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सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

दोहा सलिला: सूत्र सफलता का सरल संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

सूत्र सफलता का सरल

संजीव 'सलिल'
*
सूत्र सफलता का सरल, रखें हमेशा ध्यान।
तत्ल-मेल सबसे रखें, छू लें नील वितान।।
*
सही समन्वय से बने, समरस जीवन राह।
सुख-दुःख मिलकर बाँट लें, खुशियाँ मिलें अथाह।।
*
रहे समायोजन तभी, महके जीवन-बाग़।
आपस में सहयोग से, बढ़े स्नेह-अनुराग।।
*
विघटन ईर्ष्या द्वेष का, रखें हलाहल दूर।
वैमनस्यता से मिटे, सुख-समृद्धि का नूर।।
*
धूप-छाँव से ही बने, जग-जीवन संपूर्ण।
सुख-दुःख सह सम भाव से,जीवन हो परिपूर्ण।।
*
रिश्ते-नाते जोड़ते, दिल- तोड़े भ्रम-भ्रान्ति।
जड़ मकान जीवंत घर, बन देता सुख-शांति।।
*
सहनशीलता से बने, हर मुश्किल आसान।
धैर्य क्षमा सहयोग से, आदम हो इन्सान।।
*
गिर-उठ, आगे बढ़ 'सलिल', हँसकर सह हर चोट।
जो औरों को चोट दे, उसमें भारी खोट।। 
*
भूल न खुद की भूलना, होगा तभी सुधार।
भूल और की भूलना, तभी बढ़ेगा प्यार।।
*
दुःख देकर खुद भी दुखी, मत हो कर तकरार।
सुख देकर होते सुखी, सज्जन भले उदार।।
*
तन-मन में हो मेल तो, बढ़ती है बल-बुद्धि।
दिल-दिमाग के मेल को, खो देती दुर्बुद्धि।।
*
दुनिया के हालात को, जो सकता है मोड़।
मंजिल दूर न जा सके, उसे अकेला छोड़।।
*
तर्क-भावना में रहे, जब आपस में मेल।
हर मुश्किल आसान हो, बने ज़िन्दगी खेल।।
*
क्या लाया, क्या ले गया, कोई अपने साथ।
रो आया, हँस जा 'सलिल', उन्नत रखकर माथ।।
*
कर सबका सम्मान तू, पा सबसे सम्मान।
गुण औरों के सराहे, 'सलिल' सदा गुणवान।।
*
हर बाधा स्वीकार कर, करें पूर्व अनुमान।
सुनियोजित कोशिश करें, लक्ष्य सकें संधान।।
*
सौदेबाजी से नहीं, निभ पाते सम्बन्ध।
स्वार्थों के अनुबंध ही, बन जाते प्रतिबन्ध।।
*
कभी किसी इन्सान को, मत मने सामान।
जो शोषक शोषण करे, वह नर भी हैवान।।
*
रखिए श्रम-विश्राम में 'सलिल' उचित अनुपात।
भूख बिना मत कीजिए, भोजन- हो उत्पात।।
*
सही-गलत का आकलन, खुद करते मतिमान।
सबके लिए विकास-पथ, दिखलाते विद्वान।।
*
करिए तर्क-वितर्क पर, सुलझा लें मतभेद।
तज कुतर्क, पनपे नहीं, आपस में  मनभेद।।
*
नियम प्रकृति के पालिए, करें शिष्ट व्यवहार।
सरल तरल निर्मल रखें, दृष्टि- न मानें हार।।
*
करे भूल स्वीकार जो, वह ही सके सुधार।
सत्यवान शुचि शांत हो, रखे शुद्ध आचार।।
*
त्यागी-परमार्थी बनें, करें आत्म-पहचान।
तुझमें जो प्रभु बसे हैं, सबमें उनको जान।।
*
जप-तप, पूजन-प्रार्थना, दया-दान शुभ कर्म।
बिन फल-आशा कर 'सलिल', सत्य-साधना धर्म।।
******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada
0761 2411131 / 094251 83244

humour: Subject: A 2 Letter Word -vijay kaushal

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Subject: A 2 Letter Word

 vijay kaushal

 What is the only word in the English language that could be a noun, verb, adj, adv, prep?

 
 
UP
Read until the end... you'll laugh.

This two-letter word in English has more meanings than any other two-letter word, and that word is 
"UP."  It is listed in the dictionary as an [adv], [prep], [adj], [n] or [v].

It's easy to understand 
UP, meaning toward the sky or at the top of the list, but when we awaken in the morning, why do we wake UP?

At a meeting, why does a topic come 
UP?  Why do we speak UP, and why are the officers UP for election and why is it UP to the secretary to write UP a report?  We call UP our friends, brighten UP a room, polish UP the silver, warm UP the leftovers and clean UP the kitchen.  We lock UP the house and fix UP the old car.

