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सोमवार, 4 नवंबर 2019

मुक्तक

कार्यशाला ३२
मुक्तक लिखें
आज की पंक्ति हुई है भीड़ क्यों?
*
उदाहरण-
आज की पंक्ति हुई है भीड़ क्यों?
तोड़ती चिड़िया स्वयं ही नीड क्यों?
जी रही 'लिव इन रिलेशन' खुद सुता
मायके की उठे मन में हीड़ क्यों?
*
टीप- हीड़ = याद
आज की पंक्ति हुई है भीड़ क्यों, यह कौन जाने?
समय है बेढब, न सच्ची बात कोई सुने-माने
कल्पना का क्या कभी आकाश, भू छूती कभी है
प्रेरणा मिथलेश से पा सलिल बहना ध्येय ठाने
*

नवगीत

नवगीत
*
दर्द होता है
मगर
चुपचाप सहता।
*
पीर नदियों की
सुनाते घाट देखे।
मंज़िलों का दर्द
कहते ठाठ लेखे।
शूल पैरों को चुभे
कितने, कहाँ, कब?
मौन बढ़ता कदम
चुप रह
नहीं कहता?
*
चूड़ियों की कथा
पायल ने कही है।
अचकनों की व्यथा
अनसुन ही रही है।
मर्द को हो दर्द
जग कहता, न होता
शिला निष्ठुर मौन
झरना
पीर तहता।
*
धूप को सब चाहते
सूरज न भाता।
माँग भर सिंदूर
अनदेखा लजाता।
सौंप देता गृहस्थी
लेता न कुछ भी
उठाता नखरे
उपेक्षित
नित्य दहता।
*
संजीव
३.११.२०१८
९४२५१८३२४४

दोहा दिवाली

दोहा दिवाली
*
मृदा नीर श्रम कुशलता, स्वेद गढ़े आकार।
बाती डूबे स्नेह में, ज्योति हरे अँधियार।।
*
तम से मत कर नेह तू, झटपट जाए लील।
पवन झँकोरों से न डर, जल बनकर कंदील।।
*
संसद में बम फूटते, चलें सभा में बाण।
इंटरव्यू में फुलझड़ी, सत्ता में हैं प्राण।।
*
पति तज गणपति सँग पुजें, लछमी से पढ़ पाठ।
बाँह-चाह में दो रखे, नारी के हैं ठाठ।।
*
रिद्धि-सिद्धि, हरि की सुने, कोई न जग में पीर।
छोड़ गए साथी धरें, कैसे कहिए धीर।।
*
संजीव, ३.११.२०१८

