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सोमवार, 19 मार्च 2018

doha shatak tribhavan kaul


दोहा शतक
त्रिभवन कौल












आत्मज: स्वर्गीय लक्ष्मी कौल-श्री बद्रीनाथ कौल।
जीवन संगिनी: श्रीमती ललिता कौल।
जन्म: १.१.१९४६, श्री नगर, जम्मू-कश्मीर।
शिक्षा: स्नातक।
लेखन विधा: दोहा, हाइकु, मुक्तछंद।
संप्रति: सेवानिवृत्त सिविलियन ग़ज़्ज़ेटेड अफसर (भारतीय वायु सेना), लेखक-कवि (हिंदी, अंग्रेजी)।
प्रकाशन:  नन्हे-मुन्नों के रूपक, सबरंग, मन की तरंग, बस एक निर्झरणी भावनाओं की। साझा संकलन  लम्हे, सफीना, काव्यशाला,  स्पंदन, कस्तूरी, सहोदरी सोपान २, उत्कर्ष काव्य संग्रह १, विहग प्रीती के, पुष्पगंधा, ढाई आखर प्रेम, अथ से इति स्तंभ वर्ण पिरामिड, शत हाइकुकार साल शताब्दी, सुरभि कंचन।
उपलब्धि: विशेषांक ट्रू मीडिया पत्रिका नवंबर २०१७, ट्रू मीडिया गौरव सम्मान, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सम्मान, जयशंकर प्रसाद सम्मान, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' सम्मान, पिरामिड भूषण, साहित्य भूषण सम्मान,कवितालोक रत्न, शब्द शिल्पी, मुक्तक लोक भूषण, काव्य सुरभि आदि।
संपर्क: एच १/ २८ तृतीय तल, लाजपत नगर १, नई दिल्ली, ११००२४।
चलभाष: 9871190256, ईमेल: kaultribhawan@gmail.com ।

