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सोमवार, 3 अगस्त 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
लिखा बिन लिखे आज कुछ, पढ़ा बिन पढ़े आज
केर-बेर के संग से, सधे न साधे काज
*
अर्थ न रहे अनर्थ में, अर्थ बिना सब व्यर्थ
समझ न पाया किस तरह, समझा सकता अर्थ.
*
सजे अधर पर जब हँसी, धन्य हो गयी आप
पैमाना कोई नहीं, जो खुशियाँ ले नाप
*
सही करो तो गलत क्यों, समझें-मानें लोग?
गलत करो तो सही, कह; बढ़ा रहे हैं रोग.
*
दिल के दिल में क्या छिपा, बेदिल से मत बोल
संग न सँगदिल का करो, रह जाएगी झोल
*
प्राण गए तो देह के, अंग दीजिए दान.
जो मरते जी सकेंगे, ऐसे कुछ इंसान.
*
कंकर भी शंकर बने, कर विराट का संग
रंग नहीं बदरंग हो, अगर करो सत्संग
*
कृष्णा-कृष्णा सब करें, कृष्ण हँस रहे देख
द्रुपदसुता का नाम ले, क्यों मेरा उल्लेख?
*
मटक-मटक जो फिर रहे, अटक रहे हर ठौर।
सटके; फटक न सफलता, अटकें; करिए गौर।।
*
३-८-२०१८

नवगीत बारिश

नवगीत 
बारिश 
*
बारिश तो अब भी होती है
लेकिन बच्चे नहीं खेलते.
*
नाव बनाना
कौन सिखाये?
बहे जा रहे समय नदी में.
समय न मिलता रिक्त सदी में.
काम न कोई
किसी के आये.
अपना संकट आप झेलते
बारिश तो अब भी होती है
लेकिन बच्चे नहीं खेलते.
*
डेंगू से भय-
भीत सभी हैं.
नहीं भरोसा शेष रहा है.
कोइ न अपना सगा रहा है.
चेहरे सबके
पीत अभी हैं.
कितने पापड विवश बेलते
बारिश तो अब भी होती है
लेकिन बच्चे नहीं खेलते.
*
उतर गया
चेहरे का पानी
दो से दो न सम्हाले जाते
कुत्ते-गाय न रोटी पाते
कहीं न बाकी
दादी-नानी.
चूहे भूखे दंड पेलते
बारिश तो अब भी होती है
लेकिन बच्चे नहीं खेलते.
*
salil.sanjiv@gmail.com
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divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

व्यंग्य लेखांश : ‘भगत की गत’ हरिशंकर परसाई जी


व्यंग्य लेखांश :
‘भगत की गत’
हरिशंकर परसाई जी
*
...एक भगत ने मरने के बाद भगवान के पास जाकर स्वर्ग की डिमांड की, फिर क्या हुआ ......
प्रभु ने कहा- तुमने ऐसा क्या किया है, जो तुम्हें स्वर्ग मिले?
भगतजी को इस प्रश्न से चोट लगी। जिसके लिए इतना किया, वही पूछता है कि तुमने ऐसा क्या किया! भगवान पर क्रोध करने से क्या फायदा- यह सोचकर भगतजी गुस्सा पी गये। दीनभव से बोले- मैं रोज आपका भजन करता रहा।
भगवान ने पूछा- लेकिन लाउड-स्पीकर क्यों लगाते थे?
भगतजी सहज भव से बोले- उधर सभी लाउड-स्पीकर लगाते हैं। सिनेमावाले, मिठाईवाले, काजल बेचने वाले- सभी उसका उपयोग करते हैं, तो मैंने भी कर लिया।
भगवान ने कहा- वे तो अपनी चीज का विज्ञापन करते हैं। तुम क्या मेरा विज्ञापन करते थे? मैं क्या कोई बिकाऊ माल हूं।
भगतजी सन्न रह गये। सोचा, भगवान होकर कैसी बातें करते हैं।
भगवान ने पूछा- मुझे तुम अन्तर्यामी मानते हो न?
भगतजी बोले- जी हां!
भगवान ने कहा- फिर अन्तर्यामी को सुनाने के लिए लाउड-स्पीकर क्यों लगाते थे? क्या मैं बहरा हूं? यहां सब देवता मेरी हंसी उड़ाते हैं। मेरी पत्नी मजाक करती है कि यह भगत तुम्हें बहरा समझता है।
भगतजी जवाब नहीं दे सके।
भगवान को और गुस्सा आया। वे कहने लगे- तुमने कई साल तक सारे मुहल्ले के लोगों को तंग किया। तुम्हारे कोलाहल के मारे वे न काम कर सकते थे, न चैन से बैठ सकते थे और न सो सकते थे। उनमें से आधे तो मुझसे घृणा करने लगे हैं। सोचते हैं, अगर भगवान न होता तो यह भगत इतना हल्ला न मचाता। तुमने मुझे कितना बदनाम किया है!
भगत ने साहस बटोरकर कहा- भगवान आपका नाम लोंगों के कानों में जाता था, यह तो उनके लिए अच्छा ही था। उन्हें अनायास पुण्य मिल जाता था।
भगवान को भगत की मूर्खता पर तरस आया। बोले- पता नहीं यह परंपरा कैसे चली कि भक्त का मूर्ख होना जरूरी है। और किसने तुमसे कहा कि मैं चापलूसी पसंद करता हूं? तुम क्या यह समझते हो कि तुम मेरी स्तुति करोगे तो मैं किसी बेवकूफ अफसर की तरह खुश हो जाऊंगा? मैं इतना बेवकूफ नहीं हूं भगतजी कि तुम जैसे मूर्ख मुझे चला लें। मैं चापलूसी से खुश नहीं होता कर्म देखता हूं।
***
टीप: वे भगवान् अवश्य कर्मदेव चित्रगुप्त रहे होंगे.