विश्व वाणी हिंदी संस्थान जबलपुर

 ॐ शब्द ब्रहमाय नम:
विश्व वाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
समन्वय प्रकाशन-अभियान
*
जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार।
सलिल बचा; पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।
*
संस्थान की मासिक बैठक केंद्रीय कार्यालय में संपन्न हुई। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने संस्थान की गतिविधियों पर संतोष व्यक्त करते हुए विविध सारस्वत अनुष्ठानों की जानकारी दी।
१. 'वीणापाणी वंदना' - वेद-पुराणों में सरस्वती जी के उद्भव, पूजनादि से संबंधित जानकारी, त्रिदेवियों की अवधारणा, ३२ भाषाओँ-बोलिओं में सरस्वती वंदनाएँ, देश-विदेश में सरस्वती मंदिरों के चित्रादि सहेजने, तथा १५० रचनाकारों की २०० से अधिक सरस्वती वंदनाएँ प्राप्त होने से अवगत कराया। यह संग्रहणीय ग्रंथ बिना कोइ अग्रिम निधि लिए प्रकाशित किया जा रहा है। प्रकाशन के पश्चात् सहभागियों को रियायती दर पर बिना डाक व्यय के तथा अन्य पाठकों को डाक व्यय निशुल्क उपलब्ध कराया जायेगा।
२. दोहा शतक मंजूषा - पूर्व प्रकाशित ३ भागों "दोहा-दोहा नर्मदा", दोहा सलिला निर्मला" तथा "दोहा दीप्त दिनेश" की सफलता के पश्चात् दोहा शतक मंजूषा ४ "दोहा है आशा-किरण" हेतु १० दोहाकारों के दोहे सम्पादन हेतु प्राप्त होने व् मात्र ५ स्थान शेष रहने की सूचना दी। दोहे स्वीकृत होने के पश्चात् सहभागिता निधि ३०००/ जमा करनी होगी। हर सहभागी को ११ प्रतियाँ बिना डाक व्यय भेजी जाएँगी। सहभागी पूर्व प्रकाशित ३ भाग (८००/-) रियायती दर पर ५००/- में प्राप्त कर सकेंगे।
३. "प्रीत के गीत" - श्रृंगार गीतों के इस संकलन हेतु २ श्रृंगार गीत, ११००/- सहभागिता निधि, चित्र, व परिचय आमंत्रित है। सहभागियों को संकलन की २ प्रतियों निशुल्क तथा अतिरिक्त प्रतियाँ रियायती दर पर बिना डाक व्यय मिलेंगी। श्री बसंत शर्मा व् श्री विनोद जैन 'वाग्वर' संपादन सहयोगी होंगे।
४. "सार्थक लघुकथाएँ" - इस संकलन हेतु ५ लघुकथाएँ (शब्द सीमा २५०), ६००/- सहभागिता निधि, चित्र, व परिचय आमंत्रित है। सहभागियों को संकलन की २ प्रतियाँ निशुल्क तथा अतिरिक्त प्रतियाँ रियायती दर पर बिना डाक व्यय मिलेंगी।
५. अभियान वाट्स ऐप समूह - समूह की गतिविधियों पर चर्चा में सदस्यों ने रचनाओं के स्तर पर संतोष व्यक्त किया। विषय बद्ध रचना प्रक्रिय के प्रति गंभीर होने की आवश्यकता अनुभव की गयी। पटल पर रचनाओं की संख्या वृद्धि तथा त्रुटि-सुधर की आवश्यकता अनुभव की गयी।
६. नवगीत महोत्सव लखनऊ, ९-१० नवंबर - श्री बसंत शर्मा द्वारा अपरिहार्य कारणों से असमर्थता व्यक्त करने पर श्री सलिल तथा श्री जयप्रकाश श्रीवास्तव द्वारा सहभागिता करने का निर्णय लिया गया।
७. टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य-कला महोत्सव भोपाल - संस्थान की ओर से श्री सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' तथा श्री-श्रीमती भट्ट सहभागिता करेंगे।
८. युवा उत्कर्ष साहित्य मंडल दिल्ली - श्री बसंत शर्मा संस्थान का प्रतिनिधित्व करेंगे।
९. उपस्थित सदस्यों ने नवीन रचनाओं का पथ किया जिन पर विमर्श कर संशोधन सुझाए गए।
१०. आगामी बैठक तय करने हेतु मुख्यालय सचिव श्रीमती छाया सक्सेना को अधिकृत किया गया।
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दोहा गीत

दोहा गीत:
दीपक लेकर हाथ
*
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।
हैं प्रसन्न माँ भारती,
जनगण-मन के साथ।।
*
अमरनाथ सह भवानी,
कार्तिक-गणपति झूम।
चले दिवाली मनाने,
भायी भारत-भूम।।
बसे नर्मदा तीर पर,
गौरी-गौरीनाथ।
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।।
*
सरस्वती सिंह पर हुईं,
दुर्गा सदृश सवार।
मेघदूत सम हंस उड़,
गया भुवन के पार।।
ले विरंचि को आ गया,
कर प्रणाम नत माथ।
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।।
*
सलिल लहर संजीव लख,
सफल साधना धन्य।
त्याग पटाखे, शंख-ध्वनि,
दस दिश गूँज अनन्य।।
श्रम-सीकर से स्नानकर,
मानव हुआ सनाथ।
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।।
*
संजीव
४.११.२०१८
७९९९५५९६१८

