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गुरुवार, 18 जुलाई 2013

Pt. Narendra Sharma aur Mahabharat Serial -Lavnya Shah


 पं. नरेंद्र शर्मा और महाभारत धारावाहिक

लावण्या शाह
*
(भारतीय संस्कृति के आधिकारिक विद्वान, सुविख्यात साहित्यकार, चलचित्र जगत के सुमधुर गीतकार पं. नरेंद्र शर्मा की कालजयी सृजन समिधाओं  अनन्य दूरदर्शन धारावाहिक महाभारत के निर्माण में उनका अवदान है। उनकी आत्मजा सिद्धहस्त साहित्यकार लावण्या शाह जी अन्तरंग स्मृतियों में हमें सहभागी बनाकर उस पूज्यात्मा से प्रेरणा पाने का दुर्लभ अवसर प्रदान कर रही हैं। लावण्या जी के प्रति  करते  हुए प्रस्तुत है यह प्रेरक संस्मरण - संजीव)

पौराणिक कथा ' महाभारत '  को नया अवतार देने की घड़ी आ पहुंची थी! दृश्य - श्रव्य माध्यम टेलीवीज़न के छोटे पर्दे पर जयगाथा - महाभारत को प्रस्तुत करने का कोंट्रेक सुप्रसिद्ध निर्माता श्री बलदेव राज चोपरा जी की निर्माण संस्था को दूरदर्शन द्वारा सौंपा गया था  और एक दिन हमारा घर और पण्डित नरेंद्र शर्मा को खोजते हुए, उनकी लम्बी सी इम्पोर्टेड गाडी, घर के दरवाज़े के बाहर आकर रुकी !  बी आर अंकल घर पर अतिथि बन कर आए और उनसे पापा भद्रता से मिले । दोनों ने अभिवादन किया। फ़िर, उन्होंने पापाजी से  कई बार और मुलाक़ात की और उन्हें , कार्य के लिए , अनुबंधित किया । उसके बाद , पापा जी की बी . आर . फिल्म्ज़ की ऑफिस में  रोजाना मीटिंग्स होने लगीं ।

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 महाभारत की यूनिट के साथ पं. नरेंद्र शर्मा दायें से ४ थे

पापा जी ने जैसे जैसे इस अति विशाल महाग्रंथ की कथा को स - विस्तार बतलाना शुरू किया तब यूनिट के लोगों का कहना है कि  ऐसा प्रतीत होने लगा मानो,  हम उसी कालखंड में पहुँच कर सारा दृश्य , पंडितजी की आंखों से घटता हुआ , देखने लगे ! 
पूज्य पापा जी पण्डित नरेंद्र शर्मा का ' महाभारत ' धारावाहिक में अभूतपूर्व योगदान रहा है। गीत , दोहे , परामर्श,  रूपरेखा आदि का श्रेय पंडित नरेंद्र शर्मा को ही दिया जाएगा। शीर्षक गीत ' अथ श्री महाभारत कथा ' पं. नरेंद्र शर्मा ने लिखा है। " समय " भी एक महत्त्वपूर्ण पात्र है महाभारत कथा में !  

उसके लिए अविस्मरणीय स्वर दिया है श्री हरीश भीमानी जी ने  ! जो महाभारत की  समस्त कथा का सूत्रधार है। कभी-कभी पापा जी, कथा में इतना डूब जाते कि उठकर खड़े हो जाते या टहलते हुए, कोई कथानक तमाम पेचीदगियों के साथ,  सविस्तार बतलाते। 
महाभारत कथा के पात्रों के मनोभाव, उनके मनोमंथन या स्वभाव की बारीकियों को भी बखूबी समझाते । तब, पापा की कही कोई बात व्यर्थ न चली जाए, इस कारण से, जैसे ही, पापाजी का बोलना आरम्भ होता, टेप रेकॉर्डर को ' ओन 'न कर लिया जाता ताकि, उनकी कही हर बात बारबार सुनी जा सके और सारा वार्तालाप  आराम से बार  सुना जा सके।   एक बार  पापा जी ने कहा: पितामह भीष्म , हमेशा श्वेत वस्त्र धारण किया करते थे " -

बी . आर . अंकल और राही साहब (रही मासूम रजा) जो पटकथा लिख रहे थे वे दोनों पूछने लगे, आपको  कैसे पता ? " तब , पापा जी ने, बतला दिया कि, अमुक पन्ने पर इस का जिक्र है.. प्रसंगानुसार उदाहरण देते हुए समझाया कि, जब पितामह, मन ही मन प्रसन्न होते हुए बालक अर्जुन से शिकायत करते हैं,वत्स , देखो तुम्हारे धूलभरे , वस्त्रों से , मेरे श्वे वस्र , धूलि धूसरित हो जाते ैं ' .. इतना सुनते ही सब हैरान रह गए कि इतनी बारीकी से भला कौन कथा पढता है ?

