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मंगलवार, 19 सितंबर 2017

geet

एक रचना-
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
*
लोकतंत्र का अजब तकाज़ा
दुनिया देखे ठठा तमाशा
अपना हाथ
गाल भी अपना
जमकर मारें खुदी तमाचा
आज़ादी कुछ भी कहने की?
हुए विधाता वाम जी!
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
*
जन का निर्णय पचा न पाते
संसद में बैठे गुर्राते
न्यायालय का
कहा न मानें
झूठे, प्रगतिशील कहलाते
'ख़ास' बुद्धिजीवी पथ भूले
इन्हें न कहना 'आम' जी
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
*
कहाँ मानते हैं बातों से
कहो, देवता जो लातों के?
जैसे प्रभु
वैसी हो पूजा
उत्तर दो सब आघातों के
अवसर एक न पाएं वे
जो करें देश बदनाम जी
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

सोमवार, 18 सितंबर 2017

prarthana

PRAYER
ध्यान, अध्यात्म आदि से संबंधित संस्था infinitheism की प्रार्थना भावानुवाद सहित प्रस्तुत है
Feeling thy presence
Feeling thy grace
Feeling thy radiance
You are my source of faith and strength
You are my path and destination
And I am always connected to You
Nothing of me and everything of You
Lead me higher ……………....
Lead me deeper …………..….
Lead me beyond ……….…….
Lead me to you ……………….
प्रार्थना
तेरी उपस्थिति महसूसी 
पाई तेरी कृपा अनूठी 
अनुपम है दिव्याभा तेरी   
निष्ठा-शक्ति स्रोत तू मेरा  
मार्ग-लक्ष्य है तू ही मेरा  
तुझसे जुड़ा हमेशा ही मैं 
मेरा क्या?, सब कुछ है तेरा  
राह दिखा 
गहराई दिखा दे 
ले चल पार 
मिला ले खुद में. 
***
मूल अँग्रेजी में ये प्रेयर यहाँ सुनी जा सकती है :www.infinitheism.com/infiniprayer.html
मेरा इस संस्था से कोई संबंध नहीं है ।
salil.sanjiv@gmail.com,९४२५१८३२४४
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shringaar geet

श्रृंगार गीत:
हरसिंगार मुस्काए
संजीव 'सलिल'
*
खिलखिलायीं पल भर तुम
हरसिंगार मुस्काए
अँखियों के पारिजात
उठें-गिरें पलक-पात
हरिचंदन देह धवल
मंदारी मन प्रभात
शुक्लांगी नयनों में
शेफाली शरमाए
परिजाता मन भाता
अनकहनी कह जाता
महुआ मन महक रहा
टेसू तन झुलसाता
फागुन में सावन की
हो प्रतीति भरमाए
कर-कुदाल-कदम माथ
पनघट खलिहान साथ, 
सजनी-सिन्दूर सजा-
चढ़ सिउली सजन-माथ?
हिलमिल चाँदनी-धूप
धूप-छाँव बन गाए
*
हरसिंगार पर्यायवाची: हरिश्रृंगार, पारिजात, शेफाली, श्वेतकेसरी, हरिचन्दन, शुक्लांगी, मंदारी, परिजाता, पविझमल्ली, सिउली, night jasmine, coral jasmine, jasminum nitidum, nycanthes arboritristis, nyclan. 
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yamak alankaar

:अलंकार चर्चा ०९ :
यमक अलंकार
भिन्न अर्थ में शब्द की, हों आवृत्ति अनेक 

अलंकार है यमक यह, कहते सुधि सविवेक

पंक्तियों में एक शब्द की एकाधिक आवृत्ति अलग-अलग अर्थों में होने पर यमक अलंकार होता है. यमक अलंकार के अनेक प्रकार होते हैं.
अ. दुहराये गये शब्द के पूर्ण-आधार पर यमक अलंकार के ३ प्रकार १. अभंगपद, २. सभंगपद ३. खंडपद हैं.
आ. दुहराये गये शब्द या शब्दांश के सार्थक या निरर्थक होने के आधार पर यमक अलंकार के ४ भेद १.सार्थक-सार्थक, २. सार्थक-निरर्थक, ३.निरर्थक-सार्थक तथा ४.निरर्थक-निरर्थक होते हैं.
इ. दुहराये गये शब्दों की संख्या व् अर्थ के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है.
उदाहरण :
१. झलके पद बनजात से, झलके पद बनजात 
अहह दई जलजात से, नैननि सें जल जात -राम सहाय 
प्रथम पंक्ति में 'झलके' के दो अर्थ 'दिखना' और 'छाला' तथा 'बनजात' के दो अर्थ 'पुष्प' तथा 'वन गमन' हैं. यहाँ अभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक अलंकार है. 
द्वितीय पंक्ति में 'जलजात' के दो अर्थ 'कमल-पुष्प' और 'अश्रु- पात' हैं. यहाँ सभंग पद, सार्थक-सार्थक यमक अलंकार है.

२. कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय 
या खाये बौराय नर, वा पाये बौराय 
कनक = धतूरा, सोना -अभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक

३. या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरैहौं 
मुरली = बाँसुरी, मुरलीधर = कृष्ण, मुरली की आवृत्ति -खंडपद, सार्थक-सार्थक यमक 
अधरान = अधरों पर, अधरा न = अधर में नहीं - सभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक

४. मूरति मधुर मनोहर देखी 
भयेउ विदेह विदेह विसेखी -अभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक, तुलसीदास 
विदेह = राजा जनक, देह की सुधि भूला हुआ.