गणितीय मुक्तक

गणितीय मुक्तक:
*
बिंदु-बिंदु रखते रहे, जुड़ हो गयी लकीर।
जोड़ा किस्मत ने घटा, झट कर दिया फकीर।।
कोशिश-कोशिश गुणा का, आरक्षण से भाग-
रहे शून्य के शून्य हम, अच्छे दिन-तकदीर।।
*
खड़ी सफलता केंद्र पर, परिधि प्रयास अनाथ।
त्रिज्या आश्वासन मुई, कब कर सकी सनाथ।।
छप्पन इंची वक्ष का निकला भरम गुमान-
चाप सिफारिश का लगा, कभी न श्रम के हाथ।।
*
गुणा अधिक हो जोड़ से, रटा रहे तुम पाठ।
उल्टा पा परिणाम हम, आज हुए हैं काठ।।
एक गुणा कर एक से कम, ज्यादा है जोड़-
एक-एक ग्यारह हुए जो उनके हैं ठाठ।।
*
संजीव
४.११.२०१८
७९९९५५९६१८

नवगीत

नवगीत:
महका-महका
संजीव
महका-महका
मन-मंदिर रख सुगढ़-सलौना
चहका-चहका
आशाओं के मेघ न बरसे
कोशिश तरसे
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घर से
बासन माँजे, कपड़े धोए
काँख-काँखकर
समझ न आए पर-सुख से
हरसे या तरसे
दहका-दहका
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका-लहका
एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
कौन बनाए
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताए
मेहनत भूखी, चमड़ी सूखी
आँखें चमकें
कहाँ जाएगी मंजिल
सपने हों न पराए
बहका-बहका
सम्हल गया पग, बढ़ा राह पर
ठिठका-ठहका
लख मयंक की छटा अनूठी
सज्जन हरषे.
नेह नर्मदा नहा नवेली
पायस परसे.
नर-नरेंद्र अंतर से अंतर
बिसर हँस रहे.
हास-रास मधुमास न जाए-
घर से, दर से.
दहका-दहका
सूर्य सिंदूरी, उषा-साँझ संग
धधका-दहका...
***
salil.sanjiv@gmil.com

नवंबर २०१९ : कब - क्या?

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नवंबर २०१९ : कब - क्या?
०१ गुरु गोविंद सिंह पुण्यतिथि
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ दिवस
०३ संत दयाराम वाला जयंती
०४ गणितविद् शकुंतला देवी जयंती १९९९, प्रतिदत्त ब्रह्मचारी जन्म
०५ अक्षय/आँवला जयंती
०६ अभिनेता संजीव कुमार निधन
०७ भौतिकीविद् चंद्रशेखर वेंकटेश्वर रमण जन्म १८८८
०८ देव उठनी एकादशी, गन्ना ग्यारस, तुलसी विवाह, संत नामदेव जयंती, महाकवि कालिदास जयंती।
१० मिलाद-उन-नबी, महाप्रसाद अग्निहोत्री निधन।
१२ गुरु नानक देव जयंती, म. सुदर्शन जयंती, महामना मालवीय निधन १९४६।
१३ भेड़ाघाट मेला।
१४ बाल दिवस, जवाहरलाल नेहरू जयंती, विश्व मधुमेह दिवस।
१५ बिरसा मुंडा जयंती, संत विनोबा दिवस, जयशंकर प्रसाद निधन १९३७।
१६ विश्व सहिष्णुता दिवस, सचिव तेंदुलकर रिटायर २०१३।
१७ लाला लाजपतराय बलिदान दिवस १९२८, बाल ठाकरे दिवंगत २०१२, तुकड़ोजी जयंती, भ. मायानंद चैतन्य जयंती।
१८ काशी विश्वनाथ प्रतिष्ठा दिवस।
१९ म. लक्ष्मीबाई जयंती १८२८, इंदिरा गाँधी जयंती १९१७, मातृ दिवस
२१- भौतिकीविद् चंद्र शेखर वेंकट रमण निधन १९७०
२२ झलकारी बाई जयंती, दुर्गादास पुण्यतिथि।
२३ सत्य साई जयंती, जगदीश चंद्र बलि निधन १९३७।
२४ गुरु तेगबहादुर बलिदान, अभिनेता महीपाल जन्म १९१९, अभिनेत्री टुनटुन निधन २००३, साहित्यकार महीप सिंह २०१५, ।
२६ डॉ. हरि सिंह गौर जयंती।
२७ बच्चन निधन १९०७।
२८ जोतीबा फूले निधन १८९०।
२९ शरद सिंह १९६३।
३० जगदीश चंद्र बसु जन्म १८५८, मायानंद चैतन्य जयंती, मैत्रेयी पुष्पा जन्म।
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दोही छंद

