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रविवार, 24 जुलाई 2022

पुरोवाक छोटी सी ये दुनिया और सम्पत देवी जी के यायावरी कदम

पुरोवाक
छोटी सी ये दुनिया और सम्पत देवी जी के यायावरी कदम
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बचपन में एक चित्रपटीय गीत सुना था, मन भय तो गुनगुनाता रहता था, गीत के बोल थे-

''छोटी सी ये दुनिया पहचाने रास्ते हैं
तुम कभी तो मिलोगे, कहीं तो मिलोगे,
हम पूछेंगे हाल।''

तब चलचित्रदेख तो नहीं सका क्योंकि बच्चों को अनुमति नहीं मिलती थी पर बाल मन की कल्पना में अपने बाल सखाओं के साथ दुनिया घूमता रहता। क्रमश: बड़ा होने के साथ पहले मोहल्ला फिर, शहर, जिला और प्रदेश, शादी विवाहों में अन्यत्र जाने का अवसर मिलता तो पिताजी के साथ अधिक से अधिक घूमने का प्रयास करता। प्राथमिक शाला में अग्रजा आशा जिज्जी और माध्यमिक शाला में गुरुवर सुरेश उपाध्याय से पुस्तक पठन की प्रेरणा मिली। शालेय स्पर्धाओं में 'शिवालिक की पहाड़ियों में' लेखक विद्यालंकार तथा 'एट मिडनाइट कम्स द किलर' लेखक ऑगस्टस समरविले प्राप्त हुईं, उन्हें पढ़कर पर्यटन और शिकार संबंधी साहित्य पढ़ने की उत्सुकता हुई किन्तु पुस्तकालयों में ऐसी पुस्तकें मिलती ही नहीं थीं। तब से अब तक लगभग ५ दशक बीत जाने के बाद भी स्थिति में बहुत परिवर्तन नहीं हुआ है। आज भी विश्ववाणी हिंदी के साहित्य में पर्यटन और संस्मरण संबंधी साहित्य का अभाव है।

हर्ष का विषय है कि संपत देवी मुरारका जी हिंदी वांग्मय से पर्यटन वृत्तांत संबंधी आभाव को यथाशक्ति दूर करने के लिए कृत संकल्पित हैं। उन्हें ह्रदय से साधुवाद। संपत देवी जी की 'यात्रा क्रम' (४ भाग) पढ़कर मुझे यह कहने में कोइ संकोच नहीं है कि उनके यायावरी कदमों के लिए वास्तव में दे दुनिया छोटी ही है। देश-विदेश की यात्राओं को जितनी रोचक भाषा-शैली में, जितने सूक्ष्म विवरणों, जितने बहु आयामी जानकारियों और जितने अधिक चित्रों के साथ संपत जी ने इन कृतियों में प्रस्तुत किया है उतना किसी अन्य लेखक ने नहीं किया है। संपत जी पर्यटन स्थलों की पौराणिक, ऐतिहासिक, पुरातत्विक, भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक पृष्ठ भूमि का यथास्थान यथेष्ट वर्णन करती चलती हैं, वह भी इतनी सरसता और सटीकता के साथ कि पाठक को यह प्रतीत हो कि वह स्वयं भ्रमण कर रहा है। 'सोने में सुहागा' यह कि लेखिका संपत अब कवयित्री संपर्क के रूप में अपने यात्रा संस्मरणों को काव्य के माध्यम से प्रस्तुत कर रहै है। ऐसा एक प्रयास कोलकाता निवासी श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार प्रो. श्याम लाल उपाध्याय (अब स्वर्गीय) ने अपनी कृति भू दर्शन २०१६ में किया है किन्तु ऐसा लेखन अपवाद ही है। संपत जी ने व्यापकता के साथ पर्यटकीय काव्य लेखन कर हिंदी साहित्य को नया आयाम देकर उसे सम्पन्न बनाया है।

ऋषिकेश की यात्रा में लिखित काव्य पंक्तियों में कवयित्री पौराणिक संदर्भों का यथास्थान संकेत करती चलती है। तकनीकी जानकारियों को काव्य पंक्तियों में सहेजने का दुरूह कार्य करते समय वे शिल्प पर कथ्य को वरीयता देती हैं।

5 फिट ऊँची चतुर्भुज हृषिकेश की प्रतिमा, यहाँ अवस्थित है |
पूरी प्रतिमा एक ही, शालिग्राम शिला से निर्मितं है ||

तिरुपति औ बदरीनाथ की मूर्ति भी, एक शिला से बनी है |
भारतीय शिल्पकार स्वयं ही मूर्ति-कला का धनी है ||

125 टन का गुम्बद भी है, एक शिला से बना |
वास्तुकला की दृष्टि से, सोलह कोण का है बना ||

'उत्तर पूर्वी यात्रा गीत' में प्राकृतिक सुषमा से अभिभूत पर्यटक संपद जी पाठक को काव्य पंक्तियों द्वारा से नैसर्गिक दृश्य दिखा देती हैं-

दार्जिलिंग जा पहुँचे हम तो, करने सैर सपाटा |
छुक-छुक गाड़ी से उतरे हम, प्लेट फार्म को टाटा ||

प्रकृति-नटी की शान अनोखी, विस्तृत चाय-बागानों में |
दृश्य अलौकिक सूर्योदय का, ओस चमकती धानों में ||

अब जा पहुँचे टाइगर हिल हम, सूर्योदय का दृश्य देखने |
उषा की मुस्कान सुनहरी, अरुणोदय के पल लखने ||

दक्षिणेश्वर मंदिर कोलकाता की ख्याति परमहंस रामकृष्ण जी, सारदा माँ तथा स्वामी विवेकानंद के कारन सकल विश्व में है। लेखिका माँ काली की मूर्ति को निहारते हुए भावमग्न हो जाती है -

मंदिर क्या है वास्तुशिल्प का, सुन्दर एक नमूना है |

भागीरथी की अँगूठी में, जैसे जड़ा नगीना है ||

माँ की प्रतिमा दुष्ट जनों को, विकट रूप दर्शाती है |

लेकिन अपने भक्तों पर, शान्ति सुधा बरसाती है || 

*

देव प्रयाग का मुख्य मंदिर,  मंदिर है  रघुनाथ |

स्वर्ण  मंडित  शिखरवाला, भव्य और विशाल  ||

 

गर्भगृह में  सौम्य  राम की भव्य प्रतिमा साजे  |

श्रृंगार स्वर्णाभूषणयुत, भव्य मुकुट शीश विराजे  ||

*

25 जुलाई 2021, रविवार को भारत में एक प्राचीन मंदिर, तेलंगाना में स्थित काकतिय रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिष्ठित ‘विश्व धरोहर स्थल’ की सूची में सम्मिलित किए जाने के अवसर पर 'यूनेस्को, “विश्व धरोहर स्थल” की सूची में सम्मिलित तैरते पत्थरों से निर्मित, वरंगल, तेलंगाना का ‘रामप्पा मंदिर दक्कन के दुर्गम पठारों की यात्रा' का नेतृत्व करते हुए विश्व वात्सल्य मंच  की संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती संपत देवी मुरारका ने अपनी सखियों एम.दीपिका,स्निग्धा योतिकरपद्मलता जड्डूसीता अग्रवालगीता अग्रवाल आदि के साथ स्थाक का भ्रमण मात्र नहीं किया अपितु स्थल की विशेषताओं को निरखा-परखा। यह संस्मरणात्मक आलेख अनेक बहुरंगी चित्रों से सुसज्जित है। पाठक वहाँ बिना गए ही स्थल की ऐतिहासिकता, भव्यता और रमणीयता का आनंद ले सकता है। 


