन हुआ। १९३९ में व्यक्तिगत सत्याग्रह में सम्मिलित ५५० सत्याग्रहियों में से २२ दुर्ग से थे। वर्ष १९४१ तक सम्मिलित हुए २७६१ सत्याग्रहियों में से १०७ दुर्ग से थे। स्वतंत्रता सतयग्रहों में भंगूलाल श्रीवास्तव, रामप्रसाद देशमुख आदि के नेत्रत्व में युवकों ने कड़ा संघर्ष किया। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में जिला कचहरी तथा नगर पालिका परिषद भवन आग के हवाले कर दिए गए। स्वतंत्रता प्राप्ति पर्यंत दुर्ग ने बलिदानों की मशाल जलाए रखी।

केशवलाल गुमाश्ता जी - 

                वर्ष १९०१ में जन्मे केशव लाल गुमाश्ता जी ने बी.ए., एल-एल. बी. तक शिक्षा प्राप्त की। स्वाधीनता आंदोलन में सहभागिता को सरकार विरोधी गतिविधि करार देकर आपको १९२९ में अंग्रेज समर्थक राजनाँदगाँव स्टेट ने शिक्षक पद से निष्काषित कर दिया पर अपने अपनी राह नहीं बदली। भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में महती भूमिका निभाने के कारण ९-८-१९४२ से ७-७-१९४४ तक कारावास में रहे। आपको महाकौशल कॉंग्रेस  कमेटी जबलपुर द्वारा ताम्र पत्र से सम्मनित किया गया। 

भंगुलाल श्रीवास्तव जी - 

                कुञ्ज बिहारी लाल श्रीवास्तव जी के पुत्र भंगुलाल जी ने भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लिया। उन्हें १० माह कारावास की सजा दी गई। आप १८-४-१९४२ से १९-१०-१९४३ तक जेल में रहे। १५-८-१९७३ को आपको ताम्र पत्र से सम्मानित किया गया। आप म. प्र. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संघ के संस्थापक सदस्य तथा दुर्ग जिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संघ के अध्यक्ष रहे। 

श्री रामसहाय जी

                ग्राम मुराईटोला, बालौद निवासी रामसहाय जी आत्मज सुभाष गौड़ जी ने भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लिया।  माह कारावास का दंड दिया गया था। 

विश्वनाथ दीवान जी - 

                बेमेतरा दुर्ग निवासी हीराधर दीवान जी के पुत्र विश्वनाथ जी ने मैट्रिक तक शिक्षा पाई थी। भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में सक्रियता के लिए आपको ९ माह का कारावास भोगना पड़ा था।

राजनाँदगाँव 

                स्वतंत्रता सत्याग्रहों से सामान्य जनों को जोड़ने के लिए गाँधी जी ने स्थानीय समस्याओं के आधार पर असहयोग आंदोलन किये जाने का आह्वान किया। वर्ष १९२० में राजनाँदगाँव में बी.एन.सी. मिल के मजदूरों ने अंग्रेज प्रबधकों के विरुद्ध आंदोलन किया। निकटस्थ रियासतों छुईखदान, छुरिया, कवर्धा, खैरागढ़, बादराटोला, कौड़ीकसा आदि  में आंदोलन आरंभ हुए। १९३० में कॉंग्रेस की पहली बैठक हुई, क्रांतिकारियों के लिए पुस्तकालय स्थापित किया गया। १९३४ में प्रथम हरिजन आंदोलन हुआ। १९३८ में कांग्रेस ने 'रिस्पोंसिबल गवर्नमेंट' आंदोलन किया जिसका नेतृत्व १९३२ में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके गोवर्धनलाल वर्मा जी ने किया था। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में ९ सत्याग्रही गिरफ्तार हुए।      

डॉ.फणिभूषण दास जी -

                डोंगरगढ़ निवासी फणिभूषण दास जी आत्मज आनंद चरण दास जी का जन्म अक्टूबर १९१७ में हुआ था। उन्होंने बंगाल से फिजिशियन (एल.एम.पी.) तथा एम.बी.बी.एस. की उपाधि प्राप्त की थी। अपनी फलती-फूलती मेडिकल प्रेक्टिस छोड़कर वे भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। वे१९३० में गाँधी जी के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन में रहने के कारण मदारीपुर जेल में कारावास मिला। उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में नेतृत्व करने के लिए उन्हें मार्च १९४२ से सितंबर १९४५ तक सेंट्रल जेल में कैद रख गया था। वे नोआखली में गांधी जी के चिकित्सक थे।  