छंद सलिला ;
दोही
*
लक्षण छंद -
चंद्र कला पंद्रह शुभ मान, रचें विषम पद आप।
एक-एक ग्यारह सम जान, लघु पद-अंत सुमाप।।
*
उदहारण -
स्नेह सलिल अवगाहन करे, मिट जाए भव ताप।
मदद निबल की जो नित करे, हो जाए प्रभु जाप।।
*
संजीव वर्मा 'सलिल'
९४२५१८३२४४

हाथी समानार्थी,

समानार्थी शब्द: संस्कृत में हाथी के ४००० समानार्थियों में से कुछ
*
समानार्थी कुञ्जरः,गजः,हस्तिन्, हस्तिपकः,द्विपः, द्विरदः, वारणः, करिन्, मतङ्गः, सुचिकाधरः, सुप्रतीकः, अङ्गूषः, अन्तेःस्वेदः, इभः, कञ्जरः, कञ्जारः, कटिन्, कम्बुः, करिकः, कालिङ्गः, कूचः, गर्जः, चदिरः, चक्रपादः, चन्दिरः, जलकाङ्क्षः, जर्तुः, दण्डवलधिः, दन्तावलः, दीर्घपवनः, दीर्घवक्त्रः, द्रुमारिः, द्विदन्तः, द्विरापः, नगजः, नगरघातः, नर्तकः, निर्झरः, पञ्चनखः, पिचिलः, पीलुः, पिण्डपादः, पिण्डपाद्यः, पृदाकुः, पृष्टहायनः, पुण्ड्रकेलिः, बृहदङ्गः, प्रस्वेदः, मदकलः, मदारः, महाकायः, महामृगः, महानादः, मातंगः, मतंगजः, मत्तकीशः, राजिलः, राजीवः, रक्तपादः, रणमत्तः, रसिकः, लम्बकर्णः, लतालकः, लतारदः, वनजः, वराङ्गः, वारीटः, वितण्डः, षष्टिहायनः, वेदण्डः, वेगदण्डः, वेतण्डः, विलोमजिह्वः, विलोमरसनः, विषाणकः।
(आभार - जमुना कृष्णराज)