साहित्यिक निबंधकार सम्पत जी 


'सुभद्रा कुमारी चौहान का व्यक्तित्व एवं कृतित्व' शीर्षक लेख में लेखिका संपाद जी का एक भिन्न पहलू उद्घाटित होता है।वे सुभद्रा जी के व्यक्तित्व-कृतित्व का सम्यक विश्लेषण करते समय प्रामाणिकता का ध्यान रखते हुए सुभद्रा जी द्वारा लिखित काव्य पंक्तियों को उद्धृत कर पाठकों को काव्यानंद-प्रसाद देकर ध्याता की अनुभूति कराती हैं। उक्त से सर्वथा भिन्न रूप में प्रेम चाँद पर लिखित आलेख में लेखिका विपुल प्रेमचंद-साहित्य की सूचि देकर पाठकों को बताती हैं कि वे प्रेमचंद का मूल्याङ्कन सतही न कर, उनके साहित्य का पठन गहराई से करें।  


अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के मुखपत्र के फरवरी 2014 अंक के आलेख में संपत जी के समीक्षक मन की जानकारी मिलती है। 'साहित्य समाज का दर्पण है' और 'लेखक तथा सामाजिक चुनौतियाँ' जैसे लेख सम्पत जी के समृद्ध चिंतन के झलक प्रस्तुत करते हैं।   


नया मीडिया’ और हिंदी के बढ़ते चरण' लेख में सम्पत जी द्वारा दी गयी तकनीकी जानकारी विस्मित करती है। वे लिखती हैं- इसमें शक नहीं कि अभी न्यू मीडिया” पारंपरिक मीडिया की तरह संगठित नहीं है | लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका हर उपयोगकर्ता स्वयं एक पत्रकार हैस्वयं संपादक हैस्वयं प्रकाशक है |  इसमें दी गई सूचना एक क्लिक में ही पुरे विश्व में पहुँच जाती है | न्यू मीडिया या सोशल मीडिया में यह बात आश्चर्यचकित करती है कि उससे जुड़े तरह तरह के लोग अपने मुद्दों को समाज के समक्ष असरदार रूप से रखते हैं | ये लोग अपने आप में एक असंगठित फौज की तरह हैं | वे स्वयं ही फौज के सैनिक हैं और स्वयं ही जनरल भी | जैसा कि नरेंद्र मोदी ने कहा हैअपने निजी स्वार्थ को दरकिनार कर किसी सामाजिक या राष्ट्रीय समस्या के निराकरण के लिए वेब पर इतना ज्यादा समय और ऊर्जा निरंतर देते रहना कोई मामूली बात नहीं | 

कवयित्री संपत देवी का काव्य लेखन 


कवयित्री संपत देवी का काव्य लेखन बहुरंगी और बहु आयामी है। वे दर्शनीय स्थानों पर त्वरित रचनाएँ करने के साथ-साथ बच्चों के लिए सरस बाल गीत रच कर पाठक को विस्मित करती हैं। उनके बाल गीत सहज बोधगम्य तथा बछ्कों द्वारा याद किए जा सकने वाले हैं एक झलक देखें- 


आओ हिल-मिल कर हम गायें,

अपने सपनों को दुलरायें |

चिड़ियाँ चीं-चीं बोल रही है,

बंद पंख अब खोल रही है ||

 

मन-उपवन में हुआ जागरण,

शांत-सुमीरण डोल रही है |

सोये हैं जो लोग अभी तक,

आओ पहले उन्हें जगायें ||


उत्सव प्रधान भारतीय संस्कृति में रच-बसी संपत जी आलोक पर्व दीपावली  पर रचित गीत में त्यौहार की पृष्भूमि, महत्व, पूजन विधि, तथा मौज-मस्ती का संकेत करना नहीं भूलतीं।  

लक्ष्मी गणपति पूजा आज |

विष्णु चक्र का जग पर राज ||

 

दीपावली का है बड़ा त्योंहार |

है घर सजे फूलों का हार ||


कवयित्री संपत जी के लव्य संसार में सात्विक श्रृंगार की मनोरम छवि है -

 

जगमग कर दो मेरा जीवन,

आनंदित हो जाए तन-मन|

जब-जब मैं अपने को देखूं,

तुम बन जाओ मेरे दर्पण||

 

तेरे कदमों की आहट पर,

मैं व्याकुल हूँ प्राण बिछाकर|

यह अपने सपनों का घर है,

तेरा-मेरा प्यार अमर है||  - दूर कहीं वंशी बजती है - गीत 


अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए विविध प्राकृतिक उपादानों का प्रयोग करने में निपुण संपत जी फूलों के माध्यम से काँटों के बीच भी मुस्कुराते रहने का संदेश देती है -


चंपाचमेली मिलके हँसेकाँटों खिला गुलाब |
काँटों में भी मुस्काना सीखो, हँसते रहो जनाब ||

चरणों में तेरे चढ़ गएप्रभू चूमे तेरे कदम |
चंपा के फूल झूम उठेसफल हो गया जनम ||
*

नये वर्ष की नई कल्पना,

करनी है साकार हमें |

नये वर्ष में नव भारत को 

देना है आकार हमें ||

*

'कन्या भ्रूण हत्या' जैसे सामाजिक अभिशाप पर लिखी गई पंक्तियाँ मर्मस्पर्शी बन पड़ी हैं -

धरती माँ तुम क्यूँ न डोली, जब सबने मुँह मोड़ लिया |

इस जग में आने से पहले, निरपराध को काटा, खून किया ||

 

जब डोलेगी धरती माता, पर्वत भी गुम हो जाएगा |

जुल्म अगर ढाओगे तो, तुम्हारा अस्तित्व ही खो जाएगा | 

सार्ट: कवयित्री के रूप में सम्पद जी अपनी प्रांजल भावनाओं, समृद्ध शब्द भंडार, संतुलित -शैली, सटीक शब्द चयन तथा स्पष्ट कथ्य चयन के द्वारा अपने मनोभावों को स्पष्टता के साथ व्यक्त कर सकी हैं। 


स्व मूल्यांकन 


अपने लेखन पर विचार करते हुए संपत्ति जी  लिखती हैं- ''अपनी इन यात्राओं में मैंने राष्ट्रीय एकता और अखंडता का भी दिग्दर्शन किया है और अपनी महान संस्कृति के भी विविध रूपों का दर्शन किया है | अपने पूर्वजों के श्रद्धाभाव ने मुझे बहुत प्रभावित किया है, जिसके चलते धार्मिक संरचना के रूप में वास्तु-कला तथा अन्य बहुत सारी कलाओं का विकास हुआ है | इसके अलावा विभिन्न समाजों के बीच लोकाचार की विविधता ने मेरे मन को बहुत आकर्षित किया है | अपनी यात्राओं में मैंने बहुत सूक्ष्मता के साथ लोक मन में स्थापित परंपराओं का अध्ययन करने की कोशिश की है | इन सारी बातों से अलग मुझे प्रकृति के अनेकानेक रूपों में बिखरे सौन्दर्य के अवलोकन की लालसा हमेशा से उद्वेलित कराती रही है | प्रकृति के पल-पल बदलते दृश्य उसके पहाड़, नदियाँ और झरने और यहाँ तक कि घने जंगल और रेगिस्तान भी मुझे अपने सुषमा-सौन्दर्य से विमोहित करते रहे हैं |"