कृष्णचंद्र वर्मा जी

                गोंड़पारा बिलासपुर निवासी  रामचंद्र वर्मा जी के आत्मज कृष्णचंद्र जी का जन्म १९११ में हुआ था। उनहोंने सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वे १९३६ से हो स्वतंत्रता सत्याग्रहों में सक्रिय हो गए थे। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में उन्हें ४ माह का कारावास तथा १५० रु. का अर्थदंड दिया गया था। दुर्योगवश १९४५ में उनका निधन हो गया।   

क्रांति कुमार भारती जी -

                छत्तीसगढ़ के ख्यात पत्रकार क्रांति कुमार भारती जी का जान १८९४ में हुआ था। आप १९१९ के असहयोग आंदोलन में दिल्ली में सक्रीय भूमिका का ंनिर्वहण कर रहे थे, फलत: आपको ३० बेटों की सजा से नवाजा गया था। आपने इस पर भी उफ़ तक न की और देश की पुकार पर स्वतंत्रता के महायज्ञ में आहुति देते रहे। वर्ष १९३० में बिलासपुर आकर आपने सरकारी स्कूल तिरंगा ध्वज फहराने का पराक्रम दिखाया और गिरफ्तारी दी। १९३२ के स्वदेशी आंदोलन में आप पुन:: गिरफ्तार हुए। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने पर आपको ६ माह कारावास तथा १०० रु. अर्थदंड की सजा दी गई।  

केशव प्रसाद वर्मा जी -

                भैरव प्रसाद वर्मा जी के आत्मज केशव प्रसाद जी का जन्म १९०२ में हुआ था। आपकी शिक्षा प्राथमिक तक हुई थी। सं १९३० के जंगल सत्याग्रह में सक्रियता के लिए आपको ३ माह कारावास तथा ५० रु. अर्थ दंड दिया गया था। आप का निवास सुभाष नगर बिलासपुर में था। 

कैलाश चंद्र वर्मा - 

                १४ जुलाई १९०९ को जन्मे कैलाश चंद्र जी के पिता, गणेश प्रसाद जी वर्मा के पुत्र थे। आपने मैट्रिक तक शिक्षा पाई थी। १९३० के स्वतंत्रता सत्याग्रह में आपने सक्रिय भूमिका निभाई थी। १९३२ में विदेशी वस्तु बहिष्कार आंदोलन में भागीदारी के लिए आपको १५ दिन कारावास तथा ७५ रु. अर्थदंड दिया गया था। 

जुगलकिशोर जी - 

                लक्ष्मण प्रसाद जी के पुत्र जुगलकिशोर जी ने १९३० के विदेश वस्तु बहिष्कार आंदोलन को सक्रिय रहकर सफल बनाया। फलत: आपको ३ माह का कारावास तथा २० रु. का अर्थदंड दिया गया। 

यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव जी -

                हरिचरण लाल जी के सुपुत्र यदुनंदन जी का जन्म १८९८ में हुआ था। आप १९२० के स्वतंत्रता सत्यग्रह में सक्रिय रहे। १९३१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में नेतृत्व करने पर आपको १ वर्ष कारावास तथा १०० रु. का अर्थदण्ड दिया गया। आप राष्ट्रवादी साप्ताहिक के संपादक तथा छत्तीसगढ़ साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। अनेक पुस्तकों के रचयिता यदुनंदन जी का निधन १५ मार्च १९७० को हुआ। 

राजकिशोर वर्मा जी -

                राजेंद्र नगर बिलासपुर निवासी मोतीलाल वर्मा जी के सुपुत्र राजकिशोर जी (वर्ष १९०८ में जन्म) ने बी.ए., एल-एल. बी. तक शिक्षा पाई। आप १९३६ में स्वतंत्रता सत्याग्रह में सक्रिय  रहे। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में सक्रिय भागीदारी के लिए आपको ३ माह का कारावास मिला। कालांतर में आप जिला कॉंग्रेस के मंत्री पद पर भी रहे।

