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सोमवार, 26 अप्रैल 2021

षट्पदी

षट्पदी 
*
हरदोई में मिल गये, हरि-हर दोई संग।
रमा-उमा ने कर दिया जब दोनों को तंग।।
जब दोनों को तंग, याद तब विधि की आई।
शारद ने मति फेर, करा दी है कुड़माई।।
जान बचायें दैव, हमें दें रक्षा का वर।
विधि बोले शारदा, पड़ी हैं पीछे हरि-हर।।
*
२६-४-२०१६ 

गीत

गीत 
हे समय के देवता! 
संजीव 'सलिल' 
*
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
*
श्वास जब तक चल रही है, आस जब तक पल रही है,
अमावस का चीरकर तम-प्राण-बाती जल रही है. 
तब तलक रवि-शशि सदृश हम रौशनी दें तनिक जग को.
ठोकरों से पग न हारें-करें ज्योतित नित्य मग को. 
दे सको हारे मनुज को, विजय का अरमान दो तुम.
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
*
नयन में आँसू न आएँ, हुलसकर सब कंठ गाएँ.
कंटकों से भरे पथ पर-चरण पग धर भेंट आये. 
समर्पण विश्वास निष्ठा सिर उठाकर जी सके अब.
मनुज हँसकर गरल लेकर-शम्भु-शिववत पी सकें अब. 
दे सको हर अधर को मुस्कान दो, मधुगान दो तुम..
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
*
सत्य-शिव को पा सकें हम' गीत सुन्दर गा सकें हम.
सत-चित-आनंद घन बन-दर्द-दुःख पर छा सकें हम. 
काल का कुछ भय न व्यापे, अभय दो प्रभु!, सब वयों को.
प्रलय में भी जयी हों-संकल्प दो हम मृण्मयों को. 
दे सको पुरुषार्थ को परमार्थ की पहचान दो तुम.
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
***
टीप- लगभग ४ दशक पूर्व रचा गया मेरा पहला गीत। 

रविवार, 25 अप्रैल 2021

लघुकथा

लघुकथा
सुख-दुःख
संजीव
*
गुरु जी को उनके शिष्य घेरे हुए थे। हर एक की कोई न कोई शिकायत, कुछ न कुछ चिंता। सब गुरु जी से अपनी समस्याओं का समाधान चाह रहे थे। गुरु जी बहुत देर तक उनकी बातें सुनते रहे। फिर शांत होने का संकेत कर पूछा - 'कितने लोग चिंतित हैं? कितनों को कोई दुःख है? हाथ उठाइये।
सभागार में एक भी ऐसा न था जिसने हाथ न उठाया हो।
'रात में घना अँधेरा न हो तो सूरज ऊग सकेगा क्या?'
''नहीं'' समवेत स्वर गूँजा।
'धूप न हो तो छाया अच्छी लगेगी क्या?'
"नहीं।"
'क्या ऐसा दिया देखा है जिसके नीचे अँधेरा न हो"'
"नहीं।"
'चिंता हुई इसका मतलब उसके पहले तक निश्चिन्त थे, दुःख हुआ इसका मतलब अब तक दुःख नहीं था। जब दुःख नहीं था तब सुख था? नहीं था। इसका मतलब दुःख हो या न हो यह तुम्हारे हाथ में नहीं है पर सुख हो या हो यह तुम्हारे हाथ में है।'
'बेटी की बिदा करते हो तो दुःख और सुख दोनों होता है। दुःख नहीं चाहिए तो बेटी मत ब्याहो। कौन-कौन तैयार है?' एक भी हाथ नहीं उठा।
'बहू को लाते हो तो सुखी होते हो। कुछ साल बाद उसी बहु से दुखी होते हो। दुःख नहीं चाहिए तो बहू मत लाओ। कौन-कौन सहमत है?' फिर कोई हाथ नहीं उठा।
'एक गीत है - रात भर का है मेहमां अँधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा? अब बताओ अँधेरा, दुःख, चिंता ये मेहमान न हो तो उजाला, सुख और बेफिक्री भी न होगी। उजाला, सुख और बेफिक्री चाहिए तो अँधेरा, दुःख और चिंता का स्वागत करो, उसके साथ सहजता से रहो।'
अब शिष्य संतुष्ट दिख रहे थे, उन्हें पराये नहीं अपनों जैसे ही लग रहे थे सुख-दुःख।
*
२५-४-२०२० 
संपर्क : ९४२५१८३२४४

दोहा

दोहा
*
गौ माता है, महिष है असुर, न एक समान
नित महिषासुर मर्दिनी का पूजन यश-गान
*
करते हम चिरकाल से, देख सके तो देख
मिटा पुरानी रेख मत, कहीं नई निज रेख
*
अपने राम जहाँ रहें, वहीं रामपुर धाम
शब्द ब्रम्ह हो साथ तो, क्या नगरी क्या ग्राम ?
*
रुद्ध द्वार पर दीजिए दस्तक, इतनी बार
जो हो भीतर खोल दे, खुद ही हर जिद हार
*
दोहा वार्ता
*
छाया शुक्ला
सम्बन्धों के मूल्य का, कौन करे भावार्थ ।
अब बनते हैं मित्र भी, लेकर मन मे स्वार्थ ।।
*
संजीव
बिना स्वार्थ तृष्णा हरे, सदा सलिल की धार
बिना मोह छाया करे, तरु सर पर हर बार
संबंधों का मोल कब, लें धरती-आकाश
पवन-वन्हि की मित्रता, बिना स्वार्थ साकार
*

कुंडलिया

कुंडलिया 
*
रूठी राधा से कहें, इठलाकर घनश्याम
मैंने अपना दिल किया, गोपी तेरे नाम
गोपी तेरे नाम, राधिका बोली जा-जा
काला दिल ले श्याम, निकट मेरे मत आ, जा
झूठा है तू ग्वाल, प्रीत भी तेरी झूठी
ठेंगा दिखा हँसें मन ही मन, राधा रूठी
*
कुंडल पहना कान में, कुंडलिनी ने आज
कान न देती, कान पर कुण्डलिनी लट साज
कुण्डलिनी लट साज, राज करती कुंडल पर
मौन कमंडल बैठ, भेजता हाथी को घर
पंजा-साइकिल सर धुनते, गिरते जा दलदल
खिला कमल हँस पड़ा, पहन लो तीनों कुंडल
२५-४-२०१७ 
***

नव गीत

नव गीत:
संजीव 'सलिल'
*
पीढ़ियाँ
अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*
छोड़ निज
जड़ बढ़ रही हैं.
नए मानक गढ़ रही हैं.
नहीं बरगद बन रही ये-
पतंगों
सी चढ़ रही हैं.
चाह लेने की असीमित-
किन्तु देने की
कंगाली.
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*
नेह-नाते हैं पराये.
स्वार्थ-सौदे नगद भाये.
फेंककर तुलसी
घरों में-
कैक्टस शत-शत उगाये..
तानती हैं हर प्रथा पर
अरुचि की झट
से दुनाली.
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*
भूल देना-पावना क्या?
याद केवल चाहना क्या?
बहुत
जल्दी 'सलिल' इनको-
नहीं मतलब भावना क्या?
जिस्म की
कीमत बहुत है.
रूह की है फटेहाली.
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
**********************
२५-४-२०१०

चंद्रायण छंद

 छंद सलिला:

चंद्रायण छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), ६ वीं से १० वीं मात्रा रगण, ८ वीं से ११ वीं मात्रा जगण, यति ११-१०।
लक्षण छंद:
मंजुतिलका छंद रचिए हों न भ्रांत
बीस मात्री हर चरण हो दिव्यकांत
जगण से चरणान्त कर रच 'सलिल' छंद
सत्य ही द्युतिमान होता है न मंद
लक्ष्य पाता विराट
उदाहरण:
१. अनवरत राम राम, भक्तजन बोलते
जो जपें श्याम श्याम, प्राण-रस घोलते
एक हैं राम-श्याम, मतिमान मानते
भक्तगण मोह छोड़, कर्तव्य जानते
२. सत्य ही बोल यार!, झूठ मत बोलना
सोच ले मोह पाल, पाप मत ओढ़ना
धर्म है त्याग राग, वासना जीतना
पालना द्वेष को न, क्रोध को छोड़ना
३. आपका वंश-नाम!, है न कुछ आपका
मीत-प्रीत काम-धाम, था न कल आपका
आप हैं अंश ईश, के इसे जान लें
ज़िंदगी देन देव, से मिली मान लें
२५-४-२०१४
*********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)

गीत

गीत 
.
कह रहे सपने कथाएँ
.
सुन सको तो सुनो इनको
गुन सको तो गुनो इनको
पुराने हों तो न फेंको
बुन सको तो बुनो इनको
छोड़ दोगे तो लगेंगी
हाथ कुछ घायल व्यथाएँ
कह रहे सपने कथाएँ
.
कर परिश्रम वरो फिर फिर
डूबना मत, लौट तिर तिर
साफ होगा आसमां फिर
मेघ छाएँ भले घिर घिर
बिजलियाँ लाखों गिरें
हम नशेमन फिर भी बनाएँ
कह रहे सपने कथाएँ
.
कभी खुद को मारना मत
अँधेरों से हारना मत
दिशा लय बिन गति न वरना
प्रथा पुरखे तारना मत
गतागत को साथ लेकर
आज को सार्थक बनाएँ
कह रहे सपने कथाएँ
२५-४-२०१६ 
.................

मुक्तिका

मुक्तिका
*
हँस इबादत करो
मत अदावत करो
मौन बैठें न हम
कुछ शरारत करो
सो लिए हैं बहुत
जग बगावत करो
फिर न फेरो नजर
मिल इनायत करो
आज शिकवे भुला
कल शिकायत करो
फेंक चलभाष हँस
खत किताबत करो
मन को मंदिर कहो
दिल अदालत करो
मुझसे मत प्रेम की
तुम वकालत करो
बेहतरी का कदम
हर रवायत करो
२५-४-२०१६ 
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मुक्तिका

प्रयोगात्मक मुक्तिका:
जमीं के प्यार में...
संजीव 'सलिल'
*
जमीं के प्यार में सूरज को नित आना भी होता था.
हटाकर मेघ की चिलमन दरश पाना भी होता था..