लघुकथा बीज का अंकुर


लघुकथा
बीज का अंकुर
*
चौकीदार के बेटे ने सिविल सर्विस परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। समाचार पाकर कमिश्नर साहब रुआंसे हो आये। मन की बात छिपा न सके और पत्नी से बोले बीज का अंकुर बीज जैसा क्यों नहीं होता?
अंकुर तो बीज जैसा ही होता है पर जरूरत से ज्यादा खाद-पानी रोज दिया जाए तो सड़ जाता है बीज का अंकुर।
***

लघुकथा : सोई आत्मा

लघुकथा :
सोई आत्मा
*
मदरसे जाने से मना करने पर उसे रोज डाँट पड़ती। एक दिन डरते-डरते उसने पिता को हक़ीक़त बता ही दी कि उस्ताद अकेले में.....

वालिद गुस्से में जाने को हुए तो वालिदा ने टोंका गुस्से में कुछ ऐसा-वैसा क़दम न उठा लेना उसकी पहुँच ऊपर तक है।
फ़िक्र न करो, मैं नज़दीक छिपा रहूँगा और आज जैसे ही उस्ताद किसी बच्चे के साथ गलत हरकत करेगा उसकी वीडियो फिल्म बनाकर पुलिस ठाणे और अखबार नवीस के साथ उस्ताद की बीबी और बेटी को भी भेज दूँगा।
सब मिलकर उस्ताद की खाट खड़ी करेंगे तो जाग जायेगी उसकी सोई आत्मा।
*
३-८-२०१६ 

मुक्तक

मुक्तक
बह्रर 2122-2122-2122-212
*
हो गए हैं धन्य हम तो आपका दीदार कर
थे अधूरे आपके बिन पूर्ण हैं दिल हार कर
दे दिया दिल आपको, दिल आपसे है ले लिया
जी गए हैं आप पर खुद को 'सलिल' हम वार कर
*
बोलिये भी, मौन रहकर दूर कब शिकवे हुए
तोलिये भी, बात कह-सुन आप-मैं अपने हुए
मैं सही हूँ, तू गलत है, यह नज़रिया ही गलत
जो दिलों को जोड़ दें, वो ही सही नपने हुए
*

३-८-२०१६ 

लेख : - : नागको नमन : -

लेख :
- : नागको नमन : -
संजीव
*
नागपंचमी आयी और गयी... वन विभागकर्मियों और पुलिसवालोंने वन्य जीव रक्षाके नामपर सपेरों को पकड़ा, आजीविका कमानेसे वंचित किया और वसूले बिना तो छोड़ा नहीं होगा। उनकी चांदी हो गयी.

पारम्परिक पेशेसे वंचित किये गए ये सपेरे अब आजीविका कहाँसे कमाएंगे? वे शिक्षित-प्रशिक्षित तो हैं नहीं, खेती या उद्योग भी नहीं हैं. अतः, उन्हें अपराध करनेकी राह पर ला खड़ा करनेका कार्य शासन-प्रशासन और तथाकथित जीवरक्षणके पक्षधरताओंने किया है.
जिस देशमें पूज्य गाय, उपयोगी बैल, भैंस, बकरी आदिका निर्दयतापूर्वक कत्ल कर उनका मांस लटकाने, बेचने और खाने पर प्रतिबंध नहीं है वहाँ जहरीले और प्रतिवर्ष लगभग ५०,००० मृत्युओंका कारण बननेवाले साँपोंको मात्र एक दिन पूजनेपर दुग्धपानसे उनकी मृत्युकी बात तिलको ताड़ बनाकर कही गयी. दूरदर्शनी चैनलों पर विशेषज्ञ और पत्रकार टी.आर.पी. के चक्करमें तथाकथित विशेषज्ञों और पंडितों के साथ बैठकर घंटों निरर्थक बहसें करते रहे. इस चर्चाओंमें सर्प पूजाके मूल आर्य और नाग सभ्यताओंके सम्मिलनकी कोई बात नहीं की गयी. आदिवासियों और शहरवासियों के बीच सांस्कृतिक सेतुके रूपमें नाग की भूमिका, चूहोंके विनाश में नागके उपयोगिता, जन-मन से नागके प्रति भय कम कर नागको बचाने में नागपंचमी जैसे पर्वोंकी उपयोगिता को एकतरफा नकार दिया गया.
संयोगवश इसी समय दूरदर्शन पर महाभारत श्रृंखला में पांडवों द्वारा नागों की भूमि छीनने, फलतः नागों द्वारा विद्रोह, नागराजा द्वारा दुर्योधन का साथ देने जैसे प्रसंग दर्शाये गये किन्तु इन तथाकथित विद्वानों और पत्रकारों ने नागपंचमी, नागप्रजाजनों (सपेरों - आदिवासियों) के साथ विकास के नाम पर अब तक हुए अत्याचार की और नहीं गया तो उसके प्रतिकार की बात कैसे करते?
इस प्रसंग में एक दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह भी है कि इस देशमें बुद्धिजीवी माने जानेवाले कायस्थ समाज ने भी यह भुला दिया कि नागराजा वासुकि की कन्या उनके मूलपुरुष चित्रगुप्त जी की पत्नी हैं तथा चित्रगुप्त जी के १२ पुत्रों के विवाह भी नाग कन्याओं से ही हुए हैं जिनसे कायस्थों की उत्पत्ति हुई. इस पौराणिक कथा का वर्ष में कई बार पाठ करने के बाद भी कायस्थ आदिवासी समाज से अपने ननिहाल होने के संबंध को याद नहीं रख सके. फलतः। खुद राजसत्ता गंवाकर आमजन हो गए और आदिवासी भी शिक्षित हुआ. इस दृष्टि से देखें तो नागपंचमी कायस्थ समाज का भी महापर्व है और नाग पूजन उनकी अपनी परमरा है जहां विष को भी अमृत में बदलकर उपयोगी बनाने की सामर्थ्य पैदा की जाती है.
शिवभक्तों और शैव संतों को भी नागपंचमी पर्व की कोई उपयोगिता नज़र नहीं आयी.
यह पर्व मल्ल विद्या साधकों का महापर्व है लेकिन तमाम अखाड़े मौन हैं बावजूद इस सत्य के कि विश्व स्तरीय क्रीड़ा प्रतियोगिताएं में मल्लों की दम पर ही भारत सर उठाकर खड़ा हो पाता है. वैलेंटाइन जैसे विदेशी पर्व के समर्थक इससे दूर हैं यह तो समझा जा सकता है किन्तु वेलेंटाइन का विरोध करनेवाले समूह कहाँ हैं? वे नागपंचमी को यवा शौर्य-पराक्रम का महापर्व क्यों नहीं बना देते जबकि उन्हीं के समर्थक राजनैतिक दल राज्यों और केंद्र में सत्ता पर काबिज हैं?
महाराष्ट्र से अन्य राज्यवासियों को बाहर करनेके प्रति उत्सुक नेता और दल नागपंचमई को महाराष्ट्र की मल्लखम्ब विधा का महापर्व क्यों कहीं बनाते? क्यों नहीं यह खेल भी विश्व प्रतियोगिताओं में शामिल कराया जाए और भारत के खाते में कुछ और पदक आएं?
अंत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि जिन सपेरों को अनावश्यक और अपराधी कहा जा रहा है, उनके नागरिक अधिकार की रक्षा कर उन्हें पारम्परिक पेशे से वंचित करने के स्थान पर उनके ज्ञान और सामर्थ्य का उपयोग कर हर शहर में सर्प संरक्षण केंद्र खोले जाए जहाँ सर्प पालन कर औषधि निर्माण हेतु सर्प विष का व्यावसायिक उत्पादन हो. सपेरों को यहाँ रोजगार मिले, वे दर-दर भटकने के बजाय सम्मनित नागरिक का जीवन जियें। सर्प विष से बचाव के उनके पारम्परिक ज्ञान मन्त्रों और जड़ी-बूटियों पर शोध हो.
क्या माननीय नरेंद्र मोदी जी इस और ध्यान देंगे?
*******