डॉ. रामचरण राय जी  - 

                बिलासपुर के प्रतिष्ठित नागरिक हरिवंश राय जी के कुलदीपक रामचरण जी का जन्म १८९७ में हुआ था। आपने एम्.बी.बी.एस. की उपाधि प्राप्त की थी। चिकित्सक के रूप में उज्जवल भविष्य के बावजूद आप  १९३३ से स्वतंत्रता सत्याग्रह में सक्रिय भूमिका निभाने लगे थे। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आपने प्रथम गिरफ्तारी दी। आपको ४ माह का कारावास तथा १०० रु. अर्थदंड प्राप्त हुआ था। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में नेतृत्व करने पर आपको १३ माह का कारावास दिया गया। स्वतंत्रता के पश्चात् आप बिलासपुर नगर पालिका व जिला काउन्सिल के सदस्य रहे। सागर, नागपुर तथा रायपुर विश्वविद्यालयों में भी आपने सदस्य के रूप में अपनी कार्य कुशलता की छाप छोड़ी। अविभाजित मध्य प्रदेश में आप कैबिनेट मंत्री (स्वास्थ्य विभाग) भी रहे। आपका निवास मसानगंज, सी. एम. डी. कॉलेज चौक के निकट था। आपकी बड़ी पुत्रवधु श्रीमती इंदिरा राय हिंदी की प्रसिद्द कहानीकार-उपन्यासकार रहीं। 

डॉ. विष्णुकांत वर्मा जी - 

                आपका जन्म ११ अक्टूबर १९२२ को जबलपुर में हुआ था। आपके पीर राधिका प्रसाद वर्मा जी तथा माताजी शकुंतला वर्मा जी भी स्वतंत्रता संग्राम व समाज सुधार कार्यों में सक्रिय रहे थे। आपने १९४२ में भारत छोड़ो  आंदोलन में जबलपुर में भाग लिया था। इस कारण आपको एक वर्ष के लिए कॉलेज से निष्कासन का दंड मिला था। आपके बाएँ पैर की पिंडली  में अंग्रेज पुलिस कर्मी द्वारा चलाई गई एक गोली भी लगी थी। तत्पश्चात आपने एम.एससी। (गणित), एल-एल.बी., पी-एच. डी. (लखनऊ विश्वविद्यालय) की उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। वर्ष १९६०-६३ की अवधि में आप फर्ग्युसन कॉलेज पुणे में एप्लाइड गणित के प्राध्यापक रहे। आप शसकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय जबलपुर व बिलासपुर में प्राध्यापक व प्राचार्य  रहे। विश्व की प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं में आपके अनेक शोध पत्र प्रकाशित हुए। आप कायस्थ मनीषा के श्रेष्ठ प्रतिनिधि थे। सेवा निवृत्ति के पश्चात् आपने बिलासपुर  में वैदिक कॉन्वेंट स्कूल की स्थापना की थी। आपके द्वारा लिखित पुस्तक 'वैदिक सृष्टि उत्पत्ति रहस्य' (२ भाग) में वैदिक रसायन शास्त्र, नाभिकीय विज्ञान, महा विस्फोट तथा ग्रहोत्पात्ति की गणिताधारित तर्क सम्मत व्याख्या की गयी है। 'चरम सत्य की खोज' में भारतीय दर्शन के गूढ़ सिद्धांतों की नवीनतम तात्विक मीमांसा की गई है। 'ऋग्वैदिक आधात्म विद्या (२ भाग) में  सादा जीवन उच्च विचार के सूत्र को आपने जीवन में जीकर दिखाया। 

श्यामानंद वर्मा जी -  

                सुभाष नगर बिलासपुर निवासी नारायण प्रसाद वर्मा जी के ज्येष्ठ चिरंजीव श्यामनन्द का जन १९१९ में हुआ था. अपने बी.ए., एल-एल,बी. की शिक्षा प्राप्त कर वकालत की। वर्ष १९३७ से स्वतंत्रता सत्याग्रहों और आंदोलनों में निरंतर सक्रिय रहे। भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में आपने ३ माह का कारावास इलाहाबाद में पाया।   

रायगढ़ 

                प्रजा मंडल समाज रायगढ़ की स्थापना के साथ १९३८ में स्वत्नत्रता संघर्ष में सहभागिता का क्रम आरंभ हो गया। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्रा के प्रयासों से 'किसान समाज' स्थापित हुआ।  जनवरी १९४६ में बंबई जाते नेहरू जी के दर्शन करने कुछ नवयुवक रायगढ़ स्टेशन में उनसे मिले और राजा द्वारा किए जा रहे दमन की जानकारी दी तथा उनसे मिले मार्गदर्शन से उत्साहित होकर 'प्रगतिशील नागरिक संघ' की स्थापना की। नवंबर १९४७ में कांग्रेस सम्मलेन के आयोजन ने जनगण में प्राण फूँक दिए। उड़ीसा की नीलगिरि रियासत में हुए आंदोलन की प्रतिक्रिया में सक्ती तथा रायगढ़ राज्यों द्वारा जनता का दमन किया जाने पर राज्य विलीनीकरण आंदोलन आरंभ हुआ। फलस्वरूप सरदार पटेल के आग्रह पर रायगढ़ के राजा ने विलीनीकरण दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए और रायगढ़ स्टेट भारत गणतंत्र का अभिन्न अंग हो गया। 
                         