दोहा शतक

गुरुवर! मुझको दीजिए, कर अनुकंपा ज्ञान।
माँग रहा कर जोड़कर, शिष्य एक अनजान।।
*
परंपरा गुरु-शिष्य की, मिले उसे ही ज्ञान।
लक्ष्य साधता बिंदु पर, करे अँगूठा दान।।
*
बच्चे पढ़-लिख कुछ बनें, मात-पिता-अरमान।
बच्चे पढ़-लिख कुछ बने, भुला जनक पहचान।।
*
आँचल में दौलत भारी, समझ न हुआ अमीर।
आह न लेना किसी की, राज या कि फ़कीर।।
*
अभी रौशनी बहुत है, भाग-निवाला छीन।
जीवन ज्योति जला सतत, सुन ले सुख की बीन।।
*
आतंकी देखे नहीं, धर्म, पंथ या जात।
काफ़िर सबको कह रहे, भूले निज औकात।।
*
पत्थरबाजी सह रहे, बैठे चुप्पी साध।
जेल भेज मत छोड़ कर, शंख-नाद निर्बाध।।
*
शह दें पत्थरबाज़ को, देशी नमकहराम।
जो बोलें जय पाक की, कर दो काम तमाम।।
*
दूध पिएँ विष उगलते, किसका कहें कसूर?
खा जाएँ माँ बेचकर , भारत के नासूर।।
*
मर्यादा श्री राम की, केवल करें बखान।
सिय मर्यादित थीं सदा, न्यून नहीं हनुमान।।
*
मनुज हुआ जब लालची, पर्यावरण विनष्ट।
पौधारोपण से करें, भू का दूर अनिष्ट।।
*
स्वास्थ्य-स्वच्छता बनी हो, कर ऐसा व्यवहार।
हों सब भागीदारी तो, निर्मल हो संसार।।
*
धरतीइनरी एक सम, पोषक-ममताशील।
झोली भर देती रहें , दोनों बहुत सुशील।।
*
कौन ज्ञानियों की सुने, भौतिक सब संसार।
बाबा आडंबर करें, नष्ट हुए आधार।।
*
दे बयान नेता रहे, जग-निंदा के योग्य।
है कटाक्ष सेनाओं पर, नहीं क्षमा के योग्य।।
*
भ्रष्टाचार पनप रहा, चक्की पिसते लोग
भोग भोगते  भार हैं, नेता कैंसर रोग।।
*
नटवरलाल सभी यहाँ, सांठ-गांठ भरपूर।
नेता अफसर सेठ हैं, धन-लोलुप मद-चूर ।।
*
पाक जीत सकता नहीं, लाख लगाए ज़ोर।
आतंकी यह जान लें, सिर्फ कब्र में ठौर।।
*
पाप गले तक आ गया, जनता है लाचार।
दुराचार अपने करें, क्यों न सुने सरकार?।।
*
हम कायर कैसे बने?, गाँधी बंदर यार।
देखो-सुनो-कहो नहीं, क्या है इसमें सार ?।।
*
छः माह की बच्ची कहे, सुन लो मेरी चीख
कल को तेरी ही सुता, माँगे तुझसे भीख।।
*
बारिश-सूखा चरम पर, दोनों देते त्रास।
कभी डूबकर मर रहे, कभी न बुझती प्यास।।
*
सूरज होता अस्त जब, भाग लालिमा संग।
अंत न होता प्रणय का, सुबह भरे नव रंग।।
*
जन्म लिया इंसान थे, फिर खो दी पहचान।
जाति-धर्म फंदे फँसे, लड़ होते हैवान।।
*
कर्म सतत करते रहो, भले न फल हर बार।
पछताने से लाभ क्या, अनुभव मिला अपार।।
*
जिनमें जीवन की समझ, हैं संवेदनशील।
प्यार निराली प्रेरणा, सके बुराई लील।।
*
पड़ा सत्य पर आवरण, कहो उतारे कौन?
पीड़ा अधिक असत्य की, घाव तीर का गौण।।
*
नारी शोषण अब नहीं , देखो रहकर मूक।
साहस कर रोको तुरत, चुप रह करें न चूक।।
*
कालजयी रचना लिखो, दुनिया को हो भान।
लेखन के सिरमौर हो, गाहे सृजन सम्मान।।
*-
बंधन क्यों हो सोच पर, मन खुलकर अब सोच।
जीत-हार मन-भावना, ख़ुशी न अधिक खरोच।।
*
आभासी संसार में, मित्रों की भरमार।
विहँस फँसाएँ जाल में, धोखे कई हज़ार।।
*
धरती के दो रूप हैं, यह माँ वह संसार।
यह प्यारी ममतामयी, वह पोषण आधार।।
*
राजनीति दलदलमयी, दल-दल चलते चाल।
दली गई जनता विवश, जनगण-मन बेहाल।।
*
चिंतन प्रज्ञा यज्ञ है, उठे चेतना जाग।
ईंधन होती प्रेरणा, सुलगा दे मन आग।।
*
समता सदा विचार में, मिलती नहीं सुजान।
गुल गुलाब है एक पर, है हर पर मुस्कान।।
*
मिलन की आज आस है, तनों की बुझे प्यास
दिल कपाट जब भी खुलें, है प्रणय सूत्र रास।।
*
वही रात मधुमास है, जब समीपता ख़ास।
नृत्य करें धडकनें मिल, श्वास-श्वास हो रास।।
*
वाणी तेज कटार सी, बोले तो हो त्रास।
चंद प्यार के बोल में, ईश्वर करे निवास।।
*
नहीं हौसला मेघ में, बिजली फिरे उदास।
मर्माहत बेबस धरा, क्रोधित नभ तज आस।।
*
जीवन है क्रीड़ा नहीं, श्रम नही है त्रास
भटक नही अब पथिक तू, कारण तेरे पास।।
*
एक चाँद अति दूर है, एक हमारे पास।
वह बदली में है घिरा, यह है बहुत उदास ।।
*
सावन-फागुन में नहीं, पीड़ा या उल्लास।
विरह अगन जल पीर हो, हर्ष अगर प्रिय पास।।
*
यह सौंदर्य दिखावटी, उसका भीतर वास।
यह क्षणभंगुर नष्ट हो, वह शाश्वत दे हास।।
*
यह बंदा अति ख़ास है, इक उसका जीवन आम।
यह है बस शाने-ख़ुदा, वह ले हरि का नाम ।।
*
मीरा माने समर्पण, राधा माने प्यार।
दोनों हों संपूर्ण जब, कृष्ण बने आधार।।
*
दलित-दलित जपते रहे, सोच मिलेंगे वोट।
हारे- ई वी एम में, बता रहे हैं खोट।।
*
आग रूप-सौंदर्य है, साक्षी है इतिहास।
जले पतंगों की तरह, मनुज आम या ख़ास।।
*
नेता खड़े चुनाव में, अपनी बिछा बिसात।
आम जनों को बाँटकर, बता रहे औकात।।
*
चौराहे पर खड़े हो, लक्ष्य न मिलता तात।
एक राह पर चलो तो, हँसो लक्ष्य पा भ्रात।।
*
कमी नहीं कमज़ोर की, खोजो मिले करोड़।
गर्दन नीची चाहिए, तजो अकड़ या होड़।।
*
मंदिर-मस्जिद ढोंग है, फूलों का व्यापार
काँटों से कर मित्रता , ईश मिले हर बार।।