जनाब  राही मासूम रज़ा साहब ने इसी को , पटकथा लेखक के रूप में, कलमबद्ध भी किया और भीष्म पितामह के किरदार को सजीव करनेवाले मुकेश खन्ना को , श्वेत वस्त्रों में ही , शुरू से अंत तक, सुसज्जित किया गया। ये बातें भी, महाभारत के नये स्वरूप और नये अवतार के इतिहास का एक पन्ना बन गयीं। राही साहब ने कहा है कि ' महाभारत ' की भूलभूलैया में  मैं, पण्डित जी की ऊंगली थामे  थामे,  आगे  बढ़ता  गया !'। " 

पापा जी के सुझाव पर, पाँच पांडवों में युधिष्ठिर की भूमिका के लिए जो सबसे शांत दिखलाई देते थे ऐसे कलाकार को चुना गया था। हाँ, द्रौपदी के किरदार के लिए रूपा गांगुली का नाम मेरी अम्मा , सुशीला नरेंद्र शर्मा ने सुझाया था। बी. आर. अंकल ने उन्हें कलकत्ता से  स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलवा लिया और वे चयनित हुईं ।

महाभारत सीरीज़ को महाराज भरत के उत्तराधिकारी के चयन की दुविधा भरे प्रसंग से आरम्भ किया गया था । तब राजीव गांधी सरकार केन्द्र में थी । उनके कई चमचों ने वरिष्ठ अधिकारियों को भड़काने के लिए कहा, ये उत्तराधिकारीवाली बातइस में क्यों है ? इसे निकालें ' [ शायद नेहरू परिवार के लिए भी ये बात , लागू हो रही थी ] परन्तु , पापा जी और बी .आर . अंकल देहली गये, और पापा ने कहा ' अगर अब आप ऐसी बातों को निकालने को कहेंगें अब आप का ही बुरा दीखेगा ' और इस संवाद को , काटा नहीं गया ! ये भी यादें हैं... फ़िर , आया शांतनु राजा और मत्स्यगंधा का प्रणय बिम्ब ! यहाँ शूटिंग के बाद भी सीन , खाली-खाली सा  लग रहा था। पापा जी ने कहा,' ये गीत दे रहा हूँ , इसे इस खाली स्थान पर रखिये , अच्छा लगेगा यहाँ पर ' वो गीत था , दिन पर दिन बीत गये
चोपरा अंकल दूसरे दिन , एक चेक लेकर हमारे घर आये ! उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब पापाने यह कहते उसे लौटा दिया: चोपराजीआपने मुझे जब नु बधित किया है तब मेरा फ़र्ज़ बनता  है  कि  इस सीरीज़ की सफलता के लिये भरसक  प्रयास करूं - मैं गीतकार  भी हूँ आप ये जानते थे !  तः, इसे रहने दीजिये "  चोपरा अंकल ने बाद में , हमें कहा: 'बीसवीं  सदी में जीवित ऐसे संत - कवि को , मैं , हाथ में लौटाये हुए पैसों के चेक को थामे , बस, विस्मय से देखता ही रह गया ! " 

उन्होंने अपनी श्रृद्धान्जली अंग्रेज़ी में लिखी है जो पापा जी के असमय निधन के बाद छापी गयी पुस्तकशेष-अशेष " में सम्मिलित है । वे कहते हैं, ' ये कोई रीत नहीं..हमें छोड़ कर जाने की ' और उन्होंने पापाजी को एक  फ़रिश्ता - या एंजेल कहा है। आगे महाभारत कथा में ' श्री कृष्ण लीला ' का होना भी अनिवार्य है यह सुझाव भी पापा जी ने ही दिया था।  

फरवरी ११ की काल रात्रि को महाकाल मेरे पापा जी को कुरुक्षेत्र के रण  मैदान से सीधे कैलाश ले चले! पूज्य पापा जी ने विदर्भ राजकुमारी रुक्मिणी का प्रार्थना गीत लिख कर दिया था 

' विनती सुनिए नाथ हमारी ह्रदयेश्वर हरी ह्रदय विहारी मोर मुकुट पीताम्बर धारी ' और माता भवानी स्तुति ' जय जय जननी श्री गणेश की प्रतिभा परमेश्वर परेश की , सविनय विनती है प्रभु आयें , आयें अपनायें ले जायें , शुभद सुखद वेला आये माँ सर्व सुमंगल गृह प्रवेश की ' और माँ पार्वती का आशीर्वाद दोहा ' सुन ध्यान दे वरदान ले स्वर्ण वर्णा रुक्मिणी ' 