सरगुजा - 

                सरगुजा में स्वतंत्रता सत्याग्रहों संबंधी विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हुई किंतु कुछ स्वतंत्रता सत्याग्रही बाद में सरगुजा में आकर बस गए। 

रमेशचंद्र दत्ता जी 

                जोगेंद्रचंद्र दत्ता जी के सुपुत्र रमेशचंद्र जी का जन्म १ सितंबर १९२३ को हुआ था। आपने बी.एससी. तक शिक्षा प्राप्त की थी। राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रियता के कारण आपको सेंट्रल जेल अलीपुर कोलकाता में ९ माह १६ दिन कारावास में रहना पड़ा था। 

वासुदेव प्रसाद खरे जी -

                सगरखारी निवासी दुर्गाप्रसाद खरे जी के आत्मज वासुदेव जी ने चरखारी राज्य विलीनीकरण आंदोलन में भाग लिया भूमिगत रहकर कार्य किया तथा २३ की जेल यातनाएँ सहन कीं।  

हेमंत कुमार कर - 

                रामरतन कर जी के पुत्र  जन्म १९१० में हुआ था। आपने दसवीं तक शिक्षा प्राप्त की। राष्ट्रीय आंदोलन १९३० में सक्रियतापूर्वक भाग लेने के लिए आपको केंद्रीय कारगर मिदनापुर में ६ माह का कारागार में रहना पड़ा था। 

***
लेखक संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ 
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com 

 








बुधवार, 15 मार्च 2023

सॉनेट,वैदिक,पैसा,घनाक्षरी,हाइकु,राम,दोहा,कुण्डलिया,दोहागीत,मानव छंद,

सॉनेट
वैदिक जी
वैदिक जी का जीवट अनुपम
खूब किया संघर्ष निरंतर
हिंदी का लहराया परचम
राष्ट्रवाद के दूत प्रखरतर

पहला शोध कार्य कर तुमने
विरोधियों को सबक सिखाया
अंग्रेजी के बड़वानल में
हिंदी सूरज नित्य उगाया

हिंदी के उन्नायक अनुपम
हिंदी के हित वापिस आओ
हिंदी के गुण गायक थे तुम
हिंदी हित भव को अपनाओ

वेद प्रताप न न्यून कभी हो
वैदिक का नव जन्म यहीं हो
१५-३-२०२३
•••
सॉनेट
पैसा
माँगा है हरदम प्रभु पैसा।
सौदासी मन टुक टुक ताके।
सौदाई तन इत-उत झाँके।।
जोड़ा है निशि-दिन छिप पैसा।।

चिंता है पल-पल यह पैसा।
दूना हो छिन-छिन प्रभु कैसे?
बोलो, हो मत चुप प्रभु ऐसे।।
दो दीदार सतत बन पैसा।।

कैसे भी खन-खन सुनवा दो।
जैसे हो प्रभु! धन जुड़वा दो।
लो प्रसाद मत खर्च करा दो।।
पैसापति हे कहीं न तुम सम।