एकाक्षरी श्लोक, विलोम काव्य

संस्कृत - चमत्कारी भाषा
*
एकाक्षरी श्लोक
महाकवि माघ ने अपने महाकाव्य 'शिशुपाल वध' में एकाक्षरी श्लोक दिया है -
दाददो दुद्ददुद्दादी दाददो दूददीददोः ।
दुद्दादं दददे दुद्दे दादाददददोऽददः ॥ १४४
अर्थ - वरदाता, दुष्टनाशक, शुद्धक, आततायियों के अंतक क्षेत्रों पर पीड़क शर का संधान करें।
विलोम पद
माघ विलोमपद रचने में भी निपुण थे।
वारणागगभीरा सा साराभीगगणारवा ।
कारितारिवधा सेना नासेधा वारितारिका ॥४४
पर्वतकारी हाथियों से सुसज्ज सेना का सामना करना अति दुष्कर है। यह विराट सेना है, त्रस्त-भयभीत लोगों की चीत्कार सुनाई दे रही है। इसने अपने शत्रुओं को मार दिया है।
विलोम काव्य
श्री राघव यादवीयं - बाएँ से दाएँ रामकथा, दाएँ से बाएँ कृष्णकथा
बाएँ से दाएँ
वन्देऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥
मैं श्री राम का वंदन करता हूँ जो सीता जी के लिए धड़कते हुए ह्रदय के साथ
रावण और उसके सहायकों का वधकर, सह्याद्रि पर्वतों को पार कर, रावण तथा उसके सहायकों का वध कर, लंबे समय बाद, सीता सहित अयोध्या वापिस आए हैं।
I pay my obeisance to Lord Shri Rama, who with his heart pining for Sita, travelled across the Sahyadri Hills and returned to Ayodhya after killing Ravana and sported with his consort, Sita, in Ayodhya for a long time.
दाएँ से बाएँ
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी मारामोरा ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देहं देवं ॥
मैं श्री कृष्ण का वंदन करता हूँ जिनका ह्रदय श्री लक्ष्मी का निवास है, जो त्याग-तप से ध्यान करने योग्य हैं, जो रुक्मिणी तथा अन्य संगणियों को दुलारते हैं, जो गोपियों द्वारा पूजित हैं तथा जगनागाते हुए रत्नों से शोभायमान हैं।
I bow to Lord Shri Krishna, whose chest is the sporting resort of Shri Lakshmi; who is fit to be contemplated through penance and sacrifice, who fondles Rukmani and his other consorts and who is worshipped by the gopis, and who is decked with jewels radiating splendour.
आभार: श्रीमती जमुना कृष्णराज
छंद सलिला ;
दोही
*
लक्षण छंद -
चंद्र कला पंद्रह शुभ मान, रचें विषम पद आप।
एक-एक ग्यारह सम जान, लघु पद-अंत सुमाप।।
*
उदहारण -
स्नेह सलिल अवगाहन करे, मिट जाए भव ताप।
मदद निबल की जो नित करे, हो जाए प्रभु जाप।।
*
संजीव वर्मा 'सलिल'
९४२५१८३२४४  