यह प्रसंग भारत की जनता टेलीविजन के पर्दे पर जब देख रही थी तब गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा  की आत्मा अनंत में ऊर्ध्वलोकों के प्रयाण पथ पर अग्रसर थी। हम परिवार के सभी, पापा जी के जाने से, टूट चुके थे । धारावाहिक का कार्य अथक परिश्रम और लगन के साथ पापा जी के बतलाये निर्देशानुसार और श्री बी . आर. चोपरा जी एवं उनके पुत्र श्री रवि भाई तथा अन्य सभी के सहयोग से यथावत जारी था।

सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता - निर्देशक श्री बी . आर . चोपरा  अंकल जी का दफ्तर , मेरी ससुराल के बंगलों  के सामने था । एक दिन की बात है कि एक  शाम  मेरे पति  दीपक जी एवं मैं, शाम को टहल रहे थे और सामने से संगीतकार श्री  राजकमल जी आते दिखलायी दिए !  ' महाभारत धारावाहिक का काम अपने चरम पर था और राजकमल जी उसे संगीत से संवार रहे थे। वे, हमें  गली के नुक्कड़ पर ही मिल गये। नमस्ते हुई और  बातें शुरू हुईं ! 

आदर और श्रद्धा विगलित स्वर से राजकमल जी कहने लगे ' पंडित जी के जाने से अपूरणीय क्षति हुई है। काम चल रहा है परन्तु उनके जैसे शब्द कौन सुझाएगा ? उनके हरेक अक्षर के साथ गीत स्वयं प्रकाशित होता था जिसे मैं स्वरबद्ध कर लेता था ! जैसे श्री कृष्ण और राधे रानी के महारास  का गीत का यह शब्द ' चतुर्दिक गूँज रही छम छम ' चतुर्दिक' शब्द ने रास और गोपियों के कान्हा और राधा के संग हुए नृत्य को चारों दिशाओं में प्रसारित कर दिया ऐसा लगता है। ' 

वे पापा जी को सजल नयनों से याद करने लगे तब दीपक जी ने उनसे कहा, ' अंकल , लावण्या ने भी कई  महाभारत से सम्बंधित दोहे,  लिखे हैं  ' उन्हें यह सुनकर आश्चर्य हुआ  और बोले,'  लिखे हैं और घर में रखे हैं, ये  क्यों भला !  ले आओ किसी  दिनहम भी सुनेंगें और अगर कहीं योग्य लगें तब उसे रख लेंगें  ' उनके आग्रह से, आश्वस्त हो कर बी . आर . अंकल के फोन पर आमंत्रण मिलने पर  जब मैं एक दोपहर उनके  दफ्तर में पहुँची तब आगामी ४ एपिसोड  बनकर तैयार हो रहे थे। बी . आर . अंकल के पैर छूकर राही मासूम रज़ा साहब के ठीक बगल वाली कुर्सी पर  मैं बैठ गयी। सच कहूँ उस वक्त मुझे मेरे  पापा जी  की बहुत याद आयी 

मैंने चारों एपिसोड के ' रशेस '  माने ' कच्चा रूप ' देखा। पार्श्व -संगीत, दोहे अभी तक जोड़े नही गये थे। सिर्फ़  रफ कोपी की प्रिंट ही तैयार थीं।
प्रसंग :

१ - सुभद्रा हरण- 
सबसे प्रथम दोहा  सुभद्रा हरण के प्रसंग पर लिखा था उसके शब्द हैं:
' बिगड़ी बात संवारना , सांवरिया की रीत ,
पार्थ सुभद्रा मिल गएहुई प्रणय की जीत

२ - द्रौपदी सुभद्रा मिलन- द्रौपदी और सुभद्रा का सर्व प्रथम बार इन्द्रप्रस्थ में द्रौपदी के अंत:पुर में मिलन:
गंगा यमुना सी मिलींधाराएं अनमोल , 
द्रवित हो उठीं द्रौपदी, सुनकर मीठे बोल "
  
३ - जरासंध - वध
''अभिमानी के द्वार पर, आए दींन दयाल,
स्वयं अहम् ने चुन लिया, अपने हाथों काल "

४  - द्रौपदी चीर हरण
सत असत सर्वत्र हैं , अबला सबला होय
नारायण पूरक बनेंपांचाली जब रोय मत रो बहना द्रौपदी , जीवन है संग्राम धीरज धर , मन शांत करसुधरेंबिगड़े काज "

५ - कीचक वध-
ये दोहा भी आपने धारावाहिक में सु
ना होगा जो श्री कृष्ण द्रौपदी को सांत्वना देते हुए पांडवों के वनवास के समय मिलने आते हैं तब कहते हैं:

चाहा छूना आग को, गयी कीचक की जान
द्रौपदी के अश्रू को, मिला आत्म -सम्मान ! " 
भीष्म पितामह को शिखंडी की आड़ लेकर अर्जुन द्वारा पितामह को बाणों से छलनी कर देने पर लिखा था ...