रविवार, 2 अगस्त 2020

९ मात्रिक छंद : आंक जातीय छंद

हिंदी के ९ मात्रिक छंद : आंक जातीय छंद   
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
विश्व वाणी हिंदी का छांदस कोश अप्रतिम, अनन्य और असीम है। संस्कृत से विरासत में मिले छंदों  के साथ-साथ अंग्रेजी, जापानी आदि विदेशी भाषाओँ तथा पंजाबी, मराठी, बृज, अवधी आदि आंचलिक भाषाओं/ बोलिओं के छंदों को अपनाकर तथा उन्हें अपने अनुसार संस्कारित कर हिंदी ने यह समृद्धता अर्जित की है। हिंदी छंद शास्त्र के विकास में  ध्वनि विज्ञान तथा गणित ने आधारशिला की भूमिका निभायी है।

विविध अंचलों में लंबे समय तक विविध पृष्ठभूमि के रचनाकारों द्वारा व्यवहृत होने से हिंदी में शब्द विशेष को एक अर्थ में प्रयोग करने के स्थान पर एक ही शब्द को विविधार्थों में प्रयोग करने का चलन है। इससे अभिव्यक्ति में आसानी तथा विविधता तो होती है किंतु शुद्धता नहीँ रहती। विज्ञान विषयक विषयों के अध्येताओं तथा हिंदी सीख रहे विद्यार्थियों के लिये यह स्थिति भ्रमोत्पादक तथा असुविधाकारक है। रचनाकार के आशय को पाठक ज्यों  का त्यो ग्रहण कर सके इस हेतु हम छंद-रचना में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दों के साथ प्रयोग किया जा रहा अर्थ विशेष निम्न है - 
अक्षर / वर्ण = ध्वनि की बोली या लिखी जा सकनेवाली लघुतम स्वतंत्र इकाई।
शब्द = अक्षरों का सार्थक समुच्चय।
मात्रा / कला / कल = अक्षर के उच्चारण में लगे समय पर आधारित इकाई।
लघु या छोटी  मात्रा = जिसके उच्चारण में इकाई समय लगे।  भार १, यथा अ, इ, उ, ऋ अथवा इनसे जुड़े अक्षर, चंद्रबिंदी वाले अक्षर
दीर्घ, हृस्व या बड़ी मात्रा = जिसके उच्चारण में अधिक समय लगे। भार २, उक्त लघु अक्षरों को छड़कर शेष सभी अक्षर, संयुक्त अक्षर अथवा उनसे जुड़े अक्षर, अनुस्वार (बिंदी वाले अक्षर)।
पद = पंक्ति, चरण समूह।
चरण = पद का भाग, पाद।
छंद = पद समूह।
यति = पंक्ति पढ़ते समय विराम या ठहराव के स्थान।
छंद लक्षण = छंद की विशेषता जो उसे अन्यों से अलग करतीं है।
गण = तीन अक्षरों का समूह विशेष (गण कुल ८ हैं, सूत्र: यमाताराजभानसलगा के पहले ८ अक्षरों में से प्रत्येक अगले २ अक्षरों को मिलाकर गण विशेष का मात्राभार  / वज़्न तथा मात्राक्रम इंगित करता है. गण का नाम इसी वर्ण पर होता है। यगण = यमाता = लघु गुरु गुरु = ४, मगण = मातारा = गुरु गुरु गुरु = ६, तगण = ता रा ज = गुरु गुरु लघु = ५, रगण = राजभा = गुरु लघु गुरु = ५, जगण = जभान = लघु गुरु लघु = ४, भगण = भानस = गुरु लघु लघु = ४, नगण = न स ल = लघु लघु लघु = ३, सगण = सलगा = लघु लघु गुरु = ४)।
तुक = पंक्ति / चरण के अन्त में  शब्द/अक्षर/मात्रा या ध्वनि की समानता ।
गति = छंद में गुरु-लघु मात्रिक क्रम।
सम छंद = जिसके चारों चरण समान मात्रा भार के हों।
अर्द्धसम छंद = जिसके सम चरणोँ का मात्रा भार समान तथा विषम  चरणों का मात्रा भार एक सा  हो किन्तु सम तथा विषम चरणोँ क़ा मात्रा भार समान न हों।
विषम छंद = जिसके चरण असमान हों।
लय = छंद  पढ़ने या गाने की धुन या तर्ज़।
छंद भेद =  छंद के प्रकार।
वृत्त = पद्य, छंद, वर्स, काव्य रचना । ४ प्रकार- क. स्वर वृत्त, ख. वर्ण वृत्त, ग. मात्रा वृत्त, घ. ताल वृत्त।
जाति = समान मात्रा भार के छंदों का  समूहनाम।