मोल न किंचित् गर पैसा गुम।
जहाँ न पैसा, वहीं दर्द-गम।।
१५-३-२०२२
•••
कार्यशाला - घनाक्षरी
डमरू की ताल पर
११२ २२१ ११ = ११
तीन ध्वनि खंड ११ मात्रिक हो सकें तो सोने में सुहागा, तब उच्चार काल समान होगा।
चौथे चरण का उच्चार काल सभी पंक्तियों में समान हो।
ऐसा न होने पर बोलते समय गलाबाजी जरूरी हो जाती है।
आपने अंतिम पंक्ति में १२×३
की साम्यता रखी है।
पहली और चौथी पंक्ति बोलकर पढ़ें तो अंतर का प्रभाव स्पष्ट होगा।
*
(प्रति पंक्ति - वर्ण ८-८-८-७, मात्रा ११-११-११-११।)
डमरू की ताल पर, शंकर के शीश पर, बाल चंद्र झूमकर, नाग संग नाचता।
संग उमा सज रहीं, बम भोले भज रहीं, लाज नहीं तज रहीं, प्रेम त्याग माँगता।।
विजय हार हो गई, हार विजय हो गई, प्रणय बीज बो गई, सदा विश्व पूजता।
शिवा-शिव न दो रहे, कीर्ति-कथा जग कहे, प्रीत-धार नित बहे, मातु-पिता मानता।।
१५-३-२०२२
***
श्रीराम पर हाइकु
*
मूँद नयन
अंतर में दिखते
हँसते राम।
*
खोल नयन
कंकर कंकर में
दिखते राम।
*
बसते राम
ह्रदय में सिय के
हनुमत के।
*
सिया रहित
श्रीराम न रहते
मुदित कभी।
*
राम नाम ही
भवसागर पार
उतार देता।
*
अभिनव प्रयोग
राम हाइकु गीत
(छंद वार्णिक, ५-७-५)
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बल बनिए
निर्बल का तब ही
मिले प्रणाम।
क्षणभंगुर
भव सागर, कर
थामो हे राम।।
*
सुख तजिए / निर्बल की खातिर / दुःख सहिए।
मत डरिए / विपदा - आपद से / हँस लड़िए।।
सँग रहिए
निषाद, शबरी के
सुबहो-शाम।
क्षणभंगुर
भव सागर, कर
थामो हे राम।।
*
मार ताड़का / खर-दूषण वध / लड़ करिए।
तार अहल्या / उचित नीति पथ / पर चलिए।।
विवश रहे
सुग्रीव-विभीषण
कर लें थाम।
क्षणभंगुर
भव सागर, कर
थामो हे राम।।
*
सिय-हर्ता के / प्राण हरण कर / जग पुजिए।
आस पूर्ण हो / भरत-अवध की / नृप बनिए।।
त्रय माता, चौ
बहिन-बंधु, जन
जिएँ अकाम।
क्षणभंगुर
भव सागर, कर
थामो हे राम।।
२५-१०-२०२१
***
दोहा दुनिया
*
भाई-भतीजावाद के, हारे ठेकेदार
चचा-भतीजे ने किया, घर का बंटाढार
*
दुर्योधन-धृतराष्ट्र का, हुआ नया अवतार
नाव डुबाकर रो रहे, तोड़-फेंक पतवार
*
माया महाठगिनी पर, ठगी गयी इस बार
जातिवाद के दनुज सँग, मिली पटकनी यार
*
लग्न-परिश्रम की विजय, स्वार्थ-मोह की हार
अवसरवादी सियासत, डूब मरे मक्कार
*
बादल गरजे पर नहीं, बरस सके धिक्कार
जो बोया काटा वही, कौन बचावनहार?
*
नर-नरेंद्र मिल हो सके, जन से एकाकार
सर-आँखों बैठा किया, जन-जन ने सत्कार
*
जन-गण को समझें नहीं, नेतागण लाचार
सौ सुनार पर पड़ गया,भारी एक लुहार
*
गलती से सीखें सबक, बाँटें-पाएँ प्यार
देश-दीन का द्वेष तज, करें तनिक उपकार
*
दल का दलदल भुलाकर, असरदार सरदार
जनसेवा का लक्ष्य ले, बढ़े बना सरकार
***
१५-३-२०१८
***
कहे कुंडली सत्य
*
दो नंबर पर हो गयी, छप्पन इंची चोट
जला बहाते भीत हो, पप्पू संचित नोट
पप्पू संचित नोट, न माया किसी काम की
लालू स्यापा करें, कमाई सब हराम की
रहे तीन के ना तेरह के, रोते अफसर
बबुआ करें विलाप, गँवाकर धन दो नंबर
*
दबे-दबे घर में रहें, बाहर हों उद्दंड
हैं शरीफ बस नाम के, बेपेंदी के गुंड
बेपेंदी के गुंड, गरजते पर न बरसते
पाल रहे आतंक, मुक्ति के हेतु तरसते
सीधा चले न सांप, मरोड़ो कई मरतबे
वश में रहता नहीं, उठे फण नहीं तब दबे
*
दिखा चुनावों ने दिया, किसका कैसा रूप?
कौन पहाड़ उखाड़ता, कौन खोदता कूप?
कौन खोदता कूप?, कौन किसका अपना है?
कौन सही कर रहा, गलत किसका नपना है?
कहता कवि संजीव, हुआ जो नहीं वह लिखा
कौन जयी हो? पत्रकार को नहीं था दिखा
*
हाथी, पंजा-साइकिल, केर-बेर सा संग
घर-आँगन में करें जो, घरवाले ही जंग
घरवाले ही जंग, सम्हालें कैसे सत्ता?
मतदाता सच जान, काटते उनका पत्ता
बड़े बोल कह हाय! चाटते धूला साथी
केर-बेर सा सँग, साइकिल-पंजा, हाथी
*
पटकी खाकर भी नहीं, सम्हले नकली शेर
ज्यादा सीटें मिलीं पर, हाय! हो गए ढेर
हाय! हो गए ढेर, नहीं सरकार बन सकी
मुँह ही काला हुआ, नहीं ठंडाई छन सकी
पिटे कोर्ट जा आप, कमल ने सत्ता झपटी
सम्हले नकली शेर नहीं खाकर भी पटकी
१५-३-२०१७
***
दोहा गीत:
गुलफाम
*
कद से ज्यादा बोलकर
आप मरे गुलफाम