उषा के हाथ दे पैगाम कब तक सब्र रवि करता?
जले दिल की तपिश से भू को तप जाना भी होता था..

हया की हरी चादर ओढ़, धरती लाज से सिमटी.
हुआ जो हाले-दिल संध्या से कह जाना भी होता था..

बराती थे सितारे, चाँद सहबाला बना नाचा.
पिता बादल को रो-रोकर बरस जाना भी होता था..

हुए साकार सपने गैर अपने हो गए पल में.
जो पाया वही अपना, मन को समझाना भी होता था..

नहीं जो संग उनके संग को कर याद खुश रहकर.
'सलिल' नातों के धागों को यूँ सुलझाना भी होता था..

न यादों से भरे मन उसको भरमाना भी होता था.
छिपाकर आँख के आँसू 'सलिल' गाना भी होता था..

हरेक आबाद घर में एक वीराना भी होता था.
जहाँ खुद से मिले खुद 'सलिल' अफसाना भी होता था..
२५-४-४-२०११ 
****

मांडवी मोहम्मद अहसान

Maandvi मांडवी
मोहम्मद अहसान 

If you have visited Goa, you know the river Manandvi. You must have river-cruised through it. It ‘s a beautiful river but not many people might know that this is only the backwater of the sea. But does it matter! No. It is still a river and a beautiful one. And here is a tribute to this beautiful river.

'मांडवी' तुम्हारी बात और है
तुम सुंदर तो हो ही
तुम समुद्र का ' बैकवाटर ' भी हो
हर नदी सागर में गिरती है
मगर सागर तुम्हारी ओर दौड़ता है ;
मेरी कुछ मुश्किलें हैं
न जाने कितनी शक्लें
कितने चेहरे
चकराते रहते हैं ;
स्मृति की हर सरिता मन के सागर में ही गिरती है,
मन घबरा जाता है,
मन के पास तुम्हारे जैसा कोई बैकवाटर नहीं
जहां कुछ शेष स्मृतियाँ , वह
कुछ दिन संचित कर दे

-नीम का पेड़

Maandvi

Maandvi tumhari baat aur hai
Tum sundar to ho hi
Tum samudra ka ‘backwater’ bhi ho
Har nadi saagar mein girti hai
Magar saagar tumhaari or dauRta hai

Meri kuchh mushkilain hain
Na jaane kitni shaklain
Kitne chehre;
Smriti ki har sarita man ke saagar mein hi girti hai
Man ghabra jaata hai
Man ke paas tumhare jaisa koi ‘backwater’ nahi,
Jahaan kuchh shesh smritiyaan, wohh
Kuchh din sanchit kar de

Mohammad Ahsan
Goa / 17-04-03

दोहा सलिला

दोहा सलिला 
*
मैं-तुम बिसरायें कहें, हम सम हैं बस एक.
एक प्रशासक है वही, जिसमें परम विवेक..
*
२५-४-२०१०

मरीजों के पास cctv

विमर्श 
मरीजों के पास cctv लगाकर उसकी रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराना क्यों जरुरी है?
प्रिय डॉक्टर!
सदा प्रसन्न रहो। 
तुम्हारी बात धैर्य के साथ सुनी। 
क्या मरीज और उसके स्वजनों का मानवाधिकार नहीं है? क्या किसी रोगी या उसके स्वजनों को यह जानने का भी अधिकार नहीं है कि रोगी की स्थिति कैसी है?, उसे क्या चिकित्सा दी जा रही है? यदि सब कुछ सही हो रहा है तो बताने में हर्ज क्या है? 
यह माँग निराधार नहीं है। कोई त्रुटि सेवा में कमी होने पर या उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत रोगी या स्वजन कार्यचाही कैसे करें कब उन्हें कुछ मालूम ही न हो। कमी डॉक्टर के इलाज में न भी हो तो कार्यवाही का कारण अस्पताल का प्रबंधन अव्यवस्था, कर्मचारियों की लापरवाही, आवश्यक उपकरणों या यंत्रों का सही स्थिति में न होना भी हो सकता है। 
पिछले कुछ दिनों में निम्न परिस्थितियाँ प्रकाश में आई हैं-
१. कुछ अस्पतालों के चिकित्सक और पैरामेडिकल कर्मचारी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए क्योंकि वे कोरोना मरीजों को लगाने के लिए दिए गए रेमेडिसवर इंजेक्शन बाजार में बेच रहे थे। बेसुध मरीज तो नहीं जान सकता कि उसे कौन सा इंजेक्शन लगाया गया और कौन सा नहीं लगाया गया? मैं सहमत हूँ कि हर कुछ को छोड़कर शेष चिकित्सक ईमानदार हैं पर जो कुछ गलत हैं उन्हें रोकने के लिए स्वजनों की यह माँग गलत कैसे कही जा सकती है। 
२. ऐसे वीडियो भी हैं जिनमें वार्ड बॉय मरीज की ऑक्सीजन निकलकर दूसरे मरीज को लगा रहा है, हुए पहला मरीज कुछ देर में मर गया।  प्रबंधन ने यह आरोप झुठला दिया। डॉक्टर कोप पता ही नहीं था कि कहीं किसी नेता या गुंडे के दबाव में, कहीं किसी संपन्न मरीज से कुछ धन लेकर वार्ड बॉय ऐसा कर गया। मानना इसलिए पड़ा कि किसी ने छिपकर विडिओ बना लिया था। ऐसे गलत तत्वों को रोकने या पकड़ने के लिए cctv क्यों न लगाया जाए? 
३. कई प्रकरणों में अस्पताल स्वजनों को मृतक मरीज का शव भी नहीं दे रहे। एक मरीज ने प्रबंधन पर बहुत दबाव बनाया तो उन्हें बैग में शव दे दिया गया। कब्रिस्तान में दफ़नाते समय बैग फट जाने से शव गिरा गया। स्वजन यह देखकर स्तब्ध रह गए कि शव महिला का था जबकि उनका मरीज पुरुष था। वे तुरंत अस्पताल लौटे और प्रबंधन को बताया तो कहा गया कि गलती से हो गया, उनके मरीज को जलाया जा चुका है।
४. डॉक्टर समाज का प्रतिष्ठित, संपन्न और विश्वास पात्र संवर्ग है। अपनी विश्वसनीयता के लिए उन्हें cctv का स्वागत करना चाहिए, इससे (१) बेईमान कर्मचारियों और प्रबंधन की कमी सामने आने पर चिकित्सक जनाक्रोश के शिकार न होंगे, (२) बेईमान कर्मचारी डरेंगे कि कैमरा लगा है, इससे मरीज की जान न जा सकेगी। 
अस्पताल में पारदर्शिता केवल होनी ही नहीं चाहिए, दिखनी भी चाहिए। 
५. मरीज या स्वजनों के अधिकार की बात करना चिकित्सक के प्रति अविश्वास नहीं है, इसके विपरीत इसमें ईमानदार चिकित्सक की सुरक्षा निहित है। 
६. चिकित्सकों, नर्सों, पैरामेडिकल स्टाफ के प्रति प्रधान मंत्री से लेकर स्थानीय नेता, अधिकारी और आम लोग तक अपना आभार व्यक्त कर चुके हैं। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारीयों के प्रति भी आभार जताया गया है। 
७. क्या बिना मजबूत-सुरक्षित भवन, जलप्रदाय व्यवस्था, विद्युत् व्यवस्था, इलक्ट्रोनिक यंत्रोपकरणों, यातायात साधनों, सड़कों आदि के बिना चिकित्सा सेवा संचालित की जा सकती है? 
ये सेवाएँ कौन देता है?  इन कार्यों-सेवाओं को संचालित-संधारित कर रहे अभियंता वर्ग पर निरंतर अत्यधिक कार्यभार का दबाव है? उनका कार्य पृष्ठभूमि में होने पर भी अपरिहार्य है। इस संवर्ग के प्रति एक बार किसी भी स्तर पर किसी ने आभार व्यक्त नहीं किया। यह भी कि कुछ छुटपुट घनाओं को छोड़कर कहीं भी इस वर्ग की सेवाओं में कोी कमी नहीं पाई गई है। 
आप जैसे युवाओं को लोकतंत्र में नागरिक अधिकारों की अहमियत समझनी चाहिए और उसके समर्थन में खड़े होना चाहिए। पेशेगत समझ और लाभ को मानवीय जीवनाधिकारों पर वरीयता न दें। अपने बीच में से कुछ गलत लोगों को निकल बाहर करने में सहायक हों। आप जैसे ईमानदार को किसी भी कैमरे से कोई भय नहीं हो सकता।
आपके उज्जवल भविष्य के प्रति शुभ कामनाएँ। 
एक नागरिक         

शनिवार, 24 अप्रैल 2021

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर लघुकथा गोष्ठी २३-४-२०२१

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर - दिल्ली ईकाई 
लघुकथा गोष्ठी २३-४-२०२१

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर की दिल्ली ईकाई द्वारा २३-४-२०२१ को नरेंद्र कोहली जी की स्मृति में लघुकथा गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी का सरस संचालन करते हुए श्री सदानंद कवीश्वर ने स्व. नरेंद्र कोहली जी संबंधी आत्मीय संस्मरण सुनाए। सरस्वती वंदना के पश्चात् सर्व आदरणीय चंदा देवी स्वर्णकार जबलपुर, विभा तिवारी जौनपुर, शेख शहजाद उस्मानी शिवपुरी, गीता चौबे गूँज राँची, पूनम झा कोटा, भारती नरेश पाराशर जबलपुर, गीता शुक्ला फरीदाबाद, अनिता रश्मि राँची, रेणु गुप्ता जयपुर, मनोज कर्ण फरीदाबाद, रमेश सेठी रोपड़, शिवानी खन्ना दिल्ली, नीलम पारीक बीकानेर, सुरेंद्र कुमार अरोड़ा साहिबाबाद, शशि शर्मा इंदौर, सदानंद कवीश्वर दिल्ली, अंजू खरबंदा दिल्ली तथा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर ने लघुकथा पाठ कर गोष्ठी को समृद्ध किया।
गोष्ठी में प्रस्तुत लघुकथाओं पर अध्यक्ष आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', संचालक सदानंद कवीश्वर तथा विश्ववाणी हिंदी संस्थान दिल्ली ईकाई संयोजक अंजू खरबंदा ने यथोचित टिप्पणियाँ कर लघुकथाकारों को परामर्श दिया।