*
पुष्पों k क्या भाग्य हैं, देख ईश्वरी न्याय।
सिर पर जूती के तले, जीवन के अध्याय।।
*
जनसंख्या सीमित रहे, हो जीवन उत्कर्ष।
सन सामान सिद्धांत पर, फलता भारतवर्ष।।
*
अवसर-सीमा असीमित, उठ छू लो आकाश।
अंतहीन अवसर सुलभ, चमके युवा प्रकाश।।
*
दाँव मीन-आखेट है, मानव बगुला यार।
एक टाँग पर खड़ा है, ज्यों साधक हरि-द्वार।।
*
अडिग पथिक चलते रहो, होगी जय जयकार।
जो ठाना कोशिश करो, होगी कभी न हार।।
*
धनुष उठे जब वीर का, करे घोर टंकार।
लड़ हँस जीवन समर में, पा जय मिले न हार।।
*
दुःख से क्यों तू डर  रहा, इतनी सी औकात?
चंद्र ग्रहण से कब डरे, बोल चॉँदनी रात।।
*
कठिनाई नगपति सदृश, मनुज न डर तू जूझ।
रहो काटते श्रमिक सम, डगर बना नव बूझ।।
*
यदि न ज्ञान मल्लाह को, कहाँ किनारा-बाट।
क्या कसूर मँझधार का, भटक न पाए घाट।।
*
ढोंग बनी कश्मीरियत, जिसे न इसका भान।
छीने औरों को डरा, जो न रहा इंसान।।
*
बहिष्कार कर चीन का, यही उचित है नीत।
चाह मत करो युद्ध की, थोपे तो लड़ जीत।।
*
भारी पड़े तटस्थता, विश्व न कहे सशक्त।
गुटबाज़ी यदि की नहीं, मानें तुझे अशक्त।।
*
जंगल-पर्वत कट रहे, नभ रोता है देख।
जब तक हुई न त्रासदी, मनुज न करता लेख।। 
*
बीज प्रेम का बो रहा, मौन प्रेम से मीत।
दुआ-दवा है प्रेम ही, रुचे न नफरत-नीत।।
*
तुमको पाकर सब मिला, तुम बिन खाली हाथ।
ईश्वर आये तुम्हीं में, तुम बिन रहे न साथ।।
*
ईश-ईश कह थक गया, बहे नयन जल-धार।
सांई फिर भी ना मिले, पा छोड़ा संसार।।
*
पूजा-समझा तुम मिले, सेवा-प्यार अपार।
कैसा जन्म मनुष्य का, धन जीवन आधार।।
*
करिए प्यार-दुलार तो, रखें तिरंगा-मान।
हो विपत्ति में देश यदि, करें आत्म-बलिदान।।
*
आड़े आयी हृदय में, मैं मैं की दीवार।
शब्दों का टोटा रहा, बोल सका कब प्यार ।।
*
संसारी शैतान भी, हम ही हैं भगवान।
जीवन कर्मों पर टिका, जिससे हो पहचान।।
*
छोड़ दीजिये मित्र सब, जो हैं नाग समान।
आस्तीन में झाँकिए, जाने कब लें प्राण।।
*
मात-पिता को छोड़कर, करे बसेरा और।
पुत्र देख अनुसरण करे, मिले कहाँ तब ठौर।।
*
मीठी बोली बोल कर, नेता माँगे वोट
वादों की बौछार हो, जनता खाए चोट।।
*
माटी से माटी मिले, है कैसा फिर क्लेश।
कर्मों से जग जानिये, क्या घर क्या परदेश ।।
*
फूलों के सँग शूल हैं, जीवन के सँग काल।
तथ्य समझ जो आ गया, जी बिन माया जाल।।
*
भारतीय-भारत सगे, धर्म-जात निस्सार।
भारत रहे अखंड तब, सुधिजन करेंविचार।।
*
चिंता नहीं अतीत की, मत रेखाएँ नाप।
वर्तमान तेरा सगा, कल अनजाना ताप।।
*
सब्जी हरी रसूल है, बाकी सब भगवान।
रंगों में मत बाँटिये, आखिर सब इंसान ।।
*
रक्षक जब भक्षक लगे, मानवता की हार।
दुराचार की देन है, कलयुग का उपहार।।                                                                                         
*
मन-दर्पण आँसू बहे, जब भी खला अभाव।
नर तो थोथा दर्प है, नारी है मन-भाव।।
*
मानव जन्म सफल बने, सही दिशा लो जान।
लक्ष्य चुने फिर ना डिगे, तब ही मनुज महान।।
*
मन-अनुभूति सृजन करे, शब्द नगीने ताज।
संयोजन ऐसा करें, रचना हो सरताज ।।
*
आशा कोई मत रखो, सकते सुख न खरीद।
मन -दरवाजे खोल दो, सबको बना मुरीद।।
*
बिम्ब और प्रतिबिंब सम, हैं विचार आचार।
देव-दनुज हों संग पर, कृत्य भेद आधार।।
*
वन में गुंजित गीत हो, जग-छाए उल्लास।
बहे सावनी धार जब, बुझे धरा की प्यास।।
*
करे समर पर काज जो, उसे समय का भान। 
धन से ज्यादा कीमती, समय-मूल्य तू जान।।
*
आँसू दिल का आइना, होती है बरसात।
दर्द-क्रोध-सदमा-ख़ुशी, आँसू हैं सौगात।।
*
वंशज क्यों पुत्री नहीं, सुत ही क्यों स्वीकार?
नर को नारी जन्म दे, नर मत कर अपकार।।
*
नारी सृजक स्वरूप है, करो नहीं अपमान।
नारी जिस घर में नहीं, बन जाता शमशान।।
*
रंग रक्त का एक है, तजो भेद का भाव।
गाँधी जैसे हम बनें, बदलें निजी स्वभाव।।
*
राजे-रजवाड़े मिटे, याद रखें इतिहास।
सांसद सदा न रहेंगे, हों जनता के दास।।
*
मछली जालों में फसें, फेसबुकी पहचान।
झूठे हैं रिश्ते यहाँ, ज्ञान नहीं आसान।।
*
हीरों सा व्यापार है, लेखन नहीं दुकान।
जब से जरकन आ गए, गुमी कहीं पहचान।।
*
पत्थर-मन मनु बन गया, पत्थर के भगवान।
कीमत नहीं गरीब की, प्रिय लगते धनवान।।
*
जल बिन तरस रहा मनुज, रोता सूखा देख।
नदिया श्रापित हो गई, बोया काटे लेख।।
*
जंगल-पर्वत कट गए, बची न पानी-धार। 
जल-जल कह सब जल रहे,  जल दे कौन उधार।। 
*
मँहगाई सुरसा बनी, भूख सहो धर धीर।
ऐश सभी नेता करें, कौन हरेगा पीर।।
*
संसद सांसद से चले, लोकतंत्र लें मान।
देश तभी उन्नति करे, बहस करें श्रीमान।।
*
बालक बालक तब कहाँ, जब करता अपराध। 
संसद पास न बिल करें, मिटे किस तरह व्याध।।१०० 
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रविवार, 18 मार्च 2018