जानता हूँबाण है यह प्रिय र्जुन का,
नहीं शिखंडी चला सकता एक भी शर ,
बींध पाये कवच मेरा किसी भी क्षण
बहा दो संचित लहूतुम आज सारा ...' 

मैंने , और भी कुछ  दोहे लिखकर दिए जिन्हें , महाभारत टी. वी. धारावाहिक में शामिल किया गया । राजकमल भाई ने कहा ' मीटर में सही बैठ रहे हैं ' और तब गायक श्री महेन्द्र कपूर जी ने वहां आकर उन्हें गाया और वे सदा-सदा के लिए दर्शकों के हो गये ! 
 हाँ, मेरा नाम , शीर्षक में एकाध बार ही दिखलाई दिया था शायद बहुतों ने उसे  न ही देखा होगा । मुझे उस बात से कोई शिकायत नहीं! बल्कि  आत्मसंतोष है ! इस बात का कि मैं अपने दिवंगत पिता के कार्य में अपने श्रद्धा सुमन रूपी, ये दोहे, पूजा के रूप में, चढ़ा सकी ! ये एक पुत्री का पितृ - तर्पण था। 

पूज्य पापा जी की '  पंडित नरेंद्र शर्मा  सम्पूर्ण रचनावली '
मेरे लघु भ्राता भाई श्री परितोष नरेंद्र शर्मा ने शताब्दी वर्ष के पावन अवसर पर प्रकाशित की है। उसमे उनका समग्र लेखन समाहित है। 
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Compiled, Edited by Paritosh Narendra Sharma & Published by Paritosh Prakashan [A Wholly Owned Unit of ]Paritosh Holdings Pvt Ltd
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चलिए आज इतना ही , फ़िर मिलेंगें -  सब के जीवन में योगेश्वर श्री कृष्ण की कृपा , बरसती रहे यही मंगल कामना है।
***
​ प्रस्तुति: Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in


बुधवार, 17 जुलाई 2013

astonomy: nakshatron kee khoj -dr. madhusudan


विश्व को भारत की भेंट :नक्षत्रों की खोज और नामकरण
डॉ. मधुसूदन
*

 