मुख्य अतिथि मनोज कर्ण जी ने विश्व साहित्य फलक पर हो रहे परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए लघुकथाकारों से पुनरावृत्ति से बचने का परामर्श दिया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने अभिनव प्रयोग करते हुए सभी सहभागियों के नामों को गूँथते हुए सद्य रचित लघुकथा सुनते हुए पुस्तक संस्कृति का महत्व प्रतिपादित किया। भारत में लघुकथा का उद्भव वन्य आदिवासियों की लोककथाओं से मानते हुए वक्ता ने लघुकथा के विकास, प्रकार, आधुनिक रूप, तत्व तथा वैशिष्ट्य आदि पर प्रकाश डाला। स्व. नरेंद्र कोहली से संबंधित संस्मरण सुनाने के पश्चात् सलिल जी ने वर्तमान लघुकथा की सशक्त हस्ताक्षर कांता रॉय तथा उनके पति श्री सत्यजीत रॉय के कोरोनाजयी होने का समाचार देते हुए उनके स्वास्थ्य लाभ, दीर्घायुष्य तथा सुदीर्घ योगदान की कामना की। आभार प्रदर्शन श्रीमती अंजू खरबंदा ने किया।

प्रस्तुत लघुकथाएँ :

१. किट्टी पार्टी - गीता चौबे 'गूँज' रांची, ८८८०९ ६५००६
*
'' क्या बढ़िया कचौरियां बनायी थी मिसेज शर्मा ने कल की किट्टी पार्टी में.. ! '' रोमा बड़ी चहकते हुए प्रिया को बता रही थी।
'' हां.. कितना अच्छा लगता है न.. हम सभी इक्ट्ठा हो एक - दूसरे का हाल लेती हैं, गप्पें लड़ाती हैं.. टाइम कितना अच्छे से बीत जाता है और एकरसता भी दूर हो जाती है हमारी... है न? '' सीमा ने भी उत्साह बढ़ाते हुए कहा।
तभी मिसेज दास ने दोनों की बातें सुन के बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा,.. '' क्या खाक अच्छी बनी थीं, मोयन तो डाला ही नहीं था.. मुझे तो एकदम बेस्वाद लगीं। ''
'' क्या मिसेज दास, आप तो हर चीज़ में कमी निकलती हैं, '' पीछे से आती हुई पिंकी तपाक से बोल पड़ी।
'' और नहीं तो क्या! पिछली किट्टी मेरे घर पर थी तब मैंने कितने पकवान बनाए थे.. याद है कि भूल गयी? ''
'' छोड़िए न मिसेज दास.. आप भी क्या बातें लेकर बैठ गयीं, '' रोमा ने फौरन बात संभाल ली। उसे डर था कि पिछली बार की तरह कहीं फिर से वाकयुद्ध न शुरू हो जाए जो उस किट्टी पार्टी में कड़वाहट भर गया था। ।
रोमा सोचने लगी कि किट्टी पार्टी गृहिणियों के लिए कितनी उपयोगी है। दिनभर की थकान और एकरसता को दूर करने के लिए एक स्वस्थ किट्टी पार्टी किसी शक्तिवर्धक पेय की तरह होती है ; पर मिसेज दास जैसी औरतों का क्या किया जाय जो एक उपयोगी किट्टी पार्टी का मज़ा किरकिरा कर देती हैं।
हर समाज में मिसेज दास जैसी महिला होती ही हैं। उनकी उपेक्षा तो नहीं की जा सकती है, पर समझदारी से उनके साथ निभाने में ही भलाई है।
***

२. बीइंग पॉज़िटिव -शेख़ शहज़ाद उस्मानी, शिवपुरी ९४०६५ ८९५८९
*
(सबेरे-सबेरे वीडियो बातचीत घर में शारीरिक दूरी सहित)-
"क्यों बेगम आज चाय भी नहीं मिलेगी क्या?... या मैं ख़ुद बना लूँ!"
"तुम्हारी पॉज़िटिव-निगेटिव रिपोर्टों ने तो मेरी जान खा ली। रसोई में हरग़िज़ मत जाना। थोड़ा सब्र करो!"
"करता ही तो हूँ ।"
"अब ये क्या चबा रहे हो?"
"तुलसी पत्तियाँ! पानी तुम तो सींचती नहीं, सो मैं ही तुलसी को पानी भी दे देता हूँ।"
"या अल्लाह! तुम तुलसी तक भी पहुंच गये! क्यूँ छुआ उसे?"
"मुझे आराम देती है तुलसी!"
"अल्लाह पर भरोसा रखो! ये आराम तो मेरी इबादत, वजीफ़ों-फूँकों और ख़िदमत से मिल रहा है जनाब!"
"उससे तो हमें-तुम्हें रूहानी सुकूँ मिलता है बेगम! दवाइयों-औषधियों से इलाज़ और इम्यूनिटी!"
***