At other times, this little word has real special meaning.  People stir 
UP trouble, line UP for tickets, work UP an appetite, and think UP excuses.

To be dressed is one thing but to be dressed 
UP is special. Not to forget the frequently heard you Fu- k-d UP!
And this UP is confusing:  A drain must be opened UP because it is stopped UP.

We open 
UP a store in the morning but we close it UP at night.  We seem to be pretty mixed UP about UP!

To be knowledgeable about the proper uses of  
UP, look UP the word UP in the dictionary.  In a desk-sized dictionary, it takes UP almost 1/4 of the page and can add UP to about thirty definitions.

If you are UP to it, you might try building UP a list of the many ways UP is used.  It will take UP a l ot of your time, but if you don't give UP, you may wind 
UP with a hundred or more.

When it threatens to rain, we say it is clouding UP.  When the sun comes out, we say it is clearing UP.  When it rains, it soaks UP the earth.  When it does not rain for awhile, things dry UP.  One could go on and on, but I'll wrap it 
UP, for now. . . my time is UP!

Oh. . . one more thing:  What is the first thing you do in the morning and the last thing you do at night?

U

P
!

Did that one crack you 
UP?

Don't screw UP.  Send this on to everyone you look UP in your address book. . . or not. . . it's UP to you.  


 
 
 
 
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रविवार, 14 अक्टूबर 2012

चित्र पर कविता: १२ दोहा गीत :.प्रकृति संजीव 'सलिल'

चित्र पर कविता: १२  
प्रकृति 

इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ अब तक प्रकाशित चित्रों में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य के विविध आयामों को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं हैं. संभवतः हममें से कोई भी किसी चित्र के उतने पहलुओं पर नहीं लिख पाता जितने पहलुओं पर हमने रचनाएँ पढ़ीं. 

चित्र और कविता की कड़ी १. संवाद, २. स्वल्पाहार,
३. दिल-दौलत, ४. प्रकृति, ५ ममता,  ६.  पद-चिन्ह, ७. जागरण, ८. परिश्रम, ९. स्मरण, १०. उमंग तथा ११ सद्भाव  के पश्चात् प्रस्तुत है चित्र १२. प्रकृति. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.

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दोहा गीत :.प्रकृति
संजीव 'सलिल'
[छंद: दोहा, द्विपदी मात्रिक छंद, पद:२, चरण:४( २ सम-२ विषम), कलाएं: ४८(सम चरण में ११-११, विषम चरण में १३-१३)]
सघन तिमिर की कोख से, प्रगटे सदा उजास.
पौ फटते विहँसे उषा, दे सौगात हुलास..
*
रक्त-पीत नीलाभ नभ, किरण सुनहरी आभ.
धरती की दहलीज़ पर, लिखतीं चुप शुभ-लाभ..

पवन सुनाता जागरण-गीत, बिखेरे हास.
गिरि शिखरों ने विनत हो, कहा: न झेलो त्रास..
पौ फटते विहँसे उषा, दे सौगात हुलास..
*
हरियाली की क्रोड़ में, पंछी बैठे मौन.
स्वागत करते पर्ण पर, नहीं पूछते कौन?

सब समान हैं आम हो, या आगंतुक खास.
दूरी जिनके दिलों में, पलती- रहें उदास.
पौ फटते विहँसे उषा, दे सौगात हुलास..
*
कलकल कलरव कर रही, रह किलकिल से दूर.
'सलिल'-धार में देख निज, चेहरा लगा सिन्दूर..

प्राची ने निज भाल पर, रवि टाँका ले आस.
जग-जीवन को जगाकर, दे सौगात हुलास..
*******

चित्र पर कविता: हाइकु

सद्भाव 

इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ अब तक प्रकाशित चित्रों में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य के विविध आयामों को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं हैं. संभवतः हममें से कोई भी किसी चित्र के उतने पहलुओं पर नहीं लिख पाता जितने पहलुओं पर हमने रचनाएँ पढ़ीं. 

चित्र और कविता की कड़ी १. संवाद, २. स्वल्पाहार,
३. दिल-दौलत, ४. प्रकृति, ५ ममता,  ६.  पद-चिन्ह, ७. जागरण, ८. परिश्रम, ९. स्मरण तथा १०. उमंग के पश्चात् प्रस्तुत है चित्र ११. सद्भाव. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.