रविवार, 3 नवंबर 2019

बैठक ३-११-२०१९

ॐ शब्द ब्रहमाय नम:
विश्व वाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
समन्वय प्रकाशन-अभियान
*
जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार।
सलिल बचा; पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।
*
संस्थान की मासिक बैठक केंद्रीय कार्यालय में संपन्न हुई। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने संस्थान की गतिविधियों पर संतोष व्यक्त करते हुए विविध सारस्वत अनुष्ठानों की जानकारी दी।
१. 'वीणापाणी वंदना' - वेद-पुराणों में सरस्वती जी के उद्भव, पूजनादि से संबंधित जानकारी, त्रिदेवियों की अवधारणा, ३२ भाषाओँ-बोलिओं में सरस्वती वंदनाएँ, देश-विदेश में सरस्वती मंदिरों के चित्रादि सहेजने, तथा १५० रचनाकारों की २०० से अधिक सरस्वती वंदनाएँ प्राप्त होने से अवगत कराया। यह संग्रहणीय ग्रंथ बिना कोइ अग्रिम निधि लिए प्रकाशित किया जा रहा है। प्रकाशन के पश्चात् सहभागियों को रियायती दर पर बिना डाक व्यय के तथा अन्य पाठकों को डाक व्यय निशुल्क उपलब्ध कराया जायेगा।
२. दोहा शतक मंजूषा - पूर्व प्रकाशित ३ भागों "दोहा-दोहा नर्मदा", दोहा सलिला निर्मला" तथा "दोहा दीप्त दिनेश" की सफलता के पश्चात् दोहा शतक मंजूषा ४ "दोहा है आशा-किरण" हेतु १० दोहाकारों के दोहे सम्पादन हेतु प्राप्त होने व् मात्र ५ स्थान शेष रहने की सूचना दी। दोहे स्वीकृत होने के पश्चात् सहभागिता निधि ३०००/ जमा करनी होगी। हर सहभागी को ११ प्रतियाँ बिना डाक व्यय भेजी जाएँगी। सहभागी पूर्व प्रकाशित ३ भाग (८००/-) रियायती दर पर ५००/- में प्राप्त कर सकेंगे।
३. "प्रीत के गीत" - श्रृंगार गीतों के इस संकलन हेतु २ श्रृंगार गीत, ११००/- सहभागिता निधि, चित्र, व परिचय आमंत्रित है। सहभागियों को संकलन की २ प्रतियों निशुल्क तथा अतिरिक्त प्रतियाँ रियायती दर पर बिना डाक व्यय मिलेंगी। श्री बसंत शर्मा व् श्री विनोद जैन 'वाग्वर' संपादन सहयोगी होंगे।
४. "सार्थक लघुकथाएँ" - इस संकलन हेतु ५ लघुकथाएँ (शब्द सीमा २५०), ६००/- सहभागिता निधि, चित्र, व परिचय आमंत्रित है। सहभागियों को संकलन की २ प्रतियाँ निशुल्क तथा अतिरिक्त प्रतियाँ रियायती दर पर बिना डाक व्यय मिलेंगी।
५. अभियान वाट्स ऐप समूह - समूह की गतिविधियों पर चर्चा में सदस्यों ने रचनाओं के स्तर पर संतोष व्यक्त किया। विषय बद्ध रचना प्रक्रिय के प्रति गंभीर होने की आवश्यकता अनुभव की गयी। पटल पर रचनाओं की संख्या वृद्धि तथा त्रुटि-सुधर की आवश्यकता अनुभव की गयी।
६. नवगीत महोत्सव लखनऊ, ९-१० नवंबर - श्री बसंत शर्मा द्वारा अपरिहार्य कारणों से असमर्थता व्यक्त करने पर श्री सलिल तथा श्री जयप्रकाश श्रीवास्तव द्वारा सहभागिता करने का निर्णय लिया गया।
७. टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य-कला महोत्सव भोपाल - संस्थान की ओर से श्री सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' तथा श्री-श्रीमती भट्ट सहभागिता करेंगे।
८. युवा उत्कर्ष साहित्य मंडल दिल्ली - श्री बसंत शर्मा संस्थान का प्रतिनिधित्व करेंगे।
९. उपस्थित सदस्यों ने नवीन रचनाओं का पथ किया जिन पर विमर्श कर संशोधन सुझाए गए।
१०. आगामी बैठक तय करने हेतु मुख्यालय सचिव श्रीमती छाया सक्सेना को अधिकृत किया गया।
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शनिवार, 2 नवंबर 2019

सरस्वती वंदना- तमिल, महाकवि सुब्रमण्य भारती

सरस्वती वंदना - तमिल
महाकवि सुब्रमण्य भारती

Subramanya Bharathi Signature.jpg
*
वेळ्ळै तामरै....



वेल्लै तामरै पूविल इरुप्पाळ
वीणे  से ̧युम ओलियिल इरुप्पाळ।
कोळ्ळै इन्बम कुलवु कविदै
कूरुम पावलर उळ्ळत्तिल इरुप्पाळ।। वेळ्ळै तामरै.....

उळ्ळताम पोरुळ तेड़ि उणर्दे
ओदुम वेदत्तिन उळ्निन्डंा ेळिर्वाळ।
कळ्ळमटं मुनिवर्गळ कूरुम
करुणैवासगतुट्पोरुळावाळ। वेळ्ळै तामरै.....

मादर तेन्कुरल पाट्टिलिरुप्पाळ,
मक्कळ पेसुम मळलयिल उळ्ळाळ।
गीतम पाडुम कुयिलिन कुरलिल
किळियिन नाविल इरुप्पिडम कोळ्वाळ।।  वेळ्ळै तामरै..... 


कोदगन्डं तोळि़लुदित्तागि
कुलवु चित्तिरम गोपुरम कोविल।
इदननैत्तिन एळि़लिडैयुटंाळ
इन्बमे वडिवागिड पेटंाळ।। वेळ्ळै तामरै..... 
वेळ्ळै तामरै....