संपत जी अपनी सुरुचिमय, सांस्कृतिक, पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद सुख-सुविधा के स्थान पर सामान्यता का वरण कर विविध पर्यटक स्थलों पर जाकर खुद तो प्रकृति मन की गॉड में आनंदित होती ही हैं, लौटकर पर्यटन वृत्तांत लिखकर पाठकों को भी आनंदित करती हैं। उनकी शख्सियत को गुलज़ार की दो पंक्तियों द्वारा इस तरह बताया जा सकता है -


मुसाफिर हूँ यारों!, न घर है न ठिकाना 

मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना

   

मुसाफिर समता देवी जी के कदमों को प्रभु निरंतर इतनी शक्ति दे वे धरती है नहीं अंतरिक्ष तक भी जा सकें और वहां के आकाशीय अनुभव हमारे साथ बाँट सकें। संपत जी के ये यात्रा वृत्तांत निश्चय ही लोकप्रिय होंगे। 

*** 



लेखक परिचय : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' विगत ५ दशकों से अधिक समय से हिंदी गद्य-पद्य तथा तकनीकी साहित्य को समृद्ध करने हेतु समर्पित हैं। आपकी १२ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  १२ राज्यों की विविध साहित्यिक यांत्रिकी संस्थाओं द्वारा ३०० से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके सलिल जी ने ३०० से अधिक नए छंदों का आविष्कार कर हिंदी छंद शास्त्र को समृद्ध किया है। आपके द्वारा लिखित सरस्वती वंदना 'हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अब विमल मति दे' का दैनिक प्रार्थना के रूप में प्रति दिन लाखों बच्चे सरस्वती शिशु मंदिरों में गायन करते हैं। आप शताधिक पुस्तकों की भूमिका तथा ३०० से अधिक पुस्तकों की समीक्षा कर चुके हैं। 

 

संपर्क : सभापति विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४, ईमेल : salil.sanjiv@gmail.com     






सॉनेट प्रभुजी,देवता,दोहा-यमक,हास्य षट्पदी

सॉनेट 
चुनौती
•  
हर ऊँचा पद बड़ी चुनौती
सभी अपेक्षाएँ करते हैं
सत्य बताने से डरते हैं
कहते कभी न कड़ी चुनौती

नहीं किसी का कोई सगा है
स्वार्थ साधते रिश्ते-नाते
बुरे समय पर पीठ दिखाते
अवमूल्यन से मूल्य पगा है

पल में तोला, पल में माशा
चाहें मुँह में सदा बताशा
किंतु न खुद को कभी तराशा

पद पाकर मद मत आने दो
जटिल-कुटिलता मत छाने दो
आदमियत को मुस्काने दो
२४-७-२०२२
•••
सॉनेट
प्रभुजी
प्रभु जी! तुम मयूर, हम कागा
बाल कृष्ण के शीश मुकुट तुम
पुरखों के मुख, क्यों निकृष्ट हम?
तुम हो सुई, हम बेबस धागा
प्रभु जी! तुम सत्ता, हम वोटर
प्रभु जी तुम श्लोक, हम बानी
तुम हो ज्ञानी, हम अज्ञानी
मत पाते तुम, हम दे ठोकर
प्रभु जी! तुम सलिला, हम पानी
तुम धरती, हम पत्ते धानी
निरभिमान तुम, हम अभिमानी
प्रभु जी! पवन, मगर हम तिनका
तुम माला हम केवल मनका
तुम मन-मालिक दास मैं तन का
२४-७-२०२२
विमर्श : देवता
उत्तर-
देवता, 'दिव्' धातु से बना शब्द है, अर्थ 'प्रकाशमान होना' है। भावार्थ परालौकिक शक्ति जो अमर, पराप्राकृतिक है और पूजनीय है। देवता या देव इस तरह के पुरुष और देवी इस तरह की स्त्रियों को कहा गया है। देवता परमेश्वर (ब्रह्म) का लौकिक या सगुण रूप माने गए हैं।
बृहदारण्य उपनिषद के एक आख्यान में प्रश्न है कि कितने देव हैं? उत्तर - वास्तव में देव केवल एक है जिसके कई रूप हैं। पहला उत्तर है ३३ कोटि (प्रकार); और पूछने और पूछने पर ३ (विधि-हरि-हर या ब्रम्हा-विषय-महेश) फिर डेढ और फिर केवल एक (निराकार जिसका चित्र गुप्त है अर्थात नहीं है)। वेद मन्त्रों के विभिन्न देवता है। प्रत्येक मन्त्र का ऋषि, कीलक और देवता होता है।
देवताओं का वर्गीकरण- चार मुख्य प्रकार
१. स्थान क्रम से वर्णित देवता -- द्युस्थानीय यानी ऊपरी आकाश में निवास करने वाले देवता, मध्यस्थानीय यानी अन्तरिक्ष में निवास करने वाले देवता, और तीसरे पृथ्वीस्थानीय यानी पृथ्वी पर रहने वाले देवता माने जाते हैं।
२. परिवार क्रम से वर्णित देवता -- इन देवताओं में आदित्य, वसु, रुद्र आदि को गिना जाता है।
३. वर्ग क्रम से वर्णित देवता -- इन देवताओं में इन्द्रावरुण, मित्रावरुण आदि देवता आते हैं।
४. समूह क्रम से वर्णित देवता -- इन देवताओं में सर्व देवा (स्थान, वस्तु, राष्ट्र, विश्व
आदि) की गिनती की जाती है।
ऋग्वेद में स्तुतियों से देवताओं की पहचान की जाती है। ये देवता अग्नि, वायु, इंद्र, वरुण, मित्रावरुण, अश्विनीकुमार, विश्वदेवा, सरस्वती, ऋतु, मरुत, त्वष्टा, ब्रहस्पति, सोम, दक्षिणा इन्द्राणी, वरुणानी, द्यौ, पृथ्वी, पूषा आदि हैं। बहु देवता न माननेवाले सब नामों का अर्थ परब्रह्म परमात्मा वाचक करते है। बहुदेवतावादी परमात्मात्मक रूप में इनको मानते है। पुराणों में इन देवताओं का मानवीकरण अथवा लौकिकीकरण हुआ, फ़िर इनकी मूर्तियाँ, सम्प्रदाय, अलग अलग पूजा-पाठ बनाये गए।
धर्मशास्त्र में सबसे "तिस्त्रो देवता".(तीन देवता) ब्रह्मा, विष्णु और शिव का उदय हुआ। इनका कार्य सृष्टि का निर्माण, इसका पालन और संहार माना जाता है। काल-क्रम से देवों की संख्या बढ़ती गयी। निरुक्तकार यास्क के अनुसार," देवताऒ की उत्पत्ति आत्मा से है"। महाभारत के (शांति पर्व) में आदित्यगण क्षत्रिय देवता, मरुदगण वैश्य देवता, अश्विनी गण शूद्र देवता और अंगिरस ब्राहमण देवता माने गए हैं। शतपथ ब्राह्मण में भी इसी प्रकार से देवताओं को माना गया है।
आदित्या: क्षत्रियास्तेषां विशस्च मरुतस्तथा, अश्विनौ तु स्मृतौ शूद्रौ तपस्युग्रे समास्थितौ, स्मृतास्त्वन्गिरसौ देवा ब्राहमणा इति निश्चय:, इत्येतत सर्व देवानां चातुर्वर्नेयं प्रकीर्तितम
शुद्ध बहु ईश्वरवादी धर्मों में देवताओं को पूरी तरह स्वतन्त्र माना जाता है।प्रमुख वैदिक देवता गणेश (प्रथम पूज्य), सरस्वती, श्री देवी (लक्ष्मी), विष्णु, शक्ति (दुर्गा, पार्वती), शंकर, कृष्ण, इन्द्र, सूर्य, हनुमान, ब्रह्मा, राम, वायु, वरुण, अग्नि, शनि , कार्तिकेय, शेषनाग, कुबेर, धन्वंतरि, विश्वकर्मा आदि हैं।
२४-७-२०२०
***
दोहा सलिला
गले मिले दोहा-यमक ३
*
गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम
नहीं अधर में अधर धर, वेणु बजाते श्याम
*
कृष्ण वेणु के स्वर सुने, गोप सराहें भाग
सुन न सके वे जो रहे, श्री के पीछे भाग
*
हल धर कर हलधर चले, हलधर कर थे रिक्त
चषक थाम कर अधर पर, हुए अधर द्वय सिक्त
*
बरस-बरस घन बरस कर, करें धरा को तृप्त
गगन मगन बादल नचे, पर नर रहा अतृप्त
*
असुर न सुर को समझते, अ-सुर न सुर के मीत
ससुर-सुता को स-सुर लख, बढ़ा रहे सुर प्रीत
*
पग तल पर रख दो बढें, उनके पग तल लक्ष्य
हिम्मत यदि हारे नहीं, सुलभ लगे दुर्लक्ष्य
*
ताल तरंगें पवन संग, लेतीं पुलक हिलोर
पत्ते देते ताल सुन, ऊषा भाव-विभोर
*
दिल कर रहा न संग दिल, जो वह है संगदिल
दिल का बिल देता नहीं, नाकाबिल बेदिल
*
हसीं लबों का तिल लगे, कितना कातिल यार
बरबस परबस दिल हुआ, लगा लुटाने प्यार
*
दिलवर दिल वर झूमता, लिए दिलरुबा हाथ
हर दिल हर दिल में बसा, वह अनाथ का नाथ
*
रीझा हर-सिंगार पर, पुष्पित हरसिंगार
आया हरसिंगार हँस, बनने हर-सिंगार
*
२४-७-२०१६
***
दोहा
नेह नर्मदा कलम बन, लिखे नया इतिहास
प्राची तम का अन्त कर, देती रहे उजास
*
प्राची पर आभा दिखी, हुआ तिमिर का अन्त
अन्तर्मन जागृत करें, कंत बन सकें संत
*
हास्य षट्पदी
संजीव
*
फिक्र न ज्यादा कीजिए, आसमान पर भाव
भेज उसे बाजार दें, जिसको आता ताव
जिसको आता ताव, शान्त वह हो जायेगा
थैले में पैसे ले खुश होकर जाएगा
सब्जी जेबों में लेकर रोता आएगा
'सलिल' अजायबघर में सब्जी देखें बच्चे
जियें फास्ट फुड खाकर, बनें नंबरी लुच्चे
*
२४-७-२०१४
अंगिका दोहा मुक्तिका
*
काल बुलैले केकर, होतै कौन हलाल?
मौन अराधें दैव कै, एतै प्रातःकाल..
*
मौज मनैतै रात-दिन, हो लै की कंगाल.
संग न आवै छाँह भी, आगे कौन हवाल?
*
एक-एक कै खींचतै, बाल- पकड़ लै खाल.
नींन नै आवै रात भर, पलकें करैं सवाल..
*
के हमरो रच्छा करै, मन में 'सलिल' मलाल.
केकरा से बिनती करभ, सब्भै हवै दलाल..
*
धूल झौंक दैं आँख में, कज्जर लेंय निकाल.
जनहित कै नाटक रचैं, नेता निगलैं माल..
*
मत शंका कै नजर सें, देख न मचा बवाल.
गुप-चुप हींसा बाँट लै, 'सलिल' बजा नैं गाल..
*
ओकर कोय जवाब नै, जेकर सही सवाल.
लै-दै कै मूँ बंद कर, ठंडा होय उबाल..
===
२५-५-२०१३

