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सोमवार, 20 अगस्त 2012

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डूबते को तिनके का सहारा।

तड़प और आँसू

तड़प और आँसू 

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

समीक्षा कृति ... श्रीमदभगवदगीता हिन्दी पद्यानुवाद

पुस्तक समीक्षा :

कृति: श्रीमद्भागवद्गीता हिन्दी पद्यानुवाद
अनुवादक: प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव  " विदग्ध "
प्रकाशक: अर्पित पब्लिकेशन्स, कैथल, हरियाणा
मूल्य:  २५० रु. , पृष्ठ ... २५४
संपर्क: ओ. बी. ११, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर म. प्र. ४८२००८
समीक्षक: श्रीमती विभूति खरे, ए ७ यश क्लासिक, सुस मार्ग, पाषाण, पुणे २१                               

           श्रीमद्भागवद्गीता सार्वकालिक ग्रंथ है. इसमें जीवन-प्रबंधन की गूढ़ शिक्षा है. आज संस्कृत समझने वाले कम होते जा रहे हैं पर गीता में सबकी रुचि सदैव बनी रहेगी. अतः, संस्कृत न समझने वाले हिंदी पाठकों को गीता का वही काव्यगत आनन्द यथावत मिल सके इस उद्देश्य से प्रो.चित्रभूषण श्रीवास्तव ' विदग्ध' ने मूल संस्कृत श्लोक, श्लोकशः काव्य अनुवाद तथा शब्दार्थ को कड़े बहुरंगी आवरण, चिकने कागज व स्वच्छ मुद्रण के साथ यह बहुमूल्य कृति प्रस्तुत की है. अनेक शालेय व विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमों में गीता के अध्ययन को शामिल किया गया है, उन छात्रों के लिये यह कृति बहुउपयोगी बन पड़ी है . 

         भगवान कृष्ण ने द्वापर युग के समापन तथा कलियुग आगमन के पूर्व (आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व) कुरूक्षेत्र के रणांगण में दिग्भ्रमित अर्जुन को, जब महाभारत युद्ध आरंभ होने के समस्त संकेत योद्धाओं  को मिल चुके थे, गीता के माध्यम से ये अमर संदेश दिये थे व जीवन के मर्म की व्याख्या की थी. श्रीमद्भागवद्गीता का भाष्य वास्तव मे 'महाभारत' है। गीता को स्पष्टतः समझने के लिये गीता के साथ ही महाभारत को पढ़ना और हृदयंगम करना भी आवश्यक है। महाभारत भारतवर्ष ही नहीं विश्व का इतिहास है। ऐतिहासिक एवं तत्कालीन घटित घटनाओं के संदर्भ मे झाँककर ही श्रीमद्भागवद्गीता के विविध दार्शनिक-आध्यात्मिक व धार्मिक पक्षों को व्यवस्थित ढ़ंग से समझा जा सकता है। 

          जहाँ  भीषण युद्ध, मारकाट, रक्तपात और चीत्कार का भयानक वातावरण उपस्थित हो वहाँ गीत-संगीत, कला-भाव, अपना-पराया सब कुछ विस्मृत हो जाता है फिर ऐसी विषम परिस्थिति में गीत या संगीत की कल्पना बडी विसंगति जान पडती है। क्या युद्ध में संगीत संभव है? एकदम असंभव किंतु यह संभव हुआ है- तभी तो 'गीता सुगीता कर्तव्य' यह गीता के माहात्म्य में कहा गया है। अतः, संस्कृत मे लिखे गये गीता के श्लोकों का पठन-पाठन भारत में जन्मे प्रत्येक भारतीय के लिये अनिवार्य है। संस्कृत भाषा का जिन्हें ज्ञान नहीं है उन्हें भी गीता और महाभारत ग्रंथ क्या है?, कैसे है? इनके पढ़ने से जीवन में क्या लाभ है? यह जानने और समझने के लिये भावुक हृदय कवियों, साहित्यकारों और मनीषियों ने समय-समय पर साहित्यिक श्रम कर कठिन किंतु जीवनोपयोगी संस्कृत भाषा के सूत्रों (श्लोकों) का पद्यानुवाद कर इस जीवनोपयोगी ग्रंथ को युगानुकूल सरल करने का प्रयास किया है।