३. प्रैक्टिकल -शशि शर्मा इंदौर, ९८२७२ ५३८६८
*
शिखा और उसके पति अपनी दोनों बेटियों के विवाह की जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके थे। नाती पोतों के साथ खुशी-खुशी अपने जीवन की इस पारी का आनंद ले रहे थे।दोनो जैसे एक दूसरे के लिए ही बने थे । सुबह-सुबह सैर पर जाना और फिर मंदिर जाना।शाम को अपनी स्कूटी पर लम्बी ड्राइव पर निकल जाना जैसे उनका रोज़ का नियम था ।विवाह के उपरांत पैतालिस बसंत कैसे निकल गए उन्हें पता ही नही चला । समय यूँ ही पंख लगाए उड़ रहा था । आस-पास के लोग अक्सर उनकी जोड़ी की मिसाल देते थे । एक दिन अचानक शिखा के घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी और रुदन स्वर से साफ पता चल रहा था कि कोई अनहोनी हुई है । शिखा के पति ह्रदयघात से चल बसे । सभी आपस में फुसफुसा रहे थे कि हंसों का जोड़ा टूट गया । बहुत बुरा हुआ ,'लव बर्ड्स 'थे । अब बेचारी शिखा का क्या होगा ।
कुछ दिन बाद सब अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए। लगभग दो महीने बीत चुके थे कि अचानक एक दिन जब शिखा ने सुर्ख लाल जोड़े में , मांग में सिंदूर और हाथों में चूड़ा पहने कॉलोनी में प्रवेश किया।उसके चेहरे की चमक उसकी प्रसन्नता स्वयं ही व्यक्त कर रही थी । शिखा ने चहकते हुए बताया कि अपनी बेटी के विदुर ससुर के साथ उसने विवाह कर लिया है और अब वह बहुत खुश है । शिखा ने सहज भाव से कहा कि जीवन में प्रैक्टिकल होना चाहिए ।
किन्तु मैं विचारों में खो गई कि पैतालिस वर्षो का साथ , सुख दुख के पल , एक दूसरे का साथ , जीवन की अनंत यादें इन सब को क्या दो महीने में 'प्रैक्टिकल ' होने के नाम पर भुलाया जा सकता है। अचानक शिखा के खिलखिलानें से मेरी तंद्रा भंग हुई और मैंने शिखा को बधाई दी ।
***
४. सौ बटा सौ -अन्जू खरबंदा दिल्ली
*
रामू बगिया में पिता के साथ पौधे रोपने और गुड़ाई करने में मदद कर रहा था ।
"क्यूं रे रामू, पेपर मिल गये क्या!"
बड़ी मालकिन ने अचानक आकर पूछा तो रामू सकपका गया ।
"जी...जी... मिल गये!"
हकलाते हुए उसने जवाब दिया ।
"कितने नम्बर आए !"
रोबीली आवाज में पूछा गया ।
"३५..."
"सिर्फ ३५... कुछ शर्म हया है कि नहीं! देखता भी है कि सारा दिन तेरा बाप खटता है! क्या जरा भी दया नही तेरे मन में!"
जोरदार डांट पड़ी और अभी जाने कितनी ही देर पड़ती रहती कि अचानक से बापू बीच में आ गये ।
"मालकिन! सारा दिन ये भी तो खटता है मेरे साथ! स्कूल से आते ही कपड़े बदल जल्दी जल्दी खाना खा, मेरे लिये खाना लेकर आता है और फिर मेरे साथ ही काम पर जुट जाता है और फिर घर पहुंच कर देर रात तक पढ़ता भी है ।"
"पढ़ाई के बिना आजकल कुछ नहीं । इसके भले के लिये ही समझाती हूँ!"
बड़ी मालकिन ने समझाने के लहजे में कहा ।
"जो बच्चा अपने पिता के प्रति दयाभाव रखे, उससे बड़ी बात और क्या होगी मालकिन!"
"और नम्बर....!"
"भले ही इसके पढ़ाई में ३५ नम्बर आये... पर मेरी तरफ से तो सौ बटा सौ ही हैं ।"
*
५. बीहनिकथा। (मैथिली लघुकथा)
एहि माटिक रंग - श्री मुन्ना जी
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-- अन्टी बधाइ हुअए ! पोती भेल ए।मिठाइ मँगाउ ने।
__अस्पताल क सिस्टर आबि विभाक साउस के जनतब देलक।
--यै, जे भेलै से नीके कहू।पहिलोठ चिलका छै।मुदा बुच्ची छ:मस्सू छै, बचतै की नै, से ड'र होइए !
-- नै यै अन्टी,बुच्ची हृष्ट-पुष्ट आ समय पूर क' नवम मास मे जन्म लेलक ऐछ।
-- यै, कहू त' भला छ:मस्सू नै त' सतमस्सू हेतै? बौआक विआहक साते मास त' भेलै ए।
-- से बात भाभीये जी कहती।.....चलू ने वार्ड में भेंट क' लियौन।
" भाभी जी, विआहक सात मास आ चिलका नौ मस्सू ?" कने कहियौन अन्टी के बुझा के।
-- हें...हें..हें।यै मम्मी, इहो त' स्त्रीये ने , हिनका नै बूझल छन्हि जे स्त्री सदति पुरूषक नीच्चे दबल रहै छै।कखनो नजरिक त'र त' कखनो देहक त'र ।
-- ऐं...! माने कतेक पुरूषक किरदानी छी इ चिलका ?
-- धौर ! इहो कोना चौल करै छथिन। हम दुनू गोटे एके ऑफिसक नोकरीहारा । हिनको बेटा त' पुरूषे ने ।
(प्रस्तुतकर्ता मनोज कर्ण ९५४०० ९५३४०)
हिंदी अनुवाद -पूनम झा
'इस मिट्टी का रंग'
"बधाई हो, बधाई हो आंटीजी! पोती हुई है। मिठाई वगैरह मँगाइए "- अस्पताल की नर्स एकदम से भागते हुए आकर विभा की सास से कहा।
"चलो जो हुई, अच्छी है। आखिर पहली संतान है। लेकिन बच्ची छः महीने में ही पैदा हुई है, सो बचेगी या नहीं ? मुझे इसी बात का डर है।"
"अरे नहीं, नहीं आंटी जी! आप चिंता न करें । बच्ची बिल्कुल स्वस्थ है । पूरे नौ महीने की है ।"
"ऐसे कैसे हो सकता है? भई ! छः नहीं तो सात महीने की होगी । अभी सात महीने ही तो हुए हैं उन दोनों की शादी के।"--विभा की सास ने कहा।
"अब ये बात तो भाभी जी ही बताएंगी। चलिए आप उनसे मिल सकती हैं।"
दोनों डिलेवरी वार्ड में पहुंचते ही नर्स ने - "भाभी जी! आंटी जी को जरा समझा दीजिये कि शादी के सात महीने और बच्ची नौ महीने की कैसे ?"
विभा--"हें..हें..हें..मम्मी जी! आप भी तो स्त्री ही हैं । आप जानती ही हैं कि पुरुषों की नजरों से स्त्री को बचना कितना मुश्किल है ।"
"मतलब!!!.....ये बचिया किसी और ........."
"छि:..छि:...मेरे कहने का ये मतलब नहीं था मम्मी जी। आपको तो मालूम ही है कि मैं और आपका बेटा दो साल से एक ही ऑफिस में काम करते हैं । फिर आपका बेटा भी तो पुरुष ही है।" एक सांस में कह गई विभा।
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६. विकल्प - सुरेंद्र कुमार अरोड़ा, साहिबाबाद ०९९१११ २७२७७  
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महामारी ने फिर से सारे शहर को अपनी गिरफ्त में ले लिया था । आज शाम को तय हो जाना था कि फेक्ट्री चलती रहेगी या उसे फिर से बंद करना पड़ेगा ।
" अगर फैक्ट्री बंद करने की बात हो गई तो तय था कि मालिक सारे वर्करों को फिर से घर बिठा देगा । और फिर से भूखों मरने की नौबत भी आ जाएगी । पिछली बार तो उसके साथ सावित्री अकेली थी ।किसी तरह फांकों के बीच मरते - खपते दो महीने बीता लिए थे , घर बैठकर और उसके बाद जब गांव के लिए पैदल ही तीन सौ मील का रास्ता तय किया था तो इतने लम्बे रास्ते में न जाने कितनी बार मौत से सामना हुआ था ।
अगर इस बार फिर वही नौबत आ गई तो मौत तय है क्योंकि इस बार सावित्री ही नहीं , नन्हीं सी जान बबली को कैसे संभालेंगे ? बिना काम के , बिना मजदूरी के उसकी भूख प्यास कैसे मिटेगी ?
अभी तो रेल बंद नहीं हुई है तो क्यों न अभी ही मुक्कमल तालाबंदी से पहले ही गांव की टिकट करवा लूं ? वक्त रहते गाँव तो पहुँच जायेंगें। तालाबंदी हो गई तब तो यहां मौत पक्की ही समझो । "
फकीरा ने अपना इरादा सावित्री को बता दिया ।
पति की बात को सुनते ही सावित्री सुन्न हो गई ।
" कछु बोल क्यों नहीं रही ? हम तय किए हैं कि बखत रहते गांव चल पड़त हैं । या दफे पैदल नाहीं चल सकबे । "
सावित्री अब भी चुप थी।
" कछु तो बोल । हम जात हैं टिकट करियावे। " फकीरा झल्लाया।
"का बोली ! का कहत हो । गांव में तुम्हरे बदे होटल खुला बा का , जो उहाँ जैहो । किस्मत भली रही जे फेक्ट्री मालिक तुमका बुलाय लीहिस , बतावा हमका , तुमका उहाँ देख कै कउनो खुस हुआ रहा का ? रोजै तो दाल - चावल के बदे झगड़ा - टंटा ही रहल। ऊ त किस्मत जोर मारिस ज मालिक के बुलावा आ गईल , नहीं त तुम्हरे भइयन संग बंटवारे का चक्कर मां एक - आध खून तय रहल । सुन लेओ , मरी चाहे जी जाइब , हम ई सहर छोड़ क न जाइब। इहें रहब । जोन कुछ होईब , हम अपने आप देख लेब , तोहका चिंता करै की कौनो जरुरत नाहीं है , हम खुदई देख लेब। " सावित्री ने अपना चेहरा क्रोध से लाल कर दिया।
फकीरा को लगा सावित्री ठीक कह रही है। अब उसकी जिंदगी का हर दुःख , हर सुख इसी शहर के साथ है। वो किसी नए काम के बारे में सोचने लगा।
संपर्क : डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन ,साहिबाबाद - 201005 ( ऊ प्र )
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७. मदद - विभा तिवारी जौनपुर ८७०७७ ४०७५६ 
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"अरे तुम सब खड़े खड़े मुँह क्या ताक रहे हो, मोड़ पे जाकर देखो कोई आया कि नही ।" प्रताप यादव गुर्राते हुए बोला
"अभी नही भाई, हम तब से उन्हें ही देख रहे हैं" राम पाल बोला।
प्रताप यादव काशीपुर गाँव का प्रधान था ।आज उसने लॉकडाउन के दौरान गरीबों को खाना देने के लिए इकट्ठा किया हुआ था। उसके कहने पर ही उसके प्रिय और मुँहलगे सेवक, रामपाल(जो हर अच्छे बुरे कर्मो में उसका साथी था) ने सारा प्रबंध कर रखा था। प्रधान जी को अखबार और टीवी पर स्वयं को देखने का बड़ा शौक था। सभी मीडिया के लोगों की प्रतीक्षा कर रहे थे।
सामने मेज पर खाने के छोटे छोटे पैकेट रखे थे ,वही पर प्रताप यादव और उसके चेले घूम रहे थे, एक ओर थोड़ी दूरी पर बहुत से लोग खाना पाने के इंतजार मे ज़मीन पर बैठे थे। उसी भीड़ में एक सात आठ वर्ष का बच्चा भी अपनी माँ के साथ बैठा था, जो खाने की तरफ बड़ी ललक से देखे जा रहा था। बीच बीच मे व्यग्र हो जाता था। उसके बिखरे बाल,फटे कपड़े धँसी हुई आँखे ,अपने सूखे होठों पर बार बार जीभ फेर रहा था,देखने से हीं लग रहा था कि वो बहुत गरीब है और कई दिन से पेट भर खाना नही पाया था। पास हीं उसकी माँ उसका हाथ पकड़े बैठी थी।
इतने में प्रताप यादव को वहाँ से थोड़ा हटना पड़ा तो वह बच्चा खाने वाली मेजके पास किसी को न पाकर लपक कर वहाँ पहुँच गया। जैसे हीं उसने हाथ पैकेट की तरफ बढाया....
"चटाक..." प्रताप यादव का झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा। वह बोला, "हरामखोर, ये सब क्या हमने अपने लिए रखा है?? तुम लोगों की मदद के लिए ही रखा है न ? थोड़ी देर नही खाएगा तो मर जायगा क्या ? फ़ोटो खींचने तक भी सब्र नहीं है, सालों को..., जा मर" ये कहते हुए उसने बच्चे को जोर से धक्का दिया।
बच्चा जाकर अपनी माँ के पास गिरा। माँ ने लपककर उसे गोद में उठा लिया। बच्चे ने सहम कर माँ के आँचल में मुँह छिपा लिया।
माँ को बच्चे के आँसू और फ़ोटो खिंचवाने के लिए प्रताप नारायण के होंठों पर आई बनावटी मुस्कुराहट एक साथ दिखी और उसके चेहरे पर कठोरता बढ़ती चली गई।
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८. कल्चरल प्रोग्राम - पूनम झा कोटा, ९४१४८ ७५६५४
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अपने छोटे बेटे गोलू को स्कूल से लेकर आयी रमा घर में प्रवेश करते ही पति को बड़े बेटे रवि जो दसवीं कक्षा का छात्र है , पर आगबबूला होते हुए देख कर चौंक कर पूछी -"क्या हुआ ..?"
"ये साहबजादे स्कूल नहीं जाते हैं, लड़कियों से छेड़छाड़ और मटरगश्ती करने जाते हैं ।" क्रोध से पति ने कहा ।
"..........." रमा सवालिया नजरों से देखती रही ।
"अरे! इसके स्कूल के प्रिंसिपल का फोन आया था । शिकायत कर रहे थे और कल हमें स्कूल बुलाया है ।"
"रवि! क्या हमलोगों ने तुम्हें यही सिखाया है ?" रमा बेटे की ओर मुखातिब होते हुए बरस पड़ी "हमारी क्या इज्जत रह जाएगी ? हमारी तो छोड़ो, तुम्हें अपने कैरियर की कोई चिंता नहीं है ? तुम्हारा अब बोर्ड है ...।"
रवि सिर झुकाए कोने में खड़ा था और गोलू जो दूसरी कक्षा में है , अपने हाथ में प्राईज लिए बारी-बारी से सबको देख रहा था ।
रमा की नजर उसपर पड़ते ही प्यार से बोल पड़ी --"अरे रे रे...मैं तो भूल ही गई !!!!...। देखिये गोलू को डांस में फर्स्ट प्राईज मिला है । मैं इसके डांस का विडियो पेन ड्राइव में लेकर आयी हूँ । आईये सबलोग देखिये गोलू कितना अच्छा डांस करता है । बिल्कुल गोविंदा की तरह डांस कर रहा है ।"
ये कहकर रमा ने पेन ड्राइव को टीवी में लगाकर गोलू के स्कूल के कल्चरल प्रोग्राम में गोलू के डांस का विडियो शुरू करके, सबके लिए खाना लगाने रसोई में चली गयी ।
दोनों बच्चे और पापा बहुत खुश हो-होकर गोलू का डांस देख रहे थे । डांस का गाना बज रहा था "मैं तो भेलपूड़ी खा रहा था ..लड़की घुमा रहा था .. तुमको मिर्ची ...।"
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९. महादान - भारती नरेश पाराशर जबलपुर, ८८३९२ ६६४३४