प्रत्यय = वह रीति जिससे छंदों के भेद तथा उनकी संख्या जानी जाए। ९ प्रत्यय: प्रस्तार, सूची, पाताल, नष्ट, उद्दिष्ट, मेरु, खंडमेरु, पताका तथा मर्कटी।
दशाक्षर = आठ गणों  तथा लघु - गुरु मात्राओं के प्रथमाक्षर य म त र ज भ न स ल ग ।
दग्धाक्षर = छंदारंभ में वर्जित लघु अक्षर - झ ह  र भ ष। देवस्तुति में प्रयोग वर्जित नहीं।
गुरु या संयुक्त दग्धाक्षर छन्दारंभ में प्रयोग किया जा सकता है।                                            इस लेख में कुछ  नौ मात्रिक छंदों की रचना प्रक्रिया वर्णित है।                                          
नौ मात्रिक छंद 
जाति नाम आंक (नौ अंकों के आधार पर), भेद ५५,  
आंकिक उपमान: 
नन्द:, निधि:, विविर, भक्ति, नग, मास, रत्न , रंग, द्रव्य, नव दुर्गा - शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री। गृह: सूर्य/रवि , चन्द्र/सोम, गुरु/बृहस्पति, मंगल, बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु, कुंद:, गौ: आदि।  

नौगजा नौ गज का वस्त्र/साड़ी, नौरात्रि शक्ति ९ दिवसीय पर्व।, नौलखा नौ लाख का (हार), 
नवमी ९ वीं तिथि आदि।

वासव छंदों के ३४ भेदों की मात्रा बाँट लघु-गुरु मात्रा संयोजन के आधार पर ५ वर्गों में निम्न अनुसार होगी:

अ. नव निधि वर्ग (१ प्रकार)-  
छंद  लक्षणः प्रति पद ९ लघु मात्रायें- 
उदाहरणः
 १. चल अशरण शरण 
    कर पग पथ वरण 
    वर नित नव क्षरण
    मत डर शुभ मरण
२. दिनकर गगन पर
    प्रगटित शगुन कर
    कलरव सतत सुन
    छिप मन सपन बुन  

आ. सप्तेक वर्गः (८ प्रकार)- 
छंद लक्षणः प्रति पद ७ लघु १ गुरु मात्रायें
उदाहरणः
 १. हर पल समर है
    सत-शुभ अमर है
    तन-मन विवश क्यों?
    असमय अवश क्यों?
२. सब सच सच बोल
    मत रख कुछ झोल
    कह तब जब तोल
    सुन लहर-किलोल
इ. पंच परमेश्वर वर्ग (२१ प्रकार)- 
छंद लक्षणः प्रति पद ५ लघु २ गुरु मात्रायें
उदाहरणः
 १. कर मिलन मीता
    रख मन न रीता 
    पग सतत नाचें
    नित सुमिर गीता
२. जब घर आइए
    हँस सुख पाइए  
    प्रिय मुख चूमिए
    प्रभु गुण गाइए
ई. जननि कैकेयी वर्गः  (२० प्रकार) 
छंद लक्षणः प्रति पद ३ लघु ३ गुरु मात्रायें
उदाहरणः
 १. जननि कैकेयी
    प्रणत वैदेही 
    विहँस आशीषें
    'हॄदय को जीतें'
२. कुछ भी न भाये
    प्रिय याद आये...
    
    उनको बुलादो
    अब तो मिला दो
    मन-बाग सूखा
    कलियाँ खिला दो
    सुख ना सुहाये
    दिल को जलाये...

उ. जननि कैकेयी वर्गः (५ प्रकार)  ५
छंद लक्षणः प्रति पद १ लघु ४ गुरु मात्रायें
उदाहरणः
 १. नहीं छोड़ेंगे
    कभी चाहों को
    हमीं मोड़ेंगे
    सदा राहों को
    नहीं तोड़ेंगे

    प्रिये! वादों को
    चलो ओढेंगे
    हसीं चाहों को       
२. मीत! बोलो तो 

    राज खोलो तो
    खूब रूठे हो
    साथ हो लो तो
३. बातें बनाना

    राहें भुलाना
    शोभा न देता


    छोड़ो बहाना
    वादा निभाना!
छंद की ४ या ६ पंक्तियों में विविध तुकान्तों प्रयोग कर और भी अनेक उप प्रकार रचे जा सकते हैं।
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ९ मात्रा
लक्षण छंद:
आंक छंद रचें, 
नौ हों कलाएँ।
मधुर स्वर लहर
गीत नव गाएँ।
उदाहरण:
सूरज उगायें,
तम को भगायें।
आलस तजें हम-
साफल्य पायें।
***
निधि छंद: ९ मात्रा 
*
लक्षण: निधि नौ मात्रिक छंद है जिसमें चरणान्त में लघु मात्रा होती है. पद (पंक्ति) में चरण संख्या एक या अधिक हो सकती है.