           इसी क्रम में साहित्यमनीषी, कविश्रेष्ठ प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव जी 'विदग्ध' ने जो भारतीय साहित्य-शास्त्रों, धर्मग्रंथो के न केवलकुशल अध्येता हैं, स्वभाव से कोमल भावों के भावुक कवि भी हैं ने निरंतर साहित्य अनुशीलन की प्रवृत्ति के कारण विभिन्न संस्कृत कवियों की साहित्य रचनाओं का हिंदी पद्यानुवाद प्रस्तुत किया है. महाकवि कालिदास कृत 'मेघदूतम्' व 'रघुवंशम्' काव्य का आपके द्वारा किया गया पद्यानुवाद दृष्टव्य , पठनीय व मनन योग्य है।गीता के विभिन्न पक्षोंको योग कहा गया है. जैसे- विषाद योग, जब विषाद स्वगत होता है तो यह जीव के संताप में वृद्धि करउसके हृदय मे अशांति की सृष्टि करता है जिससे जीवन में आकुलता, व्याकुलता और भयाकुलता उत्पन्न होती हैं परंतु जब जीव अपने विषाद को परमात्मा के समक्ष प्रकट कर विषाद को ईश्वर से जोड़ता है तो वह विषाद योग बनकर योग की सृष्टि श्रृंखला का निर्माण करता है और इस प्रकार ध्यान योग, ज्ञान योग, कर्म योग, भक्तियोग, उपासना योग, ज्ञान-कर्म-सन्यास योग, विभूति योग, विश्वरूप दर्शन विराट योग, सन्यास योग, विज्ञान योग, शरणागत योग, आदि मार्गों से होता हुआ मोक्ष सन्यास योग प्रकारातंर से है, तो विषाद योग से प्रसाद योग तक यात्रा संपन्न करता है। इस दृष्टि से गीता का स्वाध्याय हम सबके लिये उपयोगी सिद्ध होता हैं. अनुवाद में प्रायः दोहे को छंद के रूप में प्रयोग किया गया है. कुछ अनूदित अंश बानगी के रूप में इस तरह हैं ..

अध्याय ५ से ..

नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित्‌ ।
पश्यञ्श्रृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपंश्वसन्‌ ॥
प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि ॥
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन्‌ ॥

स्वयं इंद्रियां कर्मरत,करता यह अनुमान
चलते,सुनते,देखते ऐसा करता भान।।8।।
सोते,हँसते,बोलते,करते कुछ भी काम
भिन्न मानता इंद्रियाँ भिन्न आत्मा राम।।9।।

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्‌ ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥

हितकारी संसार का,तप यज्ञों का प्राण
जो मुझको भजते सदा,सच उनका कल्याण।।29।।

अध्याय ९ से ..

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।
मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ॥

मै ही कृति हूँ यज्ञ हूँ,स्वधा,मंत्र,घृत अग्नि
औषध भी मैं,हवन मैं ,प्रबल जैसे जमदाग्नि।।16।।

           इस तरह प्रो. श्रीवास्तव ने श्रीमदभगवदगीता के श्लोकों का पद्यानुवाद कर हिंदी भाषा के प्रति अपना अनुराग तो व्यक्त किया ही है किंतु इससे भी अधिक सर्व साधारण के लिये गीता के दुरूह श्लोकों को सरल कर बोधगम्य बना दिया है.गीता के प्रति गीता-प्रेमियों की अभिरूचि का विशेष ध्यान रखा है । गीता के सिद्धांतों  को समझने में साधकों को इससे बहुत सहायता मिलेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। अनुवाद बहुत सुंदर है। शब्द या भावगत कोई विसंगति नहीं है। गीता के अनुवाद या व्याख्याएं अनेक विद्वानों ने की हैं पर इनमें लेखक स्वयं अपनी सम्मति समाहित करते मिलते हैं जबकि इस अनुवाद की विशेषता यह है कि प्रो. श्रीवास्तव द्वारा ग्रंथ के मूल भावों की पूर्ण रक्षा की गई है।