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बेचैन हो कर पति-पत्नी ने कहा, "डाक्टर साहब अब कैसी है हमारी सौम्या?"
_हम बचा नहीं पाए सौम्या को।
नहीं नहीं डाक्टर आप ऐसा नहीं कर सकते। आपने कहा था सौम्या ठीक हो जाएगी।
_भगवान की मर्जी के आगे हम सब मजबूर हो जाते हैं।
कहां है मेरी बेटी !कहां है!
पति ने पत्नी को संभाल कर बैठा दिया। तभी डाक्टर ने एक विनंती की कि मैं आपको कुछ सुझाव देना चाहता हूं।कारण आप दोनों पढ़ें लिखे हो।
पत्नी ने आशा भरी दृष्टि से पूछा," क्या सुझाव है हमें मंजूर है। मैं सौम्या के लिए कुछ भी कर सकती हूं। बताइए ना डाक्टर साहब आप पैसे की चिंता न करें।
_ डाक्टर ने पति से कहा," मैं आपसे अकेले में बात करना चाहता हूं।"
पत्नी ने कहा नहीं! नहीं! हम दोनों की हमेशा एक ही राय होती है। आप हम दोनों के सामने बात कर सकतें हैं।
_डाक्टर साहब ने गला साफ करते हुए बिना पति-पत्नी से आँखें मिलाए एक सांस में कहा कि आप सौम्या के अंग दान कर आप अपनी सौम्या को कई जिंदगियों मे देख सकते हों।
पति-पत्नी दोनों ने एक-दूसरे के हाथ कसकर पकड़ लिए। आंखों की धारा बह निकली और कलेजा मुँह को आ गया गले का थूक निगल नहीं पाए .........।
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१० चुप न रहो - गीता शुक्ला फरीदाबाद, ९८११५ ६६५६८
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रात ११ बजे डोर बैल बजी। सभी ने एक दूसरे की तरफ प्रश्नात्मक निगाहों से देखा, सबके मन में यही सवाल था कि इतनी रात गए कौन हो सकता है? भैया ने दरवाजा खोला और स्तब्ध रह गए, सामने पारुल दीदी जिसकी अभी एक माह पूर्व ही शादी हुई थी, हाथ में सूटकेस लिए भीगी आंखो से उनकी ओर देख, बिना कुछ बोले सकुचाई सी अंदर आ गई और चुपचाप अपने कमरे में चली गई ।
मां ,बाबूजी,भैया,भाभी सब पारुल दीदी के पीछे पीछे उनके कमरे में पहुंचे और दीदी को घेर लिया और पूछने लगे ’बेटा क्या बात है?क्या हुआ है तुझे?’बता ,बोल बेटा बोल। परन्तु दीदी थी कि रोए जा रही थी.....
एक माह ही तो हुआ था दीदी की शादी को। कितने अरमानों से विदा किया था बाबूजी ने अपनी बेटी को यही सोचते माँ बाबूजी बदहवास से एक दूसरे को देखने लगे.....। बहुत पूछने पर भी पारुल कुछ नहीं बोल पा रही थी । बाबूजी ने आगे बढ़कर कहा, "बहुत रात हो गई है, इस समय सब सो जाओ सुबह बात करेंगे। सब सोने चले गए। मैं दीदी के पास ही रुक गई।
जैसे तैसे रात बीती। कोई शायद सो नहीं पाया था ।सुबह मै दैनिक प्रक्रिया से निवृत हो, रसोई में चाय बनाने के लिए चली गई। धीरे धीरे सभी अपने अपने कमरे से निकल हॉल में आ गए। सबने चाय पी ली तो बाबूजी उठकर पारुल दीदी के पास गए,
उनके सिर पर हाथ रखा और बोले, "बेटा अब बता क्या बात है"। दीदी फिर से रोने लगी। स्वयं को बड़ी मुश्किल से संभाल पारुल दीदी ने कहा, "बाबूजी, विकास ने हमे धोखा दिया है"
बाबूजी चौंक कर बोले, "क्या कह रही हो, बेटा ?"
दरअसल, विकास की बढ़िया जॉब, उसका रुतबा और सादगी देख कर सभी को ये रिश्ता बहुत पसंद आ गया था, शायद इसीलिए सरल हृदय बाबूजी ने ज्यादा पूछताछ न करते हुए, रिश्ता पक्का कर दिया था। फ़िज़ूलख़र्ची और दिखावे के आडम्बर को खारिज करते हुए विकास ने कोर्ट मैरिज की बात कही थी, साथ ही ये भी कहा था कि जो पैसा व्यर्थ के रिवाजों में खर्च होगा वो उनके सुखी भविष्य के काम आ सकता है, बाबूजी ने भी उदारता और बड़प्पन दिखाते हुए एक मोटी रकम विकास को नकद दे दी थी, और उनकी कोर्ट मैरिज करवा दी थी।
"बाबूजी", पारुल सिसकी भरते हुए आगे बोली, "विकास पहले से शादीशुदा है, उसकी पहली पत्नी नीलू पटना में नौकरी करती है और वो भी इस शादी से अनजान थी। आज ही शाम अचानक वो दिल्ली आई और मुझे देख मेरा परिचय जानने को आतुर वो विकास से मेरे बारे में पूछ रही थी। निरुत्तर सा विकास बगलें झाँकने लगा तो मै ही बोली "मैं इनकी पत्नी हूँ, लेकिन आप कोन है" ?
”इनकी पत्नी।” इतना कह नीलू विकास पर बरस पड़ी "तुमने मुझे इतना बड़ा धोखा दिया, में तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी" । अपनी बात आगे बढ़ाते हुए पारुल बोली,"नीलू को समझाते बुझाते विकास मुझपे भी चिल्लाने लगा। मैं नहीं समझ पा रही थी कि ये सब क्या है? अब में क्या करूंगी। कहां जाऊंगी? मै सबको क्या कहूंगी? सब मेरी ही गलती समझेंगे , मेरी तो जिंदगी खराब हो गई, बाबूजी"। ऐसा कह पारुल फिर से रोने लगी।
पारुल का ये हाल देख हम सब परेशान थे। सोच रहे थे कि क्या करें। बाबूजी सोफे से उठे ओर चिंतित मुद्रा में गुस्से में पारुल के पास आ उसे दुलराते हुए उसके सर पर हाथ रख सशक्त आवाज में बोले "बेटा उठ हमें अभी पुलिस स्टेशन जाना है और विकास के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करानी है, तुझे फिजिकली तो अब्यूज नहीं किया ना ।तेरे साथ कुछ मार-पीट आदि की हो तो बता।”
पारुल चुप थी उसकी चुप्पी सबको साल रही थी।तभी चिंतातुर बैठी माँ उठी और जोर से चिल्लाई, "बोल, पारुल... बोल, भगवान के लिए चुप ना रह। सब कुछ सच सच बता दे बेटा,मेरा तो कलेजा फटा जा रहा है"।
परिवार के इस सपोर्ट ने मानो पारुल में नई जान फूँक दी थी और पारुल बाबूजी ओर भैया के साथ पुलिस स्टेशन की ओर चल दी।
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११. आत्म मुग्ध - नीलम पारीक बीकानेर, ९७९९२ ८०३६३
*
- हेलो मैडम! अभी आपको वाट्सऐप पर एक कविता भेजी है। प्लीज, देखकर बताइए न कि कैसी लिखी है?
= देखिए, मैं कोई कवयित्री नहीं हूँ। मुझे इन सबका कोई ज्ञान नहीं है। आओ किसी को भेजिए न, जो सही राय दे सके।
- नहीं मैडम, आप ही बताइए, जैसी भी लगे। और हाँ, कोई कमी हो तो जरूर बताइए।
कुछ देर बाद
= हेलो हिमेश जी! वो आपकी कविताएँ पढ़ीं, खूबसूरत लिखी हैं।
- शुक्रिया मैडम!
= वो शीर्षक कुछ जँच नहीं रहा।
- मैडम! आपकी आवाज नहीं आ रही।
= हिमेश जी जितनी सुंदर कविता है उसी के अनुसार शीर्षक दिया है तुमने।
- है न मैडम। मालूम था मैडम आप ही समझ पाएँगी मेरी कविता को। बहुत बहुत शुक्रिया।
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१२. साहसी कदम -सदानंद कवीश्वर ९८१०४ २०८२५ 
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पिछले तीन दिनों से शालिनी का रो-रो कर बुरा हाल था, न उसे खाने की सुध थी, न नहाने-धोने की, अब तो एसा लगने लगा था, मानो आँसू भी सूख गए हों l
मोटरसाइकिल पर घर से निकला उसका बेटा शिखर, रिंग रोड पर एक ट्रक से टकरा कर वहीँ बेहोश हो गया था l हालाँकि लोगों ने उसे तुरंत ही पास के एक बड़े अस्पताल में पहुँचा दिया था, पर आज तीसरे दिन भी उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो पाया था l अचेतावस्था में वह आई.सी.यू. में लेटा हुआ था और होश में हो कर भी एक तरह से बेहोश सी शालिनी आई.सी.यू के बाहर बैठी हुई थी l दोनों ही दीन दुनिया से बेखबर l घर का कोई न कोई सदस्य शालिनी के साथ वहाँ होता था, पर शालिनी थी कि वहाँ से हटने को तैयार न थी l
“शालू, थोडा सा तो कुछ खा लो, ऐसे तो तुम्हारी भी तबीयत ख़राब हो जाएगी l” उसके पति रमेश ने समझाने की कोशिश की, पर शालिनी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी l
“शिखर ठीक तो हो जाएगा न ?” उसने कातर स्वर में पूछा l
“हाँ, हाँ... बिल्कुल हो जाएगा, आज पन्त हॉस्पिटल से एक सीनियर न्यूरो सर्जन को बुलाया है l”
“कब आएंगे वे ?” शालिनी ने पूछा l
“वे आ चुके हैं और यहाँ के डॉक्टर्स के साथ अन्दर ही हैं l”
शालिनी फिर से अपने सब देवी देवताओं को मनाने लगी l इतने में आई.सी.यू. के इंचार्ज डॉक्टर दीवान ने रमेश को इशारे से बुलाया और वरांडे में एक ओर ले जा कर बोले, “मैं आपकी हालत समझ सकता हूँ, पर कभी-कभी होनी के आगे हम विवश हो जाते हैं, शिखर ब्रेन डेड वाली हालत में पहुँच चुका है, जहाँ से अब उसका लौट पाना असंभव है l आप उसकी मदर को हौसला दीजिए और....” डॉक्टर दीवान ने शायद जान कर बात अधूरी छोड़ दी थी l
रमेश शालिनी के पास आ कर कुछ कहते इससे पहले ही कातर और दयनीय सी शालिनी में न जाने कहाँ से एक विचित्र सा आत्मविश्वास जाग उठा था, अचानक वह उठ के खडी हो गयी और दृढ़ता से बोली, “मैं वरांडे में इस तरफ खडी थी, मैंने आपकी और डॉक्टर की बात सुन ली है”, फिर रुंधे हुए गले से बोलीं, “मेरा शिखर जा रहा है, हमेशा सबकी मदद करने वाला और दुआएँ लेने वाला शिखर जाते जाते भी खाली हाथ नहीं जाएगा l आप डॉक्टर से बात करिये हमें शिखर की आँखें, किडनी, हार्ट, लीवर डोनेट करने हैं, मेरा बच्चा जाते जाते भी दुआएँ ले कर ही जाएगा l”
सिर पर टूटे दुःख के पहाड़ के बावजूद जब रमेश डॉक्टर दीवान के कमरे की तरफ जा रहे थे तो उनकी आँखों में आँसू और दिल में शालिनी - द्वारा उठाए इस साहसी कदम के लिए अपार प्रशंसा के भाव थे।
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१३. मदर डे - रमेश सेठी, रोपड़, ७००९२ ६७९५२
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सुबह आंख खुलते ही मानसी के मन में अपनी सखी सोनिया की बातें घूमने लगीं" कल मदर डे है,मैं तो कल बैठे बैठे ही नाश्ता लुंगी और फिर सैर को निकल जाऊंगी ।"
मानसी के चेहरे पे निराशा और चमक के भाव बारी बारी आ जा रहे थे -खिड़की से ठण्डी हवा आ रही थी-मानसी ने लेटे रहने का निश्चय किया और मन में ख्याली पुलाव बनाने लगी "आज तो मैं भी राज या बच्चों के हाथ का बना नाश्ता करूंगी।" तभी जोर से आती आवाज़ों ने उसके सुंदर ख्यालों को चकनाचूर कर दिया । राज और बच्चे नाश्ता मांग रहे थे -मानसी ने सब सुना और चादर से मुंह ढकते हुए बोली"आज मेरी तबियत ठीक नही है,अपने लिये भी बना लो और मुझे भी थोड़ा दे देना"
"मां,मैं कैंटीन में खा लूंगा"
मां मैं भी कॉलेज कैंटीन में खा लुंगी"
"मानसी,मैं भी पास के होटल से खा लूंगा"
मानसी का जवाब सुने बिना ही सब चले गए। मानसी को लगा जैसे अनेकों घड़े पानी किसी ने उस पे डाल दिया हो-याब उसकी मुस्कान दर्द में बदल गयी ।
लेटे लेटे पता ही न चला कब 9 वज गए -काम वाली रानी ने मालकिन को उदास लेटे देखा तो बोली"आपकी तबियत ठीक नही तो मैं खाना बना दूं"
रानी के राहत भरे शब्द से मानसी की उदासी झट से छू मंत्र हो गयी -झट से रसोई में गयी और बोली "रानी ,तू काम कर ले , मैं तेरे लिए परांठा बनाती हूँ ।"
परांठे बनाते हुए मानसी की ममता और करुणा फिर से जाग उठी और लगे हाथ परिवार के लिये दुपहर का खाना बनाने लगी।
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१४. Keto’s Diet - शिवानी खन्ना दिल्ली, ९८१०४ ३९७८९
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बेल बजी ,उधर कुकर की “ओहो
आई “मैंने किचन से आवाज़ दी
“अर्रे रमा दीदी आओ ,आओ”
आज हमारे घर का रास्ता कैसे भूल गयी ,
सजी धजी रमा दीदी को देख मैंने बाल ठीक करते हुए कहा
“मैं तुम्हारे पड़ोस में dietician डॉक्टर निशा के पास आइ थी
वेट maintain करने के लिए KETO diet बताई है,वैसे तो आइ हैव maintened वेल 35 से एक दिन ज़्यादा नहीं ।
“अच्छा हाँ ,मैंने kitchen से आती सीटी की तरफ़ ध्यान देते कहा ।
रमा दीदी ने पूछा कुछ ख़ास बना रही हो?
हाँ आज शाम आशीष के दोस्तों का डिनर है
बस दाल मखनी रह गयी बाक़ी दम आलू , शामी कबाब ,चिकन मसाला ,गोभी फ़्राइड ,दही भल्ले बनाए है ।
“आप के लिए लाती हूँ ज़रा टेस्ट करके बताना”
कहते मैं किचन में चली गयी
“इतना सारा खाना ले ,तुम्हें अभी तो बताया Keto diet पर हूँ 😒
पर तुम्हें क्या पता।
कुछ रिश्तेदारो की आदत होती है वो तानो का तोहफ़ा साथ लाते हैं
अभी बैठने लगी थी कि बिजलीवाला आ गया geyser लगाने ।
“दीदी आप कुछ लो मैं अभी आती हूँ “कह मैं बाथरूम की तरफ़ चली
५ मिनट हुएँ रमा दीदी कि आवाज़ आयी
“मेरे पार्लर से फ़ोन आया हैं मैं जा रही हूँ तुम दरवाज़ा बंद कर लो “
अभी मैं कुछ कहती कि मेज़ पर नज़र गयी
४ कबाब में ३ ,१ दही भल्ला आधा चिकन मसाला से लेग पीस और गोभी को भोग लग चुका था
शायद इस को Keto diet कहते है
***