हाइकु 

संजीव 'सलिल'
*
कौन हो तुम?
पीठ फेर हो खड़े 
मौन हो तुम।
*
बड़े हो तुम?
क्यों न करते बात 
अड़े हो तुम। 
*
हम हैं छोटे
दूरी करते दूर 
तुम हो खोटे। 
*
कैसे मानव?
मिटाया न अंतर 
हो अमानव।
*
मैं और तुम 
हमेशा मुस्कुरायें 
हाथ मिलायें। 
*
गिला  भुलायें 
गले से मिल गले 
खिलखिलायें।
*
हम हैं अच्छे 
दिल से मिला दिल 
मन के सच्चे।
*******
 
 
 

चित्र पर कविता: उमंग हाइकु: संजीव 'सलिल'

चित्र पर कविता: १०
उमंग

इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ अब तक प्रकाशित चित्रों में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य के विविध आयामों को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं हैं. संभवतः हममें से कोई भी किसी चित्र के उतने पहलुओं पर नहीं लिख पाता जितने पहलुओं पर हमने रचनाएँ पढ़ीं. 

चित्र और कविता की कड़ी १. संवाद, २. स्वल्पाहार,
३. दिल-दौलत, ४. प्रकृति, ५ ममता,  ६.  पद-चिन्ह, ७. जागरण, ८. परिश्रम तथा ९. स्मरण के पश्चात् प्रस्तुत है चित्र १० . उमंग. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.



हाइकु:
संजीव 'सलिल'
*
उमंग छाई
तन-मन विहँसा
विधि मुस्काई.
*
बजे मृदंग
दिशाएँ झूम उठीं
बरसे रंग.
*
तरंगित है
तन-मन जीवन
उमंगित है.
*
बिखेरें रंग
हँसे धरा-गगन
गाए अभंग.
*

कविता: कवि का घर सुशील कुमार

कविता:
कवि का घर
सुशील कुमार
*

 









( उन सच्चे कवियों को श्रद्धांजलिस्वरूप जिन्होंने फटेहाली में अपनी जिंदगी गुज़ार दी | )


किसी कवि का घर रहा होगा वह..  
और घरों से जुदा और निराला
चिटियों से लेकर चिरईयों तक उन्मुक्त वास करते थे वहाँ  
चूहों से गिलहरियों तक को हुड़दंग मचाने की छूट थी  
बेशक उस घर में सुविधाओं के ज्यादा सामान नहीं थे  
ज्यादा दुनियावी आवाज़ें और हब-गब भी नहीं होती थीं   
पर वहाँ प्यार, फूल और आदमीयत ज्यादा महकते थे
आत्माएँ ज्यादा दीप्त दिखती थीं  
साँसें ज्यादा ऊर्जस्वित   
धरती की सम्पूर्ण संवेदनाओं के साथ
प्यार, फूल और आदमीयत की गंध के साथ
उस घर में अपनी पूरी जिजीविषा से
जीता था अकेला कवि-मन बेपरवाह 
चिटियों की भाषा से परिंदों की बोलियाँ तक पढ़ता हुआ  
बाक़ी दुनिया को एक चलचित्र की तरह देखता हुआ  
तब कहीं जाकर भाषा
एक-एक शब्द बनकर आती थी उस कवि के पास
और उसकी लेखनी में विन्यस्त हो जाती थी  
अपनी प्रखरता की लपटों से दूर, स्वस्फूर्त हो
कवि फिर उनसे रचता था एक नई कविता ..|
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मुक्तिका: बेवफा से ... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका: 

बेवफा से ... 

संजीव 'सलिल'

*
बेवफा से दिल लगाकर, बावफा गाफिल हुआ।
अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।

तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।
हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?

कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।
फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।

हँसे खिलखिल यही सपना साथ मिल देखा मगर-
ख्वाब था दिलकश,  हुई ताबीर तो किलकिल हुआ।।

'सलिल' ने माना था भँवरों को  कँवल का मीत पर-
संगदिल भँवरों के संग मंझधार भी साहिल हुआ।।

*****

In reply to all Sardar Jokes

In reply to all Sardar Jokes

It's true
 
DR.G.M.SINGH

We all love Sardar jokes. But do you know that Sikhs are one of the hardest working prosperous and diversified communities in the world.

My friend told me about the following incident which I wish to share with you. It has had a deep impact on my thinking.

During last vacation, his few friends came to Delhi. They rented a taxi for local sight-seeing. The driver was an old Sardar and boys being boys, these pals began cracking Sardarji jokes, just to tease the old man.

But to their surprise, the fellow remained unperturbed.

At the end of the sight-seeing, they paid the cab hire-charges. The Sardar returned the change, but he gave each one of them one rupee extra and said,

''Son, since morning you have been telling Sardarji jokes. I listened to them all and let me tell you, some of them were in bad taste. Still, I don't mind coz I know that you are young blood and are yet to see the world.. But I have one request. I am giving you one rupee each. Give it to the first Sardar beggar that you come across in this or any other city.'