लक्षण छंद:
नौ हों कलाएं,
चरणांत लघु हो
शशि रश्मियां ज्यों

सलिल संग विभु हो
उदाहरण :

१. तजिए न नौ निधि
   भजिए किसी विधि

   चुप मन लगाकर-
   गहिए 'सलिल' सिधि
२. रहें दैव सदय, करें कष्ट विलय
   मिले आज अमिय, बहे सलिल मलय
   मिटें असुर अजय, रहें मनुज अभय
   रचें छंद मधुर, मिटे सब अविनय
३. आओ विनायक!, हर सिद्धि दायक
   करदो कृपा अब, हर लो विपद सब

   सुख-चैन दाता, मोदक ग्रहण कर
   खुश हों विधाता, हर लो अनय अब 


गंग छंद: ९ मात्रा

*
लक्षण: जाति आंक, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ९, चरणान्त गुरु गुरु

लक्षण छंद:
नयना मिलाओ, हो पूर्ण जाओ,
दो-चार-नौ की धारा बहाओ  

लघु लघु मिलाओ, गुरु-गुरु बनाओ
आलस भुलाओ, गंगा नहाओ
उदाहरण:

१. हे गंग माता! भव-मुक्ति दाता
   हर दुःख हमारे, जीवन सँवारो
   संसार की दो खुशियाँ हजारों
   उतर आस्मां से आओ सितारों
   ज़न्नत ज़मीं पे नभ से उतारो
   हे कष्टत्राता!, हे गंग माता!!

२. दिन-रात जागो, सीमा बचाओ
    अरि घात में है, मिलकर भगाओ
    तोपें चलाओ, बम भी गिराओ
    सेना अकेली न हो सँग आओ    
३. बचपन हमेशा चाहे कहानी 
    हँसकर सुनाये अपनी जुबानी
    सपना सजायें, अपना बनायें 
    हो ज़िंदगानी कैसे सुहानी?

इनके अतिरिक्त अनेक उपभेद भी हो सकते हैं। हिंदी छंद शास्त्र जितना व्यवस्थित और व्यापक है, उतना अन्य किसी भाषा का छंद शास्त्र नहीं है।  
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विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर

🌞🌻🇮🇳🌷✍️📕🌳🦚🕉ॐ🕉🦚🌳📕✍️🌷🇮🇳🌞🌻
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
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📚📙समन्वय प्रकाशन जबलपुर📙📚
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जन्म ब्याह राखी तिलक, ग्रहप्रवेश त्यौहार
'सलिल' बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार
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संस्थापक-संचालक-संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
- : मार्गदर्शक मण्डल : -
आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी
 डॉ. सुरेश कुमार वर्मा
 सुश्री आशा वर्मा
- : परामर्श मण्डल : -
इंजी. अमरेंद्र नारायण जी
डॉ. साधना वर्मा जी
डॉ. संतोष शुक्ला
श्याम देवपुरा जी
अध्यक्ष
बसंत शर्मा
सचेतक - मुख्यालय सचिव
छाया सक्सेना 'प्रभु'
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सहयोगी संस्थाएँ :-
वनमाली सृजनपीठ भोपाल,
युवा उत्कर्ष साहित्यिक संस्था दिल्ली,
साहित्य संगम दिल्ली,
सृजन कुञ्ज, काव्य कलश
-----------------------------------------
हिंदी आटा माढ़िए, देशज मोयन डाल।
सलिल संस्कृत सान दे,पूड़ी बने कमाल।।
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विक्रम संवत् २०७७, शक संवत् १९४२, वीर निर्वाण संवत् २५४६, बांग्ला संवत् १४२७, हिजरी संवत् १४४२, ईस्वी सन् २०२०.
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१ अगस्त २०२० से प्रभावी कार्यक्रम
🌞अनुशासन फलदायकं 🌞। 
🔔 समय सारिणी 🔔
वंदना / चिंतन पर्व : प्रात: ६ बजे से ८ बजे
सृजन पर्व - प्रात: ८ बजे से संध्या ७ बजे
संवाद पर्व : संध्या ७ बजे से रात्रि ८ बजे तक
मुक्त समय - रात्रि ८ बजे से प्रात: ६ बजे
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स्थाई स्तंभ : वंदना, सूक्ति-सुभाषित, कार्यशाला, पर्व-जयंती, पाठकीय, प्रतिवेदन।
व्यवस्थापक : उदयभानु तिवारी 'मधुकर', मीनाक्षी शर्मा 'तारिका', अर्चना गोस्वामी।
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 📢🐚दैनिक विषय सारिणी🐚🔔
सोमवार - धर्म / योग सत्र : सभ्यता, संस्कृति, आध्यात्म्य, योग, दर्शन, ज्योतिष, ।
व्यवस्थापक : अरुण भटनागर जबलपुर, अरुण श्रीवास्तव 'अर्णव' भोपाल, सारांश गौतम जबलपुर।
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मंगलवार - लोक / बाल सत्र : लोक / बाल संबंधित पर्व, कथा, गीत, नाट्य, साहित्य आदि।
व्यवस्थापक : पुनीता भारद्वाज भीलवाड़ा, प्रभा विश्वकर्मा जबलपुर, बबीता चौबे।
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बुधवार - पद्य सत्र : गीत, कविता, क्षणिका, रस, छंद, अलंकार ।
व्यवस्थापक - छाया सक्सेना जबलपुर,  मीना भट्ट जबलपुर, विनोद जैन 'वाग्वर' सागवाड़ा राजस्थान  ।
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गुरुवार - गद्य सत्र : कहानी, लघुकथा, उपन्यास, निबंध, समालोचना, लेख आदि।
व्यवस्थापक : डॉ. मुकुल तिवारी जबलपुर, मनोरमा जैन 'पाँखी' भिंड, वीणा सिंह सिहोरा।
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शुक्रवार - विमर्श सत्र - संगोष्ठी  परिचर्चा, साक्षात्कार, संस्मरण, पर्यटन कथा आदि।
व्यवस्थापक : अखिलेश सक्सेना कासगंज, डॉ. अनिल जैन दमोह, सुषमा सिंह सिहोरा।
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शनिवार भाषा सत्र - भाषा विग्यान, व्याकरण, भाषांतरण, अनुवाद, अन्य भाषाओं / बोलियाँ का साहित्य।
व्यवस्थापक : डॉ आलोकरंजन जपला, डॉ. अरविंद श्रीवास्तव दतिया, निरुपमा वर्मा एटा।
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रविवार कला व विज्ञान सत्र - गायन, वादन, नर्तन, रेखांकन, चित्रांकन, छायांकन, पाक, श्रृंगार, साज-सज्जा, उद्यानिकी, मनरंजन आदि।
व्यवस्थापक : डॉ. अनिल बाजपेई जबलपुर, प्रो. शोभित वर्मा, अस्मिता शैली।
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मुक्त काल :
व्यवस्थापक : रमन श्रीवास्तव जबलपुर, सपना सराफ जबलपुर, डॉ. मीना श्रीवास्तव ग्वालियर।
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जन्म ब्याह राखी तिलक, गृहप्रवेश त्यौहार
सलिल बचा पौधे लगा दें पुस्तक उपहार
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पहले एक पसेरी पढ़, फिर तोला लिख
मन मंदिर में नेह नर्मदा निर्मल दिख
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माह अगस्त : कब क्या
१ - विश्व स्तनपान दिवस, लोकमान्य तिलक पुण्य तिथि, देवकीनंदन खत्री जन्म १९१३, ईदुज्जुहा।
२ - विश्व मैत्री दिवस।
३ - संस्कृत दिवस, ह्रदय प्रत्यारोपण दिवस, मैथिलीशरण गुप्त जयंती, नाइज़र स्वतंत्रता दिवस, राखी।
४ - किशोर कुमार जन्म।
५ -  शिवमंगल सिंह 'सुमन' जन्म १९१५।
६ - सुरेंद्रनाथ बैनर्जी जन्म, हिरोशिमा परमाणु विस्फोट।
७ - राष्ट्रीय हथकरघा दिवस, कवींद्र रवींद्र दिवस।
८ -  विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस, भीष्म साहनी जयंती।
९ - विश्व आदिवासी दिवस, अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन दिवस, काकोरी डकैती दिवस १९२५, परमाणु विस्फोट, डॉ. इला घोष जन्म।
१०. विश्व जैव ईंधन दिवस, डेंगू निरोधक  दिवस।
११. खुदी राम बोस शहीद।
१२. विश्व युवा दिवस, लाइब्रेरियन दिवस, विश्व हाथी दिवस, डॉ. विक्रम साराभाई जन्म।
१३. लेफ्ट हैंडर्स डे, विश्व अंगदान दिवस।
१४. संस्कृत दिवस, पाकिस्तान दिवस, सिंधु स्मृति दिवस।
१५. भारत स्वाधीनता दिवस, बांगला देश शोक दिवस शेख मुजीब हत्या, महेशी अरविंद घोष जयंती, महादेव भाई दिवस।
१६. पॉन्डिचेरी दिवस, रानी अवंतीबाई जयंती, पारसी नववर्ष।
१७. इंडोनेशिया दिवस, नेताजी वायुयान दुर्घटना १९४५, मदनलाल ढींगरा शहीद, अमृतलाल नगर जयंती,
१८. जन अंधकार दिवस, अफगानिस्तान दिवस, गुलज़ार जन्म, पोला-पिथोरा।
१९. विश्व मानवता दिवस, विश्व छायांकन दिवस, कमीज दिवस,
२०. विश्व मच्छर दिवस, सद्भावना दिवस, एर्थ ओवर शूट दे, राजीव गाँधी जयंती, अभियान स्थापना दिवस,
२१. विश्व शांति दिवस, संगीताचार्य विष्णु दिगंबर पलुस्कर दवस, बिलमिल्लाहखां दिवंगत, हिजरी नव वर्ष।
२२. गणेशोत्सव।
२३. दास व्यापार उन्मूलन दिवस।
२६. महिला समानता दिवस, मदर टेरेसा जयंती।
२७. मुकेश गायक दिवंगत।
२८. रासबिहारी बोस जन्म, फ़िराक़ गोरखपुरी जन्म, राजेंद्र यादव जन्म।
२९. नाभिकीय परीक्षण विरोधी दिवस, राष्ट्रीय खेल दिवस, मेजर ध्यानचंद जन्म।
३०. लघु उद्योग दिवस, भगवती चरण वर्मा जन्म, शैलेन्द्र जन्म, मुहर्रम।
३१. संत ज्ञानेश्वर जयंती, अमृता प्रीतम जन्म, शिवाजी सावंत जन्म।
*