१५. जंगल - अनिता रश्मि राँची, ९४३१७ ०१८९३
*
सुगुना फावड़ा चलाए जा रहा था और उसकी सोच के घोड़े दौड़ रहे थे।
" का फायदा!... इस बेर तो लगता है, भादो भी सूखले रहेगा। " साथी गोपी ने रोका।
सच में महीनों से कोई सुगबुगाहट नहीं। बैल-हल की चाल नहीं, रोपा नहीं। एक भी किसान नहीं।
लेकिन उसकी आस इतनी जल्दी टूटी नहीं। हर एक-दो दिन पर बादलों की भरमार से भरमाकर वह और अन्य दो-चार खेतिहर खेतों में उतर ही जाते। कभी फावड़ा-कुदाली, कभी हल-बैल, कभी ट्रैक्टर, किसी न किसी की मेहरबानी से खेतों का सन्नाटा भंग हो जाता। साथ में उसके छोटे-छोटे बच्चे भी खेतों की रौनक बढ़ा देते।
इस बेर भी पूरा सावन बदरिया आँख-मिचौली खेलती रह गई। भादो भी आधा बीत चला था। खेतों में छींटे गए बीज खाँसते-कराहते हुए किसी तरह नन्हें पौधों में बदल पाए थे। बिचड़े सूख रहे थे।
एक दिन अचानक खेतों से आवाजें। अधसूखे खेतों में खड़े बाबूनुमा लोग नापी कर रहे थे। मेड़ों पर खड़े पैजामा-धोतीधारी लोग लाइन से खड़े थे। सबके चेहरे पर एक अजब सी खुशी, संतुष्टि का भाव।
कुछ ही दिनों में वहाँ कंक्रीट के जंगल उगाने की तैयारी जोरों पर थी। अधिकांश किसान विभिन्न व्यापार, काम में अपना भविष्य तलाशने लगे थे। सुगुना उनमें से नहीं था।
***
१६. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'जबलपुर, ९४२५१८३२४४ 
चंदा की विभा से आनंदित शेख के कानों में गीता की गूँज सुनाई दी। पूनम की चंद्रिका से आलोकित होते अंतर्मन में भारती की आरती उतारकर अनीता के माथे पर रेणु से तिलक लगाते हुए अंजू ने सदानंद को विश्व पुस्तक दिवस पर शुभ कामना दी। 
आचार्य जी ने मनोज और रमेश से पुस्तकें लौटने का अनुरोध किया तो शिवानी ने पूछा - 'क्या करेंगे पुस्तकें वापिस लेकर? आपको तो आभारी होना चाहिए कि आज के समय में भी कोई किताबें ले गया तो आपके कमरे में आपके बैठने के लिए स्थान तो है अन्यथा कमर किताबों से ही भर जाता और आपको खुद बाहर बैठना पड़ता।' 
- 'आपको किताबों से मोह की हद तक लगाव क्यों है?' पूछ रहा था सुरेंद्र। 
- 'किसी डाक टिकिट संग्राहक के पास जितने अधिक टिकिट हों और टिकिट एकत्र करने की इच्छा उतनी ही अधिक होती है।' नीलम जड़ी अंगूठी अंगुली में घूमते हुए शशि बोल पड़ी। 
= 'कोई तीर्थयात्री जितने तीर्थ करता जाता है, नए तीर्थ के दर्शन करने की उसकी इच्छा उतनी अधिक प्रबल होती जाती है। मुझ निर्जीव को सजीव बनाने वाली ये पुस्तकें तीर्थ से कम पवित्र नहीं हैं। यही मेरे जीवन की कमाई है। 
धन की सार्थकता न तो संचय करने में है, न लुटाने में, उसका सदुपयोग करने में ही उसकी सार्थकता है। 
पुस्तक न लौटानेवाले पुस्तक पढ़ता भी नहीं है। जो पुस्तक ले जाकर पढ़ता है, वही अगली पुस्तक लेने के लिए पुरानी पुस्तक लौटाता है। 
ये पुस्तकें मेरी बेटी जैसी हैं जिनकी बहुत जतन से मैंने हमेशा रक्षा की है। पिता बेटी का  हाथ उसे ही देता है जो उस हाथ को सहेजना-सम्हालना और हमेशा थामे रहना जानता हो। मुझे भी ऐसा हाथ मिलने तक पुस्तकें वापिस लेकर उसी तरह सुरक्षित रखना होगा जैसे कोई पिता पुत्री को सुरक्षित रखता है। 
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समीक्षा लघुकथा गिरिजेशनारायण सक्सेना