My friend continued,* ' That one rupee coin is still with me. I couldn't find a single Sardar begging anywhere.'

MORAL:

The secret behind their universal success, is their willingness to do any job with utmost dedication and pride. A Sardar will drive a truck or set up a roadside garage or a dhaba, put a fruit juice stall, take up small time carpentry, ... but he will never beg on the streets.

DR.G.M.SINGH GENERAL MEDICAL SERVICE 3/5 WEST PATEL NAGAR NEW DELHI-110008 INDIA 01142488406;9891635088

शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

THE 99 CLUB? deepti gupta

     Once upon a time......there lived a King who.....despite his luxurious lifestyle.....was neither happy nor content. One day, the King came upon a servant who was singing happily while he worked. This fascinated the King; why was he......the Supreme Ruler of the Land..........unhappy and gloomy, while a lowly servant had so much joy.

 The King asked the servant, How come you are so
happy?"

 The man replied, “Your Majesty, I am nothing but a servant, but my family and I don't need too much........ ....just a roof over our heads and warm food to fill our tummies."

 The king was not satisfied with that reply. Later in the day, he
sought the advice of his most trusted advisor. After hearing the King's woes and the servant's story, the advisor said, Your Majesty, I believe that the servant has not been made part of
The 99 Club."

 The 99 Club? And what exactly is that?" the King
inquired.

 The advisor replied, "Your Majesty, to truly know what The 99
Club is...........place 99 Gold coins in a bag and leave it at this servant's doorstep."

 When the servant saw the bag.......he took it into his house.
When he opened the bag, he let out a great shout of joy....... wow....so many gold coins!

 He began to count them. After several counts.....he was at last
convinced that there were 99 coins. He wondered, "What could've happened to that last gold coin? Surely, no one would leave 99 coins! "

 He looked everywhere he could..... But that last coin was elusive. Finally, exhausted, he decided that he was going to have to work
harder than ever to earn that gold coin and complete his collection.

 From that day....the servant's life changed. He was overworked, horribly grumpy, and castigated his family for not helping him make that 100th gold coin. He felt so unhappy all the time.... he
 stopped singing while he worked.

 Witnessing this drastic transformation. ...the King was puzzled. When he sought his adviser's help,
 the advisor said, “Your Majesty, the servant has now officially joined The 99 Club."

 He continued, " The 99 Club is a name given to those people  who have enough to be happy but are never contented... ....because they're  always yearning and striving for that extra 1.......telling
themselves: "Let  me get that one final thing and then I will be happy for life ."

 We too can be happy with very little in our lives....... but the minute we're given something bigger and better...... we need to watch out for our monkey minds ........which may want even more!

 We lose our sleep........our happiness... ...we hurt the people around us.......all these as a price
for our growing needs and desires.

धरोहर : सखि ,वसन्त आया | स्व.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

धरोहर :

इस स्तम्भ में विश्व की किसी भी भाषा की श्रेष्ठ मूल रचना देवनागरी लिपि में, हिंदी अनुवाद, रचनाकार का परिचय व चित्र, रचना की श्रेष्ठता का आधार जिस कारण पसंद है. संभव हो तो रचनाकार की जन्म-निधन तिथियाँ व कृति सूची दीजिए. धरोहर में सुमित्रा नंदन पंत, मैथिलीशरण गुप्त, नागार्जुन, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, महीयसी महादेवी वर्मा, स्व. धर्मवीर भारती जी, उर्दू-कवि ग़ालिब, कन्हैयालाल नंदन तथा मराठी-कविवर कुसुमाग्रज के पश्चात् अब आनंद लें कवींद्र रवींद्रनाथ ठाकुर की रचना का।

. स्व.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 


*
प्रतिनिधि रचना:
वसन्त पंचमी
               
महाप्राण निराला
सखि ,वसन्त आया |
भरा हर्ष वन के मन ,
नवोत्कर्ष छाया |

किसलय -वसना नव -वय -लतिका 
मिली मधुर प्रिय -उर -तरु -पतिका ,
मधुप -वृन्द बन्दी-
पिक -स्वर नभ सरसाया |

लता -मुकुल -हार -गन्ध -भार भर ,
बही पवन बन्द मन्द मन्दतर ,
जागी नयनों में वन -
यौवन की माया |

आवृत्त सरसी -उर सरसिज उठे ,
केशर के केश कली के छूटे ,
स्वर्ण -शस्य -अंचल 
पृथ्वी का लहराया |
प्रस्तुति:शिशिर 

*

गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

cartoon: विनय कुल

व्यंग्य चित्र:

GOD'S CAKE

सामयिक चर्चा: राजभाषा हिंदी राकेश कुमार आर्य

:सामयिक चर्चा:
हिंदी पर केन्द्रीय कुछ विचार प्रस्तुत हैं जिनमें विविध बिंदु उठाये गए हैं। इन तथा इनके अतिरिक्त अन्य बिन्दुओं पर आपकी राय की प्रतीक्षा है।
: राजभाषा हिंदी :
राकेश कुमार आर्य
बी.ए.एल.एल.बी., दादरी, ऊ.प्र.निवासी। पेशे से अधिवक्ता, स्वतंत्र लेखन,बीस से अधिक पुस्तकों का लेखन। 'उगता भारत' साप्ताहिक अखबार के संपादक; 'मानवाधिकार दर्पण' पत्रिका के कार्यकारी संपादक व 'अखिल हिन्दू सभा वार्ता' के सह संपादक। अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार।
*
आज हम स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हैं। हमारी राज-भाषा हिंदी हैहिंदीभाषी विश्व में सबसे अधिक हैं। अंग्रेजी को ब्रिटेन के लगभग दो करोड़ लोग मातृभाषा के रूप में प्रयोग करते हैं, जबकि हिंदी को भारत में उत्तरप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे प्रांतों में लगभग साठ- पैंसठ करोड़ लोग अपनी मातृभाषा के रूप में प्रयोग करते हैं। हिंदी संपर्क भाषा के रूप में पूरे देश में तथा  देश से बाहर श्रीलंका, नेपाल, बीर्मा, भूटान, बांगलादेश, पाकिस्तान, मारीशस जैसे सुदूरस्थ देशों में भी बोली-समझी जाती है। विश्व की सर्वाधिक समृद्घ भाषा और बोली-समझी जानेवाली भाषा हिंदी है लेकिन इस हिंदी को भारत सरकार नौकरों की भाषा बताती हैं। दोष सरकार का नही अपितु अफसरों की गुलाम मानसिकता का है।

पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश में हिंदी के स्थान हिंदुस्तानी नाम की एक नई भाषा (जिसमें उर्दू के अधिकांश तथा कुछ अन्य भाषाओँ के शब्द हों) को संपर्क भाषा के रूप में स्थापित करने का अनुचित प्रयास किया। वे भूल गये कि हर भाषा की तरह हिंदी का अलग व्याकरण है जबकि उर्दू या हिंदुस्तानी का कोई व्याकरण नही है। इसलिए शब्दों की उत्पत्ति को लेकर उर्दू या हिंदुस्तानी बगलें झांकती हैं, जबकि हिंदी अपने प्रत्येक शब्द की उत्पत्ति के विषय में अब तो सहज रूप से समझा सकती है, कि इसकी उत्पत्ति का आधार क्या है?

कांग्रेस प्रारंभ से ही राजनीतिक अधिकारों के साथ भाषा को भी सांम्प्रदायिक रूप से बांटने के पक्ष में रही।  काँग्रेस के 25वें हिंदी साहित्य सम्मेलन सभापति पद से राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी ने कहा था-हिंदी में जितने फारसी और अरबी के शब्दों का समावेश हो सकेगा उतनी ही वह व्यापक और प्रौढ़ भाषा हो सकेगी। इंदौर सम्मेलन में गांधी जी और आगे बढ़ गये जब उन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं को एक ही मान लिया था। इसीलिए भारत में साम्प्रदायिक और भाषाई आधार पर प्रांतों का विभाजन / निर्माण हुआ
प्रारंभ में कांग्रेसी कथित हिंदुस्तानी में उर्दू के तैतीस प्रतिशत शब्द डालना चाहते थे, मुसलमान पचास प्रतिशत उर्दू शब्द चाह रहे थे जबकि मुसलिम लीग के नेता जिन्ना इतने से भी संतुष्ट नही थे। कांग्रेसी  नेता मौलाना आजाद का कहना था कि उर्दू का ही दूसरा नाम हिंदुस्तानी है जिसमें कम से कम सत्तर प्रतिशत शब्द उर्दू के हैं। पंजाब के प्रधानमंत्री सरब सिकंदर हयात खान की मांग थी कि हिंदुस्तान की राजभाषा उर्दू ही हो सकती है, हिंदुस्तानी नहीं।

स्वतंत्रता के बाद हिंदी के बारे में हमारे देश की सरकारों का वही दृष्टिकोण रहा जो स्वतंत्रता पूर्व या स्वतंत्रता के एकदम बाद कांग्रेस का था। हिंदुस्तानी ने हिंदी को बहुत पीछे धकेल दिया। पूरे देश में अंग्रेजी और उर्दू मिश्रित भाषा का प्रचलन समाचार पत्र-पत्रिकाओं में तेजी से बढ़ा है। फलतः नई पीढ़ी हिंदी बहुत कम जानती है। हमारी मानसिक दासता के कारण अंग्रेजी हमारी शिक्षा पद्घति का आधार है प्रारंभ से राजभाषा के रूप में हिंदी फलती-फूलती तो भाषाई दंगे कदापि नही होते। भाषा को राजनीतिज्ञों ने अपनी राजनीति चमकाने के हथियार के रूप में प्रयोग किया है। तिलक जैसे देशभक्त के प्रांत में भाषा के नाम पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राजठाकरे जो कर रहे हैं वह कतई उचित नही है।