सरस्वती वंदना


सरस्वती वंदना
संजीव वर्मा ''सलिल''
*
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....
जग सिरमौर बनाएँ भारत.
सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.
आशिष अक्षय दे.....
साहस-शील हृदय में भर दे.
जीवन त्याग तपोमय करदे.
स्वाभिमान भर दे.....
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम.
मानवता का त्रास हरें हम.
स्वार्थ सकल तज दे.....
दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा,
घर-घर हों काटें भव बाधा.
नवल सृष्टि रच दे....
सद्भावों की सुरसरि पावन.
स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.
'सलिल'-अन्न भर दे...
*

ओंकार श्रीवास्तव के प्रति स्मरण गीत

भाई ओंकार श्रीवास्तव के प्रति
स्मरण गीत
*
वह निश्छल मुस्कान
कहाँ हम पायेंगे?
*
मन निर्मल होता तुममें ही देखा था
हानि-लाभ का किया न तुमने लेखा था
जो शुभ अच्छा दिखा उसी का वन्दन कर
संघर्षित का तिलक किया शुचि चन्दन कर
कब ओंकारित स्वर
हम फिर सुन पायेंगे?
*
श्री वास्तव में तुमने ही तो पाई है
ज्योति शक्ति की जन-मन में सुलगाई है
चित्र गुप्त प्रतिभा का देखा जिस तन में
मिले लक्ष्य ऐसी ही राह सुझाई है
शब्द-नाद जयकार
तुम्हारी गायेंगे
*
रेवा के सुत,रेवा-गोदी में सोए
नेह नर्मदा नहा, नए नाते बोए
मित्र संघ, अभियान, वर्तिका, गुंजन के
हित चिंतक! हम याद तुम्हारी में खोए
तुम सा बंधु-सुमित्र न खोजे पायेंगे
***

बाल गीत: बरसे पानी

बाल गीत:
बरसे पानी
संजीव 'सलिल'
*
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.
बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.
वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.
छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.
कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.
काश कहीं झूला मिल जाता,
सुनते-गाते कजरी-बानी.
'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
*
२-८-२०१४ 

बोली परिचय - बघेली

बोली परिचय : बघेली 
बघेली या बाघेली बोली, हिन्दी की एक बोली है जो भारत के बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। बघेले राजपूतों के आधार पर रीवा तथा आसपास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है और वहाँ की बोली को बघेलखंडी या बघेली कहलाती हैं। इसके अन्य नाम मन्नाडी, रिवाई, गंगाई, मंडल, केवोत, केवाती, केवानी और नागपुरी हैं। बघेली बोली के क्षेत्र के अंतर्गत रीवाँ अथवा रीवा, नागोद, शहडोल, सतना, मैहर तथा आसपास का क्षेत्र आता है। इसके अतिरिक्त बघेली बोली महाराष्ट्रउत्तर प्रदेश और नेपाल में भी बोली जाती है। भारत में इसके बोलने वालों की संख्या ३,९६.००० है। 
  • कुछ अपवादों को छोड़कर बघेली में केवल लोक- साहित्य है।
  • सर्वनामों में 'मुझे' के स्थान पर म्वाँ, मोही; तुझे के स्थान पर त्वाँ, तोही; विशेषण में -हा प्रत्यय (नीकहा), घोड़ा का घ्वाड़, मोर का म्वार, पेट का प्टवा, देत का द्यात आदि इसकी कुछ विशेषताएँ हैं।
  • इसकी मुख्य बोलियाँ तिरहारी, जुड़ार, गहोरा आदि हैं। -भारतकोश
बघेली या बाघेली, हिन्दी की एक बोली है जो भारत के बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। यह मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, उमरिया, एवं अनूपपुर में; उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद एवं मिर्जापुर जिलों में तथा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर एवं कोरिया जनपदों में बोली जाती है। इसे "बघेलखण्डी", "रिमही" और "रिवई" भी कहा जाता है। - यूनियनपीडिया .
बघेली या बाघेली, हिन्दी की एक बोली है जो भारत के बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। यह मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, उमरिया, एवं शहडोल, अनूपपुर में; उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद एवं मिर्जापुर जिलों में तथा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर एवं कोरिया जनपदों में बोली जाती है। इसे "बघेलखण्डी", "रिमही" और "रिवई" भी कहा जाता है। 
बघेली बोली के कुछ वाक्य
कहा जाते है। थोका चाचा के हीया जइथे चली खाना खाई लेइ। केतना समझाई तोहका/तुमका। जल्दी आबा। का बताई। तोहरे कपार मा भूसा भरा है। देखलेई एनका। केतना घुसा। अबहिन अइथे।  - विकिपीडिया 
बघेली मंच 
भाषाशास्त्र की नजर में मघ्यदेश की आठ बोलियों के समुदाय को हिन्दी पुकारा गया है-खड़ीबोली, बाँगर, ब्रज, कनौजी और बुँदेली, इन पाँचो कांे भाषा-सर्वे मे पश्चिमी हिन्दी नाम दिया गया है और बाकी अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी को पूर्वी हिन्दी कहा गया है। सन १९४० में प्रकाशित ‘हिन्दी भाषा का इतिहास’ में डा. धीरेन्द्र वर्मा ने उल्लेख किया है-‘अवधी के दक्षिण में बघेली का क्षेत्र है। उसका केन्द्र रीवाँ राज्य है किन्तु यह मध्यप्राँत के दमोह, जबलपुर, मण्डला तथा बालाघाट जिलों तक फैली है’। न जाने क्यो डाक्टर साहब ने तत्कालीन संयुक्तप्राँत के बाँदा-जालौन आदि जिलों को भुला दिया ह,ै जहाँ बघेली बोली जाती है।
दसवीं सदी के सती-शिला-लेख में उत्कीर्ण नाम रीमाँ से प्रमाणित होता है कि इसका वजूद एक हजार वर्ष पुराना है। सदी १३ वीे और १४ वीे मे लमाना ब्यापारियों ने इसे रीमाँ मण्डी के नाम से प्रख्यात कर रखा था और इतिहासकारों ने मुहावरा दे रखा थां ‘नो मेन लैण्ड’ माने बे मानुष धरती का। जिसे खारिज किया था इस्लाम शाह (जलाल खाँ) और आगे बढ़ कर बघेल राजा बिक्रमादित्य ने रीमाँ में एक के बाद एक ने, गढ़ी और परकोटों का निर्माण करा कर। जिसका इतिहास जुरा है शेरशाह सूरी, अकबर और जहाँगीर के बादशाहत का काल। यहाँ स्थान अभाव वर्णित करने की मंजूरी नहीं देता। साक्ष्य स्वरूप प्रस्तुत है रीमाँ की खासकलमी बंशाबली-बाँधौगढ़ एकोत्रा जमाबंदी की इबारत, जिनमे कमाल है रिमँही बोली का- इस्लामशाह हो गए हैं सलेमसाहि और विक्रमादित्य, बिकरमाजीत किन्तु फारसी के शब्दों को नहीं तोड़ा मरोरा है। पहली इबारत है-‘रीमाँ केर किला बनबाबा सलेमसाहि पातसाहि’ और दूसरी ‘ तकसीम परगने माफिक फरमान जहाँगीर साह का राजा बिकरमाजीत की जागीर का तबक संवत १६६१ के साल फरमान सरकार महाल परगने १८’, तदानुसार सन १६०५ में बघेल राजा विक्रमादित्य ने १८ परगने की रीमाँ-मुकुन्दपुर जागीर की स्थापना की।
भला गुजराती भाषाभाषी इनके पूर्वजों केे पास, बघेली कहाँ छाँदी हुई थी कि अपने साथ डोरिया कर लाते और यहाँ ढील देते। राजा विक्रमादित्य के बाद क्रमिक पीढ़ी के सन १९४८ तक एक दर्जन शासक हुए। क्रम ९ के महाराजा रघुराज सिंह के शासनकाल में बुँदेलखण्ड की तर्ज पर बघेलखण्ड शब्द सन १८६८ से अधिक प्रचलित हो चला। जब यहाँ सतना में बघेलखण्ड नाम की पोलेटिकल एजेन्सी कायम हुई। वही काल था जब सर अब्राहम गिअर्सन को भारतीय भाषा-सर्वे कार्य सौंपा गया। उनकी रपट ‘लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इण्डिया’ सन १९०४ में प्रकाशित हुई। उस में बघेलखण्ड की बोली का नाम छपा था बघेली। लीजिए लिखन्तों-पढन्तों को नया नाम मिल गया बघेली और अपढ़ गमँइहों के बीच गाँवो में भटकती फिरती रिमँही और रीमाँ आज भी भेंटा जाते हैं।