महाकवि सुब्रमण्य भारती रचित सरस्वती वंदना
श्वेत कमल.....अनुवाद-डाॅ.जमुना कृष्णराज 

श्वेत कमल पुष्पों में बसती
और वीणा की झंकार में।
आनंदित करती कविता के
रचयिता के मन में है  बसती।।श्वेत कमल.......

गूढ़ अर्थों को प्रबोध करते  
वेदोच्चार के मंत्रों में बसती।
निष्कलंक मुनियों के करुणामय
वचनों का सार है बनती।।श्वेत कमल.......

गायिका के मीठे स्वर में और
शिशु की तुतली बोली में बसती।
गीत गाती कोयल के कंठ में 
और तोते की जिव्हा में बसती।। श्वेत कमल....... 

सुंदर चित्रों और कलाकृतियों में,
मंदिरों में भी है बसती।
सुंदरता साकार बन वह
खुशियाँ हमें है प्रदान करती।। श्वेत कमल....... 

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सरस्वती वंदना - कन्नड़

सरस्वती वंदना - कन्नड़ 
कृष्णमाचार पद्माचरण 














जन्म - २१-४-१९२० निधन - २२-७-२००२ 
आत्मज - स्व. जनकम्मा - स्व. आसुरी वी. राघवाचार्यलु 
संगीत निदेशन - मलैया मक्कालू, पा-पुण्य। 
*
श्रृंगपुराधीश्वरी शारदे!

शुभमंगळे सर्वाभीष्टप्रदे।
शंकर सन्नुते, श्री पद्मचरणे,
सकल कला विशारदे,
सलहेन्न ताये१, सामगान प्रिये।। 
श्रृंगपुराधीश्वरी.... 

करुणिसम्मा!२ श्रुतिगल माते!३   
कमनीय सप्तस्वर पूजिते 
काव्य गान कला स्वरूपिणी
कामित दायिनी कल्याणी जननी।। 
श्रृंगपुराधीश्वरी......
*
१. मेरी रक्षा करो हे माँ!, २. कृपा करो, ३. श्रुतिगति आदि की माता!
(साभार: जमुना कृष्णराज)
======================
हिंदी अनुवाद 
श्रृंगपुर अधीश्वरी शारदे! 

शुभ-मंगलकारिणी, अभीष्टप्रदे! 
जिनके पग पद्म सम, रक्षा करें। 
कलाओं  की तुम्ही हो विशारदे। 
सामगान प्रिय जिन्हें, रक्षा करें। 
श्रृंगपुर अधीश्वरी शारदे!

श्रुतियों की मैया! कृपा करें। 
सत सुर कमनीय, तुम्हें पूजते। 
काव्य गान कला रूप हैं तेरे 
अमित शांतिदात्री माँ कल्याण करें। 
श्रृंगपुर अधीश्वरी शारदे!
***


शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

नवगीत: राष्ट्रलक्ष्मी!

नवगीत:
राष्ट्रलक्ष्मी!
श्रम सीकर है
तुम्हें समर्पित
खेत, फसल, खलिहान
प्रणत है
अभियन्ता, तकनीक
विनत है
बाँध-कारखाने
नव तीरथ
हुए समर्पित
कण-कण, तृण-तृण
बिंदु-सिंधु भी
भू नभ सलिला
दिशा, इंदु भी
सुख-समृद्धि हित
कर-पग, मन-तन
समय समर्पित
पंछी कलरव
सुबह दुपहरी
संध्या रजनी
कोशिश ठहरी
आसें-श्वासें
झूमें-खांसें
अभय समर्पित
शैशव-बचपन
यौवन सपने
महल-झोपड़ी
मानक नापने
सूरज-चंदा
पटका-बेंदा
मिलन समर्पित
*