गीत: नदी

गीत:
नदी मर रही है 

नदी नीरधारी, नदी जीवधारी, 
नदी मौन सहती उपेक्षा हमारी 
नदी पेड़-पौधे, नदी जिंदगी है- 
नदी माँ हमारी, भुलाया है हमने  
नदी ही मनुज का 
सदा घर रही है। 
नदी मर रही है 

नदी वीर-दानी, नदी चीर-धानी 
नदी ही पिलाती बिना मोल पानी, 
नदी रौद्र-तनया, नदी शिव-सुता है- 
नदी सर-सरोवर नहीं दीन, मानी 
नदी निज सुतों पर सदय, डर रही है 
नदी मर रही है 

नदी है तो जल है, जल है तो कल है 
नदी में नहाता जो वो बेअकल है 
नदी में जहर घोलती देव-प्रतिमा 
नदी में बहाता मनुज मैल-मल है 
नदी अब सलिल का नहीं घर रही है 
नदी मर रही है 

नदी खोद गहरी, नदी को बचाओ 
नदी के किनारे सघन वन लगाओ 
नदी को नदी से मिला जल बचाओ 
नदी का न पानी निरर्थक बहाओ 
नदी ही नहीं, यह सदी मर रही है 
नदी मर रही है 
नदी भावना की, बहे हर-हराकर  
नदी कामना की, सुखद हो दुआ कर 
नदी वासना की, बदल राह, गुम हो   
नदी कोशिशों की, हँसें हम नहाकर 
नदी देश की, विश्व बन फल रही है 
नदी मर रही है 
*
१२.३.२०१८

devi geet

देवी गीत -
*
अंबे! पधारो मन-मंदिर, १५
हुलस संतानें पुकारें। १४
*
नीले गगनवा से उतरो हे मैया! २१
धरती पे आओ तनक छू लौं पैंया। २१
माँगत हौं अँचरा की छैंया। १६
न मो खों मैया बिसारें। १४
अंबे! पधारो मन-मंदिर, १५
हुलस संतानें पुकारें। १४
*
खेतन मा आओ, खलिहानन बिराजो २१
पनघट मा आओ, अमराई बिराजो २१
पूजन खौं घर में बिराजो १५
दुआरे 'माता!' गुहारें। १४
अंबे! पधारो मन-मंदिर, १५
हुलस संतानें पुकारें। १४
*
साजों में, बाजों में, छंदों में आओ २२
भजनों में, गीतों में मैया! समाओ २१
रूठों नें, दरसन दे जाओ १६
छटा संतानें निहारें। १४
अंबे! पधारो मन-मंदिर, १५
हुलस संतानें पुकारें। १४
*
विक्रम वर्षारंभ, १८.३.२०१८

शुक्रवार, 16 मार्च 2018

doha shatak: chhaya saxena

दोहा शतक:
छाया सक्सेना 'प्रभु'















जन्म: १५.८.१९७१, रीवा।  
आत्मजा: श्रीमती शारदा-डॉ.विश्वनाथ प्रसाद सक्सेना। 
जीवनसाथी: मनीष सक्सेना। 
शिक्षा:बी.एससी., एम. ए. (राजनीति विज्ञानं), बी. एड., एम. फिल.। 
लेखन विधा: दोहा व अन्य छंद, कहानी, लघु कथा, संपादन।  
प्रकाशन: साझा संकलनों में सहभागिता। 
उपलब्धि: साहित्यिक समूहों में अनेक पुरस्कार। 
सम्प्रति: पूर्व शिक्षिका।  
संपर्क: १२ माँ नर्मदे नगर, फेज १, बिलहरी, जबलपुर  ४८२०२०। चलभाष: ०७०२४२८५७८८, ई मेल: chhayasaxena2508@gmail.com।   
​*
ॐ 
दोहा शतक

करती विनती प्रार्थना, चित्रगुप्त प्रभु नित्य।
हूँ अज्ञानी ज्ञान दे, दर्शन मिलें अनित्य।।
*
वाणी का वरदान दें, मातु शारदे आप।
चरणों  में नित आपके, बैठ करूँ मैं जाप।।
*
राम राम श्री राम हैं, जग के पालनहार।
नित्य भजन जो भी करे, वह हो भव से पार।।
*
नटवर नागर नंद ही, मोहन मधुर मुरारि।
ब्रजमोहन ब्रजपाल जप, मन न  बिसर कंसारि।।
*
प्रेम, त्याग, विश्वास से, सुधरे सकल समाज।
गुरु-सुमिरन से ही बने, बिगड़े सारे काज।।
*
गुरु के चरणों का करें, जो सुमिरन दिन-रैन।
काज सफल उसके हुए, आदि-अंत तक चैन।।
*
चमत्कार होता तभी, जब गुरु-कृपा विशेष।
गुरु चरणों में जो गया, पाता ज्ञान अशेष।।
*
मिलकर करना है सदा, सबको गुरु का ध्यान।
गुरु-चरणों में आइए, तभी मिलेगा ज्ञान।।
*
करें सभी साहित्य में, अपने गुरु का नाम।
बिन गुरुवर मिलता नहीं, हमको हरि का धाम।।
*
गुरु-चरणों में ही मिले, सकल जगत का सार।
द्वेष, कपट, छल त्यागिए, अर्पित कर अधिकार।।
*
धरती अंबर एक से, लगते हैं प्रभु आज।
ओम मंत्र गुणगान से, सुधरे सकल समाज।।