ब्रिटिश इण्डिया गवर्नमेन्ट ने मुगलकाल से चली आ रही दफ्तरी भाषा फारसी को बहाल कर रखा था और पोलेटिकल डिपार्टमेन्ट में आफीसियल लैंग्वेज इंगलिश थी। काल गति के चलते पहली अप्रैल सन १८७५ कों रीमाँ राज्य का प्रशासन महाराजा रघुराज सिंह से लेकर, हथिया लिया था पोलेटिकल एजेन्सी ने। तब राज्य भाषा रिमँही को बेदखल कर काबिज करा दिया था फारसी को। लिपि नागरी बहाल रही। फारसी में अक्षर ‘मा ’हुआ करता है ‘वाँ‘। फारसीदाँ रीमाँ न लिख कर लिखने लगे रीवाँ और स्टेट पोलेटिकल डिपार्टमेन्ट त्म्ॅ।. भला अँगरेजी के आगे कोई भाषा टिक सकी है। भारत हो गया इण्डिया तब रीवाँँ कौन से खेत का मूली था कि टिक पाता। जैसे राहु-केतु लीलता है चाँद को बीसवीं सदी के मध्य काल आते तक रसे रसे, लील लिया अँगरेजी ने उसकी चन्द्रबिन्दु और वह रीवा बन कर चल डगरा। यह तो रिमँहाई संस्कृति है कि यहाँ के गाँव रीमाँ को जिलाये हुए हैं। गाँव का मानुष घर में कहकर चलता है ‘जइत है रीमा’ और पहुँच जाता है रीवा।
बघेली शब्दार्थ 
अरे नहीं                                      oh no
ए दादू 
का आय?            क्या है?             what?
काहे                   क्यों                  why 
really - सही बताबा ?
 
hey dude- 
hey girl- ऐ बिटिया
whats up- का होइ रहा
done - होइ गा
not done - नही भा
Let him go - जाय दे ओखा
i dont know-हम नहीं जानी
hurry - चटकई
Smooth -चीकन
Lady - मेंहरिया
man - मेंसेरुआ
Father- बाप
mother - महतारी
Resolved - पुर कइके
Slapping - सोबत
run away - भाग ले
stay here - इहय रहें
now - अबय
not now- अबै नही
never- कभऊ नही
Wife - महेरिया
Husband- मेंसेरुआ
Boy-टोरबा/ लड़िका
Girl- बिटिया
Come here- हियन आव
Go There- ओकई जा
Same to same- जैसन को तैसन
Sunlight - घाम
shadow - छाव
very- अकिहाय
less - थो का
basket- डलिया
gate- फाटक
neck- नटइ
Knee- गुठुआ
Finger - उंगरी
ox- बरदा
rat-मूस
frog - गूलर