शनिवार, 23 जुलाई 2022

सॉनेट,बात, दोहे,मुक्तक,बालगीत,पेंसिल,नारी

सॉनेट
अवसर
अवसर परख तुम्हारी होगी
मूक सहमति या विवेक हो?
तंत्र बने किस तरह निरोगी?
संकल्पित या सिर्फ नेक हो?

भाग्यविधाता भाग्य सँवारे
जनआकांक्षा हाथ पसारे
जनाक्रोश सच, मत बिसरा रे
राहत दे मत मौन निहारे

द्वापर में कर सकी समन्वय
अग्नि परीक्षा बार-बार दी
नहीं जानती थी द्रौपदी भय
क्या अब भी चिंगारी बाकी

सख्त बहुत है समय परीक्षक
क्या बन पाओगी तुम रक्षक?
२२-७-२०२२
•••
सॉनेट : आलोक 
लोक को आलोक दो प्रभु! 
तिमिर में निर्भय रहें हम 
खुशी ज्यादा, न्यून हो गम 
आपदाएँ रोक दो विभु! 

परा-अपरा हम न भूलें 
मोह पाए नहीं माया 
किसी को दे सकें छाया 
स्वार्थ झूले में न झूलें 

स्वेद सलिला में नहाएँ 
छंद-रस आनंद पाएँ 
किसी के तो काम आएँ 
झूमकर नव गान गाएँ 

रोक पाएँ अनय को प्रभु! 
लोक को आलोक दो प्रभु! 
२२-७-२०२२ •••
***
बालगीत : पेंसिल
पेन्सिल बच्चों को भाती है.
काम कई उनके आती है.
अक्षर-मोती से लिखवाती.
नित्य ज्ञान की बात बताती.
रंग-बिरंगी, पतली-मोटी.
लम्बी-ठिगनी, ऊँची-छोटी.
लिखती कविता, गणित करे.
हँस भाषा-भूगोल पढ़े.
चित्र बनाती बेहद सुंदर.
पाती है शाबासी अक्सर.
बहिना इसकी नर्म रबर.
मिटा-सुधारे गलती हर.
घिसती जाती,कटती जाती.
फ़िर भी आँसू नहीं बहाती.
'सलिल' जलाती दीप ज्ञान का.
जीवन सार्थक नाम-मान का.
***
***
बाल साहित्य में छंद
सुषमा निगम, अन्नपूर्णा बाजपेई
बच्चों में अनुकरणशीतला, जिज्ञासा और कल्पनाशीलता बहुत अधिक होती है। अनुकरण से उनके चरित्र का विकास, जिज्ञासा से ज्ञान-वृद्धि होती है। कल्पनाशीलता से वे जीवन व जगत के विषय में अपेक्षित ज्ञान प्राप्त करने की ओर स्वयमेव उन्मुख होते हैं। अत:, आवश्यक है कि बच्चों के चारित्रिक विकास और ज्ञानवर्धन हेतु शैशव, बचपन और कैशोर्य तीनों अवस्थाओं के अनुरूप बाल साहित्य लिखाजाए। आज के बच्चे ही कल परिवार, समाज एवं देश के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर योग्य नागरिक बनेंगे किंतु तभी जब उनके सामने आदर्श हों, उनकी जिज्ञासाओं का सम्यक समाधान हो और उनके कल्पना जगत को यथार्थ की भूमि पर पैर जमाकर प्रयासों के हाथों से उपलब्धियों के आकाश को छूने का अवसर मिले। बच्चों को सद्विचार से आचार की प्रेरणा देने का कार्य बाल साहित्यकार ही कर सकते हैं। बालमन को ध्यान में रखकर कविता, कहानी, नाटक, लेख, जीवनी, संस्मरण, पहेली, चुटकुले आदि रचे जाना आवश्यक है। गद्य की तुलना में पद्य अधिक सरस तथा आसानी से याद रखने योग्य होता है। पद्य के लिए छंद आवश्यक है।
बाल साहित्यकारों द्वारा सरल भाषा में शिशु गीत, बाल गीत, कविता आदि की रचना इस प्रकार हो कि बाल पाठकों का शब्द ज्ञान व शब्द भंडार बढ़े और वे नए नए शब्दों का उपयोग करें। बाल साहित्य सृजन के लिये काल्पनिकता और यथार्थता का समन्वय अपेक्षित है। बाल साहित्यकारों, अभिभावकों, शिक्षकों और प्रकाशकों के समवेत प्रयास से ही बाल साहित्य को उचित प्रतिष्ठा मिल सकेगी। विभिन्न भारतीय भाषाओं में रचित बाल साहित्य के पारस्परिक आदान-प्रदान से बाल साहित्य के विकास व राष्ट्रीय समन्वय भाव को नई दिशा मिल सकती है। अच्छे बालसाहित्य का अध्ययन बच्चों को साहित्य में वर्णित समाज, पर्यावरण, अतीत और भविष्य से संवाद करने के अवसर प्रदान करता है। इससे बच्चों के भाषिक और संज्ञानात्मक कौशल तथा भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास होता है।
शिशु गीत:
बाल साहित्य लेखन में सर्वाधिक कठिनाई शिशु गीत लेखन में होती है क्योंकि शिशु का शब्द ज्ञान अत्यल्प होता है। शिशु लंबी रचनाएँ याद नहीं कर पाता। सार्थक और उपयोगी शिशु गीत बहुत कम लिखे गए हैं। शिशु गीत का कथ्य बच्चे को परिवेश से जोड़नेवाला होना आवश्यक है। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने इस दिशा में सार्थक प्रयास किया है। उनके शिशु गीतों में छंद और कथ्य दोनों का प्रभावी प्रस्तुतीकरण हुआ है। भारत धर्म प्रधान देश है। बुद्धि के देवता गणेश, विद्या की देवी सरस्वती, पंच मातृका (धरती माता, भारत माता, हिंदी माता, गौ माता तथा माँ) पर शिशु गीतों का भाषिक प्रवाह और सरसता शिशुओं के लिए उपयुक्त है:
श्री गणेश की बोलो जय, / पाठ पढ़ो होकर निर्भय। / अगर सफलता पाना है- / काम करो होकर तन्मय।। (१४ मात्रिक, मानव जातीय, हाकलि छंद)
माँ सरस्वती देतीं ज्ञान, / ललित कलाओं की हैं खान। / जो जमकर करता अभ्यास - / वही सफल हो, पा वरदान।। (१५ मात्रिक, तैथिक जातीय, पुनीत छंद)
धरती सबकी माता है, / सबका इससे नाता है। / जगकर सुबह प्रणाम करो- / फिर उठ बाकी काम करो।। (१४ मात्रिक, मानव जातीय, हाकलि छंद)
सजा शीश पर मुकुट हिमालय, / नदियाँ जिसकी करधन। / सागर चरण पखारे निश-दिन- / भारत माता पावन। (२८ मात्रिक, यौगिक जातीय, सार छंद १६-१२ पर यति, पदांत कर्णा, अंत के गुरु को दो लघु किया गया है)
हिंदी भाषा माता है, / इससे सबका नाता है। / सरल, सहज मन भाती है- / जो पढ़ता मुस्काता है।। (१४ मात्रिक, मानव जातीय, हाकलि छंद)
देती दूध हमें गौ माता, / घास-फूस खाती है। / बछड़े बैल बनें हल खीचें / खेती हो पाती है। (२८ मात्रिक, यौगिक जातीय, सार छंद १६-१२ पर यति, पदांत कर्णा)