*
ओजमयी व्यक्तित्व ही, है जिनकी पहचान ।
चमत्कार हो कर्म से, बढ़े मान -सम्मान।।
*
मातु-पिता आशीष से,  सकल कार्य हों पूर्ण ।
कीर्ति  सुयश उन्नति बढ़े, रहे न कार्य अपूर्ण।।
*
सच्ची मानवता करे, निर्बल का कल्याण।
पर्यावरण अमोल है, बसते सबके प्राण।।
*
प्रियवर! स्वागत आपका, पुष्प गुच्छ ले आज।
चंदन वंदन आरती, करता सकल समाज।।
*
नित नव उन्नति हो रही, हर्ष मनाओ मीत।
अमर रहे साहित्य में, सुंदर सुफल सुनीत।।
*
नदियाँ साग़र से मिलें, नैसर्गिक अधिकार।
कर्तव्यों को कीजिए, तभी मिलेगा प्यार।।
*
पंछी बैठा डाल पर, देखे अंबर-ओर।
मनहर लाली सज रही, उदित हो रही भोर।। ० 
*
सभी सहेजें प्रकृति को, अति उत्तम यह काज।
जन-मन को प्रेरित करें, प्रण लेकर सब आज।। -
*
रंग-बिरंगी कल्पना, आज हुई साकार।
सुखद-सरस परिकल्पना, दृश्य-श्रव्य आधार।। ० 
*
निशिचर दानव दैत्य शठ, असुर अधम दनु दीन।
राम-नाम जप मुक्त हों, भव-बंधन से हीन।।
*
अनावृष्टि, अति बाढ़ से, जब भी पड़े अकाल।
भू पर फैले भुखमरी, बन जीवन का काल।। 
*
अनल आग पावक अगन, ज्वाला दाहक तेज।
वायुसखा ही अग्नि है, जल को रखो सहेज।।
*
भूधर पर्वत शैल गिरि, नग या शिखर पहाड़।
धरणीधर अद्री अचल, शिलागार हो बाड़।।
*
उत्तम अद्भुत सी लगे, अनुपम अपनी प्रीत।
अप्रतिम उपमा दीजिए, अतुलनीय मनमीत।। 
*
अमिय अमी सुरभोग है, सोम सुधा रसधार।
अमृत सम साहित्य पर, हँसकर जीवन वार।।
*
बिन सोचे करिए नहीं, अपने मत का दान।
बड़ा धर्म से कर्म है, हर मनुष्य ले जान।।
*
पाँच साल के बाद ही, कर पाते मतदान।
जागो मतदाता सभी, रहो नहीं अनजान।।  
*
छंदों की लय ही बनी, लेखन का आधार।
सरल हृदय को 'प्रभु' सदृश, लगे छंद परिवार।। 
*
नेक कर्म कर कीर्ति पा, मंगल हो चहुँ ओर।
परहित कर इंसान तो, नाच उठे मन मोर।।
*
आध्यात्मिक शुभ कर्म से, मनुज मनुज हो मीत।
मिलतीं शत शुभकामना, सके ह्रदय भी जीत।।
*
महिमा माने योग की, विश्व कर रहा नित्य। 
सब रोगों से मुक्ति पा, स्वस्थ मनुज कर कृत्य।।
*
अजर-अमर होते सदा, जग हितकारी कर्म।
अंतर्मन तू धैर्य से, सदा निभाना धर्म।। 
*
अजर-अमर है लेखनी, जो लिखती नित सत्य।
माँ वाणी की कृपा से, करना सदा सुकृत्य।।
*
कर्म हमारा धर्म है, कहते वेद महान।
सच्चे मन से कीजिए, गुरुजन का सम्मान।।
*
जैसे होंगे कर्म तव, वैसी होगी प्रीत।
अपनों के सँग गाइए, मधुरिम-मधुरिम गीत।।
*
बच्चे तो भगवान का, ही होते प्रतिरूप।
दर्शन इनमें कीजिए, बालकृष्ण के रूप।।
*
सुघड़ लाड़ली जानकी, प्रियवर हिय रघुनाथ।
मग-पग रख मुस्का रहीं, वन में सियवर साथ।। 
*
सुफल सुफल ही सुफल है, जब हों सुफल सुकाज।
सुयश-सुयश बढ़ता रहे, संगम का प्रभु आज।।
*
शोभित रघुवर हो रहे, जनक-लली प्रभु साथ।
जगत-जगत को मोहते, सरस-सरस रघुनाथ।।
*
सरस सुहाना बाग है, मधुर-मधुर मद-गंध।
सुरभि-सुरभि पावन लगे, मनुज-मनुज संबंध।। 
*
रमण-रमण सुंदर रमण, रमण-रमण तन श्याम।।
रमण-रमण सम राधिका, रमण-रमण घनश्याम।।
*
सुमन-सुमन चहुँ-चहुँ दिशा, सुमन-सुमन अरु माल।
सुमन सुसज्जित भवन है, सुमन-सु मन प्रभु लाल।।
*
सुमित-सुमित प्रिय सुमित है, सुमित-सुमित मन आज।
चरण-चरण रजचरण है, हृदय-हृदय रघुराज।।
*
खोया है बचपन  कहीं, खोजो मिलकर आज।
गुम हो गईं कहानियाँ, छूटे सकल सुकाज।।   
*
अंधेरा अरु अंध ही, अंधकार बन ज्योत।
तिमिर स्याह तम अंधता, हरे तनिक खद्योत।।
*
बातें लगती हैं बुरी, जो कोई दे सीख।
जो सीखे कम उमर में, गुरु सम ज्ञानी दीख।।
*
मानव मूल्यों का करो, सतत् सदा सत्कार।
प्रेम-भाव मिलकर रहो, सुखी बने संसार।।   
*
सच्ची मानवता वही, जिससे हो कल्याण।                                                  
मानव हित अनमोल है, सबके बसते प्राण।।
*
फैली है चहुँ ओर ही, ममतामयी सुवास ।
धीमे-धीमे हो रहा, प्रियतम पर विश्वास।।
शिवशंकर के शीश पर, प्रगट नर्मदा आप।
निर्मल जल की स्वामिनी, पूजो कटते पाप।। 
*
नदियाँ-सरवर जिंदगी, जानो यह सब सत्य।
प्यास बुझाते मनुज की, रक्षा करिए नित्य।।
*
प्रेम रत्न चहुँ ओर है, सच स्वीकारें आज।
ईश-भक्त ही जानते, जीवन का यह राज।।
*
मुश्किल घटती है तभी, जब लें प्रभु का नाम।
जाग करें कोशिश अगर, मिल जाएँ प्रभु राम।।
*
बिन कठिनाई कब बने, जग में कोई काज।
कदम बढ़ा साथी तभी, मिले सफलता आज।।
*
सबको नित प्रति चाहिए, अच्छा भोजन रोज।