********************


आज का विचार TODAY's THOUGHT:

आज का विचार TODAY's THOUGHT:

जीवन,
कर्मों की प्रतिध्वनि है।
जैसा करते 'सलिल' लौटकर
वापिस तुम तक आता है।



*

POEM: my angels -Sandy Edwards

humour: COURT ORDER!

 
humour:
COURT ORDER!You are accused of:
Crawling into my HEART and hijacking my SMILES with your CUTENESS.
HOW DO YOU PLEAD??? 
GUILTY!!!
YOU are sentenced to be my friend
FOR LIFE!
NO BAIL!!! =) 

 
WinkWink

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

POEM: I MISS YOU...

POEM:

I MISS YOU...

हास्य रचना: कान बनाम नाक संजीव 'सलिल'

हास्य रचना:

कान बनाम नाक

संजीव 'सलिल'
*



शिक्षक खींचे छात्र के साधिकार जब कान.
कहा नाक ने: 'मानते क्यों अछूत श्रीमान?

उत्तर दें अति शीघ्र, क्यों नहीं मुझे खींचते?
सिर्फ कान क्यों लाड़-क्रोध से आप मींजते?'

शिक्षक बोला:'छात्र की अगर खींच लूँ नाक.
कौन करेगा साफ़ यदि बह आयेगी नाक?



बह आयेगी नाक, नाक पर मक्खी बैठे.
ऊँची नाक हुई नीची तो बड़े फजीते..

नाक एक तुम कान दो, बहुमत का है राज.
जिसकी संख्या हो अधिक सजे शीश पर ताज..

सजे शीश पर साज, सभी सम्बन्ध भुनाते.
गधा बाप को और गधे को बाप बताते..

कान ज्ञान को बाहर से भीतर पहुँचाते.
नाक बंद... बन्दे बेदम होते घबराते..



खर्राटे लेकर करे, नाक नाक में दम.
वेणु बजाती नाक लख चकित हो गये हम..



कान खिंचे तो बुद्धि जगे, आँखें भी खुलतीं
नाक खिंचे तो श्वास बंद हो, आँखें मुन्दतीं.

नाक कटे तो प्रतिष्ठा का हो जाता अंत.
कान खींचे तो सहिष्णुता बढ़ती बनता संत..


गाल खिंचे तो प्यार का आ जाता तूफ़ान.
दाँत खिंचे तो घनी पीर हो, निकले जान..



गला, पीठ ना पेट खिंचाई-सुख पा सकते.
टाँग खींचते नेतागण, लालू सम हँसते..
***


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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thought of the day:

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आजादी की मुस्कान

जयहिंद:



स्वतंत्रता: समानता 



आजाद मुस्कान:



व्यंग्य चित्र :

व्यंग्य चित्र :

बुधवार, 15 अगस्त 2012

स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनायें




स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनायें 

कुण्डलियाँ: भारत के गुण... -- संजीव 'सलिल'



VZAI

कुण्डलियाँ:                                       
भारत के गुण...
संजीव 'सलिल'
*
भारत के गुण गाइए, मतभेदों को भूल.
फूलों सम मुस्काइये, तज भेदों के शूल..
तज भेदों के, शूल अनवरत, रहें सृजनरत.
मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत..
तरसें लेनें. जन्म देवता, विमल विनयरत.
'सलिल' पखारे, पग नित पूजे, माता भारत..
*
भारत के गुण गाइए, ध्वजा तिरंगी थाम.
सब जग पर छा जाइये, बढ़ा देश का नाम..
बढ़ा देश का नाम, प्रगति का चक्र चलायें.
दण्ड थाम उद्दंड शत्रु को सबक सिखायें..
बलिदानी केसरिया की जयकार करें शत.
हरियाली सुख, शांति श्वेत मुस्काए भारत..