स्वतंत्र भारत में पहले दिन से ही हिंदी राजनीतिज्ञों की उपेक्षावृत्ति व घृणापूर्ण अवहेलना का शिकार हुई। श्री नेहरू के समय में कामराज जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के पास दिल्ली से हिंदी में पत्र जाने पर उन्होंने अपने पास एक अनुवाद रखने के स्थान पर इन पत्रों को कूड़े की टोकरी में फेंक दो’- ऐसा निर्देश देकर राजभाषा के प्रति अपने घृणास्पद विचारों का प्रदर्शन किया था।  भारत वर्ष में कुल जनसंख्या का पांच प्रतिशत से भी कम भाग अंग्रेजी समझता है। हमें गुजराती होकर मराठी से और मराठी होकर हिंदी से घृणा है लेकिन विदेशी भाषा अंग्रेजी से प्यार है। जो भाषा संपर्क भाषा भी नही हो सकती उसे हमने पटरानी बना लिया और जो भाषा पटरानी है उसे दासी बना दिया। आज विदेशी भाषा अंग्रेजी के कारण  देश की अधिकांश आर्थिक नीतियों और योजनाओं का लाभ देश का एक विशेष वर्ग उठा रहा  हैऔर उसे संरिद्ध होते देखकर  हिंदीभाषी व्यक्ति को लगता है जैसे हिंदी बोलकर वह अत्यंत छोटा काम कर रहा है। किसी साक्षात्कार में अभ्यर्थी ने यदि बेहिचक अंग्रेजी  में प्रश्नों के उत्तर दिये हैं तो उसके चयन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसलिए देश में हिंदी के प्रति उपेक्षाभाव बढ़ता जा रहा है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है किंतु किसानों के लिए टीवी और रेडियो पर अंग्रेजी में या अंग्रेजी प्रधान शब्दों से भरी वार्ताएं प्रसारित की जाती हैं जिन्हें किसान समझ नही पाता, इसलिए सुनना भी नही चाहता। इसी कारण टीवी और रेडियो पर आयोजित वार्ताओं का अपेक्षित परिणाम नही मिल पाता। देश को एकता के सूत्र में पिरोये रखने के लिए राजनीति नहीं भाषा नीति की आवश्यकता है। इस हेतु शिक्षा का संस्कारों पर आधारित होना नितांत आवश्यक है। संस्कारित और शिक्षित नागरिक तैयार करना जिस दिन हमारी शिक्षा नीति का उद्देश्य हो जाएगा उसी दिन इस देश से कितनी ही समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

अभी तक के आंकड़े यही बताते हैं कि हमने मात्र शिक्षित नागरिक ही उत्पन्न किये हैं, संस्कारित नहीं। संस्कारित और देशभक्त नागरिकों का निर्माण देश की भाषा से ही हो सकता है। देश की अन्य प्रांतीय भाषाएं हिंदी की तरह ही संस्कृत से उद्भूत हैं। इन भाषाओं के नाम पर देश की राजभाषा की उपेक्षा करना राजनीति के मूल्यों से खिलवाड़ करना तथा विदेशी भाषा को अपनी पटरानी बनाकर रखना तो और भी घातक है।
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डॉ. मधुसूदन झवेरी :

हमारे नेतृत्व ने जिसको पटरानी बनाना चाहा था, वह तो पाकिस्तान चली गयी फिर भी उसकी आराधना करने में हमने हमारी संस्कृतनिष्ठ दक्षिण की भाषाओं की उपेक्षा कर के उन्हें प्रादेशिकतावादी आन्दोलनों के लिए अप्रत्यक्ष रीति से प्रोत्साहित किया| न इधर यश पाए न उधर!
सोचे - (1)हिंदी को अरबी-फारसी के समीप रखने से संस्कृत से उद्भूत शब्दावली से वंचित होना पड़ा है: कन्नड़ 70 से 80%, तेलुगु 70-80%, तमिल 40-50%.जागें, दक्षिणी भाषाओँ की संस्कृत उद्भूत शब्दावली को हिंदी में मिलायें।