*
घर से पढ़ने आये थे, लगी सियासत दाढ़,
भाषणबाजी-तालियाँ, ज्यों नरदे में बाढ़।
भूल गये कर्तव्य निज, याद रहे अधिकार,
देश-धर्म भूले, करें, अरि की जय-जयकार।
सेना की निंदा करें, खो बैठे ज्यों होश,
न्याय प्रक्रिया पर करें, व्यक्त अकारण रोष।
आसमान पर थूककर,
हुए व्यर्थ बदनाम
कद से ज्यादा बोलकर
आप मरे गुलफाम
*
बडबोले नेता रहे, अपनी रोटी सेक,
राजनीति भट्टी जली, छात्र हो गये केक।
सुरा-सुंदरी संग रह, भूल गए पग राह,
अंगारों की दाह पा, कलप रहे भर आह।
भारत का जयघोष कर, धोयें अपने पाप,
सेना-बैरेक में लगा, झाड़ू मेटें शाप।
न्याय रियायत ना करे
खास रहे या आम
कद से ज्यादा बोलकर
आप मरे गुलफाम
***
गीत
फागुन का रंग
फागुन का रंग हवा में है, देना मुझको कुछ दोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
संसद हो या जे एन यू हो, कहने की आज़ादी है
बात और है हमने अपने घर की की बर्बादी है
नहीं पंजीरी खाने को पर दिल्ली जाकर पढ़ते हैं
एक नहीं दो दशक बाद भी आगे तनिक न बढ़ते हैं
विद्या की अर्थी निकालते आजीवन विद्यार्थी रह
अपव्यय करते शब्दों का पर कभी रीतता कोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
साठ बरस सत्ता पर काबिज़, रहे चाहते फिर आना
काम न तुमको करने देंगे, रेंक रहे कहते गाना
तुम दो दूनी चार कहो, हम तीन-पाँच ही बोलेंगे
सद्भावों की होली में नफरत का विष ही घोलेंगे
नारी को अधिकार सकल दो, सुबह-शाम रिश्ते बदले
जीना मुश्किल किया नरों का, फिर भी है संतोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
दुश्मन के झंडे लहरा दूँ, अपनी सेना को कोसूँ
मौलिक हक है गद्दारी कर, सत्ता के सपने पोसूँ
भीख माँग ले पुरस्कार सुख-सुविधा, धन-यश भोग लिया
वापिस देने का नाटककर, खुश हूँ तुमको सोग दिया
उन्नति का पलाश काटूँगा, रौंद उमीदों का महुआ
करूँ विदेशों की जय लेकिन भारत माँ का घोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
होली पर होरा भूँजूँगा देश-प्रेम की छाती पर
आरक्षण की माँग, जला घर ठठा हँसूँ बर्बादी पर
बैंकों से लेकर उधार जा, परदेशों में बैठूँगा
दुश्मन हित जासूसी करने, सभी जगह घुस पैठूँगा
भंग रंग में डाल मटकता, किया रंग में भंग सदा
नाजायज़ को जायज़ कहकर जीता है कम जोश नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
१५-३-२०१६
***
छंद सलिला:
चौदह मात्रीय मानव छंद
*
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४, मात्रा बाँट ४-४-४-२ या ४-४-४--१-१, मूलतः २-२ चरणों में तुक साम्य किन्तु प्रसाद जी ने आँसू में तथा गुप्त जी ने साकेत में२-४ चरण में तुक साम्य रख कर इसे नया आयाम दिया। आँसू में चरणान्त में दीर्घ अक्षर रखने में विविध प्रयोग हैं. यथा- चारों चरणों में, २-४ चरण में, २-३-४ चरण, १-३-४ चरण में, १-२-४ चरण में। मुक्तक छंद में प्रयोग किये जाने पर दीर्घ अक्षर के स्थान पर दीर्घ मात्रा मात्र की साम्यता रखी जाने में हानि नहीं है. उर्दू गज़ल में तुकांत/पदांत में केवल मात्रा के साम्य को मान्य किया जाता है. मात्र बाँट में कवियों ने दो चौकल के स्थान पर एक अठकल अथवा ३ चौकल के स्थान पर २ षटकल भी रखे हैं. छंद में ३ चौकल न हों और १४ मात्राएँ हों तो उसे मानव जाती का छंद कहा जाता है जबकि ३ चौकल होने पर उपभेदों में वर्गीकृत किया जाता है.
लक्षण छंद:
चार चरण सम पद भुवना,
अंत द्विकल न शुरू रगणा
तीन चतुष्कल गुरु मात्रा,
मानव पग धर कर यात्रा
उदाहरण:
१. बलिहारी परिवर्तन की, फूहड़ नंगे नर्त्तन की
गुंडई मौज मज़ा मस्ती, शीला-चुन्नी मंचन की
२. नवता डूबे नस्ती में, जनता के कष्ट अकथ हैं
संसद बेमानी लगती, जैसे खुद को ही ठगती
३. विपदा न कोप है प्रभु का, वह लेता मात्र परीक्षा
सह ले धीरज से हँसकर, यह ही सच्ची गुरुदीक्षा
४. चुन ले तुझको क्या पाना?, किस ओर तुझे है जाना
जो बोया वह पाना है, कुछ संग न ले जाना है
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
१५-३-२०१४
***
दोहा
मंगलमय हो नव दवस, दे यश कीर्ति समृद्धि.
कर्म करें हर धर्ममय, हर पल हो सुख-वृद्धि..
***
हाइकु गजल:

आया वसंत/इन्द्रधनुषी हुए /दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत/हुए मोहित, सुर/मानव संत..

प्रीत के गीत/गुनगुनाती धूप /बनालो मीत.
जलाते दिए/एक-दूजे के लिए/कामिनी-कंत..

पीताभी पर्ण/संभावित जननी/जैसे विवर्ण..
हो हरियाली/मिलेगी खुशहाली/होगे श्रीमंत..

चूमता कली/मधुकर गुंजा /लजाती लली..
सूरज हुआ /उषा पर निसार/लाली अनंत..

प्रीत की रीत/जानकार न जाने/नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान?/'सलिल'वरदान/दें एकदंत..
१५-३-२०१०
***

मंगलवार, 14 मार्च 2023

श्रृंगार गीत, तुम,दोहा मुक्तिका,सॉनेट,सलिल १४ मार्च

सलिल १४ मार्च
*
सॉनेट

जगत्पिता-जगजननी जय जय।
एक दूसरे के पूरक हो।
हम भी हो पाएँ यह वर दो।।
सचराचर को कर दो निर्भय।।

अजर अमर अविनाशी अक्षय।
मन मंदिर में सदा पधारो।
तन नंदी सेवा स्वीकारो।।
रखो शीश पर हाथ है विनय।।

हे अंबे! गौरी कल्याणी।
तर जाते जो भजते प्राणी।
मंगलमय कर दे माँ वाणी।।


नर्मदेश्वर शशिधर शंकर।
हे नटराज! न हो प्रलयंकर।
वैद्यनाथ कामारि कृपाकर।।
१४-३-२०२३
•••
मुक्तिका
*
निखरा निखरा निखरा मौसम
आभामय हो तो फिर क्यों गम