मिल-जुल रहते जब सभी, तब बढ़ जाता ओज।।
*
नित्य कीजिए योग सब, मिलकर सह परिवार।
यश वैभव उन्नति  मिले, बने सुखद आधार ।। 
*
सच्चाई की राह में, काँटे मिलें अनेक।
प्रेम भाव से प्रभु भजें, जाग्रत रखें विवेक।।
*
श्रद्धा सह विश्वास का, अद्भुत है संयोग।
अंध भक्ति से दूर हों, जागरूक बन लोग।।  
*
दुर्लभ मानव-जन्म है, इसे बनाएँ खास।
दुर्व्यसनों को छोड़कर, नई जगाएँ आस।।
*
अति करती है हमेशा, अपना आप अनिष्ट।
भक्ति-भावमय जिंदगी, जिएँ न दें-लें कष्ट।।   
*
कथनी-करनी में नहीं, करना कोई भेद।                                                          
कठिन भले जीवन लगे, तनिक न हो मतभेद।।
*
लगन लगी श्री राम की, भजती प्रभु को नित्य।
हाथ जोड़ विनती करे, शबरी सुनें अनित्य।।
*
धनुष सम्हाले हाथ में, संकट काटो नाथ।
शरण तुम्हारे आ गयी, करिए देव सनाथ।।
बप्पा को पूजें सभी, गौरा-भोले संग।
मूषक पर गजपति सजे, देखे दुनिया दंग।।
*
संगम की महिमा अमित, देखो जानो लोग।
जैसी होगी कर्म-गति, वैसा हो फल-भोग।।  
*
संगम हो अब ज्ञान का, ऐसा करिए कर्म।
गुरु आज्ञा स्वीकार कर, पालें सच्चा धर्म।।
*
मनुज सदा साहित्य में, रचे नए आयाम।
हिंदी का सम्मान हो, भू हो हिंदी-धाम।।  
*
दोहे का करिए सृजन, निहित अर्थ लें जान।
छंदों से आनंद हो, बढ़े निरंतर ज्ञान।।
*
दोहे लिखना है सरस, अर्थवान लो जान।
भाव शिल्प आधार हो, पढ़ें तभी विद्वान।।
*
कठिन परीक्षा की घड़ी, जब हो सम्मुख मीत।
याद देव को जो करे, विजयी हो है रीत।।
*
शिव की पूजा कीजिए, शुभ होंगे सब काज।
चंदन वंदन अर्चना, मिलकर करिए आज।।
*
लक्ष्मी पूजन कीजिए, हाथ जोड़ कर रोज।
विष्णु प्रिया माँ आप हैं, सुरभित सुमन सरोज।।  
मंजिल उनको ही मिले, जो चलते अविराम।
एक लक्ष्य को साधिए, तभी बढ़ेगा नाम।।
*
सतत परिश्रम जो करे, विजय उसी के साथ।
भक्ति-भाव यदि हिय रखे, मलना पड़े न हाथ।।
*
चमत्कार की आस में, मत बैठो बलवीर।
कर्म करो योगी बनो, जग जीतो रणवीर।।
*
ओजमयी व्यक्तित्व ही, है जिनकी पहचान।
काम करें निष्काम वे, मिले मान-सम्मान।।
*
सच्ची मानव ही करे, जनता का कल्याण।
मानव हित अनमोल है, यही देश के प्राण।।
*
चलो सुनाएँ जगत को, आत्मकथ्य लिख आज।
सत्य-सत्य संदेश हो, नहीं झूठ-सिर ताज।।
*
खट्टी- मीठी याद को, करें याद रह मौन।
गूँगे का गुण स्वाद में, कैसा बोले कौन।।
*
मान तिरंगे का रखा, जब तक तन में प्राण।
ऐसे वीर शहीद को, बारंबार प्रणाम।।
*
प्रीत आस विश्वास का, बहुत अनोखा संग।
जो जी में धारण करे, उस पर चढ़ता रंग।।  
*
काम देश के आइए, मन में रख विश्वास।
देश बढ़े तो मानिए, सारे सफल प्रयास।।
*
दानों में सबसे बड़ा, अन्नदान सच मान।
भूखा जाए न द्वार से, भिक्षुक लें प्रण ठान।।
*
सबसे मीठे जगत में, होते मीठे बोल।
पल में मन को जीत लें, काम न आए ढोल।।
*
अहंकार-अभिमान ही, करें मनुज का ह्रास।
दंभ-दर्प को छोड़कर, करिए  विनत प्रयास।। 
*
मन मोहन में रम गया, ज्यों सागर में नीर।
मनमोहन करिए कृपा, रहे नहीं तन-पीर।।
*
लक्ष्य बना बढ़ कीजिये, सपनों को साकार।
तब ही मंजिल मिलेगी, सपने हों साकार।।
*
चपल श्याम राधा बने, रंग झलकता नील।
अपलक देखे जमुन-जल, लहर-लहर छवि लील।। 
*
काम मान श्री कृष्ण का, करो मिटेंगे पाप।
सच्चे मन से हँस करो, दान-पुण्य नित आप।। 
*
आओ! मिलकर प्रण करें, लें न विदेशी माल।
जो बनता है देश में, वही करे खुशहाल।।
*  
अकड़-अकड़ कर दंभ से, अभिमानी मन फूल।
असफल दंडित हो मगर, नहीं मानता भूल।। 
*
नेक कर्म जो कर रहा, सफल उसी को जान।
इस दुनिया में हम सभी, कुछ दिन के मेहमान।।
*
चार दिनों की जिंदगी, हर पल है अनमोल।
कड़वा कह मत मन दुखा, बोलो मीठे बोल।।
*
बिना परिश्रम कब हुआ, जग में कोई काज।
कदम बढ़ा साथी तभी, मिले सफलता ताज।।  
*
अवध सुहावन लग रहा, देखो कैसा आज।
सिय-सियवर का आगमन, शोभित सुफल सुकाज।।
*
सर्वोत्तम उपहार है,पुस्तक दें-लें मीत।
संगम-जल सम संग रह, सिख सकें शुभ रीत।।
*
दानों में सबसे बड़ा, अन्न दान को जान।
जीवन इससे ही चले, माने सकल जहान।। 
*
लड़ो बाहुबल से नहीं, यदि चाहो सम्मान।
प्रेम भाव से जीत जग, 'छाया' पाए मान।।
*
ध्यान योग एकांत में, फलदाई लें जान।
दुग्ध गाय का सोम सम, बलवर्धक गुणवान।।
*
मंगल मंगल ही करे,  नहीं अमंगल काज।
मनु मनु का मंगल करे, तब हो सुख का राज।।१०१ 
*