(१) संस्कृत बहुल शब्दों वाली।
(२) कतिपय फारसी-अरेबिक (साहित्य में आ चुकने के कारण) स्वीकार करना पडेंगे।
(३) पराया शब्द लेने के पहले हमें अपनी देशी भाषाओं से शब्द लेना चाहिए।
(४) पारिभाषिक शब्दावली सारी बिना अपवाद संस्कृत ही होगी। किसी भी अन्य भाषा का कोई साहस नहीं, हो सकता।

(६) कुछ शब्द अपवादात्मक रूपमें ले ने पडे, तो उसका हिन्दीकरण होना चाहिए।

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प्रो. मोहनकान्त गौतम  
सत्य है कि  हिन्दी के नाम पर जितना काम हो रहा है वह खाना पूरी मात्र है. पिछले १० सालों से भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कहा कि आगामी विश्व हिंदी सम्मलेन होलैंड में होगा. मैं योरोप और होलैंड की हिंदी समितियों का सभापति हूँ. हमने काफी पैसा, प्रचार और प्रसार में खर्च किया. भारत सरकार से दो बार यहाँ लोग भी आये पर कुछ नहीं हुआ.२००२ में डॉ. करण सिंह व डॉ. मनमोहन सिंह के चाहने के बाद भी विश्व हिंदी सम्मलेन सम्मलेन होलैंड के स्थान पर सूरीनाम में, फिर न्यूयार्क में किया गया. उन्हें भ्रमित किया गया कि सम्मलेन अमरीका में हो तो सयुंक्त राष्ट्र संघ में हिंदी अपने आप पहुँच जायेगी. कहाँ पहुंची? और शायद कभी नहीं पहुँच पायेगी क्योंकि हमारी कोई व्यवस्थित नीति नहीं है. अब नवें सम्मेल्लन के लिए हमारे प्रस्ताव को फिर अमान्य कर दक्षिण अफ्रीका में सम्मलेन किया जा रहा है। होलैंड में २,३०,००० भारत वंशी हैंसिवाय कोरे वायदों के भारत सरकार जो झूंठे वायदे करने में निपुण है कुछ नहीं किया.
भारतीय दूतावास ने फिर खेल खेला... यहाँ से कोई भी दक्षिण अफ्रीका नहीं गया। एक तरफ  इंडियन दिस्पोरा (Indian Diaspora ) की बातें कर लोग भारत सरकार के खर्चे पर विदेशों का चक्कर लगाते हैं पर जो विद्वान ठोस काम कर सकते हैं उन्हें घास भी नहीं डाली जाती। धिक्कार है, होलैंड में बसे भारतवंशियों ने निश्चय कर लिया है कि भारत सरकार से अब कभी कुछ भी नहीं मांगेंगे। किसी भारतीय दूतावास में हिंदी कोई बोलता नहीं, सिर्फ अंग्रेज़ी ही बोलते हैं जैसे वही उनकी मातृभाषा हो। भाषाओं की तुलना नहीं की जा सकती। सभी भाषाएँ अच्छी हैं। जितनी भाषाएँ सीखी जा सकें, अवश्य सीखें। भाषाओं में सदैव से मिलावट हुई है और होती रहेगी। भारत में मुश्किल से १% लोग मानक हिंदी बोलते हैं और यही लोग हिंदी पर बातें करते हैं। यह कहाँ तक उचित है आप ही बताएं। दूसरी भाषाओं के शब्द लेने से भाषा धनी होती है। आक्सफोर्ड शब्दकोश को देखें तो पता लगेगा कि अंग्रेज़ी दूसरी भाषाओं से धनी हुई है। हिंदी का विकास ऐसे ही नहीं हुआ। अपभ्रंश भाषा से निकली और मानकीकरण तो सन १९०० के आस पास हुआ। यदि हमें हिंदी को आगे लाना है तो जिन शब्दों को हिन्दी ने अपना लिया है या बोले जाते हैं उन्हें हिन्दी का ही माना जाये। हमें संकुचित नहीं बनना है। मेरे जैसे अनेक भारतवंशियों ने अपना जीवन हिन्दी के लिये अर्पित कर दिया है पर भारत सरकार हमारी बात नहीं सुनती। 