पुस्तक सलिला :
चाणक्य के दाँत : हवा के ताजा झोंके सी लघुकथाएँ
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[पुस्तक विवरण : चाणक्य के दाँत, लघुकथा संग्रह, कनल डॉ. गिरिजेश सक्सेना 'गिरीश', प्रथम संस्करण २०१९, आकार २१.५ से.मी. x १४.५ से.मी., आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ १३६, मूल्य २०० रु., अपना प्रकाशन भोपाल ]
मानव सभ्यता के विकास के आरंभ से 'कहने' की प्रवृत्ति ने विविध रूप धारण करने आरंभ कर दिए। लोक ने भाषा के विकास के साथ 'किस्से', 'कहानी', 'गल्प', 'गप्प' आदि के रूप में इन्हें पहचाना। लोक जीवन में चौपाल, पनघट, नुक्कड़ आदि ने 'लोक कथा' कहने की लोक परंपरा को सतत पुष्ट किया। मंदिरों ने 'कथा' को जन्म देकर विकसित किया। उत्सवधर्मी भारतीय समाज ने पर्व-त्योहारों के अवसर पर जीवन पूलों और परंपराओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए 'पर्व कथाओं' का उपयोग किया। लिपि के विकास ने वाचिक कथा साहित्य को किताबी रूप दिया। नादान बालन को जीवन दृष्टि देने के लिए पंचतंत्र और हितोपदेश, गूढ़ सिद्धांतों को सहजता से समझाने के लिए 'जातक कथाएँ' और 'बेताल कथाएँ' , पर्यटन को प्रत्साहित करने के लिए घुमक्कड़ी वृत्ति संपन्न 'पर्यटन कथाएँ' (सिंदबाद की कहानियाँ आदि), मनोरंजन के लिए अलीबाबा के किस्से अदि अनेक रूपों में कहने-सुनने की परंपरा विकसित होती गयी। आधुनिक हिंदी (खड़ी बोली) के विकास और स्वतंत्रता के बाद साहित्य को वर्गीकृत करने की प्रक्रिया में आंग्ल भाषा में शिक्षित वर्ग ने अंग्रेजी साहित्य को मानक मानकर उसका अनुकरण आरंभ किया। तदनुसार सुदीर्घ भारतीय लोक परंपरा की उपेक्षा कर अंग्रेजी की 'शार्ट स्टोरी' के पर्याय रूप में 'लघुकथा' को प्रस्तुत करने का प्रयास हुआ। वैचारिक प्रतिबद्धतता के नाम पर लघुकथा में सामाजिक विसंगतियों को उभरने को तरजीह दी जाने लगी। लघुकथा, व्यंग्य लेख और नवगीत में नकारात्मकता को उभरना ही श्रेष्ठता का पर्याय मन जाने लगा। गत दशक में स्त्री विमर्श के नाम पर पुरुष-निंदा और सास-बहू प्रसंग के मिलते-जुलते कथ्य वाली लघुकथाओं की बाढ़ आ गयी। इसके साथ ही लघुकथा में खेमेबाजी भी बढ़ती गयी। अर्थशास्त्र में कहावत है कि दो अर्थशास्त्रियों के ३ मत होते हैं, लघुकथा में स्थिति और बदतर है। हर मठाधीश के अपने-अपने मानक हैं, एक-दूसरे को ख़ारिज करने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। इस परिदृश्य का उल्लेख इसलिए कि बहुत दिनों बाद बंद कमरे में हवा के ताजे झोंके की तरह 'चाणक्य के दाँत' लघुकथा संकलन मिला, एक ही बैठक में आद्योपांत पढ़ जाना ही प्रमाण है कि इन लघुकथाओं में दम है।
गिरिजेश जी कनल रहे हैं और डॉक्टर भी, अपने दायित्व निर्वहन हेतु उन्हें न्यायालयों में बार-बार उपस्थित होना पड़ा है। कुछ रोचक प्रसंगों को उन्होंने लघुकथा में ढालकर सफलता पूर्वक प्रस्तुत किया है। ''दस्तूर'' लघुकथा न्यायालय व्यवस्था में घर कर चके भ्रष्टाचार की झलक इतने संयत, प्रामाणिक और रोचक तरीके से प्रस्तुत करती है कि पाठक मुस्कुरा पड़ता है। लघुकथा ''जहाँ चाह'' में न्यायालय का उजला पक्ष सामने आया है। लघुकथाकार कथांत में "जज साहब ने एक मिसाल कायम की और सिद्ध कर दिया जहाँ चाह वहाँ राह'' के माध्यम से न्यायिक सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज़्म) को सराहा है। एक अन्य लघुकथा ''ऐसा भी होता है'' में भी गिरिजेश जी ने न्यायाधीश के दबंग और सुलझे रूप को प्रस्तित किया है। इस लघुकथा में यह भी उभर कर आया है कि जिन वकीलों की आजीविका ही न्याय कराने की है, वे ही न्याय संपादन में बाधक हैं और उनके साथ सख्ती किये बिना अन्य चारा नहीं है। ''जलवे'' शीर्षक लघुकथा न्यायाधीशों द्वारा गलत परंपरा को प्रोत्साहित किये जाने को इंगित करती है। 'पेशी' लघुकथा में न्यायाधीश का अहंकार उभर कर सामने आया है।
"हम क्यों जीते वो क्यों हारे" लघु कथा भारत-पाकिस्तान युद्ध १९७१ में पाकिस्तान की पराजय के बाद बंदी पाकिस्तानी सिपाही द्वारा अपने अफसरों के कदाचरण और भारतीय सैन्य बल की श्रेष्ठता को स्वीकारे जाने पर केंद्रित है। यह सत्य सुविदित होने के बाद भी इसे लघुकथा के रूप देखना सुखद है। "घडी से लटका आदमी" सैन्य जीवन में समय की पाबंदी पर चुटकी है। पाठक के अधरों पर मंद स्मित लाती यह लघुकथा सामान्यता में असामान्यता का उदाहरण है। सामान्यत: सुंदर युवतियों को देखकर रोमानी सोच रखना और बातें करना भारतीय समाज का दस्तूर सा बन गया है। एक अनजान सुंदरी को देखकर अपनी बेटी की याद करना, एक सहज किंतु अप्रचलित बिम्ब है जिसे ''जे की रही भावना जैसी '' शीर्षक लघुकथा में प्रस्तुत किया गया है। यह लघुकथा भी सैन्य पृष्ठ भूमि में रची गयी है। 'मेरी मिट्टी' में सैन्य कर्मी की अदम्य जिजीविषा उद्घाटित हुई है।
कोरोना से लड़ाई में सरकारी सेवा के चिकित्सकों का उजला पक्ष सामने आया है जबकि इसके पूर्व सरकारी चिकित्सकों के गैरजिम्मेदार व्यवहार की ही खबरें सामने आती रहे हैं। आज सरकारी चिकित्सक वर्ग का पूरा देश और समाज अभिनन्दन कर रहा है किन्तु अग्रसोची गिरिजेश जी ने ''डॉक्टर ऑन ड्यूटी'' में यह पक्ष पहले ही उद्घाटित कर दिया है।
''प्रस्तुत लघुकथाएँ क्षणिक प्रतिक्रियाएँ हैं, जो मेरे जीवन या मेरे आसपास के वातावरण में प्रस्फुटित हुई।'' मेरी बात में लघुकथाकार का यह ईमानदार कथन लघुकथा विधा के स्वरूप और मानकों के नीम और संख्या को लेकर विविध मठाधीशों में मचे द्वन्द को निरर्थक सिद्ध कर देता है। लघुकथा 'चेहरे पर लिखे दाम' में ठेले पर फल बेचनेवाले में ग्राहक की सामर्थ्य के अनुसार भाव बताने की संवेदनशीलता सामान्यत: अदेखे रह जाने वाले पहलू को सामने लाती है। 'नकल में अकल' का कथ्य कम विस्तार में अधिक प्रभावी होता। 'उमर का तकाज़ा' में लघुकथा से गायब होता जा रहा सहज हास्य का रंग मोहक है। 'बाज़ी' लघुकथा को पढ़कर बरबस सत्यजीत राय की 'शतरंज के खिलाड़ी' की याद हो आई।
'पेट की आग', 'कूकुर सभा', 'माँ के लिए रोटी', 'इस्तीफा' जैसी लघुकथाओं की व्यंजनात्मकता काबिले-तारीफ है तो नन्हीं का थैंक्यू', पुल आदि लघुकथाओं की सहज सह्रदयता सीधे दिल को छूती है।
'जो नहीं होता वो होता है' शीर्षक लघुकथा की संदेशपरकता हर पाठक के लिए उपयोगी है। 'भस्मासुर' लघुकथा एक अभिनव प्रयोग है। यह सुपरिचित पौराणिक आख्यान को वर्तमान संदर्भों में व्याख्यायित कर लोकतंत्र में जिम्मेदार लोक को कर्तव्योन्मुखी होने की सीख देती है। ऐसी लघुकथाएँ उन समालोचकों को सटीक जवाब देती हैं जो यह कहते नहीं थकते की लघुकथा का काम रास्ता दिखाना नहीं है।
सारत:, स्वाभाविक सहज-सरल शब्दावली का प्रयोग करते हुए गिरिजेश जी ने इन लघुकथाओं के माध्यम से समाज को उसका चेहरा दिखाने की निरर्थक कसरत तक सीमित न रहते हुए उससे आगे जाकर मर्म को छूते हुए , वैचारिक जड़ता को झिंझोड़ने का सफल प्रयास किया है। ऐसी ही लघुकथाएँ इस विधा को आगे बढ़ाने में महती भूमिका निभाएँगी। अपनी शैली आप बनाने, अपने मुहावरे आप गढ़ने की यह कोशिश देखने हुए ''अल्लाह करे जोरे-करम और जियादा'' के स्थान पर कहना होगा अगले संग्रह में ''अल्लाह करे जोरे-कलम और जियादा।
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संपर्क: विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष : ९४२५१८३२४४ salil.sanjiv@gmail.com