बुधवार, 14 मार्च 2018

सूर्यमंजरी काव्य संग्रह

लखनऊनिवासी सुनीता सिंह की कविताएँ, कभी बुलाएँ, कभी सकुचाएँ, कभी झ्ठलाएं, कभी मन भाएँ। क्यों न आप भी इन्हें मित्र बनाएँ।

सोमवार, 12 मार्च 2018

दोहा सलिला

गले मिले दोहा-यमक
*
दो ने दोने में दिया, दो को दो का भाग।
दो में दो का भाग दे, शेष एक अनुराग।।
*
दो से दो मिल चार हों, गणित न केवल यार।
आॅंख चार परिवार हों, दो के दो हों चार।।
*
दो सुख तो वापस न लो, दो दुख कभी न मीत।
दो अपनापन तो बढ़ा, ऐक्य रखो शुभ रीत।।
*
दो जब तक दो ही रहे, टकराते थे खूब।
दो मिल जबसे एक हैं, तनिक न होती ऊब।।
*
दो हों एक अनेक फिर, हों अनेक से एक।
दो 'डू' हो कहता करो, 'अनडू' नहीं विवेक।।
***
१२.३.२०१८,
ए१/२२ चित्रकूट एक्सप्रैस

रविवार, 11 मार्च 2018

हास्य रचनाएँ ४ संजीव

एक दोहा दो दुम का... सलिल

लोकतंत्र के देखिये, अजब-अनोखे रंग।

नेता-अफसर चूसते, खून आदमी तंग॥

जंग करते हैं नकली।

माल खाते हैं असली॥

******
हास्य रचना
बतलायेगा कौन?
संजीव
*
मैं जाता था ट्रेन में, लड़ा मुसाफिर एक.
पिटकर मैंने तुरत दी, धमकी रखा विवेक।।

मुझको मारा भाई को, नहीं लगाना हाथ।
पल में रख दे फोड़कर, हाथ पैर सर माथ ।।

भाई पिटा तो दोस्त का, उच्चारा था नाम।
दोस्त और फिर पुत्र को, मारा उसने थाम।।

रहा न कोई तो किया, उसने एक सवाल।
आप पिटे तो मौन रह, टाला क्यों न बवाल?

क्यों पिटवाया सभी को, क्या पाया श्रीमान?
मैं बोला यह राज है, किन्तु लीजिये जान।।

अब घर जाकर सभी को रखना होगा मौन.
पीटा मुझको किसी ने, बतलायेगा कौन??

++++++++
दोहा सलिला:
शब्दों से खिलवाड़- १
संजीव 'सलिल'
*
शब्दों से खिलवाड़ का, लाइलाज है रोग..
कहें 'स्टेशन' आ गया, आते-जाते लोग.
*
'पौधारोपण' कर कहें, 'वृक्षारोपण' आप.
गलत शब्द उपयोग कर, करते भाषिक पाप..
*
'ट्रेन' चल रही किन्तु हम, चला रहें हैं 'रेल'. 
हिंदी माता है दुखी, देख शब्द से खेल..
*
कहते 'हैडेक' पेट में, किंतु नहीं 'सिरदर्द'.
बने हँसी के पात्र तो, मुख-मंडल है ज़र्द..
*
'फ्रीडमता' 'लेडियों' को, मिले दे रहे तर्क.
'कार्य' करें तो शर्म है, गर्व करें यदि 'वर्क'..
*
'नेता' 'लीडर' हो हुए, आम जनों से दूर.
खून चूसते देश का, मिल अफसर मगरूर..
*
'तिथि' आने की ज्ञात तो, 'अतिथि' रहे क्यों बोल?
शर्म न गलती पर करें, पीट रहे हैं ढोल..
*
क्यों 'बस' को 'मोटर' कहें, मोटर बस का यंत्र.
सही-गलत के फर्क का, सिर्फ अध्ययन मंत्र.. 
*
'नृत्य' न करना भूलकर, डांस इंडिया डांस. 
पूजा पेशा हो गयी, शाकाहारी मांस..
*
'सर्व' न कर 'सर्विस' करें, कहलायें 'सर्वेंट'.
'नौकर' कहिये तो लगे, हिंदी इनडीसेंट..  
*
'ममी-डैड' माँ-बाप को, कहें उठाकर शीश.
बने लँगूरा कूदते, हँसते देख कपीश..
*
दोहा सलिला:
अंगरेजी में खाँसते...
संजीव 'सलिल'
*
अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को  श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..
*
टेबल याने सारणी, टेबल माने मेज.
बैड बुरा माने 'सलिल', या समझें हम सेज..
*
जिलाधीश लगता कठिन, सरल कलेक्टर शब्द.
भारतीय अंग्रेज की, सोच करे बेशब्द..
*
नोट लिखें या गिन रखें, कौन बताये मीत?
हिन्दी को मत भूलिए, गा अंगरेजी गीत..
*
जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.
जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड..
*
चचा फूफा मौसिया, खो बैठे पहचान.
अंकल बनकर गैर हैं, गुमी स्नेह की खान..
*
गुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार.
शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
*
शिशु किशोर होते युवा, गति-मति कर संयुक्त.
किड होता एडल्ट हो, एडल्ट्री से युक्त..
*
कॉपी पर कॉपी करें, शब्द एक दो अर्थ.
यदि हिंदी का दोष तो अंगरेजी भी व्यर्थ..
*
टाई याने बाँधना, टाई कंठ लंगोट.
लायर झूठा है 'सलिल', लायर एडवोकेट.. 
*
टैंक अगर टंकी 'सलिल', तो कैसे युद्धास्त्र?
बालक समझ न पा रहा, अंगरेजी का शास्त्र.. 
*
प्लांट कारखाना हुआ, पौधा भी है प्लांट.
कैन नॉट को कह रहे, अंगरेजीदां कांट..
*
खप्पर, छप्पर, टीन, छत, छाँह रूफ कहलाय.
जिस भाषा में व्यर्थ क्यों, उस पर हम बलि जांय..
*
लिख कुछ पढ़ते और कुछ, समझ और ही अर्थ.
अंगरेजी उपयोग से, करते अर्थ-अनर्थ.. 
*
हीन न हिन्दी को कहें, भाषा श्रेष्ठ विशिष्ट.
अंगरेजी को श्रेष्ठ कह, बनिए नहीं अशिष्ट..
*

हास्य रचनाएँ ३ संजीव

हास्य गीत

एक रचना 
*
छंद बहोत भरमाएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
वरण-मातरा-गिनती बिसरी 
गण का? समझ न आएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
दोहा, मुकतक, आल्हा, कजरी, 
बम्बुलिया चकराएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
कुंडलिया, नवगीत, कुंडली, 
जी भर मोए छकाएँ 
राम जी जान बचाएँ 

मूँड़ पिरा रओ, नींद घेर रई 
रहम न तनक दिखाएँ 
राम जी जान बचाएँ 

कर कागज़ कारे हम हारे 
नैना नीर बहाएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
ग़ज़ल, हाइकू, शे'र डराएँ 
गीदड़-गधा बनाएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
ऊषा, संध्या, निशा न जानी 
सूरज-चाँद चिढ़ाएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
पैरोडी 
'लेट इज बैटर दैन नेवर', कबहुँ नहीं से गैर भली  
होली पर दिवाली खातिर धोनी और सब मनई के 
मुट्ठी भर अबीर और बोतल भर ठंडाई ......