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गुजराती विश्वकोश कहता है
, कि,”नक्षत्रों की अवधारणा भारत छोडकर किसी अन्य देश में नहीं थी। यह, अवधारणा हमारे पुरखों की अंतरिक्षी वैचारिक उडान की परिचायक है, नक्षत्रों का नामकरण भी पुरखों की कवि कल्पना का और सौंदर्य-दृष्टि का प्रमाण है।महीनों के नामकरण में, उनकी अंतरिक्ष-लक्ष्यी मानसिकता का आभास मिलता है।
(दो)अंतरिक्षी दृष्टि, या वैचारिक उडान?
तनिक अनुमान कीजिए; कि, समस्या क्या थी? आप क्या करते यदि उनकी जगह होते ?भारी अचरज है मुझे, कि पुरखों को, कहाँ, तो बोले इस धरती पर काल गणना के लिए, महीनों का नाम-करण करना था। तो उन्हों ने क्या किया? कोई सुझाव देता; कि, इस में कौनसी बडी समस्या थी ?रख देते ऐसे महीनों के नाम, किसी देवी देवता के नामपर, या किसी नेता के नामपर,जैसे आजकल गलियों के नाम दिए जाते हैं।
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पर जिस, विश्व-व्यापी अंतरिक्षी मानसिकता का परिचय हमारे पुरखों ने बार बार दिया, उस पर जब, सोचता हूँ, तो विभोर हो उठता हूँ। ऐसी सर्वग्राही विशाल दृष्टि किस दिव्य प्रेरणा से ऊर्जा प्राप्त करती होगी?
जब भोर, सबेरे जग ही रहा था, तो मस्तिष्क में ऐसे ही विचार मँडरा रहे थे। और जैसे जैसे सोचता था, पँखुडियाँ खुल रही थी, सौंदर्य की छटाएँ बिखेर रही थी, जैसे किसी फूल की सुरभी मँडराती है, फैलती है। हमारे पुरखों ने इस सूर्योदय के पूर्व के समय (दो दण्ड) को ब्राह्म-मुहूर्त क्यों कहा होगा, यह भी समझ में आ रहा था।
पर एक वैज्ञानिक समस्या को सुलझाने में हमारे पुरखों ने जो विशाल अंतरिक्षी उडान का परिचय दिया, उसे जानने पर मैं दंग रह गया। और फिर ऐसे, वैज्ञानिक विषय में भी कैसा काव्यमय शब्द गुञ्जन? यह करने की क्षमता केवल देववाणी संस्कृत में ही हो सकती है। आलेख को ध्यान से पढें, आप मुझसे सहमत होंगे, ऐसी आशा करता हूँ। ऐसे आलेख को क्या नाम दिया जाए?
(चार)  काव्यमय शब्द-गुंजन?
क्या नाम दूँ, इस आलेख को। शब्द गुंजन, पुरखों की ब्रह्माण्डीय चिंतन वृत्ति, उनकी आकाशी छल्लांग, या उनकी अंतरिक्षी दृष्टि? वास्तव में इस आलेख को, इसमें से कोई भी नाम दिया जा सकता है। पर मुझे शब्द गुञ्जन ही जचता है। चित्रा, विशाखा, फल्गुनी जैसे नाम देनेवालों की काव्यप्रतिभा के विषय में मुझे कोई संदेह नहीं है।
(पाँच) नक्षत्रों के काव्यमय मनोरंजक नाम
तनिक सारे नक्षत्रों के नाम भी यदि देख लें, तो आपको इसी बात की पुष्टि मिल जाएगी।कैसे कैसे काव्य मय नाम रखे गए हैं?
(१) अश्विनी,(२) भरणी, (३) कृत्तिका, (४) रोहिणी, (५) मृगशीर्ष (६) आर्द्रा, (७) पुनर्वसु (८) पुष्य, (९) अश्लेषा (१०) मघा, (११)पूर्वाफल्गुनी, (१२) उत्तराफल्गुनी, (१३)हस्त, (१४) चित्रा,(१५) स्वाति, (१६) विशाखा, (१७)अनुराधा, (१८) ज्येष्ठा,(१९) मूल, (२०) पूर्वाषाढा,(२१)उत्तराषाढा, (२२) श्रवण, (२३) घनिष्ठा, (२४) शततारा, (२५) पूर्वाभाद्रपदा,(२६) उत्तराभाद्रपदा, (२७) रेवती, और वास्तव में (२८) अभिजित नामक एक नक्षत्र और भी होता है।
इन नक्षत्रों के सुन्दर नामों का उपयोग भारतीय बाल बालिकाओं के नामकरण के लिए होना भी, इसी सच्चाई का प्रमाण ही है।
विशेषतः अश्विनी, कृत्तिका, रोहिणी, वसु, फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, घनिष्ठा, रेवती ऐसे बालाओं के नाम आपने सुने होंगे।और अश्विन, कार्तिक, श्रवण, अभिजित इत्यादि बालकों के नाम भी जानते होंगे।
ऐसे शुद्ध संस्कृत नक्षत्रों के नामों को और उनपर आधारित महीनों के नामों को पढता हूँ, तो, निम्नांकित द्रष्टा योगी अरविंद का कथन शत प्रतिशत सटीक लगता है।
(छः) योगी अरविंद :
संस्कृत अकेली ही, उज्ज्वलाति-उज्ज्वल है, पूर्णाति-पूर्ण है, आश्चर्यकारक है, पर्याप्त है, अनुपम है, साहित्यिक है, मानव का अद्भुत आविष्कार है; साथ साथ गौरवदायिनी है, माधुर्य से छलकती भाषा है, लचिली है, बलवती है, असंदिग्ध रचना क्षमता वाली है,पूर्ण गुंजन युक्त उच्चारण वाली है, और सूक्ष्म भाव व्यक्त करने की क्षमता रखती है।