माँ ममता की मूरत है, / देवी जैसी सूरत है। / लोरी रोज सुनाती है, /सबसे ज्यादा भाती है।। (१४ मात्रिक, मानव जातीय, हाकलि छंद)
अंग्रेजी भाषा की शिक्षा के साथ पश्चिमी कुसंस्कार भी घर-घर में घर कर रहे हैं। इन शिशु गीतों में बच्चों को भारतीय संस्कृति और परिवेश से जोड़ने की सजगता सहज दृष्टव्य है। महानगरों में 'अंकल-आंटी' के अलावा अन्य नाते बच्चे नहीं जानते। इस समस्या को सुलझाने के लिए सलिल जी ने नातों को ही शिशु गीतों का विषय बना कर अभिनव और उपयोगी पहल की है। इन शिशु गीतों में प्राय: मानव जातीय, हाकली छंद का प्रयोग हुआ है।
पापा चलना सिखलाते, / सारी दुनिया दिखलाते। / रोज बिठाकर कंधे पर- / सैर कराते मुस्काते।।
मेरा भैया प्यारा है, / सारे जग से न्यारा है। / बहुत प्यार करता मुझको- / आँखों का वह तारा है।।
बहिन गुणों की खान है, / वह प्रभु का वरदान है। / अनगिन खुशियाँ देती है- / वह हम सबकी जान है।।
पापा सूरज, माँ चंदा, / ध्यान सभी का धरते हैं। / मैं तारा, चाँदनी बहिन- / घर में जगमग करते हैं।।
बब्बा ले जाते बाज़ार, / दिलवाते टॉफी दो-चार। / पैसे नगद दिया करते- / कुछ भी लेते नहीं उधार।।
राम नाम जपतीं दादी, / रहती हैं बिलकुल सादी। / दूध पिलाती-पीती हैं- / खूब सुहाती है खादी।।
मम्मी के पापा नाना, / खूब लुटाते हम पर प्यार। / जब भी वे घर आते हैं- / हम भी करते बहुत दुलार।।
कहतीं रोज कहानी हैं, / माँ की माँ ही नानी हैं। / हर मुश्किल हल कर लेतीं- / सचमुच बहुत सयानी हैं।।
चाचा पापा के भाई, / हमको लगते हैं अच्छे। / रहें बड़ों सँग, लगें बड़े- /बच्चों में लगते बच्चे।।
प्यारी लगतीं मुझे बुआ, / मुझे न कुछ हो- करें दुआ। / प्यारी बहिना पापा की- / पाला घर में हरा सुआ।।
मामा मुझको मन भाते, / माँ से राखी बँधवाते। / सब बच्चों को बैठाकर / गप्प मारते-बतियाते।।
मौसी माँ सी ही लगती, / मुझको गोद उठा हँसती। / ढोलक खूब बजाती है, / केसर-खीर खिलाती है।
बाल-काव्य पर विचार करने के लिए यह जरूरी है कि हमारे मन में बच्चों व बचपन के बारे में एक स्पष्ट समझ हो जिसमें बच्चे को एक जागरूक व जिज्ञासु इंसान के रूप देखना, बाल विकास से जुड़े मुद्दों को समझना व समाज को समझना आदि बातें शामिल हो। बाल काव्य में यथार्थ की अभिव्यक्ति मज़े-मज़े में, खेल-खेल में होना आवश्यक है। बच्चे जानकारी से नहीं, नई कल्पना से आनंदित होते हैं। १६-११ २७ मात्रिक नाक्षत्रिक जातीय सरसी छंद में रचे निम्न शिशु गीत में कल्पना की उड़ान देखें:
सुनो मजे की बातें भैया / सुनो मजे की बात
हाथी दादा दबा रहे हैं / चींटी जी के पाँव
चूहे जी के डर से भागी / बिल्ली अपने गाँव
रौब जमाता फिरता सब पर / नन्हा सा खरगोश
चीता सहमा हुआ खड़ा है / भूला अपने होश
एक सात-आठ साल का बच्चा भी यह जानता है कि धरती गोल है और यह सूरज के चारों ओर चक्कर लगाती है। वह इस जानकारी से खुश नहीं होता। उसे तो कहानी में कोई ऐसा पात्र चाहिए जो धरती पर पाँव रखकर उसे चपटा बना दे या धरती को उल्टी दिशा में घुमा दे। ऐसी स्थिति में धरती पर क्या होगा?, इस कल्पना से वह रोमांचित होता है। यह फैंटेसी कल्पनात्मक और कलात्मक आनंद की सृष्टि करती है, जो बालसाहित्य की आत्मा है। यथार्थ बताते हुए असंभव कल्पनाओं को चित्रित करना और फैंटेसी रचना ही बाल साहित्य है।
बाल-काव्य में बच्चों या बचपन की छवि को उभारा जाना जरूरी है। ऐसी रचनाओं में बच्चे और पशु-पक्षी हों किंतु बड़ों की सोच न हो क्योंकि बच्चे उसका पूर्वानुमान लगा लें तो उत्सुकता नहीं जग पाती, 'आगे क्या होने वाला है' का कौतूहल समाप्त हो जाता है।
पाखी ने बिल्ली पाली. / सौंपी घर की रखवाली../ फिर पाखी बाज़ार गई. / लाई किताबें नई-नई / तनिक देर जागी बिल्ली. / हुई तबीयत फिर ढिल्ली../ लगी ऊंघने फिर सोई. / सुख सपनों में थी खोई. / मिट्ठू ने अवसर पाया./ गेंद उठाकर ले आया../ गेंद नचाना मन भाया. / निज करतब पर इठलाया../ घर में चूहा आया एक./ नहीं इरादे उसके नेक../ चुरा मिठाई खाऊँगा./ ऊधम खूब मचाऊँगा../ आहट सुन बिल्ली जागी./ चूहे के पीछे भागी../ झट चूहे को जा पकड़ा./ भागा चूहा दे झटका../ बिल्ली खीझी, खिसियाई./ मन ही मन में पछताई..
बाल गीत और पात्र:
मुझे याद आता है एक बार मैंने जैसे ही बाल-कथा सुनाते समय पात्रों का परिचय दिया- एक थी गिलहरी ...बच्चे बोल पड़े 'बड़ी नटखट और चुलबुली थी।' सचमुच कहानी में ऐसा ही था मगर कहानी में मजा बनाए रखने के लिए मुझे गिलहरी के पात्र को फिर से गढ़ना पड़ा। अतः, बाल-शिक्षण की दृष्टि से रचनाओं का चयन करते समय देखना चाहिए कि क्या इन रचनाओं में पात्रों की प्रचलित छवियों (लोमड़ी चालाक ही होगी, खरगोश चतुर ही होगा, शेर बहादुर ही होगा, बच्चे बड़ो के निर्देश पर ही काम करेंगे, सौतेली माँ दुष्ट ही होगी आदि) को तोड़ते हुए किसी स्वतन्त्र छवि को गढ़ा जा रहा है? ख्यात बाल साहित्यकार डॉ. शेषपाल सिंह 'शेष' ने एक कथा-गीत में बिल्ली की चूहे पकड़ने की परम्पराबद्ध छवि से मुक्त कर नव युग के अनुरूप नयी छवि दी है: 'सोचो-बदलो बिल्ली मौसी / हमें बदलने दो / चलते हुए समय को अपनी / गति से चलने दो / मेल-जोल से बुरी बात को / दूर हटाना है / टी. वी., टेलीफोन, मेल-ई, / इंटरनेट हुए / एरोप्लेन, टैंकर, अणुबम , युद्धक-जेट हुए / बढ़ें वेब-कंप्यूटर युग में / देश उठाना है.' २६ मात्रिक, महाभागवत जातीय, विष्णुपद छंद ने इस कथा-गीत में चार चाँद लगा दिए हैं।