होली पर एगो ’भोजपुरी’ गीत रऊआ लोग के सेवा में ....
नीक लागी तऽ  ठीक , ना नीक लागी तऽ कवनो बात नाहीं....
ई गीत के पहिले चार लाईन अऊरी सुन लेईं

माना कि गीत ई पुरान बा
      हर घर कऽ इहे बयान बा
होली कऽ मस्ती बयार मे-
मत पूछऽ बुढ़वो जवान बा--- कबीरा स र र र र ऽ

अब हमहूँ ६३-के ऊपरे चलत, मग्गर ३६ का हौसला रखत  बानी ..
*
भोजपुरी गीत : होली पर....

कईसे मनाईब होली ? हो धोनी !
कईसे मनाईब होली..ऽऽऽऽऽऽ

बैटिंग के गईला त रनहू नऽ अईला
एक गिरउला ,तऽ दूसर पठऊला
कईसे चलाइलऽ  चैनल चरचा
कोहली त धवन, रनहू कम दईला 
निगली का भंग की गोली?  हो धोनी  ! 
मिलके मनाईब होली ?ऽऽऽऽऽ

ओवर में कम से कम चउका तऽ चाही
मौका बेमौका बाऽ ,छक्का तऽ चाही
बीस रनन का रउआ रे टोटा  
सम्हरो न दुनिया में होवे हँसाई
रीती न रखियो झोली? हो राजा !
लड़ के मनाईब होली ?,ऽऽऽऽऽऽऽ

मारे बँगलदेसीऽ रह-रह के बोली
मुँहझँऊसा मुँह की खाऽ बिसरा ठिठोली
दूध छठी का याद कराइल  
अश्विन-जडेजाकऽ टोली 
बद लीनी बाजी अबोली हो राजा
भिड़ के मनाईब होली ?,ऽऽऽऽऽऽऽ

जमके लगायल रे! चउआ-छक्का 
कैच भयल गए ले के मुँह लटका
नानी स्टंपन ने याद कराइल  
फूटा बजरिया में मटका  
दै दिहिन पटकी सदा जय हो राजा
जम के मनाईब होली ?,ऽऽऽऽऽऽऽ

हास्य पद: 

जाको प्रिय न घूस-घोटाला 

संजीव 'सलिल' 


*
जाको प्रिय न घूस-घोटाला...
वाको तजो एक ही पल में, मातु, पिता, सुत, साला.
ईमां की नर्मदा त्यागकर,  न्हाओ रिश्वत नाला..
नहीं चूकियो कोऊ औसर, कहियो लाला ला-ला.
शक्कर, चारा, तोप, खाद हर सौदा करियो काला..
नेता, अफसर, व्यापारी, वकील, संत वह आला.
जिसने लियो डकार रुपैया, डाल सत्य पर ताला..
'रिश्वतरत्न' गिनी-बुक में भी नाम दर्ज कर डाला.
मंदिर, मस्जिद, गिरिजा, मठ तज, शरण देत मधुशाला..
वही सफल जिसने हक छीना,भुला फ़र्ज़ को टाला.
सत्ता खातिर गिरगिट बन, नित रहो बदलते पाला..
वह गर्दभ भी शेर कहाता बिल्ली जिसकी खाला.
अख़बारों में चित्र छपा, नित करके गड़बड़ झाला..
निकट चुनाव, बाँट बन नेता फरसा, लाठी, भाला.
हाथ ताप झुलसा पड़ोस का घर धधकाकर ज्वाला..
सौ चूहे खा हज यात्रा कर, हाथ थाम ले माला.
बेईमानी ईमान से कर, 'सलिल' पान कर हाला..
है आराम ही राम, मिले जब चैन से बैठा-ठाला.
परमानंद तभी पाये जब 'सलिल' हाथ ले प्याला.. 

                           ****************
(महाकवि तुलसीदास से क्षमाप्रार्थना सहित)
हास्य कविता:

साहिब जी मोरे...

*
साहिब जी मोरे मैं नहीं रिश्वत खायो.....

झूठो सारो जग मैं साँचो, जबरन गयो फँसायो.
लिखना-पढ़ना व्यर्थ, न मनभर नोट अगर मिल पायो..
खन-खन दै तब मिली नौकरी, खन-खन लै मुसक्यायो.
पुरुस पुरातन बधू लच्छमी, चंचल बाहि टिकायो..
पैसा लै कारज निब्टायो, तन्नक माल पचायो.
जिनके हाथ न लगी रकम, बे जल कम्प्लेंट लिखायो..
इन्क्वायरी करबे वारन खों अंगूरी पिलबायो.
आडीटर-लेखा अफसर खों, कोठे भी भिजवायो..
दाखिल दफ्तर भई सिकायत, फिर काहे खुल्वायो?
सूटकेस भर नगदौअल लै द्वार तिहारे आयो..
बाप न भैया भला रुपैया, गुपचुप तुम्हें थमायो.
थाम हँसे अफसर प्यारे, तब चैन 'सलिल'खों आयो..
लेन-देन सभ्यता हमारी, शिष्टाचार निभायो.
कसम तिहारी नेम-धरम से भ्रष्टाचार मिटायो..
अपनी समझ पड़ोसन छबि, निज नैनं मध्य बसायो.
हल्ला कर नाहक ही बाने तिरिया चरित दिखायो..
अबला भाई सबला सो प्रभु जी रास रचा नई पायो.
साँच कहत हो माल परयो 'सलिल' बाँटकर खायो..
साहब जी दूना डकार गये पर बेदाग़ बचायो.....

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