***

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

गीत: कब होंगे आजाद -- संजीव 'सलिल'

गीत:
कब होंगे आजाद
संजीव 'सलिल'
*
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*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष गीत: सारा का सारा हिंदी है --संजीव 'सलिल'



स्वतंत्रता दिवस पर विशेष गीत:

सारा का सारा हिंदी है

संजीव 'सलिल'
*

जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....*
मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है.
लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है.
गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल,
ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल.
लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है.                                  
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....
*
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान.
प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान.
स्नेह-सलिल में नित्य नहाकर, निर्माणों के दीप जलाकर.
बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्काकर.
पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....
*
जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार.
गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार.
अरावली, सतपुडा, हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर.
ठहरे-ठहरे गाँव हमारे, आपाधापी लिए शहर.
कुटी, महल, अँगना, चौबारा, हर घर-द्वारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....*
सरसों, मका, बाजरा, चाँवल, गेहूँ, अरहर, मूँग, चना.
झुका किसी का मस्तक नीचे, 'सलिल' किसी का शीश तना.                   
कीर्तन, प्रेयर, सबद, प्रार्थना, बाईबिल, गीता, ग्रंथ, कुरान.
गौतम, गाँधी, नानक, अकबर, महावीर, शिव, राम महान.
रास कृष्ण का, तांडव शिव का, लास्य-हास्य सब हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....
*
ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.
आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.
शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास कबीरा, मीरा, सूर.
तुलसी. चिश्ती, नामदेव, रामानुज लाये खुदाई नूर.
रमण, रवींद्र, विनोबा, नेहरु, जयप्रकाश भी हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....

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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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long live independence

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jhanda ooncha rahe hamara

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स्वतंत्रता दिवस


स्वतंत्रता दिवस मंगक्मय हो

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स्वातंत्र्य दिवस

स्वातंत्र्य दिवस अमर हो

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जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो क़ुर्बानी  

सोमवार, 13 अगस्त 2012

कविता मत बाँटो इन्सान -- कुसुम वीर

कविता :

मत बाँटो इन्सान 


 
कुसुम वीर
आदिकाल से
युगों -युगान्तरों तक
हम सिर्फ मानव थे
आपस में सब बराबर थे

कालांतर में
सत्ता की लालसा, महत्वाकांक्षा
धन की लोलुपता
अहम् , तुष्टि और स्वार्थ
इन सबने मिलकर
बिछाई एक कूटनीतिक बिसात

व्यवस्था के नाम पर
मोहरा बना मानव
बांटा गया उसे
जातियों में,वर्णों में,
धर्मों में, पंथों में
अनेक संस्कृतियो में

खड़ी कर दीं  आपस में
नफरत की दीवारें
डालीं दिलों में
फूट की दरारें
जहाँ -तहाँ तानीं अनगिन सीमाएं
हिंसा की आग में
जलीं कई चिताएं

दिलों में जलाई जो
नफरत की आग
 लपटों में झुलसे
अनेकों परिवार

शून्य में फिर ये
उछलता सवाल
कब रुकेगी ये हिंसा
बुझेगी ये आग

बनती यहाँ है
सर्वदलीय समिति
फैसलों से उसके
न मिलती तसल्ली

आरक्षण की पैबंद
लगाते हैं वो
उसीके भरोसे बंटोरेंगे वोट
मलते हैं वादों के
दिखावटी मलहम
दिलों में न चिंता,
नहीं कोई गम

ये मज़हब, ये जात-पांत
ऊँच-नीच, भेद-भाव
बनाये नहीं थे,
परब्रह्म सत्ता ने
फिर क्यूँ ये अलगाव,
फूटें हैं मन में

कब तक खरीदोगे
इन्सान को तुम
बाँटोगे कब तक
हर रूह को तुम
नफरत, ये अलगाव,
मत तुम फैलाओ
चलो, सबको मिलकर,
गले से लगाओ



 

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kusumvir@gmail.com