क्या क्या विशेषणों का, प्रयोग, किया है महर्षि नें?माधुर्य से छलकती, और पूर्ण गुंजन युक्त? कह लेने दीजिए मुझे, कोई माने या न माने, पर मैं मानता हूँ, कि सारे विश्व में आज तक ऐसी कोई और भाषा मुझे नहीं मिली।
दंभी उदारता, ओढकर अपने मस्तिष्क को खुला छोडना नहीं चाहता कि संसार फिर उसमें कचरा कूडा फेंक कर दूषित कर दे। हमारे मस्तिष्कों को बहुत दूषित और भ्रमित करके चला गया है, अंग्रेज़।
मूढः पर प्रत्ययनेय बुद्धिः, सारे, भारत में भरे पडे हैं। एक ढूंढो हज़ार मिलेंगे।
(सात) नक्षत्रशब्द की व्युत्पत्ति।
नक्षत्रशब्द को तोड कर देखिए ।यह ”+”क्षत्र” = “नक्षत्रऐसा जुडा हुआ संयुक्त शब्द है। का अर्थ (नहीं) + क्षत्र का अर्थ “(नाश हो ऐसा) तो, नक्षत्र शब्द का, अर्थ हुआ जिसका नाश न होऐसा। वाह! वाह ! क्या बात है? अब सोचिए (१) हमारे पुरखों को पता था, कि, इन तारकपुंजों का जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है, नाश नहीं होता। वास्तव में यह विधान (Relative) सापेक्ष है, फिर भी सत्य है।
(आँठ)भगवान कृष्ण
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ।।१०-३५।(गीता)
भगवान कृष्ण -गीता में कहते हैं, कि, महीनों में मैं मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसन्त हूँ।
तो मार्गशीर्ष यह शब्द शुद्ध संस्कृत है। इसका संबंध कहीं लातिनी या ग्रीक से नहीं है। न तब लातिनी थी, न ग्रीक। कृष्ण जन्म ईसापूर्व कम से कम, ३२२८ में १८ जुलाई को ३२२८ खगोल गणित से प्रमाणित हुआ है। इन ग्रह-तारों की गति भी घडी की भाँति ही होती है। बार बार ग्रह उसी प्रकार की स्थिति पुनः पुनः आती रहती है। अंग्रेज़ी में इसे सायक्लिक कहते हैं, हिंदी में पुनरावर्ती या चक्रीय गति कहा जा सकता है।भगवद्गीता में इस शब्द का होना बतलाता है, कि महाभारत के पहले भी मार्गशीर्ष शब्द का प्रयोग रहा होगा। कहा जा सकता है, कि,महीनों के नाम उस के पहले भी, चलन में होने चाहिए।
अब मार्गशीर्ष शब्द मृग-शीर्ष से निकला हुआ है। मृग-शीर्ष का अर्थ होता है, मृग का शिर या हिरन का सिर।
तो मृग-शीर्ष: एक नक्षत्र है। पर वह, मृग की बडी आकृति का एक भाग है।
(नौ) मृग नक्षत्र
एक मृग (हिरन) नक्षत्र है, और इस नक्षत्र में कुल १३ ताराओं का पुंज है।मृग नक्षत्र में चार ताराओं का चतुष्कोण बनता है, जो मृग (हिरन)के चार पैर समझे जाते हैं। इन चार ताराओं के उत्तर में तीन धुंधले तारे हैं, जो (हिरन) मृग का सिर है। दक्षिण की ओर के दो पैरों के बीच, तीन ताराओं की पूंछ है।पेट में, व्याध(शिकारी) ने सरल रेखा में, मारा हुआ एक तीर है। इस तीर के पीछे प्रायः सीधी रेखामें एक चमकिला व्याध (शिकारी) का तारा है।इस नक्षत्र का सिर हिरन के सिर जैसा होने के कारण इसे मृग शीर्ष कहा गया।
(दस)मार्गशीर्ष
पूनम का चंद्र इस नक्षत्र से युक्त होने के कारण उस महीने का नाम मार्गशीर्ष हुआ।
बालकों को चित्र बनाते आपने देखा होगा। वें क्रमानुसार बिंदुओं को रेखा ओं से, जोड जोडकर देखते देखते चित्र उभर आता है, यह आपने अवश्य देखा होगा। हाथी, घोडा, हिरन, इत्यादि चित्र बालक ऐसे क्रमानुसार बिंदुओं को जोडकर बना लेते हैं। कुछ उसी प्रकार से तारा बिन्दुओं को जोडकर जो आकृतियाँ बनती हैं, उनके नामसे नक्षत्रों की पहचान होती है।
(ग्यारह) महीनों के नाम
पूनम की रात को चंद्र जिस नक्षत्र से युक्त हो, उस नक्षत्र के नाम से उस महीने का नाम रखा गया है।
चित्रा में चंद्र हो तो चैत्र, विशाखामें चंद्र हो तो वैशाख, ज्येष्ठा में चंद्र हो तो ज्येष्ठ, पूर्वाषाढा में चंद्र हो तो अषाढ, श्रवण में चंद्र हो तो श्रावण, पूर्वाभाद्रपद में चंद्र हो तो भाद्रपद, अश्विनी में चंद्र हो तो अश्विन ऐसे नाम दिए गए। कृत्तिका में चंद्र हो तो कार्तिक, मृगशीर्ष में चंद्र हो तो मार्गशीर्ष, पुष्य में चंद्र हो तो पौष,मघा में चंद्र हो तो माघ, पूर्वा फाल्गुनी में चंद्र हो तो फाल्गुन ऐसे बारह महीनों के नाम रखे गए हैं।
प्रत्येक माह में विशेष नक्षत्र संध्या के समय ऊगते हैं। और भोर में अस्त हुआ करते हैं।
(बारह) महीनों के नक्षत्र और आकृतियाँ:
चित्रा मोती के समान, विशाखा तोरण के समान, ज्येष्ठा -कुंडल के समान, पूर्वाषाढा – -हाथी के दाँत के समान, श्रवण वामन के ३ चरण के समान, पूर्वाभाद्रपद -मंच के समान, अश्वनी अश्वमुख के समान, कृत्तिका छुरे के समान, मृगशिराहिरन सिर , पुष्य वन के समान , मघा भवन, पूर्व-फाल्गुनी -चारपाई के समान 
—-ऐसे पुरखों का ऋण हम परम्परा टिका कर ही चुका सकते हैं।