मिल पाएँ मुस्कान सजाएँ
बिछुड़ें तो अँखियाँ मत कर नम

विषम सियासत की राहें है
जन जीवन तो रहने दें सम

जल पलाश कोशिश करता है
कर पाए दुनिया से तम कम

संसद अब बन गई अखाड़ा
जिसे देखिए ठोंक रहा ख़म

दिल काला हो कोई न देखे
देखें देह कर रही चमचम

इंक्वायरी बम शासन फोड़े
है विपक्ष में घर घर मातम
१४-३-२०२३
***
दोहा-सलिला रंग भरी
*
लहर-लहर पर कमल दल, सुरभित-प्रवहित देख
मन-मधुकर प्रमुदित अमित, कर अविकल सुख-लेख
*
कर वट प्रति झुक नमन झट, कर-सर मिल नत-धन्य
बरगद तरु-तल मिल विहँस, करवट-करवट अन्य
*
कण-कण क्षण-क्षण प्रभु बसे, मनहर मन हर शांत
हरि-जन हरि-मन बस मगन, लग्न मिलन कर कांत
*
मल-मल कर मलमल पहन, नित प्रति तन कर स्वच्छ
पहन-पहन खुश हो 'सलिल', मन रह गया अस्वच्छ
*
रख थकित अनगिनत जन, नत शिर तज विश्वास
जनप्रतिनिधि जन-हित बिसर, स्वहित वरें हर श्वास
*
उछल-उछल कपि हँस रहा, उपवन सकल उजाड़
किटकिट-किटकिट दंत कर, तरुवर विपुल उखाड़
*
सर! गम बिन सरगम सरस, सुन धुन सतत सराह
बेगम बे-गम चुप विहँस, हर पल कहतीं वाह
*
सरहद पर सर! हद भुला, लुक-छिप गुपचुप वार
कर-कर छिप-छिप प्रगट हों, हम सैनिक हर बार
*
कलकल छलछल बह सलिल, करे मलिनता दूर
अमल-विमल जल तुहिन सम, निर्मलता भरपूर
१४-३-२०१७
***
दोहा मुक्तिका
*
भाई-भतीजावाद के, हारे ठेकेदार
चचा-भतीजे ने किया, घर का बंटाढार
*
दुर्योधन-धृतराष्ट्र का, हुआ नया अवतार
नाव डुबाकर रो रहे, तोड़-फेंक पतवार
*
माया महाठगिनी पर, ठगी गयी इस बार
जातिवाद के दनुज सँग, मिली पटकनी यार
*
लग्न-परिश्रम की विजय, स्वार्थ-मोह की हार
अवसरवादी सियासत, डूब मरे मक्कार
*
बादल गरजे पर नहीं, बरस सके धिक्कार
जो बोया काटा वही, कौन बचावनहार?
*
नर-नरेंद्र मिल हो सके, जन से एकाकार
सर-आँखों बैठा किया, जन-जन ने सत्कार
*
जन-गण को समझें नहीं, नेतागण लाचार
सौ सुनार पर पड़ गया,भारी एक लुहार
*
गलती से सीखें सबक, बाँटें-पाएँ प्यार
देश-दीन का द्वेष तज, करें तनिक उपकार
*
दल का दलदल भुलाकर, असरदार सरदार
जनसेवा का लक्ष्य ले, बढ़े बना सरकार
११-३-२०१७
***
श्रृंगार गीत
तुम
*
तुम तू जबसे
सपनों में आयीं
बनकर नीलपरी,
तबसे
सपने रहे न अपने
कैसी विपद परी।
*
नैनों ने
नैनों में
नैनों को
लुकते देखा।
बैनों नें
बैनों में
बैनों को
घुलते लेखा।
तू जबसे
कथनों में आयी
कह कोई मुकरी
तबसे
कहनी रही न अपनी
मावट भोर गिरी।
*
बाँहों ने
बाँहों में
बाँहों को
थामे पाया।
चाहों नें
चाहों में
चाहों को
हँस अपनाया।
तू जबसे
अधरों पर छायी
तन्नक उठ-झुकरी
तबसे
अंतर रहा न अपना
एक भई नगरी।
*
रातों ने
रातों में
रातों को
छिपते देखा।
बातों नें
बातों से
बातों को
मिलते लेखा।
तू जबसे
जीवन में आयी
ले खुशियाँ सगरी
तबसे
गागर में सागर सी
जन्नत दिखे भरी।
१४-३-२०१६
***
मुक्तिका
*
हम मन ही मन प्रश्न वनों में दहते हैं.
व्यथा-कथाएँ नहीं किसी से कहते हैं.
*
दिखें जर्जरित पर झंझा-तूफानों में.
बल दें जीवन-मूल्य न हिलते-ढहते हैं.
*
जो मिलता वह पहने यहाँ मुखौटा है.
सच जानें, अनजान बने हम सहते हैं.
*
मन पर पत्थर रख चुप हमने ज़हर पिए.
ममता पाकर 'सलिल'-धार बन बहते हैं.
*
दिल को जिसने बना लिया घर बिन पूछे
'सलिल' उसी के दिल में घर कर रहते हैं.
***
दोहा
ईश्वर का वरदान है, एक मधुर मुस्कान.
वचन दृष्टि स्पर्श भी, फूँक सके नव प्राण..
१४-३-२०१०