लघु कथा

लघु कथा:
मैया
*
प्रसाद वितरण कर पुजारी ने थाली रखी ही थी कि उसने लाड़ से कहा: 'काए? हमाये पैले आरती कर लई? मैया तनकऊ खुस न हुईहैं। हमाये हींसा का परसाद किते गओ?'
'हओ मैया! पधारो, कउनौ की सामत आई है जो तुमाए परसाद खों हात लगाए? बिराजो और भोग लगाओ। हम अब्बइ आउत हैं, तब लौं देखत रहियो परसाद की थाली; कूकुर न जुठार दे.'
'अइसे कइसे जुठार दैहे? हम बाको मूँड न फोर देबी, जा तो धरो है लट्ठ।' कोने में रखी डंडी को इंगित करते हुए बालिका बोली।
पुजारी गया तो बालिका मुस्तैद हो गयी. कुछ देर बाद भिखारियों का झुण्ड निकला।'काए? दरसन नई किए? चलो, इतै आओ.… परसाद छोड़ खें कहूँ गए तो लापता हो जैहो जैसे लीलावती-कलावती के घरवारे हो गए हते. पंडत जी सें कथा नई सुनी का?'
भिखारियों को दरवाजे पर ठिठकता देख उसने फिर पुकार लगाई: 'दरवज्जे पे काए ठांड़े हो? इते लौ आउत मां गोड़ पिरात हैं का?' जा गरू थाल हमसें नई उठात बनें। लेओ' कहते हुए प्रसाद की पुड़िया उठाकर उसने हाथ बढ़ा दिया तो भिखारी ने हिम्मतकर पुड़िया ली और पुजारी को आते देख दहशत में जाने को उद्यत हुए तो बालिका फिर बोल पड़ी: 'इनखें सींग उगे हैं का जो बाग़ रए हो? परसाद लए बिना कउनौ नें जाए. ठीक है ना पंडज्जी?'
'हओ मैया!' अनदेखी करते हुए पुजारी ने कहा।
२४-४-२०२०
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मुक्तक

मुक्तक
जो मुश्किलों में हँसी-खुशी गीत गाते हैं
वो हारते नहीं; हमेशा जीत जाते हैं
मैं 'सलिल' हूँ; ठहरा नहीं बहता रहा सदा
जो अंजुरी में रहे, लोग रीत जाते हैं.
*
२४-४-२०२०

लघुकथा बर्दाश्तगी

लघुकथा
बर्दाश्तगी
*
एक शायर मित्र ने आग्रह किया कि मैं उनके द्वारा संपादित किये जा रहे हम्द (उर्दू काव्य-विधा जिसमें परमेश्वर की प्रशंसा में की गयी कवितायेँ) संकलन के लिये कुछ रचनाएँ लिख दूँ, साथ ही जिज्ञासा भी की कि इसमें मुझे, मेरे धर्म या मेरे धर्मगुरु को आपत्ति तो न होगी? मैंने तत्काल सहमति देते हुए कहा कि यह तो मेरे लिए ख़ुशी का वायस (कारण) है।
कुछ दिन बाद मित्र आये तो मैंने लिखे हुए हम्द सुनाये, उन्होंने प्रशंसा की और ले गये।
कई दिन यूँ ही बीत गये, कोई सूचना न मिली तो मैंने समाचार पूछा, उत्तर मिला वे सकुशल हैं पर किताब के बारे में मिलने पर बताएँगे। एक दिन वे आये कुछ सँकुचाते हुए। मैंने कारण पूछा तो बताया कि उन्हें मना कर दिया गया है कि अल्लाह के अलावा किसी और की तारीफ में हम्द नहीं कहा जा सकता जबकि मैंने अल्लाह के साथ- साथ चित्रगुप्त जी, शिव जी, विष्णु जी, ईसा मसीह, गुरु नानक, दुर्गा जी, सरस्वती जी, लक्ष्मी जी, गणेश जी व भारत माता पर भी हम्द लिख दिये थे। कोई बात नहीं, आप केवल अल्लाह पर लिख हम्द ले लें। उन्होंने बताया कि किसी गैरमुस्लिम द्वारा अल्लाह पर लिख गया हम्द भी क़ुबूल नहीं किया गया।
किताब तो आप अपने पैसों से छपा रहे हैं फिर औरों का मश्वरा मानें या न मानें यह तो आपके इख़्तियार में है -मैंने पूछा।
नहीं, अगर उनकी बात नहीं मानूँगा तो मेरे खिलाफ फतवा जारी कर हुक्का-पानी बंद दिया जाएगा। कोई मेरे बच्चों से शादी नहीं करेगा -वे चिंताग्रस्त थे।
अरे भाई! फ़िक्र मत करें, मेरे लिखे हुए हम्द लौटा दें, मैं कहीं और उपयोग कर लूँगा। मैंने उन्हें राहत देने के लिए कहा।
उन्हें तो कुफ्र कहते हुए ज़ब्त कर लिया गया। आपकी वज़ह से मैं भी मुश्किल में पड़ गया -वे बोले।
कैसी बात करते हैं? मैं आप के घर तो गया नहीं था, आपकी गुजारिश पर ही मैंने लिखे, आपको ठीक न लगते तो तुरंत वापिस कर देते। आपके यहां के अंदरूनी हालात से मुझे क्या लेना-देना? मुझे थोड़ा गरम होते देख वे जाते-जाते फिकरा कस गये 'आप लोगों के साथ यही मुश्किल है, बर्दाश्तगी का माद्दा ही नहीं है।'
***
२४-४-२०१७

नवगीत

नवगीत 
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
दरक रे मैदान-खेत सब
मुरझा रए खलिहान।
माँगे सीतल पेय भिखारी
ले न रुपया दान।
संझा ने अधरों पे बहिना
लगा रखो है खून।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
धोंय, निचोरें सूखें कपरा
पहने गीले होंय।
चलत-चलत कूलर हीटर भओ
पंखें चल-थक रोंय।
आँख मिचौरी खेरे बिजुरी
मलमल लग रओ ऊन।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
गरमा गरम नें कोऊ चाहे
रोएँ चूल्हा-भट्टी।
सब खों लगे तरावट नीकी
पनहा, अमिया खट्टी।
धारें झरें नई नैनन सें
बहें बदन सें दून।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
लिखो तजुरबा, पढ़ तरबूजा
चक्कर खांय दिमाग।
मृगनैनी खों लू खें झोंकें
लगे लगा रए आग।
अब नें सरक पे घूमें रसिया
चौक परे रे! सून।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
अंधड़ रेत-बगूले घेरे
लगी सहर में आग।
कितै गए पनघट अमराई
कोयल गाए नें राग।
आँखों मिर्ची झौंके मौसम
लगा र ओ रे चून।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
२४-४-२०१७

नवगीत

नवगीत
*
दाल-भात में
मूसर चंद.
*
जीवन-पथ में
मिले चले संग
हुआ रंग में भंग.
मन-मुटाव या
गलत फहमियों
ने, कर डाला तंग.
लहर-लहर के बीच
आ गयी शिला.
लहर बढ़ आगे,
एक साथ फिर
बहना चाहें
बोल न इन्हें अभागे.
भंग हुआ तो
कहो न क्यों फिर
हो अभंग हर छंद?
दाल-भात में
मूसर चंद.
*
रोक-टोंक क्यों?
कहो तीसरा
अड़ा रहा क्यों टाँग?
कहे 'हलाला'
बहुत जरूरी
पिए मजहबी भाँग.
अनचाहा सम्बन्ध
सहे क्यों?
कोई यह बतलाओ.
सेज गैर की सजा
अलग हो, तब
निज साजन पाओ.
बैठे खोल
'हलाला सेंटर'
करे मौज-आनंद
दाल-भात में
मूसर चंद.
*
२४-४-२०१७
हलाला- एक रस्म जिसके अनुसार तलाक पा चुकी स्त्री अपने पति से पुनर्विवाह करना चाहे तो उसे किसी अन्य से विवाह कर दुबारा तलाक लेना अनिवार्य है.