http://www.pravakta.com/chitra-vishakha-falguni-words-hum-stars

nari lata- woman shaped flower

विचित्र किन्तु सत्य:
नारी लता पौधे पर नारी आकारी पुष्प
दीप्ति गुप्ता
*
अविश्वसनीय  किन्तु  सच
भारत में हिमालय, श्री लंका तथा थाईलैंड में २० वर्ष के अन्तराल पर खिलनेवाला नारीलता का दुर्लभ पुष्प किसी  नारी के आकार का होता है। विश्वास न हो तो देखिए यह चित्र:


नारीलता फूल पौधा भारत में हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है. और वे 20 साल के अंतराल पर खिलते हैं। यह फूल एक औरत के आकार का होता है यह एक दुर्लभ फूल है...आश्चर्यजनक..!! प्रकृति कुछ भी कहिये ग़ज़ब गज़ब के रंग दिखाती है जरा इस अनोखे फूल को देखिये इसका
 अकार देखिये
 इसकी बनावट को देखिये शायद आपको पेड़ो पर यह लटकी हुई गुडिया सी नज़र आ रह...ी किसी इंसान की इंसानी हरकत लगे लेकिन है ऐसा नहीं यह हिमालय श्रीलंका और थाईलेंड में एक पेड में लगने वाला फूल है जिसे उपरी हिमालय में ...नारीलता फूल .... 





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samyik charcha chunaav sudhar aur ummeeswar -rajiv thepra

                                         

सामयिक चर्चा:
चुनाव  सुधार और उम्मीदवार
राजीव ठेपरा *
अभी दो दिनों पूर्व ही भारत में चुनाव सुधार के लिए भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आया है कि किसी जन-प्रतिनिधि को दो साल की सजा होते ही उसकी सदस्यता उसी दिन से रद्द कर दी जाए,यह आदेश स्वागत-योग्य है साथ ही चुनाव सुधार की दिशा में वर्षों से मेरे मन में भी एक विचार आता रहा है, मैं चाहता हूँ कि यह विचार मैं इस मंच पर रखूं ताकि इस पर विमर्श हो सके और मैं चाहूँगा कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस विचार की कमी-बेशी पर अपनी राय अवश्य प्रकट करें .
 
          जब से होश संभाला है तब से देख रहा हूँ कि भारत में होनेवाले चुनावों में भारत की आधी से ज्यादा आबादी हिस्सा ही नहीं लेती और इसमें रोचक किन्तु चिंतनीय पक्ष यह है कि चुनाव न करने वाले लोग हमारे जैसे व्यवस्था पर सदा चीखते-चिल्लाने वाले लोग हैं, जो राग तो हमेशा कोढ़ का अलापते हैं मगर ईलाज वाले दिन (इस सन्दर्भ में चुनाव वाले दिन) अस्पताल जाते ही नहीं और फिर परिणाम आते ही दुबारा चीखने-चिल्लाने लग जाते हैं कि हाय इलाज नहीं हुआ.... इलाज नहीं हुआ या फिर गलत इलाज हो गया !!  

इसमें सुधार हेतु मेरे मन में यह विचार हमेशा आता रहा है कि अब जब तकनीक में हम इतना आगे आ चुके हैं और तकनीक का इतना आनंद भी लेते हैं कि करोड़ों लोग ऐसे भी हैं जो भले ही भूखे मरते हों मगर मोबाइल का उपयोग अवश्य करते हैं !
 
            तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हर नागरिक चुनाव-पूर्व मतदाता सूची में अपना एक फिक्स नंबर जुड़वा ले, यह एक नंबर परिवार के सभी सदयों के लिए भी हो सकता है या फिर हर-एक सदस्य अलग-अलग नंबर भी रजिस्टर्ड करवा सकता है और तब उस व्यक्ति या परिवार का वही नंबर एक तरह का यूनिक आई डी होगा और चुनाव होने पर उसी नंबर से आने वाले मैसेज को सही माना जायेगा,इस प्रक्रिया में चुनाव आयोग रजिस्टर्ड नंबरों पर क्षेत्र-विशेष की भाषानुसार चुनने के लिए दलों का विकल्प भेजेगा,जिसमें से मनचाहे दल को हम चुन कर मैसेज का रिप्लाई दे देंगे और चूँकि यह रिप्लाई हमारे रजिस्टर्ड नंबर से होगी तो इसमें घपले की कोई गुंजाईश नहीं दिखाई देती अगर एक परिवार में कई लोगों का रजिस्टर्ड नंबर एक ही है तो जितने लोगों का वह नंबर घोषित है उतनी बार रिप्लाई मान्य मानी जायेगी !
 