बाल साहित्य और चित्रांकन:
बच्चों की किताबों में चित्रांकन एक आवश्यक पहलू है। चित्र गीत या कहानी का अटूट हिस्सा होते हैं। बच्चे चित्रों के आधार पर ही पढ़ने की शुरुआत कर लिखे गए का अर्थ ग्रहण करते हैं। अतः, छोटे बच्चों की किताबों में चित्र स्पष्ट, बड़े और बोलते हुए होने चाहिए। चित्रों के साथ उनके बारे में कुछ काव्य-पंक्तियाँ या वाक्य लिखे हों तो प्रभाव और भी बढ़ जाता है। छोटे बच्चों की किताबों में अक्षरों का आकार बड़ा हो ताकि उन्हें आसानी से पढ़ा जा सके। चित्रों के बारे में हमें यह भी समझना होगा कि चित्र इस तरह के हों जो पाठ की हू-ब-हू नकल जैसे न हों वरन लिखी गई बात को और आगे बढ़ाएँ जिससे बच्चों को सोचने व कल्पना करने का मौका मिले। इसके साथ ही स्थिर व रूढि़वादी चित्रों की बजाय चित्रों में गतिशीलता हो जो वास्तविकता में कुछ घट रहा हो ऐसा महसूस करा सकें। वरिष्ठ साहित्यकार श्री सदाशिव कौतुक ने चहक-महक में 'हम पौधे हैं' गीत के साथ पौधे लगाते हुए बच्चों का चित्र दिया है जो गीत का प्रभाव बढ़ाता है- 'हम दुनिया के पौधे हैं / दुनिया हमसे है आबाद / हम महकेंगे; हम चहकेंगे / शुद्ध मिलेगा पानी-खाद।'
राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत श्रेष्ठ शिक्षक तथा प्राचार्य रहे डॉ. रमेशचंद्र खरे ने शब्दों को ही चित्रांकन का माध्यम बनाया है। शब्द चित्र उपस्थित करने के लिए कवि की सामर्थ्य असाधारण होना चाहिए- 'पौ फूटी, भोर हो गया / जागे सब, शोर हो गया। / चिड़ियों की चूं-चूं-चूं / कौओं की काँव-काँव / मुर्गों की बांग-बिगुल / बजता है गाँव-गाँव / अब तो मन मोर हो गया' इस रचना में पूरा परिवेश जीवन हो उठा है। (मुखड़ा १४ मात्रिक मानव जातीय हाकलि छन्द, अंतरा २४ मात्रिक अवतारी जातीय छंद, यति १२-१२)
बालसाहित्य और चेतना-जागृति:
ख्यात शिक्षक और प्राचार्य रहे कृष्णवल्लभ पौराणिक बच्चों को बहुराष्ट्रीय उत्पादों के प्रति विमुख करने के लिए गीत को माध्यम बनाते हैं: 'बोलो बच्चों! तुम्हें चाहिए? / जेम्स गोलियां? केडबरीज? / चुईन्गम गोली?, फिफ्टी-फिफ्टी? / चोकलेट फाइवस्टार?, पार्ले बिस्किट? / और कहो जो तुम्हें चाहिए / नहीं, हमें ये नहीं चाहिए / हमें दीजिए खीर दूध की / सब्जी-रोटी डाल व चांवल / अचार, भुट्टा, गुलाब जामुन / और जलेबी, मथुरा पेड़े ' (सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय छंद)
डॉ. बलजीत सिंह पुस्तक संस्कृति के प्रति बच्चों के लगाव को १६ मात्रिक संकरी जातीय छंद में रचित गीत के माध्यम से बढ़ा रहे हैं- पुस्तक है अनमोल खज़ाना / बता रहे थे मेरे नाना / पढ़-पढ़कर वे मुझे सुनाते / बात-बात में ज्ञान बढ़ाते / और न इन सा साथी-संगी / इनकी दुनिया रंग-बिरंगी। / कभी हँसा दें, कभी रुला दें / मीठी-मीठी नींद सुला दें' (१६ मात्रिक संस्कारी जातीय छंद)
डॉ. दिनेश चमोला 'शैलेश' बालगीत के माध्यम से राष्ट्रीय भावधारा का बीजारोपण करते हैं: 'जहाँ हिमालय प्रहरी बनकर, करता सबका मान है / जिसकी रज तक प्यार बाँटती, मेरा हिन्दुस्तान है / हर युग में गौतम-गाँधी बन / लेते सुत अवतार हैं / जहाँ ह्रदय से होती माँ की / एक कंठ जयकार है। / जहाँ देश के लिए लाड़ले, हँसकर देते जान हैं / शांति-ज्ञान का अमर कोष वह मेरा हिन्दुस्तान है' (मुखड़ा-अंतरा २९ मात्रीय महायौगिक जातीय छंद, १६-१३ पर यति)।
बाल चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप शुक्ल ने बाल गीतों के स्वास्थ्य-चेतना जगाने का उपकरण बनाया है। एक अमीबा शीर्षक गीत में वे क्रिकेट की गेंद नाली में गिरने, उसे निकालते समय नाखूनों में अमीबा लगने और खाने के साथ पेट में जाने और गड़बड़ मचाने की घटना के माध्यम से स्वच्छता का संदेश देते हैं: 'एक अमीबा बड़े मजे से नाले में था रहता / अरे! वही गंदा नाला जो सड़क पार था बहता / कहने को तो एक अमीबा ढेरों उसके बच्चे / नाली में उनकी कोलोनी रहते गुच्छे-गुच्छे / क्रिकेट खेलते हुए गेंद नाली में गिरी छपाक / आव न देखा, ताव न देखा पप्पू गया तपाक / साथ गेंद के कई अमीबा पप्पू लेकर आया / बड़े-बड़े नाखून, भूल से उनको वहीं छुपाया / हाथ नहीं धोया अच्छे से पप्पू ने घर जाकर / खुश थे बहुत अमीबा सारे उसके पेट में आकर / रात हुई पप्पू चिल्लाया हुई पेट में गुड़गुड़ / सारे बच्चे समझ रहे हैं कहाँ-कहाँ थी गड़बड़ / तो बच्चों गलती ना करना पप्पू जैसी तुम भी / वरना प्यारे बच्चों तुम फिर सजा पाओगे लंबी।' ( २८ मात्रिक यौगिक जातीय छंद, १६-१२ पर यति)
बाल-रचनाओं की भाषा:
बच्चों को रचना पढ़ने का आनंद तभी आएगा जब भाषा आसानी से समझ में आती हो और दिल तक उतर जाती हो। कॉमिक्स और परीकथाएँ अपनी भाषाई सहजता और बोलचाल के शब्दों के उपयोग के कारण बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। तात्पर्य यही है कि बच्चों की पुस्तकों में उपयोग में लाई जा रही रचनाओं की भाषा बनावटी व कठिन न हो वरन् सहज और प्रवाहपूर्ण हो बच्चे ऐसी रचनाएँ पसंद करते हैं जिनमें बात नए तरीके से कही जा रही हो, नई कल्पनाएँ हों, असंभव को संभव बनाने के लिए फैंटेसी रची गई हो। वे ऐसी रचनाएँ भी पसंद करते हैं जिनमें एक ही बात का दोहराव हो और दोहराते समय उनमें नए पात्र या घटना जोड़ दी गई हो। बाल कविताओं मे भी ध्वनियों के साथ विविध प्रयोग जैसे: 'बादल गरजा धम धम धडाम / बिजली चमकी कड़ कड़ कड़ाम' आदि हो तो वे बच्चों को आकर्षित करते हैं। बच्चे भाषा से पूरी तरह से वाकिफ नहीं हो पाते, अतः उनके लिए लिखी गई रचनाओं में सरल शब्द हों जिन्हें बच्चे आसानी से समझ पाएँ। बच्चों के लिए लिखे गए गीतों की भाषा में प्रवाह, लय और छांदस सहजया आवश्यक है। उक्त सभी गीतों में सरसता, सरलता, शब्द-चयन में सटीकता, छंद के गेयता तथा अर्थ की स्पष्टता देखी जा सकती है। बालोपयोगी रचना गद्य, पद्य, नाट्य या नृत्य किसी भी विधा में हो उसमें छंद का होना शरबत में शक्कर का होना है।
संदर्भ: दिव्य नर्मदा नेट पत्रिका, झूमे नाचें गीति कथाएँ -शेषपाल सिंह शेष, चहक-महक -सदाशिव कौतुक, आओ सीखें मैदानों में गाते-गाते गीत -डॉ. रमेश चंद्र खरे, रेल चली भई रेल चली -कृष्णवल्लभ पौराणिक, हम बगिया के फूल -डॉ. बलजीत सिंह, एक सौ एक बाल गीत -डॉ. दिनेश चमोला 'शैलेश', गुल्लू का गाँव -डॉ. प्रदीप शुक्ल।
***
मुक्तक
रंग इश्क के अनगिनत, जैसा चाहे देख
लेखपाल न रख सके लेकिन उनका लेख
जी एस टी भी लग नहीं सकता, पटको शीश -
खींच न लछमन भी सकें, इस पर कोई रेख
माँ
माँ की महिमा जग से न्यारी, ममता की फुलवारी
संतति-रक्षा हेतु बने पल भर में ही दोधारी
माता से नाता अक्षय जो पाले सुत बडभागी-
ईश्वर ने अवतारित हो माँ की आरती उतारी
नारी
*
नर से दो-दो मात्रा भारी, हुई हमेशा नारी
अबला कभी न इसे समझना, नारी नहीं बिचारी
माँ, बहिना, भाभी, सजनी, सासु, साली, सरहज भी
सखी न हो तो समझ जिंदगी तेरी सूखी क्यारी
*
पत्नि
पति की किस्मत लिखनेवाली पत्नि नहीं है हीन
भिक्षुक हो बारात लिए दर गए आप हो दीन
करी कृपा आ गयी अकेली हुई स्वामिनी आज
कद्र न की तो किस्मत लेगी तुझसे सब सुख छीन
*
दीप प्रज्वलन
शुभ कार्यों के पहले घर का अँगना लेना लीप
चौक पूर, हो विनत जलाना, नन्हा माटी-दीप
तम निशिचर का अंत करेगा अंतिम दम तक मौन
आत्म-दीप प्रज्वलित बन मोती, जीवन सीप
*
परोपकार
अपना हित साधन ही माना है सबने अधिकार
परहित हेतु बनें समिधा, कब हुआ हमें स्वीकार?
स्वार्थी क्यों सुर-असुर सरीखा मानव होता आज?
नर सभ्यता सिखाती मित्रों, करना पर उपकार
*
एकता
तिनका-तिनका जोड़ बनाते चिड़वा-चिड़िया नीड़
बिना एकता मानव होता बिन अनुशासन भीड़
रहे-एकता अनुशासन तो सेना सज जाती है-
देकर निज बलिदान हरे वह, जनगण कि नित पीड़
*
असली गहना
असली गहना सत्य न भूलो
धारण कर झट नभ को छू लो
सत्य न संग तो सुख न मिलेगा
भोग भोग कर व्यर्थ न फूलो
२३-७-२०१९
***
बात पर दोहे
*
इसने उसकी बात की, उसने इसकी बात।
शब्द-शब्द होते रहे, उस-इस पर आघात।।
*
किसलय से ही सीख लें, किस लय में हो बात।
मधुकर कौशल माधुरी, सिक्त रहें जज्बात।।
*
तन्मय होकर बात कर, मन में रख सद्भाव।
तंत न व्यर्थ भिड़ंत में, रख बसंत सा चाव।।
*
जय प्रकाश सम बात कर, छोड़ छल-कपट-दाँव।
बागर हो बागरी सदृश, बचा देश घर गाँव।।
*
परिणीता चाहे नहीं, रहे विनीता बात।
सत्यपरक मिथिलेश सी, तब सुधरें हालात।।
*
व्यर्थ बात ही बात में, निकल बात से बात।
बढ़े बात तो टालिए, हो न बात से मात।
*
सुनी न समझी अन्य की, की अपनी ही बात।
भले प्रात से रात तक, सुलझ न पाई बात।।
*
वन प्रकाश की राह चल, धन्य केशवानंद।
बात करें परमार्थ की, दें जन को आनंद।।
*
धाम सैलवारा ललित, वरदायी वट-वृक्ष।
बैठ छाँह में बात कर, पाले ग्यान सुलक्ष।।
*
बात-बात में मात हो, बात-बात से जीत।
कहें केशवानंद जी, बात बढ़ाती प्रीत।।
२३-७-२०१८
*
रसानंद दे छंद नर्मदा ४० : अहीर छन्द
दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला,गीतिका,घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन या सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका, शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रवज्रा, इंद्रवज्रा, सखी, वासव, अचल धृति, अचल, अनुगीत, अहीर छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए छंद से
अहीर छंद
लक्षण: जाति रौद्र, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ११, चरणान्त लघु गुरु लघु (जगण).
लक्षण छंद:
चाहे राँझ अहीर, बाला सुन्दर हीर
लघु गुरु लघु चरणांत, संग रहे नत शांत
पूजें ग्यारह रूद्र, कोशिश लँघे समुद्र
जल-थल-नभ में घूम, लक्ष्य सके पद चूम
उदाहरण:
१. सुर नर संत फ़क़ीर, कहें न कौन अहीर?
आत्म-ग्वाल तज धेनु, मन-प्रयास रस-वेणु
प्रकृति-पुरुष सम संग, रचे सृष्टि कर दंग
ग्यारह हों जब एक, मानो जगा विवेक
२. करो संग मिल काम, तब ही हो यश-नाम
भले रहे विधि वाम, रखना साहस थाम
सुबह दोपहर शाम, रचना छंद ललाम
कर्म करें बिन लोभ, सह परिणाम
३. पूजें ग्यारह रूद्र, मन में रखकर भक्ति
जनगण-शक्ति समुद्र, दे अनंत अनुरक्ति
लघु-गुरु-लघु रह शांत, रच दें छंद अहीर
रखता उन्नत माथ, खाली हाथ फ़क़ीर
२३-७-२०१६
********
दोहा सलिला
*
जो न उषा को चाह्ता, उसके फूटे भाग
कौन सुबह आकर कहे, उससे जल्दी जाग
*
लाल-गुलाबी जब दिखें, मनुआ प्राची-गाल
सेज छोड़कर नमन कर, फेर कर्म की माल
*
२३-७-२०१४

शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

सॉनेट, तिरंगा,मुखिया, छंद प्रदोष,पुरखे, नवगीत,दोहे, महिला क्रिकेट,

  छंद सलिला : सॉनेट

तिरंगा



ध्वज न केवल मैं तिरंगा 
चिरंतन बलिदान हूँ मैं
लोक के हित सदा बेकल
सनातन अरमान हूँ मैं

सद्भाव हूँ मैं, शांति हूँ
चाहता सबका भला नित 
नव सृजन की क्रांति भी हूँ 
साध्य केवल लोक का हित 

हरितिमा हूँ, भाग्य-भाषा 
अहर्निश उन्नति-परिश्रम 
स्वेद उपजी नवल आशा 
जन प्रगति का चक्र अनुपम 

आत्म जेता लो न पंगा 
ध्वज न केवल मैं तिरंगा 
(शेक्सपीरियन सॉनेट)
●●●
छंद सलिला : (अभिनव प्रयोगः प्रदोष सॉनेट) 
मुखिया 
● 
नव मुखिया को नमन है 
सबके प्रति समभाव हो 
अधिक न न्यून लगाव हो
 हर्षित पूरा वतन है 

भवन-विराजी है कुटी 
जड़ जमीन से है जुड़ी 
जीवटता की है धनी 
धीरज की प्रतिमा धुनी 

अग्नि परीक्षा है कड़ी 
दिल्ली के दरबार में 
सीता फिर से है खड़ी 

राह न किंचित सहज है 
साथ सभी का मिल सके 
यह संयोग न महज है 
२२-७-२०२२ 
••• 
छंद सलिला : (अभिनव प्रयोगः प्रदोष सॉनेट) 
● 
प्रदोष रहिए खुशी से 
हमेशा करें व्रत-कथा 
जीतें हर बाधा-व्यथा 
आशीष मिले शिवा से 

प्रदोष रचिए हमेशा 
अठ-पच कल मिल खेलिए 
सुख-दुख सम चुप झेलिए 
विनम्र रहिए हमेशा 

गुरु लघु हो न पदांत में 
आस्था मिले न भ्रांत में 
रखिए शांति दिनांत में 

चौदह पद सॉनेट में 
चौ चौ चौ दो या रहे 
चौ चौ त्रै त्रै पद सदा 
२२-७-२०२२ 
•••
नवगीत
तुम्हें प्रणाम
*
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
सूक्ष्म काय थे,
चित्र गुप्त विधि ,
अणु-परमाणु-विषाणु विष्णु हो धारे तुमने।
कोष-वृद्धि कर
'श्री' पाई है।
जल-थल--नभ पर
कीर्ति-पताका
फहराई है।
पंचतत्व तुम
नाम अनाम।
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
भू-नभ
दिग्दिगंत यश गाते।
भूत-अभूत तुम्हीं ने नाते, बना निभाए।
द्वैत दिखा,
अद्वैत-पथ वरा।
कहा प्रकृति ने
मनुज है खरा।
लड़, मर-मिटे
सुरासुर लेकिन
मिलकर जिए
रहे तुम आम।
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
धरा-पुत्र हे!
प्रकृति-मित्र हे!
गही विरासत हाय! न हमने, चूक यही।
रौंद प्रकृति को
'ख़ास' हो रहे।
नाश बीज का
आप बो रहे।
खाली हाथों
जाना फिर भी
जोड़ मर रहे
विधि है वाम।
२२-७-२०१९
***
मुक्तक
दीप्ति तम हरकर उजाला बाँट दे
अब न शर्मा शतक से तम छांट दे
दस दिशाओं से सुनो तुम तालियाँ
फाइनल लो जीत धोबीपाट दे
*
एकता है तो मिलेगी विजय भी
गेंद की गति दिशा होगी मलय सी
खाए चक्कर ब्रिटिश बल्लेबाज सब
तिरंगा फ़हरा सके, हो जयी भी
***
महिला क्रिकेट के दोहे
स्मृति का बल्ला चला, गेंद हुई रॉकेट.
पलक झपकते नभ छुए, गेंदबाज अपसेट.
*
कैसे करती अंगुलियाँ, पल में कहो कमाल.
मात दे रही पेस से, झूलन मचा धमाल.
*
दीप्ति कौंधती दामिनी, गिरे उड़ा दे होश.
चमके दमके निरंतर, कभी न रीते कोश.
*
पूनम उतरी तो हुई, अजब अनोखी बात.
घिरे विपक्षी तिमिर में, कहें अमावस तात.
*
शर संधाना तो हुई, टीम विरोधी ढेर.
मंधाना के वार से, नहीं किसी की खैर.
*
२२.७.१७