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मनोज रक्षित 
तमिलनाडु में हिन्दी लोकप्रिय?
प्रश्न यह नहीं कि क्या तमिलनाडु में हिन्दी लोकप्रिय है या नहीं? प्रश्न यह होना चाहिए कि क्या किसी हिन्दी भाषी प्रदेश में तमिल (या कोई अन्य प्रादेशिक भाषा) लोकप्रिय है?
ऐसा क्यों कि हिन्दीभाषी देना तो कुछ चाहते नहीं, केवल लेना चाहते है? क्या मुसलमानों की संगत में इतने लंबे समय तक रहने का प्रभाव है यह? मुसलमान इतने स्वार्थी होते हैं कि उन्हें सब कुछ चाहिए ही होता है, देना कुछ भी नहीं चाहते। जिस प्रकार मुसलमान मानकर चलते हैं कि हिन्दू मंदिर तोड़ना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है पर बाबरी खण्डहर जिसमें पचास सालों से कभी नमाज़ अदा नहीं की गई थी, को तोड़ने का अधिकार किसी को नहीं था, उसी प्रकार हिन्दीभाषी यह मान कर क्यों चलते हैं कि यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है कि अन्य भाषा-भाषी हिन्दी पढ़ेंसमझें पर वे खुद किसी अन्य भाषा को न तो पढ़ेंगे, जानेंगें? क्या इस अधिकारभाव का कारण यह है कि एक जमाने में बहुसंख्यक उत्तर प्रदेश की भाषा हिंदी थी? वह प्रदेश जो अब टूट-फूट कर टुकड़े-टुकड़े हो गया, पर आदत नहीं गई? या फिर इसलिए कि संविधान के अनुसार केन्द्रीय सरकार के पत्र व्यवहार मात्र की दो भाषाओं में से हिन्दी एक है। जिस संविधान की दुहाई देकर वे हिन्दी के पक्ष में बोलते हैं, उसी संविधान के अनुसार जो दूसरी भाषा हिन्दी के समकक्ष है उसे यह अधिकार नहीं? हिन्दी भाषा को लेकर कि उन्हें अधिकार है दूसरों पर हिन्दी थोपने का पर किसी अन्य की भाषा को वही सम्मान देना उनके शान के खिलाफ़ है- ऐसा क्यों?

अंग्रेजों ने भारत आने पर भारतीयों को अपने से हर विषय में बहुत आगे पाकर तथा उनके लिए अपने-आप को ऊपर उठाना संभव न होने पर, अधिकार का प्रयोग कर भारतीयों पर अंग्रेज़ी थोपी, उनके मनो-मस्तिष्क पर अपना अधिकार जमाकर, उन्हें अपने आप से निकृष्ट बना दिया। उसी प्रकार उनके जाने के बाद हिन्दीभाषी प्रदेशों ने देखा कि वे सबसे अधिक पिछड़े प्रदेशों में से हैं, तथा अपने आपको अन्य प्रदेशों के समकक्ष बनाना उनके बस की बात नहीं, अंग्रेजों जैसी सत्ता भी उनके पास नहीं, तब उन्होंने अंग्रेज़ों की तरह छल का प्रयोग कर यह मिथ्या सारे देश में फैलायी कि हिन्दी राजभाषा है और छल-बल का प्रयोग कर हिन्दी अन्य राज्यों पर जबरन थोपने की चेष्टा की। यदि देवनागरी का उच्चारण केवल 10 वर्ष में ही सीखा जा सकता है तो फिर अनेकों हिन्दभाषी (जिनकी मातृभाषा हिन्दी है तथा जिन्होंने आजीवन हिन्दी में ही शिक्षा ग्रहण की है) "श" की जगह "स" उच्चारण करते हैं? ये हिन्दी भाषी देवनागरी जैसे phonetically scientific लिपि की अर्थी निकाल देते हैं। क्या अधिकार है इन्हें हिन्दी के पक्ष में बोलने का?

संस्कृत के साथ अपने हिन्दी के करीबी संबंधों का बखान सभी हिन्दीभाषी करते हैं किन्तु यह बात भूल कर भी नहीं करते कि साहित्य, व्याकरण, सशक्त भाषा की दृष्टि से संस्कृत के साथ हिन्दी की कोई तुलना ही नहीं हो सकती। अशक्त हिंदी के स्थान पर सशक्त संस्कृत को राजभाषा बनाने की बात वे कभी नहीं करते जबकि  संस्कृत राजभाषा के सर्वथा योग्य है। हिन्दी न तो संस्कृत के साथ सबसे अधिक सामीप्य रखने वाली भाषा है, न ही संस्कृत के बाडी सबसे सशक्त भाषा है।

हिन्दीभाषी शिकायत करते हैं कि चेन्नई या दक्षिण में कोइ उनसे हिन्दी में बात नहीं करता, सभी अग्रेज़ी बोलते हैं जो संवैधानिक राजभाषा का यह अपमान है। वे भूल जाते हैं कि हिन्दी तथा अंग्रेज़ी को संविधान ने एक समान स्तर एवं प्रत्येक प्रदेश को स्वतंत्रता दी है कि वे हिन्दी अथवा अंग्रेज़ी में किसी एक को चुनने में समर्थ हैं। देवनागरी के साथ हिन्दी का नाम जोड़नेवाले देवनागरी की गरिमा बढ़ानेवाले मराठी, नेपाली जैसी भाषाओं को क्यों भूल जाते हैं?? क्या स्वार्थ ही इसका मुख्य कारण है
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