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

गीत आस-आस वेदिका

एक रचना
*
श्वास श्वास समिधा है
आस-आस वेदिका
*
अधरों की स्मित के
पीछे है दर्द भी
नयनों में शोले हैं
गरम-तप्त, सर्द भी
रौनकमय चेहरे से
पोंछी है गर्द भी
त्रास-त्रास कोशिश है
हास-हास साधिका
*
नवगीती बन्नक है
जनगीति मन्नत
मेहनत की माटी में
सीकर मिल जन्नत
करना है मंज़िल को
धक्का दे उन्नत
अभिनय के छंद रचे
नए नाम गीतिका
*
सपनों से यारी है
गर्दिश भी प्यारी है
बाधाओं को टक्कर
देने की बारी है
रोप नित्य हौसले
महकाई क्यारी है
स्वाति बूँद पा मुक्ता
रच देती सीपिका
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संजीव
९४२५१८३२४४

एक रचना हस्ती

एक रचना
हस्ती
*
हस्ती ख़त्म न होगी तेरी
*
थर्मोडायनामिक्स बताता
ऊर्जा बना न सकता कोई
बनी हुई जो ऊर्जा उसको
कभी सकेगा मिटा न कोई
ऊर्जा है चैतन्य, बदलती
रूप निरंतर पराप्रकृति में
ऊर्जा को कैदी कर जड़ता
भर सकता है कभी न कोई
शब्द मनुज गढ़ता अपने हित
ऊर्जा करे न जल्दी-देरी
​​
हस्ती ख़त्म न होगी तेरी
*
तू-मैं, यह-वह, हम सब आये
ऊर्जा लेकर परमशक्ति से
निभा भूमिका रंगमंच पर
वरते करतल-ध्वनि विभक्ति से
जा नैपथ्य बदलते भूषा
दर्शक तब भी करें स्मरण
या सराहते अन्य पात्र को
अनुभव करते हम विरक्ति से
श्वास गली में आस लगाती
रोज सवेरे आकर फेरी
हस्ती ख़त्म न होगी तेरी
*
साँझ अस्त होता जो सूरज
भोर उषा-संग फिर उगता है
रख अनुराग-विराग पूर्ण हो
बुझता नहीं सतत जलता है
पूर्ण अंश हम, मिलें पूर्ण में
किंचित कहीं न कुछ बढ़ता है
अलग पूर्ण से हुए अगर तो
नहीं पूर्ण से कुछ घटता है
आना-जाना महज बहाना
नियति हुई कब किसकी चेरी
हस्ती ख़त्म न होगी तेरी
*

तापसी नागराज

कोकिलकंठी गायिका श्रीमती तापसी नागराज के
जन्मोत्सव पर अनंत मंगल कामनाएं
नर्मदा के तीर पर वाक् गयी व्याप सी
मुरली के सुर सजे संगिनी पा आप सी
वीणापाणी की कृपा सदा रहे आप पर
कीर्ति नील गगन छुए विनय यही तापसी
बेसुरों की बर्फ पर गिरें वज्र ताप सी
आपसे से ही गायन की करे समय माप सी
पश्चिम की धूम-बूम मिटा राग गुँजा दें
श्रोता-मन पर अमिट छोड़ती हैं छाप सी
स्वर को नमन कलम-शब्दों का अभिनन्दन लें
भावनाओं के अक्षत हल्दी जल चन्दन लें
रहें शारदा मातु विराजी सदा कंठ में
संजीवित हों श्याम शिलाएं, शत वंदन लें
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२८ वर्णिक/४३ मात्रिक दण्डक छंद

छंद कार्यशाला -
२८ वर्णिक/४३ मात्रिक दण्डक छंद
विधान - २८ वर्णिक, ६-१४-१८-२३-२८ पर यति।
४३ मात्रिक, १०-११--७-६-९ पर यति।
गणसूत्र - र त न ज म य न स ज ग।
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नाद से आल्हाद, झर कर ही रहेगा, देख लेना, समय खुद, देगा गवाही अक्षरों में भाव, हर भर जी सकेगा, लेख लेना, सृजन खुद, देगा सुनाई शब्द हो नि:शब्द, अनुभव ले सकेगा, सीख देगा, घुटन झट होगी पराई भाव में संचार, रस भर पी सकेगा, लीक होगी, नवल फिर हो वाह वाही
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संजीव
९४२५१८३२४४
salil.sanjiv@gmail.com