५. कुमोदिनी मानस-मोदिनी कहीं 
यहाँ 'मोदिनी' का यमक है. पहला मोदिनी 'कुमोदिनी' शब्द का अंश है, दूसरा स्वतंत्र शब्द (अर्थ प्रसन्नता देने वाली) है.

६. विदारता था तरु कोविदार को 
यमक हेतु प्रयुक्त 'विदार' शब्दांश आप में अर्थहीन है किन्तु पहले 'विदारता' तथा बाद में 'कोविदार' प्रयुक्त हुआ है.

७. आयो सखी! सावन, विरह सरसावन, लग्यो है बरसावन चहुँ ओर से 
पहली बार 'सावन' स्वतंत्र तथा दूसरी और तीसरी बार शब्दांश है.

८. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान 
'तम' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.

९. यों परदे की इज्जत परदेशी के हाथ बिकानी थी 
'परदे' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.

१०. घटना घटना ठीक है, अघट न घटना ठीक 
घट-घट चकित लख, घट-जुड़ जाना लीक

११. वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम 
वाम हस्त पर वाम दल, 'सलिल' वाम परिणाम 
वाम = तांत्रिक पंथ, विपरीत, बाँया हाथ, साम्यवादी, उल्टा

१२. नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुँफकार 
नाग नाग को नागता, नाग न मारे हार 
नाग = हाथी, पर्वत, सर्प, बादल, पर्वत, लाँघता, जनजाति 
जबलपुर, १८-९-२०१५ 
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doha salila

समस्या पूर्ति
'हिंदी की तस्वीर
'हिंदी की तस्वीर' शब्दों का उपयोग करते हुए पद्य की किसी भी विधा में रचना टिप्पणी के रूप में प्रस्तुत करें।
*
हिंदी की तस्वीर के, अनगिन उजले पक्ष
जो बोलें वह लिख-पढ़ें, आम लोग, कवि दक्ष
*
हिदी की तस्वीर में, भारत एकाकार
फूट डालती स्वार्थवश, अंग्रेजी आधार
*
हिंदी की तस्वीर में, सरस सार्थक छंद
जितने उतने हैं कहाँ, नित्य रचें कविवृंद
*
हिंदी की तस्वीर या, पूरा भारत देश
हर बोली मिलती गले, है आनंद अशेष
*
हिंदी की तस्वीर में, भरिए अभिनव रंग
उनकी बात न कीजिए, जो खुद ही बदरंग
*
हिंदी की तस्वीर पर अंग्रेजी का फ्रेम
नौकरशाही मढ़ रही, नहीं चाहती क्षेम
*
हिंदी की तस्वीर में, गाँव-शहर हैं एक
संस्कार-साहित्य मिल, मूल्य जी रहे नेक
*
हिंदी की तस्वीर में, मैं-तू हैं इक जान
हमको दोनों लुभाते, राम और रहमान
*
हिंदी की तस्वीर में, जुड़ें नित्य नव देश
'सलिल' निकट है वह समय, होगा एक न शेष
***
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रविवार, 17 सितंबर 2017

गुंजन कला सदन संस्कारधानी जबलपुर की  

सक्रिय सांस्कृतिक संस्था द्वारा बुंदेली दिवस पर 
वार्षिकोत्सव में सर्वोच्च लोक साहित्य अलंकरण से 
अलंकृत किया. 

भाषा वैभव : भोजपुरी
आलंकारिकता और अर्थ वैचित्र्य 
*
के मारी? = कौन मारेगा?
केके मारी? = किसको मारूं?
के केके मारी? = कौन किसको मारेगा?
केके केके मारी? = किसको-किसको मारूँ?
के केके केके मारी? = कौन किसको-किसको मारेगा?
केके केके के के मारी? = किसको-किसको कौन-कौन मारेगा?
***
अर्थ बूझिये
के कै मारी?, के को मारी, के समझी?, के का समझी?, के के समझी?, का का समझी? के के का का समझी?, के का के का समझी?
अन्य भाषाओँ के वैभव से परिचित कराइए. 
***
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शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

अभियंता दिवस सम्मान

muktak dohe

मुक्तक 
नित्य प्रात हो जन्म, सूर्य सम कर्म करें निष्काम भाव से। 
संध्या पा संतोष रात्रि में, हो विराम नित नए चाव से।। 
आस-प्रयास-हास सँग पग-पग, लक्ष्य श्वास सम हो अभिन्न ही -
मोह न व्यापे, अहं न घेरे, साधु हो सकें प्रिय! स्वभाव से।।
***
दोहे
सलिल न बन्धन बाँधता, बहकर देता खोल।
चाहे चुप रह समझिए, चाहे पीटें ढोल।।
*
अंजुरी भर ले अधर से, लगा बुझा ले प्यास।
मन चाहे पैरों कुचल, युग पा ले संत्रास।।
*
उठे, बरस, बह फिर उठे, यही 'सलिल' की रीत।
दंभ-द्वेष से दूर दे, विमल प्रीत को प्रीत।।
*
स्नेह संतुलन साधकर, 'सलिल' धरा को सींच।
बह जाता निज राह पर, सुख से आँखें मींच।।
*
क्या पहले क्या बाद में, घुली कुँए में भंग।
गाँव पिए मदमस्त है, कर अपनों से जंग।।
*
जो अव्यक्त है, उसी से, बनता है साहित्य।
व्यक्त करे सत-शिव तभी, सुंदर का प्रागट्य।।
*
नमन नलिनि को कीजिए, विजय आप हो साथ।
'सलिल' प्रवह सब जगत में, ऊँचा रखकर माथ।।
*
हर रेखा विश्वास की, शक-सेना की हार।
सक्सेना विजयी रहे, बाँट स्नेह-सत्कार।
*