            अब रही बात करोड़ों अनपढ़ लोगों के इस प्रक्रिया में हिस्सा ना ले पाने की,तो इसके लिए परंपरागत चुनाव करवाए जा सकते हैं इससे होगा यह कि एक ही दिन में एक क्षेत्र में होने वाले चुनाव के कारण जो आधे लोग समय की कमी और लम्बी लाईनों की वजह से मतदान करने से छूट जाते हैं वो घर बैठे ही इस चुनाव-प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे और इस तरह एक पढ़े-लिखे प्रमुख वर्ग के करोड़ों लोगों की (समूचे लोगों की)सहभागिता इस लोकतंत्र में हो जायेगी तथा परंपरागत चुनाव में भी तब बाकी के बचे सारे लोग मतदान कर पाएंगे ! 

           जिन लोगों ने मोबाइल द्वारा वोट कर दिया होगा वो परंपरागत चुनाव में स्वतः रद्द घोषित हो जायेंगे,इस प्रकार हम देखेंगे कि चुनाव का प्रतिशत नब्बे-फीसदी से ऊपर भी जा सकता है और तब सही मायनों में हमारे जन-प्रतिनिधि हमारे जन-प्रतिनिधि माने जा सकते हैं और तो और इस प्रकार के चुनाव में हिस्सा न लेने पर मतदाता को सो कॉल्ड का नोटिस का मैसेग भी भेज जा सकता है कि आपने इस मामूली सी प्रक्रिया में भी हिस्सा नहीं लिया है तो क्यों ना आपकी भारत की नागरिकता छीन ली जाए !!चुनाव की इस प्रक्रिया में वो लाखों-लाख लोग भी शामिल हो सकते हैं जो सफ़र में हों और अपने क्षेत्र से बाहर हों साथ ही इससे भी महत्वपूर्ण सुधार मेरे मन में है कि पार्टियों की संख्या सीमित करना और चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों को शामिल नहीं करना क्योंकि इसके चलते सैकड़ों उम्मीदवारों के कारण वोट का एक बहुत बड़ा प्रतिशत व्यर्थ सिद्ध हो जाता है और इसी के कारण मात्र दस फीसदी वोट पाकर जितने वाले हमारे जन-प्रतिनिधि मान लिए जाते हैं।
 
क्या यह राय आप सबों को उचित जान पड़ती है ??हाँ या नहीं अलग बात है मगर अगर भारत को सच में ही हम आगे बढ़ता देखना चाहते हैं तो कुछेक जलते सवालों पर हमें अपनी सहभागिता दर्शानी ही होगी और अपने देश की एक दिशा तय करनी होगी मगर चलते-चलते एक आखिरी बात यह है कि नेताओं-अफसरों की जवाबदेही तय करने वाले हम सब कर्तव्यहीन और करप्ट भारत के हित के लिए अपनी कौन-सी जवाबदेही तय करने जा रहे हैं या अपनी किस किस्म की सहभागिता हमने भारत-निर्माण के लिए तय की है !!??
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dharohar: gazal - dushyant kumar


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धरोहर :
गज़ल
दुष्यंत कुमार
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दुष्यंत कुमार त्यागी (१९३३-१९७५) एक हिंदी कवि और ग़ज़लकार थे । इन्होंने 'एक कंठ विषपायी', 'सूर्य का स्वागत', 'आवाज़ों के घेरे', 'जलते हुए वन का बसंत', 'छोटे-छोटे सवाल' और दूसरी गद्य तथा कविता की किताबों का सृजन किया। दुष्यंत कुमार उत्तर प्रदेश के बिजनौर के रहने वाले थे । जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील (तरक्कीपसंद) शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था । हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था । उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे । इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की । निदा फ़ाज़ली उनके बारे में लिखते हैं
"दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराज़गी से सजी बनी है. यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के ख़िलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है "
 
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारों,
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो।
दर्दे दिल वक्त को पैगाम भी पहुँचाएगा,
इस कबूतर को जरा प्यार से पालो यारो।
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे,
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो।
आज सीवन को उधेड़ों तो जरा देखेंगे,
आज संदूक से वे खत तो निकालो यारो।
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया,
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो।
कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की,
तुमने कह दी है तो कहने की सजा लो यारो।
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 दुष्यंत कुमार (त्यागी)
प्रस्तुति : दीप्ति